पहाड़ी मैना अब विलुप्ति के कगार पर है। हूबहू इंसान की तरह बोल पाने की उसकी दुर्लभ क्षमता ही उसकी दुश्मन साबित हुई। मैना को पिंजरे में कैद कर मन बहलाने वालों ने उसे पाने की चाहत में आगे-पीछे कुछ नहीं सोचा। बस्तर के जंगलों से दूर देसी-विदेशी शहरों तक इसकी खरीद-फरोख्त का धंधा खूब चला। छत्तीसगढ़ में अबूझमाड़, बैलाडिला, ओरछा, छोटे डोंगर, बारसूर और कुटुमसर की पहाड़ियां पहाड़ी मैना का प्राकृतिक वास हुआ करती थीं, लेकिन अब यहां पहाड़ी मैना नजर नहीं आती।
इकलौती मैना ने भी बोलना छोड़ा
छत्तीसगढ़ का यह राजकीय पक्षी पिछले कुछ दशकों में बड़ी खामोशी से गुम हो गया। संरक्षण के तमाम उपाय नाकाफी साबित हुए। अब हालात इतने खराब हो चले हैं कि जगदलपुर के स्थित संरक्षण केंद्र में एक तंग पिंजरे में रखी इकलौती पहाड़ी मैना ने भी बोलना छोड़ दिया है। पहले वह चहक उठती थी, …साहब, नमस्ते, मैं पायल बोल रही हूं…, लेकिन अब अकेलेपन का शिकार है। इस मैना को जिस जगह पिंजरे में रखा गया है वहां एक ओर हाइवे है तो दूसरी ओर रेल लाइन। विशेषज्ञ मानते हैं कि शोरगुल में मैना का प्रजनन व संरक्षण संभव नहीं। हाल ही में जंगल में घायल पड़ी दो शिशु मैना मिली थीं, जिन्हें भी यहां एक छोटे पिंजरे में रखा गया है।
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