Monday, November 25, 2024
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महात्मा गाँधी की अहिंसा और महाशय राजपाल की हत्या

आज़ादी के पहले की बात है अचानक भारत की तमाम मस्जिदों से दो किताबें वितरित की जाने लगी एक किताब का नाम था *“कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी”* दूसरी किताब का नाम था “उन्नीसवीं सदी का लंपट महर्षि” यह दोनों किताबें अनाम थी इसमें किसी लेखक या प्रकाशक का नाम नहीं था और इन दोनों किताबो में भगवान श्री कृष्ण हिंदू धर्म इत्यादि पर बेहद अश्लील बेहद घिनौनी बातें लिखी गई थी और इन किताबों में तमाम देवी देवताओं के बेहद अश्लील रेखाचित्र भी बनाए गए थे। और धीरे-धीरे यह दोनों किताबे भारत की हर एक मस्जिदों में वितरित किए जाने लगे।

यह बात जब महात्मा गांधी तक पहुंची तब महात्मा गांधी ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी की बात बता कर खारिज कर दिया और कहा भारत में सब को अपनी बात रखने का हक है लेकिन इन दोनों किताबों से भारत का जनमानस काफी उबल रहा था।

फिर 1923 में लाहौर स्थित राजपाल प्रकाशक के मालिक महाशय राजपाल जी ने एक किताब प्रकाशित की जिसका नाम था *”रंगीला रसूल”* उस किताब का लेखक का नाम गुप्त रखा गया था और लेखक की जगह लिखा था *”दूध का दूध और पानी का पानी”* हालांकि उस किताब के असली लेखक *पंडित चंपूपति* थे जो इस्लाम के जाने-माने विद्वान थे और सबसे अच्छी बात यह थी कि उस किताब में कहीं कोई झूठ नहीं था बल्कि तमाम सबूत के साथ बकायदा आयत नंबर हदीस नंबर इत्यादि देकर कई बातें लिखी गई थी। 1.5 सालों तक रंगीला रसूल बिकता रहा पूरे भारत में कहीं कोई बवाल नहीं हुआ लेकिन एक दिन अचानक 28 मई 1924 को महात्मा गांधी ने अपने अखबार यंग इंडिया में एक लंबा-चौड़ा लेख लिखकर रंगीला रसूल किताब की खूब निंदा की और अंत में 3 लाइन ऐसी लिखी ➳ *”मुसलमानों को खुद ऐसी किताब लिखने वालों को सजा देनी चाहिए…

गांधी का या लेख पढ़कर पूरे भारत के मुसलमान भड़क गए और राजपाल प्रकाशक के मालिक महाशय राजपाल जी के ऊपर 3 सालों में 5 बार हमले हुए लेकिन महात्मा गांधी ने एक बार भी हमले की निंदा नहीं की मजे की बात यह कि कुछ मुस्लिम विद्वानों ने उस किताब रंगीला रसूल का मामला लाहौर हाई कोर्ट में दायर किया हाईकोर्ट ने चार इस्लामिक विद्वानों को अदालत में खड़ा करके उनसे पूछा कि इस किताब की कौन सी लाइन गलत है आप वह बता दीजिए चारों इस्लामिक विद्वान इस बात पर सहमत थे कि इस किताब में कोई गलत बात नहीं लिखी गई है फिर लाहौर हाईकोर्ट ने महाशय राजपाल जी के ऊपर मुकदमा खारिज कर दिया और उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया…. !!

फिर उसके बाद 3 अगस्त 1924 को महात्मा गांधी ने यंग इंडिया खबर में एक और भड़काने वाला लेख लिखा और इस लेख में उन्होंने इशारों इशारों में ऐसा लिखा था कि *”जब व्यक्ति को अदालतों से न्याय नहीं मिले तब उसे खुद प्रयास करके न्याय ले लेना चाहिए” !* उसके बाद महाशय राजपाल जी के ऊपर दो बार और हमले की कोशिश हुआ और अंत में 6 अप्रैल 1929 का हमला जानलेवा साबित हुआ जिसमें *मोहम्मद इल्म दीन* नामक एक युवक गढ़ासे से महाशय राजपाल जी के ऊपर कई वार किया जिससे उनकी जान चली गई।

जिस दिन उनकी हत्या हुई उसके 4 दिन के बाद महात्मा गांधी लाहौर में थे लेकिन महात्मा गांधी महाशय राजपाल जी के घर पर शोक प्रकट करने नहीं गए और ना ही अपने किसी संपादकीय में महाशय राजपाल जी की हत्या की निंदा की।उसके बाद अंग्रेजों ने मुकदमा चलाकर मात्र 6 महीने में महाशय राजपाल जी के हत्यारे इल्म दीन को फांसी की सजा सुना दी। क्योंकि इस देश में पूरा हिंदू समाज उबल उठा था और अंग्रेजो को लगा कि यदि उन्होंने जल्दी फांसी नहीं दी तब अंग्रेजी शासन को भी खतरा हो सकता है।

उसके बाद 4 जून 1929 को महात्मा गांधी ने अंग्रेज वायसराय को चिट्ठी लिखकर महाशय राजपाल जी के हत्यारे की फांसी की सजा को माफ करने का अनुरोध किया था। और उसके अगले दिन अपने अखबार यंग इंडिया में एक लेख लिखा था जिसमें गांधी जी ने यह साबित करने की कोशिश की थी यह हत्यारा तो निर्दोष है नादान है क्योंकि उसे अपने धर्म का अपमान सहन नहीं हुआ और उसने गुस्से में आकर यह निर्णय लिया।

दूसरी तरफ तब के जाने-माने बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना ने भी लाहौर हाईकोर्ट में बकायदा एक बैरिस्टर की हैसियत से इस मुकदमे में पैरवी करते हुए यह कहा था की अपराधी मात्र 19 साल का लड़का है लेकिन इसने जघन्य अपराध किया है इसकी अपराध को कम नहीं समझा जा सकता लेकिन इसके उम्र को देखते हुए इसकी फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दी जाए या फिर इसे काले पानी जेल में भेज दिया जाए।

लेकिन अंग्रेजों ने 31अक्टूबर 1929 को महाशय राजपाल जी के हत्यारे मोहम्मद इल्म दीन को लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ा दिया, 2 नवंबर 1929 में महात्मा गांधी ने यंग इंडिया में इल्म दीन को फांसी देने को इतिहास का काला दिन लिखा ।

अब आप खुद फैसला कीजिए कि महात्मा गांधी का क्या हिंदुत्व था।

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