15 साल बाद असम से कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए कांग्रेस का बोरिया-बिस्तर बांध दिया। सर्वानंद सोनोवाल और नौ महीने पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हेमंत बिस्व सर्मा की जोड़ी ने पूर्वोत्तर में पहली बार भाजपा का झंडा बुलंद किया। रोचक बात है कि सोनोवाल भी असम गण परिषद(अगप) छोड़कर 2014 के आम चुनावों से पहले भाजपा में आए थे। अगप वर्तमान में भाजपा की साझेदार है। कांग्रेस की हार में सबसे बड़ा योगदान हेमंत बिस्व सर्मा का रहा। उन्होंने भाजपा के सीएम पद के उम्मीदवार सर्वानंद सोनोवाल से ज्यादा चुनावी रैलियां की। पार्टी ने भी उन्हें इस बात के लिए नहीं रोका।
जीत के बाद एक टीवी चैनल से हेमंत बिस्व सर्मा ने कहा, ”कांग्रेस को यह स्वीकार करना होगा कि मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उसका कोई भविष्य नहीं है। जब तक कि राहुल गांधी खुद को न बदल लें। वह बहुत घमंडी हैं। जब आप उनसे मिलने जाते हैं तो यह नौकर-मालिक का रिश्ता होता है, जो घृणास्पद है। या तो उन्हें खुद को बदलना होगा या कांग्रेस उन्हें बदल दें।” हेमंत बिस्व सर्मा गोगोई सरकार में मंत्री थे और तरुण गोगोई के करीबी थे। लेकिन तरुण गोगोई के अपने बेटे गोरव को राजनीति में लाने के मुद्दे पर हेमंत ने कांग्रेस छोड़ दी। हेमंत बिस्व सर्मा मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद रखते थे। लेकिन तरुण गोगोई ने उन्हें 2011 में कहा, ”सपना मत देखो, काम करो।”
बताया जाता है कि यह बात उन्होंने राहुल गांधी के सामने भी रखी थी लेकिन वहां से भी उन्हें निराशा हाथ लगी। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। कांग्रेस की हार के बारे में सर्मा ने कहा, ”जुलाई में जब मैं राहुल गांधी से मिला मैंने कहा था आप 25 सीटों से आगे नहीं बढ़ पाओगे। आज वही हो रहा है। मैंने उन्हें कहा था, ‘आप बुरी तरह हार रहे हो। उन्होंने कहा, नहीं हम जीतेंगे।’ मैंने कहा ठीक है देख लिजिए।” सर्मा ने जो कहा था वही हुआ। कांग्रेस असम में 26 सीट ही जीत सकी। Read Also: मैंने राहुल गांधी से कहा था 25 सीटों से आगे नहीं बढ़ पाओगे, वे बोले हम जीतेंगे, अब देख लो: सर्मा भाजपा में शामिल होने के समय इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में सर्मा ने अमित शाह की तारीफ की थी। उन्होंने कहा था, ”अमित शाह हमेशा तैयार रहने वाले अध्यक्ष हैं। मैं उनसे किसी भी समय बात कर सकता हूं। राजनीतिक उद्देश्यों को समझने में उन्हें कभी परेशानी नहीं होती। वे सही सवाल पूछते हैं। जब कोई बात कही जा रही हो या बताई जा रही हो तो वे पूरे ध्यान से सुनते हैं। राहुल गांधी के साथ ऐसा नहीं है। जब हम गंभीर मुद्दों पर बात कर रहे थे तो उनका पालतू कुत्ता बीच में आ गया। वे ध्यान नहीं देते। परेशानियों को समझने में उनकी कोई रूचि नहीं है।”
साभार- इंडियन एक्सप्रेस से