Saturday, November 23, 2024
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भारतीय संस्कृति को ओडिशा की देन

ओडिशा वास्तव में महाप्रभु जगन्नाथ जी का देश है जहां के श्री जगन्नाथ धाम के श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान हैं जगत के नाथ महाप्रभु जगन्नाथ और उन्हीं की संस्कृति ही वास्तव में ओडिया संस्कृति है जो भारतीय संस्कृति की पर्याय है।अतिथिदेवोभव, विश्ववंधुत्व,शांति,एकता,मैत्री तथा सर्वधर्म समन्वय आदि का पावन संदेश जगन्नाथ संस्कृति अर्थात् ओडिशा की संस्कृति ही भारतीय संस्कृति को देती है।यहां पर जगन्नाथ भगवान भारत ही नहीं परन्तु विश्व के सभी देवों के समाहार हैं,मात्र विग्रह स्वरुप हैं। भारतवर्ष में शाश्वत पारिवारिक मधुर संबंधों की परम्परा की नींव जगन्नाथ भगवान ने डाली है क्योंकि वे अपने बडे भाई जो बलशाली होते हुए भी भद्रता के आदर्श हैं-बलभद्र जी,अपनी लाडली बहन जो भद्रता की आदर्श हैं-सुभद्रा जी तथा भगवान सुदर्शन जी के साथ स्वयं भगवान जगन्नाथ जी चतुर्धा देवविग्रह रुप में पुरी के श्रीमंदिर के रत्नसिंहासन पर विराजमान हैं।

यहां पर उत्तर,दक्षिण,पूर्व और पश्चिम के देव-देवियों का कोई भेद-भाव नहीं है क्योंकि यहां के चतुर्धादेव विग्रह समस्त देवों के समाहार हैं। श्रीमंदिर के रत्नसिंहासन पर श्रीदेवी तथा भूदेवी की कास्य मूर्तियां भी अवश्य हैं।भगवान जगन्नाथ भारतीय संस्कृति को तथा भारतीयता को बचाने हेतु भारतीय संयुक्त परिवार की शाश्वत अवधारणा को अपने दिव्य दरबार रत्नवेदी से प्रतिदिन संदेश देते हैं। घर-परिवार के बडे भाई और छोटी बहन की वास्तविक महत्ता का वे पावन संदेश देते हैं। स्वयं तो भगवान जगन्नाथ वैष्णव, शैव, सौर, शाक्त,जैन,बौद्ध,गाणपत्य हैं तो दूसरी तरफ विश्व की सभी संस्कृतियां,सभ्याताएं,धर्म,सम्प्रदाय और मान्यताएं अपने सभी भेद-भाव को भुलाकर आकर मिल जातीं हैं भगवान जगन्नाथ में। इसीलिए ओडिशा के श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर भगवान जगन्नाथ के लिए किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं है चाहें जाति का हो या लिंग का,चाहे किसी भाषा का हो अथवा किसी बोली आदि का।

भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद सेवन की ऐसी अनोखी परम्परा है कि सभी बिना किसी भेद-भाव के भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद का सेवन करते हैं। यहां पर जूठा प्रसाद कुछ भी नहीं है। महाप्रसाद का अन्नभोग स्वयं देवी अन्नपूर्णा तैयार करतीं हैं जो वास्तव में आयुर्वेदसम्मत महाप्रसाद है जिसके सेवन मात्र से ही सभी प्रकार के दुखों का निवारण हो जाता है।ओडिशा की पखाल संस्कृति को बडी तेजी के साथ आज भारत समेत विश्व के अनेक देश भी अपना रहे हैं। ओडिशा का कोणार्क सूर्यमंदिर विश्व विख्यात सूर्यमंदिर है जहां पर प्रकृति के प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्यदेव अपने 24 पहियोंवाले रथ पर आरुढ हैं। ये 24 पहिये प्रत्यक्ष रुप में कालचक्र के प्रतीक हैं। इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में गंगवंश के प्रतापी राजा नरसिंह देव ने किया था जिसे 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रुप में मान्यता प्रदान की गई।

मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त लाल पत्थर भी अपने आकर्षण केन्द्र के लिए प्रसिद्ध हैं जो प्रतिपल अवलोकन में मानव की भाषा जैसे मुखर हैं।कोणार्क सूर्यदेव मंदिर प्रांगण में उनकी पत्नी देवी छाया देवी की सुंदर मूर्ति है।पौराणिक काल से ओडिशा नदियों का प्रदेश माना गया है जहां की नदियां जीवनदायिनी,सभी मनोकामनादायिनी हैं तथा मोक्षदायिनी हैं।ओडिशा में कार्तिक महोदधिस्नान का विशेष महत्त्व है। ओडिशा वह प्रदेश है जिसने चण्डाशोक को धर्माशोक बना दिया। ओडिशा में जो भी आया वह यहीं पर बस गया क्योंकि उसे जगन्नाथ संस्कृति(ओडिशा की संस्कृति) सबसे अच्छी लगी। पुरी का महोदधि समुद्र तट तो स्वर्ण बेलाभूमि है।सैलानियों का स्वर्ग है। पुरी का स्वर्गद्वार तो मोक्ष का एकमात्र केन्द्र है जो प्रलयकाल में भी कभी नष्ट नहीं होता है तथा जिस सनातनी का अंतिम संस्कार वहां पर होता है वह भवबंधन से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त हो जाता है।

जगतगुरु आदि शंकराचार्य द्वारा निर्मित गोवर्द्धन पीठ पुरी धाम में ही है जहां के 145वें पीठाधीश्वर पुरी जगतगुरु शंकराचार्य परमपाद स्वामी निश्चलानंद जी सरस्वती महाभाग हैं जिनके दर्शन के लिए विश्व के सभी धर्मगुरु पुरी आते हैं। भगवान जगन्नाथ का नवकलेवर(एक साधारण मानव की तरह जन्म लेने तथा मृत्यु को प्राप्त होने की सनातनी ईश्वरीय प्रक्रिया) जो उस वर्ष विश्व स्तर पर पुरी धाम में आयोजित होता है जिस वर्ष दो आषाढ मास पडता है।ओडिशा की स्थापत्य कला,मूर्ति कला,वास्तुकला तथा चित्रकला भी तो बेजोड है।हाल ही में(5सितंबर,2023 को) नई दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन,2023 के भारत मण्डपम के मुख्य आकर्षण का केन्द्र भी कोणार्क के सूर्यमंदिर का पहिया रहा जो विश्व में कालचक्र का प्रतीक है। 18सितंबर,2023 को भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सबसे बडी महात्वाकांक्षी योजनाः विश्वकर्मा योजना को लागू कर तथा ओडिशा के विश्वकर्माओं को सम्मानित यह सिद्ध कर दिया कि ओडिशा की देन भारतीय संस्कृति को अभूतपूर्व देन है।वास्तव में ओडिशा की देन (जगन्नाथ संस्कृति) की देन भारतीय संस्कृति को अतुलनीय है।

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