यू ट्यूबर अब पेड न्यूज़ की नई खेती हैं। सारे सेक्यूलर चैंपियंस एन जी ओ का पहाड़ा छोड़ कर यू ट्यूब पर ट्रवेल कर रहे हैं। इन में कुछ लोग तो प्रमुख चैनलों से बेरोजगार हो कर , कहीं कोई दूसरी नौकरी न पाने की विवशता में आए हैं यू ट्यूब पर। सुनते हैं कि आठ-दस लाख वेतन पाने वाले एक से एक तोपची लोग यू ट्यूब पर लाख-दो लाख घसीट ले रहे हैं। दिलचस्प यह कि लाइलाज हो चुके यह लोग अब अखिलेश यादव का इलाज कर रहे हैं। ताकि अखिलेश यादव स्वस्थ हो कर मुख्य मंत्री की कुर्सी सुशोभित कर सकें।
इस ख़ातिर कोई पुण्य कमाने के लिए दाढ़ी खुजाते हुए पसीना बहा रहा है। कोई दाढ़ी मुड़वा कर अपनी अंजुमन सजा रहा है। कोई सत्य और हिंदी भाख कर अपना जहर फैला रहा है। कोई शुक्रवार , शनिवार बता रहा है। कोई शाम का 4 बजा रहा है। कोई बारह बजा रहा है। तो कोई दिन को रात , रात को दिन बता रहा है। तो कोई किसी पुरोहित की तरह पत्रा बांच-बांच कर जीत-हार का भविष्यफल बता रहा है।
जो किचकिचा कर अपराध की ख़बरें बांचता रहा हो , वह भी अब राजनीति समझने लगा है। जो भूत-प्रेत की कहानियों का गप्प बताता फिरता दीखता था वह भी उत्तर प्रदेश की राजनीति का सौदागर बन गया है। गोया यू ट्यूबर न हों , कुंभ के मेले के पंडा हों। जजमान की सेवा करते हुए तंबू , तख्ता , पुआल का बंदोबस्त में जुट गए हों। तिस पर कोढ़ में खाज यह कि अखिलेश यादव ने सब को बुला-बुला कर एकमुश्त पचास लाख से एक करोड़ तक थमा दिया है। यश भारती का लभ्भा अलग है। आने-जाने के लिए टैक्सी , जहाज , रहने-खाने के लिए होटल आदि -इत्यादि की भरपेट सुविधा भी।
अलग बात है कि अखिलेश यादव को उन का कोई सलाहकार यह नहीं बताने वाला था कि अगर वह इस तरह इफरात पैसा न बांटते तो भी इन सेक्यूलर चैंपियंस को यही करना था। पोलिटिकली करेक्ट होने की बीमारी है इन्हें। कमिटमेंट के खूंटे से बंधे रहना लाचारी है इन की। हां , पैसा मिल जाने से इन के उत्साह और सुविधा में रवानी ज़रुर आ गई। सो यह भी ज़रुरी था। अखिलेश यादव को भी अफ़सोस नहीं रहेगा कि हम ने पंडा को दक्षिणा नहीं दिया। पंडा को उम्मीद रहेगी कि अगले कुंभ में भी जजमान भूलेंगे नहीं। एक पत्रकार तो एक सब से तेज़ चैनल पर पैनल पर दो दिन क्या आ गए , जहर उगलते-उगलते साइकिल का सिंबल भी ले कर बैठने लगे। सपा के लिए सीधे वोट मांगने की अपील करने लगे। अजब था यह भी। पेड न्यूज़ की हाइट थी यह तो। वह तो यूक्रेन-रुस की जंग में यह पैनल पर उन का आना ठप्प हो गया। चुनाव की जगह , युद्ध पर चीख़-पुकार शुरु हो गई।
यह अनायास नहीं है कि सारे के सारे यू ट्यूबर शीर्षासन कर-कर , पानी-पानी पी-पी कर योगी सरकार को विदा कर अखिलेश यादव की ताजपोशी कर रहे हैं। अखिलेश यादव के जंगल राज को राम राज की तरह याद कर रहे हैं। आज तो एक पुराने और मशहूर एंकर अपने यू ट्यूब चैनल पर मुख़्तार अंसारी के प्रभाव का ऐसे बखान कर रहे थे गोया मऊ और आजमगढ़ में राम , कृष्ण और शिव की तरह पूजे जाते हैं मुख़्तार अंसारी।
जनाब ने एक बार भी भूल कर मुख़्तार के बेटे के हालिया भाषण का ज़िक्र नहीं किया , जिस में वह छह महीने ट्रांसफर रोक कर सब का यहीं हिसाब-किताब करने की बात कर रहा है। बल्कि अब्बास की जीत का सर्टिफिकेट जाने किस पुण्य-वश आज ही जारी कर दिया , निर्वाचन अधिकारी बन कर। गो कि कल 7 मार्च को वोट पड़ना है अभी। लेकिन अब्बास अंसारी की जीत का पुण्य उन्हों अभी से अपने खाते में डाल लिया है। कोई क्या कर सकता है भला। उन की सारी प्रखरता और चमक एक अब्बास अंसारी में खर्च होते देख अपने आप पर बहुत अफ़सोस हुआ कि अरे , इन को तो मैं जीनियस एंकर मानता रहा हूं कभी।
यही क्यों सारे के सारे यू ट्यूबर मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा की तर्ज़ पर एक ही गीत गाए जा रहे हैं। सब की गणित और औज़ार एक ही है। संगीत भी वही , लिरिक्स भी वही। इन यू ट्यूबर के यहां फ़ुटबाल , हॉकी और क्रिकेट की कमेंट्री एक साथ उपलब्ध है। इन की इस कमेंट्री का आनंद लीजिए।
पेड न्यूज़ से माहौल बहुत बढ़िया बनता है पर वह एक गाना है न , ये पब्लिक है सब जानती है। इन ट्यूबर को भी , इन की मानसिकता और एजेंडे को भी जनता जानती है। पहले ही से। फिर इन का खाया लहसुन इन के आगे-पीछे से और भी बता देता है। पिछली बार 2017 में अखिलेश का एक नारा था , काम बोलता है। अब की नारा है , इत्र बोलता है। कुछ कमज़ोर दिल वाले लोग इस इत्र में बहक कर एक दूसरे से फ़ोन कर पूछने लगते हैं कि क्या सचमुच गोरखपुर में योगी की ज़मानत ज़ब्त हो रही है ? अगला जब यह सुन कर ठठा कर हंसता है , तब उस को असलियत समझ आती है।
संयोग है कि प्रिंट मीडिया या न्यूज़ चैनलों पर पहले जैसे पेड न्यूज़ का एकाधिकार रहता था , सोशल मीडिया पर यह एकाधिकार टूट गया है अब। मीडिया के देसी घी और डालडा का स्वाद लोग जान चुके हैं। वैसे भी वाट्स अप , फ़ेसबुक जैसा सोशल मीडिया अब सिर्फ़ पेड न्यूज़ वालों की जागीर नहीं है। यह सारे वाट्स अप , फ़ेसबुक , ट्वीटर आदि सोशल मीडिया के औज़ार आम आदमी के पास भी है। कौवा कान ले गया सुन कर , अब कौवा के पीछे नहीं भागते लोग। अपना कान पहले जांच लेते हैं और फिर हंसने लगते हैं। इन यू ट्यूबरों को लानत ही नहीं भेजते , इन्हें जगह-जगह दौड़ा भी लेते हैं। ऐसे भी वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हैं।
फैक्ट फाइंडिंग की मास्टर अब जनता-जनार्दन ख़ुद है। मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा गाते यू ट्यूबरों की लीला , यू ट्यूबरों से ज़्यादा जनता जानती है। सब का भाष्य और दर्पण जनता के पास है। अगर आप के मनीष सिसौदिया कहते हैं और अख़बार वाले छाप देते हैं कि उत्तर प्रदेश में आप की सरकार बनना तय। तो इसे पढ़ कर न कोई उत्प्रेरित होता है , न हंसता है। कोई राय भी नहीं देता। न कहीं चर्चा करता है , इस बाबत। अख़बार का पन्ना पलट देता है। चुपचाप। ऐसे ही इन यू ट्यूबरों को भी एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देता है। कई बार इन की प्रवंचना का प्रवचन सुनता भी नहीं।