देश की आजादी को पुन: प्राप्त करने के लिए देश के नौजवानों ने खूब संघर्ष किया, चाहे वह ग्रामीण आँचल के युवक हों, या नगरीय क्षेत्रों के या फिर आदिवासी अनपढ़ लोग ही क्यों न हों? इस प्रकार के नौजवानों में एक आदिवासी नौजवान् था जो मुंडा नामक जाति का था और उसका नाम बिरसा था, इस कारण उसे बिरसा मुंडा के नाम से पुकारा जाता था|
यह युवक अपने सर पर पगड़ी बंधा करता था और पगड़ी बांध कर लगातार एक गाँव से दूसरे गाँव में जा जा कर वहां के लोगों विशेष रूप से नौजवान् युवकों से मिलकर गप्प शप्प लगाकर दूसरे गाँव की और रवाना हो जाता| उसकी इन गप्पों के माध्यम से वह नौजवानों को देश की आजादी के लिए तैयार किया करता था किन्तु लोगों को पता ही नहीं था कि यह मूर्ख सा दिखने वाला युवक इधर उधर घुमते हुए विभिन्न स्थानों के लोगों से क्या बात करता है? उसे एक साधारण सा व्यक्ति समझ कर अंग्रेज की पुलिस को भी कभी उस पर किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं हुआ| वह नहीं जानते थे कि जो युवक इस मूर्ख सा दिखने वाले युवक को मिल रहे थे, उससे बातचीत कर रहे थे, एक दिन वह युवक ही देश की आजादी के लिए विस्फोट करेंगे|
बिरसा मुंडा आरम्भ से ही प्रभु में अटल विशवास रखने वाला था तथा सदा ईश्वर के ध्यान में ही लगा रहता था| ईश भक्ति से उसे कुछ आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त हो गईं थीं और इस अवस्था में वाह पहुँच चुका था कि उसके मुख से जो भी बात निकलती, उस बात को सत्य में बदलते देर ही नहीं लगती थी| यहां तक कि वे यदि किसी रोगी के सर पर हाथ रखता तो ईश कृपा से वह तत्काल ठीक हो जाता| इस कारण लोग उसे भगवान् के रूप में देखने लगे और उसका नाम बिरसा मुंडा के स्थान पर बिरसा भगवान् पड गया|
बिरसा ने छोटा नागपुर से लेकर सिंहभूम तक प्रत्येक गाव् का निरिक्षण किया था और वह जान गया था कि किस प्रकार वहां के आदिवासी लोगों को अंग्रेज सरकार किस प्रकार से कुचल रही थी| उसने अपने ही परिवार से भूमि छिनते हुए देखा था और अपनी जाति के लोगों को भय से बचने के लिए ईसाई होते हुए भी देखा था| इतना ही नहीं उसने यह भी देखा था कि किस प्रकार से इस क्षेत्र की युवतियों को महाजनों के दलाल उनकी बस्तियों से उठाकर ले जाते थे और इन सब किये जा रहे अनाचारो तथा अत्याचारों के विरोध में ही उसने आवाज उठाई थी| इस अवस्था में ही एक चमत्कार हो जाता है| वह यह कि एक दिन बिरसा के कुल देवता सिंह बोंगा थे और यह देवता उसे स्वप्न में आकर मिले तथा उन्हें कुछ आदेश दिए| कुल देवता ने कहा “ उठो! जागो! इस आततायी शासन का अंत कर दो| तुम्हारा जन्म ही इसीलिए हुआ है| मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ| तुन्हें अवश्य ही सफलता मिलेगी|”
इस सब का परिणाम यह हुआ कि बिरसा मुंडा ने अंग्रेजी सत्ता का भारत से अंत करने का संकल्प ले लिया| इस उद्देश्य को ही सामने रखते हुए वह गाँव गाँव घूम रहे थे और बातचीत के माध्यम से वह युवकों को स्वाधीनता के लिए लड़ने को तैयार कर रहे थे| इस प्रकार घूमते हुए बिरसा ने ग्रामीण आदिवासी युवकों का एक अच्छा संगठन तैयार कर लिया|
यह सन् १८९५ की रात के बारह बजे की बात है कि इस समय आकाश काली घटाओं से घिरा हुआ था| इस समय ही उलुहातु गाँव के वृक्षों के झुण्ड के नीचे एक गुप्त सभा बुलाई| इस सभा में इस क्षेत्र के कुछ चुने हुए नौजवान बुलाये गए थे| इन सब को संबोधित करते हुए बिरसा ने अपने पिछले इतिहास तथा इसमें हुए बलिदानियों का स्मरण करवाया तथा कहा कि आज जो अकाल के कारण तीन करोड़ के लगभग लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं, उसका कारण भी अंग्रेज की गंदी वयवस्था ही थी| इस प्रकार हम कब तक मरते रहेंगे? उन्होंने अंग्रेज को उखाड़ फैंकने का संकल्प लेते हुए सब को आह्वान् किया कि सब मिलकर इस कार्य केलिये शस्त्र उठायें|
यह सब चल ही रहा था कि अकस्मात एक स्वर गूंज उठा, जिसमें इन सबको सावधान ही नहीं किया अपितु चेतावनी भी दी की उन्हें घेरा जा चुका है और जो भी भागने का यत्न करेगा, मारा जावेगा| समर्पण में ही भलाई है| गुप्तचर की सूचना का ही यह परिणाम था| अब बिरसा के पास आत्मसमर्पण के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं बचा था| साथियों सहित गिरफ्तार हो गए| सरकार के पास कोई प्रमाण तो था नहीं,फिर भी उन्हें जेल भेज दिया गया ओर दो वर्षों के पश्चात् मुक्त भी कर दिया गया| इस जेल से इन नौजवानों में अंग्रेज का विरोध करने के लिए नए रक्त का संचार होने लगा था| सब ने मिलकर अपने अपने क्षेत्र के युवको को आजादी की लडाई के लिए तैयार किया| इनके सैनिक संगठन भी बना दिए गए| इन्होंने बिरसा के नेतृत्व में चार मांगों को अपने संघर्ष के लिए निर्धारित किया|
इन मांगों के साथ संघर्ष करना था किन्तु इसके लिए जनचेतना भी आवश्यक थी अत: बिरसा ने यह कार्य भी करना आरम्भ कर दिया| विगत अनुभवों का लाभ उठाते हुए अपने सब संगठन कर्ताओं को क्षेत्र भर में बिखेर दिया गया| शीघ्र ही इन्होंने रांची तथा सिंहभूम जिलों के आदिवासी क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली| लोगों में अंग्रेज के विरोध में इस प्रकार का रोष पैदा हुआ कि वह स्थान स्थान जमींदारों से उलझने लगे तथा भयभीत जमींदार अपने इलाकों से भागने लगे| इस पर १८९५ में लेफ्टीनेंट गवर्नर ने अंग्रेज सरकार को सचेत भी कर दिया| इस प्रकार सन् १९०० में बिरसा मुंडा ने अंग्रेज सरकार के विरोध में युद्ध की दुन्दुभी बजा दी तथा अंग्रेज के कानून को मानने से इन्कार कर दिया|
परिणाम स्वरूप रांची के उपायुक्त ने रकाब के पास जाकर आत्मसमर्पण करने को कहा किन्तु बिरसा ने प्रत्युत्तर में कहा कि अंग्रेजो तुम्हारा हमारे देश में कोई काम नहीं| यह क्षेत्र सदियों से हमारा रहा है| आप लोग इसे खाली करके वापिस लौट जाओ| इस उत्तर को सुनकर उपायुक्त आग बबूला हो गया| अत: एक विशाल सेना भारी बारूद सहित इस आन्दोलन को कुचलने के लिए भेज दी गई| दोबारी पहाड़ी के दोनों और दोनों सेनाओं में युद्ध आरम्भ हो गया| बिरसा का दल पुराने तीर, तलवार, बरछी , भाले आदि से लड़ रहे थे जबकि दूसरी और भारी गोला बारूद| इस अवस्था में यह कहाँ तक टिक पाते| परिणाम स्वरूप ४०० मुण्डा मारे गए और ३०० गिरफ्तार कर लिए गए| इसमें से बिरसा भाग पाने मे सफल हुआ किन्तु ३ फरवरी १९०० को अंग्रेज ने उसे पकड पाने में सफलाता प्राप्त की| इस प्रकार गरीबों के साथी बिरसा मुंडा ९ जून १९०० को अंग्रेज की जेल में बलिदान हो गए| सरकार ने तो बताया की उसे हैजा होने से खून की उल्टियां आ रहीं थी किन्तु लोग इस को नहीं मानते उनका कहना है कि उसे विष दिया गया था|
बिरसा मुंडा के बलिदान ने भी आग में घी का कार्य किया और यह आन्दोलन बंद होने के स्थान पर और भी तेज हो गया| इस कारण छोटा नागपुर के कमिश्नर फोबर्स ने खुटकट्टी की सिफारिश की परिणाम स्वरूप १९०२ में गुमला और १९०५ में खूंटी अनुमंडल का गठन किया गया ताकि मुंडा लोगों की समस्याओं को निकट से समझा जा सके| इस प्रकार सरकार ने मुंडाओं की पुरानी व्यवस्था को बहाल कर दिया तथा ११ नवम्बर १९०८ को बंगाल काश्तकारी कानून के स्थान पर छोटा नागपुर काश्तकारी कानून भी बना दिया गया, जिसके अन्तर्गत अब उपात्युक्त को ही जनजातीय संरक्षण का अधिआकर दे दिया गया| इस प्रकार इन लोगों की परम्परागत जमीनों के हस्तांतरण की जिम्मेवारी भी उपायुक्त को मिल गई|
इस प्रकार बिरसा मुंडा आन्दोलन का यह परिणाम निकला की मुंडा लोगों को परेशान करना और उनकी जमीने छीनने का कार्य भविष्य के लिए रुक गया| इस परकर इस क्षेत्र के मुंडा जाति के लोग सुख शान्ति से रहने लगे|
डॅा. अशोक आर्य
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