समीर को नर्सरी में छोड़कर, जल्दी से बाय कहकर, अपने दफ़्तर की तरफ़ भागती कावेरी मन ही मन सोच रही थी, कैसा जीवन है, रोज़ की भाग दौड़ में ज़िंदगी कितनी आगे निकल गई है | एक समय था जब घर से स्कूल जाते समय पापा अपनी लाडली को ढेर सारा प्यार करते, उसे किसी चीज़ की तकलीफ़ न होने देते | पापा की लाडली बिटिया थी वह जब जो भी माँगती पापा हर ख्वाहिश पूरी करते थे | कावेरी को बचपन से ही अपनी माँ का मंगलसूत्र बहुत पसंद आता था, वह जब भी किसी के गले में मंगलसूत्र देखती तो कहती माँ मैं भी मंगलसूत्र पहनूंगी |
माँ प्यार से कहतीं जब मेरी प्यारी बिटिया दुल्हन बनेगी तो हीरे का मंगलसूत्र मिलेगा | पापा कावेरी को और भाई नीरज दोनों को ही प्यार करते परन्तु पापा का स्नेह कावेरी पर कुछ ज़्यादा ही था | सदा कहते मेरी बेटी विदेश जाकर पढ़ेगी, यह तो सदा कक्षा में अव्वल आती है, इसे तो विदेश की बड़ी बड़ी यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिल ही जायेगा | पापा के लाड प्यार में पली कावेरी कब कक्षा १२ की परीक्षा उत्तीर्ण कर गई पता ही नहीं चला | जगह जगह फ़ोर्म भरने का सिलसिला शुरू हुआ | यू. एस. की एक नामी यूनिवर्सिटी में दाख़िले की मंज़ूरी आते ही घर में ख़ुशी की लहर छा गयी | पापा ने जगह जगह जाकर कावेरी के विदेश जाने की सभी कार्यवाही पूरी की | पासपोर्ट आदि सभी औपचारिकताएं पूरी हुईं | आखिर वह दिन भी आ गया जब कावेरी को विदेश जाने के लिए अपनी उड़ान भरनी थी, एक तरफ खुशी थी अपने सपने को पूरा करने की और दूसरी ओर माँ और पापा तथा नीरज से बिछुड़ने का दुःख | भारी मन से मां, पापा और भाई नीरज ने कावेरी को अनेकों हिदायतें देकर एअरपोर्ट पर विदाई दी | दूर तक देखते रहे सभी एक दूसरे को जब तक आँखों से ओझल न हो गए |
चार साल की विदेश की पढ़ाई पूरी कर पापा के किसी सगे संबंधी ने अपने लड़के का प्रस्ताव कावेरी से शादी के लिए रखा | पापा अपनी लाडली को यूँ ही किसी के साथ कैसे भेज दें इसलिए पूरी तरह से पूछ ताछ की गयी, सभी कुछ ठीक लगा लड़का भी विदेश में नौकरी करता था अच्छी तनख्वाह भी पाता था |पापा, मम्मी और नीरज ने बड़ी धूम-धाम से कावेरी की शादी दीपक के साथ कर दी | दीपक भी यू. एस. में रहता था और एक अच्छी कंपनी में काम करता था | विवाह के २ वर्ष बाद दीपक और कावेरी के घर नन्हे समीर का जन्म हुआ | कावेरी की ज़िम्मेदारियाँ घर में समीर, पति और दफ़्तर के काम निभाने में बढ़ती गयीं | वह कभी कभी दीपक से अपेक्षा करती थी कि वह भी काम में उसका हाथ बँटाये परन्तु दीपक हर समय अपने में ही मस्त रहता | घर में भी शाम को देर से आता | कावेरी के पूछने पर कह देता कि ऑफ़िस में इतने काम रहते हैं कि ख़त्म करते करते समय निकल जाता है |
कावेरी को दीपक के व्यवहार में बदलाव महसूस होने लगा | एक दिन रात को कावेरी की नींद खुली तो देखा दीपक बिस्तर पर नहीं है | धीरे से उठी तो बाथरूम से कुछ बातें करने की आवाज़ सुनाई दी | बहुत कोशिश के बाद भी समझ न पाई कि वह किससे बात कर रहा है | अगले दिन सुबह उठकर कावेरी के पूछने पर जवाब दिया कि वह भारत अपने माँ, पापा से बात कर रहा था | कावेरी को शंका तो हुई परन्तु अपने मन को सान्त्वना दी कि दीपक झूठ नहीं बोलेगा | अचानक दो दिन बाद ही दीपक के पापा का फ़ोन आ गया और कावेरी से बात की और कहा कि दीपक फ़ोन नहीं उठा रहा है, क्या बात है ? सब ठीक तो है ? बहुत दिनों से आप दोनों से बात नहीं हुई | तभी कावेरी ने बताया कि “दो दिन पहले ही तो दीपक ने आप से बात की है |” परन्तु ससुर जी ने कहा कि नहीं उसने तो हमें पिछले दस दिन से फ़ोन नहीं किया और ना ही हमारी उससे कोई बात हुई है | कावेरी ने ससुर से इस बारे में और कुछ नहीं कहा, केवल औपचारिकता की बातें करती रही किन्तु फ़ोन रखते ही अनेक प्रश्नों ने कावेरी को घेर लिया | क्या दीपक का कहीं और किसी लड़की के साथ …., कहीं दीपक किसी ग़लत आदत का शिकार तो नहीं हो गया ? मन को समझाने के लिए कावेरी ने एक प्याला चाय बनाई और विचारों के घेरे में घिर गयी | नन्हे समीर का ख़याल आते ही वह चौंक जाती, और सोचती, यदि दीपक ने उसे ठुकरा दिया तो समीर को पापा का प्यार कौन देगा ?
एक दिन कावेरी ने दीपक के फ़ोन में एक नम्बर देखा | शीघ्रता से नम्बर नोट किया | ऑफ़िस जाकर अपनी एक मित्र को सारी बात बताई और कहा कि तुम अपने फ़ोन से इस नम्बर पर कॉल करो | उसकी मित्र ने नम्बर मिलाया तो उधर से एक लड़की की आवाज़ आई | अब तो कावेरी का शक यक़ीन में बदल गया | मित्र ने फ़ोन काट दिया | और फिर मौक़ा पाकर कावेरी ने दीपक से बात की | पहले तो दीपक कावेरी पर ही दोष लगाता रहा परन्तु अंत में गुस्से से बोला, “हाँ मैं किसी और से प्रेम करता हूँ और तुम्हें तलाक़ देना चाहता हूँ |” कावेरी पर जैसे अनेक पहाड़ एक साथ टूट कर गिर पड़े हों | वह हताश होकर सोफ़े में धम्म से बैठ गई | धीरे धीर अपने आप को संभाला | यह बात उसने पापा मम्मी को भी नहीं बताना चाही | सोचा शायद दीपक बदल जाये परन्तु पति पत्नी में दूरी बढ़ती गई |
कावेरी ने एक दिन पापा को फ़ोन किया और कहा कि पापा कुछ दिन के लिए आप आ जाइये, मन नहीं लग रहा है, समीर भी आपको याद करता है | पापा को लगा कावेरी की आवाज़ में दर्द है, वह अब पहले की तरह चहक नहीं रही है | कावेरी के मम्मी पापा दोनों अपनी लाडली बिटिया के पास कुछ दिनों के लिए यू. एस. आ गए | कुछ दिन रहकर दीपक के व्यवहार को देखा और उससे बात की, दीपक ने साफ़ साफ़ पापा से कहा, “मैं कावेरी के साथ नहीं रहना चाहता |” पापा के बहुत समझाने पर भी दीपक नहीं माना | मम्मी पापा के सामने कावेरी और दीपक के तलाक़ के सिवा और कोई विकल्प भी नहीं था तलाक़ की सभी कार्यवाही पूरी हुईं | दीपक और कावेरी अलग अलग रहने लगे | कावेरी ने अपने गले से वह मंगल सूत्र जो विवाह के समय दीपक ने उसके गले में पहनाया था, जिसे पसंद करने में दीपक और कावेरी ने ना जाने कितनी दुकाने देखी थीं, तब कहीं वह मंगलसूत्र दोनों को पसंद आया था, वह भी उतार कर दीपक को दे दिया और कहा इसका अब मेरे लिए कोई मतलब नहीं रह गया है |
नन्हें समीर को और अपने को सम्भालती कावेरी मम्मी पापा से लिपटकर फूट फूट कर रोई किन्तु नियति और भाग्य को कौन टाल सकता है ! समय धीरे धीर बड़े से बड़ा घाव भी भर देता है | समय के साथ समझौता कर कावेरी हिम्मत जुटाती रही | हर मोड़ पर उसके सामने समीर का भविष्य खड़ा होता था, जिसे बनाने में उसने अपने आप को मज़बूती से खड़ा किया और दीपक को भुलाकर अपने काम में व्यस्त रह्ने लगी | मम्मी पापा भी कुछ दिन रहकर भारत वापिस चले गये | बस अब कावेरी के लिए समीर ही उसका जीवन और उद्देश्य था, जिसको वह अपना पूरा समय देती | तलाक़ के समय फ़ैसला हुआ था कि दीपक सप्ताह में एक बार अपने बेटे से मिल सकता है | किसी पार्क में या कहीं भी समीर को दीपक के साथ कुछ घंटों के लिए छोड़ दिया जाता था | परन्तु धीरे धीरे दीपक ने समीर से मिलना भी बंद कर दिया | कावेरी को धीरे धीरे नौकरी में बढ़ोतरी भी हो गयी जिससे उसका खर्च आराम से चल जाता था | बस अब कावेरी के लिए समीर और यू. एस. की भाग दौड़ ही उसका जीवन है | पापा मम्मी से बात करके मन को सांत्वना मिलती थी | समीर भी अपने स्कूल में बच्चों के साथ खुश रहने लगा था |
तभी कावेरी के ख्यालों का ताँता टूटा, देखा उसका ऑफ़िस आ गया है | तेज़ क़दमों से आगे बढ़ती हुई कावेरी अपने ऑफिस के कमरे के सामने पहुँची, देखा तो सामने उसकी मित्र साधना खड़ी थी, उस दिन करवाचौथ का दिन था और साधना के गले में काले मोती का मंगलसूत्र लटक रहा था, कावेरी मंगलसूत्र देखते ही एक झटके से अपनी नज़र हटाकर साधना को हेल्लो साधना कहकर अपने कमरे की ओर चल पड़ी | क्योंकि अब उसे मंगलसूत्र नाम से भी नफरत जो हो गयी थी | अब उसे मंगलसूत्र गले में लटकी हुई ज़ंजीर लगता था |
(लेखिका कैनेडा में रहती हैं और अपनी रचनाधर्मिता से हिंदी साहित्य को समृध्द करने का प्रयास करती है)
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