चीन से युद्ध में भारत की हार को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार बताने वालों की कमी नहीं है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा एक करोड़ से अधिक पुराने ‘गोपनीय’ दस्तावेज सार्वजनिक किए जाने के बाद एक बार फिर ये चर्चा शुरू हो गई है। सीआईए के इन दस्तावेज के अनुसार 1953 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी को पता था कि चीन अपनी सीमा पर भारी संख्या में सैनिक और निर्माण सामग्री इकट्ठा कर चुका था। 1957 में एक चीनी अखबार में शिनजियांग और तिब्बत को जोड़ने वाली 1200 किलोमीटर सड़क निर्माण की खबर छापी। लेकिन भारतीय प्रशासन ने इनका संज्ञान नहीं लिया। जब 1958 में तत्कालीन विदेश सचिव ने तत्कालीन पीएम नेहरू को इस सड़क के भारत के अक्साई चीन से होकर गुजरने की बात बतायी तो उन्होंने इसे पर्याप्त गंभीरता से नहीं लिया। नेहरू ने 1959 में संसद स्वीकार किया कि ये सड़क भारतीय इलाके से होकर जाती है। अक्साई चिन पर इस समय चीन का कब्जा है।
सीआईए की रिपोर्ट के अनुसार चीनी अखबार कुआंग-मिंग जी-पाओ ने 6 अक्टूबर 1957 को खबर छापी थी कि “दुनिया के सबसे ऊंचे हाईवे शिनजियांग-तिब्बत हाईवे का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है।” अखबार की खबर के अनुसार इस हाईवे पर ट्रायल के लिए पिछले कई दिनों से ट्रक दौड़ रहे थे। रिपोर्ट में इस हाईवे के बराबर में विस्तार से बताया गया था।
सीआईए के दस्तावेज सामने आने के बाद फ्रांसीसी मूल के तिब्बत विशेषज्ञ क्लाड अर्पी ने लिखा है कि अगर नेहरू प्रशासन समय रहते जाग जाता तो अक्साई चिन आज भी भारत के पास होता। चीनी अखबार में 1957 में छपी खबर पर क्लाड लिखते हैं कि इस खबर को भारत तक पहुंचने में करीब दो साल लगे। इन दो सालों आईबी के तत्कालीन निदेशक बीएन मलिक को इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि चीन ने भारतीय इलाके अक्साई चिन में सड़क बना ली है। चीन के इस हाईवे के बनने की खबर छपने के करीब पांच महीने बाद 1958 में भारतीय विदेश सचिव सुबीमल दत्त ने पीएम नेहरू को बताया कि “ऐसा लग रहा है कि चीन द्वारा बनायी गई 1200 किलोमीटर लंबी सड़क भारत के अक्साई चिन से होकर गुजर रही है।”
नेहरू ने दत्त के पत्र का अगले दिन ही जवाब देते हुए जमीनी निरीक्षण के लिए सहमति दी लेकिन साथ में ये भी जोड़ दिया कि इससे बहुत फायदा नहीं होगा। नेहरू अक्साई चीन के हवाई सर्वेक्षण को लेकर भी अनिच्छुक थे। नेहरू ने सुझाव दिया कि चीन को भारत अपना नक्शा भेजे लेकिन अनौपचारिक तौर पर। आखिरकार भारतीय सैनिक अक्साई चिन के जमीनी निरीक्षण के लिए गए तो कुछ को चीनियों ने पकड़ लिया और कई को मार दिया। 18 अक्टूबर 1958 को भारतीय विदेश सचिव ने चीनी राजदूत को एक ‘अनौपचारिक नोट’ दिया। लेकिन इससे वस्तुस्थिति पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।
साभार- इंडियन एक्सप्रेस से