Sunday, December 22, 2024
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कला संस्कृति, इतिहास, पर्यटन, पुरातत्व, प्राकृतिक सौंदर्य और वन्य जीवन का खजाना है राजस्थान

विश्व पर्यटन की दृष्टि से पहाड़ी किलों और महलों की व्यापकता, मनोहारी भौगोलिक स्थिति, इतिहास और गाथाएं न केवल हमारे अपने देश वरन दुनिया भर के विदेशी सैलानियों को राजस्थान आने के लिए किसी सम्मोहन से कम नहीं हैं। राजस्थान एक ऐसा रंगीला प्रांत है जो इतिहास में न केवल त्याग,बलिदान और शौर्य की कहानियों के लिये प्रसिद्ध है ,बल्कि यहाॅ की कला,संस्कृति और सम्यता के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक विशिष्ट पहचान रखता है। पैलेस ऑन व्हील जैसी शाही रेल देश-विदेश के सैलानियों को राजस्थान की यात्रा आठ दिनों में पूरा करा देती है। राजस्थान की कला-संस्कृति और पर्यटन की गूंज यूरोप और अमेरिका तक सुनाई देती है। भारतीय सिनेमा में खूब चमकता है राजस्थान।

यहाॅ की धरती पर जन्म लेकर न केवल वीरों ने इसका गौरव बढ़ाया है बल्कि साहित्य ,संस्कृति एवं कला के क्षेत्रों में इसकी श्रीवृद्धि में अपना योगदान दिया है। पृथ्वीराज चौहान, राणाकुम्भा, महाराणा प्रताप, दुर्गादास तथा सवाई जयसिंह आदि इसी रणभूमि की संताने हैं। भामाशाह की निःस्वार्थ सेवा, पद्मिनी के जौहर और पन्नाधाय के त्याग से कौन परिचित नहीं है। साहित्य सृजन और चिंतन परम्परा को महाकवि चन्द्र वरदायी, सूर्यमल्ल,कृष्णभक्त मीरा और संत दादू ने जीवित रखा है। इस भूमि पर ही खानवाह का इतिहास प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया जिसने भारत के इतिहास को पलट कर रख दिया ।

इसी राज्य ने मालदेव, चन्द्रसेन और महाराणा प्रताप जैसे वीर दिये हैं जिन्होंने ने सदैव मुगलों से लोहा लेकर प्रदेश की रक्षा की। मालदेव को पराजित कर शेरशाह सूरी यह कहने को मजबूर हुआ, ” खैर हुई वरना मुठ्ठी भर बाजरे के लिये मैं हिन्दुस्तान की सल्तनत खो देता ।” भारत की आजादी के बाद 19 रियासतों और 3 ठिकानों को मिलाकर इस राज्य पुनर्गठन आयोग,1956 के अंतर्गत 1 नवम्बर 1956 को अस्तित्व में आया । देशी रियासतों या रजवाड़ों का सामूहिक बोध कराने के लिये राजस्थान शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सुप्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टाॅड ने 1829 में अपनी पुस्तक ‘‘एनल्स एण्ड़ एन्टीक्वीटिज ऑफ राजस्थान’’में किया था। वर्तमान राज्य में 10 संभाग और 50 जिले हैं।

संस्कृति
राजस्थानी हस्तशिल्प और जयपुर के बंधेज ने विदेशी बाजारों में धूम मचा रखी है। विदेशी बालाएं जब राजस्थानी बंधेज पहनकर सड़कों पर चलती है तो सबकी निगाहें उन पर टिकी रह जाती है। सांगानेर स्थित एयरकार्गो काॅम्पलैक्स राजस्थानी हस्तशिल्प को विदेशों तक पहुॅचाने के लिये दृढ संकल्प है। राजस्थान के घूमर नृत्य को पूरे प्रदेश में नृत्यों का सिरमौर होने का गौरव प्राप्त है। यहाॅ के लोक नृत्य,लोक संगीत और लोक नाट्य ग्रामीण सांस्कृतिक परिवेश का सुनहरा संसार दर्शकों के सम्मुख उपस्थित कर देते हैं। भीलों की गवरी,कामड जाति का तेरहताली नृत्य और गुलाबो का कालबेलिया नृत्य विदेशों तक धूम मचा आया है। राजस्थान पर्यटकों के लिये स्वर्ग बना हुआ है।

राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये अनेक मेले और उत्सव आयोजित किये जाते हैं। माउन्ट आबू का ग्रीष्म उत्सव और जैसलमेर का मरू उत्सव राजस्थान की शान हैं। यहाॅ के एकांतप्रिय वातावरण में जब लोक कलाकारों के पांव थिरकते हैं, लोकसंगीत की स्वर लहरियाॅ गूंजती हैं और अलगोजा जैसे वाद्य बजते हैं तो सैलानियों को असीम आनंद की अनुभूति होने लगती है । अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंकटन भी जब राजस्थान में आये तो वे भी यहाॅ की लोक संस्कृति में रच बस गये और उनके पांव नायला गांव की धरती पर स्वयं ही थिरकने लगे। राजस्थान वीरों की रणभूमि, मनीषियों व सन्तों की तपोभूमि, बलिदानकर्ताओं की कर्मभूमि व पर्यटकों के स्वर्ग के रूप में विश्व विख्यात है।

यहाँ का मनोहारी रेगिस्तान, विशाल किले, सुन्दर महल, जैविक विविधता, समृद्ध लोक कला, आकर्षक हस्तशिल्प, रंग-बिरंगे साफे और पगड़ियाँ बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। यूनेस्को की सूचि में शामिल भारत की 40 विश्व विरासतों में राज्य के पहाड़ी किलों सहित गुलाबी नगर जयपुर की चारदिवारी, जन्तर मन्तर एवं भरतपुर का धाना पक्षी विहार शामिल हैं।

ऐतिहासिक तथ्य
राजस्थान विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक सिन्धु घाटी सभ्यता का पालना स्थल रहा है। कालीबंगा, पीलीबंगा आदि स्थानों पर लगभग 5000 वर्ष पुरानी सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रामाणिक अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के सप्त सैंधव प्रदेश की प्रमुख नदी सरस्वती वैदिक युग में राजस्थान प्रदेश में बहती थी। यह अब लुप्त हो गई है और इसका कुछ भाग घग्धर नदी के नाम से हनुमानगढ़ तथा गंगानगर जिलों में प्रवाहित होता है। प्राचीन काल में प्रसिद्ध विश्व यात्री चीन का ह्नेनसांग सातवीं सदी में अपनी भारत यात्रा के दौरान राजस्थान भी आया था। उसने जालौर स्थित भीनमाल का विस्तृत विवरण अपनी पुस्तक सी-यू-की में दिया बड है।

विदेशी आक्रान्ता महमूद गजनवी पश्चिमी एशिया से 1025 ई. में सोमनाथ का मन्दिर लूटने जाते हुए राजस्थान से गुजरा था। अलबरूनी नामक प्रसिद्ध इतिहासकार ने अपने ग्रन्थ तहकीक-ए-हिन्द में इस यात्रा का उल्लेख किया है। विश्व प्रसिद्ध तराईन के दोनों युद्ध 1191 ई. व 1192 में अन्तिम हिन्दू सम्राट दिल्ली अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान एवं पश्चिम एशिया के आक्रान्ता मोहम्मद गौरी के बीच लडे़ गये थे। उल्लेखनीय है कि श्रीलंका के शासक गंधर्वसेन की पुत्री पद्मिनी विश्व की सुन्दरतम स्त्रियों में से एक थी, जिसका विवाह चित्तौड़ के शासक रतन सिंह से हुआ था। राजसमन्द झील के किनारे स्थित “राजसिंह प्रशरित” जो संगमरमर के 25 शिला लेखों पर उत्कीर्ण है विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति मानी जाती है।

यह मेवाड़ के इतिहास का सबसे प्रमुख स्त्रोत है। इंग्लैण्ड के सम्राट जेम्स प्रथम का राजदूत सर टाॅमस रो 1616़ ई. में अजमेर स्थित अकबर किले में मुगल सम्राट जहांगीर से मिला था। इस महत्वपूर्ण भेंट को भारत में अंग्रेजी व्यापारिक हितों की शुरूआत मानी जाती है। राजस्थान की राजपूत वीरांगनाओं द्वारा आक्रान्ताओं से अपनी अस्मिता की रक्षा हेतु किये गये जौहर विश्व के इतिहास के एकमात्र द्दष्टांत हैं। इसमें रानी पद्मिनी और कर्मावती के जौहर विशेष रूप विख्यात हैं। जयपुर के जयगढ़ किले में स्थित जयवाण तोप पहियों पर रखी हुई विश्व की सबसे बड़ी तोप के रूप में प्रसिद्ध है।

भौगोलिक तथ्य
राजस्थान का वृहद थार मरूस्थल विश्व का 17 वाॅ एवं एशिया का 7वां सबसे युवा और सर्वाधिक आबाद रेगिस्तान है। इसका 61 प्रतिशत भाग पश्चिमी राजस्थान में स्थित है। इस मरूस्थल का निर्माण विश्व के प्राचीनतम टैथिस सागर से हुआ है। जैसलमेर के निकट स्थित सम रेत के धोरे विश्व भर के पर्यटकों के लिये प्रमुख आकर्षण हैं। राज्य के मध्य में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक फैली अरावली की पर्वत श्रृंखलायें विश्व की प्राचीनतम श्रृंखलायें मानी जाती हैं। अरावली की सबसे ऊॅची चोटी गुरू शिखर 1722 मीटर माउण्ट आबू पर्वत पर है। अरावली पर्वत राज्य की अर्थव्यवस्था, प्राकृतिक संपदा और पर्यटन का प्रमुख आधार है।

पर्यटन की दृष्टि से कई एडवेंचर स्पोर्टस और पर्वतारोहण जैसी गति विधियों को बढ़ावा मिला है। इन पर्वतों और हाड़ोती के पठार का निर्माण विश्व के प्राचीनतम भूखण्ड गोंडवाना लैण्ड से हुआ है। उदयपुर जिले की जयसमन्द झील विश्व की सर्वाधिक बड़ी मानव निर्मित झीलों में से एक है और एशिया की कृत्रिम झीलों में दूसरा स्थान रखती है। विश्व में कपास की खेती के सर्व प्रथम साक्ष्य हनुमानगढ़ जिले में कालीबंगा से प्राप्त हुए हैं। कहा जाता है कि यहाँ जुते हुये खेतों के साक्ष्य विश्व में खेती के प्राचीनतम प्रमाण हैं। राजस्थान में 1070 किमी अन्तर्राष्ट्रीय थल सीमा है जो पाकिस्तान से लगती है।

राजस्थान से लगने वाली वाली पाकिस्तान की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेड क्लिफ रेखा का एक भाग है। यह सीमा भारत और पाकिस्तान की बीच भारत की आजादी के समय सर रैड क्लिफ द्वारा मानचित्र पर अंकित की गई थी । पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रान्त के बहावलपुर ,खैरपुर और मीरपुर खास जिले राजस्थान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा को स्पर्श करते हैं। गंगानगर शहर अंतर्राष्ट्रीय सीमा को स्पर्श करता है। जैसलमेर से लगने वाली अंतर्राष्ट्रीय सीमा सबसे लम्बी है। यह सीमा राजस्थान में गंगानगर जिले के हिन्दूमल कोट से प्रारम्भ होकर बाड़मेर के शाहगढ़ स्थान पर समाप्त होती है। राजस्थान का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 3.42.239 वर्ग किलोमीटर है। यह भारत के कुल क्षेत्रफल का 10.43 प्रतिशत है।

धर्म और आध्यात्म
अजमेर के निकट पुष्कर राज में स्थित ब्रह्माजी का मन्दिर विश्व का एकमात्र मन्दिर है जहाँ इनकी विधिवत् पूजा होती है। पाली जिले के रणकपुर में स्थित चौमुखा आदिनाथ जैन मन्दिर विश्वविख्यात है। अजमेर स्थित विश्वविख्यात सूफी सन्त ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह समूचे विश्व में इस्लामिक आस्था के प्रमुखतम केन्द्रों में है और इसका स्थान मक्का मदीना के बाद आता है। नागौर जिले में मेड़ता के निकट कुड़की गांव की राजकुमारी मीरा बाई को कृष्ण भक्ति के लिये पूरे देश में जाना जाता है। दादू पंथ के प्रवर्तक दादूदयाल की कर्मस्थली राजस्थान रहा और उनकी समाधि जयपुर के निकट नारायणा नामक स्थान पर स्थित है।

भारत में प्रमुख सूफी सम्प्रदाय चिश्ती सिलसिले के प्रणेता ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती थे जिनकी अजमेर स्थित दरगाह पर भारत का मुगल बादशाह अकबर कई बार अपनी राजधानी से पैदल चलकर आया था। भारत का एकमात्र विभीषण मन्दिर कोटा के निकट कैथून कस्बे में स्थित है। कोटा नगर का दशहरा मेला पूरे भारत में राष्ट्रीय मेले के रूप में प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं से पता चलता है कि आबू पर्वत पर भगवान रामचन्द्रजी के गुरू वशिष्ठ का आश्रम था। यह भी किवदंती है कि कोटा के जंगलों में भगवान परशुराम ने तपस्या की थी। एक किवदंती के अनुसार जिला टौंक के बीसलपुर में स्थित शिव मन्दिर में रावण ने अपने दस शीष भगवान महादेव पर अर्पित किए थे। किवदंतियों के अनुसार अलवर के निकट पांडूपोल का निर्माण भीम की गदा से हुआ था तथा यहाँ पाण्डवों ने कुछ समय व्यतीत किया था। सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि का आश्रम बीकानेर जिले में कोलायत झील के किनारे स्थित है।

पर्यटन
सवाईमाधोपुर के रणथम्भौर का बाघ अभयारण्य समूचे विश्व के सैलानियों में लोकप्रिय है। पूर्व का पेरिस और विश्व में पिंकसिटी के रूप में विख्यात जयपुर विश्व के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। यहाँ का हवामहल विदेशी सैलानियों में बहुत लोकप्रिय है। जोधपुर का छीतर महल विश्व का सबसे बड़ा रिहायशी महल है जिसमें 300 से भी अधिक रहने के कमरे हैं। चित्तौड़ का किला विश्व के विशालतम पहाड़ी दुगों में से एक है। पूर्व के वेनिस और झीलों की नगरी उदयपुर विश्व में पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। यहाँ का लेक पैलेस अन्तर्राष्ट्रीय सैलानियों के सर्वाधिक लोकप्रिय होटलों में से एक है।

भरतपुर का केवलादेव पक्षी अभयारण्य वर्ड हैरिटेज साइट के रूप में मान्य एवं विश्वविख्यात है जहाँ साईबेरियन क्रेन्स शीतकालीन प्रवास के लिये आते हैं। पुष्कर का पशुमेला विदेशी सैलानियों में सर्वाधिक लोकप्रिय है। जयपुर जिले की सांभर झील के पारिस्थतिकी तंत्र (ईको सिस्टम) को भी वल्र्ड हैरिटेज साइट के रूप में मान्यता दी गई है। शेखावाटी क्षेत्र के भित्ति चित्र श्रेष्ठता व बहुलता के कारण विश्व भर में ओपन आर्ट गैलरी के रूप में प्रसिद्ध हैं। बूंदी शैली के चित्र, नायद्वारा की पिछवाई तथा किशानगढ़ की बणीठणी पर्यटकों में लोक प्रिय है। कोटा में चंबल नदी के किनारे ” चंबल रिवर फ्रंट ” देश ही नहीं दुनियां के कई रिवर फ्रंट से आकर्षक है।

जयपुर का हाथी उत्सव, बीकानेर का ऊँट उत्सव व जैसलमेर का मरू उत्सव पर्यटकों में बहुत लोकप्रिय है। राजस्थान का घूमर नृत्य, चकरी नृत्य, अग्नि नृत्य, चरी नृत्य, गवरी नृत्य देश भर में विख्यात है। राजस्थान के लोकवाद्य रावण हत्था, मोरचंग, भपंग, खड़ताल, अलगोजा आदि राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं। राजस्थान के राजपूत शासकों की छतरियां स्थापत्य की दृष्टि से पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। बून्दी व टोंक जिलों की बावड़ियां पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। लोकदेवताओं में सर्पाें के लोकदेवता तेजाजी, ऊँटों के लोकदेवता पाबूजी, व पिछड़ी जातियों के रामदेवजी राजस्थान के पड़ौसी राज्यों में भी लोकप्रिय हैं।

वन और वन्यजीव
भारतपुर धाना पक्षी बिहार, रणथम्भौर तथा अलवर का सरिस्का राष्ट्रीय बाघ अभरायारण्य विश्व स्तरीय पहचान बनाते हैं। कोटा से हो कर बहने वाली चम्बल नदी पर राष्ट्रीय घड़ियाल परियोजना देश की एक मात्री बड़ी परियोजना है। राजस्थान में मिलने वाले गोड़ावण, चैसिंघा और उड़न गिलहरी विश्व विख्यात हैं। जैसलमेर स्थित “आंकल वुड फोसिल्स पार्क” विश्व के प्राचीनतम जीवाश्म को संरक्षित किए हुए है। रेगिस्तान का जहाज कहलाने वाले पशु ऊँट की विश्व की श्रेष्ठतम नस्लें राजस्थान में मिलती हैं। जोधपुर जिले के खेजड़ली गाँव में अमृता देवी के नेतृत्व में 363 व्यक्तियों ने खेजड़ी वृक्षों को कटने से बचाने के लिये अपने प्राण न्यौछावर किये थे। इस घटना को विश्व का सर्वप्रथम वृक्ष बचाओं चिपको आन्दोलन माना जाता है। इस घटना की स्मृति में यहाँ विश्व का एकमात्र वार्षिक वृक्ष मेला आयोजित किया जाता है।

उत्पाद
राजस्थान का संगमरमर विश्व विख्यात है और विश्व के सात आश्चर्यो में एक ताज महल का निर्माण मकराना जिला नागौर के सफेद संगमरमर से ही हुआ था। राजस्थान का कोटा स्टोन वह इमारती पत्थर है जिसका उपयोग विश्व के अनेक देशों में किया जाता है। अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया, कुवैत और बेल्जियम, इंग्लैंड आदि यूरोपीय देशों में इसका बड़े पैमाने पर निर्यात होता है। लंदन के टयूब रेल्वे स्टेशनों व संग्रहालयों में, जूरिख और फ्रेंकफर्ट के हवाई अडडों में कोटा स्टोन का प्रचुर प्रयोग हुआ है। राजस्थान विशेषकर जयपुर के हीरे जवाहरात और बहुमूल्य पत्थर अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रसिद्ध है।

जयपुर के सांगानेर और बाड़मेर के अजरक प्रिन्ट विश्व भर में लोकप्रिय हैं। राजस्थान की जूतियां, मोजड़ियां व चमड़े के बैग अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं। बीकानेर के रसगुल्ले, नमकीन और भुजिया विश्व के लोकप्रिय खाद्य पदार्थो में से एक हैं। कोटा की मसूरिया साड़ी, भीलवाड़ा की फड़ पेन्टिंग और राजस्थान की कठपुतलियां विश्व प्रसिद्ध हैं। अजमेर जिले के किशनगढ़ की बनी-ठनी का चित्र विश्व में “भारत की मोनालिसा” के रूप में विख्यात है।

जयपुर की संगमरमर की मूर्तियां पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। जयपुर की सोने पर मीनाकारी, बीकानेर की उस्ताकला (ऊँट की खाल पर मीनाकारी), प्रतापगढ़ जिले की थेवा कला (कांच पर सोने की मीनाकारी) सुविख्यात है। राजमन्द जिले के नाथद्वारा की पिछवाई पेन्टिंग, चित्तौड़गढ़ जिले के बस्सी गांव की काष्ठ कलाकृतियां, जयपुर की पाव रजाई और ब्लू पोटरी तथा जयपुर-जोधपुर के लाख के उत्पाद तथा जोधपुर के बादले पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। राजस्थान भारत में खनिजों के अजायबघर के नाम से प्रसिद्ध है। खनिज उत्पादन में झारखंड के बाद भारत में राजस्थान का अग्रणीय स्थान है। वाॅल्स्टोनाईट और जास्पर खनिजों का शत-प्रतिशत उत्पादन राजस्थान से होता है। संगमरमर, टंगस्टन, जिप्सम, राॅक फास्फेट, घिया पत्थर, तामड़ा, पन्ना, चांदी, सीसा-जस्ता आदि के उत्पादन में राजस्थान को देश में एकाधिकार प्राप्त है।

विविध
राजस्थान के स्व.करणा भील का नाम उनकी लम्बी मूँछों के लिये गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकाॅर्ड में दर्ज है। जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा जयपुर में निर्मित जन्तर-मन्तर वेधशाला में स्थित “सम्राट यंत्र” विश्व की सबसे बड़ी सौर घड़ी है। जयपुर घराने की कत्थक नृत्य शैली विश्व विख्यात है। भारत में सहकारिता का प्रारम्भ 1905 में अजमेर की भिनाय तहसील से माना जाता है, जब यहाँ देश की पहली सहकारी समिति की स्थापना हुई।

भारत में पंचायती राज का शुभारम्भ 2 अक्टूबर 1959 को नागौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. श्री जवाहरलाल नेहरू ने किया। भारत का प्रथम भूमिगत परमाणु परीक्षण दिनांक 18 मई 1974 को जैसलमेर जिले के पोकरण नामक स्थान पर किया गया। पुन: 11 व 13 मई 1998 को यहीं भूमिगत परमाणु परीक्षण किया गया। इस घटना की याद में भारत में प्रत्येक वर्ष 11 मई को प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में मनाया जाना प्रारम्भ हुआ। गत कुछ वर्षाें से कोटा तकनीकी और मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में देश के अग्रणी कोचिंग केन्द्र के रूप में स्थापित हो गया है।

अजमेर स्थित मेयो काॅलेज जहाँ तत्कालीन शासकों की संतानों को शिक्षा दी जाती थी, भारत के प्राचीनतम शिक्षा केन्द्रों में से है। इसकी स्थापना 1975 हुई थी। जोधपुर का बन्द गले का कोट देश में राष्ट्रीय पोषाक के रूप में सर्वमान्य है। राजस्थान का दाल-बाटी-चूरमा, अलवर का मावा और कोटा की कचौरी, जोधपुर में प्याज और मावे की कचौरी पूरे देश के प्रसिद्ध व्यंजनों में शामिल है। राजस्थान के भीलों की तीरन्दाजी पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहाँ का भील धनुर्धर लिम्बाराम अंतर्राष्ट्रीय ख्याती प्राप्त है।
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( लेखक पर्यटन लेखन के विशेषज्ञ हैं तथा सामाजिक और साहित्यिक विषयों पर पिछले 45 साल से लिख रहे हैं )

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