साल था 1960 । मुम्बई शहर। सत्यप्रकाश माथुर नामक इंजीनियर का विवाह माधुरी माथुर से हुआ और दोनों मुम्बई में बस गये। सत्यप्रकाश पेशे से एक इंजीनियर थे, माधुरी घर का सारा काम काज बखूबी संभाल लेती थी। वह दौर था जब रसोई घर मे विद्युत उपकरणों के नाम पर कुछ भी नहीं होता था। ना फ्रिज ना माइक्रोवेव और ना मिक्सी।
मिक्सी। एक ऐसा उपकरण जिसकी आवाज़ आज पूरे घर को हिला देती है। यह जानना सुखद रहा के मिक्सी का अविष्कार एक हिंदुस्तानी ने किया था और यह जानना और भी सुखद रहा के मिक्सी का आविष्कार एक पति ने अपनी पत्नी की दिनचर्या को सरल बनाने के लिये किया था।
एक रोज़ सत्यप्रकाश माथुर ने अपनी पत्नी को हाथ से मसाला पीसते देखा। बाजुओं का जोर लगा कर मसाला पीसती माधुरी पसीने में तरबतर हो चुकी थी। पेशे से इंजीनियर सत्यप्रकाश ने पता किया के क्या मार्किट में कोई ऐसा विद्युत उपकरण है जो मसाले पीसने का काम कर सके। उन्हें पता चला के एक बारून नामक एक जर्मन कम्पनी है जो हिंदुस्तान में एक ब्लेंडर बेचती है जिससे मसाला पीसने का काम सरल हो सकता है। सत्यप्रकाश ने अपनी गाढ़ी कमाई से महंगा ब्लेंडर खरीदा और धर्मपत्नी को भेंट कर दिया।
दिक्कत यह हो गयी कि ब्लेंडर था जर्मन और मसाले थे हिंदुस्तानी। कुछ दिन बेचारा जर्मन ब्लेंडर हिन्दुतानी मसालों का बोझ सहता रहा और फिर एक दिन उसमें से एक चिंगारी निकली और उसकी मोटर का राम नाम सत्य हो गया।
दूसरी दिक्कत यह हो गयी कि धर्मपत्नी को ब्लेंडर की आदत पड़ गयी और हाथ का काम उन्हें अब मुश्किल लगने लगा।
सत्यप्रकाश जी मोटर ठीक करवाने निकले तो मालूम हुआ के बारून कम्पनी का कोई सर्विस सेंटर हिंदुस्तान में मौजूद ही नहीं है।
दूजी ओर माधुरी माथुर दोबारा ब्लेंडर का काम हाथ से करने लगी और सत्यप्रकाश माथुर को यह बात हज़म नहीं हो रही थी। पेशे से एक इंजीनियर थे और सवाल पत्नी को हो रही असुविधा का था।
काफी मंथन के पश्चात सत्यप्रकाश जी ने एक शाम धर्मपत्नी से कहा के मैं तुम्हारे लिये एक ऐसा उपकरण बनाऊंगा जो तुम्हारा हर काम आसान कर देगा। पत्नी को लगा कि यह पति का प्यार है जो ऐसा कह रहे हैं परंतु सत्यप्रकाश कुछ विशेष करने का निर्णय ले चुके थे।
नाज़ुक से जर्मन ब्लेंडर को छोड़ सत्यप्रकाश ने एक ऐसा उपकरण बनाने की सोची जो भारतीय रसोई के हिसाब से अनुकूल हो। सत्यप्रकाश जोड़तोड़ में जुट गये। कलपुर्जे इक्कठे किये और एक उपकरण बना डाला जिसमे एक शक्तिशाली मोटर लगी हुई थी और भेंटस्वरूप यह पुनः अपनी धर्मपत्नी को भेंट कर दिया।
माधुरी ने उपकरण को इस्तेमाल किया तो आश्चर्यचकित रह गयी। उपकरण सौ फीसदी हिंदुस्तानी रसोई के हिसाब से उपयुक्त था। पत्नी के प्यार में बनी मिक्सी ने एक “बिज़नेस आईडिया” को जन्म दिया। माधुरी ने पतिदेव से कहा के यह उपकरण राष्ट्र की रसोई में क्रांति ला देगा और पत्नी के आग्रह पर इंजीनियर बाबू ने इस उपकरण को विधिवत बनाने की तैयारी शुरू कर दी।
1970 तक सत्यप्रकाश माथुर ने मिक्सी की प्रोडक्शन प्रारंभ कर दी और माधुरी ने इस मिक्सी के लिये एक बेहतरीन नाम भी सुझा दिया।
नाम था : सुमीत
#सुमीत यानी अच्छा मित्र !
1970 के दशक में जब सुमीत मिक्सी जब मार्किट में उतरी तो कमाल का रिस्पॉन्स मिला। हर रोज़ नए ऑर्डर मिलने लगे और प्रोडक्शन बढ़ने लगी। श्रीमती माथुर भी अब श्रीमान जी का हाथ बंटाने लगी और व्यापार दिन प्रतिदिन बढ़ता गया। 1970 का दशक समाप्त होते होते प्रति माह 50,000 से अधिक मिक्सी बिकने लगी। दोनों पति पत्नी ने मिल कर ब्रैंड को इतना विराट बना दिया के मिक्सी का दूसरा नाम ही “सुमीत” बन गया।
एक पति ने अपनी पत्नी का जीवन सरल करने के लिये जिस उपकरण का आविष्कार किया वह आज पांच दशकों बाद भी हर गृहिणी इस्तेमाल कर रही है। उल्लेखनीय है कि हर साक्षात्कार में श्री माथुर अपनी कामयाबी का सारा श्रेय अपनी पत्नी अपनी प्रेयसी को देते रहे।