राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आज से दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिन का विचार अनुष्ठान शुरू हो रहा है। ‘भविष्य का भारतः राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दृष्टिकोण’ विषयक इस अनुष्ठान में राष्ट्रीय मुद्दों पर संघ के विचारों, उसके नजरिये एवं कार्यक्रमों को प्रकट किया जायेगा। जिसमें उससे वैचारिक मतभेद रखने वाले चिन्तकों, राजनेताओं, समाजसुधारकों एवं धर्मगुरुओं को भी आमन्त्रित किया गया है। सर्वविदित है कि वर्तमान भारतीय जनता पार्टी सरकार मूल रूप से संघ की नीतियांे एवं विचारों की सरकार है। यह सरकार संघ के राष्ट्रवाद और देश प्रेम की परिकल्पना को आकार दे रही है, जिस पर विरोध एवं विवाद के धुंधलके अक्सर रहे हैं। लेकिन संघ एवं भाजपा सरकार ने संघ का विरोध करने वाले लोगों, विचारकों, राजनीतिक दलों को अपनी नीतियों, कार्यक्रमों एवं राष्ट्रवाद की परिकल्पना के यथार्थ से परिचित कराने का निरन्तर प्रयत्न किया है, विभिन्न विरोधी विचारधाराओं के साथ सामंजस्य बनाकर चलने का प्रयत्न भी किया है और आयोज्य विचार-अनुष्ठान उसी दिशा में आगे बढ़ने का एक सकारात्मक प्रयत्न है। निश्चित ही इससे संघ को लेकर एक नया वातावरण बनेगा।
संघ के बुनियादी पत्थर पर भारत के नव-निर्माण का सुनहला भविष्य लिखा गया था। इस लिखावट का हार्द था कि हमारा भारत एक ऐसा राष्ट्र होगा जो शक्तिशाली होने के साथ-साथ भारतीय मूल्यों का जीवंत स्वरूप होगा। जहां न शोषक होगा, न कोई शोषित, न मालिक होगा, न कोई मजदूर, न अमीर होगा, न कोई गरीब। सबके लिए शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा और उन्नति के समान और सही अवसर उपलब्ध होंगे। आजादी के सात दशक बीत रहे हैं, अब साकार होता हुआ दिख रहा है संघ के द्वारा जागती आंखों से देखा गया वह स्वप्न। अहसास हो रहा है स्वतंत्र चेतना की अस्मिता का। अब बन रहा है नया भारत।
साल 1925 में दशहरे के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। सांप्रदायिक हिंदूवादी, फासीवादी और इसी तरह के अन्य शब्दों से पुकारे जाने वाले संगठन के तौर पर आलोचना सहते और सुनते हुए भी संघ परिवार को कई दशक हो चुके हैं। दुनिया में शायद ही किसी संगठन की इतनी आलोचना की गई होगी जितनी संघ की गई है। अपनी साफ नीतियों एवं राष्ट्रवादी विचारधारा के कारण ही वह अक्षुण्ण है, हर संकट को पार कर अपनी उपयोगिता एवं प्रासंगिकता सिद्ध कर पाया है। संघ के खिलाफ लगा हर आरोप हर बार पूरी तरह कपोल-कल्पना और झूठ साबित हुआ है। ऐसे कई मौके आये हैं जब संघ ने बिना किसी भेदभाव के अपने मूल कर्तव्यों का पालन करते हुए लोगों की सहायता की है चाहे वह भूकंप का समय हो या फिर भयंकर बाढ़ का। चाहे वह समय युद्ध का हो या राजनीतिक अस्थिरता का। संघ ने देश के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे। विभाजन के दंगे भड़कने पर, पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज्यादा राहत शिविर लगाए थे। 1962 के युद्ध के दौरान सेना की मदद के लिए देशभर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा। जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी। सैनिक आवाजाही मार्गों की चैकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद, और यहां तक कि शहीदों के परिवारों की भी चिंता उसने की। संगठन की शक्ति एवं अनुशासन के कारण ही जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा। कश्मीर के विलय में उपस्थित बाधाओं को दूर करने में भी संघ की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को भी संघ याद आया था। दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका थी। 1975 से 1977 के बीच आपातकाल के खिलाफ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में संघ की भूमिका की याद अब भी कई लोगों के लिए ताजा है।
भारतीय जनता पार्टी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती, राष्ट्र सेविका समिति, शिक्षा भारती, स्वदेशी जागरण मंच, विद्या भारती, संस्कार भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, लघु उद्योग भारती, विश्व संवाद केंद्र-ये संघ से जुड़ी संस्थाएं भारतीय संस्कारों को शिक्षा, सेवा, परोपकार, राष्ट्रवाद के साथ जोड़े रखती हैं। अकेला सेवा भारती देश भर के दूरदराज के और दुर्गम इलाकों में सेवा के एक लाख से ज्यादा काम कर रहा है। लगभग 35 हजार एकल विद्यालयों में 10 लाख से ज्यादा छात्र अपना जीवन संवार रहे हैं। 1971 में ओडिशा में आए भयंकर चक्रवात से लेकर भोपाल की गैस त्रासदी तक, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से लेकर गुजरात के भूकंप, सुनामी की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा तक – संघ ने राहत और बचाव का काम हमेशा सबसे आगे होकर किया है। भारत में ही नहीं, नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा तक में उसने सहायता एवं सेवा को बढ़-चढ़कर करके मानवता के अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किये हैं।
संघ की समूची सोच के केन्द्र में हिन्दुत्व का मुद्दा जुड़ा रहा है। इसके राष्ट्रवाद का इसे पर्याय कहा जा सकता है। अक्सर इस मुद्दे को लेकर गलतफहमियां भी पनपती रही है और कभी-कभी हिन्दुत्व व भारतीयता एक-दूसरे के आमने-सामने भी खड़े होने की स्थिति में आते रहे हैं। संघ के विचारक इसमें भेद स्वीकार नहीं करते हैं और मानते हैं कि भारत का उद्गम ही हिन्दुत्व के सूत्र से बन्धा हुआ है। संघ ने भारत को सशक्त बनाने के लिये अपनी मौलिक विचारधारा के बावजूद विरोधी विचारधाराओं को भी साथ लेकर चलने का प्रयास किया है, स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा नीत सांझा सरकार बनी थी तो उसमें दो दर्जन के लगभग राजनीतिक दल शामिल थे और इनमें से शिवसेना जैसी पार्टी के अलावा शेष सभी दलों की विचारधारा भाजपा से किसी भी स्तर पर मेल नहीं खाती थी। यहां तक कि अकाली दल से भी नहीं। बाद में 1999 में जब श्री वाजपेयी की पुनः सरकार स्थापित हुई तो उसमें प. बंगाल की तृणमूल कांग्रेस की नेता सुश्री ममता बनर्जी भी शामिल हुईं और दक्षिण भारत की द्रविड़ संस्कृति मूलक वे पार्टियां भी शामिल हुईं जो हिन्दुत्व के सिद्धान्त को नकारते हुए ही सामाजिक न्याय के सिद्धांत के बूते पर अपनी हैसियत में आई थीं। जो इस बात का प्रतीक है कि संघ की विचारधारा का विरोध करने वाले लोग भी उसके विचारों को कहीं न कहीं मान्यता देते हैं।
असल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विलक्षण एवं अनूठा संगठन है, प्रशिक्षण की ऐसी प्रयोगशाला है जिसमें प्रशिक्षण लेकर स्वयंसेवक विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों में कार्य करते हैं उनमें से राजनीति भी एक है। संघ का मानना था कि राम मन्दिर का सम्बन्ध भारत की राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ा हुआ हैै। यह स्वीकार करने से कोई गुरेज नहीं कर सकता कि राम मन्दिर आन्दोलन हिन्दुत्व का ही ध्वज प्रवाहक था। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे राष्ट्रीय आन्दोलन कहा था। आशा की जानी चाहिए कि संघ अपने इस विचार-अनुष्ठान के माध्यम से विरोधियों की शंकाओं का निवारण करेगा। संघ अपनी खिड़कियां खोल रहा है ताकि संघ की ताजा खुशबू को महसूस करते हुए हम भारत को मजबूत बना सकें। संघ प्रमुख मोहन भागवत हिंदू, हिन्दुत्व से लेकर राष्ट्र की अवधारणा तक बने भ्रम और आशंकाओं को दूर करने की कोशिश करेंगे। कार्यक्रम में अलग-अलग धर्मों के धर्मगुरु और विद्वानों को इसलिए शामिल किया गया है ताकि संघ को लेकर बने तमाम भ्रम दूर किए जा सकें। संघ का मानना है कि प्रबुद्ध वर्ग राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर संघ का दृष्टिकोण जानने को उत्सुक है, इसलिए समसामयिक विषयों पर इस कार्यक्रम में संघ प्रमुख अपने विचार सबके सामने रखेंगे। पिछले दिनों आरएसएस ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी नागपुर में संघ मुख्यालय पर संबोधन के लिए आमंत्रित किया था। सिर्फ भागवत ही क्यों, इसी जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज केटी थॉमस ने केरल के कोट्टायम में संघ प्रशिक्षण शिविर को संबोधित करते हुए कहा था, ‘संविधान, लोकतंत्र और सेना के बाद आरएसएस की वजह से ही देश में लोग सुरक्षित हैं।
विरोधों एवं विवादों के बीच हमने देखा है कि संघ की सोच का नया भारत निर्मित हो रहा है।
भाजपा के शासनकाल में यह संकेत बार-बार मिलता रहा है कि हम विकसित हो रहे हैं, हम दुनिया का नेतृत्व करने की पात्रता प्राप्त कर रहे हैं, हम आर्थिक महाशक्ति बन रहे हैं, दुनिया के बड़े राष्ट्र हमसे व्यापार करने को उत्सुक हंै, महानगरों की बढ़ती रौनक, गांवों का विकास, स्मार्ट सिटी, कस्बों, बाजारों का विस्तार अबाध गति से हो रहा है। भारत नई टेक्नोलॉजी का एक बड़ा उपभोक्ता एवं बाजार बनकर उभरा है-ये घटनाएं एवं संकेत शुभ हैं। आज भारतीय समाज आधुनिकता के दौर से गुजर रहा है। इन सब स्थितियों के बावजूद सात दशक की आजादी का आकलन करते हुए हमें इन रोशनियों के बीच व्याप्त घनघोर अंधेरों पर नियंत्रण तो करना ही होगा तभी भारत को पूर्ण विकसित एवं शक्तिशाली अखण्ड राष्ट्र बना सकेंगे, तभी आजादी को सार्थक दिशा दे पायेंगे। इस दृष्टि से संघ का विचार अनुष्ठान एक मील का पत्थर साबित होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।
संघ रूपी उजाले को छीनने के कितने ही प्रयास हुए, हो रहे हैं और होते रहेंगे। उजाला भला किसे अच्छा नहीं लगता। आज हम बाहर से बड़े और भीतर से बौने बने हुए हैं। आज बाहरी खतरों से ज्यादा भीतरी खतरे हैं। आतंकवाद, नक्सलवाद और अलगाववाद की नई चुनौतियां हैं। लोग समाधान मांग रहे हैं, पर गलत प्रश्न पर कभी भी सही उतर नहीं होता। हमें आजादी प्राप्त करने जैसे संकल्प और तड़प उसकी रक्षा करने के लिए भी पैदा करनी होगी। जब तक लोगों के पास रोटी नहीं पहुँचती, तब तक कोई राजनीतिक ताकत उसे संतुष्ट नहीं कर सकती। रोटी के बिना आप किसी सिद्धांत को ताकत का इंजेक्शन नहीं दे सकते।
125 करोड़ के राष्ट्र को संघ रूपी रोशनी कह रहा है कि मुझे आकाश जितनी ऊंचाई दो, भाईचारे का वातावरण दो, मेरे सफेद रंग पर किसी निर्दोष के खून के छींटे न लगें, आंचल बन लहराता रहे। मेरी धरती के टुकड़े न होने दें, जो भाई-भाई के गले में हो, गर्दन पर नहीं। मूर्ति की तरह मेरे राष्ट्र का जीवन सभी ओर से सुन्दर हो।
जन भावना लोकतंत्र की आत्मा होती है। लोक सुरक्षित रहेगा तभी तंत्र सुरक्षित रहेगा। लोक के लिए, लोक जीवन के लिए, लोकतंत्र के लिए जरूरत है कि उसे शुद्ध सांसें मिलें। लोक जीवन और लोकतंत्र की अस्मिता को गौरव मिले। इसी सन्देश में संघ के विचार-अनुष्ठान की सार्थकता निहित है।
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(ललित गर्ग)
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