शब्दों के ब्रम्ह की तरह रचयिता होने में कोई संदेह नहीं।पशुत्व से देवत्व की ओर जो हमें ले जाती है वो भाषा ही है। और देश के शीर्ष नेतृत्व पर भाषा के ऐसे अधिकारी को देखना जो जन के मानस को दिशा दे, जन के जीवन को दृष्टि दे;यह एक दुर्लभ समय होता है। भारत वर्ष ने अपने युग-युगांतर के इतिहास में महान नेतृत्व देखे हैं।राजा रामचंद्र और द्वारकाधीश कृष्ण ने इस धरती पर जन्म लेकर विश्व को धन्य किया।आर्य भरत की इस भूमि ने हर्षवर्धन, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त और अशोक जैसे महान सम्राट देखे।पृथ्वीराज चौहान जैसे श्रेष्ठ वीर सम्राट पाए। महाराणा प्रताप की धरती नेसन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में नये जन नायक पाए। एक साधारण कन्या मनु के झाँसी की रानी बनने में हमने भारतीय स्त्री के भीतर का दुर्गा रूप जाना।
आज़ादी के अमृत महोत्सव का अवसर अपने प्रतापी जन नायकों की स्मृति का समय है। राष्ट्र ने गाँधी-सा पिता पाया; बल्लभ भाई पटेल जैसा लौह पुरुष। स्वतंत्र भारत ने अपने इतिहास मेंअटल बिहारी वाजपेयी जैसा राष्ट्राध्यक पाया जो विश्व के महत्वपूर्णतम मंच पर हिंदी में बोले और स्वामी विवेकानंद की तरह लोगों के दिल जीत ले गये। उन्हीं की परम्परा में हमारे समय को आज ऐसा नेतृत्व मिला है जिसके दृढ़ और साहसिक निर्णयों के लिए सदियाँ उसे याद रखेंगी ही; वक्तव्य-कला को हिमालय-सी ऊँचाईदेने के लिए भी एक द्रष्टान्त हैं।
वाजपेयी जी के बाद माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र जी मोदी ने पुनः इस सत्य की स्थापना की है कि व्यक्ति से पद सुशोभित होता है, पद से व्यक्ति नहीं। उनके नेतृत्व में देश ने दशकों से ठिठका वर्षों में तो पूरा किया ही, अपनी जातीय अस्मिता को भी नये सिरे से परिभाषित किया। स्वच्छ भारत में जन-धन हो या उज्जवला; देश के आम नागरिक का जीवन गरिमामयी बनाने और विश्व में भारत की छवि को प्रकाशमय बनाने में उनका योगदान अप्रतिम है।वे एकदम आम भारतीय के ह्रदय से बोलते हैं। ताज़ा ही प्रसंग है जब ऑपरेशन देवी शक्ति के तहत अफगानिस्तान से भारतीयों और अफ़गानी मूल के हिन्दू-सिख जनों को वहां से सकुशल निकालकर देश की धरती पर लाया गया, उस इतने कठिन समय में जब पांच सौ बरस के बाद अपना देश छोड़ कर आये सिखों को इस विश्वगुरु देश ने कैसे अपनाया, ये प्रधानमंत्री जी के शब्दों से ही जान सकते हैं जिन्होंने कहा,“हम अफगानिस्तान से मात्र अपने भाई-बहनों को ही नहीं लाये हैं बल्कि सिर पर रखकर गुरु ग्रन्थ साहिब भी लाये हैं।
”विश्व के किसी देश ने अपने शरणार्थियों का स्वागत इस गरिमा के साथ कभी न किया होगा, बिलकुल अपने सगे भाई-सा मान देकर।किसान आन्दोलन के नाम पर जो दुरभिसंधियाँ चल रही थीं दिल्ली की सीमा पर, सिख समाज को शेष भारतीयों से काटने की; उन समस्त षड्यंतों का अंत इस एक पंकित ने कर दिया।
ऐसे अनगिनत उदाहरणों से उनके परिचय का इतिहास स्वर्णिम है जिसमें उनकी वाणी ने जलते देश को शीतल किया, समाज के अंतिम जन को मान दिया और श्रीहीनों को गरिमा दी। वे सिंगल यूज प्लास्टिक को जब पर्यावरण के हित में सीमित करने की बात की तो गाय से चलने वाले अर्थ-तंत्र की भी बात की। सड़कों पर भटकने वाली गायों की भी उन्हें चिंता है; नदियों को स्वच्छ करने की भी उनकी मुहिम है और स्वच्छता अभियान तो इस देश ने अपने सम्पूर्ण स्वतंत्र-इतिहास में ऐसा न देखा था जो न सिर्फ हमारी विश्व-छवि सुधरता है, हमारे नागरिकों को स्वस्थ भी बनाता है।‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ यही तो है। जब शीर्ष नेतृत्व गाय, नदी, नागरिकों की चिंता करता है तो अथर्ववेद की पंक्तियों का स्मरण हो आता है,
माता भूमि पुत्रोहं पृथिव्या।
अर्थात् पृथ्वी मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ।यह उक्ति हमें नदियों, पर्वतों, जंगलों और पृथ्वी के जीवों को सहोदर-सहोदराएँ मानना सिखाती है; उनका सम्मान करना सिखाती है और यही भारत का वर्तमान नेतृत्व कर रहा है।
‘मुखिया मुख सो चाहिए, खानपान को एक’ कहावत जितना आज के नेतृत्व पर सार्थक है, पहले कब थी, स्मरण नहीं। मुस्लिम बहनों को तीन तलाक़ (तलाक़ ए बिद्दत) की कुरीति-कुप्रथा से बचने का कानून बना और मोदी जी ने एक बड़े भाई की तरह कहा, “तुष्टिकरण के नाम पर देश की करोड़ों माताओं-बहनों को उनके अधिकार से वंचित रखने का पाप किया गया।”
किसी वोटबैंक की चिंता किये बिना, महिला सशक्तिकरण की दिशा में यहएक ऐतिहासिक क़दम था.
और ये तो भारत का बच्चा-बच्चा कह रहा है आज कि कश्मीर से धारा 370 मोदी जी ही हटा सकते थे। माननीय प्रधानमंत्री जी के जन्मोत्सव की इस बेला पर उनके पुरोधा, महान व्यक्तित्व अटल जी की इन पंक्तियों में उन्हें शुभकामनाएं,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ,
गीत नया गाता हूँ ।।