मरणोपरांत भारत रत्न पाने वाले मदन मोहन मालवीय के परिवार की जड़ें मध्यप्रदेश के मालवा से जुड़ी हैं। उनके परदादा प्रेमधर मालवीय मालवा की मिट्टी में ही पले और बढ़े। 1819 में मुस्लिमों के शासनकाल में श्री गौड़ ब्राम्हण परिवार के साथ शासक अन्याय करने लगे थे। इससे तंग आकर प्रेमधर यूपी में बस गए, लेकिन परिवार का मालवा से लगाव था, इसलिए सरनेम मालवीय ही रखा।
यह बात महामना की पड़पोती वसुंधरा ओहरी ने बताई। वे इंदौर की बहू हैं और बीते 25 सालों से मनोरमागंज में रहती हैं। वे कहती हैं मालवीय जी को भारत रत्न मिलने की खुशी पूरे परिवार को है। यह बात ज्यादा मायने नहीं रखती कि यह सम्मान देने का फैसला देरी से हुआ, गर्व इस बात का है कि उनकी देशभक्ति को सराहा गया।
वसुंधरा बताती हैं बचपन में हमें माता-पिता मालवीय जी के किस्से सुनाते थे। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए वे खुद को सबसे बड़ा भिखारी बोलते थे। पैसा एकत्र करने के लिए उनके आत्मसम्मान को कई बार ठेस भी पहुंची, लेकिन उन्होंने कभी बुरा नहीं माना। उनका रहन-सहन सादा था, लेकिन विचार उच्च रहते थे।
पेशे से वकील थे, लेकिन देश की खातिर उन्होंने वकालत छोड़ दी। वसुंधरा कहती हैं महामना से प्रेरित होकर मेरी मां चिंता उपाध्याय आजादी के आंदोलन से जुड़ी और जेल भी गई। मां हमसे हमेशा कहती थी कि काम ऐसा करो कि जमाना हमारी मिसाल दे। खुद के लिए जीना जिंदगी नहीं है।
साभार- दैनिक नईदुनिया से