Monday, April 28, 2025
spot_img
Home Blog Page 14

श्रीराम भारत की आत्मा तथा भारतीय अस्मिता के जीवंत प्रमाण हैं…

त्रेता युग से ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भारत की आत्मा तथा भारतीय अस्मिता के जीवंत प्रमाण हैं। श्रीरामचन्द्र भारतवर्ष के एकमात्र तपस्वी राजा हैं। वे करुणा के सागर हैं। वे श्याम सुंदर छवि वाले हैं। श्रीराम का शरीर जितना ही मोहक और भव्य है, उतना ही उनका शील उदात्त गुणों से विभूषित है। उनकी कांति मनमोहक है। उनके कंधे सिंह के जैसे बलिष्ठ एवं ताकतवर हैं। वे धीर, वीर और गंभीर हैं। वे महान बलशाली योद्धा हैं। उनकी आंखें कजरारी और बड़ी-बड़ी हैं। उनकी चाल हाथी के जैसी मतवाली है। उनकी भुजाएं उनके घुटनों तक हैं। वे एक पत्नीव्रतधारी हैं। वे सत्य, न्याय और धर्म के रक्षक हैं। वे नवधा भक्ति के जन्मदाता हैं। वे सगुण-निर्गुण समन्वय के साकार स्वरुप हैं।

वे धर्मपरायण, न्यायप्रिय, लोक रक्षक, आज्ञाकारी, दृढ़ निश्चयी, जनमत का सम्मान करने वाले और कठोरव्रती हैं। वे भारतीय वन संस्कृति के पालक हैं। श्रीराम सगुण-निर्गुण साकार हैं। वे धर्मपरायण, न्यायपरायण, लोक रक्षक, आज्ञाकारी, दृढ़ निश्चयी, कठोरव्रती श्रीराम हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम 16 अलौकिक गुणों से सम्पन्न हैं। वे चरित्रवान हैं। वे मानवीय मूल्यों के पारावार हैं। वे पतितपावन हैं। इसीलिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र के इन सभी विलक्षण गुणों की पुष्टि हमारे सभी महाकवियों ने की है।

महाकवियों द्वारा श्रीराम के गुणों का चित्रण

आदिकवि वाल्मीकि जो ब्रह्माजी के दसवें पुत्र प्रचेता के पुत्र हैं, वे सम्पूर्ण विश्व में पारिवारिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय समन्वय के यथार्थ आदर्श हैं। गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भारतवर्ष के भावपुरुष हैं। कालिदास ने अपनी अमर रचना ‘रघुवंश’ के 10वें सर्ग से लेकर 15वें सर्ग तक में श्रीराम को तेजस्वी और पराक्रमी राजा बताया है। उन्होंने श्रीराम को धर्मपरायण और न्यायप्रिय बताया है। उन्हें लोकरक्षक, आज्ञापालक, दृढ़निश्चयी और कठोरव्रती बताया है।

महाकवि भवभूति तथा जैन महाकवि स्वयंभू आदि ने भी स्पष्ट रूप से अपनी-अपनी अमर रचनाओं में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के मानवीय गुणों की कुल 16 विलक्षण प्रतिभाओं का उल्लेख किया है। वे लिखते हैं-
“तुम ही जग हौं, जग तुमही में।
तुमहि विरचि मरजाद दुनी में।।”

स्वयंभू ने अपने जैन रामायण में श्रीराम को एक साधारण मानव के रूप में चित्रित करते हुए उन्हें भारतीय संस्कृति की अस्मिता का प्रतीक बताया है।

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ लिखते हैं-
“रघुनंदन हैं धीर दुरंधर, धर्मप्राण भव-हित रत हैं।”

केशवदास ने अपनी रचना ‘रामचंद्रिका’ में श्रीराम को सत्यस्वरूप, गुणातीत और मायातीत बताया है।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त कहते हैं-
“हो गया निर्गुण-सगुण साकार है,
ले लिया अखिलेश ने अवतार है।”

ठीक इसी प्रकार की बात गुप्तजी स्वयं राम से कहलवाते हैं-
“संदेश नहीं स्वर्ग का लाया,
भूतल को स्वर्ग बनाने आया।”

हिन्दी के अमर कवि जयशंकर प्रसाद कहते हैं-
“रोम-रोम रम रहे कैसे तुम राम हो।”

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी अपनी अमर रचना ‘राम की शक्ति पूजा’ में श्रीराम को अपराजेय योद्धा बतलाते हैं।

सूफी संत कवि कबीरदास कहते हैं-
“कबीर वन-वन में फिरा, कारनि अपने राम।
राम सरीखे जन मिले, तिन सारे सब काम।।”

स्वर्गीय राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के राम स्वयं कहते हैं-
“संदेश नहीं मैं स्वर्ग का लाया,
भूतल को स्वर्ग बनाने आया।”

गुप्तजी के राम ब्रह्म अवतारी होते हुए भी आधुनिक युग के अनुरूप आदर्श पुरुष हैं।

20वीं सदी के महाकवि जयशंकर प्रसाद लिखते हैं-

“जीवन जगत् के, विकास विश्व वेद के हो,
परम प्रकाश हो, स्वयं ही पूर्णकाम हो…
रोम-रोम में रम रहे कैसे तुम राम हो।”

गीता में श्रीकृष्ण और रामायण में श्रीराम का समर्पण

सच तो यह है कि जिस प्रकार महाभारत में जो सम्मान शांतिदूत श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश के माध्यम से अर्जुन को दिया था, वहीं संदेश श्रीराम ने शबरी को नवधा भक्ति प्रदान कर दिया है। सापेक्ष रूप में, श्रीराम का मर्यादित चरित्र भारत की आत्मा तथा भारतीय अस्मिता का जीवंत प्रमाण है।

बस्ती के सशक्त लेखक वागीश शुक्ल

वागीश शुक्ल हिन्दी के उन विरले लेखकों में हैं जो हिन्दी, संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और इन भाषाओं के माध्यम से दूसरी भाषाओं के साहित्य को गहरायी से जानते हैं। वे वर्तमान समय में हिन्दी-साहित्य के सबसे गहरे और तीक्ष्ण ,सिद्धांसतार, आलोचक, निबंधकार एवं उपन्यासकार हैं। उनकी प्रतिभा आचार्य राम चन्द्र शुक्ल जैसी ही दिखती हैं एक गणितज्ञ को साहित्य की ऐसी परख विरले देखने को मिलता है। उनके बारे में सर्च करने पर बहुत ही विलक्षण चरित्र देखने को मिलता है। गद्य साहित्य की प्रचुरता के कारण ‘बस्ती के छंदकार’ के लेखक स्मृति शेष डा मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ जी ने शायद उन्हे अपने अध्ययन में ना ले सकें। उन्हें उचित स्थान देने से बस्ती मण्डल खुद को गौरवान्वित महशूस कर सकता है। इसलिए उनके अप्रकाशित भाग 3 की श्रृंखला में इस कड़ी को पिरोया जा रहा है।

स्वनाम धन्य श्री वागीश जी एक वैज्ञानिक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने गणित में स्नातकोत्तर किया है और आईआईटी दिल्ली में गणित के प्रोफ़ेसर भी रहे। उन्होंने ज्येष्ठ शुक्ल दशमी विक्रम संवत् 2003 तदनुसार 9 जुलाई, 1946 ई. को इस धरती पर अपने गाँव थरौली, तप्पा बड़गों पगार, परगना महुली पश्चिम, तहसील सदर, जिला बस्ती, उत्तर प्रदेश में जन्म लिया । बस्ती में वे एक ठाकुरद्वारे में रहते थे जिसे बस्ती राज-परिवार की रानी दिगम्बर कुँवरि ने बनवाया था। ये 1857 के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी बाबू कुँवर सिंह की बहिन थीं किन्तु ये स्वयं अंगरेज़ों के साथ थीं जिसके नाते बस्ती का राज्य विक्टोरिया शासनकाल में कुछ बढ़ेआकार के साथ बचा रहा।

वे वर्षों दिल्ली के आई. आई. टी. संस्थान में गणित पढ़ाते रहे और फिर सेवानिवृत्त होकर बस्ती में भी रहे हैं। उनका लिखा हुआ सरस और जटिल एक साथ होता है। उन्होंने निराला की प्रसिद्ध कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ की बहुत ही सुन्दर टीका लिखी है जो ‘छन्द छन्द पर कुमकुम’ नाम से प्रकाशित हुई है। उन्होंने देवकीनन्दन खत्री की उपन्यास श्रृंखला ‘चन्द्रकान्ता सन्तति’ पर भी किताब लिखी है। उन्होंने ‘समास’ के लिए ‘भक्ति’ पर कई  निबंधों की श्रृंखला भी लिखी है। वागीश जी हिन्दी में ग़ालिब की शायरी के सबसे बड़े विशेषज्ञ हैं और उन्होंने उस पर भी टीका लिख रखी है जो प्रकाशित होना बाक़ी है।

पारिवारिक पृष्ठभूमि:

1. पण्डित शूलपाणि (पूर्वज)

वागीश शुक्ल जी के पूर्वज पण्डित शूलपाणि शुक्ल थे, जो महसों (थरौली के रास्ते में) में रहते थे। राजा द्वारा किए गए अपमान से क्षुब्ध होकर वे अनशन पर बैठ गए और उनका प्राणांत हो गया। इसके बाद उनके पुत्रों ने महसों छोड़कर अन्य आश्रय की तलाश की।

2. पण्डित शिवदीन (वृद्ध प्रपितामह)

वागीश जी के वृद्ध प्रपितामह पण्डित शिवदीन शुक्ल थरौली में बस गए। उनके दो पुत्र हुए — पण्डित रामप्रसाद शुक्ल और पण्डित रामअवतार शुक्ल

3. पण्डित रामप्रसाद शुक्ल (प्रपितामह)

पण्डित रामप्रसाद शुक्ल वागीश जी के सगे प्रपितामह थे। उनके परिवार में पण्डित शुभनारायण शुक्ल और पण्डित जयनारायण शुक्ल थे।

4. पण्डित जयनारायण शुक्ल (पितामह)

यह मकान वागीश जी के पितामह पण्डित जयनारायण शुक्ल ने बनवाया था।

5. पण्डित शुभनारायण शुक्ल (पिता)

वागीश जी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। उनके पिता पण्डित शुभनारायण शुक्ल संस्कृत के आचार्य थे।

6. माता श्रीमती विद्यावती देवी

उनकी माता विद्यावती देवी ने 14 वर्ष की अवस्था से ही गुरुजनों की सेवा में समर्पित जीवन बिताया। उनके यहां 12 वर्षों तक कोई संतान नहीं हुई, जिसके बाद उन्होंने ऋषि पंचमी का व्रत प्रारंभ किया और फलस्वरूप वागीश जी का जन्म हुआ।

विवाह एवं वैधव्य:

वागीश जी का विवाह 1965 में श्रीमती इंदुमती से हुआ, जिनका जन्म 1951 और निधन 2023 में हुआ।

लेखन यात्रा और साहित्यिक योगदान:

आरंभिक लेखन:

वागीश जी ने नवीं कक्षा में अपनी पहली कविता लिखी, जिसकी प्रथम पंक्ति थी —
“पर्यंक-त्याग क्यों ओ बोले।”
इसी समय से वे जेब में इलायची-लोंग रखने लगे, जिसकी परिणति बाद में तंबाकू के पान खाने में हुई।

अध्ययन और प्रेरणा:

उन्होंने संस्कृत विद्यालय में देवकीनन्दन खत्री के सारे उपन्यास पढ़े। अंग्रेज़ी अच्छी करने के उद्देश्य से उनके पिता ने ‘ब्लिट्ज़’ नामक साप्ताहिक मंगवाना शुरू किया। इलाहाबाद में पढ़ाई के दौरान वे एक लालटेन के सहारे पढ़ाई करते और उसी चटाई पर सो जाते थे।

प्रमुख रचनाएं:

वागीश जी ने लगभग एक दर्जन रचनाएं लिखीं, जो प्रतिष्ठित प्रकाशनों से प्रकाशित हुई हैं। उनकी रचनाएं अमेज़न आदि ऑनलाइन माध्यमों पर भी उपलब्ध हैं।

  1. छन्द छन्द पर कुमकुम : राम की शक्ति पूजा

  2. गालिब के साहित्य की विस्तृत टीका और व्याख्या (प्रकाशनाधीन)

  3. Sanskrit Studied (संवत् 2063-64, 2 खंडों में)

  4. आहोपुरुषिका (अनुवाद)

  5. समालोचना: उसे निहारते हुए

  6. समालोचना: प्रचण्ड प्रवीर का कथा लेखन

  7. प्रतिदर्श (निबंध संग्रह)

  8. शहंशाह के कपड़े कहां हैं (निबंध)

  9. उर्दू साहित्य का देवनागरी में लिप्यंतरण: समस्याएं और सुझाव

  10. चंद्रकांता संतति का तिलस्म

  11. ‘चिकितुषी’ त्रिपुरा रहस्य चर्या खंड का संपादन

  12. ‘समास’ के लिए ‘भक्ति’ पर निबंध श्रृंखला

  13. एक सुदीर्घ उपन्यास (प्रकाशनाधीन)

शिक्षण कार्य और व्यावसायिक जीवन:

वागीश शुक्ल ने 1970 से 2012 तक आईआईटी दिल्ली में गणित के प्रोफ़ेसर के रूप में कार्य किया। सेवा निवृत्ति के बाद उन्होंने 9 वर्ष बस्ती में बिताए और 2021 से पुनः दिल्ली में निवास कर रहे हैं।

विशेषताएं और योगदान:

  • वागीश जी का लेखन सरस और जटिल दोनों का संगम है।

  • वे अवधारणाओं को सीधे प्रस्तुत करने के बजाय पाठक को वैचारिकता के उस स्तर तक ले जाते हैं, जहाँ अवधारणा रूप ले रही होती है।

  • ग़ालिब की शायरी पर उनका काम अद्वितीय है और प्रकाशन की प्रतीक्षा में है।

  • वे निराला की प्रसिद्ध कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ पर लिखी गई ‘छन्द छन्द पर कुमकुम’ नामक टीका के लिए विख्यात हैं।

संपर्क विवरण:

फोन नंबर: 08765934624, 09868541851
ईमेल: wagishs@yahoo.com

लेखक परिचय:

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में सहायक पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं।)

मोबाइल नंबर: +91 8630778321
व्हाट्सएप: +91 9412300183

मिथिला पेंटिंग से रचा इतिहास, मिला पद्म श्री सम्मान

बिहार की दुलारी देवी को न पढ़ना आता है और न लिखना । वह समाज के सबसे निचले पायदान से आती हैं। गरीबी और मुसीबतों ने इन्हें तोड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन हार मानने की बजाय वह दोगुनी ताकत के साथ उठ खड़ी हुई। उनके हाथों ने जब कवी थामी तो मिथिला पेंटिंग के रूप में उनकी कला दुनिया के सामने रंग बिखेरने लगी। 2021 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया तो वहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उनकी मिथिला पेंटिंग वाली साड़ी पहन कर पेश किया देश का बजट….

यह कहानी है बिहार के दुलारी देवी की, जिनका जन्म ही अभाव और गरीबी के बीच हुआ। बेहद ही गरीब मल्लाह परिवार में जन्मीं दुलारी देवी की कम उम्र में ही शादी हो गई और बच्चे हो गए लेकिन मसीबतों ने पीछा नहीं छोड़ा। गरीबी और मुसीबतों से घिरी दुलारी देवी दूसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा लगाने लगीं लेकिन नसीब को कुछ और ही मंजूर था। हाथ में पोंछे की जगह कूची ने ले ली। इसके बाद मिथिला पेंटिंग बनाने का जो सिलसिला उन्होंने शुरू किया वो आज तक नहीं रुका । आज उनकी जिंदगी का एक ही लक्ष्य है, मिथिला पेंटिंग जिसने देश-विदेश में उन्हें पहचान दिलाई।

जब पद्म श्री देने की घोषणा की गई थी तब उनका दर्द इन शब्दों में छलक पड़ा था, “बहुत कष्ट से गुजरी हूं। बहुत संघर्ष में रह कर मिथिला पेंटिंग सीखी। मुझे बहुत खुशी है ।” राष्ट्रपति भवन में पद्म सम्मान लेने के बाद उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई थी। इस दौरान उन्होंने पीएम मोदी को एक पेंटिंग भी उपहार में दी थी। इस उपहार के लिए उनका आभार व्यक्त करते हुए पीएम मोदी ने कहा था, “दुलारी देवी जी उन लोगों में से हैं जिन्हें पीपुल्स पद्म से सम्मानित किया गया है । वह एक प्रतिभाशाली कलाकार हैं जो बिहार के मधुबनी की रहने वाली हैं। समारोह के बाद पुरस्कार विजेताओं के साथ अनौपचारिक बातचीत के समय उन्होंने मुझे अपनी कलाकृति भेंट की। उनका अभिनंदन और आभार ।”

इतना ही नहीं, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब अपना 8वां बजट पेश किया तो उनसे बिहार को काफी उम्मीदें थी जिसे उन्होंने पूरा भी किया। साथ ही, उनकी साड़ी भी काफी सुर्खियों में रही जिसका बिहार कनेक्शन था। दरअसल उन्होंने जो साड़ी पहनी थी वह मिथिला पेंटिंग से सजी थी जिसे दुलारी देवी ने बनाया था । दुलारी देवी ने निर्मला सीतारमण को यह साड़ी उस समय विदाई में दी थी जब वह मधुबनी के मिथिला चित्रकला संस्थान आई थीं। साथ ही बजट के दिन उनसे यह साड़ी पहनने का अनुरोध भी किया था। बैंगलोरी सिल्क वाली यह साड़ी तैयार करने में दुलारी देवी को एक महीने का समय लगा था। इस साड़ी में जुड़वा मछली और कमल के फूल की पेंटिंग की गई थी। मिथिला में मछली, मखाना और पान बहुत प्रसिद्ध है।

मिथिला पेंटिंग पूरी तरह हाथों से बनाई जाती है जिसमें देवी-देवताओं, प्रकृति, पौराणिक कथा और विवाह से जुड़ी चित्रकथाएं होती हैं। इसे खासतौर पर प्राकृतिक रंगों से तैयार किया जाता है जिससे यह साड़ी पर्यावरण के अनुकूल होती है। मधुबनी पेंटिंग वाली साड़ी की यह खासियत ही इसे आम साड़ी से सबसे अलग और खास बनाती है। यह सिर्फ एक परिधान नहीं बल्कि बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी माना जाता है । .

ओला-उबर की टक्कर में सरकार ला रही है सहकार टैक्सी सेवा

ओला-उबर जैसी टैक्सी सर्विसेस कंपनियों ने कैब सर्विस सेक्टर में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है. लेकिन अब सरकार भी इस क्षेत्र में कदम रखने जा रही है. सरकार के इस कदम से न सिर्फ ड्राइवरों की मौज होगी बल्कि इस सेक्टर की दिग्गज कंपनियों के पसीने भी छूटेंगे.

भारत में कैब सर्विस का बाजार तेजी से बढ़ रहा है. ओला-उबर जैसी टैक्सी सर्विसेस कंपनियों ने इस सेक्टर में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है. लेकिन अब सरकार भी इस क्षेत्र में कदम रखने जा रही है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में घोषणा की है कि सरकार एक कोऑपरेटिव मॉडल पर आधारित नई टैक्सी सर्विस लॉन्च करने की योजना बना रही है. इस सरकारी कैब सेवा का उद्देश्य ड्राइवरों को अधिक लाभ देना और उपभोक्ताओं को सस्ती सेवाएं प्रदान करना है.

सरकार द्वारा प्रस्तावित यह कोऑपरेटिव-रन टैक्सी सेवा ओला और उबर जैसी प्राइवेट कंपनियों को कड़ी टक्कर देने के लिए तैयार की जा रही है. इस सेवा का मुख्य लक्ष्य ड्राइवरों को ज्यादा लाभ और सशक्तिकरण देना है. मौजूदा समय में कैब एग्रीगेटर्स ड्राइवरों से बड़ी कमीशन राशि वसूलते हैं, जिससे उनकी आय सीमित हो जाती है. लेकिन इस नए मॉडल में, ड्राइवरों को सीधे मुनाफा मिलेगा और उन्हें किसी निजी कंपनी को भारी कमीशन नहीं देना पड़ेगा.

अमित शाह ने बताया कि इस कोऑपरेटिव कैब सर्विस से सबसे बड़ा फायदा टैक्सी चालकों को होगा.  कम कमीशन कटौती: ओला और उबर जैसे प्लेटफार्म्स ड्राइवरों से 20-30% तक कमीशन वसूलते हैं, जबकि सरकारी कोऑपरेटिव मॉडल में यह बहुत कम होगा. बेहतर इंश्योरेंस और सुरक्षा: ड्राइवरों को अधिक सामाजिक सुरक्षा मिलेगी, जैसे कि स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना बीमा और पेंशन जैसी सुविधाएं. सीधे लाभांश में हिस्सेदारी: सरकारी कोऑपरेटिव मॉडल में मुनाफे का एक हिस्सा ड्राइवरों को मिलेगा, जिससे उनकी आय में बढ़ोतरी होगी.

ओला और उबर जैसी कंपनियों ने भारतीय बाजार में अपनी मजबूत पकड़ बना रखी है, लेकिन उन्हें अक्सर कई विवादों का सामना करना पड़ा है.ग्राहक अक्सर बढ़े हुए किराए और सर्ज प्राइसिंग से परेशान रहते हैं.ड्राइवर लगातार कम कमीशन और अनफेयर ट्रीटमेंट की शिकायतें करते आए हैं.सेवा की गुणवत्ता को लेकर भी कई बार सवाल उठते रहे हैं.सरकार की नई कैब सेवा के आने से इन कंपनियों को बड़ी चुनौती मिलेगी क्योंकि यह सेवा सस्ता किराया, अधिक पारदर्शिता और ड्राइवरों के लिए बेहतर आर्थिक अवसर प्रदान कर सकती है.

यह नई कैब सर्विस कोऑपरेटिव मॉडल के तहत चलाई जाएगी, यानी ड्राइवर खुद इसके मालिक होंगे. यह सेवा सरकारी नियंत्रण में होगी और किसी प्राइवेट एग्रीगेटर पर निर्भर नहीं रहेगी. सरकार इस योजना को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से चलाने की योजना बना रही है, जिससे उपभोक्ताओं को आसानी से टैक्सी बुक करने की सुविधा मिलेगी. इससे उपभोक्ताओं को भी फायदा होगा. सस्ता किराया और ट्रांसपेरेंट प्राइसिंग से कोई छिपे हुए चार्ज नहीं होंगे.

सरकार द्वारा लाई जा रही यह नई टैक्सी सर्विस ओला-उबर जैसी कंपनियों को कड़ी टक्कर दे सकती है. यह न केवल ड्राइवरों के लिए फायदेमंद होगी, बल्कि उपभोक्ताओं को भी अधिक विश्वसनीय और किफायती सेवा प्रदान करेगी. आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह सरकारी कोऑपरेटिव मॉडल भारतीय कैब इंडस्ट्री को किस हद तक बदल पाता है.

अजब झंडे की ग़ज़ब कहानी

उज्जैन।  इस वर्ष विक्रम महोत्सव में यह विक्रम धर्म ध्वज और  ऐसे ही हज़ारों झंडे मध्य प्रदेश शासन द्वारा महाकाल मंदिर के शिखर से ले कर प्रदेश तथा उज्जयिनी के घर घर लगाये जा रहें हैं तीस मार्च गुडी पढ़वा को यह झंडा हर घर में फहरायेगा इस झंडे की भी अद्भुत कहानी है। २३ अप्रेल १९६१ को वैशाख शुक्ल अष्टमी के दिन दस बजे से मध्यान्ह में महाकाल मंदिर के शिखर पर सोने चाँदी के तार से गूँथा यह रेशमी सिल्क ध्वज सुबह दस बजे पद्म भूषण पंडित सूर्य नारायण व्यास के महाकाल से लगे आवास भारती – भवन में उड़कर आया और ठीक आधे घंटे के अंदर ही उसी दिन पुष्य नक्षत्र में व्यास जी के घर सबसे छोटे बालक का जन्म हुआ , बेटे को व्यास जी ने इसी ध्वज में लपेट कर गोद में लिया ।
 इस साल इस बरस के विक्रमोत्सव की तैयारी में मुख्य मंत्री के मुख्य सलाहकार श्री राम तिवारी पंडित व्यास के उसी सुपुत्र राजशेखर व्यास से महाशिवरात्रि -२०२५ को मिलने उनके नए आवास पर पधारे और उन्हें स्वर्ण मंडित यह झंडा घर के फ़ोटो फ़्रेम में दिखा उन्होंने तत्काल ही लेखक से अनुरोध किया की यह ध्वज विक्रम महोत्सव के लिए प्रदान कर दे तत्काल श्री राजशेखर व्यास ने इस ध्वज को अनुकृति बनने की इजाज़त दे कर इसे इस वर्ष के विक्रम महोत्सव की धर्म ध्वजा बनाने की अनुमति सहर्ष स्वीकृति दे दी – व्यास जी ने तो विक्रम कालिदास और उज्जयिनी के लिए अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया और मेरे जीवन का भी प्रत्येक क्षण और कन उज्जयिनी को समर्पित हैं यूँ बना यह विक्रम धर्म ध्वजा का झंडा जो तीस मार्च गुडी पड़वा को हम देखेंगे घर -घर

मोदी जी का स्वप्न: युवाओं को राजनीति में लाना, गुजरात निभा रहा अग्रणी भूमिका

माननीय प्रधान मंत्री श्री @narendramodi ने लाल किले की प्राचीर से एक महत्वाकांक्षी आह्वान किया, जिसमें उन्होंने उन 1 लाख युवाओं को सक्रिय राजनीति में लाने का संकल्प लिया, जिनके परिवारों का राजनीति से कोई संबंध नहीं है। इस स्वप्न को साकार करने की दिशा में, गुजरात ने एक अग्रणी भूमिका निभाई है। गुजरात सरकार के उच्च शिक्षा विभाग और ‘सेव कल्चर सेव भारत फाउंडेशन’ के संयुक्त तत्वावधान में, ‘गुजरात सांस्कृतिक वक्तृत्व स्पर्धा – 2025’ का भव्य आयोजन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ‘संस्कार सिंचन का महाकुंभ’ की थीम पर आयोजित इस स्पर्धा ने युवाओं को भारतीय संस्कृति के मूल्यों से जोड़ने का एक अद्वितीय मंच प्रदान किया।
 गुजरात के संस्कृति प्रेमी मुख्यमंत्री श्री  @Bhupendrapbjp द्वारा शुरू की गई इस प्रतियोगिता में राज्य के 750 कॉलेजों के 15,000 से अधिक छात्रों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। यह युवा पीढ़ी में संस्कृति और मूल्यों के प्रति जागरूकता का जीवंत प्रमाण है। स्पर्धा के विषय: ‘चरित्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण’, ‘संविधान @ 75’ ‘युवा: देश का भविष्य – विकृतियों से बचकर संस्कारों की ओर’ ‘मान – मर्यादा और सुशीलता: भारतीय संस्कृति का आधार’ ‘विकसित भारत 2047: भव्य भारत – दिव्य भारत’ इन विषयों पर युवाओं ने अपनी विशिष्ट शैली में अपने विचार प्रस्तुत किए, और गुजरात के युवाओं ने अपने शौर्य से भरे अंदाज में वक्तव्य प्रस्तुत किए। युवाओं के लिए प्रेरणा और परिवर्तन का माध्यम: यह स्पर्धा गुजरात के युवाओं के लिए एक प्रेरणादायक और जीवन परिवर्तनकारी अनुभव रही है। इसने न केवल युवाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर दिया, बल्कि उन्हें भारतीय संस्कृति और मूल्यों के महत्व को भी समझाया। इस प्रकार, गुजरात सरकार और ‘सेव कल्चर सेव भारत फाउंडेशन’ ने मिलकर मोदी जी के स्वप्न को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जो निश्चित रूप से प्रतिभा संपन्न – चारित्रवान युवाओ का निर्माण करने में सक्रीय भुमिका निभएँगा ।

(लेखक भारत सरकार के सूचना आयुक्त रहे हैं और देश के जाने माने पत्रकार व स्तंभकार हैं)

अन्य देशों में रह रहे हिंदूओं के साथ खड़े रहने की आवश्यकता

आज लगभग 4 करोड़ से अधिक भारतीय मूल के नागरिक विश्व के अन्य देशों में शांतिपूर्ण तरीके से रह रहे हैं एवं इन देशों की आर्थिक प्रगति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। कई देशों में तो भारतीय मूल के नागरिक इन देशों के राजनैतिक पटल पर भी अपनी उपयोगिता सिद्ध कर रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आदि विकसित देश इसके प्रमाण हैं। आस्ट्रेलिया में तो भारतीय मूल के नागरिकों को राजनैतिक क्षेत्र में सक्रिय करने के गम्भीर प्रयास स्थानीय स्तर पर किए जा रहे हैं, क्योंकि अन्य देशों में भारतीय मूल के नागरिकों की इस क्षेत्र में सराहनीय भूमिका सिद्ध हो चुकी है। राजनैतिक क्षेत्र के अतिरिक्त आर्थिक क्षेत्र में भी  भारतीय मूल के नागरिकों ने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है जैसे अमेरिका के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में आज भारतीयों का ही बोलबाला है।
अमेरिका में प्रतिवर्ष लगभग 85,000 एच वन-बी वीजा जारी किए जाते हैं, इसमें से लगभग 60,000 एच वन-बी वीजा भारतीय मूल के नागरिकों को जारी किए जाते हैं। इसी प्रकार अमेरिका की प्रमुख बहुराष्ट्रीय कम्पनियों  के मुख्य कार्यपालन अधिकारी भारतीय मूल के नागरिक बन रहे हैं। आज अमेरिका एवं ब्रिटेन में प्रत्येक 7 चिकित्सकों में 1 भारतीय मूल का नागरिक हैं। न केवल उक्त वर्णित विकसित देशों बल्कि खाड़ी के देशों यथा, बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में भी भारतीय मूल के नागरिक भारी संख्या में शांतिपूर्ण तरीके से रह रहे हैं एवं इन देशों के आर्थिक विकास में अपनी प्रभावशाली भूमिका निभा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, कई देशों यथा सिंगापुर, गुयाना, पुर्तगाल, सूरीनाम, मारीशस, आयरलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका आदि के राष्ट्राध्यक्ष (प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति/उपराष्ट्रपति) भारतीय मूल के नागरिक रहे हैं एवं कुछ देशों में तो अभी भी इन पदों पर आसीन हैं। साथ ही, 42 देशों की सरकार अथवा विपक्ष में कम से कम एक भारतवंशी रहा है।

दूसरी ओर, भारत के पड़ौसी देशों बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में भारतीय मूल के नागरिकों, विशेष रूप से हिंदुओं की जनसंख्या लगातार कम हो रही है। बांग्लादेश में तो वर्ष 1951 में कुल आबादी में हिंदुओं की आबादी 22 प्रतिशत थी वह आज घटकर 8 प्रतिशत से भी नीचे आ गई है। लगभग यही हाल पाकिस्तान का भी है। बांग्लादेश में तो हाल ही के समय में सत्ता पलट के पश्चात हिंदुओं सहित वहां के अल्पसंख्यक समुदायों  पर कातिलाना हमले किए गए हैं। केवल बांग्लादेश ही क्यों बल्कि विश्व के किसी भी अन्य देश में हिंदुओं के साथ इस प्रकार की घटनाओं का कड़ा विरोध होना चाहिए। भारतीय मूल के नागरिक सनातन संस्कृति के संस्कारों के चलते बहुत ही शांतिपूर्वक तरीके से इन देशों के विकास में अपनी भागीदारी निभाते हैं। इसके बावजूद भी यदि भारतीयों पर इस प्रकार के आक्रमण किए जाते हैं तो इसकी निंदा तो की ही जानी चाहिए एवं विश्व समुदाय से इस संदर्भ में सहायता भी मांगी जानी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।

बांग्लादेश में हिंदूओं सहित अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर हुए घातक हमलों की अमेरिका के राष्ट्रपति श्री डॉनल्ड ट्रम्प ने भी भर्त्सना की थी, इसी प्रकार के विचार अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भी प्रकट किया थे। परंतु, आज आवश्यकता इस बात की है कि भारतीय हिंदू समाज भी विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के नागरिकों के साथ खड़ा हो। इसी संदर्भ में, दिनांक 21 मार्च से 23 मार्च 2025 को बंगलूरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में बांग्लादेश के हिंदू समाज के साथ एकजुटता से खड़े रहने का आह्वान किया गया है एवं इस संदर्भ में निम्नलिखित एक विशेष प्रस्ताव भी पास किया गया है।

“अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा, बांग्लादेश में हिंदू और अन्य अल्प संख्यक समुदायों पर इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों द्वारा लगातार हो रही सुनियोजित हिंसा, अन्याय और उत्पीड़न पर गहरी चिंता व्यक्त करती है। यह स्पष्ट रूप से मानवाधिकार हनन का गम्भीर विषय है।

बांग्लादेश में वर्तमान सत्ता पलट के समय मठ मंदिरों, दुर्गा पूजा पंडालों और शिक्षण संस्थानों पर आक्रमण, मूर्तियों का अनादर, नृशंस हत्याएं, सम्पत्ति की लूट, महिलाओं के अपहरण और अत्याचार, बलात मतांतरण जैसी अनेक घटनाएं सामने आ रही हैं। इन घटनाओं को केवल राजनीतिक बताकर इनके मजहबी पक्ष को नकारना सत्य से मुंह मोड़ने जैसा होगा, क्योंकि अधिकतर पीड़ित, हिंदू और अन्य अल्प संख्यक समुदायों से ही हैं।

बांग्लादेश में हिंदू समाज, विशेष रूप से अनुसूचित जाति तथा जनजाति समाज का इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों द्वारा उत्पीड़न कोई नई बात नहीं है। बांग्लादेश में हिंदुओं की निरंतर घटती जनसंख्या (1951 में 22 प्रतिशत से वर्तमान में 7.95 प्रतिशत) दर्शाती है कि उनके सामने अस्तित्व का संकट है। विशेषकर, पिछले वर्ष की हिंसा और घृणा को जिस तरह सरकारी और संस्थागत समर्थन मिला, वह गम्भीर चिंता का विषय है। साथ ही, बांग्लादेश से लगातार हो रहे भारत विरोधी वक्तव्य दोनों देशों के सम्बन्धों को गहरी हानि पहुंचा सकते हैं।

कुछ अंतरराष्ट्रीय शक्तियां जान बूझकर भारत के पड़ौसी क्षेत्रों में अविश्वास और टकराव का वातावरण बनाते हुए एक देश को दूसरे के विरुद्ध खड़ा कर अस्थिरता फैलाने का प्रयास कर रही हैं। प्रतिनिधि सभा, चिन्तनशील वर्गों और अंतरराष्ट्रीय मामलों से जुड़े विशेषज्ञों से अनुरोध करती हैं कि वे भारत विरोधी वातावरण, पाकिस्तान तथा डीप स्टेट की सक्रियता पर दृष्टि रखें और इन्हें उजागर करें। प्रतिनिधि सभा इस तथ्य को रेखांकित करना चाहती है कि इस सारे क्षेत्र की एक सांझी संस्कृति, इतिहास एवं सामाजिक सम्बंध हैं जिसके चलते एक जगह हुई कोई भी उथल पुथल सारे क्षेत्र में अपना प्रभाव उत्पन्न करती हैं। प्रतिनिधि सभा का मानना है कि सभी जागरूक लोग भारत और पड़ौसी देशों की इस सांझी विरासत को दृढ़ता देने की दिशा में प्रयास करें।

यह उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश के हिंदू समाज ने इन अत्याचारों का शांतिपूर्ण, संगठित और लोकतांत्रिक पद्धति से साहसपूर्वक विरोध किया है। यह भी प्रशंसनीय है कि भारत और विश्वभर के हिंदू समाज ने उन्हें नैतिक और भावनात्मक समर्थन दिया है। भारत सहित शेष विश्व के अनेक हिंदू संगठनों ने इस हिंसा के विरुद्ध आंदोलन एवं प्रदर्शन किए हैं और बांग्लादेशी हिंदुओं की सुरक्षा व सम्मान की मांग की है। इसके साथ ही विश्व भर के अनेक नेताओं ने भी इस विषय को अपने स्तर उठाया है।

भारत सरकार ने बांग्लादेश के हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के साथ खड़े रहने और उनकी सुरक्षा की आवश्यकता को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई है। उसने यह विषय बांग्लादेश की आंतरिक सरकार के साथ साथ कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठाया है। प्रतिनिधि सभा भारत सरकार से अनुरोध करती है कि वह बांग्लादेश के हिंदू समाज की सुरक्षा, गरिमा और सहज स्थिति सुनिश्चित करने के लिए वहां की सरकार से निरंतर संवाद बनाए रखने के साथ साथ हर सम्भव प्रयास जारी रखे।

प्रतिनिधि सभा का मत है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों व वैश्विक समुदाय को बांग्लादेश में हिंदू तथा अन्य अल्प संख्यक समुदायों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार का गम्भीरता से संज्ञान लेना चाहिए और बांग्लादेश सरकार पर इन हिंसक गतिविधियों को रोकने का दबाव बनाना चाहिए। प्रतिनिधि सभा हिंदू समुदाय एवं अन्यान्य देशों के नेताओं से तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से आह्वान करती है कि बांग्लादेशी हिंदू तथा अन्य अल्पसंख्यक समाज के समर्थन में एकजुट होकर अपनी आवाज उठाएं।”

यह प्रथम बार नहीं है कि भारत के किसी सांस्कृतिक संगठन ने विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के नागरिकों के हित में आवाज उठाई है। बल्कि, पूर्व में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बांग्लादेश में हिंदुओं एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर हो रहे अत्याचार की बात विभिन्न मंचों पर करता रहा है। क्योंकि, यह पूरे विश्व के हित में है कि हिंदू सनातन संस्कृति को पूरे विश्व में फैलाया जाय ताकि पूरे विश्व में ही शांति स्थापित हो सके। इसके साथ ही, वैश्विक पटल पर भी संघ का कार्य द्रुत गति पकड़ता दिखाई दे रहा है। विश्व के अन्य देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ कार्य कर रहा है। आज विश्व के 53 देशों में 1,604 शाखाएं एवं 60 साप्ताहिक मिलन कार्यरत हैं। पिछले वर्ष 19 देशों में 64 संघ शिक्षा वर्ग लगाए गए। विश्व के 62 विभिन्न स्थानों पर संस्कार केंद्र भी कार्यरत हैं। जर्मनी से इस वर्ष 13 विस्तारक भी निकले हैं। इस प्रकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उक्त प्रयासों की जितनी प्रशंसा की जाय उतनी कम है।

अपने भाग्य पर इठलाता मैं राजस्थान हूं…….

मैं राजस्थान हूं। प्राचीनतम सिंधु सभ्यता के चिन्ह के साथ राजस्थान निर्माण से पहले मुझे राजपुताने के नाम से जाना जाता था। राजपूताने में 19 राजाओं की रियासतें, 3 ठिकाने और अंग्रेज एजेंसी अजमेर – मेरवाड़ा मेरी पहचान थे। मारवाड़, मेवाड़, शेखावाटी, हाड़ोती, ढूंढाड़ी, मेवात आदि मेरे क्षेत्रीय उप नाम और बोलियां आज तक प्रचलन में हैं। आजादी के बाद देशी रियासतों को सात चरणों में मिला कर 30 मार्च 1949 को मेरा नामकरण राजस्थान हो गया। ज्यादा दिन नहीं बीते प्रशासनिक रूप से 7 संभाग और 33 जिलों से मेरा दिल धड़कता था। मेरे दिल की धड़कन बढ़ कर अब 7 संभाग और 41 जिलों में हो गई है।
मुझे गर्व है, मैं एक ऐसा रंगीला प्रदेश हूं जिसके अंक में समाई त्याग, बलिदान और शौर्य की कहानियों और कला- संस्कृति की गूंज पूरी दुनिया में है। विश्व की सबसे प्राचीन सिन्धु घाटी सम्यता और वैदिक सभ्यता का जन्म स्थल सप्त – सैन्धव प्रदेश का गौरवगान करने वाली सरस्वती नदी,विश्व की सर्वाधिक प्राचीन अरावली पर्वत श्रृखलाओं, विश्व के एक मात्र युवा थार के मरुस्थल और रगो में दौड़ती चंबल सरिकी नदियों से मैं गौरवान्वित हूं।
रत्नगर्भा मेरी कोख से उत्पन्न खनिजों से मैं दुनिया को संवरता हूं। ताजमहल जैसी दुनिया की अनेक प्रसिद्ध इमारतों से मेरी संगमरमर की खानें अपने भाग्य पर इठलाती उठती हैं। प्राकृतिक खूबसूरती, जैव विविधता और नाना विध वनस्पति मेरे वनों की शान और श्रृंगार है। मेरे आंचल में समाए पहाड़ी किले, लुभावने महल, कलात्मक हवेलियां, मंदिर, छतरियाँ अन्य स्मारक, रुपहली संस्कृति का दर्शन कराते संग्रहालय और वर्षभर मनाए जाने वाले सांस्कृतिक उत्सवों देखने जब विश्व के सैलानी आते हैं तो मैं अपने राजस्थान होने पर फूला नहीं समाता हूं।
मेरी भूमि की शान इतनी निराली है कि यहां जन्म लेकर जहां वीरों ने मेरा गौरव बढ़ाया वहीं कलाविदों, साहित्यकारों और संतो ने साहित्य ,संस्कृति एवं कला के क्षेत्रों की श्री वृद्धि में अपना योगदान दिया और भक्ति की सरिता प्रवाहित की है। वीर प्रसूता भूमि के वीरों ने देश की रक्षा में शहीद हो कर और मारवाड़ी बेटों ने देश–विदेश में व्यापार के क्षेत्र में मेरा लोहा मनवाया। पृथ्वीराज चौहान, राणाकुम्भा, महाराणा प्रताप, दुर्गादास तथा सवाई जयसिंह जैसी रणभूमि की संतानों पर मुझे नाज है। भामाशाह की निःस्वार्थ सेवा, पद्मिनी के जौहर और पन्नाधाय के त्याग मेरी अमिट गाथाएं हैं। साहित्य सृजन और चिंतन परम्परा को जीवित रखने में महाकवि चंद्र बरदायी, सूर्यमल्ल मिशन, कृष्णभक्त मीरा और संत दादू की स्मृतियां मेरी पहचान हैं।
अभिमान से गर्वित होता हूं जब मेरी शौर्य भूमि के बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टाॅड लिखता है “राजस्थान में ऐसा कोई राज्य नहीं जिसकी अपनी थर्मोपोली न हो और कोई ऐसा नगर नहीं जिसने अपने लियोनिडास पैदा नहीं किया हो। राजस्थान की भूमि पर ही खानवा का इतिहास प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया जिसने भारत के इतिहास को पलट कर रख दिया । इसी राज्य ने मालदेव, चन्द्रसेन और महाराणा प्रताप जैसे वीर दिये हैं जिन्होंने ने सदैव मुगलों से लोहा लेकर प्रदेश की रक्षा की। मालदेव को पराजीत कर शेरशाह सूरी यह कहने को मजबूर हुआ कि खैर हुई वरना मुट्ठी भर बाजरे के लिये मैं हिन्दुस्तान की सल्तनत खो देता ।”
मेरी इंद्रधनुषी सांस्कृतिक थाती का इससे बड़ा गौरव क्या होगा कि कला – संस्कृति और पर्यटन की गूंज यूरोप और अमेरिका तक है। मरूघरा के बंधेज, अजरक और सांगानेरी प्रिंट के वस्त्र, ब्लू पोट्री, हाथीदांत और चंदन के शिल्प, स्वर्ण पर मीनाकारी, कठपुतली, लाख के  चूड़े जैसे हस्तशिल्प ने विदेशी बाजारों में धूम मचा रखी है। विदेशी बालाएं जब राजस्थानी बंधेज पहनकर सड़कों पर चलती है तो सबकी निगाहें उन पर टिक जाती हैं। घूमर नृत्य को पूरे प्रदेश में नृत्यों का सिरमौर नृत्य होने का गौरव प्राप्त है।
कामड जाति का तेरहताली नृत्य, सहरियों का शंकर नृत्य नाटिका, कंजर बालाओं का चकरी नृत्य और गुलाबो का कालबेलिया नृत्य विदेशों तक धूम मचाई है। अलगोजा, रावण हत्था, मोरचंग, भपंग, और खड़ताल जैसे वाद्यों की तान के साथ बिखरती संगीत की स्वर लहरियों से मेरा रोम – रोम खिल उठता है। आंचलिक कलाकारों के लोक रंगों, ऊंट – घोड़ों के करतबों, साहसिक गतिविधियों, परम्पराओं और विविध कार्यक्रमों से रोमांचित करता माउन्ट आबू का ग्रीष्मा उत्सव और शरद उत्सव, जैसलमेर का मरू उत्सव, बीकानेर का ऊंट उत्सव, पुष्कर का कार्तिक माह का पशु मेला, जयपुर की तीज और गणगौर उत्सव, उदयपुर का मेवाड़ उत्सव, शिल्पग्राम उत्सव, डूंगरपुर का बेणेश्वर मेला, खाटूश्याम जी का मेला, रामदेवरा मेला एवं कोटा का दशहरा मेला उत्सव मेरी शान हैं। मेरा सौभाग्य है कि लोक नृत्य, लोक संगीत और लोक नाट्य के सांस्कृतिक परिवेश के सुनहरे संसार से संपन्न भूमि पर आने वाले सैलानियों को स्वर्गिक आनंद की अनुभूति करा कर सैलानियों का स्वर्ग कहलाने लगा हूं।
सामाजिक और धार्मिक समरसता मेरी अपनी अनूठी विशेषता है। सभी धर्मों और संप्रदाय के अनुयाई हर जाति के लोग और आदिवासी मेरी वसुंधरा पर समान रूप से फलते – फूलते हैं। लोक देवताओं और लोक देवियों के साथ-साथ पौराणिक कथाएं एवं किवदंतियों की मेरी अंतहीन परंपरा है। सभी एक दूसरे के पर्व और त्योहारों में शामिल होकर मुझे सौहार्द की जननी बना देते हैं। पुष्कर राज और इसका विश्व में एकमात्र ब्रह्माजी का मन्दिर, अजमेर में सूफी सन्त ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, श्रीगंगानगर में बुड्ढा जोहड़ गुरुद्वारा, रणकपुर और देलवाड़ा के जैन मंदिर विश्व में मेरी पहचान बनकर सामाजिक समरसता की सरिता प्रवाहित करते हैं।
शूरवीरता, त्याग, बलिदान की गाथाओं को समेटे स्थापत्य कला के प्रतीकों और राजाओं की अचूक सुरक्षा व्यवस्था के गवाह चित्तौड़गढ़, जैसलमेर,कुंभलगढ़, आमेर, सवाईमाधोपुर और जल दुर्ग गागरोन के किलों, देश – विदेश के पक्षियों के कलरव से चहचहाते भरतपुर का घाना पक्षी विहार राष्ट्रीय उद्यान, खगोल विद्या का साहकार  जंतरमंतर और जयपुर की खूबसूरत चारदीवारी शहर के साथ – साथ सांभर झील के पारिस्थतिकी तंत्र को भी वर्ल्ड हैरिटेज साइट के रूप में यूनेस्को ने विश्व विरासत में शामिल कर दुनिया में मेरा नाम किया है।
बाघों की दहाड़ से गूंजता सवाईमाधोपुर का रणथम्भौर का बाघ अभयारण्य, पिंक सिटी और हवामहल के रूप में विख्यात जयपुर, गुरु शिखर की ऊंची चोटी अंक में समाए एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू, झीलों की नगरी और सर्वश्रेष्ठ हनीमून सिटी उदयपुर, रेतीले धोरों और ऊंट सफारी के लिए विख्यात जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर ने पर्यटन में मेरी खास पहचान बनाई है।
आज मेरा वर्तमान इतना स्वप्निल है कि कभी पिछड़े राज्य, रेगिस्तान और सांप सपेरों की मेरी पहचान बदल कर विकासशील राज्यों में हो गई है। हर क्षेत्र में मुझे समृद्ध बनाने में प्रथम मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा तक मेरी माटी के 15 सपूतों ने अपना अमिट योगदान दिया। इस दौरान चार बार राष्ट्रपति शासन का दौर भी मैंने देखा। आत्मनिर्भर और सुदृढ़ भारत में आज मेरा स्वर्णिम इतिहास, कला – संस्कृति, विकास एवं प्रगति के सोपान और पर्यटन में सिरमौर बनना मेरा सौभाग्य ही तो है। इठलाता हूं अपने भाग्य पर मै राजस्थान हूं।
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
( लेखक पिछले 45 वर्षों से पर्यटन, कला, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व और साहित्य विषयों पर निरंतर लिख रहे हैं )

11,562 फीट की ऊंचाई पर योग: राष्ट्रीय सोवा-रिग्पा संस्थान का लेह में विशेष कार्यक्रम संपन्न

आयुष मंत्रालय के तहत लेह स्थित स्वायत्त संस्थान राष्ट्रीय सोवा-रिग्पा संस्थान (एनआईएसआर) ने 25 मार्च को संस्थान परिसर में एक विशेष योग कार्यक्रम का आयोजन किया। यह संस्थान सोवा-रिग्पा के संरक्षण, संवर्धन और विकास के लिए है। योग के इस कार्यक्रम को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस – 2025 की 100 दिवसीय उल्टी गिनती कार्यक्रम के तहत आयोजित की जा रही गतिविधियों के एक भाग के रूप में संपन्न किया गया।

हिमालय की गोद में 11,562 फीट (3,524 मीटर) की ऊंचाई पर अपने कर्मचारियों और छात्रों सहित एनआईएसआर की टीम ने आयुष मंत्रालय के मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान की और से विकसित सामान्य योग प्रोटोकॉल (सीवाईपी) के अनुसार योग सत्र का आयोजन किया।

इस आयोजन के लिए बर्फ से ढकी चोटियों, ठंडी पहाड़ी हवा और शांति के माहौल के साथ लेह में एकदम सही जगह मिली। एनआईएसआर की निदेशक डॉ. पद्मा गुरमेत ने कहा, “योग महज एक अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन का एक तरीका है जो शरीर और मन दोनों को पोषित करता है। आज की तेज़-रफ़्तार दुनिया में, योग आंतरिक संतुलन, मानसिक स्पष्टता और शारीरिक तंदुरुस्ती हासिल करने का एक शक्तिशाली उपकरण है। योग के माध्यम से, हम न केवल लोगों के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए लचीलापन, सद्भाव और समग्र स्वास्थ्य विकसित करते हैं। लेह की राजसी ऊंचाइयों पर, हम इस बात की पुष्टि करते हैं कि योग सीमाओं से परे है, जो हमें तंदुरुस्ती और शांति की खोज में एकजुट करता है।”

महाबोधि अंतर्राष्ट्रीय योग और ध्यान केंद्र लेह की योग प्रशिक्षक सुश्री त्सावांग ल्हामो ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। उन्होंने कहा, “योग शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक संतुलन को बढ़ावा देकर हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। योग के नियमित अभ्यास से लचीलापन बढ़ता है, मांसपेशियां मज़बूत होती हैं, तनाव कम होता है और समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह मन की शांति को भी बढ़ावा देता है, जिससे व्यक्ति को रोज़मर्रा की ज़िंदगी की चुनौतियों के बीच आंतरिक शांति और सामंजस्य बनाए रखने में मदद मिलती है।”

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस – 2025 के लिए 100 दिनों की उल्टी गिनती का उद्घाटन आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री प्रतापराव जाधव ने नई दिल्ली में आयोजित ‘योग महोत्सव- 2025’ के दौरान किया था। उद्घाटन कार्यक्रम के दौरान आयुष मंत्री ने यह भी बताया था कि इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की गतिविधियां वैश्विक आयोजन के 11वें संस्करण को चिह्नित करने के लिए 10 अद्वितीय हस्ताक्षर कार्यक्रमों के इर्द-गिर्द घूमेंगी, जो इसे सबसे व्यापक और समावेशी बनाती हैं:

योग संगम – 10,000 स्थानों पर समन्वित योग प्रदर्शन, जिसका लक्ष्य विश्व रिकार्ड बनाना है ।
योग बंधन – प्रतिष्ठित स्थलों पर योग सत्र आयोजित करने के लिए 10 देशों के साथ वैश्विक साझेदारी।
योग पार्क – दीर्घकालिक सामुदायिक सहभागिता के लिए 1,000 योग पार्कों का विकास।
योग समावेश – दिव्यांगजनों, वरिष्ठ नागरिकों, बच्चों और हाशिए पर पड़े समूहों के लिए विशेष योग कार्यक्रम।
योग प्रभाव – सार्वजनिक स्वास्थ्य में योग की भूमिका पर एक दशकीय प्रभाव मूल्यांकन।
योग कनेक्ट – एक वर्चुअल वैश्विक योग शिखर सम्मेलन जिसमें प्रसिद्ध योग विशेषज्ञ और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर शामिल होंगे।
हरित योग – एक स्थिरता-संचालित पहल जिसमें योग को वृक्षारोपण और सफाई अभियान के साथ जोड़ा गया है।
योग अनप्लग्ड – युवाओं को योग की ओर आकर्षित करने का एक कार्यक्रम।
योग महाकुंभ – 10 स्थानों पर एक सप्ताह तक चलने वाला उत्सव, जिसका समापन प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक केंद्रीय समारोह के साथ होगा।
संयोगम् – समग्र स्वास्थ्य के लिए आधुनिक स्वास्थ्य सेवा के साथ योग को जोड़ने वाली 100 दिवसीय पहल।

दंगाईयों से प्रशासन को ऐसे निपटना चाहिए

जो दंगा करते हैं, उनके विरुद्ध पुलिस कार्रवाई ऐसी प्रतीत होती है मानो यह एक विभागीय कार्य है।

जबकि दंगा राज्य को चुनौती है, इसलिए दंगाइयों से राज्य के द्वारा प्रदत्त सभी सुविधाओं और स्वीकृतियों की वापसी होना चाहिए। राज्य के सारे उपादानों का प्रतिसंहरण ( रिवोकेशन)।

माने आप दंगा करें तो आपके पास आर्म्स लाइसेंस क्यों रहना चाहिए?

माने जब आप अपना पेट दंगे से ही भर ले रहे हो तो आपको फूड लाइसेंस या मंडी लाइसेंस की भी जरूरत ही क्या है और राशन कार्ड का भी आप क्या ही करोगे?

जब आपको सड़क पर ही निपटना है तो आपको दी गयी भवन अनुज्ञा भी बेमानी ही है।

जब आपको दूसरों के वाहन ही जलाकर मज़ा आ गया तो आपको अपने ड्राइविंग लाइसेंस की आवश्यकता ही क्या और आप स्वयं भी कोई वाहन धारण करने से हमेशा के लिए निरर्ह क्यों न हो जाओ?

कब्र खोदना यदि आपके लिए शान्ति भंग का मुद्दा है तो आपके पास कोई खनिज लाइसेंस क्यों चाहिए?

जब लोकतंत्र के माध्यमों पर भरोसा नहीं है तो आपको निर्वाचनाधिकार से वंचित करना आपके कर्मों की सहज परिणति क्यों न हो?

आप बसी बसाई बस्तियों में हुड़दंग मचाओ तो आपके पास कॉलोनाइजर लाइसेंस कैसे रहना चाहिए और आप एक सहजीवन के लिए निर्योग्य क्यों न हो गये?

आप अपने आपे से बाहर हो गए तो आपका अतिक्रमण क्यों न देखा जाये?

और आपके अतिक्रमण के नियमितीकरण के लिए दिये गये पट्टे की भी वैधता क्यों रहे जब आप नियमों को मानने के लिए तैयार न हो?

आपके लिए आगजनी ही प्रकाश है तो आपको विद्युत सुविधा की आवश्यकता ही क्या है?

जब पत्थर ही आपको रोज़गार दे रहा है तो आपको अन्य किसी रोज़गार की वैसे भी क्या पड़ी?

दूसरों की संपत्ति आप नष्ट करो तो आपको संपत्ति का कोई अधिकार क्यों रहे?

जब आपकी अक़्ल पर पत्थर पड़ ही गये हैं तो आप उच्चतर शिक्षा के लिए अपात्र हो ही गये।

दंगा बेशर्मी का एक पब्लिक डिस्प्ले है तो आप  पब्लिक गुड्स पर किसी वैध अधिकार का दावा कैसे कर सकते हो?

जब सभ्याचार करना नहीं आता तो सभ्यता के लाभांशों के लायक नहीं रह गये आप।

राज्य दंगों को एक कंपार्टमेंटलाइज्ड तरह से कब तक देखता रहेगा ?!?

दंगाइयों को अदालतों का भय नहीं है क्योंकि वहाँ तो उनके विरोधी गवाहों को पक्षशत्रु होने के लिए बाध्य करने की कला उन्हें आ गई है।

दंगे की pigeonholing से, उसकी पिंजरबद्धता से बाहर निकलिए क्योंकि दंगाई बाहर निकल आये हैं।

बताइये कि खुलेआम हिंसा करने वालों के पाँवों के नीचे की ज़मीन कैसे तंग की जाती है।

(लेखक मप्र के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं, और कई पुस्तकें लिख चुके हैं। वर्तमान में  मप्र के चुनाव आयुक्त हैं और भोपाल  से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका अक्षरा के संपादक हैं)