Wednesday, July 3, 2024
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‘बिली एंड मौलीः एन ओटर लव स्टोरी’ से 18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का उद्घाटन होगा

18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एम. आई. एफ. एफ.) का उद्घाटन नेशनल ज्योग्राफिक की डॉक्यूमेंट्री, बिली एंड मौलीः एन ओटर लव स्टोरी से होगा। एमआईएफएफ 15 जून, 2024 से 21 जून, 2024 तक मुंबई में आयोजित किया जा रहा है। उद्घाटन फिल्म 15 जून को दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और पुणे में एक साथ दिखाई जाएगी। यह फिल्म 17 जून को दिल्ली में, 18 जून को चेन्नई में, 19 जून को कोलकाता में और 20 जून को पुणे में रेड कार्पेट कार्यक्रम के दौरान भी दिखाई जाएगी।

चार्ली हैमिल्टन जेम्स द्वारा निर्देशित बिली एंड मौलीः एन ओटर लव स्टोरी (अंग्रेजी-78 मिनट) एक ऐसे व्यक्ति के बारे में एक दिल को छू लेने वाली कहानी है जो एक दूरदराज के शेटलैंड द्वीप समूह में रहते हुए एक जंगली ऊदबिलाव के साथ अप्रत्याशित दोस्ती करता है। यह मनमोहक वृत्तचित्र मौली नामक एक अनाथ ऊदबिलाव की दिल को छू लेने वाली कहानी के माध्यम से स्कॉटलैंड के शेटलैंड द्वीप समूह के मंत्रमुग्ध कर देने वाले तटों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराता है। जब मौली बिली और सुज़ैन के एकांत घाट पर आती है, तो वह खुद को उनकी देखभाल और स्नेह से गोद में पाती है। जैसे ही बिली मौली के चंचल स्वभाव से मंत्रमुग्ध हो जाता है, उनके बीच एक गहरा बंधन बन जाता है। यह शेटलैंड की ऊबड़-खाबड़ पृष्ठभूमि में स्नेह और लालसा की एक कहानी को दर्शाता है।

इस फिल्म में, दर्शक संबंध और साहचर्य की परिवर्तनकारी शक्ति को देखते हैं क्योंकि बिली को मौली को फिर से स्वास्थ्य लाभ दिलाने और उसे जंगल में जीवन के लिए तैयार करने, प्रेम की जटिलताओं और मनुष्य और प्रकृति के बीच अटूट संबंध को दर्शाता है।

यह फिल्म 15 जून को भारतीय सिनेमा के राष्ट्रीय संग्रहालय (एन. एम. आई. सी.), मुंबई के पेडर रोड में दोपहर 2:30 बजे प्रदर्शित की जाएगी। इस फिल्म को नई दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता और पुणे में सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम, एन. एफ. डी. सी. टैगोर फिल्म सेंटर, सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट (एस. आर. एफ. टी. आई.) और नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया में (15 जून, दोपहर 2.30 बजे) एक ही समय में एक साथ प्रदर्शित किया जाएगा।

निर्देशक के बारे में

चार्ली हैमिल्टन जेम्स एक प्रसिद्ध वन्यजीव फिल्म निर्माता हैं उन्हें रचनात्मक वृत्तचित्रों ने प्रसिद्धी दिलाई और वन लाइफ वृत्तचित्र के लिए एमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने माई हैल्सन रिवर के साथ अपने निर्देशन की शुरुआत की और एमेजन में जगह खरीदी तथा वहां के रोमांच को वृत्तचित्र लघु श्रृंखला आई बॉट ए रेनफॉरेस्ट में प्रदर्शित किया।

18वां मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव

मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव को दक्षिण एशिया में गैर-फीचर फिल्मों के लिए सबसे पुराने और सबसे बड़े फिल्म समारोह के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह महोत्सव वृत्तचित्र, लघु कथा और एनीमेशन फिल्मों की कला के महोत्सव के 18वें वर्ष का प्रतीक है। यह वर्ष 1990 में शुरू किया गया और अब भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तत्वावधान में आयोजित किया जा रहा है। यह महोत्सव दुनिया भर के सिनेमा में रूचि रखने वाले लोगों को आकर्षित करने वाले एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में विकसित हुआ है।

इस वर्ष का उत्सव भी विशेष होगा क्योंकि इसमें 38 से अधिक देश भाग ले रहे हैं, जिसमें दिल्ली, कोलकाता, पुणे और चेन्नई में 1018 प्रविष्टियां और कई समानांतर प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं।

इस वर्ष 300 से अधिक फिल्मों का प्रदर्शन किया जा रहा है। 18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में 25 से अधिक आकर्षक मास्टरक्लास और फिल्म निर्माताओं संतोष सिवन, ऑड्रियस स्टोनीस, केतन मेहता, शौनक सेन, रिची मेहता और जॉर्जेस श्विजगेबेल जैसे दिग्गजों के साथ पैनल चर्चा भी आयोजित की जाएगी। इसके अलावा, इस महोत्सव में एनिमेशन क्रैश कोर्स और वी.एफ.एक्स. कार्यशाला सहित कई कार्यशालाओं का आयोजन होगा जो, फिल्म निर्माण की दुनिया में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।

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मानसून के लिए पश्चिम रेलवे ने कमर कसी

मुंबई मंडल के मंडल रेल प्रबंधक और वरिष्ठ अधिकारियों ने वसई यार्ड में जल निकासी व्यवस्था में सुधार के लिए चल रहे कार्य का निरीक्षण किया

मुंबई। पश्चिम रेलवे अपने यात्रियों को सुगम यात्रा प्रदान करने, विशेषकर मानसून के दौरान ट्रेन परिचालन जारी रखने और निर्बाध सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। निरंतर प्रयासों और आधारभूत संरचना के अपग्रेडेशन के फलस्वरूप, मानसून के दौरान पिछले कुछ वर्षों में उपनगरीय परिचालन और बेहतर हुआ है और भारी बारिश के बावजूद पश्चिम रेलवे ने न्यूनतम व्यवधानों के साथ मुंबई उपनगरीय खंड में ट्रेन सेवाओं को सुचारू और सामान्य रूप से चलाया है। पश्चिम रेलवे यांत्रिक, सिगनलिंग, विद्युत परिसंपत्तियों और उपकरणों आदि के उचित रख-रखाव के साथ-साथ मिशन मोड पर मानसून की तैयारी के विविध कार्य कर रही है। इस क्रम में मुंबई सेंट्रल के मंडल रेल प्रबंधक श्री नीरज वर्मा ने 12 जून, 2024 को वसई यार्ड का निरीक्षण किया।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार आगामी मानसून के दौरान निर्बाध सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए संभावित विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान की जा रही है और सभी संभव प्रयास किए जा रहे हैं ताकि कार्य समय पर पूरा हो सके। वसई यार्ड में जल निकासी व्यवस्था में सुधार का कार्य किया जा रहा है और पॉइंट संख्या 215/216/217/219/187 पर यातायात कार्य आदेश (TWO) का कार्य तीव्र गति से चल रहा है। इस यातायात कार्य आदेश के पूरा होने के बाद, गुड्स यार्ड में ट्रेनों का बेहतर और अधिक कुशल आगमन और प्रस्‍थान होगा।

निरीक्षण के दौरान श्री वर्मा ने पूर्व-मानसून की अन्य तैयारियों का निरीक्षण किया और उन पर चर्चा की, जैसे कि डिवाटरिंग पंपों का प्रावधान, केंद्रीय और साइड नालों की सफाई, पुलियों की डिसिल्टिंग, सिगनलिंग विभाग की ट्रैक सर्किटिंग, आदि। वसई-नालासोपारा के बीच जलभराव के पिछले इतिहास के आधार पर मंडल रेल प्रबंधक ने कुछ अभिनव कार्यों की सलाह दी, जैसे कि बारिश के पानी की एक तरफा निकासी के लिए सुरक्षा दीवार में गेट खोलना, अर्धचंद्राकार में एचडीपीई पाइप की क्रॉस ड्रेन, जो आसान सफाई की सुविधा प्रदान करेगी। वसई यार्ड में कुछ स्थानों पर जहां गिट्टी फंसी हुई थी, क्रॉस ड्रेनेज में सुधार के लिए गिट्टी की स्क्रीनिंग करने की सलाह दी गई।

पश्चिम रेलवे द्वारा निरंतर निगरानी सुनिश्चित की जा रही है और यात्रियों के लिए व्यवधान मुक्त यात्रा जारी रखने के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं।

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संघ शिक्षावर्ग – जहाँ राष्ट्र के लिए समर्पित योध्दा तैयार होते हैं

ग्रीष्म की छूट्टियों में जब कि सामान्यतः लोग किसी पहाड़, पठार, ठंडे स्थान जैसे सुरम्य स्थान पर या होटल के वातानुकूलित कमरों में जाकर आराम करना पसंद करते हैं, तब देश का एक बड़ा वर्ग अपनी स्वरुचि से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अभ्यास वर्गों में जाकर पंद्रह-बीस दिनों तक कड़ा श्रम करते हुए पसीना बहाता है। इन वर्गों में शिक्षार्थी चाहे जिस भी पृष्ठभूमि से आया हो, वह बिना कूलर एसी के ही नीचे भूमि पर दरी बिछाकर सोने व स्वयं ही अपना बिस्तर समेटने व अपने आसपास को स्वच्छ रखने हेतु बाध्य रहता है।

इन शिविरों में यह प्रशिक्षार्थी बिना मोबाइल, बिना इंटरनेट, घर-गृहस्थी से संवाद किए बिना ही रहता है। स्वयं के भोजन पात्र, वस्त्र स्वयं ही मांजता-धोता है एवं इस अवधि में उसे शिविर प्रांगण से कहीं बाहर जाने की भी अनुमति नहीं होती है। किसी गुरुकूल के विद्यार्थी की भांति, यहां व्यक्ति, व्यक्तित्व परिष्करण व राष्ट्र चिंतन हेतु कष्टप्रद परिस्थितियों में रहता है। इन वर्गों में सामाजिक कार्यों में श्रमदान, अपने परिवेश की स्वच्छता, समाज के विभिन्न वर्गों के घर-परिवार में अचानक अतिथि रूप में जाकर भोजन प्राप्त करना व उनसे चर्चा करना जैसी गतिविधियां भी सम्मिलित रहती है।

आचार्य चाणक्य ने अपनें राजनीति शास्त्र में कहा था कि किसी भी देश में “शांति काल में जितना पसीना बहेगा, उस देश में, युद्ध काल में उससे दूना रक्त बहने से बचेगा”। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के, इन संघ शिक्षा वर्गों में आये शिक्षार्थी, आचार्य चाणक्य की कल्पना पर ही देश के शांति काल में कल्पना, योजना, निर्माण, रचना पर अथक परिश्रम करते हुए सतत कर्मशील रहनें का व सतत श्रम करते रहने का संकल्पित प्रशिक्षण लेतें हैं। आश्चर्यचकित कर देने वाला तथ्य है कि प्रतिवर्ष चरम गर्मी के दिनों में देश भर के लगभग साठ-सत्तर स्थानों पर आयोजित होनें वाले, इन शिक्षा वर्गों में संघ के पंद्रह हज़ार से अधिक स्वयंसेवक प्रशिक्षण लेते हैं।

ये प्रशिक्षण उनके रोजी-रोजगार, आजीविका, व्यावसायिक अथवा कार्यालयीन कार्यकुशलता में वृद्धि के लिए सुविधाजनक होटलों में या रिसार्ट्स में आयोजित नहीं होते हैं! ये शिक्षा वर्ग बिना किसी भौतिक या व्यक्तिगत लाभ की दृष्टि से कष्टसाध्य वातावरण में किसी सामान्य से विद्यालय के कक्षों व प्रांगणों में आयोजित होतें हैं! सात दिनों से पच्चीस दिनों तक के इन वर्गों के पाठ्यक्रम में प्रतिदिन लगभग चार घंटे के बौद्धिक विकास कार्यक्रम तथा चार घंटे के शारीरिक विकास के औपचारिक कार्यक्रम रखें जाते हैं।

इसके अतिरिक्त शेष समय में व्यक्ति को ऐसा परिवेश मिलता है कि व्यक्ति राष्ट्र व समाज आराधना में तल्लीन हो जाता है। यहां यह स्मरण अवश्य कर लेना चाहिए कि भले ही संघ के ये शिक्षा वर्ग रोजगार, व्यावसायिक या कार्यालयीन कार्यकुशलता में वृद्धि की दृष्टि से आयोजित नहीं किये जातें हो किन्तु इन वर्गों से, बालक तथा किशोर वय की आयु से लेकर वृद्धों तक को प्रत्येक क्षेत्र में अधिक निपुण, प्रवीण तथा पारंगत बना देता हैं। इन वर्गों का पाठ्यक्रम, समाज-संस्कृति व राष्ट्रवाद के परिप्रेक्ष्य में, व्यक्ति की शारीरिक व बौद्धिक क्षमता के तीव्र विकास के लक्ष्य से तय होता है। कार्यकर्ता विकास वर्ग से प्रशिक्षित व्यक्ति केवल संगठन हेतु नहीं अपितु अपने-अपने स्वयं के व्यावसायिक, पेशेगत व नौकरी आदि के क्षेत्र में भी अधिक कार्यकुशल हो जाता है।

इन वर्गों के भीतर विभिन्न आयुवर्गों के अलग अलग गठ या समूह बना दिये जाते हैं। वस्तुतः ‘समाज में समरस रहते हुए अपने अपने कार्य को आनंदपूर्वक, श्रद्धापूर्वक करना व राष्ट्रनिर्माण की दृष्टि से परिणाम मूलक हो जाना’ यही इन वर्गों का सत्व होता है। वस्तुतः इन वर्गों में सम्मिलित व्यक्ति को खेल-खेल में ही समाज में विलीन हो जाने का अद्भुत प्रशिक्षण मिल जाता है। यही कारण है कि इस देश के ही नहीं अपितु विश्व के सर्वाधिक अनूठे, विशाल, अनुशासित, लक्ष्य समर्पित, तथा राष्ट्रप्रेमी संगठन के रूप में आरएसएस की पहचान होती है। संघ के विषय में यह तथ्य भी बड़ा ही सटीक, सत्य तथा सुस्थापित है कि संघ का कार्य संसाधनों से अधिक भावना तथा विचार आधारित होता है। यदि आपका संघ के कार्यकर्ताओं से मिलना जुलना होता है तो एक शब्द आपको बहुधा ही सुनने को मिल जाएगा, वह शब्द है संघदृष्टि। यह संघदृष्टि बड़ा ही व्यापक अर्थों वाला शब्द है। सं

घदृष्टि को विकसित करने का ही कार्य शिक्षा वर्ग में होता है। जीवन की छोटी-छोटी बातों से लेकर विश्व भर के विषयों में व्यक्ति, किस प्रकार समग्र चिंतन के साथ आगे बढ़े इसका प्रशिक्षण इन वर्गों में दिया जाता है। वसुधैव कुटुम्बकम, सर्वे भवन्तु सुखिनः, धर्मो रक्षति रक्षितः, इदं न मम इदं राष्ट्रं जैसे अति व्यापक अर्थों वाले पाठ व्यक्ति के मानस में सहज स्थापित हो जायें यही लक्ष्य होता है। ये वर्ग व्यक्ति में भाव परिवर्तन या भाव विकास में सहयोगी होतें हैं; संभवतः यही व्यक्तित्व विकास का सर्वाधिक सफल मार्ग भी है! आज संघ का संगठन जिस आकार, ऊँचाई व गहराई को नाप रहा है वह उसके परम्परागत, रूढ़िगत, प्राचीन भारत के संस्कारों, आदर्शों, स्थापनाओं के आधार पर ही संभव हो पाया है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्‍थापना 27 सितंबर 1925 की विजय दशमी को, नागपुर के मोहिते के बाड़े में डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार की थी। संघ के पांच स्‍वयंसेवकों के साथ प्रारंभित, संघ की प्रथम शाखा आज एक लाख शाखाओं को छूने की ओर उद्धृत हो रही है। सौ वर्षीय हो रहे इस संगठन में स्वयंसेवकों की संख्या करोड़ों को छूकर इसे विश्व का सर्वाधिक विशाल स्वयंसेवी बना रहीं हैं। संघ की विचारधारा में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र, अखंड भारत, भारत माता का परम वैभव, पाक अधिकृत कश्मीर, समान नागरिक संहिता जैसे विषय समाहित हैं।

‘अयोध्या जन्मभूमि’ व ‘कश्मीर से अनुच्छेद 370 के उन्मूलन’ जैसे विषयों को संघ ने अपनी कार्यशक्ति से संपन्न करा दिया है। संघ के संवैचारिक संगठन, आयाम संगठन व प्रकल्प गिने जाएं तो लगभग एक लाख की संख्या हो गई है। ये संगठन देश के विभिन्न, सुदूर, पहुंचविहीन गाँवों तक में अपनी उपलब्धियों से जन-जन को आलोकित कर रहें हैं। इन संगठनों को प्रशिक्षित कार्यकर्ता व नेतृत्व संघ के इन कार्यकर्ता विकास वर्गों से ही मिलता है।

सम्‍पूर्ण राष्‍ट्र में संघ के विभिन्‍न अनुषांगिक संगठनो जैसे राष्ट्रीय सेविका समिति, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय सिख संगत, भारतीय मजदूर संघ, हिंदू स्वयंसेवक संघ, हिन्दू विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, दुर्गा वाहिनी, सेवा भारती, भारतीय किसान संघ, बालगोकुलम, विद्या भारती, भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम आदि संगठन कार्यरत है जो करीब 1 लाख प्रकल्‍पो को चला रहे है। संघ के कार्यकर्ता विकास वर्गों में आने वाले कार्यकर्ता लगभग लगभग इन्हीं संगठनों के होते हैं।

संघ अपने स्वयंसेवकों के व्यक्तित्व परिष्करण हेतु कुछ दिनों के दीपावली वर्ग, शीत शिविर, शारीरिक वर्गों जैसे कार्यकर्ता विकास वर्ग का आयोजन भी करता है। इसके आगे जे वर्गों के क्रम व आकार को हम निम्नानुसार समझ सकते हैं।

संघ शिक्षा वर्ग जो अब तक प्राथमिक वर्ग, प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष, तृतीय वर्ष के रूप में होते थे अब उनमें कुछ परिवर्तन कर दिया गया है। वर्ष 2024 से अब प्राथमिक वर्ग सात दिवसीय, इसके पश्चात पंद्रह दिवसीय कार्यकर्ता विकास वर्ग एक एवं फिर कार्यकर्ता विकास वर्ग दो होगा। वर्ग एक, देश में विभिन्न स्थानों पर आवश्यकतानुसार संख्या में व वर्ग दो केवल नागपुर में पच्चीस दिवसीय होगा।

प्रवीण गुगनानी विदेश मंत्रालय में सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं 9425002270

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हमारी थाली से सेंधा नमक छीनकर जहरीला समुद्री नमक किसने डाला

भारत से कैसे गायब कर दिया गया… आप सोच रहे होंगे की ये सेंधा नमक बनता कैसे है ?? आइये आज हम आपको बताते है कि नमक मुख्यत: कितने प्रकार का होता है। एक होता है समुद्री नमक, दूसरा होता है सेंधा नमक “rock salt”सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है। पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या ‘सैन्धव नमक’, लाहोरी नमक आदि आदि नाम से जाना जाता है जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’। वहाँ नमक के बड़े बड़े पहाड़ है सुरंगे है । वहाँ से ये नमक आता है। मोटे मोटे टुकड़ो मे होता है आजकल पीसा हुआ भी आने लगा है यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मदद रूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़ते हैं।

अतः: आप ये समुद्री नमक के चक्कर से बाहर निकले। काला नमक ,सेंधा नमक प्रयोग करे, क्यूंकि ये प्रकृति का बनाया है, भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था विदेशी कंपनीयां भारत में नमक के व्यापार मे आज़ादी के पहले से उतरी हुई है , उनके कहने पर ही भारत के अँग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत की भोली भाली जनता को आयोडिन मिलाकर समुद्री नमक खिलाया जा रहा है, हुआ ये कि जब ग्लोबलाईसेशन के बाद बहुत सी विदेशी कंपनियों अन्नपूर्णा,कैप्टन कुक ने नमक बेचना शुरू किया तब ये सारा खेल शुरू हुआ !

अब समझिए खेल क्या था ?? खेल ये था कि विदेशी कंपनियो को नमक बेचना है और बहुत मोटा लाभ कमाना है और लूट मचानी है तो पूरे भारत में एक नई बात फैलाई गई कि आयोडीन युक्त नामक खाओ , आयोडीन युक्त नमक खाओ ! आप सबको आयोडीन की कमी हो गई है। ये सेहत के लिए बहुत अच्छा है आदि आदि बातें पूरे देश में प्रायोजित ढंग से फैलाई गई । और जो नमक किसी जमाने में 2 से 3 रूपये किलो में बिकता था । उसकी जगह आयोडीन नमक के नाम पर सीधा भाव पहुँच गया 8 रूपये प्रति किलो और आज तो 20 रूपये को भी पार कर गया है।

दुनिया के 56 देशों ने अतिरिक्त आयोडीन युक्त नमक 40 साल पहले बैन कर दिया अमेरिका में नहीं है जर्मनी मे नहीं है फ्रांस में नहीं ,डेन्मार्क में नहीं , डेन्मार्क की सरकार ने 1956 में आयोडीन युक्त नमक बैन कर दिया क्यों ?? उनकी सरकार ने कहा हमने आयोडीन युक्त नमक खिलाया !(1940 से 1956 तक ) अधिकांश लोग नपुंसक हो गए ! जनसंख्या इतनी कम हो गई कि देश के खत्म होने का खतरा हो गया ! उनके वैज्ञानिकों ने कहा कि आयोडीन युक्त नमक बंद करवाओ तो उन्होने बैन लगाया। और शुरू के दिनों में जब हमारे देश में ये आयोडीन का खेल शुरू हुआ इस देश के बेशर्म नेताओं ने कानून बना दिया कि बिना आयोडीन युक्त नमक भारत में बिक नहीं सकता । वो कुछ समय पूर्व किसी ने कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया और ये बैन हटाया गया।

आज से कुछ वर्ष पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था सब सेंधा नमक ही खाते थे ।

सेंधा नमक के फ़ायदे:- सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप और बहुत ही गंभीर बीमारियों पर नियन्त्रण रहता है क्योंकि ये अम्लीय नहीं ये क्षारीय है (alkaline) क्षारीय चीज जब अमल मे मिलती है तो वो न्यूटल हो जाता है और रक्त अमलता खत्म होते ही शरीर के 48 रोग ठीक हो जाते हैं, ये नमक शरीर मे पूरी तरह से घुलनशील है । और सेंधा नमक की शुद्धता के कारण आप एक और बात से पहचान सकते हैं कि उपवास ,व्रत में सब सेंधा नमक ही खाते है। तो आप सोचिए जो समुद्री नमक आपके उपवास को अपवित्र कर सकता है वो आपके शरीर के लिए कैसे लाभकारी हो सकता है ?

सेंधा नमक शरीर में 97 पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है ! इन पोषक तत्वों की कमी ना पूरी होने के कारण ही लकवे (paralysis) का अटैक आने का सबसे बडा जोखिम होता है सेंधा नमक के बारे में आयुर्वेद में बोला गया है कि यह आपको इसलिये खाना चाहिए क्योंकि सेंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता है।

यह पाचन में सहायक होता है और साथ ही इसमें पोटैशियम और मैग्नीशियम पाया जाता है जो हृदय के लिए लाभकारी होता है। यही नहीं आयुर्वेदिक औषधियों में जैसे लवण भास्कर, पाचन चूर्ण आदि में भी प्रयोग किया जाता है।

समुद्री नमक के भयंकर नुकसान :- ये जो समुद्री नमक है आयुर्वेद के अनुसार ये तो अपने आप में ही बहुत खतरनाक है! क्योंकि कंपनियाँ इसमें अतिरिक्त आयोडीन डाल रही है। अब आयोडीन भी दो तरह का होता है एक तो भगवान का बनाया हुआ जो पहले से नमक में होता है । दूसरा होता है “industrial iodine” ये बहुत ही खतरनाक है। तो समुद्री नमक जो पहले से ही खतरनाक है उसमे कंपनिया अतिरिक्त industrial iodine डाल को पूरे देश को बेच रही है। जिससे बहुत सी गंभीर बीमरियां हम लोगों को आ रही है । ये नमक मानव द्वारा फ़ैक्टरियों में निर्मित है।

आम तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक से उच्च रक्तचाप (high BP ) ,डाइबिटीज़, आदि गंभीर बीमारियो का भी कारण बनता है । इसका एक कारण ये है कि ये नमक अम्लीय (acidic) होता है । जिससे रक्त अम्लता बढ़ती है और रक्त अमलता बढ्ने से ये सब 48 रोग आते है । ये नमक पानी कभी पूरी तरह नहीं घुलता हीरे (diamond ) की तरह चमकता रहता है इसी प्रकार शरीर के अंदर जाकर भी नहीं घुलता और अंत इसी प्रकार किडनी से भी नहीं निकल पाता और पथरी का भी कारण बनता है ।

रिफाइण्ड नमक में 98% सोडियम क्लोराइड ही है शरीर इसे विजातीय पदार्थ के रुप में रखता है। यह शरीर में घुलता नही है। इस नमक में आयोडीन को बनाये रखने के लिए Tricalcium Phosphate, Magnesium Carbonate, Sodium Alumino Silicate जैसे रसायन मिलाये जाते हैं जो सीमेंट बनाने में भी इस्तेमाल होते है। विज्ञान के अनुसार यह रसायन शरीर में रक्त वाहिनियों को कड़ा बनाते हैं, जिससे ब्लाक्स बनने की संभावना और आक्सीजन जाने में परेशानी होती है। जोड़ो का दर्द और गठिया, प्रोस्टेट आदि होती है। आयोडीन नमक से पानी की जरुरत ज्यादा होती है, एक ग्राम नमक अपने से 23 गुना अधिक पानी खींचता है। यह पानी कोशिकाओं के पानी को कम करता है, इसी कारण हमें प्यास ज्यादा लगती है।

आप इस अतिरिक्त आयोडीन युक्त समुद्री नमक खाना छोड़िए और उसकी जगह सेंधा नमक खाइये !! सिर्फ आयोडीन के चक्कर में समुद्री नमक खाना समझदारी नहीं है, क्योंकि जैसा हमने ऊपर बताया आयोडीन हर नमक में होता है सेंधा नमक में भी आयोडीन होता है बस फर्क इतना है इस सेंधा नमक में प्रकृति के द्वारा बनाया आयोडीन होता है इसके इलावा आयोडीन हमें आलू, अरवी के साथ-साथ हरी सब्जियों से भी मिल जाता है।

साभार-https://www.facebook.com/profile.php?id=100085080873524 से

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जामुन से बना जंबू द्वीप

भारत को जम्बू द्वीप के नाम से भी जाना जाता है और यह नाम जामुन के वजह से है।आश्चर्य की बात तो है कि किसी फल के वजह से किसी देश का नामकरण किया गया !

दरअसल जामुन के कई नाम है और उन्हीं में से एक नाम है जम्बू । भारत में जामुन की बहुतायत रही है । हमारे देश में इसकी पेड़ों की संख्या लाखों-करोड़ों में है और शायद इसी कारण से यह फल हमारे देश का पहचान बन गया।

भारतीय वैदिक वाङ्मय के दो प्रमुख केंद्र रामायण और महाभारत में भी यह विशेष पात्र रहा है।भगवान राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास में मुख्य रूप से जामुन का ही सेवन किया था वहीं श्री कृष्णा के शरीर के रंग को ही जामुनी कहा गया है। संस्कृत के श्लोकों में अक्सर इस नाम का उच्चारण आता है।

जामुन विशुद्ध रूप से भारतीय फल है।भारत का हर गली – मोहल्ला ईसके स्वाद से परीचित हैं। जामुन एक मौसमी फल है। खाने में स्वादिष्ट होने के साथ ही इसके कई औषधीय गुण भी हैं। जामुन अम्लीय प्रकृति का फल है पर यह स्वाद में मीठा होता है। जामुन में भरपूर मात्रा में ग्लूकोज और फ्रुक्टोज पाया जाता है. जामुन में लगभग वे सभी जरूरी लवण पाए जाते हैं जिनकी शरीर को आवश्यकता होती है।

जामुन खाने के फायदे:
1. पाचन क्रिया के लिए जामुन बहुत फायदेमंद होता है. जामुन खाने से पेट से जुड़ी कई तरह की समस्याएं दूर हो जाती हैं.

2. मधुमेह के रोगियों के लिए जामुन एक रामबाण उपाय है. जामुन के बीज सुखाकर पीस लें. इस पाउडर को खाने से मधुमेह में काफी फायदा होता है.

3. मधुमेह के अलावा इसमें कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो कैंसर से बचाव में कारगर होते हैं. इसके अलावा पथरी की रोकथाम में भी जामुन खाना फायदेमंद होता है. इसके बीज को बारीक पीसकर पानी या दही के साथ लेना चाहिए.

4. अगर किसी को दस्त हो रहे जामुन को सेंधा नमक के साथ खाना फायदेमंद रहता है. खूनी दस्त होने पर भी जामुन के बीज बहुत फायदेमंद साबित होते हैं.

5. दांत और मसूड़ों से जुड़ी कई समस्याओं के समाधान में जामुन विशेषतौर पर फायदेमंद होता है. इसके बीज को पीस लीजिए. इससे मंजन करने से दांत और मसूड़े स्वस्थ रहते हैं.

जामुन मधुमेह के रोगियों के लिए रामबाण है। यह पाचनतंत्र को तंदुरुस्त रखता हैं । साथ ही दांत और मसूड़े के लिए बेहद फायदेमंद है ।

जामुन में कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, कैल्शियम, आयरन और पोटैशियम होता है।आयुर्वेद में जामुन को खाने के बाद खाने की सलाह दी जाती है।

जामुन के लकड़ी का भी कोई जबाव नहीं है। एक बेहतरीन इमारती लकड़ी होने के साथ ईसके पानी मे टिके रहने की बाकमाल शक्ति है‌। अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल या हरी काई नहीं जमती सो टंकी को लम्बे समय तक साफ़ नहीं करना पड़ता |प्राचीन समय में जल स्रोतों के किनारे जामुन की बहुतायत होने की यही कारण था इसके पत्ते में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो कि पानी को हमेशा साफ रखते हैं। कुए के किनारे अक्सर जामुन के पेड़ लगाए जाते थे।

जामुन की एक खासियत है कि इसकी लकड़ी पानी में काफी समय तक सड़ता नही है। जामुन की इस खुबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़े पैमाने पर होता है। जामुन औषधीय गुणों का भण्डार होने के साथ ही किसानो के लिए भी उतना ही अधिक आमदनी देने वाला फल है ।

नदियों और नहरों के किनारे मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिए जामुन का पेड़ काफी उपयोगी है। अभी तक व्यवसायिक तौर पर योजनाबद्ध तरीके से जामुन की खेती बहुत कम देखने को मिलती हैं। देश के अधिकांश हिस्से में अनियोजित तरीके से ही किसान इसकी खेती करते हैं।अधिकतर किसान जामुन के लाभदायक फल और बाजार के बारे में बहुत कम जानकारी रखते हैं, शायद इसी कारणवश वो जामुन की व्यवसायिक खेती से दूर हैं।जबकि सच्चाई यह है कि जामुन के फलों को अधिकतर लोग पसंद करते हैं और इसके फल को अच्छी कीमत में बेचा जाता है।

जामुन की खेती में लाभ की असीमित संभावनाएं हैं।इसका प्रयोग दवाओं को तैयार करने में किया जाता है, साथ ही जामुन से जेली, मुरब्बा जैसी खाद्य सामग्री तैयार की जाती है।

सबसे खास बात कि जामुन हम भारतीयों की पहचान रही है अतः इस वृक्ष के संरक्षण और संवर्धन में हम सभी को अपना योगदान देना चाहिए।

साभार- https://www.facebook.com/profile.php?id=100023816660395 से

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सड़क पर सोने से लेकर, बम हमला झेलने वाला आज एक मुख्यमंत्री है

सीएम पद के लिए मोहन चरण माझी का नाम तय होने के बाद उनके जुड़ा हर व्यक्ति उनके संघर्षों के दिनों को याद कर रहा है। एक समय ऐसा भी था कि उन्हें सड़क पर सोना पड़ा था। उस टाइम उनका फोन भी चोरी हो गया था।

ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत के बाद मोहन चरण माझी आज से प्रदेश के नए मुख्यमंत्री होंगे। 52 साल की उम्र में माझी को इस मुकाम पर पहुँचता देख कई लोग बहुत खुश हैं। उनकी माँ और पत्नी ने उन्हें ढेरों शुभकामनाएँ दीं। साथ ही ये भी कहा कि पहले माझी को स्थानीय स्तर पर लोगों का भला करना होता था। अब उनपर राज्य की भी जिम्मेदारी होगी।

मोहन चरण माझी ओडिशा की क्योंझर सीट से चुनाव लड़े। उन्होंने बीजू जनता दल की नीना माझी को 11,577 वोटों से हराया है। उनको 87,815 वोट मिले, जबकि नीना 76,238 वोटों पर ही सिमट गईं।

आज के दिन मोहन माझी से जुड़ा हर व्यक्ति माझी के संघर्ष के दिनों को भी याद कर रहा है। याद किया जा रहा है कि कैसे माझी ने सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी और बाद में वो राजनीति में आए। माझी ने सरपंच बनकर पहले लोगों की समस्याओं को समाधान करना शुरू किया और बाद में वो विधायक चुने गए। जानकारी के मुताबिक साल 2000 में विधायक बनने से पहले वो गाँव के सरपंच थे। साल 1997 से 2000 तक उन्होंने सरपंच का पद संभाला था। इसके बाद वो 2000 में पहली बार विधासभा चुनाव जीतकर विधायक बने थे, फिर 2004 में भी चुनाव उन्होंने ही जीता था। 2004 में वो दूसरी बार विधायक चुने गए. 2009 और 2014 में अगले दो विधानसभा चुनाव में हारने के बाद वो 2019 में तीसरी बार विधानसभा के लिए चुने गए और भाजपा विधायक दल के चीफ व्हिप बने.

इस दौरान नवीन पटनायक की बीजेडी सरकार पर निशाना साधने में वो हमेशा मुखर रहे. चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए कई नामों की चर्चा हो रही थी.

सबसे अधिक चर्चा देश के पूर्व महालेखाकार (सीएजी) डॉक्टर गिरीश चंद्र मुर्मू के नाम की थी, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़रीबी माने जाते हैं और गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के कार्यकाल में उनके प्रमुख सचिव, उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद केंद्र सरकार में सचिव और जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल रह चुके हैं. वो आदिवासी हैं और ओडिशा के मयूरभंज जिले के निवासी हैं. मयूरभंज मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का भी जन्मस्थान है.

मुर्मू के अलावा जिन नामों की चर्चा थी वे थे केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत जय पंडा, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल, पूर्व अध्यक्ष सुरेश पुजारी.
इसके अलावा पूर्व अध्यक्ष और पूर्व मंत्री और छह बार विधायक बने कनक वर्धन सिंहदेव, पिछले विधानसभा में विपक्ष के नेता रह चुके संबलपुर के विधायक जयनारायण मिश्र और भाजपा महिला मोर्चा की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सुरमा पाढ़ी का नाम भी चर्चा में था. बाद में 2019 में वो पार्टी के मुख्य सचेतक बन गए।

2019 में ही उनकी राजनीति में फिर विधायक बन वापसी हुई। हालाँकि यही वो समय था जब उन्हें घर मिलने में में देरी के कारण फुटपाथ पर सोना पड़ा था। इसका जिक्र उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष एसएन पात्रो से भी किया था। उन्होंने बताया था कि वो कम समय में किराए के घर पर नहीं रह सकते थे और उसके बाद से वो खुले में सो रहे थे। उस दौरान उनका फोन भी चोरी हो गया था।

मालूम हो कि इस बार भी जब वो सीएम बने हैं तो अभी तुरंत उन्हें कोई आवास नहीं मिल रहा। एक दो मंजिला क्वार्टर है जिसे रेनोवेट कराने का काम हो रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले 24 सालों से ओडिशा के मुख्यमंत्री पद पर बैठे नवीन पटनायक अपने निजी आवास में रहा करते थे ऐसे में अलग से सीएम आवास की जरूरत नहीं हुई। अब जब सीएम बदले हैं तो इस मुद्दे पर काम शुरू हुआ है।

बता दें मोहन चरण माझी के ऊपर 2021 में अज्ञान हमलावरों द्वारा बम भी फेंके गए थे। उस समय वह क्योंझर कस्बे थानांतर्गत मंडुआ इलाके में भाजपा श्रमिक संघ की बैठक में भाग लेकर वापस लौट रहे थी। हमले में वह बाल-बाल भचे थे। उन्होंने उस समय बीजद के स्थानीय नेताओं पर ऐसा करने का आरोप लगाया था।
मोहन माझी ने अपने चुनावी हलफनामे में बताया है कि उनके पास 1.97 करोड़ रुपए की संपत्ति है। उन्होंने 95.58 लाख रुपए उधार ले रखे हैं। ओडिशा के नए सीएम ने ग्रेजुएशन किया है।

मोहन माझी ने पत्नी डॉ. प्रियंका मरंडी की संपत्ति के बारे में जानकारी देते हुए हलफनामे में लिखा है कि पत्नी के पास 50 हजार रुपए नगद रखे हैं। उनके 9 बैंक खातों में अकाउंट है, जिसमें 10.92 लाख रुपए जमा है। उनकी पत्नी ने एसबीआई में 51 लाख रुपए की फिक्स्ड डिपॉजिट भी कर रखी है।

माझी आरएसएस से खास जुड़ाव रखते हैं। उनकी एक तेज तर्रार आदिवासी नेता की छवि है। वह अपने क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है। वह क्योंझर से चार बार लगातार विधायक बने हैं, इसलिए शासन की उनको उच्छी समझ भी है। 2023 में सत्र के दौरान माझी पर आरोप लगा कि उन्होंने स्पीकर के पोडियम पर दाल फेंकी थी। उनको सस्पेंड कर इसकी सजा दी थी। उन्होंने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा था कि उन्होंने दाल भेंट की थी।

वे अपनी मां, पत्नी और दो बेटों के साथ भुवनेश्वर में सरकारी आवास में रहते हैं. मंगलवार को जब माझी को नया मुख्यमंत्री घोषित किया गया तो उनका परिवार आश्चर्यचकित रह गया. उन्हें सबसे पहले स्थानीय समाचार चैनलों से उनके मुख्यमंत्री के रूप में चुने जाने की जानकारी मिली. उस क्षण तक वे पूरी तरह से इस निर्णय से अनजान थे. आवाज में अविश्वास और गर्व के मिलेजुले भाव के साथ मोहन की पत्नी प्रियंका ने कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि वो (मोहन) मुख्यमंत्री बनेंगे. मुझे ये तो उम्मीद थी कि उन्हें नए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मंत्रिमंडल में मंत्री पद मिलेगा. लेकिन यह मेरे और मेरे परिवार के लिए एक चौंका देने वाला था.

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श्री विनीत अभिषेक ने पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी का पदभार ग्रहण किया

सिविल सेवा, 2010 बैच के भारतीय रेल यातायात सेवा (IRTS) के वरिष्‍ठ अधिकारी श्री विनीत अभिषेक ने 10 जून, 2024 को पश्चिम रेलवे के नए मुख्य जनसंपर्क अधिकारी (CPRO) का कार्यभार ग्रहण किया है। प्रबंधन में स्नातक श्री विनीत को शहरी नियोजन और परिवहन में 19 वर्षों से अधिक का अनुभव प्राप्‍त है और आपने सार्वजनिक, कॉर्पोरेट और गैर-लाभकारी क्षेत्रों में काम किया है। इससे पूर्व पश्चिम रेलवे के मुंबई सेंट्रल मंडल के वरिष्ठ मंडल वाणिज्‍य प्रबंधक के रूप में आपने टिकट जाँच और गैर-किराया राजस्व के क्षेत्र में कई पहलों की शुरुआत की, जिसके कारण मंडल ने अपने इतिहास में पहली बार वर्ष 2023-2024 में 4000 करोड़ रुपये के राजस्व का आंकड़ा पार कर लिया।

श्री विनीत ने वर्ष 2019-2020 और 2021-2023 के दौरान मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT), यूएसए में उच्च अध्ययन और शोध कार्य किया, जहां हार्वर्ड केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट में क्रॉस रजिस्ट्रेशन के साथ आपने सस्‍टेनेबल ट्रांसपोर्टेशन, इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर प्‍लानिंग, म्‍यूनिसिपल फाइनेंसिंग, बजटिंग और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) में विशेषज्ञता हासिल की। एमआईटी में आपने ह्यूबर्ट एच. हम्फ्रे फुलब्राइट फेलोशिप, जेएन टाटा फेलोशिप और एमआईटी की गवर्नेंस इनोवेशन रिसर्च फेलोशिप जैसी विभिन्न फेलोशिप हासिल कीं।

अपने उच्च अध्ययन के दौरान श्री विनीत ने मैसाचुसेट्स बे ट्रांसपोर्टेशन अथॉरिटी के साथ TOD प्रोजेक्‍ट, आईटीडीपी, अफ्रीका के साथ अर्बन ट्रांसपोर्ट फाइनेंसिंग प्रोजेक्‍ट, विश्व बैंक के साथ चेन्नई सिटी पार्टनरशिप प्रोजेक्‍ट, नैरोबी मेट्रोपोलिटन एरिया ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के साथ पब्लिक बस इलेक्ट्रिफिकेश प्रोजेक्‍ट और इंस्टिट्यूट फॉर ट्रांसपोर्टेशन एंड डेवलपमेंट पॉलिसी (ITDP) + इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ पब्लिक ट्रांसपोर्ट (UITP) जैसी विभिन्न ऑन-साइट परियोजनाओं का हिस्‍सा रहे। जून से अगस्त, 2023 के मध्‍य श्री विनीत अभिषेक ब्राजील में थे, जहां आपने देश में सिविल सेवा सुधारों पर शोध कार्य के लिए गवर्नेंस एंड इनोवेशन मिनि‍स्‍ट्री के साथ एक संयुक्‍त सहयोगी परियोजना पर MIT Gov/Lab फेलो के रूप में कार्य किया।

सिविल सेवा में आने से पहले श्री विनीत ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और राजस्थान राज्यों में औद्योगिक प्रतिस्पर्धा, सामाजिक बुनियादी ढांचे, सरकारी परामर्श, परियोजना वित्तपोषण और सीएसआर से संबंधित कई परियोजनाओं पर छह साल तक काम किया। अपने पेशेवर जुड़ाव के अलावा श्री विनीत सस्‍टेनेबल ट्रांसपोर्टेशन और पब्लिक पॉलिसी के मुद्दों पर एक उत्साही टिप्पणीकार हैं और आपके शोध पत्र, संपादकीय और पुस्तक समीक्षाएँ इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, हिंदुस्तान टाइम्स, द हिंदू आदि में प्रकाशित हुई हैं।

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अधिक ऋण के बोझ तले वैश्विक अर्थव्यवस्था कहीं चरमरा तो नहीं जाएगी

विश्व के समस्त नागरिकों एवं विभिन्न संस्थानों पर लगभग 320 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण है। कुल ऋण की उक्त राशि में विभिन्न देशों की सरकारों के ऋण एवं नागरिकों के व्यक्तिगत ऋण भी शामिल है। कई देशों को मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण पाने में बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही, विकास करने का दबाव विभिन्न देशों की सरकारों पर है अतः सरकारों के साथ साथ व्यक्ति भी बहुत अधिक मात्रा में ऋण ले रहे हैं। परंतु, कितना ऋण प्रत्येक व्यक्ति अथवा सरकार पर होना चाहिए, इस विषय पर भी अब गम्भीरता से विचार किए जाने की आवश्यकता है।

आज विश्व की कुल जनसंख्या 810 करोड़ है और विश्व पर कुल ऋण की राशि 320 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है इस प्रकार औसत रूप से विश्व के प्रत्येक नागरिक पर 39,000 अमेरिकी डॉलर का ऋण बक़ाया है। 320 लाख करोड़ रुपए के ऋण की राशि में विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा लिया गया ऋण, व्यापार एवं उद्योग द्वारा लिया गया ऋण एवं व्यक्तियों द्वारा लिया गया ऋण शामिल है। पूरे विश्व में परिवारों/व्यक्तियों द्वारा 59 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया गया है।

व्यापार एवं उद्योग द्वारा 164 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया गया है। साथ ही, सरकारों द्वारा 97 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया गया है, ऋण की इस राशि में एक तिहाई हिस्सा विकासशील देशों की सरकारों द्वारा लिया गया ऋण भी शामिल है। सरकारों द्वारा लिए गए ऋण की राशि पर प्रतिवर्ष 84,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ब्याज का भुगतान किया जाता है। विश्व में प्रत्येक 3 देशों में से 1 देश द्वारा कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च की गई राशि से अधिक राशि ऋण पर ब्याज के रूप में खर्च की जाती है।

आकार में छोटी अर्थव्यवस्थाओं के लिए अधिक ऋण लेना सदैव ही बहुत जोखिमभरा निर्णय रहता आया है। पूरे विश्व में सकल घरेलू उत्पाद का आकार 109 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है जबकि ऋणराशि का आकार 320 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है। इस प्रकार, एक तरह से आय की तुलना में खर्च की जा रही राशि बहुत अधिक है। इसे संतुलित किया जाना अब अति आवश्यक हो गया है अन्यथा कुछ ही समय में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है।

पूरे विश्व में लिए गए भारी भरकम राशि के ऋण के चलते अमीर वर्ग अधिक अमीर होता चला जा रहा है एवं गरीब वर्ग और अधिक गरीब होता चला जा रहा है, क्योंकि अमीर वर्ग ऋण का उपयोग अपने लाभ का लिए कर पा रहा है एवं इस ऋण राशि से अपनी सम्पत्ति में वृद्धि करने में सफल हो रहा है। जबकि, गरीब वर्ग इस ऋण की राशि का उपयोग अपनी देनंदिनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु करता है और ऋण के जाल में फंसता चला जाता है।

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300 रुपये पत्थर गहनों के नाम पर 6 करोड़ में बेच दिए

जयपुर के आभूषण व्यवसाई ने दो साल पहले अमेरिकी महिला को 6 करोड़ का आभूषण बेचा था जो नकली निकल गया है, जो असल में केवल 300 रुपये का था. अब इसके लिए अमेरिकी महिला चेरिश ने जांच शुरू करवा दी है. इस मामले में एक गिरफ्तार हुआ है और दो फरार हैं.

दरअसल, जयपुर के रामा रोडियम दुकान से 2022-23 के दौरान चेरिश ने 6 करोड़ कीमत के आभूषण खरीदे थे. जिसमें कई स्टोन और सोने के आभूषण थे. अमेरिका में एक ज्वेलरी एग्जीबिशन के दौरान जब चेरिश ने उन गहनों को लोगों को दिखाया तो वो नकली निकले. उसकी जांच करवाई और अब वो जयपुर में इस मामला का केस दर्ज करवाया है. पुलिस का कहना है कि पहले तो आभूषण दुकानदार पैसे लौटाने की बात कह रहा था, लेकिन अब बाप-बेटे फरार हैं. हालांकि, नकली हॉलमार्क बनाने वाला पकड़ा जा चुका है.

जयपुर में इस मामले की जांच कर रहे एडिशनल डीसीपी बजरंग सिंह शेखावत ने बताया कि यह मामला दो साल पहले का है. अब जब अमेरिकी महिला चेरिश ने मामला दर्ज करवाया तो उसकी जांच में खुलासे हुए हैं.

दरअसल, वर्ष 2022- 23 दौरान विदेशी महिला ने गौरव सोनी और राजेंद्र सोनी से 6 करोड़ रूपये के आसपास के रिंग, नेकलेस, डायमंड आदि आभूषण खरीदे थे. अमेरिका में फरवरी में एक जेवलरी एग्जीबिशन में जब इन गहनों को ग्राहकों को दिखाया तो नकली निकले.। इसमें जो सोने के आभूषण 14 कैरेट के बताये गए थे वो 9 कैरेट के निकले. इतना ही ग्रेनाइट के पत्थर को डायमंड बताकर दे दिया था. जेम्स और जेवलर्स का काम करने वाले गौरव सोनी और राजेंद्र सोनी अब फरार हैं. पहले दो दिन का समय देकर पैसा वापस लौटाने की बात कह रहे थे.

जयपुर के जेम्स और ज्वेलर्स व्यापार की साख पूरी दुनिया में है. इसलिए यहां के सामन पर लोग जल्दी शक नहीं करते. यहां पर पुराना खेल चल रहा है. अब जब सबकुछ सीसीटीवी में कैद है तो मामला तूल पकड़ लिया है. इन आभूषणों के चेक एंड बैलेंस का कोई यहां पर नियम नहीं है.

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संगीत, संस्कारों और संस्कृति की खुशबू से सराबोर मैथिली ठाकुर

मैथिली साधारण लड़की नहीं है. वो 23 साल की उम्र में अब तक सात सौ से ज्यादा लाइव शो और रियलिटी शो “राइजिंग स्टार” के पहले सीजन की रनर अप रह चुकीं हैं. मैथली अपने दो भाइयों से बड़ी हैं. वो गाती हैं. मैथिली के मझले भाई ऋषभ ठाकुर को तबले पर थाप देना पसंद है.शास्त्रीय संगीत, मिथिला और अन्य लोकभाषाओं की जानी-मानी गायिका मैथिली ठाकुर देश की पहली पंक्ति के शास्त्रीय गायक की टोली में शामिल हो गयी है.
आकाशवाणी ने मैथिली ठाकुर के साथ ऐसा अनुबंध किया हैं जिसके तहत मैथिली के द्वारा गाये हुए शास्त्रीय संगीत को 99 साल तक प्रसारित किया जायेगा. यह एक कीर्तिमान है कि इतनी कम उम्र की किसी भी गयिका से आकाशवाणी की ओर से आजतक ऐसा कोई अनुबंध नहीं हुआ था.अपनी गायकी के लिए मशहूर मैथिली ठाकुर का जन्म 25 जुलाई 2000 को बिहार के मधुबनी में हुआ.
मैथिली बचपन से ही संगीत के वातावरण में पली बड़ी हैं. इनके पिता का नाम रमेश ठाकुर है. जो संगीत के शिक्षक हैं और इनकी माता का नाम पूजा ठाकुर हैं इनके परिवार में मैथिली के अलावा एक बड़ा भाई ऋषभ ठाकुर व छोटा भाई अयाची ठाकुर हैं. मैथिली की प्रारंभिक शिक्षा बाल भवन इंटरनेशनल स्कूल से पूरी हुई. अभी मैथिली 23 साल की हैं और दिल्ली के कॉलेज आत्माराम सनातन धर्मं कॉलेज से अपनी पढाई पूरी कर रही हैं. संगीत इन्हें अपने परिवार की ओर से विरासत में मिला हैं. मैथिली को बचपन से ही संगीत का शौक था और उन्होंने गायन शुरू कर दिया था. जब मैथिली 4 वर्ष की थी तभी इनके दादाजी ने इन्हें संगीत सिखाना शुरू कर दिया था. इनके छोटे भाई अयाची भी साथ में संगीत सीख रहे हैं. परिवार में मैथिली को प्यार से सब तन्नु, आयाची को हब्बू और सबसे बड़े भाई ऋषभ को सन्नी बुलाते हैं.
मैथिली को संगीत में पुर्या धनाश्री राग सबसे ज्यादा प्रिय हैं.मैथिली ने पहली बार वर्ष 2011 में लिटिल चैंप्स का ऑडिशन दिया था परन्तु वह रिजेक्ट हो गई थी. जिसके बाद कई शोज के लिए ऑडिशन दिए, पर टॉप 20 तक आकर रिजेक्ट हो जाती थी. इन्होने 6 बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा पर हार नहीं मानी. इन्होने वर्ष 2015 आई जीनियस यंग सिंगिंग स्टार सीजन 2 का खिताब जीता था. जिसके बाद इन्होने इंडियन आइडल जूनियर 2 में भी टॉप 20 में जगह बनाई थी.
वर्ष 2017 में मैथिली ने राइजिंग स्टार नामक सिंगिंग रियलिटी शो में चयन हुआ था. उस शो में अपने अच्छे प्रस्तुति के लिए इन्हें 94 प्रतिशत स्कोर प्राप्त हुए थे. इन्होने अपनी प्रस्तुति के दौरान भोर भये गाने की प्रस्तुति दी। मैथिली 5 बार की दिल्ली राज्य की शास्त्रीय संगीत प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी हैं. मैथिली ठाकुर ने 2016 में 11वीं की पढ़ाई के साथ थारपा नामक एलबम से अपने संगीत करियर की शुरुआत की हैं. मैथिली बॉलीवुड में सफल प्लेबैक सिंगर बनाना चाहती हैं.
मैथिली के पिता रमेश ठाकुर मूलत: बिहार के मधुबनी के रहने वाले हैं। 20 साल पहले वो बिहार से दिल्ली पहुंचे। मैथिली अभी भी बिहार जाती रहती हैं। वहां उनके दादा रहते हैं। मैथिली के पिता रमेश ठाकुर ने बताया कि दिल्ली में रहकर बच्चों को संगीत की शिक्षा दी है। बहुत ही कम लोगों को पता है कि मैथिली के बचपन का नाम तन्नू था। बाद में लोगों ने प्यार से मैथली बुलाना शुरू कर दिया। इसका श्रेय उनके दादा शोभासिन्धु ठाकुर को जाता है क्योंकि वो बिहार के मिथिला क्षेत्र से हैं।मैथिली दिल्ली के द्वारका में रहती हैं। मैथिली के पिता रमेश ठाकुर खुद भी दिल्ली में संगीत प्रशिक्षण केंद्र चलाते हैं। गांव से शुरू हुआ मैथिली का सफर आज देश-दुनिया तक पहुंच गया है।
 
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