राजा, दरबारी, चमचे, चैनल वाले, विज्ञापन वाले, अखबार वाले, संवाददाता, एंकर, टीवी पर बकवास करके अपना पेट भरने वाले पैनलिस्ट, नेता, बुध्दिजीवी, निठल्ले सब परेशान थे कि देश के किसी कोने से किसी ढंग की मौत की खबर ही नहीं आ रही थी। ट्वीटर फेसबुक सब सूने पड़े थे। हर कोई टकटकी लगाकर आसमान की तरफ देख रहा था, लोगों का परमात्मा से भरोसा ही उठ गया था। इतने बड़े देश में एक ढंग की मौत तक नहीं हो रही है। ले-देकर हर कोई कोरोना और छोटी-मोटी बीमारियों से मर रहा है। इस देश के लोगों का स्तर कितना गिर गया है। जो कोरोना से नहीं मरता है वो अस्पताल में ईलाज से मर जाता है और फिर भी कोई बच जाता है तो अस्पताल के बिल से मर जाता है। कई बार तो अस्पताल से जिसको वापस घर भेजा जाता है वो एंबुलेंस में मर जाता है।
इन सब मौतों के बीच कोई ऐसी मौत नहीं थी जिसको राजा, दरबारी, चमचे श्रध्दांजलि दे सकें। अब राजा ने ठान ही लिया कि मुझे तो श्रध्दांजलि देना ही है। राज हठ, त्रिया हठ और बाल हठ के आगे किसकी चलती है! दरबारी फोन पर फोन घुमाने लगे, शहर-शहर, गाँव-गाँव से लेकर मोहल्ले मोहल्ले तक राजा के फरमान की चर्चा होने लगी कि राजा किसी ढंग के मरने वाले को श्रध्दांजलि देना चाहता है। हर गाँव हर शहर और हर मोहल्ले के लोग इस बात का इंतज़ार करने लगे कि उनके मोहल्ले का, शहर का या गाँव का आदमी मरकर जरुर श्रध्दांजलि के काबिल होगा। राजा के श्रध्दांजलि देते ही उनके गाँव में टीवी चैनल की ओबी वैन, मंत्री, एमएएलए, पार्षद से लेकर पार्टियों के गली मोहल्ले के अध्यक्ष सब आएँगे। गाँव के लोग इसी बात से उत्साहित थे कि इसी बहाने हम अपने निठल्ले सांसदों, विधायकों क शकल देख लेंगे। उनके साथ सेल्फी भी ले लेंगे।
कहीं से किसानों के मरने की खबरें आ रही थी, किसानों की आत्महत्या की खबरें आ रही थी। मगर सरकारी किताबों में जो नियम है उसके मुताबिक किसान तो आत्महत्या कर ही नहीं सकता। सरकारी जाँच के बाद किसानों की हर आत्महत्या झूठी निकली। सरकारी जाँच में पाया जाता कि किसी किसान ने इसलिए आत्महत्या की कि एक चैनल पर आ रहे धारावाहिक में उसकी पसंद की हीरोईन की मौत हो गई थी, तो किसी ने इसलिए आत्महत्या की कि उसकी पसंद की हीरोईन को ढंग की साड़ी नहीं पहनाई गई थी। किसी ने शर्म से आत्महत्या कर ली थी। जबकि सरकारी नियमों के अनुसार तो शर्म से आत्महत्या करने का तो कोई नियम ही नहीं है। एक खबर जो चैनल वालों ने दबा दी वो ये थी कि कुछ लोगों ने न्यूज चैनलों की बकवासों से तंग आकर आत्महत्या कर ली।
शहर से लेकर मोहल्ले तक और राजधानी से लेकर ट्वीटर और चैनल के स्टुडिओं तक में हाहाकार मचा हुआ था। हर कोई यमराज को कोस रहा था। इतने दिन हो गए पूरे देश में एक ढंग के आदमी को नहीं मार सके। ट्वीटर पर यमराज के खिलाफ ट्रैंड चल रहे थे। देवलोक में देवता भी हैरान परेशान थे। इधर यमराज के सचिव चित्रगुप्त अपने कंप्यूटर से आँकड़े निकालकर हर घंटे होने वाली मौतों के आँकडों की प्रेस विज्ञप्ति जारी कर रहे थे, मगर ये सब मरने वाले इतने मामूली थे और इनकी मौत की वजह भी ऐसी दो कौड़ी की थी कि चैनलों और अखबारों ने इनको गंभीरता से लेना तो दूर दिखाने और छापने तक के काबिल नहीं समझा। अब जब अखबार, चैनल, ट्वीटर ही किसी मौत को गंभीरता से नहीं ले तो फिर राजदरबार में भी इसकी चर्चा नहीं हुई।
इसी बीच जंगल में आग की तरह एक खबर फैली कि किसी अभिनेता ने बगैर किसी कारण के आत्महत्या कर ली। सूने पड़े टीवी के स्टुडिओ पर सेट तैयार हो गए। आत्महत्या के विशेषज्ञों के घरों के फोन घनघनाने लगे, एंकर एंकरी शर्म-हया, नैतिकता की तमाम हदें तोड़ते हुए आत्महत्या पर चर्चा करने लगे। आत्महत्या करना चाहिए कि नहीं, इस पर टीवी पर आने वाले दो दो कौड़ी के विशेषज्ञ अलग अलग राय देने लगे। टीवी पर योग सिखाने वाले योग गुरू आत्महत्या के विशेषज्ञ बनकर आत्महत्या से बचने के उपाय बताने लगे। खबरों की बंजर भूमि पर अचानक सावन भादौ की झड़ी लग गई। उसने आत्महत्या कैसे की, क्यों की, उन तमाम पहलुओँ पर चैनलों पर गंभीर चर्चा होने लगी।
इधर कोरोना का इलाज नहीं होने पर, छोटी सी बीमारी के ईलाज के लिए डॉक्टर, एंबुलेंस नहीं मिलने पर मौतों का सिलसिला जारी था। गर्भवती महिलाएँ सैकड़ों किलोमीटर पैदल सड़कों पर चलने के बाद बच्चों को जन्म दे रही थी। रेलों में खाना नहीं मिलने पर भूख से लोग मर रहे थे। मगर देश में उत्सव चल रहा था। एक अभिनेता की मौत पर पूरी सरकार, दरबार और जनता सब दुःखी थे। चैनल वाले मृत अभिनेता के दोस्तों की खोज में लगे थे जो उसकी मौत पर कुछ बोल दे। बड़ी मुश्किल से एक अभिनेत्री एक चैनल को मिली मगर वो पूरे समय अपने आँख में काजल लगाकर श्रध्दांजलि देती रही।
देश के कई राजनेताओँ ने इस मौत पर मन ही मन खुशियाँ मनाई और एक दूसरे को बधाई संदेश भेजे कि परमात्मा जब देता है छप्पर फाड़कर देता है, जिसने आत्महत्या की वो बिहार का है। बिहार में चुनाव होने वाले हैं, हमे बिहार के गाँव गाँव में उसके रिश्तेदारों को खोजकर उनके घर शोक संवेदना प्रकट करने जाना चाहिए, इससे लोग समझेंगे कि हम कितने संवेदनशील हैं। कई नेता तो इस फिराक में हैं कि मृतक का अस्थिकलश लेकर चुनाव तक पूरे बिहार में घुमाते रहें।
इधर यमराज ने भी चैन की साँस ली और अफसोस से चित्रगुप्त से कहा, तुम अब रोज रोज मरने वालों के आँकड़े देने की बजाय ऐसी किसी मौत पर ही प्रेस विज्ञप्ति जारी करना, ताकि देश के लोगों को पता चले कि हम अपना काम बराबर कर रहे हैं।