जीवन की डगर बड़ी विचित्र होती है जो कभी सीधे नहीं चलती। न जाने जीवन के किस मोड़ पर जीवन कौन सी करवट ले लें। ऐसा ही हुआ कवियित्री कुसुम जोशी के साथ जिन्होंने कविता करते – करते अचानक से काव्य से धर्म क्षेत्र में अध्यात्म की सरिता में गौते लगा कर असीम आनंद की अनुभूति की और जिसे वह विनम्रता से हनुमान जी का बड़ा भजन समझने का आग्रह करती हैं, हनुमान चरित्र महाकाव्य की रचना की।
मुंबई निवासी बन गई कुसुम ने फरवरी 2010 में हरिद्वार कुंभ से लौट कर शुभ मूहर्त में प्रतिदिन गणेश जी की साक्षी में हनुमान चरित्र का लेखन शुरू कर 2013 में प्रयाग कुंभ के साथ समापन किया। पांच खंडों में विभाजित इस काव्य चरित्र में बाल खंड, किष्किंधा खंड, लंका खंड, अप्रतिम खंड और अश्व मेघाश्व खंड की रचना की है। कुल मिला कर इन खंडों में हनुमान जी के छोटे – बड़े 57 प्रसंगों पर काव्य रचा गया है। हनुमान जी की इस कथा शैली में दोहे, मत्रिक छंद, सवैया छंद, चौपाई और कुंडलियों का समावेश किया गया है।
हनुमान भक्ति से ओतप्रोत जगह – जगह इनकी महिमा का गुणगान करती है। हनुमान चरित्र लिखने के पीछे की कहानी बताते हुए कुसुम जोशी बताती हैं सांसारिकता और कवि सम्मेलनों से अचानक विरक्ति होने लगी और धर्म – आध्यात्म की ओर मन प्रवृत्त होने लगा। एक दिन अपने पति प.जगदीशचंद्र जोशी को मन की बात बताई तो उन्होंने सलाह दी, तुम तो हनुमान भक्त हो क्यों नहीं हनुमान चरित्र की रचना करो जेसे तुलसी दास जी ने रामचरित्र की रचना की थी। वह बताती हैं मै तो महान तुलसीदास जी की अंश मात्र भी नहीं परंतु पति का सुझाव पसंद आया क्योंकि मैं पहले से ही राम को अपना आदर्श और हनुमान जी को बड़ा भाई मानती हूं। हर रक्षाबंधन को हनुमान जी को राखी बांधती हूं और भाई दूज पर तिलक लगा कर बहन का दायित्व निभाती हूं।
वह बताती हैं कुछ समय बाद हरिद्वार का कुंभ स्नान करने गए और वहीं से लिखने का मन बना कर हनुमान जी का सारा सामान ले आए। घर आ कर लिखना शुरू किया और तीन साल में यह संपूर्ण हो गया। मैं इतनी खुश थी कि पथ प्रदर्शक पति के जोशी गोत्र को अपने नाम से जोड़ कर अपना नाम कुसुम जगदीश जोशी रख लिया। वह कहती हैं मैंने कुछ नहीं किया यह सब विधि का विधान है जो हनुमान जी की कृपा से संपन्न हुआ। अब अधिकांश समय इन्हीं की कथा पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में व्यतीत कर धर्म और अध्यात्म का आनंद प्राप्त करती हैं।
फिल्मों में भी : कविताओं के शौक का लाभ फिल्म निर्माण क्षेत्र को भी मिला। हिंदी और राजस्थानी में गीत लेखन से वे फिल्म जगत में भी आगे आई। आपने राजस्थानी फिल्म बालम थारी चुंदड़ी में गीत – संगीत एवम निर्माण और फिल्म गौरी में गीत लेखन तथा हिंदी फिल्म जय मां करवा चौथ में गीत – संगीत दिया। बालम थारी चूंदड़ी 1996 में रिलीज हुई।
अपने परिवार के बारे में बताते हुए कहती हैं कि हमारी फिल्म से प्रेरित हो कर बेटे देदीप्य जोशी ने भी फिल्म जगत में प्रवेश का निर्णय किया और लेखक – निर्देशक के रूप में इन्होंने अपनी पहली टेलीविजन श्रृंखला निर्देशित करने से पहले सिनेमा और टेलीविजन के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया। शीघ्र ही फिल्म निर्माण करना शुरू कर दिया। मुख्य सहायक के रूप में 2005 में इंडो-फ्रेंच फीचर फिल्म “दर्पण के पीछे” (ले पेटिट पिंट्रे डू राजस्थान) नाम से शूट की गई। वर्ष 2015 में “सांकल ” (हथकड़ी) नाम से अपनी पहली फीचर फिल्म का निर्देशन किया और 48 अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में चयन किया और शान-ए-अवधइंटरनेशनल-2015 में एक सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार सहित 15 पुरस्कार जीते और अंत में भारतीय बॉक्स ऑफिस पर दिनांक 28 नवंबर 2017 को रिलीज हुई।
पिछले दिनों पूर्व रिलीज हुई फिल्म कांचली का निर्देशन इन्होंने ही किया है। केप टाउन में “भूख.. लाइफ इज नॉट ए स्टोरी” नामक उनकी लघु फिल्म के लिए “सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म पुरस्कार” प्रदान किया गया। पिछले कुछ वर्षों में इन्होंने 7 टीवी सीरियल, 35 वृत्तचित्र, 275 विज्ञापन फिल्में, 3 लघु फिल्मों ”आघाट” (टूटा हुआ), भूख और चल जा बापू का निर्माण किया। ये 2018 में हुई। फिल्मों में प्रस्तुतिकरण मेरे पति जगदीश जोशी ने किया है।
साहित्यिक योगदान : कुसुम जोशी की हनुमान चरित्र और फिल्मी गीत लेखन की यात्रा को इनकी साहित्यिक यात्रा से अलग कर नहीं देखा जा सकता है। अबोध अवस्था में विवाह के पश्चात आपको कविता लिखने का शोक लगा और जैसे – जैसे मंच मिला काव्य गोष्ठियों में भाग लेने की गति बढ़ती गई। कवि सम्मेलनों में बुलाया जाने लगा। भारत भर में अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों और विदेशों में बड़े पैमाने पर मिले काव्य पाठ के मौके का लाभ देशाटन के रूप में भी प्राप्त हुआ। आपने करीब 40 वर्षो तक काव्य की सरिता प्रवाहित कर साहित्य के क्षेत्र में अपना खास मुकाम बनाया।
आपने हिंदी और राजस्थानी में कविता साहित्य की रचना की है। आपने हिंदी में गीत बंजारे हो गए, *मंच मसाला*, *मन मरीचिका” और राजस्थानी में *मनवारा के पाण* एवम ऊदों बायरो पुस्तकों की रचना की है। आपके *बोल प्राणी बोल*, *महावीराय बोल*, *ग़ज़ाला* एवम *भजन कलश* के एलबम भी लोकप्रिय हैं। आपका जन्म राजस्थान के बारां शहर में 9 सितंबर 1954 को हुआ। काफी समय तक आप का कर्म क्षेत्र कोटा शहर रहा। आप 1986 में कोटा से मुंबई शिफ्ट हो गई। आपको समय – समय पर अनेक पुरुस्कारों से नवाजा गया।
( आपकी कविताओं की बानगी फोटो चित्रों में देखें )।
संपर्क सूत्र मो.+91 98699 86010.
( डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार हैं)