प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में कभी मजाकिया लहजे में तो कभी आक्रामक अंदाज में राहुल गांधी को हमेशा निशाने पर रखते हैं। दरअसल, राहुल गांधी के मामले में अपने भाषणों में मोदी इन दिनों बहुत आक्रामक दिख रहे हैं। मतलब साफ है कि माफ करना उनकी फितरत में नहीं है। और बात जब कांग्रेस और राहुल गांधी की हो, तो वे कुछ ज्यादा ही सख्त हो जाते हैं।
-निरंजन परिहार-
वे मदमस्त अंदाज में मंच पर आते हैं। जनता उनके तेवर ताकती है। वे मंच के तीनों तरफ घूमकर अभिवादन के अंदाज में हाथ हिलाते हैं। लोग अपने आप को धन्य समझने लगते हैं। फिर वे माइक पर जाकर जिस मकसद से आए हैं, उस विषय पर भाषण शुरू करने के चंद मिनट बाद तत्काल ही अपने अगले निशाने का रास्ता अख्तियार कर लेते हैं। तो लोग उन्हें हैरत से देखते हैं। मूल भाषण से मुड़ते ही अब, वे अपने भाषण में सबसे पहले वे कंधे उचकाते हैं। फिर विशेष तरीके से गर्दन हिलाते हैं। और, अंत में मजाकिया लहजे में मुस्कराते हुए दोनों बांहें चढ़ाने का अंदाज दिखाते हुए सवालिया अंदाज में हैरत से जनता की तरफ झांकते हैं। तो साफ लगता है कि वे बिना नाम लिए ही सीधे राहुल गांधी की तरफ जनता को धकेल रहे होते हैं। फिर पब्लिक तो पब्लिक है। वह मन ही मन राहुल गांधी को याद करते हुए, जोरदार हंसी के साथ तालियां बजाकर उनकी खिल्ली उड़ाती नजर आती है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कांग्रेस के सबसे ताकतवर नेता राहुल गांधी पर प्रहार का अपना अंदाज है। वे अकसर अपनी जनसभाओं में राहुल गांधी को इसी तरह एक नॉन सीरियस राजनेता के रूप में देश के दिलों में लगातार स्थापित करते जा रहे हैं। राहुल जब मोदी पर अपने तीर छोड़ते हैं, तो मोदी राहुल के शब्दों में ही अपने कुछ शब्द और जोड़कर तीर से भी तीखी धार बख्शते हुए राहुल के वार को पूरी कांग्रेस की तरफ उल्टा मोड़कर माहौल को हैरत में डाल देते हैं। तो, सारा देश राहुल गांधी पर फिर हंस पड़ता है। मोदी का यह अजब अंदाज गांव के आदमी को भी मुस्कुराहट देता है। और टीवी के दर्शक को खुशी बख्शता है। इस सबके बीच जो लोग उनके सामने बैठे होते हैं, वे और उनके भक्तगण मोदी के इस अभिनेता अंदाजवाले भाषणों के बीच जोश के साथ मोदी – मोदी के नारे लगा रहे होते हैं। दुनिया के किसी भी लोकतंत्र का इतिहास उठाकर देख लीजिए, इतना आक्रामक प्रधानमंत्री और लगभग हर किसी के उपहास के पात्र के रूप में गढ़ दिया गया विरोधी पार्टी का नेता कहीं और नहीं मिलेगा।
पिछले कुछ समय के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों का आंकलन करें, तो मोदी कुछ ज्यादा ही ताकतवर अंदाज में देश भर में दहाड़ रहे हैं। हालांकि नोटबंदी के बाद राहुल गांधी भी हमलावर अंदाज में हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिल्कुल निश्चिंत। अपने ज्यादातर भाषणों में प्रधानमंत्री मोदी की कोशिश यही रहती है कि कैसे भी करके देश की जनता में राहुल गांधी सिर्फ और सिर्फ एक नॉन-सीरियस नेता के रूप में ही जाने जाएं। मोदी से पहले देश में कोई प्रधानमंत्री ऐसा नहीं रहा, जिसने अपनी विपक्षी पार्टी के सबसे बड़े नेता को इतने लंबे समय तक इतना ज्यादा निशाने पर रखा हो, जितना वे राहुल गांधी को रखे हुए हैं। राहुल की छवि देश में हल्की बनी रहे, इसके लिए अपने हर भाषण के जरिए मोदी ने यह काम बखूबी किया है। मोदी के गढ़ गुजरात में जब राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार का सीधा आरोप लगाया तो बहुत वाजिब था कि पूरे देश को इसके जवाब का इंतजार था। लेकिन मोदी ने सीधे इसका कोई जवाब ही नहीं दिया।
कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि उसके नेताओं और लगभग पूरी पार्टी को बेईमानी के साथ जोड़ना मोदी के लिए बहुत आसान खेल है। इसीलिए, मोदी जब 70 साल की बात करते हैं, तो बिना नाम लिए ही देश का मन सीधे कांग्रेस की तरफ चला जाता है। लेकिन राहुल गांधी कोशिश करते भी हैं, और बीजेपी को भ्रष्ट पार्टी बताते हैं, तो कोई गंभीरता से नहीं लेता। मुंबई से लेकर बनारस, और पुणे से लेकर …….. हर शहर के मोदी के भाषण देख लीजिए, वे अपने भाषणों में अपने संस्कारों को ईमानदारी से जोड़ते हुए नोटबंदी का विरोध करने वालों के संस्कारों को बेइमानी से जुड़ा बताते हैं, तो हर कोई कांग्रेस को दिमाग में रखकर राहुल गांधी पर अविश्वास करने लगता है। तभी अगले ही पल, जब मोदी गरजते हैं – ‘मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि कुछ नेता और कुछ दल इतनी हिम्मत के साथ बेइमानों के साथ खड़े हो जाएंगे…’, तो मोदी कांग्रेस को बहुत सरलता के साथ बेइमानी से जोड़ देते हैं। वे अपने हर भाषण में कांग्रेस को घनघोर बेईमान साबित करने से नहीं चूकते। हाल ही में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी बुद्धिजीवियों के एक कार्यक्रम में मोदी नोटबंदी से शुरुआत करके सीधे सफाई अभियान की तरफ पहुंच गए। बोले – ‘देश में इन दिनों एक बड़ा सफाई अभियान चल रहा है…!’ सिर्फ इतना सा बोलकर चुप्पी के साथ वे थोड़ी देर हैरत से लोगों को देखते हैं। उनकी यह चुप्पी लोगों को ताली बजाने और मुस्कुराने का अवसर देती है। कांग्रेसी भले ही मानते हों कि भाषण कला के इस जादुई खेल की कलाबाजियों की कसावट राहुल गांधी भी सीख ही लेंगे, लेकिन अपन इसमें भरोसा नहीं करते। इससे पहले की एक सभा में लोग इंतजार करते रहे, लेकिन मोदी ने लोगों की उम्मीद के विपरीत राहुल गांधी पर सबसे आखिरी में निशाना साधा। मोदी सिर्फ इतना कहकर कुछ सैकंड के लिए रुक जाते हैं कि – ‘उनके एक युवा नेता हैं…!’ और पूरी सभा में हंसी फूट पड़ती है। मोदी पहले दुनिया को राहुल गांधी पर हंसने का मौका देते हैं। इसके बाद वे बोलते हैं – ‘वे अभी बोलना सीख रहे हैं।’ मोदी को पूरा अंदाजा रहता है कि उनके मुंह से राहुल गांधी का जरा सा जिक्र भी लोगों को बहुत आनंद देता हैं। वे अपने श्रोताओं को आनंद में गोते लगाने देने का मौका कहीं भी नहीं छोड़ते।
मोदी अपने भाषणों में भले ही कांग्रेस पर प्रहार करें, या राहुल गांधी पर, लेकिन वे स्थानीय मुद्दों से खुद को जोड़ने में देर नहीं लगाते। पुणे में मेट्रो की शुरूआत के मौके पर नोटबंदी की परेशानी में उलझे लोगों के बीच उन्होंने कहा कि शरद पवार के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है, तो तो लोग खुश हो उठे। इसी तरह बनारस में ‘हर-हर महादेव’ का घोष करते हुए मोदी कहते हैं कि भोले बाबा की धरती से गंदगी साफ करने की ताकत मिली है, तो लोग अपनी माटी की महक में खो जाते हैं। हाल ही में एक सभा में तो मोदी ने लोकसभा नहीं चलने देने के लिए विरोधियों के गठजोड़ को जेबकतरों की जमात के रूप में घोषित कर डाला। अब तक का सबसे तीखा हमला करते हुए मोदी बोले – ‘जेबकतरे जिस तरह से लोगों की जेब साफ करने के लिए आपसी तालमेल करके लोगों का ध्यान भंग करते हैं, उसी तरह विपक्ष सरकार का ध्यान दूसरी ओर खींच रहा है। ताकि काला कारोबार करने वाले अपना माल आसानी से ठिकाने लगा लें।’ भाषण कला के मंजे हुए खिलाड़ी मोदी अपने संबोधनों में जनता के सामने अकसर वो मिसालें देते हैं, जिससे देश बहुत नफरत करता है। इस कोशिश में वे कांग्रेस को पाकिस्तान की बराबरी में खड़ा करने से भी नहीं चूकते। नोटबंदी के मामले में कांग्रेस के आरोपों को मोदी अपने भाषणों में सीमा पर घुसपैठियों को फायदा पहुंचाने के लिए की जाने वाली पाकिस्तान की कवर फायरिंग से जोड़ते हैं। मोदी कहते हैं कि नोटबंदी का विरोध करके कांग्रेस बेईमान लोगों का समर्थन कर रही है। दरअसल, मोदी यह अच्छी तरह जानते हैं कि नोटबंदी की सारी सफलता सिर्फ जनता की भावना से जुड़ी है। अगर लोग संतुष्ट रहेंगे, तभी उनका जलवा बरकरार रहेगा। सो, मुंबई में बीकेसी की सभा में वे लोगों के घंटों कतार में खड़े रहने की तकलीफ जानने की बात कहते हैं। फिर अगले ही पल, कालाधन रखनेवालों को धमकाते हुए कहते हैं – ‘ये सीधे सादे लोग तुम लोगों की वजह से कतार में परेशान हो रहे हैं। तुमको इसका भुगतान करना पड़ेगा।’ तो, लोग कतार में खड़े रहने के अपने दर्द को भूलकर खुशी में फिर ‘मोदी – मोदी’ के नारे लगाने लगते हैं। उसके तत्काल बाद बेईमानों की बरबादी के समय के प्रारंभ होने की बात कहते हुए मोदी जब बिना किसी का नाम लिए 70 साल तक मलाई खाने की बात करते हैं, तो फिर लोग इसे कांग्रेस पर प्रहार मानकर मजे से ‘मोदी – मोदी’ के नारे में झूम उठते हैं।
कोई पांच साल हो रहे हैं। देश के हर प्रदेश के हर शहर की हर सभा में करीब करीब ऐसा ही होता रहा है। प्रधानमंत्री जैसे बहुत ताकतवर पद पर आने की प्रक्रिया में समाहित होने से पहले गुजरात के अपने मुख्यमंत्री काल से ही मोदी ऐसा करते रहें हैं। याद कीजिए, जब सारे लोग राहुल गांधी को युवराज कहते थे, उस जमाने में भी मोदी शहजादा कह कर लोगों के बीच राहुल गांधी की नई शक्ल गढ़ रहे थे। तब से ही मोदी देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के इस सबसे चमकदार नेता को लगातार निशाने पर रखे हुए हैं। देश मोदी को लगातार ध्यान से सुन भी रहा है और उन पर भरोसा भी कर रहा है। वैसे, भाषण के मामले में मोदी को अटल बिहारी वाजपेयी की बराबरी खड़ा कर देनेवालों की संख्या भी हमारे देश में कम नहीं है। लेकिन यह बात खुद मोदी भी मानते हैं कि अटलजी की तरह उनके भाषण में न तो समा बांधने वाली ताल है और न ही लोगों को भावविभोर कर देनेवाली लयबध्दता। मगर, गैर हिंदी भाषी होने के बावजूद मोदी ने खुद को जिस आला दर्जे के वक्ता के रूप में दुनिया के दिलों में खुद को स्थापित किया है, वह अपने आप में बहुत अदभुत और अदम्य है। इसलिए किसी को भी यह मानने में कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए कि हमारे देश के ज्ञात इतिहास में अटलजी के बाद सबसे लोकप्रिय वक्ता के रूप में अगर कोई हमारे सामने है, तो वह सिर्फ नरेंद्र मोदी ही है। भले ही वे भाषण देते वक्त कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी के मामले में न केवल अत्यंत आक्रामक बल्कि बहुत क्रूर होने की हद तक चले जाते हैं। देखा जाए तो, मोदी को इस क्रूर अंदाज में लाने का श्रेय भी कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी और उनकी माता सोनिया गांधी को ही जाता है, जिन्होंने मोदी को ‘लाशों का सौदागर’ से लेकर ‘शहीदों के खून का दलाल’… और न जाने क्या क्या कहा। फिर वैसे देखा जाए, तो लोकतंत्र में अपनी ताकत को ज्यादा लंबे वक्त तक जमाए रखने के लिए कुछ हद तक क्रूर और अत्यंत आक्रामक होना भी आज मोदी की सबसे पहली जरूरत है।
वैसे, मोदी के अंदाज देखकर राहुल गांधी को अब तक यह समझ में आ जाना चाहिए था कि भाषण देना भी कुल मिलाकर सिर्फ और सिर्फ एक कला है। और यह भी समझ में आ जाना चाहिए था कि अपने भाषण में धारदार शब्दों के जरिए ही विरोधी को कटघरे में खड़ा करके उसकी छवि का मनचाहा निर्माण किया जाता है। मोदी इस कला के माहिर खिलाड़ी हैं और राहुल गांधी की ‘पप्पू’ छवि को वे इतना मजबूत कर चुके हैं कि उससे पीछा छुड़ाना पूरी कांग्रेस के लिए भी कोई बहुत आसान काम नहीं है। कांग्रेस को यह भी मान लेना चाहिए कि मोदी जैसी भाषण देने की कला में पारंगत होना राहुल गांधी के बस की बात ही नहीं है। ज्यादा साफ साफ कहें तो कम से कम मोदी की तरह भाषण देने में पारंगत होने के लिए तो राहुल गांधी को नय़ा जनम लेना पड़ेगा। वैसे भी राहुल खुद स्वीकार कर चुके हैं कि राजनीति जहर है। और दुनिया तो खैर, यहां तक भी कहती है कि राजनीति राहुल गांधी के बस की बात है ही नहीं। आप भी कुछ कुछ ऐसा ही मानते होंगे !
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)
संपर्क – निरंजन परिहार – 09821226894