योगगुरु बाबा राम देव ने कहा है कि समलैंगिकता अप्राकृतिक है। उन्होंने कहा कि 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट का दुर्भाग्यपूर्ण फैसला आया था, जिसका विरोध करते हुए सभी संगठनों ने कोर्ट में याचिका डाली थी। बाबा रामदेव ने एलजीबीटी (लेजबियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर) कम्युनिटी को अपने पतंजलि योगपीठ में आने का निमंत्रण देते हुए कहा कि वे आकर वहां कुछ दिन रहें, उन्हें इस आदत से मुक्त किया जाएगा। सत्संग और योग के माध्यम से उन्हें इस लत से दूर करने में मदद करेंगे।
दिल्ली के� कॉन्सटिट्यूशन क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में बाबा रामदेव ने कहा कि मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करता हूं। कोर्ट ने सत्य का समर्थन करते हुए अनीति का महिमामंडन होने से रोका है। संसद के लोग नैतिक आचरण करते हुए अमानवीय, अधार्मिक और अप्राकृतिक कार्य को प्रोत्साहन नहीं देंगे और देश के करोड़ों लोगों की भावना का आदर करते हुए धारा-377 को बरकरार रखेंगे। समलैंगिक लोग समाज को पीछे लेकर गए हैं। समलैंगिक लोगों ने शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य, राजनीति के क्षेत्र में ऐसा कौन-सा इतिहास रचा है कि पुरी दुनिया के सामने वे आदर्श बनकर सामने आए हैं।
योगगुरु ने कहा, किसी भी धर्मग्रंथ में समलैंगिकता को नैतिक नहीं कहा गया है। ग्रंथों में 99 फीसदी पॉजिटिव आसपेक्ट है, समलैंगिकता लाइफ का नेगेटिव आसपेक्ट है। अनैतिक आचरण सभी क्षेत्रों में है, हमें उसका पोषण नहीं करना चाहिए। रामदेव ने महात्मा गांधी की बात का भी हवाला देते हुए कहा- गांधीजी ने कहा था कि हम किसी अनीति का समर्थन न करें। सत्ता का काम अनीति का समर्थन करना नहीं है। पिछली बार हाई कोर्ट के निर्णय से समलैंगिता जैसे अनैतिक कार्यों को प्रोत्साहन मिला था। आंतरिक रूप से दो व्यक्ति पर्दे के पीछे अनैतिक आचरण कर रहे हैं, उनको कौन रोक सकता है। लेकिन समाज में किसे प्रोत्साहन देना है और किसे नहीं, इसके बारे में सोचना जरूरी है।
नैतिकता की परिभाषा पर रामदेव ने कहा कि अगर हमारे माता-पिता समलैंगिक होते तो हम पैदा होकर नहीं आते। हम माता-पिता जैसे शब्दों का इस्तेमाल ही न कर पाते। यह अप्राकृतिक है। कोई भी मां ये नहीं चाहेगी कि उसका बेटा किसी पुरुष को बहू बनाकर घर में ले आए या उसकी बेटी पति के रूप में किसी लड़की को घर ले आए। मैं करोड़ों माताओं का प्रतिनिधित्व भी कर रहा हूं।