राजनांदगांव। दिग्विजय कालेज के प्रोफ़ेसर डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने कहा है कि इस बार का पर्यावरण दिवस वास्तव में प्रकृति को खुद मनाया। जैसे हम इस दिन प्रकृति को बचाये रखने की गुहार लगाते थे, जाने अनजाने में उससे अपने आप को बचाने की अर्जी करते रहे। इंसान की मौजूदगी से बेखौफ बाग बगीचों और वन-प्रांतरों ने इस बरस पक्षियों के कलरव और पशुओं के इत्मीनान के साथ शायद अपना दिवस मनाया। भयंकर त्रासद होने के बावजूद कोरोना ने लोगों को जीने की कला सिखा दी। हमारी दुनिया बदल गई। कोरोना वायरस का क़हर टूटा और असर ऐसा हुआ कि रहन-सहन बदल गया है। भयंकर उलट पुलट का यह दौर हर दिन पर्यावरण दिवस मनाने की खामोश अपील कर रहा है।
डॉ. जैन ने कोरोना के साथ और कोरोना के बाद पर्यावरण और धारणीय विकास पर एकाग्र आईसीबीएफ के वैश्विक वेबिनार में कहा कि कहर से तालाबंदी तक, आवाजाही से घर पर ठहराव तक इतनी सख़्त पाबंदी पहली बार देखी गयी। बंद का ऐसा मंज़र अपने ही खिलाफ शायद पहले कभी न देखा गया हो। सड़क पर चलने से लेकर समंदर की लहरों से खेलने और आसमान की उड़ानों तक सब स्थगित जो गए और सामाजिक दूरी ही सामाजिकता की नयी परिभाषा घोषित हो गयी। लेकिन इससे पर्यावरण के घटक करीब आ गए। तितलियों के पंखों पर फूलों के नाम लिख गए। खुशबू के हस्ताक्षर साफ़ नज़र आने लगे। कोरोना ने पर्यावरण से नए ढंग से संवाद करने का नया रास्ता बना दिया।
डॉ. जैन ने कहा कि कोरोना काल की पाबंदियों का बेहद असर हुआ। सुबह परिंदों के शोर से नींद खुलने लगी। भूली बिसरी आवाज़ें सुनाई पड़ने लगीं। खोया और सोया हुआ नीला आसमान जाग गया, खिल उठा। बचपन के कपसीले बादल फिर से दिखने लगे। वीरान सड़कों की सफाई लुभाने लगी। सड़क किनारे लगे पौधों में फूल मुस्कुराने लगे। सफाई की दुआरावस्था पर सफाई देने की ज़रुरत घट गयी। सफाई कर्मी कोरोना योद्धा बन गए।
डॉ. जैन ने कहा कि कोरोना वायरस दुनिया के लिए काल लेकिन कल की दुनिया को बचा लेने का सन्देश भी लेकर आया है। लॉकडाउन प्रकृति के लिए बहुत हितकारी साबित हुआ है। लॉकडाउन की वजह से कार्बन उत्सर्जन रुक गया है। प्रदूषण कम हो गया है। इस महामारी को पर्यावरण में बदलाव के तौर पर देखने से सभी सहमत हों, ज़रूरी नहीं है लेकिन पर्यावरण शुद्ध तो हुआ है। ध्वनि प्रदूषण में भी भारी कमी आई है। भीड़भाड़ वाले इलाकों में लॉकडाउन से पर्यावरण को बहुत लाभ हुआ है। दरअसल, ध्वनि प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण हमेशा से ही वाहन रहे हैं, जिनकी आवाज से सभी परेशान हैं। वहीं लॉकडाउन के बीच न सिर्फ वाहनों की आवाजाही पर पाबंदी रही, बल्कि बड़े कार्यक्रमों पर भी रोक लगी रही। ऐसे में हर तरफ ध्वनि प्रदूषण में कमी आई। इसी तरह नदियों का पानी साफ हो गया है।
डॉ. जैन बताया कि दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन का 23 फ़ीसद परिवहन से निकलता है. इनमें से भी निजी गाड़ियों और हवाई जहाज़ की वजह से दुनिया भर में 72 फीसद कार्बन उत्सर्जन होता है। अभी लोग घरों में बंद हैं। ऑफ़िस का काम भी घर से कर रहे हैं। महामारी के इस दौर में हो सकता है लोग इसकी अहमियत समझें और बेवजह गाड़ी लेकर घर से निकलने से बचें। अगर ऐसा होता है तो मौजूदा पर्यावरण सुधार की दिशा में बहुत बड़ा कदम होगा। लेकिन
लॉकडाउन को कैद मानने वालों ने अनलॉक के बाद एहतिहात नहीं बरता तो हालात बदतर भी हो सकते हैं। पर्यावरण को बचाने के लिए लोगों को अपनी आदतें बदलनी होंगी। उम्मीद है इस समय का अंधकार हम स्वच्छ और हरे-भरे वातावरण से मिटा देंगे।