हर दिन कृष्ण भक्ति संगीत एवं कथा की रस धारा बहाता मथुरा न केवल भारत का वरन् विदेशों में भी सर्वलोकप्रिय धार्मिक शहर है। महाभारत काल से ही ग्रंथों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है। मथुरा में भगवान कृष्ण का जन्म होने से यह स्थान विशेषकर हिन्दुओं में पूज्यनीय, पावन एवं आस्था स्थल है। इसे सप्तपुरियों में एक पवित्र स्थल माना जाता है। मथुरा प्राचीन समय में सुरसेन के राज्य की राजधानी थी जो कृष्ण के मामा थे। मथुरा के साथ गोकुल, बरसाना और गोर्वधन जैसे कृष्ण से जुड़े धार्मिक स्थल है। कृष्ण का मथुरा में जन्म होने के बाद उन्हें गोकुल ले जाया गया था। बरसाने में उनकी पत्नि राधा रहती थी तथा यहां की लठमार होली विश्व प्रसिद्ध है। गोर्वधन वह स्थान है जहां श्रीकृष्ण ने अपनी कन्नी अंगुली पर गोर्वधन पर्वत को उठाया था। कृष्ण ने अपने मामा और मथुरा के शासक कंस को मार कर उसके कष्टों से जनता को मुक्त कराया था। पावन यमुना नदी के किनारे स्थित इस स्थान को मथुरा मंडल या ब्रज भूमि भी कहा जाता है।
कृष्ण जन्म के स्थान काराग्रह के स्थल पर प्राचीन समय में केशव देव मंदिर का निर्माण किया गया था। यह स्थान अब केशव देव मंदिर के रूप में है। यहां जन्म भूमि में गर्भगृह, दर्शन मण्डप, केशव देव मंदिर, भागवत भवन, श्रीकृष्णा कठपुतली लीला एवं वैष्णव देवी गुफा दर्शनीय है। जिस जगह कृष्ण ने जन्म लिया था वहां खुदाई में प्राप्त 1500 वर्ष प्राचीन गर्भ गृह एवं सिंहासन को सुरक्षित रखा गया है। गर्भ गृह के ऊपर एक बरामदा बना हैं जिस पर संगमरमर के पत्थर लगे हैं। इन पत्थरों पर भगवान श्रीकृष्ण की कई छवियां नजर आती हैं। यहां केशव देव मंदिर सबसे प्राचीन है। भागवत भवन बाद में बनाया गया जहां 12 फरवरी 1982 को विधिवत राधा-कृष्ण की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस भवन में सीता-राम-लक्ष्मण, जगन्नाथ, महादेव बाबा, हनुमान जी एवं माँ शेरावाली के मंदिर भी बने हैं।
धार्मिक दृष्टि से मथुरा में प्रेम मंदिर वृंदावन , राधा गोविंद देव जी मंदिर, राधा मदन मोहन मंदिर , राधा दामोदर मंदिर , राधा गोपीनाथ मंदिर, बांके बिहारी मंदिर , कृष्ण बलराम मंदिर , रंगाजी मंदिर, राधा वल्लभ मंदिर , निधिवन और सेवा कुंज आदि प्रमुख मन्दिर हैं।
मंदिरों और यमुना के घाटों आदि की वजह से यह धार्मिक नगर का स्वरूप लिए हैं। यमुना नदी पर 25 पवित्र घाट बने हैं एवं प्रतिदिन सांय काल घाट पर आरती दर्शनीय होती है। मथुरा के निकट धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व के स्थलों में 15 कि.मी. पर गोकुल, 18 कि.मी. पर महावन, 27 कि.मी. पर बलदेव, 50 कि.मी. पर बरसाना एवं 60 कि.मी. पर नन्दगांव दर्शनीय स्थलों में शामिल हैं।
मथुरा से 12 किमी दूर वृंदावन में मंदिरों की आकाशगंगा है, जो तीर्थयात्रियों के लिए बहुत ही पवित्र स्थान है। पुरातत्व प्रमाणों के अनुसार यहां से लगभग 1200 ईसा के समय के मिट्टी के बर्तन एवं औजार आदि सामग्री प्राप्त हुई हैं। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से मौर्य साम्राज्य का प्रभाव जैन और बौद्ध मूर्तियों में यहां देखने को मिलता है। इस अवधि के दौरान मथुरा एक वाणिज्यिक केंद्र था। मुगलों के समय केशव मन्दिर को ध्वस्त कर दिया गया और उसके स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया जो आज भी मन्दिर की बगल में स्थापित है। ब्रिटिश पुरातत्वविदों ने शहर की प्राचीन ऐतिहासिकता को फिर से बनाने और भारतीय संस्कृति को अंतर्दृष्टि प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। कृष्ण मंदिर और प्राचीन इतिहास दोनों अब शहर के प्रमुख आकर्षण हैं।
इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण पुरासम्पदा मथुरा के संग्रहालय में दर्शनीय है। कृष्ण जन्म यहां भव्य रूप से मनाया जाता है जिसमें विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। इसके साथ-साथ बरसाने की लठ मार होली विदेशों में भी लोकप्रिय है। वृंदावन की 24 कोसिय परिक्रमा करना पुण्यकरी माना जाता है। इसमें गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाने के साथ-साथ कई मंदिरों के दर्शनों का सौभाग्य भी प्राप्त होता है। मथुरा, आगरा से उत्तर में लगभग 50 किलोमीटर और दिल्ली से दक्षिण में 150 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। मथुरा दिल्ली-मुंबई बड़ी रेलवे लाइन पर प्रमुख स्टेशन है।
राजकीय संग्रहालय मथुरा का राजकीय संग्रहालय इस तथ्य की पुष्टि करता है कि मथुरा कला की भारतीय कला को बड़ी देन है। यहां शक, कुषाण, हूण एवं मौर्ययुगीन प्रतिमाओं का विशद संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मथुरा संग्रहालय मथुरा रेलवे स्टेशन से लगभग 2.5 किलोमीटर की दूरी पर है और नये बस स्टैंड से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थानीय डेंम्पीयर पार्क में स्थित है। यह संग्रहालय इतना विशद है कि इसकी सामग्री देश-विदेश के कई संग्रहालयों में प्रदर्शित हैं। सामग्री का सबसे बड़ा हिस्सा इस संग्रहालय में ही सुरक्षित है। यहां से कई प्रतिमाएं लखनऊ, कोलकाता, मुम्बई एवं वाराणसी के संग्रहालयों में भेजी गई जो वहां मथुरा कला का दिग्दर्शन कराती हैं। यही नहीं यहाँ की मूर्तियां अमेरिका के बोस्टन संग्रहालय में, पेरिस, लन्दन व जुरिख के संग्रहालयों में प्रदर्शित हैं। इसके बावजूद भी मथुरा संग्रहाल में संग्रहित प्रतिमाएं एवं अन्य सामग्री यहां की कला एवं संस्कृति से परिचय कराने के लिए पर्याप्त हैं। इस संग्रहालय की स्थापना वर्ष 1874 ई. में तत्कालीन जिलाधीश श्री एफ. एस. ग्राउज द्वारा की गई थी।
संग्रहालय में शासकों के लेखों से अंकित मानवीय आकारों में बनी प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। बौद्ध एवं जैन धर्म से सम्बन्धित तीर्थंकरों की प्रतिमाएं भी देखने को मिलती हैं। शक राज पुरूष, बुद्ध प्रतिमाएं, कुबेर प्रतिमा, यक्ष प्रतिमा, विम तक्षम, राजा कनिष्क, हरनिैमगेश, मौर्यकालीन मृण्मूर्ति, भारवाही यक्ष, शुंग कालीन मृणमूर्ति, यक्ष मूर्ति, बोधसत्व मूर्ति, तीर्थंकर पार्श्वनाथ, पगड़ी पहिने दण्डधारी पुरूष, अजमुखी जैन मातृदेवी जैसी प्रमुख दर्शनीय प्रतिमाएं हैं। संग्रहालय के अमूल्य खजाने में करीब 5058 पाषाण प्रतिमाएं , 2797 मृण मूर्तियां , 350 धातु कलाकृतियां, 292 मृदा पात्र, 415 चित्र, 178 स्वर्ण सिक्के, 5567 चांदी के सिक्के,15,531 तांबे के सिक्के, 32 आभूषण, 12 हजार सौंख संकलन एवं 1283 विविध सामग्री प्रदर्शित की गई हैं। यहां मूर्तियों के छायाचित्र बनाकर समूल्य उपलब्ध कराने की भी व्यवस्था है। इतिहास एवं पुरातत्व में रूचि रखने वालों को यह संग्रहालय अवश्य देखना चाहिए। संग्रहालय प्रात: 10 से सांय 5.00 बजे तक खुला रहता है।
(लेखक पुरातात्विक, धार्मिक व ऐतिहासिक विषयों पर लिखते हैं)