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मानकेशा मुस्कुराए और कहा, ‘आपने बाइबिल पढ़ी है?’

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने मंत्रिमंडल की आपात बैठक बुलाई. मीटिंग में हाज़िर लोग थे – वित्त मंत्री यशवंत चौहान, रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम, कृषि मंत्री फ़ख़रुद्दीन अली अहमद, विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह और इन राजनेताओं से अलग एक ख़ास आदमी- सेनाध्यक्ष जनरल सैम मानेकशा. अप्रैल 29, 1971 के दिन।

‘क्या कर रहे हो सैम?’ इंदिरा गांधी ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री की एक रिपोर्ट जनरल की तरफ फेंकते हुए सवालिया लहजे में कहा. इसमें पूर्वी पाकिस्तान के शरणार्थियों की बढ़ती समस्या पर गहरी चिंता जताई गई थी. सैम बोले, ‘इसमें मैं क्या कर सकता हूं!’ इंदिरा गांधी ने बिना समय गंवाए प्रतिक्रिया दी, ‘आई वॉन्ट यू टू मार्च इन ईस्ट पाकिस्तान.’ जनरल ने बड़े इत्मीनान से जवाब दिया, ‘इसका मतलब तो जंग है, मैडम.’ प्रधानमंत्री ने भी बड़े जोश से कहा, ‘जो भी है, मुझे इस समस्या का तुरंत हल चाहिए.’

मानकेशा मुस्कुराए और कहा, ‘आपने बाइबिल पढ़ी है?’
जनरल के सवाल पर सरदार स्वर्ण सिंह हत्थे से उखड़ गए और बोले, ‘इसका बाइबिल से क्या मतलब है,जनरल?’ मानेकशा ने कहा, ‘पहले अंधेरा था, ईश्वर ने कहा कि उन्हें रौशनी चाहिए और रौशनी हो गयी. लेकिन यह सब बाइबिल के जितना आसान नहीं है कि आप कहें मुझे जंग चाहिए और जंग हो जाए.’

‘क्या तुम डर गए जनरल!’ यह कहते हुए यशवंत चौहान ने भी बातचीत में दखल दिया. ‘मैं एक फौजी हूं. बात डरने की नहीं समझदारी और फौज की तैयारी की है.

इस समय हम लोग तैयार नहीं हैं. आप फिर भी चाहती हैं तो हम लड़ लेंगे पर मैं गारंटी देता हूं कि हम हार जायेंगे. हम अप्रैल के महीने में हैं. पश्चिम सेक्टर में बर्फ पिघलने लग गयी है. हिमालय के दर्रे खुलने वाले हैं, क्या होगा अगर चीन ने पाकिस्तान का साथ देते हुए वहां से हमला कर दिया? कुछ दिनों में पूर्वी पाकिस्तान में मॉनसून आ जाएगा, गंगा को पार पाने में ही मुश्किल होगी. ऐसे में मेरे पास सिर्फ सड़क के जरिए वहां तक पहुंच पाने का रास्ता बचेगा. आप चाहती हैं कि मैं 30 टैंक और दो बख्तरबंद डिवीज़न लेकर हमला बोल दू!’ मीटिंग ख़त्म हो चुकी थी.

आगे सैम मानकेशा ने बताया – क्या आपको पता है कि मुगल आसाम को क्यों नहीं जीत पाए?
बरसाती नालों के कारण=मुगलों की फ़ौज आगे तो बढ़ जाती थी परन्तु ज्यों ही पीछे हटती वह इन नालों में फंस जाती.
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मीटिंग खत्म होने के बाद जगजीवन राम ने सैम मानकेशा का हाथ पकड़ा और कहा ” मान जाओ ना यार”
.हमारी जनता केवल जाति के आधार पर इस तरह के अदूरदर्शी राजनेता चुनती थी जिन्हें अपने सैनिकों के जीवन की कोई परवाह नहीं थी..
यह भारत का सौभाग्य था कि सैम मानिकशाह ने उसका हाथ दूर कर दिया.
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पाकिस्तान के 93000 सैनिक बंदी थे. इन्दिरा गांधी ने शिमला समझौता किया.
उसमें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर कोई बात नहीं की.
भारत के उन सैनिकों पर कोई बात नहीं की जो पाकिस्तान की कैद में थे.
भविष्य में पाकिस्तान पर कोई अंकुश लगाने की तैयारी नहीं की. पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद हल नहीं किया.
परिणाम –
पिछले 30 साल में हम आतंकवाद में 1 लाख जान लुटा चुके हैं. जिनमें सैनिक और असैनिक दोनों हैं.
एक सेनाधिकारी ने कहा था.–
जो युद्ध सेना ने मैदान में जीता वह युद्ध नेता ने मेज पर हरा दिया.
सैम मानकेशा के लिए सबसे गर्व की बात यह नहीं थी कि भारत ने उनके नेतृत्व में पाकिस्तान पर जीत दर्ज की. उनके लिए सबसे बड़ा क्षण तब था जब युद्ध बंदी बनाए गए पाकिस्तानी सैनिकों ने स्वीकार किया था कि उनके साथ भारत में बहुत अच्छा व्यवहार किया गया था. इसलिए विजय दिवस के सच्चे नायक सैनिक हैं. राजनेता नहीं…

साभार- https://www.facebook.com/TheAryaSamaj से
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