एनसीईआरटी की पुस्तकों में संशोधन पर राजनीति हो रही है ।एनसीईआरटी में संशोधन के दो कारण हैं:-
१.छात्रों पर बोझ कम करना ;
२.पाठ्यक्रम को शिक्षार्थियों/विद्यार्थियों के अनुकूल तैयार करना ;क्योंकि जो हम पढ़ते हैं,वह हमारे चारित्रिक व्यक्तिव का अभिन्न भाग हो जाता हैं।
इतिहास के पाठयपुस्तकों का संशोधन संरचनात्मक उपादेयता का विषय है ।यह अपने राष्ट्रीय बहादुर व्यक्तित्व को जानने, समझने व ज्ञान अर्जित करने का संरचनात्मक भाग है। पाठ्य पुस्तक लेखन एक यौगिक बौद्धिक प्रक्रिया है। यह युवा मानसिक चेतन /अचेतन मस्तिष्क में छाप छोड़ती है और ज्ञान के लिए विश्लेषणात्मक व वैज्ञानिक अनुसंधान व नवोन्मेष लिए मदद करती है। इस प्रकार का लेखन कार्य अकादमिक जगत के मूर्धन्य विद्वानों द्वारा किया जा रहा है ,जो भारत के विकसित प्रतिरूप के अनुरूप है।
कोई भी पाठ्यपुस्तक उस देश की सरकार की क्रियात्मक अर्जन होती है, सरकार का क्रियात्मक लक्ष्य होता है; इस तरह यह सरकार का वैचारिक, बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक एवं मनो नैतिक परियोजना होती हैं। इतिहास व राजनीति विज्ञान की पुस्तकों का पुनरीक्षण अधिक संवेदनशील होता है। ये विषय समकालीन प्रासंगिकता व उपादेयता के मुद्दों पर विचार करने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करता है। छात्रों को सामाजिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं को इतिहास के तराजू/पैमाना की कसौटी पर तौलकर अतीत और वर्तमान के बीच तार्किक व वैज्ञानिक सामंजस्य बनाना सिखाते हैं। इन पुस्तकों के माध्यम से विद्यार्थी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय विषयों पर अपने अवधारणा बनाते हैं। एनसीईआरटी में बदलाव इन्हीं उपादेयता के आधार पर किया जा रहा है, जिससे विद्यार्थियों एवं इसके अवधारणा का रोडमैप बना सकें।
१. इतिहास के पाठ पुस्तकों का संशोधन” स्व” से प्रेरित है। यह अपने गौरवशाली इतिहास, प्रकाकर्म्यता का इतिहास व अतीत को जानने व समझने का शुभ अवसर प्रदान करेगा;
२. शिक्षाविद व अध्येता मानते हैं कि पाठ्य पुस्तक लेखन एक जटिल बौद्धिक प्रक्रिया है। यह ऊर्जावान मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ती है ,और ज्ञान/प्रत्यय/ प्रज्ञा की आभा वेला में शोध करने में सहयोग करती हैं। इस प्रकार लेखन संशोधन और विलोपन बौद्धिक वर्ग के नियंत्रण में होना चाहिए;
३. पाठ्यपुस्तक देश की सरकार व व्यवस्था की उपलब्धियों का संकलन होता है, इस तरह यह वैचारिक आंदोलन है।
(लेखक प्राध्यापक व राजनीतिक विश्लेषक हैं)