उज्बेकिस्तान की राजधानी समरकंद में भारत, अफगानिस्तान और पांच मध्य एशियाई देशों ने एकजुट होकर आतंकवाद से निपटने का संकल्प लिया है। इन देशों में एवं दुनिया के अन्य हिस्सों में आतंकवाद जितना लम्बा चल रहा है, वह क्रोनिक होकर विश्व समुदाय की जीवनशैली का अंग बन गया है। इसमें ज्यादातर वे युवक हैं जो जीवन में अच्छा-बुरा देखने लायक बन पाते, उससे पहले उनके हाथों में एके-47 एवं ऐसे ही घातक हथियार थमा दिये जाते है। फिर जो भी वे करते हैं, वह कोई धर्म नहीं कहता। आखिर कोई भी धर्म उनके साथ नहीं हो सकता जो उसकी पवित्रता को खून के छींटों से भर दे। आखिर आतंकवाद का अंत कहां होगा? तेजी से बढ़ता आतंकवादी हिंसक दौर किसी एक देश का दर्द नहीं रहा। इसने दुनिया के हर इंसान का जख्मी बनाया है। अब इसे रोकने के लिये प्रतीक्षा नहीं, प्रक्रिया आवश्यकता है। यदि इस आतंकवाद को और अधिक समय मिला तो हम हिंसक वारदातें सुनने और निर्दोष लोगों की लाशें गिनने के इतने आदी हो जायेंगे कि हमारी सोच, भाषा एवं क्रियाशीलता जड़ीभूत बन जायेंगी। नये समाधान के लिये ठंडा खून और ठंडा विचार नहीं, क्रांतिकारी बदलाव के आग की तपन चाहिए, इस दृष्टि से समरकंद में रविवार को भारत-दक्षिण एशिया संवाद एक सही दिशा में उठा सही कदम हैं।
यह एक शुभ एवं श्रेयस्कर शुरुआत है कि मध्य एशिया के उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, किरगिज गणराज्य, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के देश आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़े हुए हैं। मध्य एशिया के ये देश पश्चिम एशिया के संकट से अछूते नहीं हैं। भारत सहित ये सारे देश किसी न किसी रूप में आतंकवाद की मार झेल रहे हैं। खासतौर पर अफगानिस्तान तो तालिबान के आतंक से लगभग तबाह हो ही चुका है। भारत खुद तीन दशक से ज्यादा समय से सीमापार आतंकवाद से त्रस्त है और समय-समय पर कई बड़े आतंकी हमले झेल चुका है। कश्मीर सहित देश के अन्य हिस्सों में हर दिन आतंकवादी हिंसक एवं खूनी खेल जनजीवन को लहूलुहान करता रहता हैं। ऐसे में इन सभी देशों का भारत के साथ आना हर लिहाज से महत्वपूर्ण हैं। भारत के लिए भी यह जरूरी है कि वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में इन देशों को साथ रखें।
आतंकवाद से निपटने को लेकर समरकंद के संवाद की पहली बैठक के बाद जो साझा बयान जारी हुआ, उसके केंद्र में सबसे बड़ी चिंता आतंकवाद ही रही। सभी नेताओं ने एक स्वर में इस पर सहमति जताई है कि आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है और इससे मुकाबला के लिए एकजुट होना पड़ेगा। इस संवाद का उद्देश्य इन देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की हरसंभव कोशिश करना है ताकि आतंक के खतरे से वे मिलकर निबट सकें। यह बेहद जरूरी है, न केवल इन देशों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए। अफगानिस्तान में हमने भयावह आतंकी हमले देखे, जैसा कि अभी काबुल में हुआ था, पाकिस्तान में भी भयानक आतंकी हमले देखे और पूरी दुनिया में आतंकी हमले देखे। अब समय आ गया है कि हम आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हो जाएं। अहिंसा, अमन एवं शांति की चाह रखने वाले देश कहीं अलगाव की दुनिया, घृणा का मजहब, हिंसा की सड़क तो नहीं बना रहे हैं? अंधेरा कभी जीता नहीं जाता। किसी को भयभीत नहीं करके ही स्वयं भयरहित रहा जा सकता है। एक हत्या को दूसरी हत्या से रद्द नहीं किया जा सकता और दो गलतियाँ मिलकर कभी एक सही काम नहीं कर सकतीं। आतंकी हमले इंसानों के हृदयों में कम, दिमागों में ज्यादा होते हैं, उनमें उन्माद एवं त्रासद जिहाद व्याप्त है, जिससे उनका जनमानस विकृत हो गया है। यह समस्या विश्व की दूसरी समस्याओं में सबसे देरी से जुड़कर सबसे भयंकर रूप से मुखर हुई है। लगता है विश्व जनसंख्या का अच्छा खासा भाग आतंकवादी हिंसा से पीड़ित हो चुका है। अगर आंकड़ों को सम्मुख रखकर विश्व मानचित्र (ग्लोब) को देखें, तो हमें सारा ग्लोब आतंक से पीड़ित दिखाई देगा।
आतंकवाद से आज दुनिया का शायद ही कोई देश अछूता है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की समस्या से मुकाबला करने और शांति, सुरक्षा, मानवता, मानवाधिकार और सतत विकास के क्षेत्रों के बीच समन्वय की नयी रूपरेखा जारी की है। इस रूपरेखा को ‘संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवाद निरोधक समन्वय प्रभाव’ नाम दिया गया है। यह संयुक्त राष्ट्र प्रमुख, 36 सांगठनिक निकायों, अंतरराष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (इंटरपोल) और विश्व सीमाशुल्क संगठन के बीच समझौता है जो अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की समस्या से निपटने के लिए सदस्य देशों की जरूरत को बेहतर तरीके से पूरा करने के लिए किया गया है। इसी भांति भारत-दक्षिण एशिया संवाद की पहली बैठक में आतंकवाद को समाप्त करने का जो संकल्प लिया गया है, निश्चित ही उससे विश्व मानवता को उजाला मिलेगा, आतंकवादी मानसिकता को बदलने की दिशा में सकारात्मक भूमिका बन सकेगी।
मध्य एशिया के देशों से भारत के रिश्तों का इतिहास काफी पुराना रहा है। गहरे सांस्कृतिक और कारोबारी रिश्ते रहे हैं। लेकिन अब यह पूरा क्षेत्र आतंकवाद की गिरफ्त में है। मध्य एशिया के देश प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हंै। इसलिए सबके सामने यह खतरा बना हुआ है कि जिस तरह इस्लामिक स्टेट और दूसरे आतंकी संगठन पश्चिमी एशिया को अपना गढ़ बना चुके हैं और दूसरी ओर मुस्लिम बहुल आबादी वाले अफ्रीकी देशों को अपने कब्जे में कर लिया है, आने वाले वक्त में कहीं वैसी ही स्थिति मध्य एशियाई देशों को भी न होने लगे। यह बात भी सबकी समझ में आ चुकी है कि आतंकवाद छोटे देशों और अर्थव्यवस्थाओं को तेजी से चैपट कर रहा है। ऐसे में अगर भारत और मध्य एशिया के छोटे देश एकजुट होते हैं तो इससे आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों पर दबाव बनेगा, इसके लिये सकारात्मक पहल एवं वातावरण निर्मित हो रहा है, उसका स्वागत होना चाहिए।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ जो मुहिम छेड़ी हुई है, यह उसी का नतीजा है कि दुनिया के कई देशों ने आतंकवाद से निपटने में भारत के नेतृत्व को स्वीकार किया है। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने पहले भी कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान की प्रभावी एवं परिणामदायी यात्रा कर चुकी हैं। भारत सरकार का मकसद मध्य-पूर्व में भारत की पैठ बढ़ाना रहा है। ऐसा करना भारत के हितों के लिए जरूरी है, कारोबारी और सामरिक दोनों ही दृष्टियों से। ये देश शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के भी स्थायी सदस्य हैं। मध्य एशियाई देश तेल-गैस ऊर्जा क्षेत्र में भारत के लिए बड़े मददगर हैं। भारत के प्रयासों से आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी वातावरण निर्मित हो रहा है। आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में अगर मध्य पूर्व में भारत बड़ा क्षेत्रीय मोर्चा खड़ा कर लेता है तो पाकिस्तान के लिए भी यह कड़ा संदेश होगा। समरकंद की इस बैठक में सबसे बड़ी सफलता अफगानिस्तान की मौजूदगी रही, जो इस बात का प्रमाण है कि भारत आतंकवाद से ग्रस्त अपने सहयोगी देशों को किसी भी सीमा तक मदद देगा और उनके पुनर्निर्माण में भूमिका निभाएगा।
आतंकवाद रोकथाम के लिए भी विश्व स्तर पर पूरी ताकत, पूरे साधन एवं पूरे मनोबल से एक समन्वित लड़ाई लड़नी होगी। वरना कुछ मनुष्यों की गलतियां एवं उन्माद विश्व मानवता को निगल जाएगी। भयंकर विनाशकारी आतंकवाद के प्रयोग की आशंका से सारी दुनिया भयग्रस्त एवं आतंकित हैं। विश्व जनमत को इस स्तर तक मुखर होना चाहिए कि बढ़ी आतंकी शक्तियों को इसके दुरुपयोग से रोका जा सके, अन्यथा एक मर्यादा लांघने के बाद होने वाले सर्वनाश को देखने के हम आदी बने रहेंगे। शांति का उजाला एवं अहिंसा की ज्योति को प्रज्ज्वलित रखने के लिये आतंकवाद को समाप्त करना ही होगा। इसके लिये भारत-दक्षिण एशिया संवाद एक सार्थक पहल हैं।
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(ललित गर्ग)
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