इंदौर में आयोजित सत्रहवां प्रवासी भारतीय दिवस तारीख 9 जनवरी के महत्व को दर्शाता है. 9 जनवरी महज कैलेंडर की तारीख नहीं बल्कि इतिहास बदलने की तारीख है जिसका श्रेय महात्मा गांधी को जाता है. आज ही के दिन 1915 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ भारत वापस लौटे थे. 09 जनवरी 1915 की सुबह बंबई (अब मुंबई) के अपोलो बंदरगाह पर गांधी जी और कस्तूरबा पहुंचे तो वहां मौजूद हजारों कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने शानदार तौर तरीके से उनका इस्तकबाल किया था.
अब महात्मा गांधी के वापसी के दिन को हर साल भारत में प्रवासी दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन हर साल भारत के विकास में प्रवासी भारतीय समुदाय के योगदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है. महात्मा गांधी ने साल 1893 में 24 साल की उम्र में वकालत के लिए साउथ अफ्रीका का रुख किया था. वह वहां 21 साल तक मुकीम रहे. इस दौरान उनकी शोहरत एक बड़े और तजरुबेकार वकील के तौर पर हो चुकी थी. इस अर्से में गांधी जी ने मजलूमों और बेसहारों के लिए कई लड़ाईयां लड़ीं और जीतीं भी. इस दौरान इसकी चर्चा भारत में भी हुई और यहां के लोगों की गांधी जी से उम्मीदें बंधने लगीं. अफ्रीका में गांधी जी के सियासी और अखलाकी फिक्रों की तरक्की हुई थी. साउथ अफ्रीका में अपनी चमड़ी के रंग की वजह से उन्हें बहुत भेदभाव झेलना पड़ा. उन्होंने वहां भारतीयों और अश्वेतों के साथ होने वाले भेदभावों के खिलाफ आवाज उठाई और उनके हक के लिए कई लड़ाइयां लड़ीं और इनमें गाधी जी को कामयाबी भी मिली.
यह तारीख अंतत: दुनिया भर में प्रवासी भारतीयों और औपनिवेशिक शासन के तहत लोगों के लिए और भारत के सफल स्वतंत्रता संघर्ष के लिए प्रेरणा बने। प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन आयोजित करने का प्रमुख उद्देश्य भी प्रवासी भारतीय समुदाय की उपलब्धियों को दुनिया के सामने लाना है ताकि दुनिया को उनकी ताकत का अहसास हो सके। देश के विकास में भारतवंशियों का योगदान अविस्मरणीय है। वर्ष 2015 के बाद से हर दो साल में एक बार प्रवासी भारतीय दिवस देश में मनाया जा रहा है।
प्रवासी भारतीय दिवस मनाने का निर्णय एल.एम. सिंघवी की अध्यक्षता में भारत सरकार द्वारा स्थापित भारतीय डायस्पोरा पर उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के अनुसार लिया गया था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 9 जनवरी 2002 को प्रवासी भारतीय दिवस को व्यापक स्तर पर मनाने की घोषणा की। इस आयोजन ने प्रवासी भारतीयों की भारत के प्रति सोच को सही मायनों में बदलने का काम किया है। साथ ही इसने प्रवासी भारतीयों को देशवासियों से जुडऩे का एक अवसर उपलब्ध करवाया है। इसके माध्यम से दुनिया भर में फैले अप्रवासी भारतीयों का बड़ा नेटवर्क बनाने में भी मदद मिली है, जिससे भारतीय अर्थ-व्यवस्था को भी एक गति मिली है। हमारे देश की युवा पीढ़ी को भी जहाँ इसके माध्यम से विदेशों में बसे अप्रवासियों से जुडऩे में मदद मिली है वहीं विदेशों में रह रहे प्रवासियों के माध्यम से देश में निवेश के अवसरों को बढ़ाने में सहयोग मिल रहा है।
तत्कालीन प्रधानमंत्री की पहल को आगे बढ़ाने तथा प्रवासी भारतीय समुदाय को भारत से जोडऩे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका उल्लेखनीय रही है। वह अपने विदेशी दौरों में जिस भी देश में जाते हैं वहाँ के प्रवासी भारतीयों के बीच भारत की एक अलग पहचान लेकर जाते हैं। इससे उनमें अपनेपन की भावना का अहसास होता है और प्रवासी भारतीय भारत की ओर आकर्षित होते हैं। विश्व में विदेशों में जाने वाले प्रवासियों की संख्या के संदर्भ में भारत शीर्ष पर है। भारत सरकार ‘ब्रेन-ड्रेन’ को ‘ब्रेन-गेन’ में बदलने के लिये तत्परता के साथ काम कर रही है। आर्थिक अवसरों की तलाश के लिये सरकार इनको अपने देश की जड़ों से जोडऩे का प्रयास कर रही है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के संबोधन में प्रवासी जिस उत्साह के साथ जुटते हैं वह इस बात को साबित करता है कि प्रवासी प्रधानमंत्री के नेतृत्व को उम्मीदों भरी नजऱों से देखते हैं और उनसे उनको बड़ी उम्मीदें हैं। भारतीय प्रवासियों की तादाद दुनिया भर में फैली है। आज दुनिया के कई देशों में भारतीय मूल के लोग रह रहे हैं जो विभिन्न कार्यों में संलग्न हैं। यदि भारत सरकार और प्रवासी भारतीयों के बीच आपसी समन्वय और विश्वास और अधिक बढ़ सके तो इससे दोनों को लाभ होगा। भारत की विकास यात्रा में प्रवासी भारतीय भी हमारे साथ हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रवासी भारतीय दिवस मनाने के प्रति जो उद्देश्य निहित हैं उनमें अप्रवासी भारतीयों की भारत के प्रति सोच, उनकी भावनाओं की अभिव्यक्ति के साथ ही उनकी अपने देशवासियों के साथ सकारात्मक बातचीत के लिए एक मंच उपलब्ध कराना प्रमुख है. इसके साथ ही भारतवासियों को अप्रवासी बंधुओं की उपलब्धियों के बारे में बताना तथा अप्रवासियों को देशवासियों की उनसे अपेक्षाओं से अवगत कराना, विश्व के 110 देशों में अप्रवासी भारतीयों का एक नेटवर्क बनाना, भारत का दूसरे देशों से बनने वाले मधुर संबंध में अप्रवासियों की भूमिका के बारे में आम लोगों को बताना, भारत की युवा पीढ़ी को अप्रवासी भाईयों से जोडऩा तथा भारतीय श्रमजीवियों को विदेश में किस तरह की कठिनाइयों का सामना करना होता है, के बारे में विचार-विमर्श करना।
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा डायस्पोरा है। प्रवासी भारतीय समुदाय अनुमानत: 2.5 करोड़ से अधिक है। जो विश्व के हर बड़े क्षेत्र में फैले हुए हैं। फिर भी किसी एक महान् भारतीय प्रवासी समुदाय की बात नहीं की जा सकती। प्रवासी भारतीय समुदाय सैकड़ों वर्षों में हुए उत्प्रवास का परिणाम है और इसके पीछे विभिन्न कारण रहे हैं, जैसे- वाणिज्यवाद, उपनिवेशवाद और वैश्वीकरण। इसके शुरू के अनुभवों में कोशिशों, दु:ख-तकलीफों और दृढ़ निश्चय तथा कड़ी मेहनत के फलस्वरूप सफलता का आख्यान है। 20वीं शताब्दी के पिछले तीन दशकों के उत्प्रवास का स्वरूप बदलने लगा है और ‘नया प्रवासी समुदाय’ उभरा है जिसमें उच्च कौशल प्राप्त व्यावसायिक पश्चिमी देशों की ओर तथा अकुशल,अर्धकुशल कामगार खाड़ी, पश्चिम और दक्षिण पूर्व एशिया की और ठेके पर काम करने जा रहे हैं।
प्रवासी भारतीय समुदाय एक विविध विजातीय और मिलनसार वैश्विक समुदाय है जो विभिन्न धर्मों, भाषाओं, संस्कृतियों और मान्यताओं का प्रतिनिधित्व करता है। एक आम सूत्र जो इन्हें आपस में बांधे हुए है, वह है भारत और इसके आंतरिक मूल्यों का विचार। प्रवासी भारतीयों में भारतीय मूल के लोग और अप्रवासी भारतीय शामिल हैं और ये विश्व में सबसे शिक्षित और सफल समुदायों में आते हैं। विश्व के हर कोने में, प्रवासी भारतीय समुदाय को इसकी कड़ी मेहनत, अनुशासन, हस्तक्षेप न करने और स्थानीय समुदाय के साथ सफलतापूर्वक तालमेल बनाये रखने के कारण जाना जाता है। प्रवासी भारतीयों ने अपने आवास के देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है और स्वयं में ज्ञान और नवीनता के अनेक उपायों का समावेश किया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं शोध पत्रिका ‘समागम’ के संपादक हैं)