कैराना के सांसद स्वर्गीय हुकुम सिंह जी की पुत्री मृगांका सिंह को विधान सभा का टिकट मिला है। उनके विपक्ष में सपा से नाहिद हसन खड़े है विधायक है। उनकी माँ तबस्सुम लोकसभा से संसद भी रह चुकी है। कभी हुकुम सिंह जी ने कैराना से हिन्दुओं का वृहद् स्तर पर पलायन की समस्या से अवगत करवाया था। हुकुम सिंह हिन्दू गुर्जर थे, जबकि नाहिद हुसैन और तबस्सुम मुस्लिम गुर्जर है। बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि इन सभी के पूर्वज एक ही थे। हुकुम सिंह के एक पूर्वज कभी बीते समय मुसलमान बन गए थे। आज दोनों के परिवार एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी है। कभी दोनों परिवारों का एक दूसरे की शादी-ब्याह में आना जाना तक था। ऐसा हमें भारत के तमाम मुसलमानों में दिखता है। गाज़ियाबाद क्षेत्र में जहाँ मुस्लिम राजपूत और त्यागी मुसलमान बसते हैं। वही बनारस क्षेत्र में ऐसे मुसलमान बसते है जिनके नाम के आगे मिश्रा लगा होता हैं। मेवात के मुसलमानों के और हिन्दू जाटों के गोत्र एक है। दिल्ली के दीनपुर क्षेत्र के जाट और नजफ़गढ़ क्षेत्र के जाटों का एक ही शौकीन गोत्र मिलता हैं।
इससे यही सिद्ध हुआ कि दोनों एक ही परिवार की दो धाराएँ हैं। भारत के मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे। किसी काल में उन्हें बलात धर्म-परिवर्तन कर मुसलमान बनाया गया। 1200 साल के इस्लामिक शासन में यह हुआ। सोचने की बात यह है कि कैराना से हिन्दुओं को क्यों पलायन करना पड़ा? इसका मुख्य कारण जनसंख्या में मुसलमानों की प्रमुखता है। विश्व इतिहास उठा कर देख लीजिये। जहाँ भी इस्लाम को मानने वालों की संख्या बढ़ती वहाँ वहाँ पर गैर मुसलमानों के साथ ऐसा ही होता आया हैं। कैराना में भी यही हुआ। यह समस्या कश्मीर, असम, बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में देखने को मिल रही हैं। इस समस्या का समाधान एक ही है। शुद्धि जिसे आजकल घर वापसी के नाम से जाना जाता है।
मध्य काल में हमें हुण, कम्बोज, मंगोल आदि जातियों को अपने में समाहित कर लिया था। शिवाजी ने नेताजी पालकर की शुद्धि कर उन्हें वापिस शुद्ध किया था। आधुनिक भारत में स्वामी दयानन्द ने देहरादून में एक मुस्लिम सज्जन को शुद्ध कर उन्हें अलखधारी नाम दिया था। स्वामी श्रद्धानंद जी ने शुद्धि आंदोलन को चलाया। हिन्दू समाज ने उनका साथ नहीं दिया। अपने ही परिवार के बिछुड़े हुए भाइयों को नहीं अपनाया। उनसे रोटी-बेटी का सम्बन्ध भी नहीं बनाया। इसका परिणाम कैराना के रूप में दिख रहा हैं। आगे न जाने कितने कैराना होंगे। 1947 में देश विभाजन देख चूका हैं। आगे क्या क्या नहीं देखना होगा। अब भी समय है। अपनी हज़म करने की शक्ति को बढ़ाओ। अपने बिछुड़ों को गले लगाओ। तभी तुम्हारी आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित बचेगी।
(लेखक भारतीय अध्यात्मिक व ऐतिहासिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)