Tuesday, November 19, 2024
spot_img
Homeराजनीतिबेदाग राजनीति के लिये संसद जागें

बेदाग राजनीति के लिये संसद जागें

आज सबकी आंखें एवं काल सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिदिन दिये जाने वाले निर्णयों पर लगे रहते हैं। उसकी सक्रियता यह अहसास कराती है कि वह राष्ट्र के अस्तित्व एवं अस्मिता के विपरीत जब भी और जहां भी कुछ होगा, वह उसे रोकेंगी। हमारे चुनाव एवं इन चुनावों में आपराधिक तत्वों का चुना जाना, देश का दुर्भाग्य है। राजनीति में आपराधिक तत्वों का वर्चस्व बढ़ना कैंसर की तरह है, जिसका इलाज होना जरूरी है। इस कैंसररूपी महामारी से मुक्ति मिलने पर ही हमारा लोकतंत्र पवित्र एवं सशक्त बन सकेगा। अपराधी एवं दागी नेताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला भारतीय लोकतंत्र के रिसते हुए जख्मों पर मरहम लगाने जैसा है। कोर्ट ने कहा है कि दागी सांसद, विधायक और नेता आरोप तय होने के बाद भी चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें खुद पर निर्धारित आरोप भी प्रचारित करने होंगे। लम्बे समय से दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर पाबंदी की मांग उठती रही है, पिछले दिनों याचिका दायर कर मांग भी की गई थी कि गंभीर अपराधों में, यानी जिनमें 5 साल से अधिक की सजा संभावित हो, यदि व्यक्ति के खिलाफ आरोप तय होता है तो उसे चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए। अदालत ने कहा कि केवल चार्जशीट के आधार पर जनप्रतिनिधियों पर कार्रवाई नहीं की जा सकती। लेकिन चुनाव लड़ने से पहले उम्मीदवारों को अपना आपराधिक रिकॉर्ड चुनाव आयोग के सामने घोषित करना होगा। कोर्ट ने सरकार और संसद के पाले में यह गेंद खिसका कर देश की राजनीति को बदलाव का अवसर भी दिया है, जिसे गंवाया नहीं जाना चाहिए।

राजनीति का अपराधीकरण जटिज समस्या है। अपराधियों का राजनीति में महिमामंडन नई दूषित संस्कृति को प्रतिष्ठापित कर रहा है, वह सर्वाधिक गंभीर मसला है। राजनीति की इन दूषित हवाओं ने देश की चेतना को प्रदूषित कर दिया है, सत्ता के गलियारों में दागी, अपराधी एवं स्वार्थी तत्वों की धमाचैकड़ी एवं घूसपैठ लोकतंत्र के सर्वोच्च मंच को दमघोंटू बना दिया है। यह समस्या स्वयं राजनीतिज्ञों और राजनैतिक दलों ने पैदा की है। अतः इसका समाधान भी इसी स्तर पर ढूंढना होगा और जो भी हल इस स्तर से निकलेगा वही स्थायी रूप से राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त कर पायेगा। अतः राजनीति की शुचिता यानी राजनेताओं के आचरण और चारित्रिक उत्थान-पतन की बहस अब किसी निर्णायक मोड़ पर पहुंचनी ही चाहिए। राजनेताओं या चुने हुए जन-प्रतिनिधियों को अपनी चारित्रिक शुचिता को प्राथमिकता देनी ही चाहिए। आपराधिक पृष्ठभूमि के जनप्रतिनिधियों को राष्ट्रहित में स्वयं ही चुनाव लड़ने से इंकार कर देना चाहिए। राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वे ऐसे लोगों को टिकट न दें। इस ज्वलंत एवं महत्वपूर्ण मुद्दे पर मंगलवार को सुप्रीम कोेर्ट में खासी पुरानी बहस और ऐसे ही पुराने मामले में महत्वपूर्ण फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ कहा, उसका यही निहितार्थ है। सुप्रीम कोर्ट ने दागी नेताओं के चुनावी भविष्य पर कोई सीधा फैसला भले न दिया हो, लेकिन यह कहकर कि इसके लिए संसद को खुद कानून बनाना चाहिए, राजनीति के शीर्ष लोगों को एक जिम्मेदारी का काम सौंप दिया है। अदालत ने माना कि महज चार्जशीट के आधार पर न तो जन-प्रतिनिधियों पर कोई कार्रवाई की जा सकती है, न उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है। यह तो संसद को कानून बनाकर तय करना होगा कि वह जन-प्रतिनिधियों के आपराधिक या भ्रष्टाचार के मामलों में क्या और कैसा रुख अपनाना चाहती है?

लोकतन्त्र में जब अपराधी प्रवृत्ति के लोग जनता का समर्थन पाने में सफल हो जाते हैं तो दोष मतदाताओं का नहीं बल्कि उस राजनैतिक माहौल का होता है जो राजनैतिक दल और अपराधी तत्व मिलकर विभिन्न आर्थिक-सामाजिक प्रभावों से पैदा करते हैं। एक जनप्रतिनिधि स्वयं में बहुत जिम्मेदार पद होता है एवं एक संस्था होता है, जो लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व कर उनकी आवाज बनता हैं। हर राष्ट्र का सर्वाेच्च मंच उस राष्ट्र की पार्लियामेंट होती है, जो पूरे राष्ट्र के लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा संचालित होती है, राष्ट्र-संचालन की रीति-नीति और नियम तय करती है, उनकी आवाज बनती है व उनके ही हित में कार्य करती है, इस सर्वोच्च मंच पर आपराधिक एवं दागी नेताओं का वर्चस्व होना विडम्बनापूर्ण है। राष्ट्र के व्यापक हितों के लिये गंभीर खतरा है। भ्रष्टाचार और राजनीति का अपराधीकरण भारतीय लोकतंत्र की नींव को खोखला कर रहा है। संसद को इस महामारी से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।

अब तो हमारे राष्ट्र की लोकसभा को ही निर्णायक भूमिका अदा करनी होगी। वह कानून बनाकर आपराधिक रिकॉर्ड वालों को जनप्रतिनिधि न बनने दे। उसका यही पवित्र दायित्व है तथा सभी प्रतिनिधि भगवान् और आत्मा की साक्षी से इस दायित्व को निष्ठा व ईमानदारी से निभाने की शपथ लें। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी राय स्पष्ट कर दी है कि उसका यह तय करना कि कौन चुनाव लड़े? कौन नहीं? जनतंत्र के मूल्यों पर आघात होगा। सबसे आदर्श स्थिति यही होगी कि मतदाताओं को इतना जागरूक बनाया जाए कि वे खुद ही आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों को नकार दें। लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक ऐसे लोगों को जनप्रतिनिधि न बनने देने की जिम्मेदारी संसद की है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने इस बार जो उपाय सुझाए हैं, उनकी सफल क्रियान्विति एवं उसका प्रभावी असर चुनाव आयोग ही सुनिश्चित कर सकता है। दरअसल भारत में चुनाव आयोग ऐसी स्वतन्त्र व संवैधानिक संस्था है जो इस देश की राजनैतिक संरचना के कानून सम्मत गठन की पूरी जिम्मेदारी लेती है और संसद द्वारा बनाये गये कानून ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951’ के तहत प्रत्याशियों की योग्यता व अयोग्यता तय करती है। चुनाव आयोग की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है, अतः उसे सशक्त, सक्रिय एवं जागरूक होने की जरूरत है।

राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में, अपनी साइटों पर और मीडिया में अपने उम्मीदवारों का आपराधिक रिकार्ड प्रस्तुत करने में कोताही बरतेंगे। इसलिये चुनाव आयोग को ही इन सभी कामों के लिए कुछ ठोस मानक तय करके उन पर अमल सुनिश्चित करना होगा। कई दागी नेता आज कानून-व्यवस्था के समूचे तंत्र को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। उनके खिलाफ मामले थाने पर ही निपटा दिए जाते हैं। किसी तरह वे अदालत पहुंच भी जाएं तो उनकी रफ्तार इतनी धीमी रखी जाती है कि आरोप तय होने से पहले ही आरोपी की सियासी पारी निपट जाती है। इन त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण स्थितियों पर नियंत्रण जरूरी है क्योंकि लम्बे समय से देख रहे हैं कि हमारे इस सर्वोच्च मंच की पवित्रता और गरिमा को अनदेखा किया जाता रहा है। आजादी के बाद सात दशकों में भी हम अपने आचरण, पवित्रता और चारित्रिक उज्ज्वलता को एक स्तर तक भी नहीं उठा सके। हमारी आबादी करीब चार गुना हो गई पर देश 500 सुयोग्य राजनेता भी आगे नहीं ला सका। नेता और नायक किसी कारखाने में पैदा करने की चीज नहीं हैं, इन्हें समाज में ही खोजना होता है। काबिलीयत और चरित्र वाले लोग बहुत हैं पर जातिवाद व कालाधन उन्हें आगे नहीं आने देता। राजनीतिक स्वार्थ, बाहुबल एवं वोटों की राजनीति बहुत बड़ी बाधा है। लोकसभा कुछ खम्भों पर टिकी एक सुन्दर ईमारत ही नहीं है, यह डेढ अरब जनता के दिलों की धड़कन है। उसमें नीति-निर्माता बनकर बैठने वाले हमारे प्रतिनिधि ईमानदार, चरित्रनिष्ठ एवं बेदाग छवि के नहीं होंगे तो समूचा राष्ट्र उनके दागों से प्रभावित होगा। इन स्थितियों में इस राष्ट्र की आम जनता सही और गलत, नैतिक और अनैतिक के बीच अन्तर करना ही छोड़ देगी। राष्ट्र में जब राष्ट्रीय, नैतिक एवं चारित्रिक मूल्य कमजोर हो जाते हैं और सिर्फ निजी हैसियत को ऊँचा करना ही महत्त्वपूर्ण हो जाता है तो वह राष्ट्र निश्चित रूप से कमजोर हो जाता है।

प्रेषकः
(ललित गर्ग)
बी-380, प्रथम तल, निर्माण विहार, दिल्ली-110092
22727486, 9811051133

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार