Thursday, November 28, 2024
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पंडित भीमसेन विद्यालंकार

बीसवीं शताब्दी का आरम्भ पंजाब के आर्य समाज युग के रूप में जाना जाता है| इन्हीं दिनों जिला गुरदासपुर के श्रीहरगोविंदपुर में एक संपन्न आर्य समाजी परिवार में लाला बिशनदास भल्ला जी भी रहा करते थे| आप आर्य समाज में दृढ विशवास रखने वाले थे और स्वामी दयानंद सरस्वती जी के सिद्धांतों को बड़ी लगन से मानने वाले थे| इन्हीं दिनों अर्थात् सन् १९०० ईस्वी को हरिद्वार के निकटवर्ती क्षेत्र कांगड़ी में स्वामी श्रद्धानद जी के सुप्रयास से गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना हुई| इस गुरुकुल की स्थापना से मात्र दो वर्ष पूर्व लाला बिशनदास भल्ला जी के यहां जिस बालक का जन्म हुआ तथा जिसकी पूरी शिक्षा इसी गुरुकुल कांगड़ी में ही हुई, इस बालक को ही हम आज पंडित भीमसेन विद्यालंकार जी के नाम से जानते हैं|

पंडित जी ने जब गुरुकुल कांगड़ी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की तो आपको स्वामी श्रद्धानद सरस्वति जी ने कलकत्ता जाकर वहां के दैनिक पत्र “दैनिक सर्वेंट” का सम्पादक स्वरूप कार्यभार संभालने के लिए प्रेरणा दी| स्वामी जी की इस प्रेरणा को आपने गुरु का आदेश मानते हुए शिरोधार्य किया और कलकत्ता के लिए रवाना हो गए| वहां जाकर आपने सफलता पूर्वक सम्पादक की इस भूमिका को निभाया| यहाँ रहते हुए आप ने असहयोग आन्दोलन में भी भाग लिया तथा साथ ही साथ कलकत्ता के विभिन्न समुदायों के लोगों को हिंदी में भाषण देने की कला सिखाने में सहयोगी बने| इसके पश्चात् आपने कर्नाटक के क्षेत्रों में जाकर न केवल हिंदी का प्रचार ही किया अपितु हिंदी के विकास के लिए सम्मेलनों का आयोजन भी किया|

कर्नाटक से पंडित जी गुरुकुल कांगड़ी में लौट आये और यहाँ आकर अध्यापन का कार्य करने लगे| कुछ ही समय पश्चात् आप दैनिक वीर अर्जुन समाचार पत्र के सम्पादक स्वरूप कार्य करने लगे| इन्हीं दिनों वीर गणेश शंकर विद्यार्थी जी को अंग्रेज सरकार द्वारा दिए गए दंड का विस्तृत विवरण आपने अपने पत्र में प्रकाशित कर दिया| इस विवरण के प्रकाशित होने पर अंग्रेज सरकार की कोप दृष्टि आप पर बन गई| अब आपने स्वामी दयानद जी की शिक्षाओं को मानते हुए तथा महात्मा गांधी जी के आशीर्वाद से पंजाब में हिंदी के प्रचार तथा प्रसार में जुट गए| इन्हीं दिनों आप ने लाहौर के “सत्यवादी” नामक पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया| इस पत्र में देश के बड़े नामी देशभक्तों के लेख प्राकाशित होते रहे| शिक्षा के प्रसार की भावना तो आप में आरम्भ से ही थी और जब जब भाई परमानंद जी की प्रेरणा भी इसके साथ जुड़ गई तो लाहौर के नैशनल कालेज में हिंदी पढ़ाने लगे| जिन विद्यार्थियों ने आपसे शिक्षा ग्रहण की, उनमें से अधिकाँश विद्यार्थी देश की स्वाधीनता के लिए चलाये जा रहे क्रांतिकारी आन्दोलन के अग्रणी नेता बने| यहां तक कि क्रान्ति के इन नेताओं को जब देश की स्वाधीनता के लिए बमों की आवश्यकता अनुभव हुई तो आपने उन्हें बम बनाने की विधि सिखाने वाली पुस्तक की व्यवस्था भी करके दी| क्रांतिकारियों को पंडित भीमसेन जी पर इतना विश्वास था कि वह अपनी सब गोपनीय योजनायें तक भी उन्हें बता दिया करते थे|

आर्य समाज पंजाब को संचालन करने वाली सभा जिसका नाम आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब था, इसका कार्यालय भी उन दिनों लाहौर में ही था | इस सभा के मुख्य पत्र का नाम “आर्य” था| यह पत्रिका मासिक रूप से प्रकाशित हुआ करती थी| आपकी प्रेरणा तथा पुरुषार्थ से यह पत्रिका न केवल साप्ताहिक ही कर दी गई अपितु इस का सम्पादन का कार्यभार भी आपने अपने जिम्मे ले लिया| अक्समात् इन्हीं दिनों बाबू पुरुषोतम दास टंडन जी भी लाहौर आ गए| वह लाला लाजपत राय जी की स्मृति में बने “लोक सेवक मंडल” की पत्रिका “ पंजाब केसरी” चला रहे थे| आपकी कार्य कुशलता को उन्होंने जाना तथ परखा हुआ था| इस कारण इस पत्रिका के सम्पादन का कार्यभार भी आप ही के कन्धों पर डाल दिया|

जब क्रांतिकारी आन्दोलन के कार्य करते हुए सरदार भगतसिंह और उनके साथियों ने असेम्बली में बम फैंका तो इस समाचार का विस्तार से उल्लेख करते हुए सब से पूर्व आपने ही अपने नेत्रत्व में प्रकाशित हो रही इस पत्रिका “पंजाब केसरी” में प्रकाशित किया| लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन दिसंबर सन १९२९ ईस्वी में हुआ| इस अधिवेशन में ३१ दिसंबर सन् १९२९ को देश की पूर्ण स्वाधीनता के लिए प्रस्ताव पारित किया गया| इस अधिवेशन के अवसर पर आपने “पंजाब केसरी” के कार्य के लिए दिन रात पुरुषार्थ किया, अपने विश्राम की भी चिन्ता नहीं की| यह इस का ही परिणाम था कि आप पंजाब केसरी का दैनिक अंक निकाल पाने में सफल हुए और इस प्रकार आपके पुरुषार्थ ने इस हिंदी पत्र को उस समय के उर्दू पत्रों के समक्ष ला खडा किया| यह कार्य बहुत पहले ही हो जाता किन्तु इस देरी का कारण था कि आप विगत् दिनों नमक सत्याग्रह तथा सविनय अवज्ञा आन्दोलन में व्यस्त रहे| इन्हीं आन्दोलनों का ही परिणाम था कि आप अप्रैल १९३० में सहारनपुर तथा दिसंबर १९३० तक गौंडा की जेलों का स्वाद चखते रहे| इन जेलों का आनंद लेते हुए आपके संपर्क में अनेक देशभक्त भी आये|

पुरुषार्थी व्यक्ति कभी विश्राम की नहीं सोचता| अत: आपके पुरुषार्थ के कारण सन् १९३१ ईस्वी में लाहौर में “नवयुग प्रैस” की स्थापना की| इस प्रैस ने देश की स्वाधीनता के लिए अतुलनीय योग दिया| इसके माध्यम से प्रतिदिन अंग्रेज के कुकृत्यों की खुलकर पोल खोली जाने लगी| इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेज ने शीघ्र ही इस प्रैस की जमानत जब्त कर ली| आप अंग्रेज के इस विरोध से भी कहाँ विश्राम करने वाले थे अत: इस प्रैस के बंद होते ही आपने “आर्य प्रैस” के नाम से प्रैस का कार्य पुन: आरम्भ करते हुए अपनी गतिविधियों को निर्भ्रम तथा पूर्ववत् आरम्भ रखा| देश के विभाजन तक लाहौर में यह प्रैस वहां का प्रमुख प्रैस माना जाता था|

आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब का गठन सन् १८८६ में हो चुका था| पंजाब की इस आर्य प्रतिनिधि सभा के अंतर्गत पंजाब के अतिरिक्त दिल्ली,हिमाचल प्रदेश,उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत, सिंध, बिलोचिस्तान,तथा जम्मू काश्मीर तक के विस्तृत क्षेत्र आते थे| आप अपनी अद्वितीय योग्यता के कारण कई वर्षों तक इस सभा के मंत्री के रूप में कार्य करते रहे| जब भारत का विभाजन हुआ तो आपने वर्तमान हरियाणा प्रांत के अम्बाला छावनी को अपना केंद्र बनाया और यहाँ आकर रहने लगे| यहाँ पर सन् १९५६ ईस्वी में कन्या कालेज की आवश्यकता अनुभव कि गई | आपने न केवल इस आर्य कन्या कालेज की स्थापना में ही अपितु इस के विकास में भी भरपूर सहयोग दिया| इन्हीं दिनों आप विद्याविहार कुरुक्षेत्र के मंत्री स्वरूप भी कार्य करने लगे, आपने यह जिम्मेदारी लम्बे समय तक निभाई|

उस समय पंडित जी हिंदी प्रचार के लिए स्तम्भ के रूप में जाने जाते थे| अत: आप हिंदी साहित्य सम्मलेन पंजाब के मुख्य कार्यकर्ता थे| पांच वर्ष तक आप हिंदी साहित्य सम्मलेन पंजाब के मंत्री भी रहे| आपके मंत्रित्व काल में जालंधर, अमृतसर, गुजरांवाला, जम्मू, अबोहर,तथा लायलपुर आदि क्षेत्रों में हिन्दी साहित्य सम्मेलनों की खूब धूम मचा दी गई| देश के विभाजन के पश्चात् भी आपकी लगन में कुछ भी कमी न आई और इसी लगन से हिंदी के लिए कार्य करते रहे | यह इस का ही परिणाम था कि सन् १९५० से सन् १९५८ तक हिंदी साहित्य सम्मलेन पंजाब के प्रधान मंत्री के पद को भी आप सुशोभित करते रहे| इतना ही नहीं इसके पश्चात् सन् १९६२ तक इसके उप प्रधान के पद को भी सुशोभित किया| जुलाई १९६२ ईस्वी को आपका देहांत हुआ, इस समय तक भी आप हिंदी साहित्य सम्मलेन के उपप्रधान के पद पर आसीन थे अर्थात् मृत्यु पर्यंत आपने इस पद को सुशोभित किया|

इस प्रकार के प्रखर तेजस्वी, वर्चस्वी, कार्यशील, हिंदी के अनन्य सेवक, आर्य समाज की नींव के एक पत्थर पंडित भीमसेन विद्यालंकार जी ने अपने जीवन का एक एक तिल देकर माँ आर्य समाज और भारत माता की सेवा करते हुए स्वामी दयानंद के उपदेशों को दूर दूर तक पहुंचाते हुए देश को स्वाधीन करने में भी खूब योगदान दिया| स्वामी दयानंद जी कहा करते थे कि हिंदी ही इस देश की वह भाषा है जो पुरे देश को एक सूत्र में पिरो सकती है| स्वामी जी के आदेश को मानते हुए आप ने हिंदी को सर्वसाधारण की भाषा बनाया तथा जिस स्वदेशी राज्य को लाने के लिए स्वामी जी ने सर्वोत्तम विदेशी राज्य से की प्रतिस्पर्धा में निम्नतम स्वदेशी राज्य को उत्तम माना था, इसी को लाने के लिए आप ने न केवल अपनी लेखनी से निरंतर आग ही उगली अपितु कई बार जेल भी गए| आज पंडित जी हमरे मध्य नहीं हैं, यह हमारे लिये कभी न पूर्ण होने वाली क्षति है, इस क्षति को हम कभी पूर्ण नहीं कर सकते|

डॉ. अशोक आर्य
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