15 अगस्त 1947 को भारत की स्वाधीनता के बाद भारत को किस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए इसका निर्णय जिन हाथों में गया वे पश्चिमाभिमुख होकर आशावान थे। राष्ट्र की नीति निर्धारण उसी दिशा में चला दुर्भाग्य से न्याय प्रणाली भी उसी सड़ी गली सोच को अब तक ढोती रही। जब से भारतीयता के गौरव को मनाने वाले दल और व्यक्ति सत्तासीन हुए तब से उन्होंने भारतीय समाज, सरकार, सरकारी नीतियों, को स्व के तंत्र पर खड़ा करने के प्रयास प्रारंभ किये।
किन्तु यह कार्य खरगोश की चाल जैसा नही है कि सेकण्डों में उल्टा घूमकर दौड़ने लगे। यह कार्य हाथी के चलने जैसा है यानी हाथी धीरे धीरे ही घूम सकता है। वैसे ही राष्ट्र को सही दिशा में आगे बढ़ाने का काम करना होगा। और फिर इतने समय तक उल्टी दिशा में चलकर सही दिशा में जाने के लिए उल्टी दिशा वाली दूरी को पाटना भी पड़ेगा। इनसब बातों को ध्यान में रखकर नए अपराध कानूनों के वर्तमान बदलावों को समझने की जरूरत है।
प्राचीन भारत की न्याय व्यवस्था
प्राचीन भारत में न्याय और कानून की परंपराएं गहरी और विस्तृत थीं। राजा विक्रमादित्य, चंद्रगुप्त मौर्य, और अशोक जैसे राजाओं ने न्याय के सिद्धांतों का पालन किया और अपने शासनकाल में प्रजा को न्याय प्रदान किया। इनकी न्याय व्यवस्था की विशेषता यह थी कि वे निष्पक्ष न्याय करते थे।इन राजाओं की न्याय प्रणाली में लोक कल्याण, धर्म और नैतिकता को महत्व दिया गया।
औपनिवेशिक न्याय व्यवस्था का उद्देश्य
वहीं, औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश शासन ने भारत में अपनी कानून व्यवस्था लागू की। उन्होंने ब्रिटिश शासन के हितों की रक्षा के लिए न्याय प्रक्रिया और कानूनों का निर्माण किया। इस व्यवस्था में भारतीय जनता पर अनेक प्रकार के अत्याचार हुए। नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन किया गया। ब्रिटिश कानूनों में भारतीयों के लिए दमन, असमानता और अन्याय की भावना थी।
स्वाधीन भारत की न्याय व्यवस्था
स्वाधीनता के बाद भारतीय न्यायालय ने ध्येय वाक्य “यतो धर्मस्ततो जयः” को 26 जनवरी 1950 को अपना तो लिया किन्तु सभी कानून वही औपनिवेशिक काल के बनाये रखे। हालांकि यह वाक्य न्यायपालिका के मूल्यों को दर्शाता है। भारतीय न्यायपालिका का ध्येय वाक्य “यतो धर्मस्ततो जयः” (यतो धर्मः ततो जयः) महाभारत के भीष्म पर्व से लिया गया है। इसका अर्थ है “जहाँ धर्म है, वहाँ विजय है।”
इसका भावार्थ:
यह है कि सच्चाई, न्याय और धर्म के मार्ग पर चलने वाला हमेशा विजय प्राप्त करता है। न्यायपालिका के लिए यह ध्येय वाक्य यह संदेश देता है कि उनके निर्णय धर्म (नैतिकता और न्याय) पर आधारित होने चाहिए ताकि सच्चे न्याय की स्थापना हो सके।
महाभारत के भीष्म पर्व में, जब भीष्म पितामह कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों और कौरवों के बीच हो रहे संघर्ष के दौरान युधिष्ठिर को धर्म और न्याय का पालन करने की शिक्षा दे रहे थे, तब यह वाक्य कहा गया। इस वाक्य का उद्देश्य यह बताना था कि सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलने वाले को ही अंततः विजय प्राप्त होती है।
किन्तु आज तक IPC, CrPC और IEA नामक तीनो कानून वही ब्रिटिश मानसिकता वाले चल रहे थे।
आज, स्वाधीनता प्राप्ति के बाद, भारत एक लोकतांत्रिक देश के रूप में निरंतर विकसित हो रहा है। भारतीय संविधान ने भारतीय न्याय प्रणाली को स्वतंत्रता, समानता और न्याय के मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित किया है। हाल के वर्षों में, भारतीय न्याय प्रक्रिया का भारतीयकरण हो रहा है, जिसमें देश की सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कानूनों का निर्माण और संशोधन किया जा रहा है। यह इन कानूनों के नाम से ही परिलक्षित हो जाता है। जहां पहले इंडियन पैनल कोड अर्थत इंडियन दंड प्रक्रिया संहिता थी वहीं आज इसे भारतीय न्याय प्रक्रिया संहिता हो गई। पूर्व में जहां दण्ड देने पर बल था वहीं आज न्याय को प्रमुखता दी जा ही है। यहीं से भारतीयता परिलक्षित होने लगती है।
अन्याय निवारण अधिनियम: भारत सरकार ने अन्याय निवारण अधिनियम लागू किया, जिससे सभी नागरिकों को न्याय तक पहुंच सुनिश्चित होती है। इसमें विशेष रूप से कमजोर और पिछड़े वर्गों को न्याय प्राप्ति में सहायता मिलती है।
ऑनलाइन न्याय: डिजिटल इंडिया के तहत न्याय प्रक्रिया को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लाया गया है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया तेज और सुलभ हो गई है।
फ्री लीगल ऐड: गरीब और वंचित नागरिकों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जाती है, जिससे वे भी अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें।
न्याय मित्र: न्याय मित्र (अमीकस क्यूरी) की नियुक्ति करके उन मामलों में न्याय दिलाने का प्रयास किया जाता है, जहां वादी या प्रतिवादी की सही तरीके से प्रतिनिधित्व नहीं हो पा रहा है।
डेटा सुरक्षा कानून: डिजिटल युग में नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए डेटा सुरक्षा कानून बनाए गए हैं।
पर्यावरण संरक्षण कानून: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण संरक्षण कानून बनाए गए हैं।
महिला सशक्तिकरण: महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उन्हें समान अवसर प्रदान करने के लिए कई कानून बनाए गए हैं, जैसे कि घरेलू हिंसा अधिनियम और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम।
भारत न्याय प्रक्रिया में भारतीयकरण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। यह प्रक्रिया भारतीय समाज के विकास और जनकल्याण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।नए कानूनों और संवैधानिक सुधारों के माध्यम से न्याय प्रणाली को अधिक सशक्त और न्यायसंगत बनाया जा रहा है। नए आपराधिक कानूनों का उद्देश्य भारतीय न्याय प्रणाली को आधुनिक, प्रभावी, और पारदर्शी बनाना है। इससे अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो सकेगी और पीड़ितों को भी तेजी से न्याय मिल सकेगा।
इन कानूनों में डिजिटल युग के अपराधों का समावेश, महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा, और संगठित अपराधों के खिलाफ कठोर प्रावधान आम नागरिकों के हित में हैं। यह परिवर्तन न केवल न्याय प्रणाली को मजबूत बनाएगा, बल्कि समाज में कानून के प्रति सम्मान और विश्वास को भी बढ़ाएगा। आम नागरिकों के लिए ये कानून उनके अधिकारों की रक्षा और अपराधों से सुरक्षा का एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
न्याय प्रक्रिया के भारतीयकरण का उद्देश्य न केवल प्राचीन भारतीय न्याय परंपराओं की पुनर्स्थापना है, बल्कि आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों का भी संरक्षण करना है।
मनमोहन पुरोहित
फलौदी