इंदौर। एपिलेप्सी यानी मिर्गी रोग बुजुर्गो या अधेड़ के मुकाबले युवा अवस्था में अधिक होता है। 30 वर्ष से कम आयु के युवा मिर्गी रोग का ज्यादा शिकार हो रहे हैं। इस बात का खुलासा इन्डियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी की वार्षिक कांफ्रेंस के तीसरे दिन एक शोध पत्र में किया गया। यह शोध 2011-12 में इंदौर के ही चोइथराम हॉस्पिटल सहित देशभर के 8 बड़े हॉस्पिटल में किया गया। इस शोध में मिर्गी रोगियों का डाटा एकत्रित किया है, जिसमें इंदौर के डॉ. जेएस कठपाल भी शामिल हैं।
पुरुषों में बीमारी अधिक
शोध देश के 8 बड़े शहरों जिसमें, केरल, मुंबई, कोलकाता, कोचिन, बेंगलुरू, इंदौर शामिल के चिकित्सा संस्थाओं में 8 डॉक्टर्स ने किया गया। इसमें 1 हजार 521 मरीजों शमिल किया गया था। जो नतीजे निकले वह चौंकाने वाले थे। मिर्गी रोग से पीड़ितों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या 32.2 प्रतिशत थी, जबकि पुरुषों की संख्या 67.2 रही। इसी तरह 0-5 वर्ष की आयु वाले बच्चों में 25.4 प्रतिशत, 5-10 में 20.4 प्रतिशत, 11-15 में 19.2 प्रतिशत 16-20 में 10.9, 21-30 वर्ष की आयु में 12.62 प्रतिशत लोगों मे मिर्गी मरीज मिले। 40-50 वर्ष की उम्र के मात्र 3.5 प्रतिशत मिर्गी के मरीज मिले हैं। 50 से अधिक उम्र में मात्र 2 प्रतिशत मरीज ही मिले हैं। शोध के मुताबिक 30 वर्ष से कम आयु में मिर्गी होने की अधिक संभावना है, क्योंकि 88 प्रतिशत मरीज इस आयु वर्ग के मिले।
अन्य शोध-पत्र भी प्रस्तुत किए
सम्मेलन के तीसरे दिन ‘‘कम्बाईनिंग एन्टीपाईलेटिक ड्रग्स’’ पर डॉ. मार्टिन ब्रॉडी, ग्लासगो, ‘एनॉटॉमिकल कोरिलेट्स ऑफ एमिग्डाला हिप्पोकैम्पेक्टोमी’’ पर डॉ. अतुल गोयल, मुम्बई और ‘मेन्टल डिस्ऑर्डर’ पर न्यूज़ीलैंड के डॉ. बैरी स्नो ने विचार व्यक्त किए। इसके अलावा रिवर्सिबल सेरेब्रल वैसोकॉन्सट्रिक्टिव सिन्ड्रोम, सरदर्द, इन्टरवेन्षन ऑफ हेडेक, डिमेन्शिया, डिमाईलिनेटिंग डिज़ीज, आदि पर भी विभिन्न देशों से आए विद्वानों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए और इनके लिए उपलब्ध आधुनिक चिकित्सा विधियों पर चर्चा की।
कार्यशाला में न्यूक्लियर इमेजि़ंग, सीटी स्कैन, एमआरआई आदि डायग्नोसिस विधियों पर विस्तृत चर्चा हुई, जिसमें न्यूज़ीलैंड के डॉ. बैरी स्नो ने पीईटी इन मूवमेंट डिस्ऑर्डर और डॉ. रितु वर्मा ने डीईटी स्कैन इन मूवमेन्ट डिस्ऑर्डर को विस्तार से समझाया।