विश्व मानवता के कल्याणार्थ 6 जनवरी को पुरी महोदधि तट पर आरती की गई जिसमें पुरी के शंकराचार्य जगतगुरु स्वामी निश्चलानंद सरस्वती,पुरी के गजपति श्री दिव्य सिंहदेव तथा ओडिशा के महामहिम राज्यपाल प्रोफेसर गणेशी लाल जी ने मुख्य रूप से हिस्सा लिया।
यह महोदधि आरती का 17वां आयोजन था। घंट मर्दन की आवाज और वेद मंत्र की मांगलिक ध्वनि के बीच आरती के समय का दृश्य काफी दिल को छू लेने वाला था। दुनिया के कल्याण एवं शांति के लिए पुरी स्वर्गद्वार के सामने बेलाभूमि में समुद्र आरती की गई। पुरी गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के कर कमलों से यह आरती संपन्न की गई। इस अवसर पर हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।
जगद्गुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि पूरा विज्ञान वेद शास्त्रों में अंतर्निहित है। इसमें आधुनिक विज्ञान को रास्ता दिखाने की क्षमता है। लेकिन भारत की गुरुकुल व्यवस्था को आंख मूंदकर पश्चिम का अनुकरण करने के इरादे से नष्ट किया जा रहा है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कोई भी कभी भी एक ऐसे राष्ट्र की उपेक्षा नहीं कर सकता है जो कंस, रावण और हिरण्यकश्यप जैसे शासकों के शासन को नष्ट करने की शक्ति रखता है। दुनिया का दिल भारत है। उन्होंने कहा, ‘एक दिन पूरी दुनिया सच्चाई के सहारे हिंदुत्व के रंग में रंग जाएगी।
उन्होंने यह भी कहा कि राजनीति, विकास और पर्यावरण की परिभाषा एक समान होनी चाहिए। सनातनी राजनीति होनी चाहिए । इससे पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ व्यक्ति का कल्याण भी होगा। गोहत्या को खत्म करने की जरूरत है। विकास को मानव जीवन के उस सार को समझकर साकार करना होगा जिसमें वह अंतर्निहित है। लेकिन अब विकास की परिभाषा को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और चीन को विकसित देश माना जाता था। लेकिन कोरोना ने सिखाया कि केवल भौतिक विकास ही वास्तविक सुधार की परिभाषा नहीं है।
इस अवसर पर राज्यपाल प्रो गणेशी लाल ने कहा कि विश्व की सुंदरता, धन और तकनीक का उपयोग करने पर भी एक भी फूल का उत्पादन असंभव है। समय आ गया है कि हम पर्यावरण के महत्व को समझें। दूसरी ओर, समुद्र स्वयं भगवान कृष्ण का रूप है। उन्होंने कहा कि भगवान जगन्नाथ की कृपा से पूरी दुनिया को सतर्क होना चाहिए। गजपति महाराजा दिव्य सिंहदेव ने कहा कि मानव समाज भौतिक प्रगति के पीछे भाग रहा है। हालांकि, एक स्वस्थ और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति आवश्यक है। सनातन धर्म के उत्थान और प्राचीन संस्कृति को पुनर्स्थापित करने के प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि वैदिक और सनातन संस्कृति में ही आदर्श चरित्र और अच्छे व्यक्तित्व का मार्ग निहित है।
इस अवसर पर परमहंस प्रज्ञानानंद जी, निर्विकल्पानंद सरस्वती महाराज, हृषिकेश जी और विधायक जयंत षड़ंगी सहित अन्य ने अपने विचार रखे। महोदधि आरती उत्सव समिति के अध्यक्ष प्रशांत कुमार आचार्य और सचिव पूर्ण चंद्र खुंटिया ने पूरे कार्यक्रम का संचालन किया जबकि आदित्य वाहिनी के राष्ट्रीय महासचिव मातृप्रसाद मिश्र ने कार्यक्रम का समन्वय किया। इस अवसर पर, राजनीतिक नेताओं, मठाधीशों और विभिन्न मठों के भक्तों ने उत्सव में भाग लिया।