राष्ट्रीय फलक पर अपने मीठे गीतों से कई अखिल भारतीय सम्मेलनों खास कर राजस्थानी कवि सम्मेलनों को ऊंचाई देने वाले राजस्थान में हाड़ोती के लाडले कवि मुकुट मणिराज श्रोताओं के दिलों पर राज करते हैं। बचपन में मां से संस्कारित हुए, गांव में पले, बड़े हुए और ग्रामीण परिवेश से प्रभावित विख्यात कवि और गीतकार के सृजन में वही सब कुछ दिखाई और सुनाई देता है जो गांव के जन जीवन, परंपरा और परिवेश में देखा, समझा और महसूस किया।
गीतों और कविताओं के प्रति उपजे प्रेम के बारे में बताते हुए कहते हैं उनकी मां को बहुत से लोकगीत कंठस्थ थे। उनके गीतों को सुर लहरियों के साथ सुनते हुए और उस समय के रसिया फाग गीतों को भी सुनते-सुनते इन्हें भी बचपन से ही लिखने की आदत पड़ गई।
1972 में कोटा में आने के बाद वरिष्ठ कवियों और साहित्यकारों गीतकार दुर्गादान सिंह, रघुराज सिंह हाड़ा, गिरधारी लाल मालव और प्रेमजी प्रेम आदि की रचनाओं को भी काफी सुना। उसके बाद स्थानीय अखबारों में भी मेरी रचनाएं छपने लगी। उस समय साहित्य के कार्यक्रम भी अनौपचारिक होते थे और समीक्षा भी होती थी। इससे सभी का मार्गदर्शन भी मिला। इसी पृष्टभूमि के साथ मेरा कवि ह्रदय निरंतर नित नए सृजन करता रहा और मंचों से श्रोताओं को सुनाता रहा और उनसे मिले स्नेह और प्यार ने मुझे आगे बढ़ाया।
श्रोताओं के प्रति उनकी प्रगाढ़ श्रद्धा हैं। एक कवि सम्मेलन में काव्यपाठ करने से पूर्व कहते है , सभी श्रोताओं का अभिवादन करता हूं। मेरा सौभाग्य हैं आप अपनी रात का सुख और नींद त्याग कर हमें सुनने आते हैं। रात खराब करते हो, पता नहीं सुख मिलता है या नहीं, पर मैं शुक्रगुजार हूं जो कलमकार को आप सुनने आते हैं जिससे बढ़ कर खुशी और क्या होगी। आपका आना, सुनना और मैं आपके दिलों में रहता हूं, यही मेरे लिए किसी भी राष्ट्रीय पुरस्कार से कहीं बड़ा हैं।
यूं मुकुट मणिराज से मेरा परिचय करीब 38 साल पुराना है जब मैं हाड़ोती के विख्यात कवि प्रेम जी प्रेम के साथ इनसे मिला था। भारतेंदु समिति में उस समय और बाद में दशहरा के राजस्थानी कवि सम्मेलनों में मुझे भी आपकी रचनाओं का रसास्वादन करने का सौभाग्य मिला। इनका जनमानस में बसा एक लोक प्रिय गीत ओळमो को निरंतर 38 साल बाद तक मंच पर सुनाना इनकी मजबूरी हो गई है।ये कुछ भी सुनाए श्रोता इस गीत की पुरजोर फरमाइश करते हैं। इस गीत के नाम से इन्होंने एक पुस्तक भी लिख डाली। ये बताते हैं “इस गीत में शुद्ध ग्रामीण संस्कृति और आदर्शवादी जीवन का उजास है। गांव की लड़की ससुराल में अपने पीहर को याद करती है। गांव की जिंदगी अभी भी महिलाओं के लिए वैसी ही है केवल वस्तुएं बदली हैं। परिस्थितियां बदल गई है भारतीय पर्व और शादी-ब्याह भी औपचारिक हो गए हैं।” इनका यह गीत मुझे भी स्पंदित करता है। इनके इस प्रसिद्ध गीत ओळमो की कुछ पंक्तियां देखिए……….
याद आवै री म्हनै
छोटो सो बी’र
भावज को ची’र
पणघट को नी’र
चामळ को ती’र
ऊ म्हारो पी’र
कोई सुणतो जावै तो दीजै ओळमो ॥
म्हांका गरियाळा की धूळ
बाड़ा को हरियो बंबूळ
धोळा नारां की वा जोट
माथा पै पाला की पोट
चामल नंदी की वै तीरां
टेकां चढबो धीरां धीरां
रेतां में कलोळां करबो
बहती धारा बीचै तरबो
नंदी बीचै नाव खेतो ऊ भोळो सो की’र ।।
कोई सुणतो जावै तो दीजै ओळमो
नित उठ तुलसां जी में पाणी
ग्यारस नै भूखी रखाणी
ऊ म्हांका सुखियो सोमार
लाडी बूहणी को थ्वार
गायां नै लाडूड़ा देबो
सांझ पड़यां को मून लेबो
भायेल्यां ऐ काती न्हाबो
गणगौरयां पै ईशर गाबो
हांसी कोसां दूरै चलगी
अब तो बैठी यादां पी’र ॥
साहित्य सृजन
मुकुट मणिराज की इस विख्यात गीत के साथ इनके साहित्य सृजन यात्रा पर नज़र डालते हैं तो आपने ज्यादातर राजस्थानी में ही साहित्य की रचना की है। आपने 18 वर्ष की उम्र में 1973 से लिखना आरंभ किया।आपकी1988 में प्रथम कृति ओळमो – राजस्थानी काव्य सामने आई। इसके पश्चात 1993 में डंक – राजस्थानी काव्य , 2009 मेंबोलो कठी जावां – राजस्थानी गजल , 2021 में यह धरती राजस्थान की है – हिन्दी खण्ड काव्य , मरीचिका के पार – हिन्दी काव्य संग्रह,2022 में हाडौती कस्यां लिखां – एक बानगी,गांव अर अम्मा – राजस्थानी कवितावां कृतियों का प्रकाशन हुआ। हाड़ौती की व्यावसायिक शब्दावली – लघु शोध प्रबंध, ओळ्कीयू ओळ्यां – राजस्थानी संस्मरण, अजब गजब का लोग – राजस्थानी रेखाचित्र एवं टाबर टोळी – राजस्थानी बाल कहानियाँ भी प्रकाशित हुई। आपने 1981 में बानगी – हाड़ौती लिपि (स्मारिका) और 1985 में गड़गच- अटरू क्षेत्र का साहित्यिक, सांस्कृतिक और पुरातात्विक विवेचन का संपादन भी किया।
आपकी रचनाओं का अनेक राष्ट्रीय पत्र – पत्रिका में आपकी रचनाओं का प्रकाशन हुआ है और आकाशवाणी और दूरदर्शन केंद्रों पर वर्ष 1975 से इनके गीतों, कविताओं और वार्ता का प्रसारण हो रहा है। इसी वर्ष में पहली बार बैंगलुरु व मुंबई कवि-सम्मेलनों में गए थे।हाड़ोती के गावों, कस्बों, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित देश के सभी महानगरों विशेष कर जहाँ- जहाँ राजस्थानी रहते हैं दिल्ली,मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, बैंगलुरू,अहमदाबाद, सूरत, इंदौर, उज्जैन, भोपाल और सैकड़ों नगरों में राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में मंचों को सुशोभित कर काव्य पाठ किया। कोटा दशहरा के अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा कवि सम्मेलन का 1994 से आज तक अनवरत संचालन का दायित्व वहन कर रहे हैं। वर्ष 1986 में राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के सौजन्य से प्रथम सम्भागीय रचनाकार समारोह छबड़ा में इनके संयोजन में हुआ। इसके बाद अब तक आठ समारोह इनके संयोजन में तथा केन्द्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली का सदस्य रहते हुए चार रचनाकार समारोह बूंदी व कोटा में सम्पन्न हुए हैं।
सम्मान
विख्यात कवि और लेखक मुकुट मणिराज को आगीवांण पुरस्कार 2023 से राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर द्वारा सम्मानित किया गया। आपको राजस्थान रत्नाकर नई दिल्ली का 51 हजार रुपए का महेंद्र जाजोदिया राजस्थायी पद्य पुरस्कार राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति के.आर.नारायण द्वारा प्रदान किया गया। आपको अब तक विभिन्न संस्थाओं द्वारा ग्यारह हजार, इक्कीस हजार, इक्कतीस हज़ार और इक्यावन हज़ार के लगभग 21 पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।
सम्मान तो अनगिनत प्राप्त हुए हैं । प्रमुख पुरस्कारों में आपको लोक कवि मोहन मंडेला पुरस्कार, कुंवर लक्ष्मण सिंह गुर्जर स्मृति पुरस्कार, गिरधारी लाल मालव पुरस्कार, साहित्य रत्न पुरस्कार, काव्य रत्न पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। इनके साथ – साथ आपको घनश्यामदास सराफ राजस्थानी पद्य पुरस्कार – मारवाड़ी सम्मेलन मुम्बई तथा देश भर की विभिन्न संस्थाओं द्वारा साहित्य सेवा सम्मान से नवाजा गया है।
परिचय
हाड़ोती के जन -जन के लाडले कवि मुकुट मणिराज का जन्म कोटा जिले की दिगोद तहसील के ग्राम धनवा में 30 दिसंबर 1955 को माता स्व.बिरधी बाई एवं पिता स्व. किशनलाल गुर्जर के आंगन में हुआ। आपने हिंदी विषय में स्नातकोत्तर और बी.एड की शिक्षा प्राप्त की। आप शिक्षा विभाग, राजस्थान से सेवा निवृत्त प्रधानाध्यापक है।आप जन साहित्य मंच सुल्तानपुर कोटा के संस्थापक संयोजक है तथा राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर की पाण्डुलिपि प्रकाशन समिति के सदस्य हैं। आप राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के सदस्य भी रहे हैं।
संपर्क मोबाइल – 9610937638
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(लेखक कोटा में रहते हैं व राजस्थानी साहित्य, कला-संस्कृति वपुरातत्व आदि विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं )