साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था मंतव्य द्वारा कहानीकार पंकज सुबीर के चर्चित उपन्यास अकाल में उत्सव पर चर्चा का आयोजन हिन्दी भवन के महादेवी वर्मा सभागार में रविवार शाम किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने की जबकि उपन्यास पर विशेष वक्तव्य व्यंग्यकार, आलोचक तथा दूसरी परंपरा के संपादक डॉ. सुशील सिद्धार्थ ने प्रदान किया।
उपन्यास पर बोलते हुए विशेष वक्ता डॉ. सुशील सिद्धार्थ ने कहा कि किसानों की आत्म हत्या को लेकर पंकज सुबीर ने बहुत जोखिम उठाते हुए यह उपन्यास लिखा है, जोखिम इसलिए क्योंकि ग्रामीण जीवन पर लिखना इन दिनों वैसे ही बहुत कम हो रहा है तथा कहा जा रहा है कि उस प्रकार के लेखन को पाठक नहीं मिलते हैं। पंकज सुबीर का यह उपन्यास उन सारे प्रश्नों के उत्तर तलाशता है जो किसानों को लेकर, खेती को लेकर एक संवेदनशील व्यक्ति के मन में उठते रहते हैं कि आखिर क्यों करता है किसान आत्म हत्या। उपन्यास का प्रभाव बहुत देर तक पाठक के मन पर बना रहता है। पूरे उपन्यास में व्यंग्य अंतर्निहित है बिना किसी शोर शराबे के।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ व्यंग्यकार पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि पंकज सुबीर का यह उपन्यास महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उस समय में आया है जब किसानों को लेकर बहुत सी बातें हो रही हैं। यह उपन्यास किसानों की समस्या की तह में जाने की कोशिश करता है। कुछ दृश्य इस उपन्यास के बहुत प्रभावी और सजीव बन पड़े हैं। अंतिम ज़ेवर का बिकना और उसका गलना, वह पूरा दृश्य ऐसा लगता है मानों पाठक सामने उस दृश्य को घटते हुए देख रहा है। अंतिम ज़ेवर के बहाने किसान की सारी यादों का एक के बाद ताज़ा होना, वह सब कुछ लेखक ने बहुत सुंदरता के साथ लिखा है। उपन्यास के नाम में ही व्यंग्य है अकाल में उत्सव। ज़ाहिर सी बात है कि उपन्यास में भी वह व्यंग्य पूरे कथानक में रचा बसा है।
इससे पूर्व उपन्यास पर प्रारंभिक वक्तव्य देते हुए राजेश मिश्रा ने उपन्यास पर चर्चा की। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत मंतव्य के सदस्यों ने किया। कार्यक्रम का संचालन समीर यादव ने किया। आभार मुकेश तिवारी ने व्यगक्त किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार उपस्थित थे।