कुछ लोग नरेंद्र मोदी से प्यार करते हैं तो कुछ लोग नफरत। कुछ उनसे सहमत है तो कुछ असहमत। कुछ उनके विचारों को साझा करते हैं तो कुछ नकार देते हैं। इन सबके बावजूद उनके आलोचक भी उनके उद्देश्य की ताकत, दृढ़ विश्वास, मेहनत और साहस के लिए उन्हें स्वीकार करते हैं।
इन्हीं सब गुणों के बल पर ही उन्होंने एक लंबा सफर तय किया है। 1970 में केंटीन में काम कर चुके एक साधारण कर्मचारी के लिए दूसरी बार देश का प्रधानमंत्री बनना आसान काम नहीं होता है।
राजनेता पैदा नहीं होते हैं, वे बनाए जाते हैं। मोदी को अन्य नेताओं की तरह राजनीति विरासत में नहीं मिली है। जिंदगी में अवसर बड़ी भूमिका अदा करते हैं। मोदी काफी शुरुआती दौर में ही राजनीति में आ गए थे, उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि वे राजनीति में इतना बड़ा करेंगे।
वे बचपन से साधु-संतों से प्रभावित थे और संन्यासी बनना चाहते थे। संन्यासी बनने के लिए वे स्कूल की पढ़ाई के बाद घर से भाग गए थे।
इस दौरान वे पश्चिम बंगाल के रामकृष्ण आश्रम सहित कई जगहों पर घूमते रहे, लेकिन किसी भी जगह उन्हें ठिकाना नहीं मिला।
इसके बाद ही उन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम बनाने की सोची और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के साथ काम करने लगे। वैसे तो वे बचपन से ही आरएसएस से जुड़े हुए थे।
उन पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के राष्ट्रवाद का गहरा प्रभाव था। आरएसएस से जुड़ना उनकी राजनीतिक यात्रा की पहली सीढ़ी थी। इसके बाद उन्होंने कई पड़ावों पार करते हुए वडनगर से 7 लोक कल्याण मार्ग (पूर्व नाम: 7 रेसकोर्स रोड) तक का सफर तय किया।
मोदी की योजनाओं और कार्यक्रमों में एक गरीब का दर्द महसूस किया जा सकता है। उन्होंने अपना बचपन अंधेरे में बिताया, इसी कारण वे सौभाग्य योजना के जरिए लाखों लोगों के घर रोशन कर सके। उन्होंने अपनी मां को गोबर के कंडों पर खाना बनाते देखा था। अपनी मां की पीड़ा को महसूस करते हुए उन्होंने उज्जवला योजना के सहारे हजारों माताओं को धुंए से मुक्ति दिलाई। बचपन में वे तीन कमरों के एक छोटे से घर में आठ लोग रहते थे। इससे उन्हें इस बात का अहसास था कि सिर पर छत का होना कितना जरूरी है। लोगों के सिर पर छत हो इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू की।
मोदी की सबसे ताकत उनका साधारण परिवार से आना है। अपने आत्म विश्वास के दम पर ही वे बड़े और जोखिमपूर्ण निर्णय कर पाते हैं। पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में एयरस्ट्राइक, नोटबंदी और जीएसटी लागू करना ऐसे ही जोखिम भरे फैसले थे। जो यह मानते थे कि नोटबंदी एक गलत निर्णय था, फिर भी वे उस निर्णय के साथ डटे रहे। आमतौर पर जिनके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता है वे ऐसे जोखिम मोल लेने की क्षमता विकसित कर लेते हैं।
मोदी की छवि एक कट्टर हिंदू की है। अपनी इस छवि को उन्होंने काफी हद तक बदल भी लिया है। पिछले दिनों सेंट्रल हाल में एनडीए संसदीय दल की बैठक में दिए उनके भाषण में भी इसकी झलक दिखाई दी। उन्होंने अब सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास की बात की है। अगर हम उनके जीवन परिचय को देखें तो उसमें इस बात का जिक्र है कि वडनगर में उनके घर के पास मुस्लिम समुदाय के लोग भी रहते थे। उनमें से कई उनके दोस्त भी थे।
कई मोदी की कपड़ों से प्रेम को लेकर हंसी भी उड़ाई जाती है। उन्हें ये जानकर आश्चर्य होगा कि बचपन में मोदी बिल्कुल तपस्वी की तरह थे। नवरात्र के उपवास के दौरान मोदी नमक, मिर्च और तेल का त्याग कर देते हैं। इस नियम का पालन वे आज प्रधानमंत्री बनने के बाद भी करते हैं। अच्छे कपड़े और कुर्तो का शौक उन्हें 1990 में भाजपा महासचिव रहने के दौरान लगा। इसी समय वे अच्छे रेस्त्रां में खाना, महंगी कारों में घूमना और इस्त्री किए हुए कपड़ों की ओर आकर्षित हुए। अपने कई साक्षात्कारों में वे अपनी कपड़ों की स्टाइल के बारे में बात भी कर चुके हैं।
मोदी में संगठन क्षमता का विकास 1972 में आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक बनने के साथ ही होने लगा था। इस दौरान उन्होंने लक्ष्मणराव इनामदार ‘वकील साहब” के साथ काम किया। आपातकाल के दौरान भी वे वकील साहव के साथ ही काम करते रहे। वकील साहब ने मोदी को अनुशासन के साथ ही संगठन में काम करने के गुर सिखाए। 1985 में मोदी को संघ से भाजपा के काम में लगा दिया गया। वे 1990 में निकाली गई रथ यात्रा के दौरान पार्टी वरिघ्ठ नेताओं की निगाहों में आए। 1991 में उन्हें मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा की पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई।
1995 में गुजरात में भाजपा को दो-तिहाई बहुमत मिला। 1997 में शंकरसिंह वाघेला ने पार्टी से बगावत कर गुजरात में कांग्रेस की सरकार बना ली। इससे मोदी ने चुनाव मैनेजमेंट की सीख ली। 1998 में उन्हें पदोन्न्त करके राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) की जिम्मेदारी दी गई।
– 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की जगह मोदी को राज्य की कमान सौंपी गई। इसके बाद 2002 में गोधरा कांड हो गया। इसके बाद हुए दंगों के कारण मोदी पूरे विश्व में पहचाने जाने लगे।
– 2002 में हुए चुनावों सभी सर्वे मोदी को हारा हुआ बता रहे थे। सभी सर्वे और राजनीतिक पंडितों को झुठलाते हुए मोदी ने प्रचंड जीत दर्ज की और दूसरी बार गुजरात की कमान संभाली।
– गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने सराहनीय काम किया। वे 2014 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे और फिर मई 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने।
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