Monday, November 25, 2024
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Homeजियो तो ऐसे जियोविज्ञान कथाओं की शिल्पी प्रज्ञा गौतम

विज्ञान कथाओं की शिल्पी प्रज्ञा गौतम

( मुश्किल लेखन है विज्ञान को कथा मानकों पर उतरना )

हिंदी साहित्य के क्षेत्र में हाड़ोती में हिंदी और राजस्थानी साहित्यकारों के बीच प्रज्ञा गौतम ने कविताओं और कथा लेखन के लिए विज्ञान को आधार बना कर विज्ञान कथाओं के सशक्त शिल्पी के रूप में अपनी अलग से विशिष्ट पहचान बनाई है। विज्ञान पत्रिकाओं में वे पिछले कई सालों से लिख रही हैं और इन पत्रिकाओं में उनकी विज्ञान कथाओं की निरंतर मांग रहती है| शिक्षण और पारिवारिक उत्तरदायित्व के बाद शेष बचे सीमित समय में लेखन उनके लिए चुनौतीपूर्ण कार्य रहा।

विज्ञान को समझना जितना कठिन है उससे अधिक कठिन है विज्ञान कथा लिखना। विज्ञान कथा लेखन अन्य कथाओं के लेखन की तुलना में अधिक कठिन कार्य है। इसमें कल्पना शक्ति की आवश्यकता अधिक होती है। कथा में उपयोग किए जाने वाले वैज्ञानिक तथ्य जहां विज्ञान की कसौटी पर जांचे परखे होना आवश्यक है वहीं कथा का कथानक और कलात्मकता के प्रतिमानों पर भी खरा उतरना भी उतना ही आवश्यक है। जहां सामाजिक और मनोरंजक कथाएं फ्लैश बैक और वर्तमान में जीती हैं वहीं विज्ञान कथाएं भविष्यवादी होती हैं और संभावित भविष्य के दर्शन कराती है। कुशल शिल्पी प्रज्ञा का विज्ञान कथा का आकाश इन आधारों पर खरा उतरता है।इनकी कथाओं में विज्ञान और कथा साथ – साथ चलती है जो विस्मयकारी और मनोरंजक भी है। कथात्मता और भाषा सौंदर्य पर उनकी पकड़ पूरी तरह बनी रहती है। इनकी विज्ञान कथाओं के कुछ कथानक देखिए….

प्रज्ञा की विज्ञान कथा अनुत्तरित प्रश्न के कथानक की एक संशिप्त बानगी देखिए
“अधेड़ अविवाहित प्रोफेसर अनुभा जीवन साथी के तौर पर डिजिटल हॉर्मोन से युक्त एक कृत्रिम बुद्धि रोबोट पीटर को घर लाती हैं। उनकी नौकरानी मंगला उसका सम्मान करती है। पीटर मंगला की ओर आकर्षित होता है पर मंगला को नौकरी से हटाए जाने के बाद पीटर बिलकुल शांत हो जाता है। अनुभा को प्रभावित करने के प्रयास में वह ऐसा कुछ करता है कि अनुभा को जान से हाथ धोना पड़ता है।”

अनोखा उपहार कथा का सार है कि युवा वैज्ञानिक सचिन अपने शोधार्थी छात्र के शोध को अपना बता कर सम्मानित होकर अमेरिका से लौटा है। इस अवसर दी गई दावत में वह एक सहकर्मी का उपहास उड़ाता है और अपने सीनियर की पत्नी से अभद्रता करता है। अगली सुबह वह अपने अध्ययन कक्ष में मृत मिलता है। मृत्यु प्राकृतिक सी लगती है, पर बाद में रहस्योद्घाटन होता है कि उसके उसी शोधार्थी छात्र ने एक रसायन एल्केलाइन पाइरोगेलोल, जिसमें ऑक्सीजन के अवशोषण की अद्भुत क्षमता है, के माध्यम से उसकी हत्या की है जिसके शोध को उसने चुराया था।

अलौकिक कथा में जिस प्रकार इन्होंने कथा का तानाबाना बुना है उसका सार है “सर्च फॉर एक्स्ट्राटेरिस्ट्रियल इंटेलीजेंस (सेटी) में कार्यरत एक निराश तारा भौतिकविद अपनी हिमालय की यात्रा के दौरान अनुभव करता है कि वह पृथ्वी के जीवंत सौन्दर्य की उपेक्षा कर परग्रही जीवन की खोज में अपने जीवन को व्यर्थ कर रहा है। ब्रह्मांड की दूरियों को अल्प आयु के भौतिक शरीर से तय करना कठिन है लेकिन मस्तिष्क ऊर्जा द्वारा ब्रह्मांड में विचरण और परग्रहियों से साक्षात्कार किया जा सकता है| मानव को स्वयं के विकास के लिए सभी प्रकार के प्रदूषणों और नकारात्मकता से मुक्त होना पड़ेगा।” ऐसे ही अनोखा कीट कथा का सारांश है कि वैज्ञानिकों के एक दल द्वारा अंडमान के घने जंगलों में एक ऐसे कीट के अनायास मिलने की कथा जिसकी लार में पाए जाने वाले एंजाइम कठोर प्लास्टिक का विघटन करने में समर्थ हैं।”

लेखिका की उक्त कथाओं के सार उनके विज्ञान कथाओं की कुशल शिल्पी होने का स्वयं प्रमाण हैं। इसी श्रंखला में विचित्र वृक्ष, वह एक यात्रा, सुनहरी दुनिया के लोग, सपनों के व्यापारी एवम् समुद्र के स्वामी आदि ऐसी ही प्रभाव शाली कथाएं हैं।

साहित्य यात्रा के पड़ावों पर चर्चा कर प्रज्ञा बताती हैं कि बचपन में बाल पत्रिकाओं के पढ़ने से कविताएं और बाल कथाओं तथा किशोरावस्था में विज्ञान प्रगति और साइंस रिपोर्टर पढ़ने से विज्ञान कथाओं के प्रति रुझान पैदा हुआ। इन्होंने किशोरावस्था से कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। धीरे -धीरे लेखन में परिपक्वता आई और कविताएं 2014 से कादम्बिनी, मुक्ता और अहा जिन्दगी में छपनी शुरू हो गई। जब रुझान विज्ञान कविताओं की और हुआ तो 2016 में विज्ञान प्रगति के जुलाई और सितम्बर के अंक में उनकी तीन विज्ञान कवितायेँ छपने से खुशी होने के साथ – साथ उत्साहवर्धन भी हुआ । इन्होंने अनेक बाल कथाएँ, लघु कथाएँ और सामाजिक कहानियां भी लिखी।

इनके साथ-साथ विज्ञान कथाएं भी लिखना शुरू किया और उस समय खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब 2017 में पहली बार विज्ञान प्रगति में उनकी दो विज्ञान कथाएँ प्रकाशित हुई और इसके साथ ही उन्हें विज्ञान प्रगति के लेखकों के समूह में शामिल कर लिया गया। हिंदी विज्ञान कथाओं की पत्रिका ‘विज्ञान कथा’ से जुड़ने के साथ ही प्रज्ञा की विज्ञान कथाएँ और आलेख लिखने की अनवरत यात्रा शुरू हो गई। अब तक विज्ञान प्रगति, इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए, वैज्ञानिक, आविष्कार, पर्यवरण डाइजेस्ट आदि में उनके अनेक विज्ञान कथाएँ और आलेख प्रकाशित हो चुके हैं।

कृतियां
विज्ञान कथाओं पर आपकी दो कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।”अलौकिक और अन्य कहानियां” प्रथम संग्रह 2020 में प्रकाशित हुआ जिसमें 16 विज्ञान कथाओं का संकलन है। इन्हीं कथाओं में से उक्त कथाओं की बानगी शामिल है। दूसरा 13 विज्ञान कथाओं का संग्रह “धरती छोड़ने के बाद” वर्ष 2023 में प्रकाशित हुई। इनके अतिरिक्त तीन और कहानियां, विज्ञान संप्रेषण, विज्ञान कथा और एक शोध पत्रिका में छप चुकी हैं। आपके दो विज्ञान कथा संग्रह प्रकाशनाधीन हैं। “विकास”, प्रयागराज, राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद के सौजन्य से आपके दो नाट्य रूपांतरण प्रकाशित हुए तथा जर्मन पत्रिका इंटर नोवा में (वर्ल्ड कल्चर हब ) में दो कथाएं “एन अनरीक्वीटेड क्वेश्चन” और “द ड्रीम मर्चेंट” का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। बांग्ला विज्ञान,मराठी विज्ञान,पंजाबी विज्ञान कथा संकलनों में भी आपकी कथाओं को शामिल किया गया है। विज्ञान कथा के प्रसार एवं उन्नयन हेतु आकाशवाणी कोटा के चम्बल चैनल पर युववाणी कार्यक्रम में विज्ञान कथाओं को लेकर वार्ताऐं प्रसारित की गई हैं। आपने अनेक विज्ञान कथा सम्मेलनों और संगोष्ठियों में विज्ञान कथाओं का वाचन भी किया है।

कविताएं
प्रज्ञा की विज्ञान कविता की एक बानगी ” प्रकाश संश्लेषण ” शीर्षक कविता में देखिए…
भोर की पहली किरण
छुकर चली गई जब
हरी पत्ती की नाजुक देह
जल स्फीत द्वार कोशिकाओं ने
कुनमुना कर रंध्र खोल दिए
प्रकाश की ऊष्ण तरंगों से
कम्पित- उत्तेजित हो उठा
कोशिकाओं का हरित वर्ण
जल टूट कर बिखरा था
मुक्त हो गयी थी प्राणवायु
रात्रि के गहन अन्धकार में
कार्बन डाइऑक्साइड बंध गयी थी
चुपके से हाइड्रोजन के साथ
प्रकाश किरणों की ऊर्जा
और प्यार के इस गठबंधन से
जन्मी थी मीठी- मृदुल शर्करा
जो है श्वसन की क्रियाधार
ऊर्जा का अथाह भण्डार
सकल जीव जगत को पोषती
जीवन रस में घुली शर्करा में
सृष्टि के इस उदात्त
प्रेम का अंश है।

निश्चित ही कविता में विज्ञान के तथ्यों के साथ काव्यमय रूप से लय बद्ध बनाने में इनका शिल्प कौशल कबीले तारीफ है।

पुरस्कार
आपको शिक्षा, साहित्य और विज्ञान कथा लेखन के क्षेत्र में अनेक पुरस्कार और सम्मान से नवाजा गया है। विज्ञान लोकप्रियकरण के क्षेत्र में अवदान हेतु सम्मान – 2022 में विज्ञान परिषद् प्रयाग द्वारा, नेशनल मीडिया फाउंडेशन, नई दिल्ली द्वारा “राष्ट्रीय विज्ञान संचारक सम्मान -2021” , कविताई विश्व विज्ञान कविता प्रतियोगिता सिंगापूर में तृतीय पुरस्कार – जून 2021, के साथ – साथ समय – समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा सर्वश्रेष्ठ शिक्षक सम्मान, काव्य विभूति सम्मान, विज्ञान साहित्य रत्न सी वी रमन विज्ञान सम्मान और हिन्दी साहित्य भूषण सम्मान से नवाजा गया है।

परिचय
विज्ञान को साहित्य के रूप देने वाली प्रज्ञा गौतम का जन्म 17 मई 1973 को ग्राम राजस्थान में बारां जिले के कोयला ग्राम में हुआ। उनके पिता श्री कृष्ण मूर्ति गौतम सेवा निवृत्त इंजीनियर और माँ जया गौतम गृहिणी हैं। प्रारंभिक शिक्षा नाना – नानी के पास हुई।

इन्होंने जानकी देवी बजाज कन्या महाविद्यालय कोटा से बी. एससी. और राज. स्वायत्तशासी महाविद्यालय कोटा से पादप रोग विज्ञान में एम.एससी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से बी.एड. की उपाधि प्राप्त की। ये नवम्बर 1998 से राजकीय सेवा में विभिन्न विद्यालयों में रही हैं । वर्ष 2018 -19 में आदिवासी क्षेत्र शाहबाद विद्यालय में पदस्थापन के दौरान आदिवासियों की जीवन शैली को समझा। वर्तमान में आप राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय तालेड़ा, जिला बूंदी में व्याख्याता (जीव विज्ञान) के पद पर सेवारत हैं।

संपर्क मोबाइल – 9799903144

– डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

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