Monday, November 25, 2024
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पश्चिम रेलवे: अतुल्य भारत की अतुल्य रेल

विश्व पर्यटन दिवस 2024

भारत के विविध और चिरस्‍थायी खजानों का प्रवेश द्वार

 मुंबई  पश्चिम रेलवे सिर्फ़ परिवहन की जीवनरेखा ही नहीं हैबल्कि यह भारत के कुछ सबसे प्रतिष्ठित और विविधतापूर्ण पर्यटन स्थलों का प्रवेश द्वार भी है। कच्छ के रण में मौजूद शुष्क नमक के मैदानों से लेकर राजसी मंदिरों और शांत नदी किनारे तक पश्चिम रेलवे यात्रियों को कई तरह के परिदृश्योंसंस्कृतियों और इतिहास से जोड़ती है। पश्चिम रेलवे प्राकृतिक सुंदरताऐतिहासिक भव्यता और आध्यात्मिक गहराई का एक अनूठा मिश्रण प्रदान करता हैजो इसे भारत के पर्यटन उद्योग में एक प्रमुख योगदानकर्ता बनाता है। 

इस विश्व पर्यटन दिवस पर रेलवे देशभर में फैले अपने व्यापक रेल नेटवर्क के माध्यम से इस अविश्वसनीय भूमि के चमत्कारों को देखने के लिए यात्रियों का स्वागत करती है।

हम अपनी यात्रा की शुरुआत पश्चिम रेलवे के मुंबई सेंट्रल मंडल के सुंदर बिलिमोरा-वघई रेल खंड से करते हैंजो गुजरात राज्य के डांग क्षेत्र के हरे-भरे जंगलों और आदिवासी गांवों से होकर गुजरने वाली एक नैरो-गेज लाइन के माध्यम से यात्रियों को एक आकर्षक यात्रा पर ले जाता है। यह आकर्षक और कम ज्ञात मार्ग भारत के समृद्ध रेलवे इतिहास की याद दिलाता है और धीमी गति से चलते हुए प्रकृति से जुड़ने और ग्रामीण भारत की शांति का अनुभव की तलाश करने वालों के लिए एकदम सही है। 

रेलवे ने इस लाइन को एक विरासत अनुभव के रूप में संरक्षित किया हैजो पर्यटकों को समय में पीछे जाने और एक शांतिपूर्णअविस्‍मरणीय ट्रेन यात्रा का आनंद लेने का अवसर प्रदान करता है। वडोदरा मंडल में जाने पर कोई भी व्यक्ति स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के साथ भारत की वास्तुकला की चमक देख सकता हैजो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। 

नर्मदा नदी के तट पर स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल को यह भव्‍य श्रद्धांजलि न केवल एक इंजीनियरिंग चमत्कार हैबल्कि राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक भी है। पश्चिम रेलवे इस प्रतिष्ठित स्थल को सीधी रेल कनेक्टिविटी प्रदान करता हैजिससे देश के सभी कोनों से यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है। ट्रेन से आने वाले पर्यटक स्मारक की विशालता को देखकर आश्चर्यचकित हो सकते हैंसाथ ही सरदार सरोवर बांध और उसके आसपास की प्राकृतिक सुंदरता की शानदार पृष्ठभूमि की सराहना भी कर सकते हैं।

जैसे ही ट्रेन अहमदाबाद मंडल से गुज़रती हैयह विरासत और आश्चर्य से भरी जगहों के दरवाज़े खोलती है। यात्रियों का स्वागत गुजरात के प्राचीन चमत्कारों द्वारा किया जाता हैजहाँ पर्यटक पाटन शहर में सरस्वती नदी के तट पर स्थित रानी की वावजटिल नक्काशीदार बावड़ी को देखने का आनंद ले सकते हैं। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल हैजो अपनी शानदार वास्तुकला और समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है। इसके अलावापाटन स्टेशन से सिर्फ़ 30 किमी दूर स्थित विस्मयकारी मोढेरा सूर्य मंदिर भारत की प्राचीन शिल्पकला और स्थापत्य कला का प्रमाण है। 

पश्चिम रेलवे द्वारा प्रदान की गई निर्बाध कनेक्टिविटी यह सुनिश्चित करती है कि गुजरात के ये रत्न देश भर के यात्रियों की पहुँच में हों। सर्दियों के मौसम की शुरुआत के साथकच्छ के रण का विशाल और सफ़ेद विस्तार रोमांच चाहने वालों को आकर्षित करता है।

रतलाम मंडल के दर्शनीय स्थल इतिहास, आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सुंदरता को एक साथ जोड़ते हैं। जैसे ही ट्रेन इस क्षेत्र से गुज़रती है, पर्यटकों को क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित महाकालेश्‍वर मंदिर एवं नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के दर्शन होते हैं, जो आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। सुंदर पातालपानी – कालाकुंड रेल मार्ग, झरनों और घाटियों के लुभावने दृश्यों के साथ, विशेष रूप से मानसून के दौरान जीवंत हो जाता है। पश्चिम रेलवे एक हेरिटेज मीटर गेज ट्रेन चलाता है, जो इस सुंदर वैभव को देखने के लिए बड़ी संख्या में भीड़ खींचती है। अन्य स्थलों में से एक चित्तौड़गढ़ है, जहाँ प्रतिष्ठित चित्तौड़गढ़ किला इस क्षेत्र की पहचान है। अपनी भव्य वास्तुकला के लिए जाना जाने वाला यह सदियों पुराना किला और इसके अवशेष हमें राजपूतों की वीरता और बहादुरी की याद दिलाते हैं।

भावनगर मंडल भारत के कुछ सबसे प्रतिष्ठित आध्यात्मिक स्थलों का घर हैजिसमें सोमनाथ मंदिरपालीताना के जैन मंदिर और महात्मा गांधीजी का जन्मस्थान पोरबंदर शामिल हैं। प्रकृति प्रेमी गिर राष्ट्रीय उद्यान की यात्रा कर सकते हैंजो राजसी एशियाई शेरों का घर हैजहाँ जूनागढ़ स्टेशन से पहुँचा जा सकता हैजो गिरनार हिलउपरकोट किला और जटाशंकर महादेव झरने जैसे ऐतिहासिक स्थलों के लिए रेलवे स्टेशन के रूप में भी काम करता है। राजकोट मंडल में द्वारका का आध्यात्मिक शहर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को अपने मंदिरोंशांत समुद्र तट और समृद्ध संस्कृति की ओर आकर्षित करता है।

हर साल 27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पर्यटन की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना और यह प्रदर्शित करना है कि यह दुनियाभर में सामाजिकसांस्कृतिकराजनीतिक और आर्थिक मूल्यों को कैसे प्रभावित करता है। इस वर्ष “पर्यटन और शांति” को थीम के रूप में चुना गया है। यह थीम इस बात पर प्रकाश डालती है कि अंतरराष्ट्रीय सद्भावसांस्कृतिक समझ और शांति को बढ़ावा देने में पर्यटन कितना महत्वपूर्ण है। पर्यटन आपसी सम्मान को बढ़ावा देता है और विभिन्न मूल के व्यक्तियों को एकजुट करके संघर्ष को कम करता है। पश्चिम रेलवे का विशाल नेटवर्क यात्रियों को भारत के सबसे कीमती स्थलों से जोड़ने में एक अपरिहार्य भूमिका निभाता हैचाहे वह गुजरात का प्राचीन इतिहास होमध्य प्रदेश के आध्यात्मिक अभयारण्य हों या समकालीन भारत के आधुनिक चमत्कार हों। इन विविध क्षेत्रों को आसानी से सुलभ बनाकरपश्चिम रेलवे न केवल पर्यटन को बढ़ावा देता हैबल्कि यात्रा के अनुभव को भी समृद्ध करता हैजिससे आगंतुकों को अपने अच्छी तरह से जुड़े रेलवे के माध्यम से भारत के दिल की खोज करने में मदद मिलती है।

विश्व पर्यटन दिवस मनाते हुए आइए हम भारतीय रेल की उस महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करेंजो हमारे देश के अद्भुत पर्यटन लों को हम सभी के करीब लाने में निभाती है।

शक्तिशाली देशों की सूची में भारत पहुंचा तीसरे स्थान पर

आस्ट्रेलिया के एक संस्थान, लोवी इन्स्टिटयूट थिंक टैंक, ने हाल ही में एशिया में शक्तिशाली देशों की एक
सूची जारी की है। “एशिया पावर इंडेक्स 2024” नामक इस सूची में भारत को एशिया में तीसरा सबसे
बड़ा शक्तिशाली देश बताया गया है। वर्ष 2024 के इस इंडेक्स में भारत ने जापान को पीछे छोड़ा है। इस
इंडेक्स में अब केवल अमेरिका एवं चीन ही भारत से आगे है। रूस तो पहिले से ही इस इंडेक्स में भारत से
पीछे हो चुका है। इस प्रकार अब भारत की शक्ति का आभास वैश्विक स्तर पर भी महसूस किया जाने लगा
है। एशिया पावर इंडेक्स 2024 के प्रतिवेदन में बताया गया है कि वर्ष 2023 के इंडेक्स में भारत को 36.3
अंक प्राप्त हुए थे जो वर्ष 2024 के इंडेक्स में 2.8 अंक से बढ़कर 39.1 अंकों पर पहुंच गए हैं एवं भारत इस
इंडेक्स में चौथे स्थान से तीसरे स्थान पर आ गया है।

एशिया पावर इंडेक्स 2024 को विकसित करने के लिए कुल 27 देशों और क्षेत्रों से प्राप्त आंकड़ों का
आंकलन एवं सूक्षम विश्लेषण किया गया है। एशिया में जो नए शक्ति समीकरण बन रहे हैं उनका ध्यान भी
इस इंडेक्स में रखा गया है तथा विभिन्न मापदंडों पर आधारित पिछले 6 वर्षों के आकड़ों का विश्लेषण कर
यह इंडेक्स बनाया गया है। आर्थिक क्षमता, सैन्य (मिलिटरी) क्षमता, अर्थव्यवस्था में लचीलापन, भविष्य में
संसाधनों की उपलब्धता, कूटनीतिक, राजनयिक एवं आर्थिक सम्बंध एवं सांस्कृतिक प्रभाव जैसे मापदंडो
पर उक्त 27 देशों एवं क्षेत्रों का आंकलन कर विभिन्न देशों को इस इंडेक्स में स्थान प्रदान किया गया है।
उक्त इंडेक्स में अमेरिका, 81.7 अंकों के साथ प्रथम स्थान पर है।

चीन 72.7 अंकों के साथ द्वितीय स्थान पर
है। भारत ने इस इंडेक्स में 39.1 अंक प्राप्त कर तृतीय स्थान प्राप्त किया है। जापान को 38.9 अंक,
आस्ट्रेलिया को 31.9 अंक एवं रूस को 31.1 अंक प्राप्त हुए हैं एवं इन देशों का क्रमशः चतुर्थ, पांचवा एवं
छठवां स्थान रहा है। इस इंडेक्स में प्रथम 5 स्थानों में से 4 स्थानों पर “क्वाड” के सदस्य देश हैं – अमेरिका,
भारत, जापान एवं आस्ट्रेलिया। एशिया में अमेरिका की लगातार बढ़ती मजबूत ताकत के चलते उसे इस
इंडेक्स में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है। जबकि, चीन की मजबूत मिलिटरी ताकत के चलते उसे इस इंडेक्स में
द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ है। जापान के इस इंडेक्स में तीसरे से चौथे स्थान पर आने के कारणों में मुख्य कारण
उसकी आर्थिक स्थिति में लगातार आ रही गिरावट है। भारत ने चौथे स्थान से तीसरे स्थान पर छलांग
लगाई है। आर्थिक क्षमता एवं भविष्य में संसाधनो की उपलब्धता के क्षेत्र में भारत को तीसरा स्थान प्राप्त
हुआ है। साथ ही, सैन्य क्षमता, कूटनीतिक, राजनयिक एवं आर्थिक सम्बंध के क्षेत्र एवं सांस्कृतिक प्रभाव के
क्षेत्र में भारत को चौथा स्थान प्राप्त हुआ है। अब केवल अमेरिका और चीन ही भारत से आगे हैं एवं जापान,
आस्ट्रेलिया एवं रूस भारत से पीछे हो गए हैं। जबकि, कुछ वर्ष पूर्व तक विश्व की महान शक्तियों में भारत
का कहीं भी स्थान नजर नहीं आता था। केवल अमेरिका, रूस, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रान्स आदि
देशों को ही विश्व में महाशक्ति के रूप में गिना जाता था। अब इस सूची में भारत तीसरे स्थान पर पहुंच
गया है।

उक्त इंडेक्स तैयार करते समय आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि अन्य शक्तिशाली देशों का भी आंकलन किया
गया है। साथ ही, विश्व में तेजी से बदल रहे शक्ति के नए समीकरणों का भी व्यापक आंकलन किया गया है।
इस आंकलन के अनुसार अमेरिका अभी भी एशिया में सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बना हुआ है। चीन तेजी से
आगे बढ़कर दूसरे स्थान पर आया है। तेजी से बढ़ती सेना एवं आर्थिक तरक्की चीन की मुख्य ताकत है। उक्त
प्रतिवेदन में यह तथ्य भी बताया गया है कि उभरते हुए भारत से अपेक्षाओं एवं वास्तविकताओं में अंतर
दिखाई दे रहा है। इस प्रतिवेदन के अनुसार, भारत के पास अपने पूर्वी देशों को प्रभावित करने की सीमित
क्षमता है। परंतु, वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है। भारत अपने पड़ौसी देशों नेपाल, भूटान, श्रीलंका,
बंगलादेश, म्यांमार एवं अफगानिस्तान, आदि की विपरीत परिस्थितियों के बीच भारी मदद करता रहा है।

आसियान के सदस्य देशों की भी भारत समय समय पर मदद करता रहा है, एवं इन देशों का भारत पर
अपार विश्वास रहा है। कोरोना के खंडकाल में एवं श्रीलंका, म्यांमार तथा अफगानिस्तान में आए सामाजिक
संघर्ष के बीच भारत ने इन देशों की मानवीय आधार पर भरपूर आर्थिक सहायता की थी एवं इन्हें अमेरिकी
डॉलर में लाइन आफ क्रेडिट की सुविधा भी प्रदान की थी ताकि इनके विदेशी व्यापार को विपरीत रूप से
प्रभावित होने से बचाया जा सके। उक्त प्रतिवेदन के अनुसार भारत के पास भारी मात्रा में संसाधन मौजूद हैं
एवं जिसके बलबूते पर आगे आने वाले समय में भारत के आर्थिक विकास को और अधिक गति मिलने की
अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। साथ ही, भारत अपने पड़ौसी देशों की आर्थिक स्थिति सुधारने की भी क्षमता
रखता है। भारत ने हाल ही के वर्षों में उल्लेखनीय आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू किए हैं।
जिसके चलते लगातार तेज हो रहे आर्थिक विकास के बीच सकल घरेलू उत्पाद की स्थिति
और बेहतर हो रही है तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की मान्यता बढ़ रही है। साथ ही,
बहुपक्षीय मंचों पर भी भारत की सक्रिय भागीदारी बढ़ती जा रही है।

भारत ने पिछले कुछ वर्षों में एशिया के कई देशों के साथ अपने सम्बंधों को मजबूत किया है। अब तो
अफ्रीकी देशों का भी भारत पर विश्वास बढ़ता जा रहा है एवं भारत में ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने की
अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। भारत में हाल ही में अपनी कूटनीतिक एवं राजनयिक क्षमता में भी भरपूर
सुधार किया है एवं इसके बल पर वैश्विक स्तर पर न केवल विकसित देशों बल्कि विकासशील देशों को भी
प्रभावित करने में सफल रहा है। यूक्रेन एवं रूस युद्ध के समय केवल भारत ही दोनों देशों के साथ चर्चा कर
पाता है एवं युद्ध को समाप्त करने का आग्रह दोनों देशों को कर पाता है। इसी प्रकार, इजराईल एवं हमास
युद्ध के समय भी भारत दोनों देशों के साथ युद्ध समाप्त करने की चर्चा करने में अपने आप को सहज एवं
सक्षम पाता है। आपस में युद्ध करने वाले दोनों देश भारत की सलाह को गम्भीरता से सुनते नजर आते हैं।
भारत ने कभी भी विभिन्न देशों के आंतरिक स्थितियों पर अपनी विपरीत राय व्यक्त नहीं की है और न ही
कभी उनके आंतरिक मामलों में कभी हस्तक्षेप किया है। इस दृष्टि से वैश्विक पटल पर भारत की यह विशिष्ट
पहचान एवं स्थिति है।

दक्षिण एशिया के देशों में चीन अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहा है इसलिए भारत का पूरा ध्यान इस
क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम कर अपने प्रभाव को बढ़ाना है। इसी मुख्य कारण से शायद भारत
दक्षिण एशिया के देशों पर अधिक ध्यान देता दिखाई दे रहा है। जिसका आशय उक्त प्रतिवेदन में यह लिया
गया है कि विश्व के अन्य देशों को सहायता करने की भारत की क्षमता तो अधिक है परंतु अभी उसका
उपयोग भारत नहीं कर पा रहा है। हिंद महासागर पर भारत का ध्यान अधिक है और क्वाड के सदस्य देश
मिलकर भारत की इस दृष्टि से सहायता भी कर रहे हैं। दक्षिण एशियाई देशों के अलावा विश्व के अन्य देशों
की मदद करने के संदर्भ में भारत ने हालांकि अभी हाल ही के समय में बढ़त तो बनाई है परंतु अभी और
अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। भारत में आगे बढ़ने की अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं।
उक्त प्रतिवेदन में भारत को एशिया को तीसरा सबसे बड़ा ताकतवर देश बताया गया है परंतु वस्तुतः भारत
अब एशिया का ही नहीं बल्कि विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ताकतवर देश बन गया है क्योंकि इस सूची में
एशिया के बाहर से अमेरिका को भी एशिया में पहिले स्थान पर बताया गया है। एक अन्य अमेरिकी थिंक
टैंक का आंकलन है कि भारत यदि इसी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा तो इस शताब्दी के अंत तक भारत, चीन
एवं अमेरिका को भी पीछे छोड़कर विश्व का सबसे अधिक शक्तिशाली देश बन जाएगा।

प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

सकारात्मक खबरों को बढ़ावा देने से ही समाज स्वस्थ और सुखी होगा: केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरुगन

आबू रोड। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के आबू रोड स्थित मुख्यालय शांतिवन के आनंद सरोवर परिसर में आयोजित राष्ट्रीय मीडिया सम्मेलन का उद्घाटन केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री डॉ. एल. मुरुगन और मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतन मोहिनी ने किया। मीडिया विंग द्वारा स्वस्थ एवं सुखी समाज के लिए आध्यात्मिक सशक्तिकरण- मीडिया की भूमिका विषय पर आयोजित इस राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए देशभर से एक हजार से अधिक प्रिंट, इलेक्ट्रानिक, रेडियाे और बेव जर्नलिज्म से जुड़े पत्रकार, संपादक, ब्यूरो चीफ, रेडियो जॉकी, फ्रीलांसर पत्रकार और मीडिया प्रोफेसर पहुंचे हैं।

शुभारंभ पर केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरुगन ने कहा कि विकसित भारत के निर्माण में मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान है। आज एक अच्छी न्यूज उतनी तेजी से वायरल नहीं होती है जितनी की एक गलत, फेंक न्यूज़ वायरल हो जाती है। पत्रकार पहले खबरों की सत्यता की जांच कर लें उसके बाद ही प्रकाशित करें। अच्छी खबरों को बढ़ावा देने से ही स्वस्थ और सुखी समाज का निर्माण होगा। आज समाज में यदि नकारात्मक माहौल बन रहा है तो हमें चिंतन करने की जरूरत है कि हम समाज में क्या भेज रहे हैं। मूल्यनिष्ठ समाज के निर्माण के लिए हमें जीवन में मूल्यों का समावेश करना होगा।

पत्रकार निजी जीवन में अध्यात्म को अपनाएं –
उन्होंने कहा कि एक पत्रकार का मौलिक अधिकार है कि वह आध्यात्मिकता से जुड़े। मीडियाकर्मी अपने निजी जीवन में अध्यात्म को अपनाएं। एक पत्रकार गलत न्यूज़ से देश का माहौल बिगाड़ सकता है इसलिए पत्रकार को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। सूचना देने के लिए मीडिया सबसे शक्तिशाली साधन है, जो दुनिया को खेल और संस्कृति आदि की जानकारी देता है। यह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। मीडिया हिमालय से लेकर रेगिस्तान में जाकर सूचनाएं जुटाता है।

ब्रह्माकुमारीज़ विश्व शांति के लिए कार्य कर रही है –
केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरुगन ने कहा कि विश्व शांति के लिए ब्रह्माकुमारीज़ संस्था कार्य कर रही है। मैं पहली बार ब्रह्माकुमारीज़ के मुख्यालय आया हूं। यहां आकर बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं और बहुत खुशी हो रही है। मैंने दादी रतन मोहिनी से मुलाकात कर उनका आशीर्वाद लिया। यहां की दिव्यता और पवित्र माहौल बहुत सुखदायी है।

मीडिया अपने उद्देश्य से भटक गया है-
डॉ. कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवम जनसंचार विश्विद्यालय रायपुर के पूर्व कुलपति डॉ. मान सिंह परमार ने कहा कि जब देश आजाद नहीं हुआ था तो मीडिया के सामने एक लक्ष्य, एक ध्येय, एक उद्देश्य था। लेकिन जब देश आजाद हो गया तो मीडिया के सामने एक चुनौती थी कि अब किस दिशा में आगे बढ़ा जाए। लेकिन आज व्यापारवाद के दौर में मीडिया अपने उद्देश्य से भटक गया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है जो किसी भी रीति से समाज के लिए ठीक नहीं है। सोशल मीडिया ने हमें आजादी जरूर दी है लेकिन ऐसा लगता है कि कहीं सोशल मीडिया भस्मासुर न बन जाए। प्रेस काउंसिल बने वर्षों हो गए लेकिन आज तक हम एक आदर्श आचार संहिता लागू नहीं कर पाए हैं।

नई दिल्ली दैनिक जागरण के एक्जीक्यूटिव एडिटर विष्णु प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि हम राष्ट्र और राष्ट्रीयता के स्तंभ हैं। हम सत्यनिष्ठ लोग हैं। लोकतंत्र में संरक्षण की जरूरत है लेकिन यदि मीडिया को नियंत्रीकरण किया जाएगा तो वह अपना अस्तित्व खो देगा। भारत का पत्रकार आध्यात्मिक ही होगा। दिल्ली के पीआईबी के पूर्व प्रिंसिपल डीजी कुलदीप सिंह ने कहा कि कई बार हम पत्रकारों को अपने सिद्धांतों के साथ समझौता करना पड़ता है। लेकिन हमें अपने मूल्यों को कायम रखना होगा।

अश्लील सामग्री मुक्त मीडिया बनाना होगा –
आईआईएमसी के पूर्व महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि हम सभी पत्रकारों को अभियान चलाना चाहिए कि अश्लील सामग्री मुक्त समाज बने। हमें अश्लील कंटेंट को प्रचारित और प्रसारित करना बंद करना होगा। एक-एक व्यक्ति सूचना का राजदूत है। ब्रह्माकुमारीज़ समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए कार्य कर रही है। ये ब्रह्माकुमार भाई-बहनें त्याग की मूर्ति हैं। दुनिया के बेहतर अखबारों को टक्कर देने वाले अखबार आज हमारे देश में निकल रहे हैं। आज मीडिया का भारतीयकरण करने की जरूरत है। आज हम जिस मीडिया की तर्ज पर कार्य कर रहें हैं, वह पाश्चात्य मीडिया की शैली है। हमारे यहां तो लोक मंगल की भावना को लेकर कार्य करने की परंपरा रही है। हमें संवाद की परंपरा की ओर फिर से बढ़ने की जरूरत है। हम जगतगुरु की बात कर रहे हैं लेकिन कोई शिष्य बनने के लिए तैयार है।

– अतिरिक्त महासचिव राजयोगी बृजमोहन भाई ने कहा कि तीनों कालों की न्यूज़ परमात्मा के पास है। सबसे बड़ा सत्य है कि हम सभी एक आत्मा हैं। जब हम खुद को आत्मा मानेंगे, तभी काम विकार पर विजय पा सकेंगे।

– मीडिया निदेशक राजयोगी बीके करुणा भाई ने कहा कि मीडिया विंग पत्रकारों के जीवन को खुशहाल बनाने के लिए कार्य कर रहा है। हमारा मकसद है पत्रकारों के जीवन में आध्यात्मिक समावेश से समाज को सुखी संपन्न बनाने की ओर ले जाना।

– जयपुर सबजोन की निदेशिका राजयोगिनी बीके सुषमा दीदी ने कहा कि राजयोग को जीवन में शामिल करने से सारे रोग खत्म हो जाते हैं। आपने राजयोग मेडिटेशन से सभी को गहन शांति की अनुभूति कराई।

– शिक्षा प्रभाग की उपाध्यक्ष राजयोगिनी बीके शीलू दीदी ने कहा कि आंतरिक सशक्तिकरण से ही स्वस्थ और सुखी होगा। समाज समृद्ध शाली होगा।

– विंग की राष्ट्रीय संयोजिका बीके सरला आनंद बहन ने कहा कि बिना अध्यात्म के स्वस्थ समाज की परिकल्पना नही की जा सकती है। इस कार्य में मीडिया का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है।

– स्वागत भाषण मीडिया विंग के राष्ट्रीय संयोजक बीके शांतानु भाई ने दिया। स्वागत नृत्य बेंगलुरु से आए सुप्रीम शिव शक्ति सांस्कृतिक अकादमी के बच्चों ने पेश किया। संचालन जयपुर की जोनल संयोजिका चंद्रकला दीदी ने किया।

जबलपुर में सम्मानित होंगे डॉ. प्रभात सिंघल, कंचना सक्सेना और राम शर्मा

कोटा / अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रियाशील जबलपुर ( मध्य प्रदेश ) की संस्था ” कादंबरी ” द्वारा 85 ( विभाजित कर ) 111
साहित्यकारों  और पत्रकारों को वर्ष 2024 के पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा की गई है। यह जानकारी देते हुए संस्था के अध्यक्ष आचार्य भाववत दूबे ने बताया कि कोटा से
 डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, डॉ. कंचना सक्सेना और राम शर्मा कापरेन का चयन किया गया है।
महासचिव राजेश पाठक प्रवीण ने बताया कि लेखक और पत्रकार डॉ. प्रभात कुमार सिंघल को समग्र लेखन विधा में पांच हजार नकद पुरस्कार सहित स्व. सिद्धार्थ भट्ट सम्मान से सम्मानियंकीय जायेगा। डॉ. कंचना सक्सेना को उनकी निबंध कृति ” आदिवासी, दलित एवं अन्य विमर्श ” पर इक्कीस सौ रुपए नकद पुरस्कार सहित स्व. प. हरिकृष्ण त्रिपाठी सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। राम शर्मा कापरेन को नाट्य विधा में उनकी कृति ” जलन से जल तरंग ” पर इक्कीस सौ रुपए नकद पुरस्कार सहित स्व. अभिषेक गुप्ता सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इनको इस कृतिब्पर पूर्व में भी राष्ट्रीय साहित्य परिषद नई दिल्ली द्वारा  राष्ट्रीय मोहन राकेश नाट्य लेखन पुरस्कार प्रदान किया गया था। कार्यक्रम 9 नवंबर 2024 को जबलपुर के गोल बाजार स्थित शहीद स्मारक प्रेक्षागृह  में अपराह्न 3.00 बजे आयोजित किया जाएगा।

कैसी है अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया

एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान पत्रकार मरियम सिद्दीकी ने अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया की बारीकियों को समझा।

मरियम सिद्दीकी उर्दू-हिंदी साप्ताहिक जदीद मरकज़ से जुड़ी पत्रकार हैं। उन्होंने इस साल की शुरुआत में अमेरिकी चुनावी प्रक्रिया पर इंटरनेशनल विजिटर लीडरशिप प्रोग्राम (आईवीएलपी) के तहत अमेरिका की यात्रा की और इस दौरान अमेरिकी लोकतंत्र की बारीकियों को समझने का प्रयास किया। आईवीएलपी अमेरिकी विदेश विभाग का एक प्रमुख पेशेवर एक्सचेंज कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम में मौजूदा और उदीयमान विदेशी नेतृत्वकर्ताओं को अमेरिका की अल्पकालिक यात्राओं के माध्यम से अमेरिकी समकक्षों के साथ स्थायी संबंध विकसित करने का अवसर मिलता है।

सिद्दीकी के अनुसार, अमेरिकी चुनावी प्रक्रिया के बारे में गहन जानकारी हासिल करने से लोकतांत्रिक शासन के बारे में उनकी समझ समृद्ध हुई है जिससे उनकी पत्रकारिता को भी एक नया दृष्टिकोण मिला है। उनका कहना है, ‘‘इस यात्रा से मुझे यह देखने में मदद मिली कि लोकतंत्र किस तरह से काम करता है।’’

सिद्दीकी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास और जामिया मिल्लिया इस्लामिया से समाज कार्य विषय में डिग्री ली है और वह 14 वर्षों से लखनऊ से निकलने वाले इस साप्ताहिक अखबार के लिए काम कर रही हैं। वह इंडियन स्कूल ऑफ डवलपमेंट मैनेजमेंट की एकेडमिक टीम में सीनियर एसोसिएट के रूप में भी काम करती हैं।

प्रस्तुत है उनसे साक्षात्कार के प्रमुख अंश :
कृपया आईवीएलपी से मिले अनुभवों और महत्वपूर्ण सीखों के बारे में बताइए।
आईवीएलपी से मिला अनुभव समृद्ध और विचारोत्तेजक था। कार्यक्रम के माध्यम से मैं पेशेवरों,, नेतृत्वकर्ताओं और मतदाताओं से मिली- ऐसे अवसर जो अमेरिका की निजी यात्रा उपलब्ध नहीं करा सकती थी। मल्टीमीडिया और प्रिंट पत्रकारिता की भूमिका पर केंद्रित सत्रों से अनमोल समझ प्राप्त हुई और यह जानने का मौका मिला कि किस तरह से एक देश लोकतंत्र के सबसे आवश्यक स्तंभों में से एक पर निर्भर करता है। इंटरएक्टिव सत्रों ने मेरी समझ को और गहरा बनाया और यह जानने में मदद की कि जनता अपने निर्वाचित नेताओं से क्या अपेक्षा करती है।

अमेरिकी चुनावी प्रक्रिया की कार्यप्रणाली को आप किस हद तक समझ सकीं?
पहले तो इसे लेकर काफी भ्रम वाली स्थिति थी लेकिन स्थानीय, राज्य और संघीय स्तर पर चुनावी प्रक्रिया हर सत्र और बातचीत के साथ स्पष्ट होती चली गई। प्राइमरीज़ की अवधारणा मेरे लिए नई थी और सुपर ट्यूज़डे ने प्रक्रिया को लाइव देखने और स्थानीय उम्मीदवारों और मतदाताओं से मिलने का रोमांचक अवसर प्रदान किया।

अमेरिकी चुनावी परिदृश्य में विविधता और व्यक्तिवाद की भूमिकाओं के बारे में आपके क्या विचार थे?
मुझे यह स्वीकार करना होगा कि इस यात्रा के दौरान अमेरिका को लेकर मेरे आग्रहों को चुनौती मिली। विविधता के बारे में मेरी समझ भी विकसित हुई। लोगों के मुद्दे, जातीय, धार्मिक और सामाजिक समूहों के आधार पर भिन्न-भिन्न थे और वे अपनी राय को जाहिर करने से कतराते नहीं थे। यह देखना अद्भुत था कि किस तरह से दूसरी पीढ़ी के प्रवासियों को प्रतिनिधि के रूप में चुना गया है और वे समस्याओं को सुलझाने के लिए कैसे काम करते हैं।

व्यक्तिवाद को भी बहुत महत्व दिया जाता है- लोगों के पास स्वतंत्र विकल्प होते हैं जो इस बात से जाहिर होता है हर कुछ वर्षों में राज्यों में कभी डेमोक्रेटिक, तो कभी रिपब्लिकन पार्टियां बहुमत हासिल करती रही हैं।

साभार- https://spanmag.com/hi/ से

अफ्रीका की पटरियों पर दौड़ेंगे मढ़ौरा संयंत्र में बने रेल इंजन

·        बिहार के मढ़ौरा संयंत्र से पहली बार निर्यात किए जाएंगे अत्याधुनिक लोकोमोटिव।
·        मढ़ौरा प्लांट वर्ष 2025 में इवोल्यूशन सीरीज ES43ACmi लोकोमोटिव का निर्यात शुरू करेगा।
·        भारतीय रेलवे और वैबटेक का एक संयुक्त उद्यम है वैबटेक लोकोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड।

नई दिल्ली। भारतीय रेल और वैबटेक के संयुक्त उद्यम बिहार में स्थित मढ़ौरा संयंत्र में अफ्रीकी देशों को निर्यात करने के लिए अत्याधुनिक लोकोमोटिव का निर्माण किया जाएगा। इसके लिए वैबटेक लोकोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड द्वारा अपने संयंत्र की क्षमताओं का विस्तार किया जा रहा है। मढ़ौरा प्लांट द्वारा पहली बार निर्यात के लिए लोकोमोटिक का निर्माण किया जाएगा। मढ़ौरा प्लांट वर्ष 2025 में लोकोमोटिव का निर्यात शुरू करेगा।

मढ़ौरा प्लांट द्वारा वैश्विक ग्राहकों को इवोल्यूशन सीरीज ES43ACmi लोकोमोटिव की आपूर्ति की जाएगी। ES43ACmi लोकोमोटिव में 4,500 HP इवोल्यूशन सीरीज का इंजन है, जो अपनी श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ ईंधन दक्षता और उच्च तापमान वाले वातावरण में बेहतरी प्रदर्शन करता है।

गौरतलब है कि यह परियोजना रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। यह संयुक्त परियोजना न केवल भारत को वैश्विक लोकोमोटिव विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करती है, बल्कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के “आत्मनिर्भर भारत” दृष्टिकोण के अंतर्गत “मेक इन इंडिया” और “मेक फॉर द वर्ल्ड” पहलों के अनुरूप है।

जाहिर है कि रेल मंत्रालय और वैबटेक के बीच सार्वजनिक-निजी भागीदारी की सफलता ने मढ़ौरा संयंत्र को विश्व स्तरीय वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में स्थापित किया है। अब तक इस प्लांट में लगभग 650 इंजनों का निर्माण किया जा चुका है और इन लोकोमोटिव्स को भारतीय रेल द्वारा उपयोग किया जा रहा है। विदित हो कि मेक इन इंडिया नीति को बढ़ावा देते हुए वर्ष 2018 में बिहार के मढ़ौरा में 70 एकड़ में इस संयंत्र की स्थापना की गई थी। इस संयंत्र की स्थापना भारतीय रेल के लिए 1,000 अत्याधुनिक लोकोमोटिव निर्माण के लिए की गई थी। मढ़ौरा संयंत्र से भारतीय रेल को प्रति वर्ष 100 लोकोमोटिव की आपूर्ति की जा रही है।

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असम डाउन टाउन विश्वविद्यालय से प्रो.अच्युत सामंत को मिली 60वीं मानद डॉक्टरेट की डिग्री

भुवनेश्वर, 25 सितंबर: भारत के जाने-माने समाजसेवी,महान् शिक्षाविद् तथा ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित कीट-कीस दो नामी शैक्षिक संस्थाओं के  संस्थापक प्रो.डॉ अच्युत सामंत को आज गुवाहाटी में असम डाउन टाउन विश्वविद्यालय द्वारा विश्वविद्यालय के 11वें दीक्षांत समारोह में प्रो.सामंत की कीट-कीस जैसी विश्वविख्यात पहल तथा निःस्वार्थ समाजसेवा के लिए उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई,  जो प्रो डॉ.सामंत के नाम कीर्तिमान रुप में 60वीं मानद डॉक्टरेट की डिग्री है।
उल्लेखनीय है कि प्रो.डॉ. अच्युत सामंत ने शिक्षा, स्वास्थ्य, आदिवासी कल्याण,कला, संस्कृति, साहित्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में उल्लेखनीय तथा प्रशंसनीय कार्य किया है जिनके बदौलत उनके नाम अबतक कुल 60 मानद डॉक्टरेट की डिग्री मिल चुकी है जो भारत के किसी भी शिक्षाविद् के लिए एक कीर्तिमान मानद डॉक्टरेट की डिग्रियां हैं। विश्वविद्यालय ने सम्मान प्रदान करते समय इन क्षेत्रों में उनके उत्कृष्ट प्रयासों को स्वीकार किया।
 व्यक्तिगत प्रतिबद्धताओं के कारण, प्रो.डॉ.अच्युत सामंत व्यक्तिगत रूप से समारोह में शामिल नहीं हो सके लेकिन उनके एक प्रतिनिधि ने उनकी ओर से पुरस्कार स्वीकार किया। प्रो.डॉ. अच्युत सामंत ने सम्मान के लिए विश्वविद्यालय के प्रति हार्दिक आभार जताते हुए मीडिया को यह जानकारी दी कि वे इस सम्मान को संजो कर रखेंगे क्योंकि यह उन्हें प्रदान की गई 60वीं मानद डॉक्टरेट है। उन्होंने कहा, “पिछले 33 सालों से वे समाज के लोगों के लिए अथक रुप से अनेक क्षेत्रों में निःस्वार्थ सेवा काम कर रहे हैं।
यह 60वीं मानद डॉक्टरेट की उपाधि उन्हें हमेशा याद रहेगी।” उन्होंने जल्द ही असम डाउन टाउन विश्वविद्यालय का दौरा करने का वादा किया। प्रो.डॉ. सामंत को समाज सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में उनके अनुकरणीय कार्यों के लिए दुनिया भर के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और संस्थानों से कई मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ मिली हैं। 2009 में, उन्हें कंबोडिया नेशनल यूनिवर्सिटी से अपनी पहली मानद डॉक्टरेट की उपाधि मिली थी।

पितरों को भोजन कैसे मिलता है ?

प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं कि श्राद्ध में समर्पित की गईं वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती है?
कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं। कोई देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाता है। तब मन में यह शंका होती है कि छोटे से पिंड से या ब्राह्मण को भोजन करने से अलग-अलग योनियों में पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है?इस शंका का स्कंद पुराण में बहुत सुन्दर समाधान मिलता है
एक बार राजा करंधम ने महायोगी महाकाल से पूछा, ‘मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए जो तर्पण या पिंडदान किया जाता है तो वह जल, पिंड आदि तो यहीं रह जाता है फिर पितरों के पास वे वस्तुएं कैसे पहुंचती हैं और कैसे पितरों को तृप्ति होती है?’
भगवान महाकाल ने बताया कि विश्व नियंता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरूप होकर पितरों के पास पहुंचती है। इस व्यवस्था के अधिपति हैं अग्निष्वात आदि। पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं और दूर से कही गईं स्तुतियों से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं और सभी जगह पहुंच सकते हैं। 5 तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति- इन 9 तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर 10वें तत्व के रूप में साक्षात भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं इसलिए देवता और पितर गंध व रसतत्व से तृप्त होते हैं। शब्द तत्व से तृप्त रहते हैं और स्पर्श तत्व को ग्रहण करते हैं। पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं और वे वर देते हैं।
पितरों का आहार है अन्न-जल का सारतत्व- जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सारतत्व (गंध और रस) है। अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु है, वह यहीं रह जाती है।
किस रूप में पहुंचता है पितरों को आहार?
नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न-जल आदि पितरों को दिया जाता है, विश्वदेव एवं अग्निष्वात (दिव्य पितर) हव्य-कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं।
यदि पितर देव योनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां दिया गया अन्न उन्हें ‘अमृत’ होकर प्राप्त होता है।
यदि गंधर्व बन गए हैं, तो वह अन्न उन्हें भोगों के रूप में प्राप्त होता है।
यदि पशु योनि में हैं, तो वह अन्न तृण के रूप में प्राप्त होता है।
नाग योनि में वायु रूप से,  यक्ष योनि में पान रूप से, राक्षस योनि में आमिष रूप में,, दानव योनि में मांस रूप में,. प्रेत योनि में रुधिर रूप में और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता है।
 जिस प्रकार बछड़ा झुंड में अपनी मां को ढूंढ ही लेता है, उसी प्रकार नाम, गोत्र, हृदय की भक्ति एवं देश-काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मंत्र पितरों के पास पहुंचा देते हैं।
 जीव चाहें सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो, तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है।
श्राद्ध में आमंत्रित ब्राह्मण पितरों के प्रतिनिधि रूप होते हैं। एक बार पुष्कर में श्रीरामजी अपने पिता दशरथजी का श्राद्ध कर रहे थे। रामजी जब ब्राह्मणों को भोजन कराने लगे तो सीताजी वृक्ष की ओट में खड़ी हो गईं। ब्राह्मण भोजन के बाद रामजी ने जब सीताजी से इसका कारण पूछा तो वे बोलीं-
 आप जब नाम-गोत्र का उच्चारण कर अपने पिता-दादा आदि का आवाहन करते हैं  तो वे यहां ब्राह्मणों के शरीर में छाया रूप में सटकर उपस्थित होते हैं।  तुलसी से पिंडार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यंत तृप्त रहते हैं। तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरूढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं। पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न- श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है।
आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।
पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।। (यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश)
यमराज का कहना है कि श्राद्ध करने से मिलते हैं ये 6 पवित्र लाभ-
 श्राद्ध कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है।
पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं।
परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।
श्राद्ध कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है।
पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।
श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता, वरन वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।
( उज्जैन से श्री मुकेश जोशी द्वारा प्रेषित)
 प्रश्न नहीं स्वाध्याय करें

नानासाहेब पेशवा की पत्नी श्रीमंत गोपिकाबाई एक कुशल रणनीतिकार थी- कौस्तुभ कस्तुरे

मुंबई। ” नानासाहेब पेशवा की पत्नी और बड़े बाजीराव की प्रिय बहू श्रीमंत गोपिकाबाई एक कट्टर राजनीतिज्ञ, वाकपटु और सैन्य अभियानों की योजना बनाने में परिवार की चतुर मुखिया थीं।” ये विचार बोरीवली के ‘इतिहास कट्टा’ पर बोलते हुए इतिहास के विद्वान और लेखक कौस्तुभ कस्तुरे ने व्यक्त किए।
 बोरीवली पश्चिम के सांस्कृतिक केंद्र के ‘ज्ञानविहार ग्रंथालय’ में ‘भारतीय इतिहास संकलन समिती – कोकण प्रांत, बोरीवली भाग’ व ‘बोरीवली सांस्कृतिक केंद्र’ द्वारा आयोजित ‘इतिहास कट्टा’ के कार्यक्रम अंतर्गत ‘गोष्ट ‘ती’ची’ के दूसरे भाग की ‘श्रीमंत गोपिकाबाई’ यह दूसरी कथा बताते हुए वे बोल रहे थे।
कौस्तुभ कस्तुरे ने ‘श्रीमंत गोपिकाबाई’ पर अभ्यासपूर्ण और इतिहास की कई भ्रांतियों को तोड़ने वाला व्याख्यान प्रस्तुत किया।अपने व्याख्यान की शुरुआत में उन्होंने कहा कि नाना साहेब पेशवा की पत्नी और महान बाजीरावा की प्यारी बहू गोपीकाबाई का चित्र कई ऐतिहासिक कालखंडों से एक खलनायक, एक अंदरूनी गांठ, एक ऐसी महिला के रूप में चित्रित किया गया है जो केवल अपने पति की ही सफलता के लिए लालसाही है।” परन्तु अगर हम कई ऐतिहासिक दस्तावेजों को ध्यान से देखें तो श्रीमंत गोपिकाबाई के बारे में हमारी आंखों के सामने सशक्त, मजबूत, कुशल और सैन्य अभियानों की योजना बनाने में निपूर्ण ऐसी प्रतिमा सामने आती है।

पानीपत में यह महिला अपने पति, भाई के समान प्यारे देवर सदाशिवराव भाऊ की मौत और फिर अपने पांच बेटों की मौत के दुःख को पचा कर उठ खड़ी हुई। अपने पोते सवाई माधवराव को शासन की उचित शिक्षा दिलाने के लिए अंत तक प्रयास करती रही। इसके लिए पुणे के शनिवार वाडा की सारी वैभव को छोड़कर दूर गंगापुर में जीवन के अंतिम क्षण तक मेहनत करते हुए मान-सम्मान के साथ जीने की कहानी गोपीकाबाई के सच्चे जीवनचरित्र को कौस्तुभ कस्तूरे ने इतिहास प्रेमियों के समक्ष प्रस्तुत की।
 ‘भारतीय इतिहास संकलन समिति, कोंकण प्रांत, बोरीवली भाग’ और ‘बोरीवली सांस्कृतिक केंद्र’ द्वारा आयोजित और ‘जनसेवा केंद्र, बोरीवली’ द्वारा प्रायोजित इस कार्यक्रम में श्रीधर साठे (वरिष्ठ विश्वस्त जन सेवा केंद्र बोरीवली), उदयजी शेवड़े (कोंकण प्रांत प्रचारक संस्कार भारती) सहित अनेक इतिहास प्रेमी उपस्थित थे।

तिरुपति प्रसाद मामला: आस्था से खिलवाड़, जिम्मेदार कौन?

गत 19 सितंबर को आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने तिरुपति तिरुमाला मंदिर के प्रसाद को लेकर जो खुलासा किया, उससे असंख्य आस्थावान हिंदुओं का दिल दहल गया। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की जांच रिपोर्ट के अनुसार, जिस घी से आंध्र प्रदेश के श्रीवेंकटेश्वर स्वामी मंदिर (तिरुपति मंदिर) का विश्वप्रसिद्ध प्रसाद (लड्डू) तैयार किया जा रहा था, वह न केवल मिलावटी है, बल्कि उसमें ‘फीश ऑयल’, ‘बीफ-टैलो’ और ‘लार्ड’ (सुअर की चर्बी) जैसे तत्व भी पाए गए हैं। करोड़ों भक्तों की आस्था और पवित्रता पर वर्षों तक प्रहार होता रहा और किसी के कान में जूं तक नहीं रेंगी।
इस खबर के सार्वजनिक होने के बाद अब तक क्या हुआ? यदि राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों, आक्रमक मीडिया रिपोर्टिंग और कानूनी कार्रवाई को छोड़ दें, तो साधु-संतों द्वारा मंदिर के शुद्धिकरण के अतिरिक्त हिंदू समाज बड़े तौर पर शांत ही रहा। यह कह सकते है कि कुछ हिंदू इस खुलासे से सदमे में आ गए, तो कइयों को इसपर अपनी बेबसी का अहसास हुआ। इसका कारण क्या है? शायद सदियों से जुल्म सहने के बाद हिंदू समाज की संवेदनशीलता कुंद हो गई है, इसलिए घोर अन्याय के बाद भी उनकी प्रतिक्रिया व्यापक रूप से बहुत सीमित या फिर न के बराबर होती है।
यह कोई पहली बार नहीं है। जब अंग्रेज, वामपंथी और मुस्लिम लीग ने मिलकर अगस्त 1947 में भारत को तकसीम किया, जिसमें करोड़ों लोग बेघर हो गए और लाखों मासूम मारे गए— तब बिना किसी व्यापक क्रोध के हिंदू समाज का बड़ा हिस्सा खंडित भारत में अपनी जिंदगियों को समेटने में मशगूल हो गया और अपने परिश्रम-बुद्धि से जीवन को सुधारने लगा। यहां तक पंडित नेहरू प्रदत्त सेकुलरवाद के नाम पर उसने कालांतर में उस वर्ग को राजनीतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार कर लिया, जिनके प्रपंच से देश प्रत्यक्ष-परोक्ष तौर पर विभाजित हुआ था। हिंदुओं की इस मानसिकता को संभवत: गांधीजी ने एक सदी पहले पहचान लिया था, इसलिए जब खिलाफत आंदोलन (1919-24) जनित सांप्रदायिक दंगों में अधिकांश स्थानों पर हिंदुओं पर जिहादियों का कहर टूट रहा था, तब उन्होंने 29 मई 1924 को ‘यंग इंडिया’ में मुसलमानों को ‘धींग’ (बदमाश), तो हिंदुओं को ‘दब्बू’ कहकर संबोधित किया था।
स्वतंत्र भारत में हिंदू संवेदनहीनता का पहला बड़ा मामला 1980-90 के दौर में तब आया था, जब घाटी में कश्मीरी पंडितों को उनकी पूजा-पद्धति और सनातन परंपरा के कारण जिहाद का शिकार होना पड़ा। न सिर्फ हिंदुओं के मंदिरों को निशाना बनाया गया, साथ ही कश्मीर में दहशत फैलाने के लिए आतंकियों ने स्थानीय मुस्लिमों की मदद से प्रभावशाली हिंदुओं को सरेआम मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया, तो उनकी बहू-बेटियों की आबरू लूटने लगे। परिणामस्वरूप, पांच कश्मीरी पंडित रातोंरात घाटी में अपनी करोड़ों पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर देश के दूसरे हिस्सों में विस्थापितों की तरह कैंपों में रहने को मजबूर हो गए। तब भी शेष भारत में हिंदू समाज का बड़ा वर्ग तमाशबीन बना रहा।
इस घटनाक्रम के लगभग एक दशक बाद गुजरात स्थित गोधरा रेलवे स्टेशन के पास 27 फरवरी 2002 को जिहादियों ने ट्रेन के एक डिब्बे में 59 कारसेवकों को जिंदा जलाकर मार डाला। इस घटना के अगले दिन संसद के भीतर और बाहर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। उस समय एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक ने अपने संपादकीय में इस जघन्य हत्याकांड के लिए पीड़ित हिंदुओं को ही यह कहकर कसूरवार ठहरा दिया कि वे अयोध्या की तीर्थयात्रा से लौटते समय मुस्लिम बहुल क्षेत्र में ‘जय श्रीराम’ का नारा लगा रहे थे। जैसे ही गुजरात में गोधरा कांड के प्रतिक्रियास्वरूप सांप्रदायिक हिंसा शुरू हुई, तब कालांतर में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार (2004-14) ने इस्लामी कट्टरता को परोक्ष-स्वीकृति देने या न्यायोचित ठहराने हेतु फर्जी-मिथक ‘हिंदू/भगवा आतंकवाद’ सिद्धांत को स्थापित करने और हिंदू-विरोधी ‘सांप्रदायिक विधेयक’ को पारित करने का भी असफल प्रयास शुरू कर दिया।
यह विडंबना है कि जब से तिरुपति तिरुमाला मंदिर के प्रसाद में पशु चर्बी मिलने का खुलासा हुआ है, तब से इस महापाप के शासकीय निवारण के लिए वैसा कोई राजकीय उपक्रम नहीं चलाया जा रहा, जैसा दिसंबर 1963 के अंत में पैगंबर मोहम्मद साहब की दाढ़ी का बाल (मू-ए-मुकद्दस) खोने पर हुआ था। मुसलमानों की मान्यता है कि श्रीनगर स्थित हजरतबल दरगाह में पैगंबर मोहम्मद साहब की दाढ़ी का बाल (मू-ए-मुकद्दस) रखा हुआ है, जिसके 26 दिसंबर 1963 को चोरी होने की अफवाह जंगल में आग की भांति फैल गई थी।
पाकिस्तान के साथ कश्मीर सहित शेष देश में हजारों-लाखों मुसलमानों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पं.नेहरू ने मामला संभालने के लिए अपने वरिष्ठ मंत्री लालबहादुर शास्त्री को भारतीय गुप्तचर एजेंसी के तत्कालीन प्रमुख भोलानाथ मलिक के साथ कश्मीर भेज दिया। जनवरी 1964 में मू-ए-मुकद्दस ढूंढ़ने का दावा कर लिया और मामला शांत हो गया। बकौल मलिक, जब उन्होंने इसकी सूचना पं.नेहरू को जानकारी दी, तब नेहरू ने उनसे कहा था, “तुमने भारत के लिए कश्मीर को बचा लिया।” पं.नेहरू की यह टिप्पणी इस बात को रेखांकित करती है कि ‘आस्था’ संबंधित मुद्दों को साधारण प्रशासनिक उपायों या सामान्य कानूनी प्रक्रियाओं पर नहीं छोड़ा जा सकता।
भारत के कई राज्यों में एक लाख से अधिक मंदिरों (तिरुपति सहित) के प्रबंधन पर संबंधित सरकारों का नियंत्रण है। तिरुमाला तिरूपति देवस्थानम ट्रस्ट के अंतर्गत श्रीवेंकटेश्वर स्वामी मंदिर का संचालन होता है, जो दुनिया का सबसे अमीर मंदिर ट्रस्ट भी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल, 2024 तक तिरुपति ट्रस्ट के बैंक खाते में 18,817 करोड़ रुपये की राशि थी। मंदिर प्रबंधन को करीब 500 करोड़ रुपये की वार्षिक आय होती है। ट्रस्ट के पास कुल 11,329 किलो सोना है, जिसकी कीमत करीब 8,496 करोड़ रुपये है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, तिरुपति मंदिर में प्रतिदिन औसतन 87 हजार भक्त दर्शन हेतु आते है। उन्हें प्रसाद के रूप में मिलने वाले लड्डुओं को बनाने में प्रतिमाह 42 हजार किलो घी, 22,500 किलो काजू, 15 हजार किलो किशमिश और 6 हजार किलो इलायची लगता है। यक्ष प्रश्न यही है कि आखिर इनकी शुद्धता और गुणवत्ता की जांच प्रतिदिन आधुनिक प्रयोगशाला में क्यों नहीं कराई जाती? हैरानी है कि प्रसाद में पशुओं की चर्बी मिलने के महापाप रूपी खुलासे के बाद भी इस संबंध में कोई बात नहीं हो रही है।
( लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं और हाल ही में लेखक की ‘ट्रिस्ट विद अयोध्या: डिकॉलोनाइजेशन ऑफ इंडिया’ पुस्तक प्रकाशित हुई है)
संपर्क* :- punjbalbir@gmail.com