राम नाम की ही यह महिमा है कि आज उनके भक्त केवल हिन्दू ही नहीं, बल्कि मुसलमान, ईसाई, सिख और पारसी भी हैं। यदि आपको विश्वास न हो तो आप प्रयाग के सिविल लाइन स्थित ‘राम नाम बैंक’ में जाकर यह देख सकते हैं। इस बैंक में ‘राम’ शब्द लिखित पुस्तिकाएं जमा होती हैं। इस बैंक का संचालन ‘राम नाम सेवा संस्थान’ और ‘राम सेवा ट्रस्ट’ की देखरेख में होता है। इसके लिए पैसे का इंतजाम इन्हीं दोनों संगठनों के कार्यकर्ता समाज के सहयोग से करते हैं। जरूरत पड़ने पर ये कार्यकर्ता अपनी गांठ से भी खर्च करते हैं।
मंगलवार को छोड़कर सप्ताह के शेष दिनों में सायं 4 बजे से 8 बजे तक चलने वाले इस बैंक में श्रद्धालुओं की अच्छी भीड़ रहती है। इनमें कुछ नया खाता खोलने वाले होते हैं, तो कुछ पुराने खाताधारक, जो राम नाम लेखन की पुस्तिका जमा करके नई पुस्तिका प्राप्त करने आते हैं।
प्रयाग में इसकी 42 शाखाएं हैं। इन शाखाओं के संचालकों को शाखा प्रबंधक कहा जाता है। जो लोग इसके संचालन मंे लगे हैं वही अपने घर के एक कोने को राम काज के लिए इस्तेमाल करते हैं। पूरे प्रयाग में ऐसे 42 लोग हैं, इसलिए इसकी 42 शाखाएं हैं। राम नाम बैंक में खाताधारकों की संख्या इतनी है कि हर कोई आश्चर्यचकित रह जाए। इस समय खाताधारकों की संख्या 1,20,000 से ऊपर है। राम नाम बैंक के मंत्री आशुतोष वार्ष्णेय बताते हैं, ”कोई भी श्रद्धालु किसी भी शाखा में जाकर पुस्तिका नि:शुल्क ले सकता है और उसमें ‘राम’ शब्द लिखकर बैंक में जमा करा सकता है। पुस्तिका की रचना ऐसी की गई है कि एक प्रति में 3,240 ‘राम’ शब्द लिखे जा सकते हैं। हिन्दी, उर्दू, तेलगू, तमिल, बंगला, अंग्रेजी सहित कुल 16 भाषाओं में यह पुस्तिका उपलब्ध है। एक पुस्तिका को प्रकाशित करने में लगभग 30 रुपए का खर्च आता है। करीब 35 वर्ष से यह बैंक रामभक्तों के लिए कार्य कर रहा है। इनमें लगभग दो दर्जन मुसलमान भी हैं।”
एक ऐसे ही रामभक्त हैं फैजल खान। वे एक दिन में कम से कम 1000 ‘राम’ शब्द हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू में लिखते हैं। वे कहते हैं, ”मैं पक्का मुसलमान हूं। पांचों वक्त की नमाज पढ़ता हूं, 30 रोजा भी रखता हूं। इसके साथ ही होली, दीवाली, रामनवमी और क्रिसमस भी मनाता हूं। करीब 10 वर्ष पहले किसी अखबार में राम नाम की महिमा पढ़ी थी। मन में हुआ कि एक बार राम नाम का सहारा लेकर देखता हूं कि जीवन में किस तरह के बदलाव आते हैं। इसके बाद राम नाम बैंक से पुस्तिका लेकर राम शब्द लिखकर बैंक में जमा करने लगा। इसके बाद जीवन में बड़ी कामयाबी मिली, जो अभी भी जारी है। हालांकि मेरे समाज के कुछ लोग मेरा विरोध भी करते हैं, लेकिन मैं उन्हें मना लेता हूं। मैं उन्हें कहता हूँ कि मैं मरूंगा तो दफनाना ही जलाना नहीं, मैं आखिरी सांस तक मुसलमान ही रहंूंगा।’ उन्होंने एक कविता भी लिखी है, जिसकी पंक्तियां हैं-
‘गीता, कुरान सब एक समान, इसे पढ़े हरेक इनसान।
न मजहब से न जात से, हमारी पहचान हो इनसान से।।”
प्रयाग के चौक इलाके में रहने वाले 84 वर्षीय जगतनारायण अग्रवाल राम नाम बैंक के शाखा प्रबंधक हैं। वे कहते हैं, ”रामजी की कृपा ही है कि मैं इस उम्र में भी समाज में बहुत अच्छी तरह सक्रिय हूं। रोजाना रामभक्त आते हैं और मुझसे पुस्तिका ले जाते हैं। पुस्तिका जब भर जाती है तो वे लोग मुझे दे जाते हैं और मैं उन्हें निश्चित समय पर बैंक में जमा करा आता हूं। यह सब भगवान राम की वजह से ही हो रहा है।” श्री अग्रवाल की रामभक्ति कितनी गहरी है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वे इस उम्र में भी रोजाना कम से कम दो माला यानी 216 बार राम नाम लिखते हैं।
अब तक वे 3,00,000 बार ‘राम’ शब्द लिख चुके हैं। उनका कहना है कि जब तक वे जीवित रहेंगे तब तक रामजी के लिए ही काम करेंगे। इससे आत्मिक शान्ति मिलती है। रक्षा विभाग से सेवानिवृत्त 65 वर्षीय सुशील कुमार पाण्डे भी अग्रवाल की ही बात को आगे बढ़ाते हैं। पाण्डे रामभक्तों के बीच पुस्तिका बांटते हैं। जो भी कहता है कि उन्हें पुस्तिका चाहिए वे उन्हें स्वयं दे आते हैं। पुस्तिकाओं को प्रकाशित करवाने में भी मदद करते हैं। पाण्डे कहते हैं, ”राम नाम बैंक से जुड़कर मैं अपने आपको भाग्यशाली मानता हूं। सेना में वरिष्ठ लेखा अधिकारी था। वहां की व्यस्तता सबको पता है। सेवानिवृत्त होने का समय जब नजदीक आने लगा तो मैं सोचने लगा था कि अब क्या करूं , लेकिन प्रभु की ऐसी माया रही कि उन्होंने मुझे अपनी सेवा में लगा लिया है।”
इस बैंक के एक खाताधारक नीदरलैण्ड के एक उद्योगपति हेंक केल्मन भी हैं। वे एक बार कुंभ के अवसर पर प्रयाग आए और घूमते-फिरते राम नाम बैंक के शिविर में पहुंच गए। वहां वे राम के नाम से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने लगे हाथ अपने नाम से खाता खुलवा लिया। उस समय वे कुछ पुस्तिकाएं अपने साथ ले गए थे। जब वे भर गईं तो उन्हें उन्होंने बैंक में जमा करवा दिया। अब वे नियमित रूप से ऑनलाइन ‘राम’ शब्द लिखकर भेजते हैं। वे अब अपने को सनातन-धर्मी ही मानते हैं और अपने मूल नाम के साथ रामकृष्ण दास लिखते हैं। उन्होंने नीदरलैण्ड के अनेक परिवारों को भी राम नाम बैंक से जोड़ा है। इनमें सभी ईसाई हैं। वे लोग भी ऑनलाइन बैंक से जुड़े हुए हैं और ‘राम’ शब्द लिखकर भेजते रहते हैं।
इन रामनामी पुस्तिकाओं को कब तक संजोया जाएगा और बाद में उनका क्या होगा? इस सवाल पर आशुतोष कहते हैं कि भविष्य में प्रयाग में मीनारनुमा एक परिक्रमा पथ बनाया जाएगा। उसमें अब तक जमा हुईं रामनामी पुस्तिकाओं को रखा जाएगा और श्रद्धालु उसकी परिक्रमा कर सकें, ऐसी व्यवस्था की जाएगी। इससे उन लोगों को भी भगवान श्रीराम की अनुकम्पा मिलेगी, जो रामनामी पुस्तिकाएं नहीं भरते हैं। इसके साथ वे यह भी कहते हैं कि इसके लिए काफी धन की आवश्यकता है। पर उन्हें विश्वास है कि एक दिन प्रभु श्रीराम ही उनके इस सपने को पूरा करेंगे। आशुतोष को प्रशासन से भी शिकायत है। वे इन दिनों माघ मेले में शिविर लगाने के लिए भाग-दौड़ कर रहे हैं, लेकिन लालफीताशाही उनके सामने अनेक तरह की कठिनाइयां पैदा कर रही है। उनका कहना है कि हम सब समाज को सन्मार्ग पर लाने के लिए प्रयासरत रहते हैं, लेकिन प्रशासन का रवैया मनोबल तोड़ने वाला रहता है।
ऐसे हुई शुरुआत
प्रयाग में संगम तट पर पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा एक महीने तक माघ मेला सैकड़ों वर्षों से लग रहा है। इन दिनों यह मेला चल रहा है। इस मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और पूजा-पाठ करते हैं। इनमें हजारों श्रद्धालु ऐसे होते हैं, जो एक महीने तक लगातार वहां रहते हैं और पूरी भक्ति में डूबे रहते हैं। ये लोग एक बार भोजन करते हैं, बाकी समय भजन और वन्दन में बीतता है। इन्हें कल्पवासी कहा जाता है। ये कल्पवासी संगम तट पर जब तक रहते हैं तब तक राम नाम लिखते रहते हैं। यहां एक जगह है जिसे अक्षयवट मार्ग कहा जाता है।
मान्यता है कि यहां किए गए किसी भी धार्मिक कार्य का पुण्य जन्म-जन्मान्तर तक रहता है। इसी पुण्य की लालसा में कल्पवासी राम नाम लिखते रहते हैं। लेकिन जब वे कल्पवासी संगम तट से चले जाते थे तो वे कागज इधर-उधर फैलते रहते थे। उनको संग्रहित करने के लिए कोई स्थान नहीं था। लगभग 35 वर्ष पहले प्रयाग में डी.एन. आर्य नामक एक आयकर आयुक्त थे। वे भी रामभक्त थे। अपने प्रभु के नाम वाले इन कागजों को अपवित्र होते देखकर उन्हें दु:ख होता था। उन्होंने इनके संरक्षण की पहल की। उनके साथ आशुतोष वार्ष्णेय के बाबा ईश्वरचन्द वार्ष्णेय (अब नहीं रहे) और कुछ अन्य लोग भी थे। इन्हीं लोगों ने राम नाम बैंक की स्थापना की और आज वही संगम के तट से निकलकर सात सागर के पार तक जा पहुंचा है।
राम नाम बैंक तो अयोध्या, लखनऊ, काशी सहित अनेक नगरों में हैं। ये सभी अलग-अलग हैं। इनका एक-दूसरे से कोई सम्बंध नहीं है। -अरुण कुमार सिंह
– 35 वर्ष पहले शुरू हुआ था राम नाम बैंक।
– पूरे प्रयाग में इसकी 42 शाखाएं हैं।
– 1,20,000 से अधिक खाताधारक हैं।
– इसमें श्रद्धालु ‘राम’ शब्द लिखकर जमा करते हैं।
– एक पुस्तिका में 3,240 राम शब्द लिखे जा सकते हैं।
– 84 वर्षीय जगतनारायण अग्रवाल अब तक 3,00,000 बार ‘राम’शब्द लिख चुके हैं।
– हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, तेलुगु, तमिल, बंगला सहित 16 भाषाओं में पुस्तिका उपलब्ध है।
– इस बैंक के खाताधारक हिन्दू तो हैं ही, साथ में मुसलमान, ईसाई, पारसी आदि भी हैं।
– नीदरलैंड के उद्योगपति हेंक केल्मन (रामकृष्ण दास) भी इसके खाताधारक हैं।
– फैजल खान हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू में रोजाना 1,000 बार राम नाम लिखते हैं।
– माघ मेले के समय संगम तट पर देशभर से श्रद्धालु आते हैं और वहां के अक्षय वट मार्ग पर साधना करते हैं और राम नाम लिखते हैं।
– ऐसी मान्यता है कि अक्षय वट मार्ग पर किए गए किसी भी धार्मिक कार्य का पुण्य जन्म-जन्मान्तर तक रहता है। इसी पुण्य की लालसा के साथ श्रद्धालु कागजों पर राम राम लिखते हैं और बैंक में जमा करवाते हैं।
करीब 10 वर्ष पहले किसी अखबार में राम नाम की महिमा पढ़ी थी। मन में हुआ कि एक बार राम नाम का सहारा लेकर देखता हूं कि जीवन में किस तरह के बदलाव आते हैं। इसके बाद राम नाम बैंक से पुस्तिका लेकर राम शब्द लिखकर बैंक में जमा करने लगा। इसके बाद जीवन में बड़ी कामयाबी मिली, जो अभी भी जारी है। हालांकि मेरे समाज के कुछ लोग मेरा विरोध भी करते हैं, लेकिन मैं उन्हें मना लेता हूं। मैं उन्हें कहता हूँ, कि मैं मरूंगा तो दफनाना ही जलाना नहीं, मैं आखिरी सांस तक मुसलमान ही रहूँगा।
गीता, कुरान सब एक समान,
इसे पढ़े हरेक इनसान।
न मजहब से न जात से,
हमारी पहचान हो इनसान से।।
– फैजल खान
खाताधारक, राम नाम बैंक
भविष्य में प्रयाग में मीनारनुमा एक परिक्रमा पथ बनाया जाएगा। उसमें अब तक जमा हुईं रामनामी पुस्तिकाओं को रखा जाएगा और श्रद्धालु उसकी परिक्रमा कर सकें, ऐसी व्यवस्था की जाएगी। इससे उन लोगों को भी भगवान श्रीराम की अनुकम्पा मिलेगी, जो रामनामी पुस्तिकाएं नहीं भरते हैं। इसके लिए काफी धन की आवश्यकता है। पर विश्वास है कि एक दिन प्रभु श्रीराम ही मेरे इस सपने को पूरा करेंगे।
-आशुतोष वार्ष्णेय, मंत्री, राम नाम बैंक
रामजी की कृपा ही है कि मैं इस उम्र में भी समाज में बहुत अच्छी तरह सक्रिय हूं। रोजाना रामभक्त आते हैं और मुझसे पुस्तिका ले जाते हैं। पुस्तिका जब भर जाती है तो वे लोग मुझे दे जाते हैं और मैं उन्हें निश्चित समय पर बैंक में जमा करा आता हूं। यह सब भगवान राम की वजह से ही हो रहा है। – जगतनारायण अग्रवाल, शाखा प्रबंधक, राम नाम बैंक
राम नाम बैंक से जुड़कर मैं अपने आपको भाग्यशाली मानता हूं। सेना में वरिष्ठ लेखा अधिकारी था। वहां की व्यस्तता सबको पता है। सेवानिवृत्त होने का समय जब नजदीक आने लगा तो मैं सोचने लगा था कि अब क्या करूं , लेकिन प्रभु की ऐसी माया रही कि उन्होंने मुझे अपनी सेवा में लगा लिया है। – सुशील कुमार पाण्डे, कार्यकर्ता, राम नाम बैंक
साभार- साप्ताहिक पाञ्चजन्य से