भारतीय मतदाताओं के साथ साथ चुनाव आयोग भी दिल्ली के मुख्यमंत्री व आआपा पार्टी के आभारी हो सकते है. उन्होंने एक काम अनायास ही ऐसा कर दिया जिससे वोटिंग मशीन की विश्वसनीयता स्थापित हुई है. सुनने यह भले ही विचित्र लगे लेकिन तार्किक दृष्टि से देखें तो एक काम बहुत ही बढ़िया हुआ है. बेशक आआपा की ‘मतदान-मशीन’ उन्हें सौंपने की मांग चुनाव आयोग ने ठुकरा दी है और आआपा ‘हैकेथोन’ से खुद को बाहर कर लिया है. इससे एक बात तय हो गई है कि आआपा जो करना चाहती थी उसे ‘टेम्परिंग’ कहते है, यानी छेड़छाड़ कहते है हैकिंग नहीं.
इससे पहले जिसकी चर्चा थी या आरोप लगाने वाले जो कहते रहे हैं, वह यह था कि मशीन को हैक किया जा सकता है और हम हैक करके दिखा सकते है. इसका अर्थ यह होता था कि जिस समय वोटिंग हो रही होती है, उसी समय कोई दूर बैठा व्यक्ति मशीन को बिना छुए हैक कर यानी उस पर कब्जा कर मन चाही पार्टी के खाते में वोट दर्ज करवा सकता है. यह काम उस समय भी हो सकता है जब मशीनें स्ट्रोंग रूम में पड़ी हो या तब हो सकता है जब मतगणना चल रही हो. इस प्रकार की हैकिंग की शंकाएं पहले हारे हुए लोगों द्वारा व्यक्त की जाती रही है.
लेकिन अब कहा जा रहा है कि हमें मशीन छूने दो. यानी आप भी मानते हो कि बिना मशीन को छुए, बिना खोले आप उसे दूर बैठ कर हैक नहीं कर सकते? मशीन को केवल टैम्पर किया जा सकता है, हैक नहीं किया जा सकता.
अब जबकि टैम्पर की संभावना ही बचाती है, सवाल उठता है की क्या मतदान की मशीनों को कोई व्यक्ति तमाम सुरक्षा व्यवस्था के बिच खोल कर उनके मदर बोर्ड बदल सकता है? या फिर मशीनों को खोल कर उनके इलेक्ट्रोनिक पुर्जों को बदला गया है? याद रहे मशीन इस तरह से बनी है कि इस तरह की छेड़छाड़ से वे बेकार हो जाती है. और फिर किसी मशीन को देख कर ही पता लगाया जा सकता है की इसके हिस्से बदले गए हैं या नहीं. कुल मिला कर जिसे भी शंका हो जिस मशीन को कहे उस मशीन को खोल कर दिखाया जा सकता है कि इसके पुर्जे बदले नहीं गए है. रही बात हैकिंग की तो वह आपने मान ही लिया है कि बिना छुए संभव नहीं है.