Wednesday, April 9, 2025
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शेअर बाजार से कमाई के गुर सिखाते हैं मनीष गोयल

उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद में पले-बढ़े मनीष गोयल बचपन से ही गणित विषय में बेहद होशियार थे. संख्याओं और आंकड़ों में उनकी खास रुचि थी. आगे चलकर फायनेंस भी उनका पसंदीदा सब्जेक्ट हुआ करता था. भारत से लॉ (LLB) और कंपनी सेक्रेटरी (CS) की डिग्री हासिल करने के बाद, MBA करने के लिए, मनीष लंदन चले गए. वहां उन्होंने MBA की पढ़ाई पूरी करने के बाद, 2006 में एक दोस्त के साथ मिलकर एक रियल एस्टेट एडवाइजरी फर्म शुरु की. वे इसके फायनेंस डायरेक्टर बने. इसके साथ ही मनीष को भारत के शेयर बाज़ारों में ग़ज़ब की दिलचस्पी थी. वे रोजाना ऑफिस जाने से पहले एक ब्रोकर से भारतीय शेयर बाज़ारों की जानकारी लेते. ये सिलसिला दो साल तक चलता रहा. लेकिन साल 2008 की मंदी ने उनका पोर्टफोलियो तहस-नहस कर दिया. तब उन्होंने शेयर बाज़ार में पैसे लगाने के बारे में महारत हासिल करने की ठानी.

लंदन का बिजनेस छोड़कर, साल 2009 में मनीष भारत लौटे. वे मुंबई में शेयर बाज़ार के दिग्गजों से मिले और कई अहम बातें सीखी. इसके बाद उन्होंने 2013 में इन्वेस्टमेंट एडवाइजरी कंपनी Equentis Wealth Advisory Services (इसे पहले Research and Ranking के नाम से जाना जाता था) की शुरुआत की और लाइसेंस के लिए आवेदन किया. मनीष ने ब्रोकिंग के बजाए एडवाइजरी को अपना कोर बिजनेस चुना. लेकिन इस फैसले के लिए उन्हें बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा, खास तौर पर दोस्तों, परिवार और शुभचिंतकों से. उन्होंने सुझाव दिया कि एडवाइजरी बिजनेस मॉडल के बारे में पहले कभी नहीं सुना था, क्योंकि निवेशक ब्रोकर और दूसरे लोगों से सलाह लेने के आदी थे और उन्हें इसके खिलाफ़ कई बार चेतावनी दी गई थी. लेकिन अपने 10 वर्षों के अनुभव (2003-2013) में रिसर्च और सलाह की ज़रूरत को महसूस करते हुए, मनीष ने उनकी बात सुनने से परहेज़ किया.
तमाम चुनौतियोंं को पछाड़कर, उन्होंने जनवरी 2016 में, Research and Ranking (अब Equentis) प्लेटफ़ॉर्म लॉन्च किया और 2017 में संचालन शुरु किया. और तब से पिछे मुड़कर नहीं देखा. आज Equentis के पास 53,000 से अधिक क्लाइंट हैं. कंपनी के पास 500 से अधिक पेशेवरों की एक टीम हैं, और मुंबई, बेंगलुरु और नोएडा में इसके ऑफिस हैं. हाल ही में YourStory ने Equentis के फाउंडर और डायरेक्टर मनीष गोयल से बात की, जहां उन्होंने इसकी शुरुआत, बिजनेस और रेवेन्यू मॉडल, फंडिंग, चुनौतियों और भविष्य की योजनाओं के बारे में बताया.
Equentis के बिजनेस मॉडल के बारे में समझाते हुए मनीष बताते हैं, “Equentis केवल शुल्क-आधारित एडवाइजरी मॉडल पर काम करता है. ब्रोकिंग या डिस्ट्रीब्यूशन एक्टिविटी में हमारी हिस्सेदारी नहीं होती है. यह अप्रोच हमारे ग्राहकों के हितों के साथ मेलखाती है. इससे कमीशन-आधारित मॉडल से जुड़े संभावित हितों के टकराव को समाप्त किया जा सकता है.” गोयल बताते हैं, “भारत में कई सलाहकारों के विपरीत, हम म्यूचुअल फंड या इंश्योरेंस जैसे थर्ड-पार्टी प्रोडक्ट बेचकर रेवेन्यू नहीं कमाते हैं. हम केवल निष्पक्ष, ग्राहक-केंद्रित सलाह देने पर फोकस करते हैं. हमारे ग्राहक वार्षिक सदस्यता शुल्क के माध्यम से हमारी सलाहकार सेवाओं की सदस्यता लेते हैं, जो अर्ध-वार्षिक रूप से देय होता है. सदस्यता शुल्क ग्राहक के पोर्टफोलियो आकार के अनुरूप होता है. इसके अलावा कंपनी एसेट मैनेजमेंट के जरिए भी रेवेन्यू हासिल करती है.”

मनीष बताते हैं, “पिछले 8 वर्षों में हमने इस बिजनेस में 100-120 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है. 65-70% यानी 70-75 करोड़ रुपये प्रमोटरों से आए हैं. इस दौरान हमने अलग-अलग फंडिंग राउंड में एंजल निवेशकों और लीड एंजल (Alternative Investment Fund – AIF) से 40-45 करोड़ रुपये जुटाए हैं.” Equentis के रेवेन्यू के आंकड़ों का खुलासा करते हुए, फाउंडर और डायरेक्टर मनीष गोयल बताते हैं, “पिछले साल (वित्त वर्ष 24) में हमने 73 करोड़ रुपये का कारोबार किया और इस साल (वित्त वर्ष 25) हम 100 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार करने की उम्मीद कर रहे हैं. हम इस सेक्टर में 100 करोड़ रुपये का कारोबार पार करने वाली पहली और एकमात्र कंपनी होंगे.”

जब मनीष से पूछा गया कि उन्हें Equentis की शुरुआत करने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा? इस पर वे कहते हैं, “जब मैंने Equentis को शुरू करने का फैसला किया, तो मुझे एहसास हुआ कि पूरे भारत में ऐसी एडवाइजरी सेवाएं देने वाली कोई निवेश सलाहकार फर्म नहीं थी. बाजार में ज़्यादातर खिलाड़ी या तो ब्रोकर थे या टिप-आधारित सलाहकार, जो रणनीतिक, शोध-समर्थित निवेश मार्गदर्शन के बजाय क्विक ट्रेंड्स पर फोकस करते थे. इस अंतर ने मेरे विश्वास को मजबूत किया कि निवेशकों को वास्तव में स्वतंत्र, और देश भर में सेवाएं देने वाली कंपनी की आवश्यकता है. इसके अलावा, मुंबई में एक नए सिरे से शुरुआत करना भी चुनौतियों से भरपूर था.

मुझे सब कुछ शुरू से ही करना था. ऑफिस लेना, सही लोगों को हायर करना और एक अत्यधिक प्रतिस्पर्धी फायनेंशियल हब में विश्वसनीयता पैदा करना. शुरुआती चरण में बहुत दृढ़ता की आवश्यकता थी, क्योंकि हमें खुद को पारंपरिक ब्रोकिंग फर्मों से अलग करना था और इंडस्ट्री में एक नई कैटेगरी बनानी थी. हमने कैटेगरी बनाई और हम इस सेक्टर में अग्रणी रहे. एक और चुनौती थी — लोगों को एडवाइजरी फर्म की जरूरत के बारे में समझाना. लोगों में जागरुक की कमी की वजह से उन्हें समझाना अभी भी एक चुनौती है. हालांकि तमाम बाधाओं के बावजूद हम अपनी जगह बनाने में कामयाब हुए.” Equentis ने शेयर बाज़ार में पैसे लगाने वाले निवेशकों को जागरुक करने के लिए एक समर्पित प्लेटफ़ॉर्म InvestoRR लॉन्च किया है. कंपनी ने दिसंबर 2024 में, DIY (Do it yourself) समाधान MultiplyRR लॉन्च किया है.
यह स्मार्ट और आकर्षक इक्विटी निवेश समाधान शेयर बाजार को नए निवेशकों के लिए अधिक सुलभ बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है. एक ऐसे समय में जब शेयर बाजार को अभी भी अमीरों का क्षेत्र माना जाता है, इस समाधान का मकसद इस मिथक को दूर करना और नए निवेशकों को छोटी रकम से शुरू करने के साथ इक्विटी निवेश का अनुभव करने के लिए प्रोत्साहित करना है. एडवाइजरी फर्म ने अपना पहला कैटेगरी I ऑल्‍टरनेटिव इन्‍वेस्‍टमेंट फंड (AIF) – Equentis Angel Fund भी लॉन्च किया है. 500 करोड़ (60 मिलियन डॉलर) की लक्षित पूंजी के साथ, Equentis Angel Fund अर्ली-स्टेज (शुरुआती चरण के) अधिक ग्रोथ वाले भारतीय स्टार्टअप को समर्थन देगा.
अंत में Equentis को लेकर अपनी भविष्य की योजनाओं का खुलासा करते हुए, फाउंडर और डायरेक्टर मनीष गोयल बताते हैं, “आने वाले महीनों में हमारा लक्ष्य ₹200 करोड़ का Annual Recurring Revenue (ARR) हासिल करना है. यह वृद्धि कई क्षेत्रों में रणनीतिक पहलों द्वारा संचालित होगी. कंपनी ने हाल ही में Portfolio Management Services (PMS) लॉन्च की है. कंपनी अपने प्रमुख प्लेटफ़ॉर्म्स – InvestoRR और MultiplyRR – को Equeconnect से जोड़ेगी. यह ऑटोमेशन-संचालित प्लेटफ़ॉर्म है जिसे खास तौर पर ग्राहकों से जुड़ने और दक्षता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है. QUESS के साथ पार्टनरशिप में, Equentis का लक्ष्य अधिक से अधिक, तेज और गहरी पहुंच के साथ बाजार में अपनी पैठ बढ़ाना है. Equentis ने पिछले साल EBITDA profitability हासिल कर ली थी और अब अगले 2-3 वर्षों में अपने ग्राहक आधार को 200,000 से अधिक तक बढ़ाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है.”

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ब्रजभूषण उपाध्याय “ब्रजचन्द”

ब्रजभूषण उपाध्याय का जन्म वैसाख शुक्ल तृतीया स० १९९० विक्रमी में मेहदावल के सन्निकट बनकटा नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० रामहर्ष उपाध्याय था। ब्रजचन्द की शिक्षा-दीक्षा बी०ए० विशारद है। 1964 ई.मे जे०टी०सी० करने के बाद आप जिला परिषद के जूनियर हाई स्कूल के सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। भोजपुरी और खड़ी बोली के उभरते हुए छन्दकार के रूप में ब्रजचन्द काव्य- गोष्ठियो में विशेष सम्मान पाते हैं।

प्रकाशित पुस्तक – 1. ललकार
अप्रकाशित पुस्तक – 2. चेतक बावनी ।

   लोकगीतों के बड़े ही अच्छे कवि के रूप में ये सम्मान पाते रहे हैं। यह काव्य के प्रत्ति बड़े ही शौकीन रखते हैं।”चेतक”  के दो छन्द यहाँ प्रस्तुत है-

हिम की हिमानी देखी देखी हैअपूर्ण प्रभा
चन्दन सुगंध सदा उत्तर में हिन्दभाल।
देखी हरि गिरिकला शिव की समाधि देखी
देखी हैअखण्डज्योति उषा का अरुणकाल
शिवाकीभवानी भला किसकी है जानीनही
राणा का भाला राजपूतों की अनोखीढाल।
स्वामिभक्त चेतक का देखा है अनुप रूप
देखी हल्दीघाटी कीलड़ाई कीकलाकमाल।

पुनः एक दूसरा छन्द इस प्रकार है –
कितने सपूत देखा मातु बलि वेदी पर
प्राण पुष्प मुद्रित हो प्रेम से चढ़ाये थे।
कितने जवान देखा झूम झूम नाच नाच
हो हो कुर्बान देशभक्ति गान गाये थे।
देश है चित्तौड़ यही वीर रस वीर रूप
जौहरी अनेक जहां जौहर दिखाये थे ।
जिनकी कहानी थाती वीरता की “ब्रजचंद”
बार बार लिखते अनेक कवि आये थे।।

ब्रजचंद जी चतुर्थ चरण के एक नवोदित छन्दकार के रूप में काव्य-सेवा मे लगे हुए हैं। इनके भोजपुरी के मनोहारी गीत कवि सम्मेलनों के मचों पर काफी जमते हैं। इनके छन्दो पर कलाधर और अब्बासअली “बास” के काव्य का प्रभाव अधिक है। ब्रजचंद जी अपने आकर्षित प्रतिभा से कवि जनों को आत्मवत बना देने में बड़े सक्षम है।छन्दकारों से मिलते जुलते  रहना इन्हें बहुत अच्छा लगता है। चतुर्थ चरण के नवोदित छन्दकारों में अपनी सेवाओ से ब्रजचंद सामादृत होगे, ऐसा विश्वास है।

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

अमेरिका ने वैश्विक आर्थिक नीतियों पर लिया यू टर्न

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारत के पूंजी (शेयर) बाजार से अपना निवेश अक्टोबर 2024 माह से लगातार निकाल रहे हैं। फरवरी 2025 माह में भी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा 34,574 करोड़ रुपए (397 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक) की राशि का निवेश भारतीय शेयर बाजार से निकाला गया है। वर्ष 2025 में अभी तक 137,000 लाख करोड़ रुपए (1,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर) से अधिक की राशि का निवेश भारतीय शेयर बाजार से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा निकाला जा चुका है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से अपना निवेश निकालने के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं। सबसे पहिले तो वित्तीय वर्ष 2024-25 के प्रथम एवं द्वितीय तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर में आई गिरावट एक मुख्य कारण रही इसके बाद सितम्बर 2024 तिमाही में भारतीय कम्पनियों की लाभप्रदता में आई कमी को दूसरे कारण के रूप में देखा गया। परंतु अब तो अमेरिका में नव निर्वाचित राष्ट्रपति श्री ट्रम्प के प्रशासन द्वारा टैरिफ के संदर्भ में की जा रही नित नयी घोषणाओं को भी एक महत्वपूर्ण कारण माना जा रहा है। ट्रम्प प्रशासन ने चीन, कनाडा एवं मेक्सिको से अमेरिका में आयात किए जाने वाले विभिन्न उत्पादों पर टैरिफ की दर को बढ़ा दिया गया है और अब यह घोषणा भी की जा रही है कि भारत सहित विभिन्न देशों द्वारा अमेरिकी उत्पादों के आयात पर लगाए जाने वाले टैरिफ की तरह ही अमेरिका भी इन समस्त देशों से अमेरिका में होने वाले विभिन्न उत्पादों के आयात पर 2 अप्रेल 2025 से टैरिफ लगाएगा।
ट्रम्प प्रशासन का तो यहां तक कहना है कि भारत अपने देश में होने वाले कुछ उत्पादों के आयात पर तो 100 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाता है अतः अब अमेरिका भी भारत से अमेरिका में होने वाले कुछ उत्पादों के आयात पर 100 प्रतिशत तक टैरिफ लगाएगा। इससे बहुत सम्भव है कि भारत के फार्मा क्षेत्र, ऑटोमोबाइल क्षेत्र, इंजीनीयरिंग क्षेत्र एवं सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों पर विपरीत प्रभाव पड़े।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का भारत के शेयर बाजार में किये गए निवेश का पोर्टफोलियो लगभग 20 प्रतिशत गिर गया है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को यह आभास हो रहा है कि इसमें अभी और गिरावट आ सकती है अतः विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारतीय शेयर बाजार से अपना निवेश अभी भी लगातार निकाल रहे है। दूसरे, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को भारतीय बाजार तुलनात्मक रूप से महंगे लग रहे हैं क्योंकि चीन एवं कुछ अन्य देशों की कम्पनियों के शेयर इन देशों के शेयर बाजार में सस्ते में उपलब्ध हैं। अमेरिका में बांड यील्ड के उच्च स्तर (4.75 प्रतिशत से भी ऊपर) जाने के चलते भी अमेरिकी पोर्टफोलियो निवेशक भारत से अपना निवेश निकाल कर चीन, अमेरिका एवं अन्य इमर्जिंग बाजारों में निवेश कर रहे हैं। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर के लगातार मजबूत होते जाने से भारतीय रुपए पर लगातार दबाव बना हुआ है एवं भारतीय रुपए का अवमूल्यन हुआ है। हाल ही के समय में एक अमेरिकी डॉलर का मूल्य भारत के लगभग 88 रुपए के स्तर पर पहुंच गया है, इससे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की भारत के शेयर बाजार में होने वाली आय भी कम हुई है एवं उनकी लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।

सितम्बर 2024 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का भारतीय कम्पनियों में किए गए निवेश का पोर्टफोलियो 40,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का था जो आज गिरकर 30,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा गया है। इसमें 25 प्रतिशत की भारी भरकम गिरावट दर्ज की गई है। 2 अप्रेल 2025 से ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत पर रेसिपरोकल टैरिफ लगाए जाने की घोषणा के चलते अभी भी भारतीय पूंजी बाजार पर लगातार दबाव बना रह सकता है। हालांकि, इसी समय में भारतीय संस्थागत निवेशक एवं खुदरा (रीटेल) निवेशक भारतीय कम्पनियों के शेयरों में भारी मात्रा में निवेश कर रहे हैं इसीलिए भारतीय शेयर बाजार बहुत अधिक नहीं गिरा है। परंतु फिर भी, भारतीय शेयर बाजार में माहौल तो बिगड़ ही रहा है।

अभी तक तो विकसित देशों द्वारा वैश्वीकरण की नीतियों के आधार पर अपनी आर्थिक नीतियां बनाई जा रही थीं एवं विश्व के अन्य विकासशील देशों पर यह दबाव बनाया जा रहा था कि वे भी इन नीतियों का अनुपालन करते हुए विश्व के विकसित देशों के लिए विकासशील देश अपने द्वार खोलें ताकि इन देशों के संस्थागत निवेशक विकासशील देशों के पूंजी बाजार में अपना निवेश बढ़ा सकें। जबकि आज, विशेष रूप से अमेरिका, वैश्वीकरण की नीतियों को धत्ता बताते हुए केवल अपने देश को प्रथम स्थान पर रखकर वैश्वीकरण की नीतियों के संदर्भ में यू टर्न लेता हुआ दिखाई दे रहा है। किसी भी देश के लिए टैरिफ को अंधाधुंध बढ़ाना दुधारी तलवार की तरह है। जिस भी देश में भारी मात्रा में टैरिफ बढ़ाए जा रहे हैं उस देश के नागरिकों पर निश्चित रूप से इन उत्पादों के महंगे होने के चलते भारी बोझ पड़ने की सम्भावना बढ़ जाती है। क्योंकि, टैरिफ बढ़ाए जाने वाले देश में आयात की जा रही वस्तुओं के महंगे होने का खतरा बढ़ता है जिससे उस देश में मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि होती है और आर्थिक मंदी की सम्भावना बढ़ती जाती है।

अमेरिका की देखा देखी अब रूस ने भी चीन से आयात किए जा रहे चारपहिया वाहनों पर टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी है। चीन ने, आज रूस के 3/4 ऑटोमोबाइल बाजार पर अपना कब्जा कर लिया है। चीन ने हालांकि रूस में चार पहिया वाहनों के निर्यात के मामले में पश्चिमी देशों को  झटका देते हुए अपना निर्यात रूस में बढ़ाया है। शुरू शुरू में तो रूस को यह सब अच्छा लगा परंतु अब उसे महसूस हो रहा है कि किसी भी उत्पाद के आयात के मामले में केवल एक देश पर निर्भरता उचित नहीं है। अतः अब रूस ने चीन से आयात किए जाने वाले चारपहिया वाहनों पर टैरिफ लगाना प्रारम्भ कर दिया है। साथ ही, रूस अब अपने देश में ही चारपहिया वाहनों का उत्पादन करने वाली विनिर्माण इकाईयों की स्थापना करना चाहता है ताकि रूस में ही रोजगार के नए अवसर निर्मित हो सकें।

टैरिफ युद्ध के चलते अमेरिका में भी आर्थिक मंदी का खतरा बढ़ता जा रहा है। हालांकि इसकी सम्भावना वर्ष 2024 में भी की जा रही है। जे पी मोर्गन ने पूर्व में अपने एक आंकलन में बताया था कि अमेरिका में आर्थिक मंदी की सम्भावना 17 प्रतिशत है जबकि अब अपनी एक नई रिसर्च के आधार पर एक आंकलन में बताया है कि अमेरिकी में आर्थिक मंदी की सम्भावना 31 प्रतिशत तक बढ़ गई है। इसी प्रकार गोल्डमैन सैचस ने भी पूर्व में अमेरिका में आर्थिक मंदी की 14 प्रतिशत की सम्भावना व्यक्त की थी जो अब बढ़कर 24 प्रतिशत हो गई है। अमेरिका अपने देश में विभिन्न वस्तुओं के आयात पर टैरिफ लगा रहा है क्योंकि अमेरिका को ट्रम्प प्रशासन एक बार पुनः वैभवशाली बनाना चाहते हैं परंतु इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर ही विपरीत प्रभाव होता हुआ दिखाई दे रहा है।

अमेरिकी शेयर बाजार नसदक पिछले माह के दौरान 7 प्रतिशत से अधिक नीचे आया है, डाउ जोनस 4 प्रतिशत के आसपास नीचे आया है एवं एसएंडपी-500, 5 प्रतिशत के आसपास टूटा है। अमेरिका में जनवरी 2025 माह में उपभोक्ता खर्च में 0.2 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए उपभोक्ता खर्च में वृद्धि बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इसके साथ ही, ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी निर्णयों की घोषणा में भी एकरूपता नहीं है। कभी किसी देश पर टैरिफ बढ़ाने के घोषणा की जा रही है तो कभी इसे वापिस ले लिया जा रहा है, तो कभी इसके लागू किए जाने के समय में परिवर्तन किया जा रहा है, तो कभी इसे लागू करने की अवधि बढ़ा दी जाती है। कुल मिलाकर, अमेरिकी पूंजी बाजार में सधे हुए निर्णय होते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं इससे पूंजी बाजार में निवेश करने वाले निवेशकों का आत्मविश्वास टूट रहा है। और, अंततः इस सबका असर भारत सहित अन्य देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर पड़ता हुआ भी दिखाई दे रहा है।

हालांकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था का मूलभूत आधार बहुत मजबूत बना हुआ है। अमेरिका में फरवरी 2025 माह में 150,000 रोजगार के नए अवसर निर्मित हुए हैं, यह आर्थिक मंदी का चिन्ह तो नहीं हो सकता है, बल्कि यह तो मजबूत अमेरिकी अर्थव्यवस्था का संकेत है। हां, अमेरिकी अर्थव्यवस्था की विकास दर में कुछ कमी आ सकती है। मोर्गन स्टैनली के एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में इस वर्ष विकास दर घटकर 1.5 प्रतिशत के स्तर पर आ सकती है। अमेरिका में धीमी हो रही आर्थिक विकास की दर के चलते अमेरिकी फेडरल रिजर्व, बहुत सम्भव है कि, यू एस फेड रेट (ब्याज दर) में कमी की शीघ्र ही घोषणा करे, इससे अमेरिका में बांड यील्ड में कमी आ सकती है एवं अमेरिकी डॉलर पर दबाव बढ़ सकता है, इससे रुपए को मजबूती मिल सकती है एवं अंततः  विदेशी पोर्ट फो लियो निवेशक एक बार पुनः वापिस भारत लौट सकते हैं।

काव्य गौरव अलंकरण के लिए पाँच कवियों का चयन

इंदौर। हिन्दी भाषा की वाचिक परम्परा से मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा पाँच कवियों को प्रतिवर्ष काव्य गौरव अलंकरण प्रदान किया जाता है। वर्ष 2025 में गौतमपुरा से पंकज प्रजापत, चंदेरी से सौरभ जैन ‘भयंकर’, रतलाम से प्रवीण अत्रे, पुणे महाराष्ट्र से निधि गुप्ता ‘कशिश’ और धौलपुर राजस्थान से अपूर्व माधव झा का चयन किया गया है। यह अलंकरण संस्थान के प्रतिष्ठा प्रसंग हिन्दी गौरव अलंकरण समारोह में प्रदान किया जाएगा। इंदौर में यह समारोह शनिवार 22 मार्च 2025 को आयोजित किया जा रहा है।
मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने बताया कि ‘संस्थान विगत पाँच वर्ष से वाचिक परम्परा के पाँच युवा कवियों को काव्य गौरव अलंकरण से सम्मानित करता है, जिसमें वर्ष 2025 के लिए चयन समिति ने देशभर से प्राप्त अनुशंसाओं के आधार पर कवियों का चयन किया है।’
संस्थान के मध्य प्रदेश अध्यक्ष कवि अमित जैन मौलिक ने बताया कि ‘वर्ष 2025  के अलंकरण समारोह में विशिष्टता रहेगी, कवियों का चयन देश के विभिन्न प्रान्तों से होता है, विगत पाँच वर्षों में पच्चीस कवि काव्य गौरव अलंकरण से सम्मानित हो चुके हैं।’
काव्य गौरव से अलंकृत होने वाले कवियों को मातृभाषा उन्नयन संस्थान की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. नीना जोशी, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष शिखा जैन, राष्ट्रीय सचिव गणतंत्र ओजस्वी, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य नितेश गुप्ता, भावना शर्मा, सपन जैन काकड़ीवाला, प्रेम मंगल सहित समस्य प्रदेश इकाइयों द्वारा शुभकामनाएँ प्रेषित की गई हैं।

‘यूँ गुज़री है अब तलक’ के पन्नों से निकला यादों का समंदर

एक पुस्तक कई कहानियों, घटनाओं, दुख-दर्दों और रिश्तों की खट्टी मीठी यादों को ताजा कर देती है। जानी मानी फिल्म व टीवी धारावाहिक निर्माता अभिनेत्री सीमा कपूर की पुस्तक ‘यूँ गुज़री है अब तलक’ के विमोचन समारोह में ऐसे ही कुछ जीवंत पलों ने इतना कुछ जीवंत कर दिया कि पुस्तक विमोचन समारोह किसी बावनात्मक पारिवारिक फिल्म की तरह सजीव होता गया। सीमा कपूर के प्रियजनों की यादों का कारवाँ ऐसा चला कि समारोह में आए आत्मीयजन भी तीन घंटे तक लगातार भावनाओं के समंदर में भीगते रहे।

मुंबई में ऐसे तो की आयोजन होते हैं लेकिन ऐसे ही कुछ आयोजन रिश्तों और भावनाओं की मिठास का एहसास छोड़ जाते हैं।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए फिल्म निर्माता-निर्देशक रूमी जाफरी और कलाकार खुशबू पांचाल ने जो माहौल बनाया वह कार्यक्रम के समापन तक उपस्थित श्रोताओं पर रस वर्षा करता रहा।

रुमी जाफरी ने इस शेर के साथ कार्यक्रम का प्रारंभ किया-
पानी में अक्स देखकर मैं इतरा रहा था, किसी ने पत्तर फेंककर मेरा वजूद हिला दिया।

जानी मानी नृत्यांगना और
खुशबू पांचाल ने एक श्लोक से कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।
“क्षीयन्ते क्षणतः काया यान्ति भस्मीं च भाजनम्।
कीर्तिस्तु स्थायिनी पुंसां गङ्गेवाक्षयिणी सदा॥”
शरीर नष्ट हो जाता है, भौतिक वस्तुएँ भी समय के साथ समाप्त हो जाती हैं, किंतु महान पुरुषों की कीर्ति गंगा की भाँति सदा अमर रहती हैकार्यक्रम के प्रारंभ में सीमा कपूर के जीवन से जुड़ी यादों को लेकर एक वृत्त चित्र का प्रदर्शन किया गया जिसमें कई जानी मानी हस्तियों और परिवारजनों ने अपनी यादों के पिटारे से सीमा कपूर से जुड़े संस्मरण प्रस्तुत किए।

इस अवसर पर अनुपम खेर न कहा कि कपूर परिवार संस्कृति, साहित्य, कला और संगीत की पूजा करने वाला एक ऐसा परिवार है जिसने फिल्मी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। सीमा कपूर की पुस्तक जो भी पढ़ेगा उसे इसमें एक फिल्म दिखाई देगा। उन्होंने कहा कि अपनी जीवनी पर पुस्तक लिखना यानी अंदर के सत को बाहर लाने जैसा है, लेकिन ये भी जरुरी है कि एक अगर सच कह सके तो दूसरा सच सुन सके।

इससे पहले कि कोई रंग बगावत कर दे, जिंदगी आ तेरी तस्वीर मुकम्मल कर दूँ।

सीमा कपूर ने अपनी बात कुछ शेरों में यू कही…
नहीं मिला जो बंदूक का लायसेंस, मैने तो इस खयाल को ही गोली मार दी।
उन्होंने अपने परिवार की और अपनी संघर्ष यात्रा को लेकर कई संस्मरण साझा किए। उन्होंने कहा कि मेरे नानाजी बंगाल के प्रमुख क्रांतिकारी थे और अंग्रजों से बचकर वे मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ आ गए। टीकमगढ़ के राजा ने उनको शरण दी और अपने राज्य में दीवान का पद दे दिया। मेरे दादाजी फौज में कर्नल थे और पूरा परिवार सेना में था मेरे पिताजी डीएवी कॉलेज लाहौर में पढ़े थे। उन्होंने दिल्ली आकर अपनी नाटक कंपनी प्रारंभ की। उस नाटक कंपनी में 250 लोग थे। लेकिन जब देश में सिनेमा आ गया तो नाटक कंपनी को चलाना मुश्किल हो गया और घर -परिवार के साथ ही नाटक कंपनी के 250 लोगों का पेट भरना मुश्किल हो गया। उसी समय कय थिएटर बंद हो गए और उन थिएटरों के कलाकार मेरे पिताजी के पास काम मांगने आ गए। हमारी हालत और खराब होती गई। पिताजी ने थिएटरों में जो कलाकार रखे थे वे ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं होते थे, ऐसे में इन कलाकारों को कहीं दूसरी जगह भी काम मिलना मुश्किल होता था। मेरे पिता पढ़ाई करवाने की बजाय जीवन में कुछ सीखने पर जोर देते थे, लेकिन मेरी माताजी ने हम सब को पढ़ने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने अपने बचपन और स्कूल के दिनों की याद ताजा करते हुए कहा कि तब नाटक नौटंकी में काम करने वालों को सम्मान की नजरों से नहीं देखा जाता था और मैं स्कूल जाती थी तो मेरी सहेलियाँ मेरी उपेक्षा करती थी। दूसरी और घर में इतनी गरीबी थी कि आधी रोटी और अचार लेकर स्कूल जाती थी, जबकि सभी सहेलियाँ पराठे पूडी और मिठाई लेकर स्कूल आती थी।

अपनी माताजी को याद करते हुए सीमा जी ने कहा कि वो जानी मानी शायरा और गायिका थी और तब बसंत देसाई जैसे संगीतकार ने उन्हें अपनी फिल्म के लिए 6 गाने गाने का प्रस्ताव रखा था मगर मेरी दादीजी को ये बात पसंद नहीं थी कि उनकी बहू फिल्म के लिए गाने गाए तो उन्होंने मना कर दिया और मेरी माताजी ने भी चुपचाप इस बात को स्वीकार कर लिया।

सीमा कपूर ने कहा कि हमारे माता-पिता का और हमारा जीवन घोर गरीबी में बीता मगर हमने कभी झूठ बोलकर या किसी का नुक्सान कर अपना हित साधने की कोशिश नहीं की। लेकिन आज सब-कुछ होते हुए भी हमको कई बार झूठ बोलकर काम निकलवाना पड़ता है।

अपने स्वर्गीय पति ओम पुरी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि
मैने करवट बदलकर देखा है, याद तो तुम उस तरफ भी आते हो।
जो न मिल सके वो बेवफा थे, अजीब सी बात है
जो चला गया  छोड़कर वो अभी तक याद है
अपना परिचय उन्होंने परवीन शाकिर के इस शेर से दिया…
फुरसत अगर मिले तो पढ़ना मुझे जरुर
मैं नायाबा उलझनों की मुकम्मल किताब हूँ
उन्होंने अपनी स्वर्गीय माताजी के शेर से उनको याद किया
कुछ ऐसे मुकाम पर लाई है नाकामी मुझे
मेरे हौसले अब जवान होने लगे हैं

जाने माने अभिनेता रघुवीर यादव ने कहा कि मैने अपनी जिंदगी कपूर साहब की थिएटर कंपनी से ही शुरु की। मैं ग्यारहवीं में फैल होने के डर से घर से भाग गया था, और उत्तर प्रदेश के ललितपुर में सीमा जी पिता की कंपनी में काम मांगने पहुँच गया। पिताजी ने मुझे चांद ये चांदनी ये सितारे बदल गए। जब पिताजी ने कहा कि मेरे तफल्लुस ठीक नहीं है तो मैं समझा कि इसे तपले पर गाकर सुनाना है। उन्होंने मुझे समझाया कि तफल्लुस का मतलब तबले से नहीं बल्कि उच्चारण से है। पिताजी ने मुझे  ढाई रुपये रोज पर काम पर रख लिया इस तरह मेरी जिंदगी का पहला अध्याय उनके सॆथ शुरु हुआ।

उन्होंने बताया कि उस समय सीमा का और मेरा बचपन का दौर था। हम दोनों ही काले थे, किसी ने कह दिया कि साबुन से नहाने पर गोरे हो जाएंगे तो हम हँसिया छाप साबुन लेकर आए और उससे रगड़ रगड़ कर नहाने लगे। मगर गोरे होन  की बजाय हमारी चमड़ी ही छिल गई। हम आधे साबुन से नहाते थे और आधे से कपड़े धोते थे।

सीमा कपूर ने कहा कि हम लोग चंबन नदी पर नहाने जाते थे तो वहाँ हमको नारियल मिल जाते थे और हम वही नारियल खाकर पेट भर लिया करते थे। एक बार वहाँ लाल कपड़ा मिल गया तो मैने जिद की कि मैं तो इसकी चड्डी सिलवाउँगी। लेकिन इसको लेकर रङुवीर यादव और हमारे साथी के बीच झगड़ा हो गया कि इस कपड़े की चड्डी कौन सिलवाएगा। झगड़ा जब माँ तक पहुँचा तो माँ ने तीनों की पिटाई की और कहा कि ये नारियल और लाल कपड़े नदी किनारे बने श्मशान में मुर्दों के साथ आते हैं।

इस अवसर पर जानी मानी अभेनत्री दिव्या दत्ता ने कहा कि सीमा दीदी से मेरा मौन का रिश्ता रहा। इनकी बनाई फिल्म हाट – द वीकली बाजार मे मैने इनके साथ काम किया और ये अनुभव किया कि इनकी डॉंट में भी सीख और आत्मीयता छुपी होती  थी।

फिल्म अभिनेता परेश रावल ने कहा कि सीमा कपूर से मेरा ज्यादा परिचय नहीं है लेकिन इनके भाई अन्नू कपूर के साथ काम करते हुए मैने ये जाना है कि ये परिवार कितना सुसंस्कृत, और शालीन है। उन्होंने कहा कि जीवनी लिखना ऐसा ही है कि झूठ बोलो तो पाप लगे और सच बोलो तो आग लगे।

रुमी जाफरी ने कहा कि जब मैं भोपाल से मुंबई आया तो  अपना परिवार छोड़कर आया था और यहाँ आकर जब अन्नू कपूर और सीमा कपूर से मिला तो ऐसा लगा जैसे मुझे अपना परिवार ही मिल गया।

अन्नू कपूर ने सीमा कपूर के संघर्ष को याद करते हुए कहा कि वह जीवन के हर मोड़ पर संघर्ष और यातना से गुजरी है लेकिन किसी वीरांगना की तरह सब पीती गई और उसने हमारे माता-पिता की जिस तरह सेवा की और उनकी भावनाओँ को सम्मान दिया उसका मैं साक्षी रहा हूँ। अन्नू कपूर ने सीमा कपूर द्वारा अपनी माताजी के लिए लिखी गई ये पंक्तियाँ भी सुनाई-
तुम अपने आँचल पर घनेरी छाँव काढ़ लो, ताकि मैं जब मई जून की चिलचिलाती धूप में आकर उसके नीचे सुकून से बैठूँ तो मुझे लगे कि थके हुए मुसाफिरों का पड़ाव यहाँ तक है।

सीमा कपूर के छोटे भाई निखिल कपूर ने कहा कि मेरी माँ ने कहा था कि तेरी असली माँ तो ये हैं और मैं गर्व से कह सकता हूँ कि मेरे बचपन से लेकर आज तक दीदी ने मुझे माँ से ज्यादा प्यार दिया। मुझे साइकिल पर घुमाने से लेकर कंधे पर बिठाकर स्कूल छोड़ने तक एक एक दृश्य मुझे याद है।

बोनी कपूर ने कहा कि कपूर परिवार के अनुनू कपूर के साथ ही इनके भाई , भतीजों भतीजियों सबसे मेरा संपर्क रहा। मेरी दोनों बेटियों को अच्छी हिंदी सीमा जी ने सिखाई।

इस आयोजन में फिल्म, टीवी और थिएटर जगत से लेकर समाज के अलग-अलग वर्गों की कई प्रमुख हस्तियाँ उपस्थित थी। पुस्तक विमोचन का ये आयोजन एक तरह से एक पारिवारिक मिलन और रिश्तों की मिठास और आत्मीय अहसासों का यादगार आयोजन हो गया।

संस्मय को मिला अंतरराष्ट्रीय एक्सीलेंस अवॉर्ड

इन्दौर। हिन्दी पुस्तक प्रकाशन में गुणवत्ता और उत्कृष्टता के लिए वर्ल्ड रिकॉर्ड ऑफ़ एक्सीलेंस ने निजी होटल में आयोजित समारोह में संस्मय प्रकाशन को सम्मानित किया। यह सम्मान डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने फ़िल्म अभिनेता व तारक मेहता का उल्टा चश्मा में अय्यर के बॉस का क़िरदार निभा रहे कमल घिमिरे (भारतीय टीवी अभिनेता), विशाल कपूर (फ़िल्म निर्माता और बॉलीवुड फैशन आइकन) व विशेष अतिथि अनिल जेठवानी (भारत सरकार), माला सिंह ठाकुर (सामाजिक कार्यकर्ता) और गजेंद्र नारंग (रियल एस्टेट विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता) के करकमलों से ग्रहण किया।
संस्मय विगत आधे दशक से हिन्दी की पुस्तकें प्रकाशित कर रहा है, जिसमें सौ से अधिक लेखकों की किताबों का प्रकाशन किया गया है। इसके संस्थापक शिखा जैन और निदेशक भावना शर्मा हैं।

ऐतिहासिक मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मन्दिर मदुरई एक अलग तरह की कहानी

मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर मन्दिर भारत के तमिलनाडु राज्य के मदुरई नगर, में स्थित एक ऐतिहासिक मन्दिर है।  यह मंदिर वैगई नदी के दक्षिणी किनारे पर बना है। वैगइ नदी  तेनी ज़िले में पश्चिमी घाट की वरुसुनाडु पहाड़ियों में उत्पन्न होती है और इसका अंत रामनाथपुरम जिले में पंबन ब्रिज के करीब अलगनकुलम के पास पाक जलसंधि में विलय होने से होता है। इस नदी के तट पर निर्मित इस मन्दिर को अरुलमिगु मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर या अरुलमिगु मीनाक्षी अम्मन थिरुकोविल भी कहा जाता है। यह हिन्दू देवता शिव (सुन्दरेश्वरर) एवं उनकी भार्या देवी पार्वती (मीनाक्षी या मछली के आकार की आंख वाली देवी के रूप में) दोनो को समर्पित है। यह  मछली पांड्य राजाओं का राजचिह्न था यह मंदिर पांड्य राजाओं द्वारा संरक्षित है । यह मन्दिर तमिल भाषा के गृहस्थान 2500 वर्ष पुराने मदुरई नगर की जीवनरेखा है।
       हिन्दू पौराणिक कथानुसार भगवान शिव सुन्दरेश्वरर रूप में अपने गणों के साथ पांड्य राजा मलयध्वज की पुत्री राजकुमारी मीनाक्षी से विवाह रचाने मदुरई नगर में आये थे। मीनाक्षी को देवी पार्वती का अवतार माना जाता है। इस मन्दिर को देवी पार्वती के सर्वाधिक पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है।
देवी मीनाक्षी का विवाह भगवान सुंदरेश्वर से सोमवार, 20 फरवरी 3138 ईसा पूर्व को मदुरै में हुआ था, जब चंद्र कन्या राशि में था और सूर्य मेष राशि में था। तमिल नववर्ष सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ शुरू होता है और हर साल, नए साल की शुरुआत के 10 दिन बाद, मंदिर में मीनाक्षी त्रिल कल्याणम (विवाह) होता है। पांड्य तमिल शब्द पांडी (बैल) से भी जाना जाता है , क्योंकि प्राचीन तमिल लोग बैल को पुरुषत्व और वीरता का प्रतीक मानते थे। सुंदरेश्वर लिंग कृतयुग से प्रकट होता है। देवताओं के राजा इंद्र अपने गुरु की हत्या के दोषी थे और उन्हें एक भिखारिन के रूप में दुनिया में भटकने का श्राप मिला था। वे काशी (वाराणसी), कांची और तिरुकदावूर गए ।
राजा कुलशेखर पांड्यन की राजधानी में रहने वाले एक व्यवसायी धनंजय ने जंगल के बीच में इस मंदिर को देखा और राजा को बताया था । तमिल साहित्य में विष्णु को जिसमें मीनाक्षी का भाई माना जाता है, इस विवाह में   कन्यादान करने के लिए सहमत हुए, क्योंकि उस समय मीनाक्षी के पिता नहीं थे। ये विष्णु स्वयं कृष्ण हो सकते हैं, जो उस समय द्वारका में थे ।
इस मन्दिर का स्थापत्य एवं वास्तु आश्चर्यचकित कर देने वाला है, जिस कारण यह आधुनिक विश्व के सात आश्चर्यों की सूची में प्रथम स्थान पर स्थित है, एवं इसका कारण इसका विस्मय कारक स्थापत्य ही है। इस इमारत समूह में 12 भव्य गोपुरम हैं, जो अतीव विस्तृत रूप से शिल्पित हैं। इन पर बडी़ महीनता एवं कुशलतापूर्वक रंग एवं चित्रकारी की गई है, जो देखते हृदय में स्थान बना लेती है। यह मन्दिर तमिल लोगों का एक अति महत्वपूर्ण  प्रतीक है, एवं इसका वर्णन तमिल साहित्य में पुरातन काल से ही होता रहा है। हालांकि वर्तमान निर्माण आरम्भिक सत्रहवीं शताब्दी का बताया जाता है।
देवी पार्वती का हाथ भगवान शिव के हाथों में देते हुए (पाणिग्रहण संस्कार करते हुए) दिखाया गया है। देवी के भ्राता भगवान विष्णु (हिन्दू आलेखों के अनुसार) भगवान शिव पृथ्वी पर सुन्दरेश्वरर रूप में स्वयं देवी पार्वती पृथ्वी पर मिनाक्षी से विवाह रचाने के लिए अवतरित हुए। देवी पार्वती ने पूर्व में पाँड्य राजा मलयध्वज, मदुरई के राजा की घोर तपस्या के फलस्वरूप उनके घर में एक पुत्री के रूप में अवतार लिया था।वयस्क होने पर उसने नगर का शासन संभाला था । तब भगवान आये और उनसे विवाह प्रस्ताव रखा, जो उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस विवाह को विश्व की सबसे बडी़ घटना माना गया, जिसमें लगभग पूरी पृथ्वी के लोग मदुरई में एकत्र हुए थे। भगवान विष्णु स्वयं, अपने निवास बैकुण्ठ से इस विवाह का संचालन करने आये।
ईश्वरीय लीला अनुसार इन्द्र के कारण उनको रास्ते में विलम्ब हो गया। इस बीच विवाह कार्य स्थानीय देवता कूडल अझघ्अर द्वारा संचालित किया गया। बाद में क्रोधित भगवान विष्णु आये और उन्होंने मदुरई शहर में कदापि ना आने की प्रतिज्ञा की। और वे नगर की सीमा से लगे एक सुन्दर पर्वत अलगार कोइल में बस गये। बाद में उन्हें अन्य देवताओं द्वारा मनाया गया एवं उन्होंने मीनाक्षी-सुन्दरेश्वरर का पाणिग्रहण कराया। यह विवाह एवं भगवान विष्णु को शांत कर मनाना, दोनों को ही मदुरई के सबसे बडे़ त्यौहार के रूप में मनाया जाता है, जिसे चितिरई तिरुविझा या अझकर तिरुविझा, यानि सुन्दर ईश्वर का त्यौहार  कहते हैं। इस दिव्य युगल द्वारा नगर पर बहुत समय तक शासन किया गया। यह भी मना जाता है, कि इन्द्र को भगवान शिव की मूर्ति शिवलिंग रूप में मिली और उन्होंने मूल मन्दिर बनवाया। इस प्रथा को आज भी मन्दिर में पालन किया जाता है ― त्यौहार की शोभायात्रा में इन्द्र के वाहन को भी स्थान मिलता है।
 
वर्तमान मंदिर
आधुनिक ढांचे को तिरुज्ञानसंबन्दर, प्रसिद्ध हिन्दू शैव मतावलम्बी संत ने इस मन्दिर को आरम्भिक सातवीं शती का बताया है औरिन भगवान को आलवइ इरैवान कहा है।इस मन्दिर में मुस्लिम शासक मलिक कफूर ने 1310 में खूब लूटपाट की थी। और इसके प्राचीन घटकों को नष्ट कर दिया। फिर इसके पुनर्निर्माण का उत्तरदायित्व आर्य नाथ मुदलियार (1559-1600 A.D.), मदुरई के प्रथम नायक के प्रधानमन्त्री, ने उठाया। वे ही ‘पोलिगर प्रणाली’ के संस्थापक थे। फिर तिरुमलय नायक, लगभग 1623 से 1659 का सर्वाधिक मूल्यवान योगदान हुआ। उन्होंने मन्दिर के वसंत मण्डप का निर्माण कराया था।
इस मन्दिर का गर्भगृह 3500 वर्ष पुराना है, इसकी बाहरी दीवारें और अन्य बाहरी निर्माण लगभग 1500-2000 वर्ष पुराने हैं। इस पूरे मन्दिर का भवन समूह लगभग 45 एकड़ भूमि में बना है, जिसमें मुख्य मन्दिर भारी भरकम निर्माण है और उसकी लम्बाई 254मी एवं चौडा़ई 237 मी है। मन्दिर बारह विशाल गोपुरमों से घिरा है, जो कि उसकी दो परिसीमा प्राकार (चार दीवारी) में बने हैं। इनमें दक्षिण द्वार का गोपुरम सर्वोच्च है।
मीनाक्षी मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसके परिसर में दो मंदिर है। एक मंदिर है मीनाक्षी मंदिर और दूसरे को कहा जाता है प्रधान मंदिर। यहां मीनाक्षी देवी के एक हाथ में तोता है और दूसरे हाथ में एक छोटी-सी तलवार है। इनके मंदिर की दीवार पर एक कल्याण उत्सव का एक चित्र अंकित किया गया है। जबकि दूसरे मंदिर में सुंदरेश्वर देव का मंदिर है, जिन्हें शिव का अवतार माना जाता है। यहां पाणिग्रहण समारोह में सुंदरेश्वर देव का हाथ मीनाक्षी देवी के हाथों में सौंपा जाता है। एक ओर जहां हिन्दू धर्म में कन्यादान किया जाता है, वहीं दूसरी तरफ मीनाक्षी देवी मंदिर में एक अनुपम परम्परा देखी जाती है। मान्यता है कि हर रात्रि सुंदरेश्वर मीनाक्षी के देवी के गर्भगृह में यात्रा करते हैं। इस दौरान दोनों दम्पति साथ रहते हैं, जिन्हें इस समय पर कोई परेशान नहीं करता।
पौराणिक कहानी के अनुसार मदुरै के राजा मलयध्वज पांड्या और उनकी पत्नी ने पुत्र पाने के लिए यज्ञ किया था। इस यज्ञ से उन्हें जो पुत्री प्राप्त हुई, उसकी आयु तीन वर्ष थी। एक सामान्य बच्चे से आयु में बड़ी जन्मीं पुत्री की एक विशेष बात यह थी कि उसकी आंखें मछली की तरह बड़ी-बड़ी और सुडौल थी। इस कारण से राजा मलयध्वज और उनकी पत्नी ने अपनी पुत्री का नाम मीनाक्षी रखा।
मीन के समान आंखे होने के अलावा राजा मलयध्वज की पुत्री के तीन स्तन भी थे। अपनी पुत्री के तीन स्तन देखकर राजा-रानी बहुत दुखी हुए। यह देखकर भगवान शिव ने राजा को दर्शन देखकर कहा कि जब उनकी पुत्री के लिए योग्य वर मिल जाएगा, तो यह तीसरा स्तन अपने आप गायब हो जाएगा। शिव ने यह भी कहा कि उनकी पुत्री बहुत ही साहसी भी होगी, इसी कारण राजा की तरह उनकी पुत्री भी उनके राज्य पर राज करेगी।
मीनाक्षी देवी बहुत ही साहसी थी। इस कारण से पूरे संसार पर राज करना चाहती थी। अपने उद्देश्य को पूर करने के लिए रानी मीनाक्षी ने कई राजाओं को हराया। राजा ही नहीं, मीनाक्षी देवी ने कई देवताओं को भी पराजित किया। अपने विजय रथ पर सवार होकर मीनाक्षी देवी एक दिन एक वन में पहुंची, जहां पर उन्हें एक युवा सन्यासी मिला। जब मीनाक्षी देवी इस सन्यासी से मिली, तो उनका तीसरा स्तन खुद ही गायब हो गया। स्तन गायब होते ही उन्हें समझ आया कि शिव की कही बात के अनुसार यह सन्यासी ही उनका योग्य वर है। यह सन्यासी कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव ही थे। इस सन्यासी नाम था सुंदरेश्वर देव। सुंदरेश्वर को देखकर रानी मीनाक्षी को स्मरण हुआ कि वे पहले भी इस युवक से मिल चुकी हैं और उन्हें याद आ गया कि वे पार्वती का अवतार हैं और यह सन्यासी भगवान शिव है। सन्यासी के साथ मीनाक्षी देवी वापस मदुरै पहुंची, जहां पर उनका विवाह सुंदरेश्वर देव से हुआ।
शिव मन्दिर समूह के मध्य में स्थित है, जो देवी के कर्म काण्ड बाद में अधिक बढने की ओर संकेत करता है। इस मन्दिर में शिव की नटराज मुद्रा भी स्थापित है। शिव की यह मुद्रा सामान्यतः नृत्य करते हुए अपना बांया पैर उठाए हुए होती है, परन्तु यहां उनका दांया पैर उठा है। एक कथा अनुसार राजा राजशेखर पांड्य की प्रार्थना पर भगवान ने अपनी मुद्रा यहां बदल ली थी। यह इसलिये था, कि सदा एक ही पैर को उठाए रखने से, उस पर अत्यधिक भार पडे़गा। यह निवेदन उनके व्यक्तिगत नृत्य अनुभव पर आधारित था। यह भारी नटराज की मूर्ति, एक बडी़ चांदी की वेदी में बंद है, इसलिये इसे वेल्ली अम्बलम् (रजत आवासी) कहते हैं। इस गृह के बाहर बडे़ शिल्प आकृतियां हैं, जो कि एक ही पत्थर से बनी हैं। इसके साथ ही यहां एक वृहत गणेश मन्दिर भी है, जिसे मुकुरुनय विनायगर् कहते हैं। इस मूर्ति को मन्दिर के सरोवर की खुदाई के समय निकाला गया था। मीनाक्षी देवी का गर्भ गृह शिव के बांये में स्थित है। और इसका शिल्प स्तर शिव मन्दिर से निम्न है।
प्रातः वेला में सहस्र स्तंभ मण्डप का यह एक भाग होता है आयिराम काल मण्डप या सहस्र स्तंभ मण्डप या हजा़र खम्भों वाला मण्डप, अत्योच्च शिल्प महत्त्व का है। इसमें 985 (ना कि 1000) भव्य तराशे हुए स्तम्भ हैं। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुरक्षण में है। ऐसी धारणा है, कि इसका निर्माण आर्य नाथ मुदलियार ने कराया था। मुदलियार की अश्वारोही मूर्ति मण्डप को जाती सीड़ियों के बगल में स्थित है। प्रत्येक स्तंभ पर शिल्पकारी की हुई है, जो द्रविड़ शिल्पकारी का बेहतरीन नमूना है। इस मण्डप में मन्दिर का कला संग्रहालय भी स्थित है। इसमें मूर्तियाँ, चित्र, छायाचित्र एवं चित्रकारी, इत्यादि के द्वारा इसका 1200 वर्ष का इतिहास देख सकते हैं। इस मण्डप के बाहर ही पश्चिम की ओर संगीतमय स्तंभ स्थित हैं। इनमें प्रत्येक स्तंभ थाप देने पर भिन्न स्वर निकालता है। स्तंभ मण्डप के दक्षिण में कल्याण मण्डप स्थित है, जहां प्रतिवर्ष मध्य अप्रैल में चैत्र मास में चितिरइ उत्सव मनाया जाता है। इसमें शिव – पार्वती विवाह का आयोजन होता है।
पवित्र मंदिर तालाब पोर्थमारई कुलम (“स्वर्ण कमल वाला तालाब”) जिसे आदि तीर्थम के नाम से भी जाना जाता है , आकार में (50 मीटर) गुणा (37 मीटर) है। किंवदंती के अनुसार, शिव ने एक सारस से वादा किया था कि यहाँ कोई मछली या अन्य समुद्री जीवन नहीं पनपेगा और इस प्रकार तालाब में कोई समुद्री जानवर नहीं पाया जाता है। कहा जाता है कि तालाब में विशाल स्वर्ण कमल शिव की इच्छा से इंद्र के लिए खिल गया था। यह मन्दिर के भीतर भक्तों हेतु अति पवित्र स्थल है। भक्तगण मन्दिर में प्रवेश से पूर्व इसकी परिक्रमा करते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है “स्वर्ण कमल वाला सरोवर”।एक पौराणिक कथानानुसार, भगवान शिव ने एक सारस पक्षी को यह वरदान दिया था, कि इस सरोवर में कभी भी कोई मछली या अन्य जलचर पैदा होंगे और ऐसा ही है भी।तमिल धारणा अनुसार, यह नए साहित्य को परखने का उत्तम स्थल है। अतएव लेखक यहां अपने साहित्य कार्य रखते हैं, एवं निम्न कोटि के कार्य इसमें डूब जाते हैं, एवं उच्च श्रेणी का साहित्य इसमें तैरता है, डूबता नहीं।
इस मन्दिर से जुड़ा़ सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है मीनाक्षी तिरुकल्याणम, जिसका आयोजन चैत्र मास (अप्रैल के मध्य) में होता है। इस उत्सव के साथ ही तमिल नाडु के अधिकांश मन्दिरों में वार्षिक उत्सवों का आयोजन भी होता है। इसमें अनेक अंक होते हैं, जैसे कि रथ-यात्रा (तेर तिरुविझाह) एवं नौका उत्सव (तेप्पा तिरुविझाह)। इसके अलावा अन्य हिन्दू उत्सव जैसे नवरात्रि एवं शिवरात्रि भी यहाँ धूम धाम से मनाये जाते हैं। तमिलनाडु के सभी शक्ति मन्दिरों की भांति ही, तमिल माहीने आदि (जुलाई 15-अगस्त 17 ) और (जनवरी 15 से फ़रवरी 15 ) में आने वाले सभी शुक्रवार बडे़ हर्षोल्लस के साथ मनाए जाते हैं। मन्दिरों में खूब भीड़ होती है। मंदिर में दूर से दर्शकों को दर्शन कराया जाता है। प्रकाश की व्यवस्था संतोष जनक नहीं है। स्थानीय भाषा में लिखे साइनेज से उत्तर भारतीय दर्शकों को बहुत असुविधा होती है।
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)

तीन दिवसीय श्रीश्याम फाल्गुनी महोत्सव संपन्न

भुवनेश्वर। 11 मार्च को सुबह में श्री श्याम प्रभु की आरती के उपरांत आरंभ हुआ कटक के मशहूर भजन गायक सुशील तथा उनके सहयोगी द्वारा श्रीश्याम अखण्ड ज्योति संगीत पाठ। संगीतमय अखण्ड मंगलपाठ में शामिल हुई अनेक माताएं, बहनें और भक्तगण। आरंभ में मंदिर के मुख्य पुजारी नंदू पण्डित ने अपने सुमधुर व  मीठे स्वर में बाबा के दरबार में बाबा का स्तुति गान किया। तदोपरांत आरंभ हुआ श्रीश्याम अखण्ड संगीतमय ज्योति पाठ जो अपराह्न बेला तक चला। अंत में सबोंने प्रसादग्रहण किया ।

तीन दिलसीय श्रीश्याम फाल्गुनी महोत्सव के आयोजन से जुड़े आशीष अग्रवाल ने बताया कि बाबा के श्रृंगार के लिए पुष्प कोलकाता से मंगवाया गया था। गायक-गायिका भी कोलकाता के सुप्रसिद्ध भजन गायक थे। वहीं   सुरेश अग्रवाल मंदिर के आजीवन ट्रस्टी तथा सचिव ने आयोजन की कामयाबी पर सभी सहयोगियों,ट्रस्टीगणों तथा श्रीश्यामभक्तों के सहयोग के प्रति आभार जताया।

डॉ. प्रभात सिंघल की पुस्तक राजस्थान के साहित्य साधक का लोकार्पण

कोटा 11 मार्च/ राजस्थान के साहित्य साधक पुस्तक का लोकार्पण सोमवार को तालमंडी में समारोहपूर्वक किया गया। इस अवसर पर होली की बाल कविताओं पर आधारित राष्ट्रीय प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार वितरण भी किया गया। समारोह में बूंदी के साहित्यकार रामस्वरूप मूंदड़ा मुख्य अतिथि, एडवोकेट अख्तर खान अकेला अध्यक्ष, जितेंद्र निर्मोही, रामेश्वर शर्मा रामू भैया, डॉ. शशि जैन  विशिष्ठ अतिथि रहे और अपने विचार व्यक्त किए। मुख्य वक्ता कथाकार और समीक्षक विजय जोशी ने कहा कि यह पुस्तक साहित्य पर शोध करने वालों और साहित्यकार पाठकों के लिए उपयोगी ग्रन्थ साबित होगा। समारोह अध्यक्ष अख्तर खान ने श्री भारतेंदु साहित्य समिति को पुनर्जीवित करने के प्रयासों पर बल दिया।
 संचालन करते हुए लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने बताया कि इसमें राजस्थान के प्रसिद्ध 62 साहित्यकार शामिल हैं जिनमें 11 प्रवासी साहित्यकार हैं। राष्ट्रीय होली बाल कविता में 8 राज्यों के 89 प्रतियोगियों ने भागीदारी की है। प्रतियोगिता का आयोजन गांधीनगर गुजरात की समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत और कोटा की संस्कृति, साहित्य, मीडिया फोरम के संयुक्त तत्वावधान में आर्यन लेखिका मंच, केसर काव्य मंच, रंगीतिका संस्थाओं के सहयोग से किया गया।
  समारोह में होली बाल गीत प्रतियोगिता के विजेता प्रतियोगी कोटा की  डॉ.अपर्णा पाण्डेय, अर्चना शर्मा, श्यामा शर्मा, पल्लवी दरक, बूंदी की सुमनलता शर्मा, भीलवाड़ा की शिखा अग्रवाल, कोटा के डॉ. रघुराज सिंह कर्मयोगी, विष्णु शर्मा हरिहर, राजेंद्र कुमार जैन ,  झालावाड़ के सुरेश कुमार नैयर, अदिति शर्मा, पल्लवन उच्च प्राथमिक स्कूल झालावाड़ की कक्षा 4 के मीस्टी माल्या, याना शर्मा और नमामि शर्मा को प्रशस्ति पत्र और साहित्य भेंट कर पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की पूजा अर्चना के साथ किया गया। साहित्यकारों ने एक दूसरे को गुलाल का तिलक लगा कर होली पर्व की शुभकामनाएं दी। डॉ. वैदेही गौतम और डॉ. अपर्णा पाण्डेय ने आयोजन में सहयोग किया। समारोह में बड़ी संख्या में साहित्यकार उपस्थित रहे।
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तीन दिवसीय फाल्गुनी महोत्सव का दूसरा दिवस

भुवनेश्वर। बड़ी एकादशी की सुबह में स्थानीय श्रीश्याम मंदिर,झारपाड़ा में श्रीश्याम खाटू नरेश जी का फूलों का दिव्य श्रृंगार हुआ। बाबा की आरती हुई। बाबा भक्तों द्वारा फलों,सूखे फलों, बूंदी आदि का सवामणि निवेदित किया गया। शाम को पुनः श्रीश्याम खाटू नरेश जी की आरती हुई और उसके उपरांत आरंभ हुआ भजन समारोह। आज की सुप्रसिद्ध भजन गायिका थीं कोलकाता की मोहिनी केड़िया थीं जिन्होंने अपनी सुमधुर गायकी से माहौल को धर्ममय बना दिया।
आयोजन समिति की ओर से श्रीश्याम मंदिर झारपाड़ा भुवनेश्वर सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष पवन गुप्ता, सचिव सुरेश अग्रवाल और शिवकुमार अग्रवाल आदि ने आगत सभी का स्वागत किया जबकि मंदिर के मुख्य पुजारी नंदू पण्डित ने अपने सभी सहयोगियों के साथ श्री श्याम प्रभु के विधिवत दर्शन कराया। आयोजन को सफल बनाने में मनीष,आशीष,गोविंदा ,साकेत , आनंद पुरोहित, विवेक,राधेश्याम,चिरंजी आदि का सहयोग प्रशंसनीय रहा। अंत में पुनः बाबा की आरती हुई और सभी ने प्रसाद ग्रहण किया।