डॉ. सुभाष चंद्रा आज किसी परिचय को मोहताज नहीं है। डॉ. चंद्रा एक ऐसी शख्स़ियत हैं जिन्होंने इस देश में सबसे पहले निजी क्षेत्र सैटेलाईट चैनल लाकर देश में मनोरंजन से लेकर मीडिया जगत तक में क्रांति कर दी। आज से दस साल पहले किसी ने सोचा भी नहीं था कि देश में सैकड़ों सैटैलाईट चैनल हो जाएंगे जो घर घर में हर भाषा और हर समुदाय की रुचि के अनुसार मनोरंजक और शैक्षणिक कार्यक्रमों का प्रसारण करेंगे। देश में इस सैटेलाईट क्रांति के जनक डॉ. सुभाष चंद्रा हैं जिन्होंने देश के लोगों को घर बैठे मनोरंजक कार्यक्रम दिखाने का एक सपना देखा और उसे हक़ीकत में बदल कर भी दिखा दिया।
डॉ. सुभाष चंद्रा अपने गृह राज्य हरियाणा से उच्च सदन राज्य सभा के सांसद हैं। वे राज्य सभा के लिए अपने गृह राज्य हरियाणा से चुने गए हैं। वे देश की अग्रणी व अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में पहचान बना चुकी एस्सेल समूह की कंपनियों के अध्यक्ष हैं, जिसने हाल ही में 90 साल की अपनी यात्रा पूरी करते हुए 1.2 अरब लोगों के जीवन को प्रभावित करते हुए 172 देशों में अपनी पहचान बनाई है। अपने दम पर ही अपनी शख़्सियत बनाने वाले और दूरदृष्टा डॉ. सुभाष चंद्रा ने हर बार एक नए उद्योग की शुरुआत की और उसे सफलता के शीर्ष तक पहुँचाया। आज ज़ी नेटवर्क देश की सीमाओं को लांघकर अमरीका, कैरेबियन, मध्यपूर्व, यूरोप, अफ्रीका, सुदुर पूर्व, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे सुदूर देशों में अपनी पहुँच बना चुका है। अगर यूँ कहा जाए कि हर क्षण किसी न किसी देश में कहीं न कहीं कोई न कोई व्यक्ति ज़ी टीवी देख रहा है तो कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
डॉ. चंद्रा ने सबसे पहले एस्सेल उद्योग समूह की स्थापना की, और उसके संस्थापक अध्यक्ष बने। इस उद्योग समूह ने उनके कुशल मार्गदर्शन में पैकेजिंग, मनोरंजन पार्क (एस्सेल वर्ल्ड) सैटेलाईट चैनलों, कैबल टीवी डिस्ट्रीब्यूशन, फिल्म निर्माण, शैक्षणिक क्षैत्र, एनिमेशन, प्रकाशन, मल्टीप्लैक्स सिनेमा और ऑन लाईन लॉट्री जैसे सर्वथा नए क्षेत्रों में कदम रखा और हर क्षेत्र में सफलता हासिल की। अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो एस्सेल समूह ने सुभाष चंद्रा के नेतृत्व में अंतरिक्ष से लेकर आकाश, और जमीन तक अपना कारोबार फैला लिया है।
सुभाष जी का मानना है कि बने बनाए रास्तों पर जो लोग चलते हैं वे कभी कहीं नहीं पहुँच पाते, कहीं पहुँचने के लिए हमेशा ऐसे नए रास्ते खोजना पड़ते हैं जहाँ आपको कोई राह नहीं दिखाता, आपको अपनी मंज़िल ख़ुद तलाशनी होती है-और उन्होंने अपनी इस उक्ति को अपने पुरुषार्थ, दूरदृष्टि और कारोबारी कौशलता से सही कर दिखाया।
डॉ. चंद्रा एक मृदुभाषी और कुशल कारोबारी तो हैं ही उनकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि वे कारोबार में नुकसान उठाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
डॉ. सुभाष चंद्रा आज जिस मुकाम पर पहुँचे हैं उसके लिए उन्होने कभी किसी का हाथ नहीं थामा, बस उन्हें जो अच्छा लगा वह करते गए। 30 नवंबर 1950 को हरियाणा के हिसार जिले के आदमपुर मंडी गाँव में जन्मे सुभाष चंद्रा ऐसे तो इंजीनियर बनना चाहते थे, मगर शायद नियती को कुछ और ही मंज़ूर था। उन्होंने अपने स्वर्गीय दादाजी जगन्नाथ गोएन्का से कारोबार के गुर सीखे जिनसे अपने लिए एक नए भविष्य की इबारत लिखी। सुभाष चंद्रा सात भाई बहनों में सबसे बड़े हैं और उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपने पिता श्री नंदकिशोर गोएन्का के साथ कारोबार में हाथ बँटाना शुरु कर दिया था।
एक बार उन्होंने अपने पिता जो उस समय खली का कारोबार करते थे, से कहा भी कि अगर आपको मुनाफा कमाना हो तो जरुरी नहीं कि आप ऊँचे भाव में कोई सौदा करें, सस्ते भाव में सौदा कर कम मुनाफा कमाना ही कारोबार करने का सही तरीका है।
सुभाष चन्द्रा के दादाजी ने जब हरियाणा के आदमपुर में कारोबार के लिए एक छोटी सी कंपनी बनाई थी तो उसमें मात्र चार लोग रहे होंगे लेकिन आज एस्सेल से 40 हजार लोग जुड़े हुए हैं।
आदमपुर में 1926 में बहुत छोटे रूप में शुरु हुई एस्सेल समूह की 90 साल की यात्रा में डॉ. सुभाष चंद्रा ने एक लंबी यात्रा तय की है। अपनी इस यात्रा में उन्होंने कई सफलताओं के साथ ही कई असफलताओं का भी सामना किया, लेकिन अपनी कभी न हार मानने वाली जिद के चलते सुभाषजी न तो टूटे और न उन्होंने कभी पीछे पलटकर देखा, उनके मन में एस्सेल को लेकर जो सपना था उसे उन्होंने पूरा करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी।
सुभाष जी कहते हैं, यह एक विनम्र शुरुआत थी, 40 पीढ़ियों पहले उनके पूर्वजों को काम की तलाश में अग्रोहा से निर्वासित होकर फतेहपुर जाना पड़ा था। 40 पीढ़ियों के बाद वर्ष 1926 उनके पड़पितामह ने अपना कारोबार शुरु करने के लिए अपने दो बेटों के साथ गंगानगर जिले के एक छोटे से गाँव भद्रा में रहने का फैसला किया, इसके बाद वे ओकारा चले आए जिसे अब मिंटगुमरी के नाम से जाना जाता है। अपने कारोबार का विस्तार करने के लिए सुभाषजी के दादाजी स्व. जनगन्नाथ गोएन्का अपने भाईयों के साथ हिसार के पास एक छोटे से गाँव सदलपुर चले आए यहाँ आकर उन्होंने मंडी आदमपुर में अनाज बाजार की शुरुआत की। यहीं से एस्सेल समूह की गौरवमयी यात्रा शुरु होती है, जिसे “ए” के आदमपुर से ज़ी के “झेड” की यात्रा भी कह सकते हैं!
मात्र 19 साल की उम्र में सुभाष चंद्रा ने अपनी ख़ुद की वनस्पति तेल मिल शुरु की, और मात्र कुछ सालों में ही इस कंपनी का कारोबार 25 लाख अमरीकी डॉलर तक पहुँच गया। 1976 में जब अनाज का भरपूर उत्पादन हुआ और भारतीय खाद्य निगम को 1 करोड़ 40 लाख टन अनाज के भंडारण का कोई तरीका नहीं सूझ रहा था ऐसे में सुभाष चंद्रा ने एक ऐसा विलक्षण सुझाव पेश किया कि देश का करोड़ों रुपयों का कीमती अनाज नष्ट होने से बच गया। श्री चंद्रा ने सुझाव दिया कि इस अनाज को पॉलिथीन की शीट (प्रचलित भाषा में बरसाती) से ढँक दिया जाए तो इसे सुरक्षित रखा जा सकता है। इसी साल सुभाष चंद्रा ने अनाज के निर्यात के क्षेत्र में कदम रखा और अपनी खुद की एक कंपनी मेसर्स रामा एसोसिएट्स बनाई। इस कंपनी के माध्यम से उन्होंने रूस में चावल का निर्यात कर अच्छा मुनाफा कमाया।
उनके अंदर एक सफल कारोबारी से लेकर तमाम चुनौतियों का सामना करने की ज़बर्दस्त क्षमता है और यही वजह है कि वे हर बार एक नए कारोबार की सोच लेकर आते हैं और उसमें सफल भी हो जाते हैं। 1981 में वे एक पैकेजिंग प्रदर्शनी में गए और जब वहाँ से लौटे तो उनके कारोबारी दिमाग में एक नया आईडिया आ चुका था, और इसी आईडिए ने जन्म दिया एस्सेल पैकेजिंग लिमिटेड (जिसे आज एस्सेल प्रोपैक के नाम से जाना जाता है) को। इस कंपनी ने इंटीग्रेटेड मल्टी-लेयर्ड (एकीकृत बहु-परतीय) ट्यूब, जो देश में तत्कालीन समय में प्रचलित एल्युमिनियम ट्यूब का बेहतरीन विकल्प साबित हुई। मल्टी-लैयर्ड लैमिनेटेड ट्यूब ने देश में पैकेजिंग के क्षेत्र में एक क्रांति से कर दी। इन मल्टी-लैयर्ड लैमिनेटेड ट्यूब का उपयोग फार्मस्युटिकल्स, कॉस्मेटिक, खाद्य और टूथपैस्ट जैसे उत्पादों की पैकिंग में किया जाता है।
आज सुभाष चंद्रा द्वारा प्रवर्तित इन पैकेजिंग कंपनियों का कारोबार भारत में ही नही बल्कि भारत से बाहर इजिप्ट, चीन, नेपाल, फिलिपिंस, इंडोनेशिया,. वैनेज़ुएला, कोलंबिया और मैक्सिको तक फैला हुआ है। वर्ष 2000 में स्विस की एक मल्टीनेशनल कंपनी एजी प्रोपैक का एस्सेल पैकेजिंग लिमिटेड में विलय होने के बाद इसका नाम एस्सेल प्रौपैक लि. कर दिया गया, और आज यह दुनिया की नंबर वन लैमिनेटेड ट्यूब कंपनी के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है।
सुभाष चंद्रा जहाँ भी गए वहाँ से कभी खाली हाथ नहीं लौटे। अपनी विदेश यात्राओं के दौरान जब उन्होंने एम्यूज़मैट पार्क देखे तो ऐसा ही पार्क भारत में भी बनाने का संकल्प लिया और उनका यह संकल्प साकार हुआ 1988 में एशिया के सबसे बड़े एम्यूज़मैट पार्क एस्सेल वर्ल्ड के रूप में, जो आज देश भर में एम्यूजमैंट पार्क का प्रतीक बन चुका है। इसके बाद भी सुभाष चंद्रा चैन से नहीं बैठे उन्होंने इसमें एक अध्याय और जोड़ते हुए 1998 में वाटर किंग्डम की भी स्थापना की। 64 एकड़ क्षेत्र में फैला एस्सेल वर्ल्ड का विशाल परिसर मात्र मनोरंजन का ही नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण की एक शानदार मिसाल भी है। यहाँ पर कई दुर्लभ वनस्पतियों के पौधे लगाए गए हैं और कचरा प्रबंधन की बेमिसाल व्यवस्था की गई है। एस्सेल वर्ल्ड की दुर्लभ वनस्पतियों की वजह से यहाँ पर कई दुर्लभ और लुप्तप्राय पंछियों ने अपना ठिकाना बना लिया है।
एस्सेल वर्ल्ड के निर्माण के शुरुआती दिनों को याद करते हुए श्री चंद्रा बताते हैं- तब यहाँ घुटनों घुटनों तक कीचड़ था और कई कई दिनों तक यहाँ से जाना ही नही हो पाता था, मच्छरों, गंदगी और बदबू के बीच रह कर खाना और सोना होता था। आज जो लोग इस जगह को देखते हैं वे तो इस बात की कभी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। आज एस्सेल वर्ल्ड अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बना चुका है, इसकी डिज़ाईन तैयार की दुनिया के जाने माने आर्किटेक्ट फ्रांस के मिस्टर माईकल राउल्स ने। वाटर किंग्डम की पूरी परिकल्पना ही अनूठी है, इसे इस तरह से बनाया गया है कि किया गया है कि यहाँ जाने पर आप अपने आपको किसी ऐसे जंगल में घिरा पाते हैं जहाँ पानी के झरने भी हैं तो रहस्यमयी गुफाएँ भी और विशालकाय स्तंभ और ऊँचे दरख्त भी। इसके शुरु होने से लेकर आज तक देश भर से और बाहरी देशों से भी यहाँ पर 1 करोड़ 10 लाख लोग इसका मजा ले चुके हैं। कंपनी ने 1996 में जयपुर में 7 करोड़ की लागत से फन किंग्डम की भी शुरुआत की।
आखिर सुभाष चंद्रा के मन में ज़ी टीवी शुरु करने का विचार आया कैसे.. बात 1990 की है, जब सुभाष चंद्रा अपने एक मित्र के साथ मुंबई दूरदर्शन पर गए और सोचने लगे कि वे खुद ही अपना कोई ऐसा चैनल शुरु करें तो कैसा रहे….। हालाकि तब तक उन्हें इस संबंध में कोई तकनीकी जानकारी नहीं थी। इसके बाद बात आई गई हो गई….। 1992 में जब दुनिया के दूसरे देशों में कैबल नेटवर्क का कारोबार शुरु हुआ तो सुभाष चंद्रा ने देश के जाने माने उद्योगपतियों को पीछे छोड़ते हुए स्टार टीवी के तत्कालीन प्रमुख रिचर्ड ली, जो तब ह्यूच विज़न हॉंगकाँग के स्वामित्व में था, को एशियानेट ट्रांसपोंडर के लिए 5 करोड़ अमरीकी डॉलर देकर एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए।
जब उस समय श्री चंद्रा को आर्थिक मदद की ज़रुरत पड़ी तो इंग्लैंड के उद्योगपति सर जैम्स गोल्डस्मिथ और उनके साथी श्री चंद्रा की मदद के लिए आगे आए। भारतीय कानूनी प्रावधानों की वजह से श्री चंद्रा इतने बड़ा निवेश नहीं कर सकते थे, लेकिन धुन के पक्के श्री चंद्रा ने प्रवासी भारतीयों को साथ लेकर एशिया टूडे लिमिडेट नामक कंपनी बनाकर अपनी राह आसान कर ली। इसके बाद श्री चंद्रा ने 2 अक्टूबर, 1992 को देश में निजी क्षेत्र में पहले सैटेलाईट चैनल ज़ी टीवी की शुरुआत की। ज़ी टीवी शुरु हो जाने के बाद भी श्री चंद्रा को सैटेलाईट चैनल की दुनिया के बारे में कुछ पता नहीं था, लेकिन उनकी लगातार सीखने और जानने की प्रवृत्ति ने उनके हौसले को एक नया आकाश दिया।
जब ज़ी टीवी शुरु हुआ तो श्री चंद्रा इसके एक एक कार्यक्रम को पूरी तन्मयता के साथ एक आम दर्शक के नज़रिए से देखते थे। उनकी सोच यही थी कि एक भारतीय होने के नाते उनके चैनल पर भारत विरोधी किसी भी बात का प्रसारण नहीं होने पाए। ज़ी टीवी की शुरुआत रोज़ाना दो घंटे के कार्यक्रमों के साथ हुई थी, और थोड़े ही समय में इस पर लगातार 24 घंटे के कार्यक्रमों का प्रसारण शुरु हो गया।
ज़ी टीवी की सफलता से उत्साहित होकर श्री चंद्रा ने तीन नए चैनल ज़ी न्यूज़, ज़ी सिनेमा और म्यूज़िक एशिया की शुरुआत की। कहना ना होगा कि तीनों ही चैनल अपने अपने क्षेत्र में पहले चैनल थे। लेकिन श्री चंद्रा इतने से ही संतुष्ट नहीं थे, वे चाहते थे कि क्षेत्रीय दर्शकों को भी उनकी भी भाषा में मनोरंजक कार्यक्रम देखने को मिले, और इस तरह उन्होने गैर हिंदी भाषी दर्शकों के लिए अल्फा ब्रॉंड के तहत गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी जैसी कई क्षेत्रीय भाषाओं में चैनलों की शुरुआत की। आज ये सभी चैनल क्षेत्रीय लोगों की खास पसंद बन चुके हैं और लोगों के दिलों दिमाग में अपनी गहरी ज़ड़ें जमा चुके हैं। कड़े मुकाबले के बावजूद इन चैनलों की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। दक्षिण भारत के दर्शकों के लिए श्री चंद्रा ने ज़ी कृष्णा की शुरुआत की।
सुभाष जी की दूर की सोच ने देश को पहला निजी सैटेलाईट चैनल ही नहीं दिया बल्कि इसके माध्यम से एक ऐसा उद्योग खड़ा हो गया जिसने देश में लाखों नौकरियाँ पैदा की, इसीलिए उन्हें भारतीय टेलीविज़न का पितामह कहा जाता है।
सुभाष जी एक शिक्षाप्रेमी और परोपकारी भी हैं, और एकल ग्लोबल के अध्यक्ष भी हैं, जिसके माध्यम से वनवासी क्षेत्र के शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा प्रदान की जा रही है। एकल अभियान 1989 में शुरु हुआ और आज इसके माध्यम से भारत के 22 राज्यों में 55 हजार से अधिक और नेपाल में 1990 विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं। एकल अभियान अब तक 18 लाख बच्चों के जीवन से सीधा जुड़ चुका है, जिसमें नक्सली क्षेत्र के बच्चे भी प्रमुख रूप से शामिल हैं। एकल विद्यालयों में 1.4 million से भी ज्यादा आदिवासी बच्चों को शिक्षा दी जाती है।
सुभाषजी ने परमार्थिक कार्यों के माध्यम भी देश में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। उन्होंने तालीम TALEEM (Transnational Alternate Learning for Emancipation and Empowerment through Multimedia) नाम से एक संस्था की स्थापना की है जिसके माध्यम से दूरस्थ क्षेत्रों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाती है।
ग्लोबल विपश्यना फाउंडेशन की स्थापना में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसके माध्यम से लोगों को अपनी अध्यात्मिक क्षमता के विकास की दिशा में मार्गदर्शन दिया जाता है। मुंबई के गोराई में एस्सेल वर्ल्ड के पास स्थित ग्लोबल पगोड़ा अध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वास्तु की दृष्टि से भी एक अद्भुत स्थान है।
सुभाष जी ने पावन अग्रोहा धाम के निर्माण में अहम भूमिका निभाई है, यह स्थान महाराजा अग्रसेन की विरासत से जुड़ा है और यहाँ हमारी कुल देवी महालक्ष्मी का मंदिर भी है। वे विगत कई वर्षों से शरद पूर्णिमा पर अग्रोहा धाम मेले का आयोजन कर रहे हैं।
सुभाष जी ने हिसार क्षेत्र के 5 गाँवों को गोद लिया है।
डॉ. सुभाष चन्द्रा देश के युवाओं का सबसे लोकप्रिय शो सुभाष चन्द्रा शो के माध्यम से युवाओं से सीधा संवाद करते हैं।
14 मई को जब उनके समूह ने 90 साल पूरे किए, उन्होंने अपनी पारिवारिक संपदा से 5000 करोड़ की राशि सुभाष चन्द्रा फाउंडेशन के लिए समर्पित कर दी, इसकी अधिकारिक घोषणा भारत के राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री ने एक समारोह में की।
उन्होंने महसूस किया कि महाराष्ट्र के युवाओं के लिए कारोबार और उद्यम की दुनिया को जानने व समझने के लिए मराठी में उचित सामग्री उपलब्ध नहीं है, उन्होंने अपनी जीवनी पर आधारित पुस्तक ‘द ज़ेड फैक्टर’ का मराठी अनुवाद प्रस्तुत किया।
अपने टीवी शो के माध्यम से भारत और देश के बाहर के के युवाओं को निरंतर उत्साहित व प्रेरित कर रहे हैं। वे समर्पित रूप से प्रतिदिन सैकड़ों ई मेलों को व्यक्तिगत रूप से जवाब देते हैं, और उनके ट्वीट दुनिया भर में हजारों लोगों को प्रेरणा देते हैं।
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रोजाना आधार पर सैकड़ों ई-मेलों का व्यक्तिगत रूप से जवाब देने की उनकी प्रथा उन तक पहुंचने के लिए उनके समर्पण की गवाही है, जबकि उनके ट्वीट्स दुनियाभर में हजारों लोगों को प्रेरित करते हैं।
वैश्य समुदाय के अग्रवाल समाज से आए सुभाषजी लोगों के उत्थान और सुधार के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं।
सुभाषजी वैश्य समुदाय से जुड़े 300 से अधिक उप-समुदायों के रोजगार, स्वास्थ्य, विवाह और शिक्षा के लिए लिए अमीरों से धन जुटाने के अभियान में जी जान से जुटे हैं।
‘सारथी’ के रूप में उन्होंने एक ऐसा मंच तैयार किया है जो लोगों को सशक्त बनाने और रचनात्मकता विकसित करने के साथ ही ‘परिवर्तन करने वालों’ से ‘परिवर्तन लाने वालों’ को जोड़ने का काम करेगा।
डीएससी फाउंडेशन
डीएससी फाउंडेशन की स्थापना को लेकर सुभाषजी की कल्पना यह है कि समाज के उन लोगों को सहायता व अवसर उपलब्ध कराए जाएं, जो दुर्भाग्यवश सामाजिक, आर्थिक स्थितियों और असमानता के माहौल से जूझते हुए अपने लिए अवसर नहीं तलाश पाते। डीएससी फाउंडेशन के माध्यम से एक उभरते व समावेशी समाज के निर्माण की पहल की गई है- यानी समाज को सशक्त व विकसित बनाने के लिए कार्य करना। इस फाउंडेशन के माध्यम से क्षमता निर्माण, व्यावसायिक कौशल, सामाजिक उद्यमिता, सामाजिक जागरूकता, लिंग समानता, आरएलडी (अनुसंधान, शिक्षा और विकास), सांस्कृतिक विविधता और विरासत के संरक्षण के लिए मंच उपलब्ध कराया जाएगा।
डीएससी फाउंडेशन के माध्यम से सुभाषजी ने एक नई कल्पना आईएसआर को जन्म दिया है। यह है इंडिविजुअल सोशल रिस्पांसबिलिटी। यानि गिविंग बैक टू द सोसायटी। इसके लिए डीएससी यानी डॉ. सुभाष चंद्रा फाउंडेशन की स्थापना की है।
ये कोई एनजीओ नहीं है। ये एक तरह से कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोसेस है। इसके माध्यम से हम इंजीनियरिंग में प्रवेश लेने वाले किसी ज़रुरतमंद छात्र को उसकी 50 हजार की फीस इस शर्त पर देंगे कि जब उसकी नौकरी लग जाए तो वह ये पैसा हमें वापस न देकर किसी और ज़रुरतमंद की मदद करे। कोई अगर हमारे पास ऐसा स्टार्टअप का ऐसा आईडिया लेकर आया कि उसे काम शुरु करने में दस लाख की ज़रुरत है तो हम उसे इसी शर्त पर मदद करेंगे कि जब वह कमाने लगे तो ये दस लाख समाज सेवा में लगाएँ। ये न तो कोई लोन है न कोई एनजीओ है, ये एक तरह से एक परोपकरी श्रृंखला है जो समाज के हर वर्ग के लोगों का सपना पूरा करने में मददगार होगी।
डॉ. सुभाष चन्द्रा ने देश और दुनिया को ये बता दिया है कि गाँव का एक साधारण पढ़ा लिखा नवयुवक अगर जेब में 17 रुपये लेकर भी निकल जाए और उसके इरादे बुलंद हों तो वह पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल कायम कर सकता है।
हमारी शुभकामना है कि भारतीय टेवीविज़न उद्योग के इस पितृ-पुरुष की सोच और सपनों को ऐसे ही पंख लगते रहें ताकि हमारा देश कारोबार से लेकर सामाजिक क्षेत्र में पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन सके।