मुंबई। जैन धर्म की प्राचीनकाल से चली आ रही धार्मिक व्यवस्था ‘संथारा’ को राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा आत्महत्या करार दिए जाने से नाराज जैन समाज ने सोमवार को मुंबई के विभिन्न इलाकों में प्रदर्शन किया। जिनमें हजारों जैन धर्मावलंबियों ने भाग लेकर अपना विरोध दर्ज किया। वालकेश्वर में विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा द्वारा आयोजित धर्म सभा के बाद जैन समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने राज्यपाल को ज्ञापन दिया। राजभवन में राज्यपाल से मिले इस प्रतिनिधि मंडल के गच्छाधिपति आचार्य प्रद्युम्नविमल सूरीश्वर महाराज, आचार्य हेमचंद्र सूरीश्वर महाराज, आचार्य कुशलचंद्र सूरीश्वर महाराज, मुनि भाग्यचंद्र विजय महाराज, डॉ. चंदनाश्रीजी महाराज आदि जैन संतों के साथ कनक परमार, अतुल वृजलाल शाह, श्रीमती मंजू लोढ़ा, गिरिशभाई शाह, किशन डागलिया आदि ने राज्यपाल को जैन समाज की भावनाओं से अवगत कराया।
मुंबई का सबसे प्रमुख विरोध कार्यक्रम वालकेश्वर स्थित बाबू अमीचंद पन्नालाल जैन मंदिर में आयोजित हुआ। इस धर्म सभा में विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा के प्रयासों से जैन समाज की कुल 126 संस्थाओं के पदाधिकारी व अन्य हजारों लोग इस धर्म सभा में शामिल हुए। इस मौके पर ‘महाजनम’ के गिरिश शाह, ‘वर्धमान परिवार’ के अतुल वृजलाल शाह, ‘जिन कुशल मंडल’ की श्रीमती मंजू लोढ़ा आदि ने अपने संबोधन में ‘संथारा’ को आत्मोत्सर्ग की दिशा में प्रवृत्त होने की जैन धर्म की मूल परंपरा बताते हुए इसमें कानून के दखल का विरोध किया। ‘जैन शक्ति फाउंडेशन’ के कनक परमार ने समाज को जानकारी दी कि हाईकोर्ट के फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में जाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर किस स्तर की तैयारियां चल रही है। इस धर्म सभा में जैन शक्ति फाउंडेशन, समस्त महाजन, वर्धमान परिवार, भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ समिति, वर्धमान परिवार, जैन अलर्ट ग्रुप ऑफ़ इंडिया, श्री स्थानकवासी जैन संघ, अखिल भारतीय तीर्थ क्षेत्र कमेटी, मुंबई जैन पत्रकार संघ, भारत जैन महामंडल, श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सभा, आदि कई जैन संघों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। सुरेंद्र के शाह एवं प्रमोद जैन का इस धर्म सभा के आयोजन में विशेष सहयोग रहा। इस धर्म सभा में बड़ी संख्या में लोगो ने हिस्सा लेकर जैन धर्म की प्राचीनकाल से चली आ रही धार्मिक परंपरा ‘संथारा’ को राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा आत्महत्या करार दिए जाने पर नाराजगी व्यक्त की।
मुंबई के कई अन्य इलाकों में भी जैन समाज की संस्थाओं से जुड़े लोगो ने विरोध प्रदर्शन किया। विख्यात जैन संत गच्छाधिपति प्रेम सूरीश्वरजी महाराज, राष्ट्रसंत आचार्य चंद्रानन सागर सूरीश्वर महाराज आदि प्रतिष्ठित जैन संतों की प्रेरणा से आयोजित मुंबई और ठाणे के दादर, अंधेरी, मालाड़, बोरीवली, घाटकोपर, भाड़ुंप, मुलुंड, ठाणे, भिवंड़ी, भायंदर, नवी मुंबई, विभिन्न स्थानों पर संथारा पर हाईकोर्ट के फैसले से नाराज कुल करीब दो लाख से भी ज्यादा लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। कई इलाकों में जैन धर्मावलंबियों ने अपने व्यावयसायिक संस्थान बंद रखे और कानून के जरिए धर्म में सरकारी दखल रोकने की मांग की। भायंदर में भी लोगों ने शांति मार्च निकाला, जिसमें जैन आचार्य भी साथ थे। ज्ञात हो कि राजस्थान हाईकोर्ट ‘संथारा’ को आत्महत्या बताते हुए इसे भारतीय दंड संहिता 306 तथा 309 के तहत दंडनीय बताया है। इसके अनुसार अगर कोई संथारा लेता है, तो उसकी मृत्यु को आत्म हत्या मानकर उसे संथारा लेने में सहयोग करनेवालों पर भी आत्महत्या के लिए प्रोरित करने का मुकदमा चलेगा। वालकेश्वर की धर्मसभा में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट चुनौती देने का निर्णय लिया गया।
प्रतिक्रिया- 1
‘संथारा’ को बहाना बनाकर कानून के जरिए धर्म में दखल देने की कोशिश बर्दाश्त नहीं होगी। रोकना है तो धर्म के बहाने ईद के दिन लाखों जीवों की हत्या को रोकने की कोशिश होनी चाहिए। संथारा आत्मोत्सर्ग का मार्ग है। हर व्यक्ति को अपने धर्म की परंपरा का पालन करने का हक है। इस पर रोक का आखरी सांस तक विरोध होगा।
-राष्ट्रसंत आचार्य चंद्रानन सागर – विख्यात जैन संत
प्रतिक्रिया- 2
जैन धर्म में ‘संथारा’ हजारों साल से चली आ रही आत्मोत्सर्ग प्रथा है। यह जीवन की अंतिम साधना है। जिसमें साधक अन्न – जल सब कुछ त्यागकर ईश्वरीय आराधना करते हुए जीवन का त्याग करता है। यह एक पवित्र प्रक्रिया है। इसे आत्महत्या बताना धर्म सम्मत नहीं है।
-मंजु लोढ़ा – लेखिका
प्रतिक्रिया- 3
जैन धर्म में ‘संथारा’ अति पवित्र प्रक्रिया है। लेकिन फिर भी हाई कोर्ट द्वारा इस तरह का फैसला दिए जाने से जैन समाज नाराज है। ईश्वर का चिंतन करते हुए जीवन की आखरी सांस तक सत्कार्य करते हुए ईश्वर के प्रति समर्पित रहने की विधि का नाम ‘संथारा’ है। इसे कानून से रोकना उचित नहीं है।
अतुल वृजलाल शाह – समाजसेवी