साहित्य और पर्यटन” पर विमर्श एवं प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन
प्राचीन भारत के मौसम वैज्ञानिक घाघ और भड्डरी
घाघ भड्डरी प्रसिद्ध लोक कवि और भविष्यवक्ता थे, जिनकी कहावतें भारतीय कृषि और मौसम विज्ञान से जुड़ी हुई हैं। उनकी कहावतें किसानों को मौसम, खेती और प्राकृतिक घटनाओं के बारे में सरल और प्रभावी सलाह देती थीं। आइए, उनके जीवन, कहावतों और उनके वैज्ञानिक महत्व पर चर्चा करते हैं: उनका जीवनकाल 16वीं या 17वीं शताब्दी का माना जाता है। घाघ को कृषि विशेषज्ञ के रूप में देखा जाता था, जिन्होंने प्रकृति और मौसम के आधार पर किसानों को खेती के सुझाव दिए।
राजा भोज 11वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध राजा थे, जिनका शासन मध्य भारत के मालवा के धार क्षेत्र में था। वे विद्या, कला, और वास्तुकला के बड़े संरक्षक माने जाते थे। वहीं, घाघ भड्डरी एक लोक कवि और कृषि विशेषज्ञ थे, जिनका जीवनकाल 16वीं या 17वीं शताब्दी के आसपास माना जाता है। कई लोक कथाओं में कहा जाता है कि राजा भोज और घाघ एक-दूसरे के समकालीन थे और दोनों के बीच एक अद्भुत संवाद होता था। घाघ को अक्सर राजा भोज के दरबार के एक विद्वान या सलाहकार के रूप में चित्रित किया जाता है। कहा जाता है कि घाघ अपनी कहावतों और बुद्धिमत्ता के लिए राजा भोज के दरबार में बहुत सम्मानित थे, और वे राजा भोज को कृषि और मौसम के बारे में सलाह देते थे। हालांकि, यह बातें ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित नहीं हैं और अधिकतर दंतकथाओं पर आधारित हैं।
राजा भोज और घाघ दोनों ही अपने-अपने क्षेत्रों में बेहद प्रसिद्ध थे। राजा भोज अपने शासन और विद्वत्ता के लिए, जबकि घाघ अपनी कहावतों और कृषि ज्ञान के लिए। इसलिए, लोक कथाओं में दोनों का नाम साथ लिया जाता है। भारतीय परंपरा में अक्सर समय के अंतराल को अनदेखा करके दो महान व्यक्तियों को एक ही समय में रखा जाता है। यह संभव है कि लोगों ने राजा भोज और घाघ के गुणों को जोड़कर एक साथ उनकी कहानियाँ गढ़ी हों।
घाघ भड्डरी पर शोध करने वाले जर्मन वैज्ञानिक का नाम एंथ्रोपोसोफिस्ट डॉ. ऑस्कर वॉन हिन्यूबर (Dr. Oskar von Hinüber) था। डॉ. हिन्यूबर ने भारतीय कृषि और मौसम संबंधी पारंपरिक ज्ञान में गहरी रुचि दिखाई और विशेष रूप से घाघ की कहावतों पर अध्ययन किया।
डॉ. ऑस्कर वॉन हिन्यूबर ने यह समझने की कोशिश की कि कैसे घाघ की कहावतें पारंपरिक भारतीय कृषि ज्ञान के माध्यम से मौसम और फसल प्रबंधन का पूर्वानुमान लगाती हैं। उन्होंने इस पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करने का प्रयास किया, और उनके शोध से यह सिद्ध हुआ कि घाघ की कहावतें स्थानीय जलवायु और मौसम के सूक्ष्म अवलोकन पर आधारित थीं, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी काफ़ी सटीक हैं।
इस प्रकार, डॉ. हिन्यूबर जैसे वैज्ञानिकों ने पारंपरिक भारतीय ज्ञान को वैश्विक मंच पर एक नया दृष्टिकोण दिया और दिखाया कि कैसे यह ज्ञान आधुनिक विज्ञान के लिए भी मूल्यवान हो सकता है।
घाघ और भड्डरी की कहावतें
घाघ की कहावतें मुख्य रूप से कृषि और मौसम की भविष्यवाणियों पर केंद्रित थीं। ये कहावतें आसान और सरल भाषा में होती थीं, ताकि आम किसान भी उन्हें समझ सके। कुछ प्रसिद्ध कहावतें हैं:
“आषाढ़ महीने खेती जो जोते, सावन में जो बियाए।
भादों मास जो पूरन पावे, लख को धान उपजाए।”
इस कहावत में यह बताया गया है कि अगर किसान सही समय पर खेत जोते और बीज लगाए, तो उन्हें अच्छी फसल मिलेगी।
“पूस मास हर जो हरियाए,
फागुन फसल सरसाए।”
यह मौसम और फसल की स्थिति के अनुसार फसल के सही बढ़ने के संकेत देती है।
तीतरवर्णी बादली विधवा काजल रेख।
वा बरसे वा घर करे इमे मीन न मेख।।
अर्थात् बादलों का रंग तीतर जैसा हो जाये और विधवा स्त्री आँखों में काजल लगाये तो समझो कि बादल जरूर बरसेंगे और वह महिला घर बसायेगी।
ऐसी उक्तियों के सहारे बड़े मनोरंजक तरीके से वर्षा, गर्मी, सर्दी आदि की भविष्यवाणियॉं की जाती हैं। चीन में भी यह विज्ञान काफी विकसित हुआ। वहॉं भी बादलों का रंग, हवा का रुख तथा पशु-पक्षियों की हरकतों को देख कर मौसम की सम्भावना टटोली जाती है।
शुकरवारी बादली रही शनीचर छाय।
घाघ कहे,हे भड्डरी बिन बरस्यां नहीं जाय।।अर्थात शुक्रवार को छाये बादल शनिवार को भी बने रहे तो निश्चित है अच्छी वर्षा होगी।
उत्तर चमके बीजली पूरब बहे जु बाव।
घाघ कहे सुण भड्डरी बरधा भीतर लाव।।
उत्तर दिशा में बिजली चमके और हवा पूर्व की हो तो घाघ कहते हैं कि भड्डरी बैल को घर के अन्दर बॉंध लो, बरसात आने वाली है।
वर्षा और वायु के सिद्धान्त- घाघ और भड्डरी की जोड़ी ने वैसे तो खेती सम्बन्धी प्रत्येक पक्ष के सिद्धान्त बताये हैं, पर वर्षा सम्बन्धी उनकी उक्तियॉं अधिक प्रचलित हैं। अच्छी वर्षा के लिये वे कहते हैं-
सावन केरे प्रथम दिन, उगत न दीखै भान।
चार महीना बरसै पानी, याको है रमान।।
यदि श्रावण के कृृष्ण पक्ष की एकम को आसमान में बादल छाये रहे और प्रातःकाल सूर्य के दर्शन न हों तो यह इस बात का प्रमाण है कि चार महीनों तक जोरदार वर्षा होगी।
अच्छी वर्षा के और लक्षण बताते हुए घाघ कहते हैं-
चैत्र मास दशमी खड़ा, जो कहुँ कोरा जाइ।
चौमासे भर बादला, भली भॉंति बरसाई।।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को यदि आसमान में बादल नहीं हैं तो यह मान लेना चाहिये कि इस साल चौमासे में बरसात अच्छी होगी।
कम वर्षा के योग भड्डरी ने इस प्रकार बताये हैं-
नवै असाढ़े बादले, जो गरजे घनघोर।
कहै भड्डरी ज्योतिसी, काले पड़े चहुँ ओर।।
आषाढ़ कृष्ण नवमी के दिन यदि आकाश में घनघोर बादल गरजें तो भड्डरी ज्योतिषी कहती है कि चारों ओर अकाल पड़ेगा।
सावन पुरवाई चलै, भादौ में पछियॉंव।
कन्त डगरवा बेच के, लरिका जाइ जियाव।।
श्रावण माह में यदि पुरवा (पूर्व दिशा से हवा) बहे और भाद्रपद में पछुआ (पश्चिम दिशा की हवा) चले तो (भड्डरी घाघ से कहती है कि ) स्वामी पशुओं को बेच दो और बच्चों की चिंता करो, क्योंकि अकाल पड़ने वाला है।
पशु-पक्षियों के व्यवहार से वर्षा का अनुमान लगाने के सम्बन्ध में अनुमान लगाने के सम्बन्ध में कहा गया है-
उलटे गिरगिट ऊँचे चढ़े, बरसा होई भुई चल बढ़े।
जब गिरगिट उलटा हो कर ऊपर की ओर चढ़े तो समझो कि अच्छी वर्षा होगी और पृथ्वी पर जल बढ़ेगा।
ढेले ऊपर चील जो बोले, गली-गली में पानी डोले।
खेत में किसी ढेले पर बैठ कर चील बोले तो तय है कि जोरदार बरसात होगी और गलियों में पानी भर जायेगा।
वायु की दिशा से वर्षा का सम्बन्ध इस प्रकार बताया गया है-
पुरवा में पछियॉंव बहै, हॅंस के नारि पुरुष से कहै।
ऊ बरसे ई करे भतार, घाघ कहें यह सगुन विचार।।
यदि पूर्वी और पश्चिमी वायु एकसाथ मिल कर बहती हों और जब कोई महिला पर पुरुष से हॅंस कर बात करती हो तो जल निश्चित बरसेगा और वह महिला कलंक लगायेगी।
कार्तिक का महीना सर्दियों के शुरू में आता है। वर्षा ऋतु इसके आठ महीने बाद आती है। लेकिन इस महीने का भी वर्षा से सम्बन्ध बताते हुए भड्डरी कहती है-
कातिक सुदी एकादशी बादल बिजली होय।
कहे भड्डरी असाढ़ में, बरखा चोखी होय।।
अर्थात यदि कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी ग्यारस) को आकाश में बादल हों और बिजली चमके तो आषाढ़ में उत्तम वर्षा होगी।
वर्षा का अनुमान लगाने के बारे में भड्डरी संकेत देती है कि,
जो बदरी बादरमॉं खमसे, कहे भड्डरी पानी बरसे।
अर्थात् यदि बादलों के ढेर में बादल समाते हों तो भड्डरी का कहना है कि पानी बरसेगा।
घाघ केवल मौसम के ही विशेषज्ञ नहीं थे बल्कि खेती के सभी पक्षों में निष्णात थे। बीज कब बोने चाहिये, जमीन को कब और कैसे जोतना चाहिये, निराई-गुड़ाई कब हो, खाद कैसे तैयार करनी चाहिये, बैलों की पहिचान आदि सभी पक्षों के सिद्धान्त उन्होंने बताये हैं। इसके अतिरिक्त उनकी नीति सम्बन्धी उक्तियॉं भी हैं। एक उदाहरण देखिये-
अतरे खोतरे डंड करै, ताल नहाय ओसमॉं परै।
कहे भड्डरी ऐसे नर को, देव न मारे आपुई मरै।।
जो कभी-कभी या अनियमिति रूप से कसरत करता है, तालाब में (बिना गइराई जाने) स्नान करता है और ओस में सोता है, उसे ईश्वर नहीं मारते, वह खुद अपनी मौत बुलाता है।
लोकोक्तियॉं बहुत प्रभाव छोड़ने वाली होती है और ग्रामीण अंचल की लोकोक्तियॉं तो किसानों का मार्गदर्शन करने का काम करती हैं। घाघ की उक्तियॉं ऐसी ही प्रभावी लोकोक्तियॉं हैं। वे कहते हैं-
गया पेड़ जब बगुला बैठा, गया गेह जब मुड़िया पैठा।
गया राज जहॅं राजा लोभी, गया खेत जहॅं जामी गोभी।।
जिस पेड़ पर बगुला बैठने लगता है, वह सूख जाता है, जिस घर में कापालिकों-तांत्रिकों का प्रवेश हो जाता है वह घर नष्ट हो जाता है। वह राज्य नष्ट हो जाता है जिसका राजा लोभी हो और वह खेत नष्ट हो जाता है जिसमें गोभी पैदा की जाती है।
अपने यहॉं ऋतुचर्या अर्थात् मौसम के अनुसार खाने-पीने का बड़ा महत्व है। घाघ-भड्डरी ने भी सभी ऋतुओं के पथ्य-कुपथ्य बताये हैं। वर्ष के बारह महीनों में क्या नहीं खाना चाहिये, इस बारे में कहा गया है-
चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठे पन्थ अस़ाढे बेल।
सावन साग न भादो दही, क्वार करेला न कातिक मही।
अगहन जीरा पूसे धना, माघ मिश्री फागुन चना।
ई बारह जो देय बचाय, वाहि घर बैद कबौं न जाय।।
याने चैत्र में गुड़, वैशाख में तेल, ज्येष्ठ माह में धूप में धूमना, आषाढ़ में बील, श्रावण में हरी सब्जी, भादों में दही, क्वार में करेला और कार्तिक में छाछ, मार्गशीर्ष में जीरा, पौष में धनिया, माघ में मिश्री तथा फागुन में चने का प्रयोग नहीं करना चाहिये। जो इसका ध्यान रखते हैं उनके घर वैद्य-डाक्टर कभी नहीं आते। ये तो निषेध हैं, फिर खाना क्या चाहिये?
घाघ कहते हैं-
सावन हर्रे भादों चीत, क्वार मास गुड़ खायउ मीत।
कार्तिक मूली, अगहन तेल, पूस में करें दूध से मेल।
माघ मास घिउ खिचड़ी खाय, फागुन उठि के प्रात नहाय।
चैत मास में नीम बेसहती, वैसाखे में खाय जड़हथी।
जेठ मास जो दिन में सोवै, ओकर ज्वर असाढ़ मे रोवै।।
सावन में हरड़, भादों में चीता (एक झाड़ी जिसके पत्ते बड़े गुणकारी होते हैं), क्वार में गुड़, कार्तिक में मूली, मार्गशीर्ष में तेल, पूस में दूध , माघ महीने में घी-खिचड़ी, फागुन में प्रातः काल स्नान, चैत्र में नीम की पत्तियॉं और वैसाख में भात जो खाता है तथा जेठ के महीने में दोपहर में सोने (विश्राम करने) वाला आषा़ढ़ माह में होने वाली बीमारियों एवं बुखार से दूर रहता है।
मौसम पूर्वानुमान: घाघ की कहावतों में मौसम के बारे में सटीक भविष्यवाणियाँ की गई हैं। उनकी भविष्यवाणियाँ बादलों, हवाओं और अन्य प्राकृतिक संकेतों पर आधारित होती थीं।
फसल प्रबंधन: उनकी कहावतें बताती हैं कि किस समय कौन-सी फसल उगानी चाहिए और किन मौसमों में फसल की सुरक्षा कैसे करनी चाहिए।
स्थानीय ज्ञान: घाघ ने स्थानीय पर्यावरण और भूगोल के आधार पर सलाह दी, जो हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग होती थी।
आज भी कई कृषि वैज्ञानिक और शोधकर्ता घाघ की कहावतों का अध्ययन कर रहे हैं। वे देख रहे हैं कि कैसे पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को एक साथ जोड़ा जा सकता है। कई अध्ययनों में पाया गया है कि घाघ की कहावतें मौसम के व्यवहार और कृषि की समझ को विकसित करने में सहायक हो सकती हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में यह ज्ञान आज भी प्रासंगिक है।
घाघ भड्डरी की कहावतें भारतीय कृषि का एक अमूल्य हिस्सा हैं। उनका वैज्ञानिक महत्व आज भी प्रासंगिक है, और उन पर शोध यह दिखाता है कि किस तरह पारंपरिक ज्ञान आधुनिक विज्ञान के साथ मिलकर किसानों के लिए फायदेमंद हो सकता है। उनकी कहावतें न केवलकृषि ज्ञान का स्रोत हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का हिस्सा भी हैं।
क्या वेदों को लेकर कुप्रचार कि वे जातिवाद का समर्थन करते हैं
वेदों के बारे में फैलाई गई भ्रांतियों में से एक यह भी है कि वे ब्राह्मणवादी ग्रंथ हैं और शूद्रों के साथ अन्याय करते हैं | हिन्दू/सनातन/वैदिक धर्म का मुखौटा बने जातिवाद की जड़ भी वेदों में बताई जा रही है और इन्हीं विषैले विचारों पर दलित आन्दोलन इस देश में चलाया जा रहा है |
परंतु, इस से बड़ा असत्य और कोई नहीं है | इस श्रृंखला में हम इस मिथ्या मान्यता को खंडित करते हुए, वेद तथा संबंधित अन्य ग्रंथों से स्थापित करेंगे कि…
१.चारों वर्णों का और विशेषतया शूद्र का वह अर्थ है ही नहीं, जो मैकाले के मानसपुत्र दुष्प्रचारित करते रहते हैं |
२.वैदिक जीवन पद्धति सब मानवों को समान अवसर प्रदान करती है तथा जन्म- आधारित भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं रखती |
३.वेद ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो सर्वोच्च गुणवत्ता स्थापित करने के साथ ही सभी के लिए समान अवसरों की बात कहता हो | जिसके बारे में आज के मानवतावादी तो सोच भी नहीं सकते |
आइए, सबसे पहले कुछ उपासना मंत्रों से जानें कि वेद शूद्र के बारे में क्या कहते हैं –
यजुर्वेद १८ | ४८
हे भगवन! हमारे ब्राह्मणों में, क्षत्रियों में, वैश्यों में तथा शूद्रों में ज्ञान की ज्योति दीजिये | मुझे भी वही ज्योति प्रदान कीजिये ताकि मैं सत्य के दर्शन कर सकूं |
यजुर्वेद २० | १७
जो अपराध हमने गाँव, जंगल या सभा में किए हों, जो अपराध हमने इन्द्रियों में किए हों, जो अपराध हमने शूद्रों में और वैश्यों में किए हों और जो अपराध हमने धर्म में किए हों, कृपया उसे क्षमा कीजिये और हमें अपराध की प्रवृत्ति से छुड़ाइए |
यजुर्वेद २६ | २
हे मनुष्यों ! जैसे मैं ईश्वर इस वेद ज्ञान को पक्षपात के बिना मनुष्यमात्र के लिए उपदेश करता हूं, इसी प्रकार आप सब भी इस ज्ञान को ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र,वैश्य, स्त्रियों के लिए तथा जो अत्यन्त पतित हैं उनके भी कल्याण के लिये दो | विद्वान और धनिक मेरा त्याग न करें |
अथर्ववेद १९ | ३२ | ८
हे ईश्वर ! मुझे ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र और वैश्य सभी का प्रिय बनाइए | मैं सभी से प्रसंशित होऊं |
अथर्ववेद १९ | ६२ | १
सभी श्रेष्ठ मनुष्य मुझे पसंद करें | मुझे विद्वान, ब्राह्मणों, क्षत्रियों, शूद्रों, वैश्यों और जो भी मुझे देखे उसका प्रियपात्र बनाओ |
इन वैदिक प्रार्थनाओं से विदित होता है कि –
-वेद में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण समान माने गए हैं |
-सब के लिए समान प्रार्थना है तथा सबको बराबर सम्मान दिया गया है |
-और सभी अपराधों से छूटने के लिए की गई प्रार्थनाओं में शूद्र के साथ किए गए अपराध भी शामिल हैं |
-वेद के ज्ञान का प्रकाश समभाव रूप से सभी को देने का उपदेश है |
-यहां ध्यान देने योग्य है कि इन मंत्रों में शूद्र शब्द वैश्य से पहले आया है,अतः स्पष्ट है कि न तो शूद्रों का स्थान अंतिम है और ना ही उन्हें कम महत्त्व दिया गया है|
इस से सिद्ध होता है कि वेदों में शूद्रों का स्थान अन्य वर्णों की ही भांति आदरणीय है और उन्हें उच्च सम्मान प्राप्त है |
यह कहना कि वेदों में शूद्र का अर्थ कोई ऐसी जाति या समुदाय है जिससे भेदभाव बरता जाए – पूर्णतया निराधार है |
ॐ!!
अमरीका ने भारत को 297 पुरावशेष वस्तुएं वापस कीं
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और अमरीकी विदेश विभाग के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक मामलों के ब्यूरो ने दोनों देशों के बीच घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंधों को बनाए रखने तथा बेहतर सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जुलाई, 2024 में एक सांस्कृतिक संपदा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसका लक्ष्य सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से राष्ट्रपति बाइडेन और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा व्यक्त की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है, जैसा कि जून 2023 में उनकी बैठक के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में परिलक्षित होता है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अमरीका की यात्रा के अवसर पर अमरीकी पक्ष ने भारत से चोरी की गयी अथवा तस्करी के माध्यम से ले जायी गयी 297 प्राचीन वस्तुओं की वापसी में सहायता की है। इन्हें शीघ्र ही भारत को वापस लौटा दिया जाएगा। डेलावेयर के विलमिंगटन में द्विपक्षीय बैठक के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति बाइडेन को प्रतीकात्मक रूप से कुछ चुनिंदा वस्तुएं सौंपी गईं। प्रधानमंत्री ने इन कलाकृतियों की वापसी में सहयोग के लिए राष्ट्रपति बाइडेन को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि ये पुरावशेष न केवल भारत की ऐतिहासिक भौतिक संस्कृति का हिस्सा थे, बल्कि भारतीय सभ्यता एवं चेतना का आंतरिक आधार भी थे।
ये पुरावशेष वस्तुएं लगभग 4000 वर्ष पुरानी समयावधि अर्थात 2000 ईसा पूर्व से लेकर 1900 ईसवी तक की हैं और इनका उद्गम भारत के विभिन्न हिस्सों से हुआ है। इनमें से अधिकांश पुरावशेष पूर्वी भारत की टेराकोटा कलाकृतियां हैं, जबकि अन्य वस्तुएं पत्थर, धातु, लकड़ी तथा हाथी दांत से बनी हैं और देश के विभिन्न भागों से संबंधित हैं। सौंपी गई कुछ उल्लेखनीय पुरावशेष वस्तुएं इस प्रकार हैं:
मध्य भारत से प्राप्त बलुआ पत्थर की 10-11वीं शताब्दी ई. की अप्सरा की मूर्ति;
मध्य भारत से मिली कांस्य की बनी जैन तीर्थंकर की 15-16वीं शताब्दी की प्रतिमा;
पूर्वी भारत से प्राप्त तीसरी-चौथी शताब्दी का बना टेराकोटा फूलदान;
दक्षिण भारत की पत्थर की मूर्ति पहली शताब्दी ईसा पूर्व से पहली शताब्दी ईसवी तक की है;
दक्षिण भारत से प्राप्त कांस्य के बने भगवान गणेश, 17-18वीं शताब्दी ई. के;
उत्तर भारत से प्राप्त बलुआ पत्थर से बनी भगवान बुद्ध की खड़ी प्रतिमा, जो 15-16वीं शताब्दी की है;
पूर्वी भारत से प्राप्त भगवान विष्णु की कांस्य प्रतिमा 17-18वीं शताब्दी ई. की है;
2000-1800 ईसा पूर्व से संबंधित उत्तर भारत से तांबे में तैयार मानवरूपी आकृति;
दक्षिण भारत से प्राप्त भगवान कृष्ण की कांस्य मूर्ति
17-18वीं शताब्दी की प्रतिमा है; और
दक्षिण भारत से प्राप्त ग्रेनाइट में निर्मित भगवान कार्तिकेय की 13-14वीं शताब्दी की मूर्ति।
हाल के समय में, सांस्कृतिक संपदा की वापसी भारत और अमरीका की सांस्कृतिक समझ व आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण पहलू बन गई है। वर्ष 2016 से, अमरीका की सरकार ने बड़ी संख्या में तस्करी या चोरी की गई प्राचीन वस्तुओं की भारत वापसी की सुविधा प्रदान की है। जून, 2016 में प्रधानमंत्री की अमरीका यात्रा के दौरान 10 पुरावशेष लौटाए गए; वहीं सितंबर, 2021 में उनकी यात्रा के दौरान 157 वस्तुएं और पिछले वर्ष जून में उनकी यात्रा के दौरान 105 पुरावशेष लौटाए गए। इस प्रकार साल 2016 के बाद अमरीका से भारत को लौटाई गई सांस्कृतिक कलाकृतियों की कुल संख्या 578 हो चुकी है। यह किसी भी देश द्वारा भारत को लौटाई गई सांस्कृतिक पुरावशेष की सर्वाधिक संख्या है।
क्वांटम इनर्फिरन्सेंज परमाण्विक माध्यम में उच्च सटीकता वाले क्वांटम सेंसर के लिए प्रकाश को संग्रहीत कर सकता है
प्रयोगकर्ताओं ने एक परमाण्विक माध्यम में उपयुक्त प्रकाशीय प्रतिक्रिया प्राप्त की है, जिसका उपयोग प्रकाश को काफी समय तक संग्रहीत करने के लिए किया जा सकता है, जिससे उच्च सटिकता वाले क्वांटम सेंसरों के लिए कई क्वांटम प्रोटोकॉल के अनुप्रयोगों को डिजाइन करना और आसान हो जाएगा।
पिछले कई सालों से वैज्ञानिक रुबिडियम और सीजियम जैसे क्षारीय परमाणुओं पर काम कर रहे हैं, लेकिन पोटेशियम के प्रयोग के लिए बहुत कम प्रयास किए गए हैं, क्योंकि इस तत्व के साथ काम करना बहुत कठिन है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में क्वांटम मिक्सचर (क्यूमिक्स) लैब के गौरव पाल और डॉ. सप्तऋषि चौधरी ने अपने सहयोगी प्रोफेसर सुभाशीष दत्ता गुप्ता, टीआईएफआर हैदराबाद के साथ मिलकर थर्मल पोटेशियम का इस्तेमाल किया और परमाणविक माध्यम में क्वांटम इंटरफेरेंस पैदा करने के लिए परमाणुओं को दो लेजर लाइट के अधीन किया। इस परमाणविक माध्यम के अंदर क्वांटम कोहिरंस नियंत्रित प्रकाश का उपयोग करके पैदा किया गया, जो एक लेजर भी है। पोटेशियम परमाणुओं का उपयोग करके प्रयोग करने के लिए ये जांच और नियंत्रित प्रकाश अत्यधिक स्थिर लेजर स्रोतों से प्राप्त किया गया था।
“इस कार्य की नवीन प्रकृति कोहिरंट माध्यम द्वारा विद्युत चुम्बकीय रूप से प्रेरित ट्रांस्परेंसी (ईआईटी) अध्ययन करने के लिए पोटेशियम परमाणुओं के उपयोग में निहित है। हमने जांच प्रकाश प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश की, जब यह एक परमाणविक कोहिरंट माध्यम से गुजरा,” गौरव पाल, पीएचडी छात्र और ‘पोटेशियम वाष्प में वेग चयनात्मक कई दो-फोटोन डार्क और ब्राइट रेजोनेंस’ शीर्षक वाले पेपर के प्रमुख लेखक ने कहा।
ईआईटी एक क्वांटम इंटरफेरेंस घटना है, जो परमाणविक माध्यम में ऑप्टिकल प्रतिक्रिया को नाटकीय रूप से संशोधित करती है। ऑप्टिकल नॉनलीनियारिटी में, प्रकाश के उपयोग से प्रकाश को नियंत्रित करने के कई अनूठे अवसर होते हैं। और इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण ईआईटी है। यह घटना तब होती है, जब एक सघन माध्यम से गुजरते समय एक जांच किरण के संचरण को नियंत्रित किरण के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है। ईआईटी प्रयोग प्रकाश के एक या अधिक कणों के साथ क्वांटम डोमेन में स्केलेबल होने के कारण, संबंधित पदार्थ वांछित रूप से परमाणुओं और फोटॉनों के साथ क्वांटम प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन की अनुमति देता है।
प्रयोगों के बाद किए गए अवलोकनों ने आश्चर्यजनक परिणाम दिए। सिर्फ़ एक अनुनाद रेखा आकार को देखने के बजाय, जैसा कि अन्य क्षारीय परमाणुओं के मामले में होता रहा है, क्यूमिक्स प्रयोगकर्ताओं ने इस बार एक ही अवशोषण स्पेक्ट्रम में तीन-रेखा आकार देखे।
क्यूमिक्स लैब के सह-लेखक और प्रमुख डॉ. चौधरी ने कहा, “पोटेशियम वाष्प का उपयोग करके तीन पारदर्शिता खिड़कियों की यह नई विशेषता पहली बार देखी गई। आमतौर पर, पिछले अध्ययनों में केवल एक रेखा आकार को रिपोर्ट किया गया है, जिसमें रुबिडियम या सीज़ियम परमाणुओं का उपयोग किया गया था।”
फिजिका स्क्रिप्ट में प्रकाशित नवीनतम शोधपत्र ने कोहिरंट परमाणविक माध्यम में विभिन्न प्रकार के क्वांटम अनुनादों पर समग्र वर्तमान समझ को और बेहतर किया है।
“अतिरिक्त टू-लाइन आकार विशेष रूप से पोटेशियम परमाणुओं में निकट-अंतर वाली, अति सूक्ष्म ग्राउंड स्टेट्स के कारण उभरे। दो लेजर लाइटों को गतिशील परमाणुओं का उपयोग करके अपने उत्तेजना पथों का आदान-प्रदान करते हुए पाया गया, जिससे दो अतिरिक्त अनुनाद रेखाएँ उत्पन्न हुईं। हमने इनका प्रयोगात्मक रूप से उचित सैद्धांतिक मॉडलिंग के साथ अध्ययन किया है,” पाल ने समझाया।
प्रकाश किरणों के फोटॉन परमाणविक माध्यम के अंदर संग्रहीत होते हैं। जब परमाणविक माध्यम में कोहिरंस स्थापित हो जाता है, तो प्रकाश की जानकारी फोटॉन से परमाणुओं में चली जाती जाती है। कुछ समय बाद, यह प्रक्रिया पूर्व दशा में लौट आती है।
क्वांटम प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में भारत द्वारा अपने अनुसंधान और विकास प्रयासों को तेजी से आगे बढ़ाने के साथ, आरआरआई शोधकर्ताओं ने कहा कि प्रकाश को काफी समय तक संग्रहीत करने की यह क्षमता क्वांटम मेमोरी और क्वांटम संचार सहित कई, भविष्य के क्वांटम प्रोटोकॉल में काम आएगी। पोटेशियम का उपयोग करके कोहिरंट परमाणविक मीडिया की इस समझ का सीधा अनुप्रयोग लेज़र के अति-सटीक आवृत्ति स्थिरीकरण के क्षेत्र में होगा।
चूँकि लाइन शेप्स आवृत्ति डोमेन में स्थिति के संदर्भ में ट्यून करने योग्य हैं, इसलिए यह लेजर आवृत्ति को स्थिर करने के लिए एक आदर्श उपकरण है, खास तौर पर जहाँ स्पेक्ट्रोस्कोपिक रेफरेंसेज उपलब्ध नहीं हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि इससे महंगे वेब-लेंग्थ मीटर का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होगी।
आरआरआई की जोड़ी ने दावा किया कि निष्कर्ष अद्वितीय है, क्योंकि यह पुष्टि करता है कि क्वांटम मास्टर समीकरण (क्यूएमई) विवरण उन मामलों में भी मान्य है, जहां ग्राउंड एनर्जी लेवल सेपरेशन छोटा है। क्यूएमई क्वांटम मैकेनिकल सिस्टम (यहां पोटेशियम परमाणविक वाष्प) का अनुरूपण करने के लिए एक सैद्धांतिक उपकरण है, जहां प्रकाश-पदार्थ इंटरैक्शन का अध्ययन किया जाता है। यह तरीका विभिन्न संभावित डिके टर्म्स को शामिल करने के लिए फ्लेक्सेबुल है, जो वास्तविक दुनिया के क्वांटम सिस्टम की नकल करते हैं। हम लोगों ने अपने सैद्धांतिक मॉडलिंग में प्रासंगिक डिके टर्म्स के साथ क्यूएमई का इस्तेमाल किया है।
शोध पत्र लिंक: https://iopscience.iop.
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन: महिलाओं के नेतृत्व में विकास
भारत जैसे-जैसे 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन को साकार करने की ओर आगे बढ़ रहा है, सरकार यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है कि महिलाएं विकास की इस दौड़ में पीछे न छूटे। केंद्र सरकार ने विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रखते राष्ट्र के विकास में महिलाओं की क्षमता का उपयोग करके उन्हें सशक्त बनाने के लिए कई परिवर्तनकारी पहल शुरू की है।
दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन
ग्रामीण विकास मंत्रालय की दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) सबसे उल्लेखनीय प्रयासों में से एक है। डीएवाई-एनआरएलएम, भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है जो गरीबों, विशेष रूप से महिलाओं की मज़बूत संस्थाएं बना कर गरीबी कम करने को बढ़ावा देता है । साथ ही इन संस्थानों को विभिन्न वित्तीय सेवाओं एवं आजीविका सेवाओं तक पहुंचने में सक्षम बनाता है। डीएवाई-एनआरएलएम को अत्यधिक गहन कार्यक्रम के रूप में डिज़ाइन किया गया है और यह गरीबों को कार्यात्मक रूप से प्रभावी समुदाय के स्वामित्व वाले संस्थानों में संगठित करने, उनके वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने और उनकी आजीविका को मजबूत करने के लिए मानव और भौतिक संसाधनों के गहन अनुप्रयोग पर केंद्रित है।
आपसी आधार पर महिला स्व-सहायता समूह (एसएचजी) का एक साथ आना डीएवाई-एनआरएलएम समुदाय संस्थागत डिजाइन का प्राथमिक आधार है। डीएवाई-एनआरएलएम गांव और उच्च स्तर पर स्वयं सहायता समूहों एवं उनके संघों सहित गरीब महिलाओं की संस्थाओं के निर्माण, पोषण और मजबूती पर ध्यान केंद्रित करता है। इसके अलावा, डीएवाई-एनआरएलएम ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों के आजीविका से जुड़े संस्थानों को बढ़ावा देता है।
इस मिशन ने 92.06 लाख से अधिक स्व-सहायता समूहों (एसएचजी) में 10.03 करोड़ से अधिक महिलाओं को सफलतापूर्वक एकजुट किया है। ये एसएचजी पूरे भारत में महिलाओं के लिए वित्तीय समावेशन, डिजिटल साक्षरता, स्थायी आजीविका और सामाजिक विकास के इंजन के रूप में काम करते हैं। आजीविका विकास के लिए समग्र दृष्टिकोण को एकीकृत करके, डीएवाई-एनआरएलएम ने महिलाओं को गरीबी के चक्र से मुक्त होने और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए सशक्त बनाया है।
लखपति दीदी योजना: महिला उद्यमियों को सशक्त बनाना
लखपति दीदी स्व-सहायता समूह की सदस्य है जो एक लाख रुपये (1,00,000 रुपये) या उससे अधिक की वार्षिक घरेलू आय अर्जित करती हैं। इस आय की गणना कम से कम चार कृषि मौसमों और/या व्यावसायिक चक्रों के लिए की जाती है, जिनकी औसत मासिक आय दस हजार रुपये (10,000 रुपये) से अधिक है, ताकि यह आय निरंतर बनी रहे।
महाराष्ट्र के जलगांव में लखपति दीदी सम्मेलन में प्रधानमंत्री की भागीदारी ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला। इस कार्यक्रम के दौरान, पीएम मोदी ने सरकार के तीसरे कार्यकाल के दौरान “लखपति दीदी” बनी 11 लाख महिलाओं को प्रमाण पत्र सौंपे। लखपति दीदी योजना के तहत महिलाएं आर्थिक रुप से आत्म निर्भर हुई हैं । आने वाले वर्षों में तीन करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री ने 2,500 करोड़ रुपये का रिवॉल्विंग फंड जारी किया, जिससे 4.3 लाख स्व-सहायता समूहों के लगभग 48 लाख सदस्यों को लाभ हुआ और 5,000 करोड़ रुपये के बैंक ऋण वितरित किए गए, जिससे 2.35 लाख एसएचजी के 25.8 लाख सदस्यों को लाभ होगा।
लखपति दीदी योजना की शुरुआत के बाद से अब तक एक करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाया गया है और सरकार ने तीन करोड़ लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य रखा है।
वित्तीय संसाधनों का यह निवेश महिलाओं के नेतृत्व वाले एसएचजी को अपने संचालन का विस्तार
करने, आजीविका में सुधार करने और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी आर्थिक विकास करने के लिए आवश्यक सहायता प्रदान करेगा ।
केंद्रीय बजट 2024-25: नारी शक्ति पर फोकस
वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने 2024-25 के केंद्रीय बजट में भारत के विकास में नारी शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। महिलाओं के कल्याण एवं सशक्तिकरण के लिए विभिन्न मंत्रालयों में 3.3 लाख करोड़ रुपये का उल्लेखनीय आवंटन किया गया है, जो कार्यबल में भागीदारी को बढ़ावा देगा। सुरक्षा बढ़ाएगा और कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावासों व क्रेचों जैसी अधिकाधिक सुविधाएँ मुहैया करवाई जाएँगी ।
विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई अन्य प्रमुख पहल शुरू की गई हैं:
1. कामकाजी महिला छात्रावास और क्रेच: श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ावा देने के लिए, सरकार, उद्योगों के सहयोग से कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास और उनके बच्चों की देखभाल के लिए क्रेच स्थापित करेगी। सरकार के इन प्रयासों से महिलाओं को काम करने के लिए सुरक्षित और अनुकूल वातावरण मिलेगा ।
2. कौशल और रोजगार: राज्य सरकारों और उद्योगों के सहयोग से महिलाओं को कुशल बनाने के लिए केंद्र प्रायोजित योजना शुरू की जाएगी। यह पहल पांच वर्षों में 20 लाख युवाओं को कौशल प्रदान करेगी, जिसमें महिलाओं के लिए उनकी रोजगार क्षमता और वित्तीय स्वतंत्रता बढ़ाने के अवसर शामिल हैं।
3. मुद्रा ऋण: उन महिला उद्यमियों के लिए मुद्रा ऋण की सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दी जाएगी जिन्होंने सफलतापूर्वक पिछला ऋण चुका दिया है। यह महिलाओं को अपने व्यवसायों को बढ़ाने और आर्थिक भागीदारी बढ़ाने में मदद करेगा।
4. समावेशी आर्थिक अवसर: महिला उद्यमियों, कारीगरों और स्व-सहायता समूहों (एसएचजी) का समर्थन करने के लिए स्टैंड-अप इंडिया, राष्ट्रीय आजीविका मिशन और पीएम विश्वकर्मा जैसी योजनाओं का विस्तार किया जाएगा । इनके माध्यम से महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसाय के लिए वित्तीय संसाधनों और अवसरों तक व्यापक पहुंच सुनिश्चित होगी।
5. स्टांप शुल्क: केंद्रीय बजट 2024 के अनुसार केंद्र सरकार राज्यों को उच्च स्टांप शुल्क दरों को कम करने के लिए प्रोत्साहित करेगी । महिलाओं द्वारा खरीदी गई संपत्तियों के लिए शुल्क को और कम करने पर विचार करेगी, जिससे यह सुधार शहरी विकास योजनाओं का अनिवार्य घटक बन जाएगा।
बी.टेक, एम.टेक और पीएचडी स्कॉलर्स के लिए इंडिया एआई फेलोशिप कार्यक्रम
विद्यार्थी और शोध छात्र-छात्रा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार 30 सितंबर, 2024 तक अपना नामांकन प्रस्तुत कर सकते हैं
इंडिया एआई- इंडिपेंडेंट बिजनेस डिवीजन (आईबीडी) इंडियाएआई फेलोशिप के लिए बी.टेक और एम.टेक विद्यार्थियों के नामांकन आमंत्रित किये जा रहे हैं। इसके अलावा, इंडियाएआई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में शोध करने वाले नए पीएचडी प्रवेश लेने वालों के लिए इंडियाएआई फेलोशिप में भाग लेने के उद्देश्य से अपनी स्वीकृति साझा करने के लिए शीर्ष 50 नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) रैंक वाले अनुसंधान संस्थानों को भी आमंत्रित कर रहा है।
इंडियाएआई फेलोशिप के लिए इंडियाएआई द्वारा उन सभी बी.टेक और एम.टेक विद्यार्थियों से नामांकन आमंत्रित किए जाते हैं, जो एआई के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। यह फेलोशिप एक तरह से किसी भी मौजूदा फेलोशिप की पूरक होगी और इस फेलोशिप कार्यक्रम की अवधि बी.टेक विद्यार्थियों के लिए एक वर्ष तथा एम.टेक विद्यार्थियों के लिए दो वर्ष होगी।
विद्यार्थी इस वेब लिंक पर जाकर 30 सितंबर, 2024 तक निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार अपना नामांकन प्रस्तुत कर सकते हैं –
इंडियाएआई शीर्ष 50 नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क रैंक वाले अनुसंधान संस्थानों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में शोध करने वाले पूर्णकालिक पीएचडी छात्र-छात्राओं को फेलोशिप की पेशकश कर रहा है। इंडियाएआई – आईबीडी शीर्ष 50 रैंक वाले अनुसंधान संस्थानों को इंडियाएआई फेलोशिप में भाग लेने और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में नए पीएचडी छात्र-छात्राओं को शामिल करने के उद्देश्य से अपनी स्वीकृति साझा करने के लिए भी आमंत्रित कर रहा है। इन पीएचडी स्कॉलर्स को इंडियाएआई पीएचडी फेलोशिप में नामांकन के समय किसी भी अन्य संगठन से कोई छात्रवृत्ति / वेतन प्राप्त नहीं हो रहा होना चाहिए।
शीर्ष 50 नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क रैंक वाले शोध संस्थानों से अनुरोध किया जाता है कि वे अपनी सहमति देते हुए इंडियाएआई पीएचडी फेलोशिप दिशानिर्देशों के अनुसार नए पीएचडी छात्र-छात्राओं को शामिल करने के लिए संस्थान के प्रमुख द्वारा हस्ताक्षरित और मुहर लगे आधिकारिक लेटरहेड पर अपना अनुमोदन श्रीमती कविता भाटिया, विज्ञान ‘जी’ और जीसी (एआई और ईटी) को kbhatia@meity.gov.in पर 30 सितंबर, 2024 तक प्रस्तुत कर दें।
इंडियाएआई फेलोशिप के लिए उपयुक्त उम्मीदवारों का वास्तविक चयन इंडियाएआई द्वारा पात्रता, अनुसंधान प्रस्ताव की प्रासंगिकता, विद्यार्थियों के प्रोफाइल और राष्ट्रीय स्तर पर फेलोशिप की उपलब्धता के आधार पर किया जाएगा।
इंडियाएआई के बारे में
इंडियाएआई, इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) के डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन (डीआईसी) के तहत एक आईबीडी, इंडियाएआई मिशन की कार्यान्वयन एजेंसी है, जिसका उद्देश्य समाज के सभी वर्गों में एआई के लाभों का लोकतंत्रीकरण करना, एआई में भारत के वैश्विक नेतृत्व को सशक्त बनाना, तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना और एआई का नैतिक तथा जिम्मेदारी से भरा उपयोग सुनिश्चित करना है।
भारतीय रेल सेवा की प्रारंभ से लेकर आज तक की गौरवशाली यात्रा
प्रारंभिक दौर (1830-1853):
भारतीय रेल की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी। 1830 के दशक में ही अंग्रेजों ने भारत में रेल सेवा शुरू करने की योजना बनाई थी, ताकि औपनिवेशिक शासन के दौरान व्यापार और प्रशासन में सुधार किया जा सके। हालांकि, पहली बार रेल पटरियां बिछाने का काम 1840 के दशक में शुरू हुआ।
16 अप्रैल 1853 को भारतीय रेल की औपचारिक शुरुआत हुई। यह पहली रेलगाड़ी मुंबई (तब बंबई) के बोरी बंदर स्टेशन से ठाणे तक चली, जो करीब 34 किलोमीटर की दूरी थी। इस ट्रेन में 14 डिब्बे थे और इसमें 400 लोग सवार थे। यह भारतीय रेल के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।
विस्तार और विकास (1854-1900):
पहली रेलगाड़ी की सफलता के बाद भारत में रेल नेटवर्क का तेजी से विस्तार होने लगा। 1854 में, हावड़ा और हुगली के बीच एक और रेल मार्ग शुरू हुआ। इस दौरान अंग्रेजी शासन ने रेलवे के विस्तार में भारी निवेश किया। 1870 तक, देश के विभिन्न हिस्सों को रेल मार्गों के द्वारा जोड़ा जा चुका था।
अंग्रेजों ने मुख्य रूप से कोलकाता, मुंबई और मद्रास को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग बनाए, जिनका उपयोग मुख्यतः माल ढुलाई के लिए किया जाता था, विशेष रूप से कपास, जूट, और अन्य कच्चे माल को बंदरगाहों तक पहुँचाने के लिए। धीरे-धीरे, यह नेटवर्क पूरे देश में फैलता गया।
स्वदेशी आंदोलन और भारतीय रेल (1900-1947):
बीसवीं सदी की शुरुआत में, भारतीय रेल का और विस्तार हुआ। हालांकि, इसका नियंत्रण और प्रबंधन ब्रिटिश सरकार के हाथों में था। लेकिन स्वदेशी आंदोलन के दौरान भारतीय नेताओं ने महसूस किया कि भारतीय रेल को स्वतंत्रता आंदोलन में भी उपयोग किया जा सकता है। रेलवे का उपयोग करके लोग एक राज्य से दूसरे राज्य में यात्रा कर सकते थे और विचारों का आदान-प्रदान कर सकते थे।
1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने तक भारतीय रेल का नेटवर्क विशाल हो चुका था, और यह देश के लगभग हर प्रमुख हिस्से तक पहुँच चुका था। हालांकि, विभाजन के समय भारतीय रेल को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा, क्योंकि बहुत से मार्ग और संसाधन पाकिस्तान को सौंप दिए गए।
स्वतंत्रता के बाद (1947-2000):
स्वतंत्रता के बाद भारतीय रेल को पुनर्गठित किया गया। भारत सरकार ने 1951 में सभी प्रमुख रेलमार्गों का राष्ट्रीयकरण कर दिया और इसे भारतीय रेल के नाम से एकल इकाई के रूप में संगठित किया गया। 1950 और 1960 के दशक में रेलवे का तेजी से विस्तार हुआ। नई तकनीकों का उपयोग शुरू हुआ और डीजल और इलेक्ट्रिक इंजन का प्रचलन बढ़ा।
1986 में भारतीय रेल ने कंप्यूटरीकृत आरक्षण प्रणाली की शुरुआत की, जिससे यात्रियों के लिए टिकट बुकिंग की प्रक्रिया आसान हो गई। इसके बाद से भारतीय रेल ने अपनी सेवाओं को लगातार बेहतर किया।
माधव राव सिंधिया भारतीय राजनीति के प्रमुख नेताओं में से एक थे और उन्होंने 1986 से 1989 तक भारत के रेल मंत्री के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने भारतीय रेल में कई महत्वपूर्ण सुधार और नवाचार किए, जिनका उद्देश्य रेलवे की कार्यकुशलता, यात्री सुविधाएं और सेवा की गुणवत्ता में सुधार करना था। उनके कार्यकाल को भारतीय रेल के विकास और आधुनिकीकरण के लिए एक महत्वपूर्ण दौर माना जाता है।
माधव राव सिंधिया का कार्यकाल भारतीय रेल के इतिहास में एक स्वर्णिम युग के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारतीय रेल को आधुनिक और यात्रियों के लिए अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किए। उनकी दूरदर्शी नीतियों और प्रगतिशील सुधारों ने भारतीय रेल को न केवल यात्री परिवहन में बल्कि देश की आर्थिक धारा में भी एक मजबूत आधार प्रदान किया।
1. नई रेलगाड़ियों का शुभारंभ:
- सिंधिया ने भारतीय रेल में कई नई ट्रेनों की शुरुआत की, विशेषकर लंबी दूरी और प्रमुख शहरों के बीच बेहतर कनेक्टिविटी के लिए। उन्होंने प्रीमियम ट्रेनों जैसे शताब्दी एक्सप्रेस की शुरुआत की, जो भारतीय रेल के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।
- शताब्दी एक्सप्रेस की शुरुआत 1988 में हुई थी, जो कि तेज़ और आरामदायक यात्रा के लिए जानी जाती है। यह ट्रेन नई दिल्ली और झांसी के बीच चलाई गई थी और इसे विशेष रूप से उन यात्रियों के लिए डिजाइन किया गया था जो व्यवसाय या काम के सिलसिले में कम समय में यात्रा करना चाहते थे।
2. इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार:
- सिंधिया ने रेलवे के इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए व्यापक प्रयास किए। उन्होंने पटरियों के आधुनिकीकरण, रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास और डीजल तथा इलेक्ट्रिक इंजन के उपयोग को बढ़ावा दिया।
- उनके कार्यकाल में रेलगाड़ियों की स्पीड और सुरक्षा में सुधार के लिए पटरियों और सिग्नल सिस्टम को अपडेट किया गया। इससे रेल सेवाओं की दक्षता और समयबद्धता में सुधार हुआ।
3. आरक्षण प्रणाली में सुधार:
- सिंधिया के समय में कंप्यूटराइज्ड रिजर्वेशन सिस्टम की शुरुआत की गई, जिससे यात्रियों को टिकट बुकिंग और रिजर्वेशन की प्रक्रिया में सुविधाएं मिलने लगीं। पहले जहाँ टिकट बुकिंग की प्रक्रिया लंबी और जटिल थी, वहीं कंप्यूटरीकृत व्यवस्था से यह प्रक्रिया बहुत तेज और पारदर्शी हो गई।
- इस प्रणाली का आरंभ विशेष रूप से नई दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में किया गया था, जिसे बाद में पूरे देश में विस्तारित किया गया।
4. रेलवे स्टेशनों का सुधार:
- रेलवे स्टेशनों पर यात्री सुविधाओं में सुधार लाने के लिए सिंधिया ने कई नए उपाय किए। स्टेशनों की साफ-सफाई, प्रतीक्षालयों में सुधार, पेयजल की सुविधाएं और अन्य बुनियादी सुविधाओं पर जोर दिया गया।
- उन्होंने प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर सुरक्षा और आराम के स्तर को बढ़ाने के लिए ध्यान दिया।
5. वित्तीय सुधार:
- भारतीय रेल की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने कई आर्थिक नीतियाँ अपनाई। किरायों में वृद्धि किए बिना रेलगाड़ियों के संचालन की दक्षता को बढ़ाने पर जोर दिया गया। सिंधिया ने भारतीय रेल को एक स्वावलंबी और लाभदायक संगठन बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
6. तकनीकी उन्नति:
- उनके कार्यकाल में रेलवे के तकनीकी उन्नयन पर भी जोर दिया गया। इलेक्ट्रिक इंजन और डीजल इंजन के उपयोग को बढ़ावा मिला, जिससे रेलगाड़ियों की गति और दक्षता में सुधार हुआ।
- साथ ही, माल ढुलाई सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए नए उपाय किए गए, जिससे भारतीय रेल के माल ढुलाई नेटवर्क का विकास हुआ।
7. रेलवे कर्मचारियों के हित में सुधार:
- सिंधिया ने रेलवे कर्मचारियों की स्थितियों में भी सुधार लाने की कोशिश की। उन्होंने कर्मचारियों के लिए बेहतर कार्य वातावरण और सुविधाएं प्रदान करने के उपाय किए, ताकि उनकी कार्यक्षमता में सुधार हो सके।
- साथ ही, रेलवे यूनियनों के साथ संवाद बनाए रखा और उनके साथ मिलकर रेलवे कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए प्रयास किए।
श्री सुरेश प्रभु ने 2014 से 2017 तक भारत के रेल मंत्री के रूप में कार्य किया, और इस दौरान उन्होंने भारतीय रेल के विकास और आधुनिकीकरण के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनका कार्यकाल व्यापक सुधारों और नई पहलों से भरा रहा, जिनका उद्देश्य रेलवे की क्षमता, सुरक्षा, वित्तीय स्थिति, और यात्री सेवाओं को बेहतर बनाना था। उन्होंने रेलवे को अधिक तकनीकी, पर्यावरण के अनुकूल और आधुनिक बनाने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। आइए उनके योगदान पर विस्तार से चर्चा करते हैं
1. रेल बजट में सुधार
- सुरेश प्रभु ने रेल बजट को पूरी तरह से बदल दिया। इससे पहले रेल बजट में आमतौर पर नई रेलगाड़ियों की घोषणा पर जोर दिया जाता था, लेकिन प्रभु ने इस परंपरा को तोड़ा और बजट को रेलवे के बुनियादी ढांचे, सुरक्षा और आधुनिकीकरण पर केंद्रित किया।
- उन्होंने दीर्घकालिक योजना पर ध्यान दिया, ताकि रेलवे का समग्र विकास हो सके और अल्पकालिक लाभों से हटकर दीर्घकालिक लाभ प्राप्त किया जा सके।He focused on
2. रेलवे में निवेश और वित्तीय सुधार
- प्रभु ने रेलवे में बड़े पैमाने पर निजी और सार्वजनिक निवेश आकर्षित किया। रेलवे के विकास के लिए 8.5 लाख करोड़ रुपये की पाँच वर्षीय योजना का अनावरण किया गया। इस धनराशि का उपयोग रेलवे के बुनियादी ढांचे, नई रेल लाइनों और आधुनिकीकरण में किया गया।
- उन्होंने भारतीय रेल को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल को बढ़ावा दिया और विश्व बैंक जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से वित्तीय सहायता प्राप्त की।
3. सुरक्षा में सुधार:
- सुरक्षा के क्षेत्र में सुधार सुरेश प्रभु के प्रमुख एजेंडे में से एक था। उन्होंने रेलवे सुरक्षा फंड (1 लाख करोड़ रुपये) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य रेलवे के बुनियादी ढांचे, सिग्नलिंग सिस्टम, ट्रैक्स, और पुलों के रखरखाव में सुधार करना था।
- ट्रैक के नवीनीकरण और सिग्नल सिस्टम के उन्नयन पर विशेष ध्यान दिया गया ताकि दुर्घटनाओं की संख्या को कम किया जा सके। उन्होंने फायर अलार्म सिस्टम और ट्रेनों में सीसीटीवी कैमरों की स्थापना जैसे सुरक्षा उपायों को भी बढ़ावा दिया।
4. डिजिटलीकरण और तकनीकी सुधार:
- सुरेश प्रभु ने भारतीय रेल के डिजिटलीकरण की दिशा में बड़े कदम उठाए। ई-टिकटिंग प्रणाली को और बेहतर बनाया गया, जिससे यात्रियों को टिकट बुकिंग और यात्रा की जानकारी प्राप्त करने में आसानी हुई। जैसे मोबाइल एप्लिकेशन की शुरुआत की, जिसके माध्यम से यात्री शिकायत दर्ज करा सकते थे और अपनी समस्याओं का शीघ्र समाधान पा सकते थे।
- रेलवे में जीआईएस (Geographic Information System) और GIS (Geographic Information System) in Railways ड्रोन सर्वे जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग शुरू किया गया ताकि ट्रैक की स्थिति और अन्य रेलवे संपत्तियों की निगरानी की जा सके।
5. पर्यावरण के अनुकूल पहल:
- सुरेश प्रभु ने रेलवे को पर्यावरण के अनुकूल बनाने पर भी जोर दिया। उन्होंने सौर ऊर्जा औरविंड एनर्जी का उपयोग रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों के लिए बढ़ावा दिया।
- उनके कार्यकाल में कई स्टेशनों पर सोलर पैनल लगाए गए और ट्रेनों में बायो-टॉयलेट की शुरुआत की गई, ताकि रेलवे का पर्यावरण पर प्रभाव कम हो सके।
- रेलवे को ग्रीन रेलवे बनाने के लिए कई उपाय किए गए, जिसमें T*कार्बन फुटप्रिंट को कम करने पर जोर दिया गया।
6. यात्री सेवाओं में सुधार:
- यात्रियों की सुविधा के लिए सुरेश प्रभु ने कई नई योजनाएँ शुरू कीं। स्टेशनों की सफाई, वॉटर वेंडिंग मशीनों की स्थापना, बेहतर कैटरिंग सेवाएं, और रेलगाड़ियों में ऑनबोर्ड मनोरंजन जैसी सुविधाएं प्रदान की गईं।
- उन्होंने रेलवे स्टेशन विकास योजना भी शुरू की, जिसमें प्रमुख रेलवे स्टेशनों को आधुनिक बनाने और वहाँ हवाई अड्डा जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया।
- रेलगाड़ियों में वाई-फाई की सुविधा और अनारक्षित टिकटों की ऑनलाइन बुकिंग की शुरुआत की गई, ताकि यात्रियों को अधिक सुविधाएं मिल सकें।
7. नई ट्रेनों और परियोजनाओं की शुरुआत
- सुरेश प्रभु ने कई महत्वपूर्ण नई ट्रेनों की शुरुआत की, जैसे हमसफर एक्सप्रेस,अंत्योदय एक्सप्रेस, और तेजस एक्सप्रेस, जो तेज़, आरामदायक और आधुनिक सुविधाओं से लैस थीं। उन्होंने बुलेट ट्रेन परियोजना की नींव रखी, जो भारत में हाई-स्पीड ट्रेन नेटवर्क को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम था। अहमदाबाद और मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन परियोजना की शुरुआत इसी अवधि में हुई।
8. रेलवे कर्मचारियों के हित में सुधार
- सुरेश प्रभु ने रेलवे कर्मचारियों की सुरक्षा और कल्याण के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने कर्मचारियों के लिए बेहतर कार्य वातावरण, हेल्थकेयर सुविधाएं, और ट्रेनिंग प्रोग्राम्स पर ध्यान दिया।
- साथ ही, कर्मचारियों के डिजिटल रिकॉर्ड्स को बेहतर तरीके से प्रबंधित करने के लिए ई-ऑफिस प्रणाली की शुरुआत की।
आधुनिक युग (2000-वर्तमान
सन् 2000 के बाद भारतीय रेल में कई बड़े बदलाव और सुधार हुए। हाई-स्पीड ट्रेन सेवाएं, जैसे कि शताब्दी और राजधानी एक्सप्रेस, पहले से ही शुरू हो चुकी थीं। इसके साथ ही भारतीय रेल ने कई बड़े प्रोजेक्ट्स शुरू किए, जैसे:
- कूलर और एसी कोचों का प्रचलन बढ़ाना।
- बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट का प्रस्ताव, जिसकी शुरुआत 2023 में हो चुकी है।
- मेट्रो और मोनोरेल जैसी परियोजनाओं का विकास, जो बड़े शहरों में यातायात को सुगम बनाने के लिए है।
- स्वच्छता, सुरक्षा, और डिजिटलीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है। यात्रियों की सुविधा के लिए मोबाइल एप्स और ऑनलाइन टिकट बुकिंग में सुधार किया गया।
2021 में वंदे भारत एक्सप्रेस जैसी आधुनिक सेमी-हाई-स्पीड ट्रेन की शुरुआत की गई, जो भारत के रेलवे के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
भविष्य की योजनाएं:
भारतीय रेल भविष्य में और भी आधुनिक तकनीकों और सेवाओं को अपनाने की दिशा में काम कर रही है। बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट्स, हाइड्रोजन ट्रेन, और हरित ऊर्जा (Green Energy) का उपयोग भारतीय रेल के विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा होंगे।
भारतीय रेल न केवल भारत के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने का अभिन्न हिस्सा रही है, बल्कि यह देश की विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को भी एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। समय के साथ भारतीय रेल ने अपने आप को लगातार उन्नत और आधुनिक बनाया है, और आने वाले समय में यह और भी तेज़, सुरक्षित और सुविधाजनक बनने की ओर अग्रसर है।
इन जिहादियों से बच्चों को बचाकर रखें वर्ना आपके बच्चे बचेंगे नहीं
खतना, नमाज, इस्लाम… कहानी 10 साल की उम्र में गायब हुए ‘सत्यम’ को कबाड़ी ‘समीर खान’ बनाने की, ब्रेनवॉश ऐसा कि अब अपने परिवार के साथ भी रहना नहीं चाहता
पीड़ित माँ के अनुसार राशिद भले गिरफ्तार हो गया है, लेकिन उन्हें उनका बेटा सत्यम वापस नहीं मिला। उसका ऐसा ब्रेनवॉश किया गया है कि उसने उनको माँ मानने से ही इनकार कर दिया। खुद को मुस्लिम बताते हुए कहा कि उसकी हिन्दू धर्म में आस्था नहीं है।
उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में शनिवार (14 सितंबर 2024) को धर्मान्तरण केस में नामजद राशिद नाम के आरोपित की पुलिस से मुठभेड़ हुई थी। इस मुठभेड़ में राशिद घायल हो गया था, जिसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। वह पिछले 19 वर्षों से फरार चल रहा था। राशिद 2005 में घर से लापता हुए हिन्दू बच्चे को इस्लाम कबूल करवाने का आरोपित है। उसके पास से अवैध हथियार और गोला-बारूद भी बरामद हुआ है। अब 30 साल के हो चुके सत्यम नाम के बच्चे को फिलहाल समीर खान बना दिया गया है। ऑपइंडिया से बात करते हुए सत्यम की माँ ने बताया कि उनके बेटे का ब्रेनवॉश इस हद कर तक कर दिया गया है कि वो अब अपने परिजनों के संग रहने को तैयार ही नहीं है।
यह मामला रामपुर जिले के थानाक्षेत्र शाहाबाद का है। यहाँ 13 सितंबर को मंजू देवी नाम की महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी। शिकायत में मंजू ने बताया है कि साल 2005 में उनका 10 वर्षीय बेटा सत्यम अचानक कहीं लापता हो गया था। तब पीड़िता ने इसकी शिकायत हापुड़ के पिलखुआ थाने में दर्ज करवाई थी। बच्चे के लापता होने की खबर अख़बार में भी प्रकाशित करवाई गई थी। काफी खोजबीन कर के मंजू ने पता लगाया कि उनका बेटा रामपुर जिले में राशिद के घर रहता है।
बच्चे को खोजते हुए मंजू देवी रामपुर पहुँची। यहाँ उनकी मुलाकात अपने बेटे से हुई। मंजू के बेटे ने यहाँ बताया कि 2005 में उसको पहले उनको दिल्ली ले जाया गया। वहाँ से बच्चे को कबाड़ी राशिद अपने साथ रामपुर ले आया। राशिद ने बच्चे को अपने साथ रखा और रुपए पैसे का लालच दे कर इस्लाम कबूल करवा दिया। कुछ दिनों बाद सत्यम का नाम बदल कर समीर खान रख दिया गया। एक नया आधार कार्ड भी बनवा दिया गया जिसमें समीर के अब्बा का नाम वाज़िद खान छाप दिया गया।
सत्यम की माँ का आरोप है कि उनके बेटे का खतना करवा दिया गया था और नमाज़ पढ़वाई जा रही थी। पीड़िता मंजू राय ने राशिद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की थी। इस तहरीर पर पुलिस ने राशिद के खिलाफ नामजद FIR दर्ज कर लिया। उस पर उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म सम्परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम के तहत कार्रवाई की गई। ऑपइंडिया के पास FIR कॉपी मौजूद है। केस दर्ज होने की जानकारी मिलते ही राशिद फरार हो गया। पुलिस ने उसकी तलाश में दबिश देनी शुरू कर दी।
13 सितंबर को राशिद के खिलाफ FIR दर्ज कर के पुलिस ने दबिश देनी शुरू कर दी थी। इस बीच अगले दिन 14 सितंबर को शाहाबाद थाने के SHO इंस्पेक्टर पंकज पंत अपने साथी पुलिसकर्मियों के साथ गश्त कर रहे थे। इसी दौरान उनको मुखबिर ने राशिद के एक खंडहर के पास छिपे होने की सूचना दी। पुलिस टीम इस सूचना पर बताए गए खंडहर की तरफ निकल पड़ी। सूचना सही पाई गई। राशिद खंडहर के पास मौजूद था।
पुलिस के मुताबिक पुलिस बल को अपनी तरफ बढ़ता देख राशिद भड़क गया। वह चीख कर बोला, “सालों पुलिस वालों, तुम भी आ गए। आज तुम्हारा भी काम तमाम करता हूँ।” इतना कह कर राशिद ने पुलिस पर गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी। राशिद की फायरिंग से पुलिस ने खुद को बचाते हुए सरेंडर करने की चेतावनी दी। हालाँकि जब इस चेतावनी का उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा तो पुलिस ने जवाबी फायरिंग की। पुलिस की गोली चलने पर राशिद भागने लगा जिसे दौड़ा कर दबोच लिया गया।
राशिद की तलाशी में उसके पास से एक तमंचा और कारतूस बरामद हुए। पुलिस पर हमले के आरोप पर उस पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 109 के साथ आयुध अधिनियम के तहत एक और FIR दर्ज हुई है। पूछताछ में राशिद ने बताया कि वो फ़िलहाल दिल्ली के ओखला फेज 1 में रहता है। वह कीपैड फोन ले कर चलता था। पुलिस की पूछताछ में उसने सत्यम के धर्मान्तरण मामले में अपने ऊपर लगे आरोपों को कबूल किया है। फिलहाल राशिद को जेल भेज दिया गया है। ऑपइंडिया के पास पुलिस की FIR मौजूद है।
ऑपइंडिया ने इस मामले में मंजू देवी से सम्पर्क किया। मंजू देवी ने बताया कि उनको आशंका है कि 2005 में उनका बेटा खुद लापता नहीं हुआ था बल्कि उसे साजिशन गायब किया गया था। बचपन में ही सत्यम की संगति गलत हो जाने का दावा करते हुए मंजू ने बताया कि सबसे पहले उसे दिल्ली में लगभग 4 महीने रखा गया। यहाँ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उसे अपने रंग में ढाला और कबाड़ आदि बीनने के काम पर लगाया। बाद में सत्यम को रामपुर शाहाबाद में भेज दिया गया। रामपुर में सत्यम को राशिद के पास रखा गया।
मंजू देवी आगे बताती हैं कि राशिद ने सत्यम को नौकरों की तरह रख कर काम करवाए। यहीं पर उसे मुस्लिम बना दिया गया और खतना भी करवाया गया। थोड़े समय बाद सत्यम को शाहाबाद के ही रहने वाले वाज़िद खान के सुपुर्द कर दिया गया। वाज़िद ने सत्यम का समीर खान नाम से आधार कार्ड बनवाया और खुद को उसका अब्बा दिखा दिया। वाज़िद ने भी अपने पूरे परिवार को कमा कर खिलाने की जिम्मेदार सत्यम पर डाल दी। सत्यम कभी कबाड़ बीन कर तो कभी फेरी लगा कर वाज़िद के परिवार का पेट भरता रहा।
मंजू देवी आते बताती हैं कि साल 2017 में ही उन्होंने अपने बेटे को खोज निकाला था। तब वो जैसे-तैसे रामपुर से मिन्नत कर के अपने बेटे को वापस हापुड़ ले आईं थीं। यहाँ सत्यम महज 2 से ढाई महीने के बीच रहा। सत्यम का नाम भी आधार कार्ड में बदलवा दिया गया। इस बीच कोई विक्की खान उसको लगातार कॉल कर के वापस लौटने के लिए ब्रेनवॉश करता रहा। इस ब्रेनवॉश का असर ये रहा कि सत्यम मंदिर जाने और पूजापाठ आदि से चिढ़ने लगा था। आखिरकार लगभग ढाई महीने बाद सत्यम फिर से अपना घर छोड़ कर रामपुर चला गया।
मंजू देवी बताती हैं कि इसके बाद उन्होंने अपने बेटे को वापस पाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो नाकाम रहीं। पीड़िता के एक और बेटा है जो सत्यम से छोटा है। मंजू देवी के पति मेहनत मजदूरी कर के परिवार पालते हैं। खुद मंजू भी एक प्राइवेट स्कूल में काम कर के अपने परिवार के लिए चार पैसे जुटाती हैं। इसी पैसे से वो अपने दूसरे बेटे की पढ़ाई आदि करवा रहीं हैं। मंजू चाहती हैं कि उनके बेटे के धर्मान्तरण में शामिल सिर्फ राशिद ही नहीं बल्कि दिल्ली से रामपुर तक प्रकाश में आए सभी आरोपितों पर एक्शन हो।
मंजू देवी ने हमको आगे बताया कि भले ही राशिद जेल चला गया है लेकिन उनको सत्यम वापस नहीं मिल पाया। पुलिस के आगे सत्यम ने उनको माँ मानने से ही इंकार कर दिया। सत्यम ने खुद को मुस्लिम बताते हुए कहा कि उसको हिन्दू धर्म में आस्था नहीं बची है। पुलिस के आगे कोई भी मुस्लिम सत्यम पर अपना दावा करने नहीं आया। मंजू देवी के मुताबिक उनके बेटे को मुस्लिमों द्वारा वर्तमान समय में साजिशन उत्तराखंड एक रुद्रपुर कहीं शिफ्ट कर दिया गया है।
मंजू ने हमको आगे बताया कि भले ही उनका बेटा उन्हें दोबारा वापस न मिले पर वो मुस्लिम मत छोड़ कर अपने मूल धर्म में वापस लौट आए। उन्होंने कहा कि अगर वो कहीं गौशाला में गायों की सेवा करे, किसी मठ या मंदिर का पुजारी बन जाए या किसी हिन्दू अधिकारी/व्यापारी के घर नौकरी करने लगे तो उन्हें बहुत सुकून मिलेगा। मंजू ने प्रशासन के साथ हिन्दू संगठनों से भी उम्मीद जताई है कि वो उनके बेटे को मुस्लिम मत से बाहर निकालने में मदद करें।
पीड़िता ने अपने परिवार की सुरक्षा भी खतरे में होने की बात कहते हुए भविष्य में चरमपंथियों द्वारा किसी अनहोनी की भी आशंका जाता है। अंत में वो फूट-फूट कर रोने लगीं और कहा कि कुछ साजिशकर्ताओं ने उनके परिवार को बर्बाद कर दिया। मंजू को यह भी चिंता है कि इस विवाद से उनके छोटे बेटे की शादी-ब्याह में दिक्कत पेश आ सकती है। फ़िलहाल पुलिस पूरे मामले की जाँच व अन्य जरूरी कानूनी कार्रवाई कर रही है।
(चित्र में 19 साल पहले लापता सत्यम को समीर खान बनाने वाला राशिद रामपुर में एनकाउंटर के बाद गिरफ्तार (चित्र साभार- आज तक)