राजनांदगांव। प्रख्यात शिक्षाविद और धुरंधर वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर यशपाल सही अर्थ में भारतीय वैज्ञानिक सोच के टर्निंग प्वाइंट थे। बहुविषयक चिंतन से जुड़े दिग्विजय कालेज के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ.चंद्रकुमार जैन ने उनके अवसान को एक युग का अंत मात्र नहीं, आने वाले युगों की भी एक अपूरणीय क्षति निरूपित किया है।
डॉ. जैन ने कहा कि प्रोफ़ेसर यशपाल ने विज्ञान को जन-मन का विषय बनाने और वैज्ञानिक चिंतन को धरातल तक लाने में बड़ी अहम भूमिका निभायी। उन्हें इसलिए भी याद किया जायेगा कि वे नौनिहालों से भी जब विज्ञान की बात करते थे, तक उनके स्तर तक पहुंचकर विज्ञान के रहस्यों को उनके भीतर तक पहुंचा देते थे।
डॉ. जैन ने कहा कि प्रोफ़ेसर यशपाल दिमागों में सवालों को ज़िंदा रखने के प्रबल पक्षधर थे। उन्हें सबसे ज्यादा खुशी इस बात से मिलती थी कि लोग उनसे सवाल करें और उन्होंने इसके लिए अपने संचार तंत्र खुले रखे थे। कोई भी उनसे सवाल पूछ सकता था और वे सभी को बहुत प्यार से जवाब देते थे, चाहे वो सवाल कितना ही बेतुका क्यों न हो। वे पूरी तरह से डूबकर लोगों के सवालों के जवाब दिया करते थे। डॉ. जैन ने कहा कि उन्हें भारत के इतिहास में इस देश को वैज्ञानिक और अकादमिक चिंतन के स्तर पर जड़ से सींचने वाले महान व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाएगा। कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक संस्थानों के कर्णधार होने के बावजूद उनके व्यक्तित्व में गजब की सादगी थी।
डॉ. जैन ने नई पीढ़ी से प्रेरणा लेने का आह्वान करते हुए कहा कि प्रोफेसर यशपाल में जीवन के अंतिम समय तक बच्चों वाला उत्साह था। हिम्मत उनकी अलग पहचान थी। उत्साह उनसे कभी जुदा नहीं रहा। मंगलयान के साथ उनके एहसास भी उड़ चले थे। देश को जोड़ने के लिए उन्होंने विज्ञान को व्यावहारिक बनाया। उनके जैसी उदारता विचारों के स्तर पर बड़े लोगों में अक्सर देखी नहीं जाती है। वे सबके लिए उपलब्ध रहे। अपने विचार किसी पर आरोपित नहीं किये। प्रोफेसर यशपाल अपने निजी दायरे में, अपने विद्यार्थियों के साथ, अपने घर के अंदर हर जगह सहज रहते थे। वे चाहते थे कि शिक्षा में भी लोकतांत्रिक चरित्र को बढ़ावा मिले। उन्होंने अपनी सोच, शोध और जीवन से साबित कर दिखाया कि विज्ञान हमें समझने का सही नज़रिया देता है।
डॉ. जैन ने कहा कि ज्ञानऔर विज्ञान के लोकतंत्र की स्थापना में प्रोफ़ेसर यशपाल का योगदान हमेशा याद किया जायेगा।