मुंबई प्रेस क्लब के तत्वावधान में आयोजित रेड इंक पुरस्कार समारोह में पत्रकारों को पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान और उनकी विशेष रिपोर्ट के लिए पुरस्कार भी प्रदान किए गए। इस अवसर पर असहमति की सीमा विषय पर एक चर्चा भी आयोजित की गई। मिड डे के संपादक सचिन कलबाग के नेतृत्व में केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु, पूर्व पत्रकार शेखर गुप्ता, एनडीटीवी के एंकर और कार्यक्रम प्रस्तोता श्रीनिवासन जैन और आउटलुक के प्रमुख संपादक कृष्णा प्रसाद ने इसमें भाग लिया। बहस की शुरुआत करते हुए श्री कलबाग ने पैनल में शामिल लोगों से कई प्रश्न पूछे। कलबाग ने कहा कि वर्ष 1992 से 2014 के बीच में कार्य के दौरान लगभग 1123 पत्रकार अपनी जान गंवा चुके थे और पिछले साल जनवरी से जून के बीच में सरकार ने फेसबुक से करीब 5000 पोस्ट को डिलीट करने को कहा था। उन्होंने पैनल में शामिल लोगों ने पूछा, ‘ आश्चर्यजनक रूप से इन मामलों में हम तुर्की से आगे हैं। इसी साल जुलाई से दिसंबर के बीच यह आंकड़ा 5832 तक बढ़ चुका था। भारत दूसरे विकसित देशों के मुकाबले आंशिक रूप से कम आजाद है।’
उन्होंने पैनल में शामिल लोगों से पूछा कि क्या यह असहमति पर पाबंदी है या यह एक मिथक बन चुका है। सबसे पहले शेखर गुप्ता ने जवाब दिया, ‘मतों में भिन्नता बढ़ रही है। ऐसे में आप कैसे अपना विरोध जताते हैं? क्या यह पॉलिसी के खिलाफ है या सरकार के खिलाफ है या क्या है? मत भिन्नता कम नहीं हो रही है। मुझे दिल्ली के एक प्रसिद्ध अस्पताल के मालिक ने एक बार फोन किया जिसके खिलाफ मेरी संवाददाता के पास एक स्टोरी थी। मैंने उन्हें समझाया कि अब चीजें बदल चुकी हैं और यदि मैं उसे रोकूंगा और या आप हमें रोकोगे तो वह अपने ब्लॉग पर इस बारे में लिखेगी और हम बेवकूफ बन जाएंगे। मुझे नहीं लगता कि कोई भी सरकार इतनी सक्षम है जो मीडिया की आजादी पर लगाम लगा सके और उसके विरोध को दबा सके।’
श्रीनिवासन जैन ने गुप्ता से असहमति जताते हुए कहा, ‘एक पत्रकार और एक रिपोर्टर के रूप में मेरी नौकरी सिर्फ विरोध जताने वाली की नहीं रही है। हमने अपनी पूरी ईमानदारी से अपना काम किया है। मुझे लगता है कि मीडिया संस्थान के पास हमेशा से अपने रास्ते होते हैं जैसे- यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो हाल ही में सत्ताधारी पार्टी का अध्यक्ष बन गया है। उसके खिलाफ हत्या के तीन मामले थे लेकिन कोर्ट ने उसे छोड़ दिया। सीबीआई को याचिका दायर करने में तीन महीने लगे थे। लेकिन कुछ नहीं हुआ। क्या कभी इस बात को लेकर हंगामा हुआ, कोई शोर किसी तरह का उठा? नहीं, लेकिन यदि विपक्षी पार्टी के नेता के बारे में यही स्थिति होती तो कितना हंगामा होगा।
मुझे लगता है कि दोनों ओर एक ही स्थिति होती है लेकिन लोगों को अपनी आवाज उठाने के लिए कई रास्ते होते हैं।’ इस प्रतिक्रया के जवाब में गुप्ता ने कहा, ‘यह लालच की सीमा होती है या लोगों में इतना साहस नहीं होता कि वे किसी की शिकायत कर सकें। यह एक बड़ी समस्या है इसे किसी राज्य या सरकार द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है।’ कृष्णा प्रसाद ने कहा, ‘मैं शेखर से पूरी तरह से असहमत हूं हम मतभिन्नता को आजादी से भ्रमित नहीं कर सकते हैं। समाचार हमेशा से लोगों को उनकी पसंद के आधार पर पेश किए जाते थे। आज उन मुद्दों पर कैसे समाचार दिए जाते हैं जो देश पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। एक वरिष्ठ संपादक ने मुझसे कहा था कि हमें आने वाली नई सरकार के साथ अपने नजरिए में बदलाव की जरूरत है।’ सुरेश प्रभु ने कहा, ‘आज यह तेजी से बढ़ता हिस्सा है।
मीडिया को कभी भी पहले से सत्तामुखी नहीं होना चाहिए। इस पर कलबाग ने बीच में कहा, सरकार के बदलते ही मीडिया की सोच भी क्यों बदल जाती है? ’ इस पर प्रभु ने कहा कि यह सवाल उन्हें मीडिया से पूछना चाहिए।’
केंद्रीय मंत्री श्री सुरेश प्रभु ने कहा, ‘किसी भी बात पर एक राय न होना मतभिन्नता है। कुछ ऐसे मुद्दे हैं लेकिन यदि मीडिया सरकार को अच्छी राय देती है तो राजनेताओं को इन पर ध्यान देना चाहिए। किसी भी पार्टी को अपनी आवाज उठाने का पूरा अधिकार है और उस पर रोक लगाने की कोई संभावना नहीं है, खासतौर पर मीडिया पर।’ पैनल में शामिल सभी लोगों का मानना था कि विभिन्न निकायों, सरकारों और विपक्ष तक ने मीडिया को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था और मीडिया के प्रति उनका एटिट्यूटड नकारात्मक हो गया था, जो अच्छा संकेत नहीं है। प्रसाद ने कहा कि समूचे मीडिया को इस मुद्दे को काफी गंभीरता से लेना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘किसी भी मुद्दे पर अपनी राय प्रकट करना और विरोध जताना मीडिया की मौलिक जिम्मेदारी है और हमें इसके ऐसा करने से नहीं रोकना चाहिए।’
मुंबई प्रेस क्लब के समारोह में मीडिया पर मंथन
एक निवेदन
ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।
RELATED ARTICLES