देश में स्वराज्य की मांग जोर पकड़ रही थी। अंग्रेज भयभीत थे, इसलिए उन्होंने नया साल 1930 संयुक्त प्रांत की हर सामाजिक एवं धार्मिक संस्था से मनाने का आदेश जारी किया और साथ ही यह भी धमकी दी कि जो संस्था यह नया साल नहीं मनाएगी उसके सदस्यों को जेल भेज दिया जाएगा। गाजियाबाद में भी सभी संस्थाओं ने नया साल मनाने की तैयारी की, लेकिन आर्य समाज ने न केवल अंग्रेजों के नए साल का बहिष्कार किया, वरन आजादी की मांग करते हुए एक स्वतंत्रता ज्योति यात्रा भी निकाली और उसका दंड सभी आर्य-समाजियों को छह-छह महीने की सख्त सजा और 50-50 रुपए जुर्माना के रूप में भुगतना पड़ा।
उस दिन का एक दुर्लभ चित्र….
अंतिम पंक्ति में बाएं से पांचवें नंबर पर…आर्य समाज का मामूली कार्यकर्ता….
और एक दिन बना किसानों का मसीहा और ईमानदार प्रधानमंत्री….चौधरी चरण सिंह—-
चरण सिंह ने लिखा है, कितना भी व्यस्त जीवन रहा हो, मैंने कभी दैनिक संध्या और दैनिक हवन करना नहीं छोड़ा, गांवों, कस्बों यहां तक की विदेशी यात्रा में भी हवन-कुंड साथ लेकर जाता हूं।
आज ही के दिन स्वामी दयानन्द के अनन्य भक्त चौधरी चरण सिंह का स्वर्गवास हुआ था।