उम्मीद है कि अगले पांच वर्षों में हम हर दिन ओलंपिक स्तर के आकार वाले 78 तालाबों के बराबर सीवेज को जल संयंत्रों से हटाकर इस रास्ते को सुगम बनाएंगे
आज ताज़ा मीठा पानी दुर्लभ है. पूर्वानुमान लगाया गया है कि 2023 में भारत के 21 शहरों में भूगर्भ जल के स्रोत ख़त्म हो जाएंगे. वहीं, भारत का 54 प्रतिशत हिस्सा पानी की क़िल्लत के भारी दबाव में है. यही नहीं, पानी का ये संकट कोई भारत की अनूठी समस्या नहीं है; दुनिया के अन्य उभरते बाज़ार भी ऐसी ही चुनौतियां झेल रहे हैं. ऐसे में हैरानी नहीं होनी चाहिए कि जलवायु परिवर्तन के ज़्यादातर दुष्प्रभाव पानी की बढ़ती क़िल्लत के तौर पर दिखाई देंगे. चूंकि, हमारे अस्तित्व के लिए पानी बेहद अहम है, इसलिए इस संसाधन के संरक्षण के लिए टिकाऊ व्यवस्थाएं विकसित करने की ज़रूरत जितनी ज़्यादा आज है, उतनी पहले कभी नहीं थी.
ख़राब पानी को बड़े पैमाने पर साफ़ और रिसाइकिल करके हम शहरों की 60 से 70 प्रतिशत तक ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं और मीठे पानी के स्रोतों को प्रदूषित होने से भी बचा सकते हैं.
ख़राब पानी को बड़े पैमाने पर साफ़ और रिसाइकिल करके हम शहरों की 60 से 70 प्रतिशत तक ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं और मीठे पानी के स्रोतों को प्रदूषित होने से भी बचा सकते हैं. यही नहीं, इसके फ़ायदे जल संरक्षण के दायरे से आगे बढ़कर देखने को मिलेंगे. शोधित ख़राब पानी को रिसाइकिल करने से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी कमी लाने में योगदान दिया जा सकेगा. मिसाल के तौर पर, 2021 में ख़राब पानी को शोधित और रिसाइकिल करके सिंचाई में इस्तेमाल करने भर में भी इतनी संभावना थी कि इससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 13 लाख टन तक कम किया जा सकता था. बदक़िस्मती से हम आज भी ये काम कर पाने से कोसों दूर खड़े हैं. वैसे तो पानी की सफ़ाई करने वाले प्लांट तो जगह जगह दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, इनमें से 75 प्रतिशत प्लांट काम नहीं कर रहे हैं. भले ही ग्राहक इनको रोज़ाना चलाने और ख़राब होने से रोकने में अच्छी ख़ासी रक़म ख़र्च करते हों.
वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के संचालन पर असर डालने वाले हमारे समाधानों का एक उदाहरण तो ये है कि हम मुख्य रिएक्टर में pH के स्तर में गिरावट से किस तरह निपटते हैं, जो जटिल जैविक प्रतिक्रियाओं का नतीजा होता है.
हमारी टीम ने पानी शोधित करने वाले सैकड़ों प्लांटों के मालिकों और WASH इंस्टीट्यूट जैसे संस्थानों के विशेषज्ञों से बात की, ताकि वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की दिक़्क़तों को जड़ से समझ सकें. हमने जो जानकारियां जुटाईं, उनसे पचा चला कि डेटा, महारत और इन प्लांटों के संचालन की व्यवस्था मौक़े पर प्रभावी ढंग से उपलब्ध ही नहीं है. जहां प्लांट हैं वहां उनको चलाने की ज़िम्मेदारी कम कुशल ऑपरेटर्स पर है, जो आम तौर पर किसी भी समस्या की समझ उसके पैदा होने के बाद सीखते हैं. कई बार तो ये लोग समस्या पैदा होने के हफ़्तों बाद उसके बारे में जान पाते हैं और उन समस्याओं से जूझने के लिए जो तकनीकी समझ उनके पास होनी चाहिए, वो नहीं होती. इसका नतीजा ये होता है कि न केवल प्लांट के मालिकों न्यूनतम उत्पादकता के लिए भारी रक़म ख़र्च करनी पड़ती है, बल्कि उनके ऊपर, सरकार के नियमों का पालन न करने की वजह से जुर्माना लगने का ख़तरा भी मंडराता रहता है. इसके अलावा ये ठीक से काम न करने वाले वाटर ट्रीटमेंट प्लांट न केवल बहुत बिजली खाते हैं, बल्कि वो पानी को भी इस तरह शोधित करते हैं, जिसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, जिससे मीठे पानी (जो सीमित है) के दोहन का दबाव और बढ़ जाता है.
हमने एक ऐसे समाधान की परिकल्पना की जिससे ख़राब पानी साफ़ करने वाले इन केंद्रों का अधितम इस्तेमाल हो सके. इसके लिए हम कम कुशल ऑपरेटर्स को सशक्त बनाने के साथ, पानी साफ़ करने वाले कारखानों के कुशल प्रबंधन के लिए ज़रूरी तकनीकी दक्षता उपलब्ध कराएंगे. डिजिटल पानी, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) पर आधारित प्लेटफॉर्म है, जिससे ख़राब पानी के प्रबंधन का एकीकृत संचालन उपलब्ध कराया जाता है. हम हर इकाई के संचालन पर निगरानी रखने के लिए सॉफ्टवेयर और सेंसर्स का इस्तेमाल करते हैं, ताकि दूर बैठकर भी स्वचालित तरीक़े से इन केंद्रों की निगरानी और प्रबंध कर सकें, और इसके साथ साथ व्हाट्सऐप जैसे संचार माध्यमों से हर समय सहज रूप से उपलब्ध रहें.
सरकार भले ही नेट ज़ीरो का भविष्य निर्मित करने के लिए इको-फ्रेंडली निर्माण को बढ़ावा देने के प्रयास कर रही है, ताकि स्टार्ट अप के विकास में योगदान दे सके. लेकिन, अभी भी ऐसे कई सुधारों की ज़रूरत है, जिससे इस क्षेत्र में काफ़ी मूल्य जोड़ा जा सकता है.
हमारे समाधान, पूरे प्लांट के संचालन का प्रबंधन करते हैं. जो उस प्लांट की वास्तविक डिज़ाइन और ज़रूरतों को तात्कालिक तौर पूरा करने वाले होते हैं और ये सुनिश्चित करते हैं कि उस प्लांट के हर पहलू यानी पंप और ब्लोअर, ऑपरेटर का काम, केमिकल डोज़ देने या फिर रख-रखाव के बुनियादी काम सही तकनीकी निर्देशन में किए जा सकें. हमारे पास एक केंद्रीय नियंत्रण इकाई भी है, जो हमसे जुड़े पानी शोधित करने वाले संयंत्रों की निगरानी हर दिन चौबीसों घंटे लगातार और सही समय पर कर सके. इसीलिए, डिजिटल पानी न केवल एक तकनीकी उत्पादत है, बल्कि संचालन के प्रबंधन का ऐसा समाधान है, जो ख़राब पानी को साफ़ करने वाले कारखानों के सही प्रबंधन को भी सुनिश्चित करता है, जिससे ग्राहकों को अपेक्षित कुशलता के नतीजे निकल सकें.
वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के संचालन पर असर डालने वाले हमारे समाधानों का एक उदाहरण तो ये है कि हम मुख्य रिएक्टर में pH के स्तर में गिरावट से किस तरह निपटते हैं, जो जटिल जैविक प्रतिक्रियाओं का नतीजा होता है. आम तौर पर इस समस्या का समाधान करने के लिए जो तकनीकी दक्षता चाहिए, वो मौक़े पर मौजूद ऑपरेटरों के पास नहीं होती है. वहीं, प्लांट के बाहर जो इसके जानकार होते हैं, वो कई हफ़्तों बाद पहुंचते हैं. नतीजा ये होता है कि इस समस्या का शोधित पानी की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता रहता है. ऐसे हालात में, डिजिटल पानी की तकनीक में ये क्षमता है कि वो इस समस्या का तुरंत पता लगाकर उसका समाधान मुहैया कराती है. जैसे कि रिएक्टर में जैविक तत्व डालना. हमारी तकनीक में ये क्षमता भी है कि हम दूर बैठकर भी पंप जैसे उपकरणों के ऑटोमेशन को ठीक कर सकते हैं, ताकि रिएक्टर में सीवेज की सही मात्रा पहुंचती रहे.
संचालन की इस नई तकनीक से अब तक लगातार सकारात्मक नतीजे ही निकलते दिखे हैं, जिससे ख़राब पड़े वाटर ट्रीटमेंट प्लांट, नियमों का अनुपालन कर पाते हैं. वहीं इससे पानी की गुणवत्ता भी बेहतर होती है, जिससे हमारे ग्राहकों के प्लांट चलाने की लागत में 41 प्रतिशत तक की कमी आती है. एक और उदाहरण बताते हैं. हमारी निगरानी में चल रहा एक और प्लांट 14 साल पुराना था और संचालन में गड़बड़ी के कारण इसको बार बार समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था. हमारी टीम ने प्लांट की समस्याओं को पकड़ा और इसको चलाने वाली टीम को कई समस्याएं जैसे कि बैकवॉश के ख़राब तरीक़ों, क्लोरीन डालने के बेअसर उपायों और स्वचालन की गड़बड़ियों को दूर करने में मदद की. इसका नतीजा ये हुआ कि अब ये प्लांट अपने 100 प्रतिशत सीवेज पानी को साफ़ करके रिसाइकिल कर रहा है. इसके साथ साथ, संचालन बंद होने की दिक़्क़त भी 86 प्रतिशत तक कम हो गई है और बिजली की खपत भी 33 फ़ीसद तक कम हो गई, जिससे 5500 प्रौढ़ पेड़ों के बराबर कार्बन डाई ऑक्साइड को कम किया जा सका है. अकेले भारत में जलशोधन के ऐसे 85 हज़ार केंद्र हैं और ये संख्या सालाना 8 प्रतिशत की दर से बढ़ भी रही है.
इस सफर के दौरान कई चुनौतियों का सामना भी हमें करना पड़ा है. जैसा कि किसी भी नए कारोबार के साथ होता है, हमें ये सुनिश्चित करना पड़ा था कि उत्पाद का विकास ग्राहकों की अपेक्षाओं के मुताबिक़ हो. जबकि रिसर्च और विकास की लागत और समयसीमा अनिश्चित थी. हमें अपनी सेवाएं देने और उत्पाद पहुंचाने का काम एक छोटी टीम के साथ करते हुए ग्राहकों को अपने साथ जोड़ना भी था. इन चुनौतियों से निपटने में हमें जो सबसे ज़्यादा मदद मिली, वो शुरुआती स्तर के उन संस्थापकों से मिली, जो जलवायु तकनीक के क्षेत्र में काम कर रहे थे. इसके अलावा हमने ये भी महसूस किया है कि किसी एक की कोशिश से जल संकट का समाधान नहीं हो सकता है; इसके लिए समाज, निजी क्षेत्र और आम जनता के सहयोग की ज़रूरत होगी. इसका मतलब है कि सरकार भले ही नेट ज़ीरो का भविष्य निर्मित करने के लिए इको-फ्रेंडली निर्माण को बढ़ावा देने के प्रयास कर रही है, ताकि स्टार्ट अप के विकास में योगदान दे सके. लेकिन, अभी भी ऐसे कई सुधारों की ज़रूरत है, जिससे इस क्षेत्र में काफ़ी मूल्य जोड़ा जा सकता है.
ऐसे सुधारों का एक उदाहरण ख़रीदारी के नियमों में बदलाव करना है जिससे टिकाऊ उत्पादों का विकास करने वाले स्टार्ट अप को बिजनेस टू बिजनेस (B2B) के ठेके टेंडर की लंबी प्रक्रिया से गुज़रे बग़ैर मिल सकें. इसके अतिरिक्त, वैसे तो इनोवेशन पर केंद्रित मेंटरिंग के प्रोग्राम और मदद को शुरू किया जा रहा है. ये प्रयास आम तौर पर स्टार्ट अप को शुरुआती कुछ पायलट प्रोजेक्ट के लिए ही दिए जाते हैं. हालांकि, संचालन को बड़े स्तर तक पहुंचाने के लिए, कंपनियों को लंबी अवधि के लिए पूंजी उपलब्ध होनी चाहिए ताकि वो अपनी मुख्य तकनीक निर्मित करने में निवेश कर सकें. अपनी टीम मज़बूत बना सकें और मूल्य संवर्धन के एक बेहतर विकल्प को मुहैया करा सकें. हमारा मानना है कि मदद वाली फंडिंग और ऐसे ही दूसरे कार्यक्रमों से कंपनियों को कुछ गिने चुने पायलट प्रोजेक्ट पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, अपने संचालन को बड़ा बनाने में मदद करनी चाहिए.
इसीलिए, हमारे समाधान भारत को अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने और अधिक स्वच्छ और टिकाऊ भविष्य की ओर बढ़ने में मदद करने का एक उल्लेखनीय अवसर उपलब्ध कराते हैं. हम उम्मीद करते हैं कि अगले पांच वर्षों में हम हर दिन ओलंपिक स्तर के आकार वाले 78 तालाबों के बराबर सीवेज को जल संयंत्रों से हटाकर इस रास्ते को सुगम बनाएंगे. इस कोशिश से हर दिन इतना ताज़ा पानी बचेगा, जिससे सात लाख से ज़्यादा लोगों की ज़रूरतें पूरी की जा सकेगी और 70 लाख प्रौढ़ दरख़्तों के बराबर कार्बन डाई ऑक्साइड भी पर्यावरण से हटाई जा सकेगी. हमारा अंतिम लक्ष्य तो हमारी धरती की बेहतरी पर व्यापक और स्थायी सकारात्मक असर डालना है, और हम हर उस इमारत और कारखाने को अपने इस सफर में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित करते हैं जो टिकाऊ समाधानों के क्षेत्र में अगुवा बनने की कोशिश कर रहे हैं.
साभार- https://www.orfonline.org/hindi से