पत्रकारिता समाज का दर्पण होती है, जो समाज में घटित घटनाओं को उजागर करती है और लोगों को जागरूक करती है। भारतीय संस्कृति में प्रथम पत्रकार के रूप में ऋषि नारद माने जाते है। वे देवताओं और मानवों के बीच, देवताओं और दानवों के बीच संवाद का माध्यम थे। वर्तमान समय में पत्रकारिता ने तकनीकी और सैद्धांतिक दृष्टिकोण से बहुत प्रगति की है। आज की पत्रकारिता बहुत बदल गई है फिर भी ऋषि नारद की पत्रकारिता ध्रुव तारे के समान उच्च आदर्शो का पथ प्रदर्शक है। आज की पत्रकारिता चुनोतियों से परिपूर्ण कंटकाकीर्ण मार्ग है, फिरभी समाधान का मार्ग खोजना होगा।
देवर्षि नारद की पत्रकारिता में उच्च आदर्श थे
1. सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता : नारद मुनि सत्य के प्रति समर्पित थे। वे सत्य की खोज में हमेशा तत्पर रहते थे और देवताओं तथा मनुष्यों को सत्य जानकारी प्रदान करते थे। एक आदर्श पत्रकार की तरह, वे किसी भी प्रकार की जानकारी को तटस्थता और निष्पक्षता से प्रस्तुत करते थे। उदाहरण के लिए, जब प्रह्लाद को उनके पिता हिरण्यकशिपु द्वारा सताया जा रहा था, तब नारद ने प्रह्लाद के प्रति अपनी सहानुभूति और समर्थन व्यक्त किया। उन्होंने सत्य का समर्थन किया, चाहे स्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।
आरोप: वर्तमान में पत्रकारिता पर असत्य तथ्यहीन बातों के प्रसार और पक्षपाती होने के आरोप लगते है। ये आरोप कुछ मात्रा में सत्य भी दिखते है।
समाधान: पत्रकारों को सत्य और निष्पक्षता के प्रति प्रतिबद्ध रहना चाहिए इसके लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य निगरानी संस्थाओं को सशक्त करने की आवश्यकता है। पत्रकारों को प्रशिक्षण और विकास कार्यक्रमों के माध्यम से भी इसके लिए तैयार किया जाए।
2. जनकल्याण: नारद मुनि का उद्देश्य सदैव जनकल्याण रहा है। जब उन्होंने देखा कि भगवान राम सीता की तलाश में दुःखी हैं, तो उन्होंने सबरी और श्रीराम के मिलन की भूमिका निभाई। इससे श्रीराम को सीता की खोज में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन मिला। नारद मुनि ने अपने संवाद और मार्गदर्शन के माध्यम से समाज के कल्याण का प्रयास किया।
आरोप: आज की पत्रकारिता में पक्षपात और व्यावसायिक हित भी देखे जाते हैं। कई बार समाचार संस्थाएँ अपने आर्थिक लाभ के लिए समाचारों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करती हैं। इससे जन कल्याण की आशा धुंधली हो जाती है।
समाधान: जो मीडिया हाउस सामाजिक सरोकार के विषयों को उठाते है उनका प्रोत्साहन किया जाए। किसी मीडिया हाउस की रिपोर्टिंग के कारण जनहानि या समाज पर कुप्रभाव पर भी निगरानी रखी जाए।
3. सूचना का सही समय पर प्रसार: नारद मुनि की एक विशेषता यह थी कि वे सूचनाओं को सही समय पर प्रसारित करते थे। जब दुर्योधन और पांडवों के बीच महाभारत युद्ध की तैयारी चल रही थी, तब नारद मुनि ने युद्ध के संभावित परिणामों की जानकारी पांडवों को दी। उन्होंने इस महत्वपूर्ण जानकारी को सही समय पर देकर पांडवों को तैयार होने में मदद की।
आरोप: आज की पत्रकारिता पर आरोप लगता है कि वे युद्ध, आतंकी घटनाओं, सर्च ऑपरेशन, आतंकियों पर कार्यवाही के समय सूचनाओं का प्रसारण करके समाज कंटको को अप्रत्यक्ष सहायता पहुंचाते है जैसे मुम्बई हमले के समय देखा गया था।
समाधान: पत्रकारों का समय समय पर प्रबोधन किया जाए
भारतीय पत्रकार स्वयं राष्ट्रहित पर चिंतन करके कुछ आदर्श स्वयं तय करे। राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर निगरानी की कोई कमेटी भी बनाई जाए तो पत्रकारिता की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय हित समय संतुलन स्थापित करे।
4. विश्वसनीयता: नारद मुनि की सूचनाएं हमेशा विश्वनीय होती थी जिसे देव और दानव समान रूप से मानते थे। उनकी निष्पक्षता ने उन्हें एक भरोसेमंद सूचना-स्रोत बनाया। उदाहरण के लिए, वे शिव और विष्णु के बीच संतुलन बनाकर रखते थे और किसी भी पक्षपात से दूर रहते थे।
आरोप: आजकल सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर फेक न्यूज़ और गलत सूचना का प्रसार एक गंभीर समस्या बन चुका है। कई बार पत्रकारों को राजनीतिक दबाव और सेंसरशिप का सामना करना पड़ता है, जिससे स्वतंत्र पत्रकारिता प्रभावित होती है। पत्रकारिता संस्थानों पर वित्तीय दबाव और कॉर्पोरेट प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जिससे समाचार की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
समाधान: समचसर सत्यापन के लिए मजबूत तंत्र विकसित किया जाए, तकनीकी उपयोग से फेक न्यूज पर रोकथाम के तंत्र विकसित किया जाए। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कड़े कानून बने। स्वतंत्र मीडिया हाउस की स्थापना को प्रोत्साहित किया जाए। सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों से आर्थिक सहायता के बिना स्वतंत्रता सुनिश्चित किया जाए। विज्ञापन और सामग्री के बीच स्पष्ट विभाजन रखा जाना चाहिए।
5. धर्म और नैतिक शिक्षा: नारद मुनि ने हमेशा धर्म और नैतिकता का प्रचार किया। उन्होंने विभिन्न राजाओं और संतों को धार्मिक शिक्षा दी। उदाहरण के लिए, उन्होंने राजा युधिष्ठिर को धर्म और नीति की महत्वपूर्ण बातें सिखाईं। उन्होंने समाज में नैतिक मूल्यों और धार्मिक आचरण को स्थापित करने का प्रयास किया।
आरोप: वर्तमान में पत्रकारों द्वारा धर्म और नैतिकता की अपेक्षा करना कठिन है। फिरभी अनेक पत्रकार है जिन्होंने नैतिकता के उदाहरण दिए है।
समाधान: पत्रकार समाज का हिस्सा है। वे न केवल सूचनाओं का सम्प्रेषण करते है वरन समाज के अवचेतन मनःस्थिति के निर्माण में महत्वपूर्ण साधन है, इसलिए पत्रकारिता को विशेष रूप से सजग रहकर कार्य करना वाहिये।
6. समीक्षात्मक दृष्टिकोण: नारद मुनि की पत्रकारिता में घटनाओं का विश्लेषण और समीक्षा महत्वपूर्ण थी। वे घटनाओं को केवल रिपोर्ट नहीं करते थे, बल्कि उनका गहन विश्लेषण भी करते थे। उदाहरण के लिए, जब देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ, तब नारद मुनि ने इसका गहन विश्लेषण किया और सभी को उचित सलाह दी।
आरोप: अनेक बार पत्रकारों की रिपोर्टिंग से समाज मे वैमनस्य बढ़ा है। जैसे रोहित वेमुला की घटना का सत्य 8 वर्ष बाद न्यायालय के माध्यम से आया जबकि मीडिया ने उस समय समाज के एक वर्ग को पीड़क और दूसरे को पीड़ित सिद्ध करने का पूरा प्रयास किया था।
7. तेज और सक्रियता (Swiftness and Proactivity): नारद मुनि हमेशा समय पर और तुरंत सूचना पहुँचाने के लिए प्रसिद्ध थे। वे किसी भी घटना की जानकारी जल्द से जल्द संबंधित व्यक्तियों तक पहुँचाते थे, जो आज के तेज़-तर्रार पत्रकारिता के लिए एक आदर्श है। जैसे, वे दक्ष यज्ञ के समय शिव को बुलाने के लिए तुरंत वहाँ पहुँचे।
8. लोककल्याण (Public Welfare): नारद मुनि का हर कार्य लोककल्याण के उद्देश्य से होता था। वे सूचनाओं का आदान-प्रदान इसलिए करते थे ताकि समाज में सत्य और धर्म की स्थापना हो सके। वे संघर्ष को समाप्त करने और शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
9. साहस (Courage): नारद मुनि ने हमेशा निर्भीक होकर सत्य का प्रचार किया, चाहे उसके परिणाम कितने भी कठिन क्यों न हों। यह गुण एक आदर्श पत्रकार में होना आवश्यक है, जो सच को सामने लाने के लिए किसी भी प्रकार के भय से मुक्त हो।
देवर्षि नारद की पत्रकारिता और वर्तमान की पत्रकारिता में बहुत बदलाव भी है, उनमें से कुछ बदलाव तकनीकी के कारण है, आइए देखते है
1. सूचना का स्वरूप बदल गया: प्राचीन काल में सूचनाएँ मौखिक रूप में प्रसारित होती थीं, जबकि आज ये डिजिटल और प्रिंट माध्यमों में होती हैं, वीडियो फोटो ग्राफिक्स पोस्टर अनेक रूपों में सूचना सम्प्रेषण होता है।
2. तकनीकी उपयोग: नारद मुनि की पत्रकारिता में कोई तकनीकी उपकरण नहीं थे, जबकि आज के पत्रकारों के पास अनेक तकनीकी साधन हैं जैसे कैमरा, कंप्यूटर, इंटरनेट, आदि।
3. प्रभाव और पहुँच: नारद मुनि की पत्रकारिता का प्रभाव सीमित था, जबकि आज की पत्रकारिता का प्रभाव वैश्विक है।
4. प्राप्ति का तरीका: नारद मुनि के समय में सूचनाएँ स्वयं उनके पास पहुँचती थीं या वे खुद उसे एकत्रित करते थे। आज के पत्रकारों को सूचनाएँ इकट्ठा करने के लिए विभिन्न स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है।
निष्कर्ष: देवऋषि नारद के आदर्श आज की पत्रकारिता के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं। सत्य, निष्पक्षता, और न्याय की उनकी शिक्षा को अपनाकर हम वर्तमान चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। पत्रकारिता को एक पवित्र और जिम्मेदार पेशे के रूप में बनाए रखने के लिए, पत्रकारों को नारद मुनि के उच्च आदर्शों का पालन करना चाहिए और पत्रकारिता के मूल्यों को पुनः स्थापित करना चाहिए। साथ ही, प्रौद्योगिकी और सामाजिक परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठाते हुए, पत्रकारिता को और भी सशक्त और प्रभावी बनाना होगा।