देशबंदी ने हमारी अर्थव्यवस्था को खासतौर पर संवेदनशील बना दिया है। इसे लेकर पहली राजकोषीय प्रतिक्रिया अत्यंत साहसी होनी चाहिए। विस्तार से बता रहे हैं आकाश प्रकाश
दुनिया भर में बंदी का दौर चल रहा है। तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने किसी न किसी तरह का लॉकडाउन लागू कर रखा है। ऐसे में किसी भी निवेशक के मन में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से आएगा कि यह लॉकडाउन कितना लंबा चलेगा और इसकी क्या कीमत चुकानी होगी?
कोविड-19 महामारी वैश्विक अर्थव्यवस्था से एक बड़ी कीमत वसूल कर चुकी है। दुनिया भर में 6 लाख से अधिक लोग इसके शिकार हो चुके हैं और 30,000 लोगों की मौत हो चुकी है। इस बीमारी का तेजी से विस्तार हो रहा है। कई जगह तो हर तीन दिन में इसके मामले दोगुना हो रहे हैं। दुनिया मंदी की ओर बढ़ रही है और अधिकांश संकेतक बता रहे हैं कि आर्थिक गतिविधियां तेजी से घटी हैं। यह गिरावट वैश्विक वित्तीय संकट के दौर से भी गहरी है। कई टीकाकारों का कहना है कि अमेरिका के जीडीपी में तिमाही आधार पर 25 आधार अंकों की कमी आ सकती है। यूरोप में भी ऐसी ही गिरावट आने की बात कही जा रही है। अधिकांश देशों में वृद्धि नकारात्मक रहेगी। मैंने कभी आर्थिक गतिविधियों में ऐसी गिरावट नहीं देखी थी जैसी चीन में और उसके बाद पूरी दुनिया में नजर आई।
लॉकडाउन अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करेगा। अब सवाल यह है कि यह कब तक चलेगा? अधिकांश देश वायरस के प्रसार को लेकर बहुत देर से हरकत में आए इसलिए उन्हें लॉकडाउन लागू करना पड़ा। वे ऐसा करके ही बीमारी पर नजर रख पाएंगे। यदि विभिन्न देशों ने पहले प्रतिक्रिया दी होती और सिंगापुर और ताइवान की तरह ज्यादा से ज्यादा जांच की होती तो यूं लॉकडाउन न करना पड़ता।
यहां बात एकदम साफ है। हमें किसी संक्रमित व्यक्ति से संक्रमित होने वालों की तादाद कम करनी होगी। यदि हम इसकी दर एक से नीचे लाने मेंं कामयाब रहे तो वायरस का विस्तार कम होने लगेगा। फिलहाल यह दर 2 से 3 के बीच है। लॉकडाउन का लक्ष्य इसे घटाकर एक के नीचे लाना है। एक बार ऐसा हो गया तो इसे शिथिल किया जा सकता है। तब कड़े नियम शिथिल किए जा सकते हैं और अधिक सहज नीतियां अपनाई जा सकती हैं। इससे बीमारी समाप्त तो नहीं होगी लेकिन संक्रमण के मामले स्थिर हो जाएंगे और इनमें अचानक बढ़ोतरी नही होगी। हर देश ऐसी स्थिति से बचना चाहता है।
एक बार लॉकडाउन समाप्त होने के बाद टीका बनने तक हल्के नियंत्रण से काम चल जाएगा। यह भी संभव है कि हमारा शरीर मजबूत प्रतिरक्षा विकसित कर ले ताकि इसका प्रसार आसानी से रोका जा सके। टीका बनने में 12-15 महीने का समय लग सकता है।
नीतिगत राह स्पष्ट है। संक्रमण दर सीमित होने तक गंभीर सामाजिक नियंत्रण और लॉकडाउन अपनाने होंगे। बाद मेंं सीमित नियंत्रण हो, बड़े कार्यक्रम न आयोजित किए जाएं, यात्राएं सीमित हों, बुजुर्ग सामाजिक दूरी का पालन करें और जरूरत पडऩे पर कड़ाई से जांच हो। ऐसा करने से हमें जरूरी समय मिल जाएगा और अर्थव्यवस्था को भी कम नुकसान होगा।
अच्छी बात है कि कड़े सामाजिक नियंत्रण और लॉकडाउन ने इस बीमारी के प्रसार को सीमित करने का काम किया है। चीन ने 23 जनवरी को लॉकडाउन किया जिसका असर पांच दिन में नजर आने लगा था। चीन ने हुवेई प्रांत के बाहर इसका संक्रमण दो सप्ताह में रोक दिया और एक महीने में हुवेई में भी यह खत्म हो गया। इटली में भी लॉकडाउन ने नए संक्रमण सीमित कर दिए हैं।
कह सकते हैं कि यदि कोई देश एक महीने के भीतर सफलतापूर्वक सामाजिक दूरी और लॉकडाउन का पालन कर ले तो संक्रमण को काफी हद तक रोका जा सकता है। बुरी खबर केवल इतनी है कि ये नियंत्रण अचानक समाप्त नहीं हो जाएंगे। हल्का फुल्का नियंत्रण एक वर्ष तक चलता रहेगा। हल्के नियंत्रण भी अर्थव्यवस्था को उतना ही नुकसान पहुंचाएंगे जितना कि पूर्णकालिक लॉकडाउन। ये नियंत्रण भी उपभोक्ताओं के विश्वास और खपत को प्रभावित करेंगे। चीन में ज्यादातर लॉकडाउन समाप्त होने के बाद और बहुत कम नए मामले सामने आने के बाद भी विनिर्माण गतिविधियां सामान्य स्तर का 80 फीसदी हैं। सेवा क्षेत्र भी काफी कमजोर है। थिएटर, मॉल और रेस्टोरेंट आदि धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं लेकिन वहां भी रोज से 50 फीसदी कम कामकाज हो रहा है।
इसे पूरी तरह ठीक होने में लंबा समय लगेगा। अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचेगा। खासतौर पर सेवा क्षेत्र के हालात सुधरने में। हालात तीन सप्ताह में सुधरने वाले नहीं हैं। कंपनियों के मुनाफे में भी भारी कमी आएगी। तमाम क्षेत्रों में सुदृढ़ीकरण आएगा। मजबूत बैलेंस शीट प्रतिस्पर्धी बढ़त दिलाने वाली साबित होगी। बड़ी कंपनियों की हिस्सेदारी बढ़ेगी। कई जगह दिवालिया और छंटनी जैसी गतिविधियां देखने को मिलेंगी। खासतौर पर छोटे और मझोले उपक्रमों में ऐसा देखने को मिलेगा। बैंकों के फंसे हुए कर्ज में इजाफा होगा। चूंकि बैंक पहले ही जोखिम से बच रहे हैं तो ऐसे में नियामकीय अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऋण वितरण में रुकावट न आए। पूरी अर्थव्यवस्था में जोखिम से बचने की प्रवृत्ति बढ़ेगी। वित्त वर्ष 2021 में मुनाफों का अनुमान लगाना मुश्किल होगा और ज्यादातर कंपनियों के लिए यह वर्ष एक गंवाया हुआ वर्ष बनकर रह जाएगा। दुनिया भर की ज्यादातर कंपनियां नकदी बचाने में लग जाएंगी। जोखिम से बचने वाले ऐसे माहौल में गुणवत्तापूर्ण चीजें बची रह जाएंगी। कोई निवेशक शासन के मुद्दों और बैलेंस शीट के तनाव की अनदेखी नहीं कर पाएगा।
आगे की राह अनिश्चित है। लेकिन मौजूदा लॉकडाउन के कारण भारत तथा दुनिया के अन्य देशों की आर्थिक गतिविधियों में भारी संकुचन आएगा। लॉकडाउन कम होने और नियंत्रण घटने के बाद भी स्थितियों में धीरे-धीरे ही सुधार होगा। ऐसे में सरकार के आर्थिक नीति को लेकर आक्रामक और साहसी होने की परीक्षा होगी।
अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए हमें तमाम राजकोषीय और मौद्रिक नीति समर्थन प्रदान करना होगा। निवेशक भी उन देशों और बाजारों का ही रुख करेंगे जहां प्रशासन पेशकदमी करेगा। भारतीय रिजर्व बैंक की राजकोषीय प्रतिक्रिया बहुत सीमित नजर आती है। यह समय राजकोषीय स्थिति की चिंता करने का नहीं है। ऐसे माहौल में जहां अन्य देश जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर राजकोषीय सहयोग दे रहे हैं वहां भारत द्वारा केवल 5 फीसदी की मदद बहुत कम है। देश में वृद्धि और रोजगार को बढ़ावा देने में छोटे और मझोले उपक्रमों के महत्त्व को देखते हुए, सेवा क्षेत्र पर हमारी निर्भरता के मद्देनजर और सामाजिक सुरक्षा ढांचे की कमी के कारण हम खासतौर पर संकट में हैं। सरकार को साहसी कदम उठाने होंगे।
साभार https://hindi.business-standard.com/ से