Wednesday, November 27, 2024
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मोदीजी के भाई ने मोर्चा खोला सरकार के खिलाफ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी ये नहीं सोचा होगा कि उनकी सरकार के लिए एक फैसले का विरोध उनके अपने भाई ही कर देंगे। लेकिन ऐसा हुआ है। पीएम मोदीजी के छोटे भाई प्रह्लाद मोदी ने मुंबई के आजाद मैदान में प्रदर्शन किया। पीडीएस के मुद्दे पर केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ मोदी के भाई सड़क पर उतरे।
 
प्रह्लाद मोदी, ऑल इंडिया फेयर प्राइस शॉप डीलर्स फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। उन्होंने न केवल केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठाई बल्कि अपने भाषण में सरकार पर जमकर निशाना भी साधा।
 
उन्होंने कहा कि पीडीएस नीति का फायदा गरीबों तक नहीं पहुंच रहा है। साथ ही इस मुद्दे पर संस्था ने दिल्ली के जंतर-मंतर और रामलीला मैदान में भी आवाज बुलंद करने की योजना बनाई है। डीएस सिस्टम में अनाज और केरोसिन की आपूर्ति ठीक से नहीं होने और गरीबों तक इसका फायदा नहीं पहुंचने के खिलाफ ही संस्था ने आजाद मैदान में प्रदर्शन किया। 
 
इस मुद्दे पर प्रह्लाद मोदी ने कहा कि हां, मैं नरेंद्र मोदी का भाई हूं। लेकिन मैं इस संगठन से तब से जुडा़ हुआ हूं जब मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे। मेरा प्रदर्शन मेरे भाई या प्रधानमंत्री के खिलाफ नहीं है। मैं केवल नीतियों और जरूरतमंदों की आवाज को बुलंद कर रहा हूं। 
 
दूसरी ओर संस्था के अध्यक्ष पुष्पराज देशमुख (काका) ने बताया कि उनकी संस्था 17 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान और जंतर-मंतर पर विशाल प्रदर्शन करेगी। जिसमें इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया जाएगा। ऑल इंडिया फेयर प्राइस शॉप डीलर्स फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुष्पराज देशमुख ने बताया कि इस प्रदर्शन के पीछे अहम वजह स्टॉक की आपूर्ति का है।
 
फूड सिक्योरिटी एक्ट के लागू होने के बाद से अनाज और केरोसिन की आपूर्ति पर बुरा असर पड़ा है। करीब 30 फीसदी का अंतर देखने को मिला है। साथ ही केरोसिन के दाम में भी अंतर आया है और इसके दाम बढ़ाकर वसूले जा रहे हैं।
 
प्रदर्शन के दौरान उन्होंने महाराष्ट्र सरकार से अपील की है कि वो प्रदेश की 1.77 करोड़ की आबादी के लिए जरूरी सब्सिडी की आपूर्ति की जाए। ये ऐसे लोग जो गरीबी रेखा के ऊपर हैं। उन्हें भी इस सब्सिडी का फायदा मिल सके।
 
साथ ही संस्था ने यूपीए सरकार की नीतियों के खिलाफ भी नाराजगी जताई और मोदी सरकार के इस पर सर्वेक्षण के बाद फैसला लेने की अपील की है।

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श्री मोहन भागवत ने गलत क्या कहा?

‘भागवत ने यह तो नहीं कहा कि मदर टेरेसा सेवा नहीं करती थीं या उनकी सेवा ढोंग थी। उन्होंने सिर्फ यही कहा कि उनकी सेवा के पीछे मुख्य भाव अभावग्रस्त लोगों को ईसाई बनाना था। इसमें भागवत ने गलत क्या कहा है?’ हिंदी दैनिक अखबार नया इंडिया में छपे अपने आलेख के जरिए ये कहना है वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक का। उनका पूरा आलेख आप यहां पढ़ सकते हैं:
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत के बयान पर हमारे कुछ सेक्युलरिस्ट बंधु काफी उखड़ गए हैं। मोहन भागवत ने ऐसा क्या कह दिया है? क्या उन्होंने मदर टेरेसा पर कोई आरोप लगाया है? क्या उनके बारे में कोई ओछी बात कही है? क्या उन्होंने कोई गलतबयानी की है? क्या उन्होंने तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा है? क्या उन्होंने मदर टेरेसा का चरित्र-हनन किया है? उन्होंने तो ऐसा कुछ नहीं किया है। उन्होंने सिर्फ एक तथ्यात्मक बयान दिया है, जिसे मैं 100 टंच की चांदी कह सकता हूं या 24 कैरेट का सोना कह सकता हूं। उसमें रत्तीभर भी मिलावट नहीं है। यदि मदर टेरेसा जीवित होती तो वे भी इस बयान से पूर्ण सहमत होतीं।
 
भागवत ने यह तो नहीं कहा कि मदर टेरेसा सेवा नहीं करती थीं या उनकी सेवा ढोंग थी। उन्होंने सिर्फ यही कहा कि उनकी सेवा के पीछे मुख्य भाव अभावग्रस्त लोगों को ईसाई बनाना था। इसमें भागवत ने गलत क्या कहा है? क्या वे लोगों को ईसाई बनने के लिए प्रेरित नहीं करती थीं? वे अपनी सेवाएं देने के लिए भारत ही क्यों आई? अमेरिका क्यों नहीं गईं? वे यूरोप में पैदा हुई थीं। यूरोप के ही किसी देश में क्यों नहीं गईं? स्वयं उनका अपना देश अल्बानिया यूरोप के पिछड़े हुए देशों में था। वे वहीं रहकर गरीबों की सेवा क्यों नहीं कर सकती थीं? उनका लक्ष्य गरीबों की सेवा नहीं था। उनका लक्ष्य गरीबों को ईसाई बनाना था। सेवा तो उस लक्ष्य को प्राप्त करने का एक साधन-भर थी। ये अलग बात है कि वह सेवा वे दिल लगाकर करती थीं।
 
यदि शुद्ध न्याय की दृष्टि से देखा जाए तो इस तरह की सेवा एक प्रकार की आध्यात्मिक रिश्वत है। आपने किसी की सेवा की याने आपने उसे अपनी सेवा दी और बदले में उसका धर्म ले लिया। इससे बड़ा सौदा क्या हो सकता है? मैं कहता हूं कि इससे बड़ी अनैतिकता क्या हो सकती है? जो धर्म आप पर लाद दिया गया है, उससे बड़ा अधर्म क्या है? पैसे या तलवार के जोर पर जो धर्म-परिवर्तन किया जाता है, उससे बढ़कर पाप-कर्म क्या हो सकता है? स्वयं इस धर्म-परिवर्तन को यदि ईसा मसीह देख लेते तो अपना माथा ठोक लेते। यदि कोई ईसा के व्यक्तित्व पर मुग्ध हो जाए, बाइबिल के पर्वतीय उपदेश से प्रेरित हो जाए, बाइबिल के दृष्टांतों से प्रभावित हो जाए और इसी कारण ईसाई बन जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं है। ऐसे धर्म-परिवर्तन का मैं विरोध नहीं करुंगा। लेकिन विदेशी पादरी भारत क्यों आते हैं? सिर्फ इसलिए आते हैं कि यह उनकी सुरक्षित शिकार-भूमि है। मदर टेरेसा इसकी अपवाद नहीं थीं।
 
उन्हें आप नोबेल पुरस्कार दे दें या भारत रत्न दे दें या विश्व-रत्न दे दें, उससे क्या फर्क पड़ता है? किसी भी पुरस्कार या पद के कारण कोई झूठ, सच नहीं बन जाता। सच के सामने सभी पुरस्कार फीके पड़ जाते हैं। एक से एक अयोग्य लोगों को नोबेल पुरस्कार और भारत-रत्न पुरस्कार मिले हैं। इन पुरस्कारों को कवच बनाकर आप दिन को रात और रात को दिन नहीं बना सकते।
 
 (लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)
 
(साभार: नया इंडिया)

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हर काम के लिए किसानों की जमीन ही क्यों छीनी जाती है

कई साल पहले का एक वाकया मुझे याद आता है। तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक वार्षिक कॉर्पोरेट पुरस्कार समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। उनके संबोधन के बाद वक्त दर्शकों की ओर से सवाल उठाने का आया। उद्योगपति आनंद महिंद्रा खड़े हुए और उन्होंने एक सवाल पूछा। सवाल कुछ इस तरह था – मिस्टर प्राइम मिनिस्टर, आईआईएम से स्नातक करने वाले एक युवा को आज के माहौल को किस तरह देखना चाहिए, खासकर यह जानते हुए कि मौजूदा माहौल व्यावसायिक जगत को आकर्षित करने वाला नहीं है? इस सवाल पर मनमोहन सिंह ने जो जवाब दिया, उसका सार यह था कि हम विशिष्ट जोन बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, ताकि युवा उद्यमियों को जरूरी लाभ और समर्थन मिल सके। विशेष आर्थिक जोन एक ऐसा विचार है, जिसका समय आ चुका है।

एसईजेड एक्ट 2005 में पारित किया गया था। तब इसको लेकर माहौल में इस कदर उत्साह था कि भूमि अधिग्रहण को लेकर सभी किसान आंदोलनों को बिना कुछ सोचे-विचारे खारिज कर दिया गया था। सात वर्ष बाद एसईजेड एक खराब विचार के रूप में सामने आया। अब एक आर्थिक प्रकाशन के अनुसार एसईजेड वह विचार है, जिसका समय कब का निकल चुका है। अपने देश में एसईजेड के नाम पर जो भूमि अधिग्रहीत की गई, उसका पचास प्रतिशत से अधिक हिस्सा इस्तेमाल ही नहीं किया जा सका। जो कुछ हुआ भी, उससे रोजगार सृजन अथवा निर्यात बढ़ाने की दिशा में कोई लाभ हासिल नहीं हुआ। जिन एसईजेड को मंजूरी दी गई, उनमें से ज्यादातर रियल एस्टेट के लिए स्वर्ग बन गए हैं। उन्होंने उत्पादन क्रांति की दिशा में कोई योगदान नहीं दिया। इनका इस्तेमाल आईटी कंपनियों ने किया, ताकि उन्हें टैक्स में छूट का लाभ मिल सके। इसके लिए उन्हें बस अपने दफ्तर एसईजेड में स्थापित करने थे।

जून 2007 में संसद की एक स्थायी समिति ने 2005 से 2010 के बीच टैक्स रियायतों के चलते 1.75 लाख करोड़ के राजस्व नुकसान का अनुमान लगाया था। 2007 से 2013 के बीच एसईजेड के कामकाज का विश्लेषण करने वाली कैग रिपोर्ट को पढ़ते ही पता चल जाता है कि एसईजेड घोटाला कितना बड़ा है। जिन 576 एसईजेड परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, उनमें से 392 ही अधिसूचित हुईं और उनमें भी केवल 170 में काम चल रहा है। मौजूदा एसईजेड में 48 प्रतिशत एसईजेड ही निर्यात गतिविधियों में लगे हुए हैं और 2013-14 में कुल निर्यात का केवल 3.8 प्रतिशत ही इन क्षेत्रों से आया।

एसईजेड के विकास के लिए कुल 45,635 हेक्टेयर जमीन अधिसूचित की गई, पर केवल 28,488 हेक्टेयर में ही वास्तविक कामकाज शुरू हुआ। इसका मतलब है कि 62 प्रतिशत जमीन का ही इस्तेमाल किया जा सका। कैग ने अपनी सख्त प्रतिक्रिया में कहा है कि सरकार द्वारा लोगों से जमीन का अधिग्रहण संपत्ति के ग्रामीण क्षेत्रों से कॉर्पोरेट दुनिया में स्थानांतरण का बड़ा जरिया बन रहा है। एक ओर पचास प्रतिशत अधिग्रहीत जमीन बिना इस्तेमाल के पड़ी हुई है तो दूसरी ओर तमाम डेवलपरों ने अन्य औद्योगिक गतिविधियों में जमीन का इस्तेमाल आरंभ कर दिया है या वे रियल एस्टेट हब बना रहे हैं। कहीं-कहीं तो उन्होंने पैसा जुटाने के लिए जमीन को गिरवी रख दिया है।

कितना विचित्र है कि वाणिज्य मंत्रालय ने इस कुप्रबंधन और एसईजेड एक्ट के दुरुपयोग पर आंखें फेर ली हैं। मंत्रालय अब इस पर विचार कर रहा है कि डेवलपरों को भवन, स्कूल और अस्पताल उन लोगों को बेचने की अनुमति दे दी जाए, जो इन विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों से बाहर रहते हैं। जमीन का इस्तेमाल रिहायशी परिसरों के निर्माण के लिए भी किया जा रहा है अथवा ऐसी अन्य औद्योगिक गतिविधियों में, जिनकी एसईजेड एक्ट में अनुमति नहीं दी गई है।

सभी तरह की कर रियायतों का क्या मतलब है, इसका अंदाजा लगाने के लिए कुछ बातों को जान लेना जरूरी है। एसईजेड को पूरी तरह एक्साइज ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी, सेल्स टैक्स, मंडी टैक्स, टर्नओवर टैक्स से छूट दी गई। दस वर्ष के लिए आयकर से भी छूट दी गई। सौ फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए प्रावधान बनाए गए और इंफ्रास्ट्रक्टर कैपिटल फंड तथा व्यक्तिगत निवेश पर आयकर से छूट दी गई। साथ ही कंपनियों को चौबीसों घंटे बिजली-पानी आपूर्ति का आश्वासन भी दिया गया। एसईजेड प्रमोटरों को पर्यावरण प्रभाव आकलन न कराने की सुविधा भी प्रदान कर दी गई। यह समझ पाना मुश्किल है कि टैक्स रियायत में इतनी दरियादिली और भूमि का अंबार होने के बावजूद एसईजेड काम क्यों नहीं कर सके? यह सवाल इसलिए और महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि एक नया भूमि अधिग्रहण कानून केवल इस कारण लाया जा रहा है कि उद्योगों के लिए भूमि हासिल करने में जरूरत से ज्यादा देरी हो रही है।

अगर 45635 हेक्टेयर जमीन उपलब्ध होने और उस पर कर चुकाने की बाध्यता न होने के बावजूद उद्योग नाकाम साबित हुए तो क्या गारंटी है कि उद्योगों के लिए और जमीन जुटा लेने से उत्पादन के मामले में कोई क्रांति हो जाएगी? जिस हड़बड़ी में एसईजेड एक्ट पारित किया गया और जितनी सुगमता से वाणिज्य मंत्रालय ने नियम तैयार कर इसका क्रियान्वयन शुरू कर दिया, उसकी मिसाल मिलना कठिन है।

इससे पता चल जाता है कि आर्थिक नीतियां कैसे बनती हैं और उन पर अमल के लिए किस तरह जल्दबाजी में ढांचा तैयार कर लिया जाता है। इस तरह का घोटाला दोबारा न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए मेरे पास दो सुझाव हैं। सबसे पहले तो उस समय के वाणिज्य मंत्री और संबंधित अधिकारियों को एसईजेड स्कैंडल के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। दूसरे, गड़बड़ी करने वाली कंपनियों को काम सही तरह न कर पाने के लिए दंडित किया जाना चाहिए। उनसे जमीन और दूसरे संसाधनों की वसूली जुर्माने के साथ की जानी चाहिए। उद्योग जगत को अहसास कराया जाना चाहिए कि मुफ्त में उन्हें कुछ नहीं दिया जा सकता। इस तरह के सही संदेश से ही उद्योग जगत को सबक मिलेगा।

-लेखक कृषि व खाद्य मामलों के विशेषज्ञ हैं।

साभार- http://naidunia.jagran.com/ से 

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सरकारी बाबू अब सरकारी ई मेल का ही प्रयोग करेंगे

सरकारी काम के लिए सरकारी अधिकारी निजी ई-मेल का इस्तेमाल नहीं कर सकते। पिछले हफ्ते जारी अधिसूचना में, 'यूजर्स को सरकारी नेटवर्क से निजी ई-मेल सर्वर्स का इस्तेमाल करने से बचने को कहा गया है। आधिकारिक बातचीत के लिए केवल आई (एनआईसी पॉलिसी के तहत इंप्लिमेंटिंग एजेंसी) की तरफ से बनाए गए ई-मेल सर्विस का ही इस्तेमाल करना होगा।' 

नई नीति में अब अधिकारियों को गैर सकारी ई-मेल सर्विसेज को मेल फॉरवर्ड का भी ऑप्शन नहीं मिलेगा। अधिसूचना में कहा गया है, 'अन्य सर्विस प्रोवाइडर्स की तरफ से मुहैया कराए जाने वाले ई-मेल सर्विसेज का इस्तेमाल आधिकारिक तौर पर होने वाली बातचीत में नहीं किया जाएगा।' नई पॉलिसी केंद्र सरकार के सभी कर्मचारियों के अलावा केंद्र सरकार की तरफ से मुहैया कराए गए ई-मेल सर्विसेज का इस्तेमाल करने वाले राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के कर्मचारियों पर भी लागू होगी। एडवर्ड स्नोडेन के डेटा लीक किए जाने के बाद डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड आईटी ने नई पॉलिसी का सुझाव सामने रखा था। नई पॉलिसी के तहत अधिकारियों को दो मेल आईडी मिलेंगे, जिसमें एक उनके पोस्ट और दूसरा उनके नाम से जुड़ा होगा।

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उप राष्‍ट्रपति ने स्‍वर्गीय डॉ. नरेन्‍द्र दाभोलकर की पुस्‍तकों का हिंदी अनुवाद जारी किया

उप राष्‍ट्रपति श्री एम. हामिद अंसारी ने आज यहां एक समारोह में स्‍वर्गीय डॉ. नरेन्‍द्र दाभोलकर की पुस्‍तकों के हिंदी अनुवाद का सैट ''अंधविश्‍वास उन्‍मूलन-आचार, खंड-1', 'विचार, खंड-2, एवं 'सिद्धांत' खंड-3'' जारी किया। इनका हिंदी अनुवाद डॉ. चन्‍दा गिरीश ने किया है तथा पुस्‍तकों के एडिटर सुनील लावाटे है। इस अवसर पर उप राष्‍ट्र‍पति ने कहा कि 20 अगस्‍त 2013 को इतिहास में काला दिवस के रूप में याद किया जाएगा, जब डॉ. नरेन्‍द्र दाभोलकर की हत्‍या की गई क्‍योंकि वे लोगों को विभिन्‍न अंधविश्‍वासों के विरूद्ध जागरूक करने का प्रयास कर रहे थे। डॉ. दाभोलकर ने 'महाराष्‍ट्र अंधविश्‍वास विरोधी कानून' की वकालत की तथा उनकी मृत्‍यु के कुछ समय बाद ऐसा कानून पारित किया गया। उन्‍होंने कहा कि अंधविश्‍वास विरोधी कानून को राष्‍ट्रीय कानून बनाया जाना चाहिए। 

उनकी राय थी कि अब हमारे देश के लोगों को यह समझने की आवश्‍यकता है कि तर्कयुक्‍त सोच अविवेकी सोच से बेहतर होती है। उन्‍होंने सुझाव दिया कि इन तीन पुस्‍तकों के सैट को सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद किए जाने चाहिए तथा इन्‍हें अंधविश्‍वास के विरूद्ध युवा पीढ़ी को जागरूक करने के लिए विद्यालयों तथा महाविद्यालयों को भेजा जाना चाहिए। 

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डिस्कवरी साईंस पर देखिये विमान दुर्घटनाओँ की सच्ची कहानियाँ

डिस्कवरी साइंस अब ऐसी सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानियां ला रहा है, जो हवाई दुर्घटनाओं से जुड़ी हैं। चैनल 9 मार्च से ‘व्हाई प्लेन्स क्रैश’ नामक एक सीरीज शुरू करने जा रहा है, जिसे देखकर आप हैरान रह जाएंगे। पायलट, चालक दल और यात्री मौत से बेहद करीब से जुड़े अनुभवों को महसूस करेंगे कि जब आम उड़ानें किसी बुरे स्वप्न में बदलती हैं तो क्या होता है? 
 
इस सीरीज का प्रसारण 9 मार्च से हर सोमवार से शुक्रवार रात 10 बजे किया जाएगा।
 
यह कार्यक्रम हैरत में डालने वाली दुर्लभ फुटेज और नाटकीय मदद से निर्मित किया गया है। इस कार्यक्रम में दिखाया जाएगा कि विमान बीच हवा में कैसे टकराते हैं, अमेजॉन नदी के ऊपर एक कॉरपोरेट जैट कैसे एक 737 से टकरा जाता है, एक 747 विमान में कारगो डोर में धमाका हो जाता है और इसके अलावा भी दर्शक कई हवाई हादसे देख सकेंगे।
 
सीरीज के बारे में बताते हुए, राहुल जौहरी, एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेजिडेंट और जनरल मैनेजर – साउथ एशिया एंड साउथ ईस्ट एशिया, डिस्कवरी नेटवर्क्स एशिया पैसिफिक ने कहा, ‘डिस्कवरी साइंस चैनल प्रतिदिन के विज्ञान पर आधारित अतिउन्नति, दिलकश और विशिष्ट कार्यक्रमों को दिखाता है और कल्पना से परे जाकर सवालों के जवाब ढूंढ़ता है। व्हाई प्लेन्स क्रैश एक खोजी श्रृंखला है जो आसमान में हुए कुछ बहुत ही गंभीर हादसों से जुड़े रहस्यमय कारणों को रोशनी में लाता है।’
 
इस श्रृंखला में अलग-अलग तरह के हवाई हादसों की जांच-पड़ताल हाई क्वॉलिटी एनिमेशन के जरिए की जाएगी, ताकि उनसे जुड़ी कहानियों को बयान करना आसान हो। एक घंटे के हर एपिसोड में किसी एक खास विषय पर ध्यान लगाया जाएगा, जैसे कि खराब मौसम में उड़ान भरना, जानलेवा साबित हो सकने वाली संचार संबंधी समस्याएं, और ऐसे पायलट जो ऑटोमेशन पर कुछ ज्यादा ही निर्भर करते हैं। 
 
इस सीरीज में दिखाए जाने वाले कुछ एपिसोड इस प्रकार हैं:
 
ब्रेस फॉर इम्पैक्ट
 
इस सीरीज की शुरुआत इस बात पर नजर डालने से होती है कि आखिर किस कारण कुछ पायलट अपने विमानों को पानी में उतारने का जोखिम उठाते हैं, और वे तथा उनके मुसाफिर किस तरह इस हादसे के बावजूद जिंदा बच पाते हैं।
 
कोलिजन कोर्स
 
प्रत्यक्षदर्शी और जिंदा बचने वाले लोग हवा में टकराने वाले विमानों से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हैं, कार्यक्रम में यह भी दिखाया गया है कि किस तरह एक कॉरपोरेट जैट, अमेजॉन नदी के ऊपर एक 737 विमान से टकराया था।
 
ह्यूमन एरर
 
गलतियों, लापरवाहियों और ध्यान बंटने के गंभीर नतीजे निकल सकते हैं। इस कार्यक्रम में एक ऐसे जैट विमान को दिखाया गया है जिसका ईंधन खत्म हो गया और वह रनवे से कुछ ही किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
 
ब्रेकिंग पॉइंट
 
एक कारगो डोर में विस्फोट हो जाने से प्रशांत के ऊपर से उड़ रहे एक 747 विमान में से 9 यात्री बाहर खिंच आते हैं। इस एपिसोड में, जहाज की बनावट में अचानक पैदा हुई गड़बड़ी की ये सिर्फ एक मिसाल है, ऐसे ही एक और हादसे में टेक-ऑफ के दौरान एक डीसी-10 विमान का इंजिन ही गिर जाता है।
 
फायर इन द स्काई
 
फैडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन को पता चला है कि एक लाख फ्लाइटों में से तीन तक उड़ानों को फ्लाइट के दौरान धुएं या आग के कारण डायवर्ट करना पड़ता है, लेकिन ये स्थिति फिर भी बहुत खतरनाक मानी जाएगी। दर्शक इस एपिसोड में कुछ बहुत ही विध्वंसकारी परिणामों को देखेंगे।

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संसद में ऐसे गरजे मोदीजी पढ़िये पूरा भाषण

मैं राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्यवाद देने के लिए खड़ा हुआ हूँ। लेकिन साथ ही साथ में मैं इस सदन के माननीय सदस्यों का भी धन्यवाद करना चाहता हूं। बहुत ही अच्छी चर्चा रही। करीब-करीब 60 माननीय सदस्यों के विचारों को मुझे सुनने का मौका मिला और करीब 40 आदरणीय सदस्यों ने लिखित रूप में अपने प्रतिभाव व्यक्त किए हैं। इस अर्थ में काफी सार्थक चर्चा रही है। अनेक विषयों पर चर्चा की गई है। मैं विशेष करके विपक्ष के हमारे आदरणीय खड़गे जी और भी वरिष्ठ महानुभाव ने जो विषय रखे हैं सभी दलों के वरिष्ठ नेताओ ने रखे हैं विषय। 

राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में देश जिन समस्याओं से जूझ रहा है, उन समस्याओं के समाधान के लिए क्या प्रयास हो रहे हैं, किस दिशा में हो रहे हैं और किस गति से हो रहे हैं, उसका उल्लेख किया है। ये बात सही है कि कई आदरणीय सदस्यों को लगता होगा कि ये होता तो अच्छा होता, ये होता तो अच्छा होता। मैं इसको सकारात्मक रूप में देखता हूं और विचार व्यक्त करने वाले माननीय सदस्य, इस तरफ से हों या उस तरफ से हों, इन अपेक्षाओं का महत्व है। अपेक्षाओं का महत्व इसलिए भी है कि आपको भरोसा है कि समस्या का समाधान शायद इसी कालखंड में होगा, तो ये अच्छी बात है। 

कुछ ये भी बातें आई हैं कि भाई आप तो हमारी ही योजनाओं के ही नाम बदल रहे हो। मैं नहीं मानता हूं कि मुद्दा योजना का और योजना के नाम का है, मुद्दा समस्या का है। योजना नई है या पुरानी है इसका तो विवाद हो सकता है लेकिन इसमें कोई विवाद नहीं है कि समस्या पुरानी है और इसलिए हमें जो समस्याएं विरासत में मिली हैं, उन समस्याओं का समाधान करने के रास्ते हम खोज रहे हैं। इनको ये भी लगता है कि ये तो हमारी योजना थी, आपने नाम बदल दिया। मैं समझता हूं कि ऐसे विषयों पर आलोचना नहीं करनी चाहिए बल्कि गर्व करना चाहिए, आपको आनंद होना चाहिए कि चलो भाई समस्या के समाधान में, कुछ बातों में यहां के लोग हो या वहां के लोग हो, पहले वाले हो या नए वाले हो। सबकी सोच सही है दिशा सही है, तो ये अपने आप में अच्छी बात है मैं मानता हूं। 

दूसरा..कभी-कभार, मुझे याद है कि हम पर आलोचना का वार हुआ था, कि भई आजादी के आंदोलन में हम कहां थे; तो एक बार अटल जी ने बड़ा सटीक जवाब दिया था। अटल जी ने कहा कि- अच्छा बताओ! 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में आप कहां थे? तो ये चीजें कुछ पल तो ठीक लगती हैं। अब आप “निर्मल भारत” की चर्चा कहते हैं, वो आप कहते हैं कि आप “स्वच्छ भारत” ले आए। अब मैं पूछता हूं कि 1999 में अटल जी ने “Total Sanitation” का Project लगाया था, कार्यक्रम चालू किया था। क्या “निर्मल भारत” उसी योजना का दूसरा नाम है क्या? इसीलिए मैं समझता हूं मुद्दा ‘समस्या’ है। नाम, ये मुद्दा नहीं है और इसलिए स्वच्छता एक समस्या है हमारे देश में और स्वच्छता ज्यादा हमारी मानसिकता से जुड़ी हुई है और मैं जब स्वच्छता अभियान की बात करता हूं तब मेरे दिल-दिमाग में वो गरीब है। World Bank का रिपोर्ट कहता है कि गंदगी के कारण जो बीमारी फैलती है, औसत एक गरीब को 7 हजार रुपए का खर्च आता है और स्वच्छता की जिम्मेदारी हम सबकी ज्यादा है; और गरीब का औसत गरीब का अगर 5 का परिवार है तो 35 हजार रुपए। स्वच्छता का दूसरा संबंध है वो नारी के सम्मान के साथ है। आज भी गांव में मां-बहनों को खुले में शौच जाना पड़े, अंधेरे का इंतजार करना पड़े। इस तरफ-उस तरफ का मुद्दा नहीं है। मुद्दा हमारी माताओं-बहनों के सम्मान का है, उनको जीने के एक अधिकार देने का है और इसलिए स्वच्छता..जब उन चीजों को याद करते हैं तो कहते हैं कि- भई ये हमें करना होगा। बालिकाएं स्कलू छोड़ देती हैं! पढ़ाई छोड़ देती हैं! क्यों? एक प्रमुख कारण ध्यान में आया और वो कारण ये था कि स्कूल में Girl-Child Toilet नहीं है। 

सवाल किसी को दोष देना का नहीं है। इस समस्या का समाधान खोजने का है और इसलिए स्वच्छता के अभियान को आगे बढ़ाया है तो ये तीन चीजें मेरे मन को हमेशा आंदोलित करती हैं और सिर्फ स्वच्छता अभियान…ये कोई उद्घाटन समारोह नहीं है, ये निरंतर करने का काम है और हम सबको करने का काम है। हम में से कोई नहीं है जिसको गंदगी पसंद है! लेकिन स्वच्छता का आरंभ मुझे करना चाहिए उस पर हम जागरुक नहीं है। क्या सवा सौ करोड़ देशवासियों को इस काम में जोड़ना चाहिए या नहीं जोड़ना चाहिए? और मुझे खुशी हुई कल सुप्रिया जी ने अपने भाषण में कहा था कि एक अच्छा अभियान है; हम MP कैसे जुड़ें। सामने से उन्होंने पूछा House में। मैं मानता हूं हमें जो MPLAD Fund मिलता है और हमें कल्पना नहीं है कि जन-सामान्य इस काम को कितना पसंद करता है। 

मुझे एक Media Group के लोग मिले। वो कह रहे थे कि हमने केदारनाथ की calamity में काम किया, धन संग्रह किया, हमें चार करोड़ रुपया मिला। हमने गुजरात में भूकंप हुआ, हमने काम किया, लोगों ने हमको तीन करोड़ रुपया दिया। लेकिन अभी हमने स्वच्छता को ले करके हमारे टेलिविजन के माध्यम से अभियान चलाया, हमें लोगों ने 400 करोड़ रुपए दिए हैं।…और मैं राजनीति में जो हैं इन लोगों से कहूंगा अगर आप वोट के हिसाब से भी करते हैं तो समाज को ये बहुत ही मनपसंद काम है और अगर समाजनीति से करते हो तो इससे बड़ा स्वांतः सुखाय कोई काम नहीं हो सकता।…और इसलिए नाम ये रहे, वो रहे! इससे ऊपर उठ करके, समस्या न रहे, उस पर, हम केंद्रित करेंगे; तो मैं समझ सकता हूं कि हम बहुत कुछ कर सकते हैं। 

आदरणीय मुलायम सिहं जी ने कल एक अच्छी बात कही। उन्होंने कहा मोदी जी स्वच्छता की बात करते हैं, अस्सी घाट सफाई करने गए थे, अभी भी पूरा नहीं हुआ है। मुझे समझ नहीं आया कि मैं हंसू या रोयूं! इसलिए कि आदरणीय मुलायम सिंह जी कि उत्तर प्रदेश सरकार का Report Card दे रहे थे, कि केंद्र सरकार का Report Card दे रहे थे।…और दूसरा, करीब तीन महीने से अस्सी घाट की सफाई चल रही है; आप कल्‍पना कर सकते हैं कि कितनी गंदगी होगी, जिस अस्‍सी घाट को लेकर के वाराणसी की पहचान है। मैं आपका आभारी हूं और लोहिया जी, मैं मानता हूं मुलायम सिंह जी की बात को…लोहिया जी स्‍वच्‍छता का आंदोलन चलाते थे। आप लोहिया जी की कोई भी बात देखेंगे, तो स्‍वच्‍छता के लिए देश में महात्‍मा गांधी के बाद पूरी ताकत से आवाज उठाई हो तो लोहिया जी ने उठाई थी और मैं मानता हूं कि क्‍योंकि लोहिया जी ने उठाई थी, इसलिए मोदी जी ने हाथ नहीं लगाना चाहिए, ऐसा नहीं हो सकता, अगर लोहिया जी ने अच्‍छी बात कही है, तो मोदी जी को भी उस रास्‍ते पर चलने में गर्व करना चाहिए।..और इसलिए कितना कूड़ा-कचरा हुआ, इतने समय के बाद भी सफाई हो रही है। 

आपको हैरानी होगी हमारी विदेश में Embassies हैं। हमारी सुषमा जी ने सभी देशों को चिट्ठी लिखी Embassies को…कि स्‍वच्‍छता अभियान भारत में शुरू हुआ है आपकी Embassy का हाल जरा देखो; और मुझे जो Embassy से फोटोग्राफ आए हैं कि Embassy के पहले हाल क्‍या थे और अब क्‍या हैं। जहां हमारे लोग रहते थे वहां गंदगी के ढेर थे, कागज पानी में भीगकर के पत्‍थर से बन गए थे। सरकारी दफ्तरों में व्‍यवस्‍थाएं नहीं है क्‍या? है, स्‍वभाव नहीं है। 

और इसलिए एक पवित्र काम है जिस काम के लिए हम लगे हैं और यह काम सरकार का, सरकार के मुखिया का नहीं है, यह काम सवा सौ करोड़ देशवासियों का है, आपने जिस नाम से इस काम को बढ़ाया मैं उसका भी अभिवादन करता हूं; आपने अब तक जो किया, मैं उसका अभिवादन करता हूं, इन चीजों में विवाद का विषय नहीं हो सकता, और लालकिले पर से, यह कहना का सामर्थ्‍य मुझमें था, मैंने कहा था- यह देश, अब तक जितने प्रधानमंत्री रहे, अब तक जितनी सरकारें रही हैं, उन सबके योगदान से आगे बढ़ा है। लालकिले की प्राचीर से भारत की सभी सरकारों की बातें की और मैं यह भी कहना चाहता हूं, 9 महीने में हमने आकर सब कर लिया है, ऐसा दावा करने वाले हम नहीं हैं और न ही हम यह बात मानते हैं कि देश 1947, 15 अगस्‍त को पैदा हुआ था। यह देश हजारों साल की विरासत है। ऋषियों ने, मुनियों ने, आचार्यों ने, भगवंतों ने, शिक्षकों ने, मजदूरों ने, किसानों ने इस देश को बनाया है, सरकारों ने देश नहीं बनाया है। सरकारें आती हैं, जाती हैं, देश सरकारें नहीं बनाती; देश जनता जनार्दन के सामर्थ्‍य से बनता है। जनता जनार्दन की शक्ति से बनता है और राष्‍ट्र, राष्‍ट्र अपनी चीति से चलता है, अपनी philosophy से चलता है Ideology आती है, जाती है और बदलती रहती है। मूल तत्‍व देश को चलाता है और भारत का मूल तत्व है- 

एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति

भारत का मूल तत्‍व है– 

सर्वे भवन्तु सुखिनः

सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु

मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।

यह भारत का मूल तंत्र है। सबकी भलाई की बात यहां होती है और इसलिए यह देश आज जहां भी है, सरकारें आएगीं-जाएगीं, बनेगीं-बिगड़ेगीं, लेकिन इसके आधार पर नहीं। कुछ लोगों को लगता है कि आप….दिल्‍ली में आपका क्‍या होगा। मैं पूछना चाहता हूं पिछले तीन हफ्ते से मध्‍यप्रदेश में, अलग-अलग चुनावों के नतीजे आ रहे हैं पंचायतों के, नगरपालिका के, महानगर पालिका के। क्‍या हुआ था? आसाम इतना भव्‍य विजय हो रहा है, क्‍या हुआ जी? पंजाब, राजस्‍थान! क्‍या इसी का हिसाब लगाएंगे? क्‍या? बोलने में तो बहुत अच्‍छा लगता है! 

और अगर यही बात है, इतना Land Acquisition Act लेकर के मैदान में गए थे। History में कांग्रेस की इतनी कम सीटें कभी नहीं आई थी। इतिहास में, even आपातकाल इतना भयंकर संकट था लेकिन कांग्रेस के हाल इतने बुरे नहीं हुए थे, जितने इस बार हुए हैं। अगर Act के कारण आप जीतने वाले होते और किसानों को पसंद आया होता, तो आप जीत जाते। और इसलिए कृपा करके आप वो तर्क, बोलने के लिए ठीक लगता है, पर उस तर्क से आप सत्‍य को सिद्ध नहीं कर सकते; और इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि हमें समस्‍याओं का समाधान खोजना है। यहां पर मंथन करके रास्‍ते खोजने है। 

कभी-कभार यह कहा जाता है कि आप MGNREGA बंद कर देंगे या आपने MGNREGA बंद कर दिया है। मैं इतना तो जरूर विश्‍वास करता हूं कि आप लोग बाकी विषयों में, मेरी क्षमता के विषय में शक होगा। आपका अभिप्राय भी अलग-अलग हो सकता है कि इसमें मोदी को ज्‍यादा ज्ञान नहीं है इसमें कम अनुभव है, यह सब होगा। लेकिन एक विषय में आप जरूर मानते होंगे कि मेरी राजनीतिक सूझबूझ तो है। मेरी राजनीतिक सूझबूझ कहती है कि MGNREGA कभी बंद मत करो। मैं ऐसी गलती नहीं कर सकता हूं, क्‍यों‍कि MGNREGA आपकी विफलताओं का जीता जागता स्‍मारक है। आजादी के 60 साल के बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पडा, यह आपकी विफलताओं का स्‍मारक है और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्‍मारक का ढोल पीटता रहूंगा। दुनिया को बताऊंगा कि यह तुम गड्ढे तुम खोद रहे हो, उन 60 साल के पापों का परिणाम है। इसलिए मेरी राजनीतिक सूझबूझ पर आप शक मत कीजिए। MGNREGA रहेगा, आन, बान, शान के साथ रहेगा और गाजे-बाजे के साथ दुनिया में बताया जाएगा। 

हां, एक और बात जरूर होगी, क्‍योंकि मैं देश के हित के लिए जीता हूं, देश हित के लिए जीता रहना चाहता हूँ और इसलिए इसमें से देश का अधिक भला कैसे हो, उन गरीबों का भला कैसे हो, उसमें जो कुछ भी आवश्‍यक जोड़ना पड़ेगा, निकालना तो कुछ भी नहीं है, आप चिंता मत कीजिए जी, जो जोड़ना पड़ेगा जोड़ेंगे, जो ताकत मेरी पड़ेगी, हम देंगे; क्‍योंकि हम मानते हैं कि लोगों को पता चले भाई कि ऐसे-ऐसे खंडहर छोड़ करके कौन गया है। इतने सालों के बाद भी तुम्‍हें यह गड्ढे खोदने के लिए मजबूर किसने किया है? यह उसको पता रहना चाहिए और इसलिए यह तो बहुत आवश्‍यक है और आपने एक अच्‍छा काम किया है कि आप अपने foot-print छोड़कर के गए हैं, ताकि लोगों को पता चलें। 

कभी-कभार भ्रष्‍टाचार की चर्चा होती है। मैं मानता हूं कि भ्रष्‍टाचार ने हमारे देश को तबाह करके रखा हुआ है और मैं चाहता हूं कि यह देश भ्रष्‍टाचार की चर्चा राजनीतिक दायरे में न करे, क्‍योंकि राजनीती के दायरों में चर्चा करके हम इस भंयकर समस्‍या को तू-तू, मैं-मैं में उलझा देते हैं। किसकी shirts ज्‍यादा सफेद, यही पर हम सीमित हो जाते हैं और हम तो..मैं उधर आरोप लगाऊंगा, वो इधर आरोप लगाएंगे और माल खाने वाले कहीं न कहीं खाते रहेंगे। अगर हम सब मिल जाए, पुराने भ्रष्‍टाचार का क्‍या होगा, आगे हम मिलकर के तय करेंगे कि नहीं होने देंगे, तो भ्रष्‍टाचार जा सकता है। क्‍या देश में कोई समस्‍या ऐसी नहीं है, जो राजनीतिक विवादों से परे हो? क्‍या देश में ऐसी कोई समस्‍या न हो सकती है, जो तू-तू, मैं-मैं से बाहर निकलकर के समस्‍याओं के समाधान के रास्‍ते खोज सकें? भ्रष्टाचार एक समस्या है और उसका उपाय जो शासन में बैठे हैं, उनकी जिम्मेवारी है कि वे Policy Driven State चलाएं और जब Policy Driven State होता है, नीति आधारित व्यवस्थाएं होती हैं तो Grey Area, minimum रहता है। मैं ये तो दावा नहीं करूंगा कि परमात्मा ने हमें इतनी बुद्धि दी है कि हम ऐसे कानून बनाएंगे, ऐसी नीतियां बनाएंगे कि जिसमें कोई कमी ही न रहे। मनुष्य का इतना तो सामर्थ्य नहीं है। हो सकता है कि आज समस्या न हो, लेकिन आने वाले 5-7 सालों के बाद समस्या उभरकर के सामने आए; लेकिन minimum Grey Area रहे और जब minimum Grey Area रहता है तब ये बात तय होती है कि जो अफसरशाही है उसको Interpretation करने का अवसर ही नहीं रहता है; Priority करने का मौका ही नहीं मिलता है; और हमारी कोशिश है कि सरकारें Policy Driven हों। Individual के आधार पर देश नहीं चल सकता है, न सरकारें चल सकती हैं।..और भारत के संविधान के दायरे में सब चीजें होनी चाहिए और तब जाकर के समस्याओं के समाधान होते हैं। 

उदाहरण के स्वरूप कोयले का आबंटन; Coal Blocks..जब CAG ने रिपोर्ट दी तो लिखने वालों को भी लगता कि इतना तो नहीं हो सकता यार! पहले कभी 600 करोड़ के भ्रष्टाचार का सुना है, 500 करोड़ के भ्रष्टाचार का सुना है लेकिन 1 लाख 86 हजार करोड़? देश भी चौंक गया था! राजनीति में बोलने के काम तो आता था, लेकिन मन में रहता था कि नहीं यार 1 लाख 86 हजार करोड़ कैसे हो सकता है! लेकिन अब जब कोयले का आबंटन हुआ 204 Mines सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिए। अभी तक तो 18 या 19 का Auction हुआ है और उसमें करीब 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा already आ चुके हैं; अगर यही 204 जब हो जाएगी, तो CAG ने जो सोचा था, उससे भी बड़ी आय इस Auction में से आने वाली है। उस समय Zero Theory चली थी..Zero Theory। 

मैं ये नहीं कहना चाहता था कि ये उनके समय हुआ, उनको क्या करना चाहिए, ये मेरा विषय नहीं है, आप जानें आपका परमा्तमा जाने। लेकिन अगर हम इस दिशा में चलते हैं तो मुझे लगता है कि रास्ते खोजे जा सकते हैं और रास्ते खोजकर के..और ये सीधा-सीधा उदाहरण हैं कि भ्रष्ट्राचार मुक्त व्यवस्थाएं विकसित की जा सकती है। ऐसी व्यवस्थाओं को विकसित किया जा सकता है, जिसमें भ्रष्ट्राचार का अवसर कम होता जाए और इसके लिए आप उत्तम से उत्तम सुझाव दें। इस विषय को ले करके मेरा समय मांगिए, मैं आपका समय दूंगा, आपसे समझना चाहूंगा। आप भी हमें Guide कीजिए कि भई इस भयंकर समस्या से निकलने के ये-ये रास्ते हैं चार। शासन व्यवस्था देखेगी उसको लेकिन हम सब मिलके प्रयास करें कि इस बदी से हम देश को मुक्त कराएं और हम मानकर चले कि हो क्या रहा है? 

यहां पर अधिकतर आदरणीय सदस्यों ने काले धन की चर्चा की है। जिस काले धन की चर्चा करने से लोग कतराते थे, काले धन की बात आते ही मुंह पर रंग बदल जाता था। उनके मुंह से जब आज काले धन की चर्चा सुनता हूं, तो मुझे इतना आनंद होता है, इतना आनंद होता है कि जिस आनंद की कल्पना नहीं कर सकते जी।..और मैं मानता हूं कि सबसे बड़ी सिद्धि है, तो ये है कि हमने देश को काले धन पर बोलने के लिए मजबूर कर दिया है। 

सुप्रीम कोर्ट की बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने SIT बनाने को कहा था काले धन पर, सुप्रीम कोर्ट का भी सम्मान करने से हम चूक गए। क्या हमारी जिम्मेवारी नही थी कि जब सुप्रीम कोर्ट ने काले धन पर SIT बनाने को कहा था, तो बिना समय बिताए हम काले धन के लिए SIT बना देते। तीन साल तक SIT नहीं बनाई। सुप्रीम कोर्ट के कहने के बावजूद भी नहीं बनाई। नई सरकार बनने के बाद पहली Cabinet meeting में पहला निर्णय किया, काले धन के लिए SIT बनाई है। 

काले धन की बात आती है तो Swiss Bank की चर्चा आती है। मैं श्रीमान अरुण जेटली जी को बधाई देता हूं कि उन्होंने कानूनों का अध्ययन किया, अंतरराष्ट्रीय कानूनों का अध्ययन किया और Switzerland Government को महत्वपूर्ण जानकारियां हमें Exchange करने के लिए उनको राजी कर लिया है और उसके कारण अब वहां के बैंकों की अब जो जानकारियां हैं, वो पाने का हमारे लिए रास्ता खुला है। मैं वित्त मंत्री जी को अभिनंदन करता हूं। 

इतना ही नहीं, G-20 में आप भी जाते थे, हम तो पहली बार गए, हमारे लिए तो कईयों के चेहरे भी पहली बार देखने का अवसर आया था। हमने G-20 का क्या उपयोग किया! G-20 Summit के अंदर जो संयुक्त Declaration हुआ। उसमें हमने आग्रह किया कि Black Money, Drug Trafficking इसके खिलाफ G-20 को कदम उठाना चाहिए और उसमें हम सहयोग करेंगे और काले धन को रोकने के लिए हम एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे, हम मिलकर के जिसको दबाव डालना है, दबाव डालेंगे इसका निर्णय G-20 में करवाया। 

हमारी कोशिश..और इस रास्ते से हम भटकने वाले भी नहीं है, हटने वाले भी नहीं है।…और कोई इससे बचेगा भी नहीं, मैं आपको कहता हूं।..और कृपा करके कोई ये न कहे कि हम Vindictive थे इसलिए किया है। हम वादा करके आए हैं। वो व्यक्ति जरूरी नहीं कि सब राजनेता हो, लेकिन जिसने भी किया है, देश का तो नुकसान किया ही किया है।..और इसलिए उसके संबंध में सारे प्रकार की इच्छाशक्ति चाहिए, हमारी है। सरकार के प्रयास होने चाहिए, हम कर रहे हैं।..और अंतिम विजय प्राप्त करने तक हम करते रहेंगे, ये मैं इस सदन को विश्वास दिलाता हूं। 

कभी-कभार ये कहा जाता है कि आपने नया क्या किया। मैं एक उदाहरण देता हूं, काम को कैसे किया जाए। एक तरफ हम किसान की बात बहुत करते हैं लेकिन किसान को मुसीबतों से बाहर निकालने के लिए हम कोई रास्ते खोजेंगे कि नहीं खोजेंगे? कई उपाय हैं। जैसे हम एक काम लेकर के निकले हैं Per drop-more Crop। हमारे देश में पानी की कमी है, सारी दुनिया पानी की कमी से जूझने वाली है। क्या सरकारों की जिम्मेवारी नहीं है कि आने वाले 30-40 सालों में भविष्य को देखकर के कुछ बातों को करें, कि हम तात्कालिक लाभ के लिए ही करेंगे? हो सकता है राजनीतिक लाभ हो जाएगा लेकिन राष्ट्रनीति- उस तराजू में वो बात बैठेगी नहीं। 

हमने Soil Health Card की बात कही है। ये Soil Health Card की बात जो हम कर रहे हैं, हमने मंत्र दिया है “स्वस्थ धरा, खेत हरा”, लेकिन इस काम को विज्ञान भवन में रिबन काट करके, दिया जलाकर के, हम काम नहीं करते हैं। ये सरकार कैसे काम करती है। मैंने अधिकारियों को सूचना दी कि क्यों न हम जैसे आज किसी भी डॉक्टर के पास जाइए तो पहले आपका वो Blood test करवाने के लिए कहता है, Urine-test करवाने के लिए कहता है, उसके बाद ही वो दवाई के लिए सोचता है, तब तक वो, दवाई नहीं देता। जिस प्रकार से शरीर के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए इन चीजों की आदत है; क्‍या हम देश में किसानों के लिए भी यह बात पहुंचा सकते हैं? कि आप फसल पैदा करने से पहले, जमीन से फायदा उठाने से पहले उस जमीन की तबीयत कैसी है पहले वो तो जान लो! जिसे हम भारत मां कह रहे हैं, उस भारत का हाल क्‍या है, उस धरा का हाल क्‍या है, उस पृथ्‍वी माता का हाल क्‍या है वो तो पहले जानो! कहीं हमारे पापों के कारण हमारी धरा बीमार तो नहीं हो गई है। हमने इतना यूरिया डाला, यूरिया डाला, यूरिया का झगड़ा करते रहे, लेकिन यूरिया डालकर के हमने हमारी इस धरा को तबाह तो नहीं कर दिया है! यह उसको कब समझ में आएगा। जब हम soil testing करेंगे तब। अब soil testing का card निकालेंगे दे देंगे, इससे बात बनेगी नहीं; और मैंने कहा है क्‍यों न हम गांव गांव soil testing lab के लिए entrepreneurs तैयार करे। गांव के नौजवान जो थोड़ा बहुत पढ़ा लिखा है, उसको Training दें। गांव में वो Lab बनाता है, तो Bank की तरफ से उसको ऋण दिया जाए। ताकि गांव के लोगों को उस Laboratory में जाने की आदत बन जाए, हर साल बारिश के सीजन से पहले ही अपनी जमीन को एक बार चेक करवा लें, मार्गदर्शन प्राप्‍त करे, micro nutrition की detail जाने। 

उसी प्रकार से हमने कहा कि हमारे यहां 10वीं 12वीं की विज्ञान की जो स्‍कूल है और colleges हैं विज्ञान धारा के। हरेक में Laboratory है; लेकिन हमारे देश में करीब-करीब फरवरी से जुलाई तक Laboratory बंद रहती है, Lab बंद होती है, क्‍योंकि बच्‍चे exam में लग जाते हैं और स्‍कूल खुलने में जून, जुलाई महीना आ जाता है। करीब चार-पाँच महीना महत्‍वपूर्ण समय, तीन-चार महीना स्‍कूल की Lab खाली पड़ी होती है। हमने कहा.. उन 10वीं 12वीं के विद्यार्थियों को भी..Soil testing कोई बहुत बड़ी technology नहीं….आराम से किया जा सकता है। उनको Training दो और स्‍कूलों के अंदर, vacation के अंदर soil training के Lab में रूप में उसको convert कीजिए। स्‍कूल को तो income होगी होगी, उन गांवों के नौजवानों को भी income होगी और उस गाँव के लोगों को भी फायदा मिलेगा। अब हमारा देश गरीब है, हम कोई रातों-रात Lab बना देंगे, पैसे खर्च कर देंगे। हम Optimum Utilization of our Infrastructure; यह है Good Governance, यह है तरीके। उन तरीकों से समस्‍या का समाधान किया जा सकता है और जब एक बार हमारे किसान को पता चलेगा कि हमारी फसल मेरी जमीनी फसल के लिए योग्‍य नहीं है, तो मैं मानता हूं कि हमारा किसान तुरंत विश्‍वास से काम करेगा और आज किसान को जो खर्चा होता है, वो खर्चा बच जाएगा। 

कभी-कभी यहां पर आया कि भई पेट्रोल-डीजल के तो अंतर्राष्‍ट्रीय दाम घटे हैं, तो आपने कम क्‍यों नहीं किया? तब हम भूल जाते हैं। जब हम सरकार में आए तो सूखे की स्थिति थी। 12 प्रतिशत बारिश कम थी। और तब हमने निर्णय किया कि डीजल में जो subsidy दी जाती है उसमें 50 प्रतिशत और बढ़ोतरी की जाए, बिजली के बिल में जो पैसे लिए जाते हैं उसकी subsidy में 50 प्रतिशत और बढ़ोतरी की जाए और उसके कारण, डीजल के अंदर सरकार के आर्थिक बोझ बहुत बड़ा आया। किसानों को दिया, जो कहते हैं हम नहीं देते, ऐसा नहीं है हमने दिया है, लेकिन आपको पिछले मई, जून, जुलाई का याद नहीं रहता है आपको इस अक्‍तूबर, नवंबर, दिसंबर का याद रहता है। ऐसा नहीं है जी, सरकार आखिर किसके लिए है? यह सरकार गरीब के लिए है, यह गरीबों को समर्पित सरकार है। हम हैं जिन्‍होंने expenditure कम करने के लिए Expenditure Commission बनाया है। क्‍योंकि हम चाहते है कि शासन में जो अनाप-शनाप खर्चें हो रहे हैं, उसको रोकना चाहिए, ताकि यह पैसे गरीब के काम आए, गरीब के कल्‍याण के काम आए। उस पर हम बल दे रहे हैं। हम Good Governance की ओर जा रहे हैं। 

आप देखिए हम ऐसे लोग हैं, अब यह आप नहीं कहेंगे कि हमारे जमाने से हैं। मैं अभी भी समझ नहीं पाता था, बचपन से कि Xerox का जमाना आया, फिर भी मुझे अपने certificate को certified कराने के लिए किसी Gazetted office जाना पड़ता था, किसी MLA के घर के बाहर कतार में खड़ा रहना पड़ता था, किसी MP के घर के बाहर कतार में खड़ा रहना पड़ता था। MLA, MP available न हो तो भी, उनका एक छोटा सा आदमी रहता था वो सिक्‍का मार देता था, हां भई आपका certificate ठीक है। हम उस पर तो भरोसा करते हैं, लेकिन देश के नागरिक पर भरोसा नहीं करते। हमने नियम बनाया कि self-attested करके आप दे दीजिए और जब final होगा, तब आपको original document दिखा देंगे। आप कहेंगे कि चीज छोटी होगी, लेकिन देश के सामान्‍य मानव में विश्‍वास पैदा करती है कि सरकार मुझ पर भरोसा करती है। हमारे यहां एक-एक काम में 30-30, 40-40 पेज के form भरा करते थे, मैंने आते ही कहा कि भई इतने लम्‍बे-लम्‍बे फॉर्म की क्‍या जरूरत है, सरकार की फाइलें बढ़ती चली जा रही है, जितना online हो सकता है online करो और minimum कर दो, minimum कर दिया। कई जगह form की प्रक्रिया को, एक पेज में ला करके रख दिया है। हम व्‍यवस्‍थाओं के सरलीकरण में विश्‍वास करते हैं। Red-tape को कम करना चाहते हैं, ताकि सामान्‍य मानव को उसकी सुविधा मिले, उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं और एक के बाद एक हम करते चले जा रहे हैं और उसका लाभ मिलने वाला है। 

हमारे यहां जो सरकारी मुलाजिम रिटायर्ड होते हैं उनको हर वर्ष Pension लेने के लिए नवंबर महीने में जिंदा होने का सबूत देना पड़ता है और वहां जाकर के Ex-MP को भी देना पड़ता है, वहां उसको दफ्तर में जाकर के…अब एक आयु तक तो ठीक है, उसके बहाने उसको बाहर जाने का मौका मिल जाता है, लेकिन एक आयु के बाद उसके लिए जाना संभव नहीं होता है। क्‍या हम इन व्‍यवस्‍थाओं को नहीं बदल सकते? हमने Technology का उपयोग करते हुए, अपने घर में बैठ करके भी वो, अपने जिंदा होने की बात प्रमाणित कर सकता है। उसका Pension पहुंच जाए उसका पूरा mechanism बना दिया। क्‍या यह हमारे गरीब Pensioner का सम्‍मान है। 

आपको लगेगा इतना बड़ा देश है मोदी छोटी-छोटी बाते करते हैं, मुसीबतों की जड़ ही तो छोटी-छोटी होती है, जो बाद में बहुत बड़ा वटवृक्ष बन जाती है, विषवृक्ष बन जाती है, जो समस्‍याओं के अंदर सबको लपेट लेती हैं और इसलिए आवश्‍यक होती है और हम चाहते हैं। 

कभी-कभी मुझे याद है, पिछले सत्र में हमारी बहुत मजाक बनाई गई। मैं नहीं जानता हूं कि इस प्रकार की भाषा का प्रयोग जो कर रहे थे उचित था क्या? यहां तक कह दिया कि आपको वीजा दे रहे हैं Parliament में आने का। इस प्रकार का प्रयोग करने वालों लोगों को मैं और तो कुछ कहता नहीं हूं, लेकिन मैं इतना कहता हूं अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍थानों पर कुछ काम निर्धारित होते है जिसको करने पड़ते हैं। उन मीटिंगों में पहले के प्रधानमंत्रियों को भी जाना पड़ता था, इस प्रधानमंत्री को भी जाना पड़ता है और भविष्‍य में जो आएगा उसको भी जाना पड़ेगा। लेकिन वो ही एक मजाक विषय बन जाए, क्‍या हमारी राजनीति इतनी नीचे आ गई है? चूंकि कोई ऐसी बातों की चर्चा करे! क्‍या आपके पास मेरी आलोचना करने के और कोई मुद्दे नहीं बचे? लेकिन मैं कहना चाहता हूं अगर आपको देश की इतनी चिंता थी, तो आप..इस देश का प्रधानमंत्री विदेश गया तो कितना समय कहां बिताया, कभी उसकी भी तो जांच कर लेते, कभी उसकी भी तो inquiry कर लेते! 

मैं आज कहना चाहता हूं कि मैं जापान गया; तो जापान मेरे कार्यक्रम में मैंने एक कार्यक्रम क्‍या जोड़ा? मैं वहां एक Nobel laureate Scientist Yamanaka को मिलने गया। क्‍यों? फोटो निकलवाने के लिए? मैं इसलिए गया, क्योंकि उन्‍होंने Stem-Cell के अंदर जो research किये हैं..मैंने जितना पढ़ा था, तो मेरे मन में आया था, शायद इनकी एक खोज हमारे काम आ सकती है क्‍या? क्‍योंकि मैं जानता हूं मेरे देश के आदिवासी, उन आदिवासियों को परंपरागत रूप से Sickle Cell की भयंकर बीमारी से जूझना पड़ रहा है और Sickle Cell की बीमारी Cancer से भी भयंकर होती है। जिन्‍होंने Sickle Cell की बीमारी वालों के विषय के बारे में पूछा है, तो यह पता चलेगा कि यह कितनी पीड़ादायक होती है और पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। अभी तक उसकी कोई दवाई नहीं मिली है। एक आशा लगी है कि Stem-Cell के द्वारा Sickle Cell की बीमारी से मुक्ति मिल जाए। हम गए तो वहां गए, उनसे चर्चा की और बेंगलुरू के हमारे Science Institute के साथ, आज उस दिशा में हमारा काम हो रहा है, कि Stem-Cell के द्वारा हमारे युवा Scientist खोज करे। मेरे आदिवासी भाईयों को, पीढ़ी दर पीढी जो परेशानियों से जिंदगी गुजारनी पड़ती है, उससे वो बाहर आएं। 

हम ऑस्ट्रलिया गए, G-20 Summit में गए। हम कहां गए हैं? मैं उस किसानों के…Agriculture Scientist से मिलने गया, उनकी Lab में गया, जिन्होंने प्रति हेक्टेयर ज्यादा चना उगाने का और सबसे खराब धरती पर चना उगाने का सफल प्रयोग किया था, Research किया था। कहीं पड़ा था, मेरे मन में पड़ा था…मैं उनके पास गया था। 

हमारे देश को Pulses में हम बहुत पीछे हैं, इसको Pulses की बहुत जरूरत है। गरीब आदमी को Nutritional food के लिए Protein की जरूरत है। हमारे देश के गरीब को Protein मिलता है, दाल में से, Pulses में से मिलता है। अगर हमारा किसान अच्छी मात्रा में Pulses पैदा करें, कर सकता है अगर प्रति हेक्टेयर ज्यादा Pulses पैदा करे तो उसको भी अच्छी आय मिलेगी, उस गरीब का भी कुछ भला होगा और इसलिए उन Scientist के पास जाकर घंटे बिताए कि बताइए मेरे देश के किसानों को ज्यादा Pulses पैदा करने के लिए क्या रास्ता हो सकता है, ज्यादा चना पैदा करने के लिए क्या रास्ता हो सकता है, अरहर पैदा करने के लिए क्या रास्ता हो सकता है, उसके लिए मैंने समय बिताया। 

मैं एक और Scientist के पास गया, इस बात के लिए गया, मिलने के लिेए कि उन्होंने केले में कुछ नई खोज की थी। मैं समझना चाहता था, मुझे पूरा पता नहीं था, तो मैं ऐसे ही चला गया, उनके साथ बैठा, उनकी Lab देखी, उनके प्रयोग देखे। उन्होंने केले में Nutritional value बढ़ाने में बहुत सफलता पाई है। अधिक Vitamin को पाने में सफलता पाई है। केला, ये अमीरों का फल नहीं है, मेरे भाइयों और बहनों। केला, एक गरीब से गरीब का फल होता है; अगर केला उसमें Nutritional value बढ़ता है; उसमें Vitamin अगर ज्यादा अच्छे मिलते हैं और इस प्रकार की खोज के साथ केला बनता है तो मेरे देश का गरीब से गरीब व्यक्ति केला खाएगा, उसको ज्यादा ताकत मिलेगी। अगर विदेश जाके किसी काम के लिए जाते हैं, तो देश का गरीब हमारे दिमाग में होता है, देश का आदिवासी हमारे दिमाग में होता है, देश का किसान हमारे दिमाग में होता है और दुनिया में जो भी अच्छा है, जो मेरे देश के गरीबों के काम आए, उसको लाने की तड़प होती है। उस तड़प के लिए हम कोशिश करते हैं और इसलिए समय का सदुयपोग करते हुए हम किस प्रकार से हमारे देश को हम आगे ले जाएं उसके लिए सोचते हैं, उसकी के लिए करते रहते हैं, उसी पर कुछ करने के लिए हम प्रयास करते हैं। 

यहां पर, जन-धन योजना को लेकर के कहा गया कि ये तो हमारे समय थी। बैंकों का राष्ट्रीयकरण होने के बाद, 40 साल हो गए और गरीबों के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था लेकिन आज भी इस देश का गरीब बैंकों के दरवाजे से दूर था और Banking System, Financial व्यवस्था की, Inclusion की Main धारा बन गई है। अगर हम आगे चलकर के कोई योजनाएं बनाना चाहते हैं, तो शुरुआत यहीं से होती है और हमने 15 अगस्त को ऐलान किया था कि 26 जनवरी को हम झंडा फहराएंगे, उसके पहले हम काम पूरा करेंगे। समय के रहते काम पूरा किया कि नहीं किया? जिस बैंक के अंदर गरीब को जाने का अवसर नहीं मिलता था, उस बैंक के मुलाजिम जो कोट-पैंट-टाई पहनते हैं, एयरकंडिशन कमरे के बाहर नहीं निकलते हैं। वो मेरा बैंक का मुलाजिम, मेरा साथी गरीब की झोंपड़ी तक गया, गरीब के घर तक गया। क्या सरकार ये प्रेरणा नहीं दे सकती है, ये परिवर्तन नहीं ला सकते हैं, लाए हैं और मैं आज विशेष रूप से Banking Sector के ऊपर से नीचे तक के सभी महानुभावों का अभिनंदन करता हूं कि उन्होंने इस बात को उठा लिया है, उस बात को उठा लिया, पूरा किया और जब ये व्यवस्था हो गई है तो अभी हमें MGNREGA में आता था कि Leakage बहुत हैं। अब हम MGNREGA का पैसा भी, जन-धन Account खुल गया, आधार कार्ड है, जन-धन Account है, Leakage कम से कम हो जाएगा और पैसा सीधा उसके खाते में जाएगा, ये जन-धन का लाभ है। 

हमारे दिमाग में गरीब है, लेकिन गरीबों के नाम पर, हमारे दिमाग में राजनीति नहीं है, गरीबों के नाम पर, हमारे दिमाग में एक ईश्वर की सेवा करने का अवसर है और इसलिए वो जब हर काम का Mood जब करते हैं, तो उस बात को लेकर के करते हैं कि हम गरीब के कल्याण के लिए क्या काम कर सकें और उस दिशा में हमारा प्रयास है। 

मैं जब शौचालय की बात कर रहा था तो मैं आपको बताना चाहता हूं कि कितना काम हुआ है। करीब सवा चार लाख Toilet की जरूरत है स्कूलों में। उसमें सवा चार लाख में से करीब डेढ़ लाख नए बनाने पडेंगे और बाकी जो हैं Repairing करने की आवश्यकता है। एक अलग Portal बनाया गया है Online। उसका Mapping किया गया है। Address पक्का पता है कि यहां पर Toilet इतना चाहिए, सारी Detail पर Work out किया है और मुझे संतोष के साथ कहना है कि अब तक करीब 60-65 हजार, लड़कियों के लिए Toilet बनाने का काम पूरा हो चुका है और मैं सभी MPs का अभिनंदन करता हूं कि कई MPs ने पूरा Actively इस काम किया है। अपने इलाके में MPLAD Fund का भी उपयोग किया है, CSR में भी उपयोग हुआ है। जहां पर District के अफसर सक्रिय हैं, उन्होने तेज गति से काम किया है और मुझे विश्वास है कि आने वाले दिनों में जो Vacation है, हम अगर सब तय करें, अपने यहां Collector को पूछिए आप, अपने अधिकारियों को पूछिए District में, कि बताओ भई क्या हुआ? इस काम का थोड़ा आप भी, दो बार जरा चिट्ठी डाल दीजिए। मुझे विश्वास है जी जून महीने में जब नया सत्र शुरू होगा इस Vacation में इस Toilet बनाने का काम पूरा हो जाएगा।…और ये हम सबके लिए है और इस काम को आप पूरा करेंगे ऐसा मुझे विश्वास है। 

स्वच्छता का असर कैसा है। देखिए! Tourism पर बड़ा Impact हो रहा है। एक हमने Online Visa, Visa on Arrival…हमने किया है और दूसरा स्वच्छता! इन दोनों का संयुक्त प्रभाव Tourism पर पड़ रहा है। पिछले साल की तुलना में Tourism में काफी बढ़ोतरी हुई है, काफी बढ़ोतरी हुई है। कई बातों में, Negative प्रचार होने के बावजूद भी, कुछ चीजें ऐसी हो जाती हैं कि हमारे यहां Tourism को बहुत बड़ा नुकसान हो जाता है, लेकिन उसके बावजूद इन व्यवस्थाओं के कारण, Tourism में काफी बढ़ावा हुआ है। 

अब हम कहेंगे कि भई आपदा प्रबंधन। अब मुझे बताइए कि कौन सी सरकार है जिसके कालखंड में आपदा नहीं आई? आई है! उन आपदाओं के लिए सरकारों को कुछ करना पड़ा है? करना पड़ा है! लेकिन आपदा प्रबंधन के तरीके भी बदले जा सकते हैं। जब जम्मू-कश्मीर में बाढ़ का प्रश्न आया, तो मैंने पहला काम क्या किया, मैंने कहा भारत सरकार में जम्मू-कश्मीर के जितने भी अधिकारी हैं, उनकी जरा पहले सूची बनाओ और उनको सबसे पहले वहां भेजो। Home Secretary, उस समय के थे, जो पुराने जम्मू-कश्मीर के थे उनको मैंने वहां हफ्ते भर के लिए भेज दिया। क्यों? भारत सरकार का दायित्व बनता है कि सिर्फ इतना Cheque दिया, उतना दे दिया, लेकिन इससे बात बनती नहीं है। हमने पूरी ताकत से, उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर के खड़ा होना होगा। 

जब हुड-हुड आया मैं स्वंय तो गया, मैं कश्मीर भी गया, मैं अनेकों बार गया, मैं कितने Groups के साथ, बारीकी से बातें की मैंने श्रीनगर में जाकर के, मैंने अपनी दीवाली उन लोगों के बीच में बितायी। क्यों? ताकि सरकार में बैठे हुए और लोगों को भी Sensitize हो कि भई ये हमारा दायित्व बनता है। ऐसा नहीं कि बाढ़ पूरी हो गई तो उनके अपने नसीब पर छोड़ दिया जाए, ये हमारा दायित्व बनता है।..और इसलिए हमारा Approach प्राकृतिक आपदा के समय भी तू-तू, मैं-मैं का नहीं होता है। एक अपनेपन की जिम्मेवारी के साथ होता है और हमारे पास जो भी शक्ति है उसका सही ढंग से उपयोग करते हुए उसको कैसे समस्या से बाहर निकालना, उस दिशा में हमारा प्रयास रहता है और उसकी और हम जाना चाहते हैं। 

यहां पर Land Acquisition Act को लेकर के बढ़िया-बढि़या बातें मैं सुन रहा हूं। हमें इतना अहंकार नहीं होना चाहिए कि हमने जो किया उससे अच्छा कुछ इस दुनिया में हो ही नहीं सकता है और जब Land Acquisition Act बना था तब हम भी तो आपके साथ कंधा से कंधा मिलाकर के खड़े रहे थे। उसको पारित करने के लिए हमने कोई If-buts का काम नहीं किया था। हमें लगा कि भई चलिए..और हम जानते थे इसका आप राजनीतिक फायदा लेने के लिए जल्दबाजी कर रहे हैं, सब जानते थे। उसके बावजूद भी हम आपके साथ खड़े रहे थे, लेकिन हम आपसे पूछना चाहते हैं, 1894 में जो कानून बना, उसकी कमियां देखते-देखते आपको 2013 आ गया क्या? 120 साल बीत गये। 60 साल तक यह देश, यह देश के किसान, उसी कानून के भरोसे जीते थे, जो 1894 में बना था। अगर किसानों का बुरा हुआ तो किसके कारण हुआ और आज जब यह कानून बना तो हम आपके साथ थे। कानून बनने के बाद, जब हमारी सरकार बनी, सभी राज्‍यों के सभी दलों के मुख्‍यमंत्री, किसी एक दल के मुख्‍यमंत्री नहीं, सभी दलों के मुख्‍यमंत्री, एक आवाज से कह रहे साहब! आप किसानों के लिए कुछ सोचिए। किसान बिना पानी मर जाएगा! उसको सिंचाई चाहिए उसको irrigation infrastructure चाहिए, उसको गांव में सड़क चाहिए, गांव के गरीब को रहने के लिए घर चाहिए, और आप ऐसा कानून बनाए हो जिसमें आप वाले भी साथ में थे कि जिसके कारण हमारा भला नहीं हो रहा है। यह हिंदुस्‍तान की सभी सरकारों के सभी मुख्‍यमंत्रियों ने कहा, यह बात में बता रहा हूं, क्‍या यह देश जो federal co-oporation की बात करता है federalism की बात करता है क्‍या हम इतने अंहकारी हो गए है कि हमारे राज्‍यों के मुख्‍यमंत्रियों की बात को सुने नहीं? हम इतने अंहकारी हो गए है कि हमारे राज्‍यों के मुख्‍यमं‍त्री परेशान है, राज्‍य परेशान है, उनको हम नकार दे! क्‍या उनकी बात हमको सुननी नहीं चाहिए?..और उनकी जो भावना है, उस भावना को हमने सकारात्‍मक रूप से आदर नहीं करना चाहिए? और उनकी मांग क्‍या है किसानों के लिए? 

मुझे सेना के अधिकारी मिले, बोले साहब! हम क्‍या करे? यह जो आपने कानून बनाया है और वो तो हमको ही कहते हैं, क्‍योंकि हमने साथ दिया था। वो तो हमें कहते हैं, क्‍योंकि हमने साथ दिया था! हम कहते हैं कि हमें यह बताइये कि हमें.. Defence Installations जो करने होते हैं, अब जो आपका कानून बनाया है, हो ही नहीं पाएगा। हमें हमारी nuclear व्‍यवस्‍थाओं को जो कि infrastructure खड़ा करना है, हम पूछने जाएंगे क्‍या? हम लिखेंगे क्‍या इसके लिए चाहिए? तो अच्‍छा है कि हम पाकिस्‍तान को ही लिख दें, कि हम इस पते पर यह काम कर रहे हैं! 

Defence के हमारे अधिकारी इतने परेशान है, सेना के जवान परेशान हैं, कि साहब! क्‍या होगा क्या? क्‍या हमारे defence के लिए भी और हमारी..यह जरूरी नहीं है कि किसी ने कोई गुनाह किया है, कोई पाप किया है लेकिन कमी रह गई, गलती रह गई। क्‍या गलती correct करना हमारी जिम्‍मेदारी नहीं है क्‍या? यह एक छोटा सा उपाय है कि भई इस गलती को correct करना है। आप ने किया है हम उसको नकारते नहीं हैं। आप ने जो कोशिश की है उसको हम कुछ रह गया तो जोड़ना चाहते हैं, इसलिए हम आपका साथ-सहकार चाहते हैं। कृपा करके इसको राजनीति के तराजू से मत तोलिये।..और मैं आपको विश्‍वास दिला रहा हूं, इसमें अभी भी आपको लगता है कि इसमें, अभी भी आपको लगता है कि किसानों के खिलाफ एक भी चीज है, तो मैं उसमें बदलाव करने के लिए तैयार हूं। 

और मैं सबसे ज्‍यादा पूर्वी उत्‍तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, नॉर्थ इर्स्‍ट, उड़ीसा, पूर्वी आंध्र इनकी तरफ ध्‍यान आकर्षित करना चाहता हूं। हिंदुस्‍तान के पश्चिमी छोर पे तो गांव में भी छोटा-मोटा infrastructure है। गांव में सड़के बनी है। इस हमारे कानून का सबसे बड़ा नुकसान किसी का हुआ है, तो पूरे पूर्वी हिंदुस्‍तान का हुआ है। पूर्वी भारत का हुआ है यह जो मुख्‍यमंत्री आ करके जो चीख रहे थे, इसी बात को लेकर के चीख रहे थे कि साहब! हमारा तो अभी समय आया है आगे बढ़ने का उसी समय हमें आप brake लगा रहे हो! क्या हमारे पूर्वी भारत के इलाकों को भी, क्‍या पश्चिम में जो infrastructure है गांव का उनको मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए? उनको वो सुविधा मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए?..और इसलिए मैं कहता हूं आपने जो किया है हमारे सर-आंखों पर, मैं आपका गर्व करता हूं। 

मैं आप से आग्रह करता हूं उसमें जो कमियां रही हैं, समय है, उनको थोड़ा ठीक कर लें। यह सिर्फ कमियों को ठीक करने का प्रयास है और वो भी सिर्फ किसानों के लिए है। मैं सभी सदन के सदस्‍यों से आग्रह करता हूं, इसे प्रतिष्‍ठा का विषय न बनाए और और बनने के बाद भी मैं सारा credit उस समय जिन्‍होंने कानून बनाया था, उन्‍हीं को दूंगा, सार्वजनिक रूप से दूंगा। राजनीति के लिए नहीं है यह। 

मैंने मुख्‍यमंत्रियों को सुना है उनकी कठिनाई सुनी है, और मैं भी मुख्‍यमंत्री रहा हूं, मुझे पता है कि हम दिल्‍ली में बैठकर के कोई कानून बना देते हैं उन राज्‍यों को कितनी परेशानी होती है, कभी हमें अंदाज नहीं होता है और मैं एक प्रकार से उनका प्रतिनिधि भी हूं, क्‍योंकि मैं उसी टोली में लम्‍बे अर्से से रहा हूं और इसलिए मैं उनके दर्द को जानता हूं। 

हां! किसान के खिलाफ एक भी चीज हो, एक भी चीज हो, हम ठीक करने के लिए तैयार है। हो सकता है, हमें भी..इस समय करते समय हमारी भी कुछ कमी रही हो, लेकिन हमारा काम है कमियां दूर करना, भाई! हमारा काम यह थोड़ा है..हां इसका राजनीतिक फायदा आप लीजिए मुझे कोई problem नहीं है। आप इसके लिए जूलूस कीजिए, रैली कीजिए, लेकिन देश के लिए निर्णय भी कीजिए और इसलिए मैं आग्रह करूंगा कि हम उस दिशा में जाने की बजाय इसके ऊपर जायें। 

हमारा North-East! हम Act East Policy को लेकर के चल रहे हैं, मैं अभी भी मानता हूं, मैं जीवन में एक परिवराजक रहा हूं। मेरा सौभाग्‍य रहा है करीब-करीब हिंदुस्‍तान के सभी जिलों में मुझे रात गुजराने का अवसर मिला है। मैंने जिंदगी के 40 साल परिवराजक के रूप में घूमा हूं, इसलिए मैं जानता हूं। मैं North-East में बहुत रहा हूं। इतने विकास की संभावना है। वो Organic Capital बन सकता है देश का, इतनी ताकत है। मैं भी बार-बार North-East जा रहा हूं। अगर मेरा राजनीतिक उद्देश्‍य होता तो जहां 60-80 सीटों का बल होता हैं न, वहीं चला जाता, लेकिन जहां एक-एक सीट हैं वहां जाकर के दो-दो दिन बिताता हूं इसलिए। राजनीतिक मकसद से नहीं करता हूं। यह मेरे देश की अमानत है, उनकी चिंता करनी पड़ेगी, उनके साथ जुड़ना पड़ेगा और इसलिए मेरा यह मकसद है पश्चिमी छोर हिंदुस्‍तान का जिस तेजी से बड़ा है हमें बहुत जल्‍दी से हिंदुस्‍तान के उस पूर्वी छोर को कम से कम उसकी बराबरी में लाना पड़ेगा। चाहे मेरा बिहार हो, चाहे मेरा बंगाल हो, चाहे मेरा असम हो, चाहे मेरा नॉर्थ-ईस्ट हो, चाहे मेरा पूर्वी उत्‍तर प्रदेश हो उसकी बराबरी में लाना पड़ेगा। हम इस देश को एक तरफ अपंग रखकर के, एक तरफ समृद्ध बनाकर के देश को आगे बढ़ा नहीं सकते और इसलिए मैं विकास में उसकी ओर बल देना चाहता हूं। मैं चाहूंगा कि आप इसको मदद करेंगे। 

आप देखिए Co-operative Federalism.. Federalism की बातें बहुत हुई है, क्या होता था, हमें याद है। रेलवे में bridge बन गया है। लेकिन दोनों तरफ connectivity नहीं थी। दो-दो साल ऐसे लटकता पड़ा है Bridge, कभी दोनों ओर connectivity बनी है bridge नहीं बन रहा है, क्‍यों? तो या तो वो सरकार हमें पसंद नहीं है, या एक department दूसरे department की सुनता नहीं है, silos में काम चलता है। 

सैकड़ों प्रोजेक्‍ट.. इतना ही नहीं एक गांव में रेल जाती है। अब गांव में धीरे-धीरे रेल के उस तरफ बस्‍ती बनने लग गई। अब पीने का पानी ले जाने की पाइप डालनी है। रेल वाले अड़ जाते हैं; दो-दो साल तक पाइप ले जाने की permission नहीं देते थे। मुझे बताइये कि उसका क्‍या गुनाह, सरकार किसी की भी हो भई, लेकिन उस गांव वाले का क्‍या गुनाह कि जो रेल के नीचे पाइप ले जाकर के बिचारे को दूसरी ओर पानी देना, नहीं देते थे? हमने सरकार में आकर के पहला सुकाम मैंने किया कि यह जितनी चीजें हैं, उसको clear करो और मैं आज गर्व से कहता हूं, हमने सबको clear कर दिया। यह देखा नहीं कि वहां किस level की सरकार बैठी है, नहीं देखा, विकास ऐसे होता है और इसलिए हमने उस दिशा में प्रयास किया है। 

हमारे यहां कुछ तो चीजें permission में साहब इतना सारी permission रेलवे को मैंने सभी Department के साथ जोड़ दिया है। मैंने कहा है कि सब Department के साथ मिलकर के काम करो। सभी राज्‍यों के मिलकर के काम करो, रेल जारी है वे सारे लोग रूक जाए ऐसा काम नहीं हो सकता है। हम विकास की उस परिभाषा को लेकर के चला जाए और इसलिए Co-operative Federalism की मैं बात करता हूं। उन राज्‍यों की समस्‍याओं को हमने address करना चाहिए। हम यह किया, वो किया, उसके आधार पर देश नहीं चलता। देश को आगे बढ़ाना है तो राज्‍यों को आगे बढ़ाना पड़ेगा। 

मैं जब राज्‍य का मुख्‍यमंत्री था तो मैं हमेशा कहा करता था कि भारत के विकास के लिए गुजरात का विकास। यह मंत्र हमेशा मेरे जीवन में रखा था और मैं सबको बताता था। आज मैं कहता हूं कि देश का समृद्ध बनाने के लिए राज्‍यों का समृद्ध बनाना है। देश को सशक्‍त बनाने के लिए, राज्‍यों को सशक्‍त बनाना होगा। हम कल्‍पना कर सकते हैं। हमने आते ही यह खनिज Royalty वगैरह डेढ़ गुणा कर दिया। वो पैसा किसको जाएगा? राज्‍यों को जाएगा। वो राज्‍य कौन है जहां सबसे ज्‍यादा खनिज है। यह जो मैं पूर्वी हिंदुस्‍तान के विकास की बात करता हूं ना! उसकी जड़, उसमें है क्योंकि वो खनिज सबसे ज्यादा हमारे पूर्वी इलाके में है, देश में वो हमको लाभ होने वाला है।

कोयला..Auction हुआ फायदा किसको जाएगा। ये सारा का सारा पैसा राज्य के खजाने में जाने वाला है। कुछ राज्यों ने कल्पना तक नहीं की होगी। उनके बजट से ज्यादा रुपया उनके सामने पड़ा होगा, यहां तक पहुंच पाएंगे। क्या ये Federal System में राज्यों को मजबूत करने का तरीका है कि नहीं है? अभी 42% Finance Commission की Report को स्वीकार करके हम दे रहे हैं। जबकि Finance Commission एकमत नहीं है। Finance Commission के Member के अंदर भी Dispute है। हम उसका फायदा उठा सकते थे, हम नहीं उठाना चाहते हैं क्योंकि तथ्यों पर हमारा Commitment है। राज्यों समृद्ध होने चाहिए, राज्य मजबूत होने चाहिए 42 Percent दे रहा हूं। ये Amount छोटी नहीं है। जब Amount जब आप सुनोगे हैरान हो जाओगे। कुछ राज्यों के पास तो तिजारी की Size ही नहीं है, इतने रुपयों के लिए। 

इतना ही नहीं, उसके उपरांत, पंयायतों के लिए अलग, नगरपालिकाओं के लिए अलग, महानगरपालिकाओं के लिए अलग। इतना ही नहीं, Disaster होता है, कोई प्राकृतिक आपदा आती है उसके लिए अलग। ये सब मैं मिलाऊं ना तो करीब-करीब 47-48% जाता है।..और आजादी के बाद पहली बार…आजादी के बाद पहली बार ये जानकर के आपको भी आनंद होगा और राज्यों में बैठे हुए मुखियाओं को मैं कहता हूं शायद उनको भी ध्यान नहीं होगा। आजादी के बाद पहली बार हिंदुस्तान के राज्यों के पास जो खजाना है और भारत सरकार के पास खजाना है उस पूरे खजाने का Total लगाया जाए और हिसाब लगाएंगे तो निकलेगा 62% खजाना राज्यों के पास है, 38% खजाना भारत सरकार के पास है। पहली बार देश में उल्टा क्रम हमने किया है कि दिल्ली सरकार का खजाना हमने कम किया है, राज्यों का खजाना भरा है। हमारा मानना है कि राज्यों को हमें ताकतवर बनाना चाहिए, राज्यों को विकास के लिए अवसर देना चाहिए और उस काम को हम कर रहे हैं और राजनीति से परे होकर के कर रहे हैं। इसका दल-उसका दल झंडे के रंग देखकर के देश की प्रगति नहीं होती है। हमें तो अगर झंडे का रंग दिखता है तो सिर्फ तिरंगा दिखता है और कोई रंग दिखता नहीं और उसी को लेकर के हम चलते हैं। 

आदरणीय सभापति महोदया जी! हमारे देश में राजनीतिक कारणों से सांप्रदाय का जहर घुलता जा रहा है और आज से नहीं चला जा रहा है, लंब अर्से से चला जा रहा है। जिसने देश को तबाह करके रखा हुआ है, दिलों को तोड़ने का काम किया है, लेकिन सवाल हमसे पूछे जा रहे हैं, हमारी भूमिका क्या है? मैं आज जरा इस सदन को कहना चाहता हूं। 27 अक्टूबर 2013, मैं पटना में था, गांधी मैदान में था, बम धमाके हो रहे थे, निर्दोष लोग मौत के घाट उतारे गए। लाखों की जन-मैदिरी थी, बड़ा ही कलुषित माहौल था। रक्त की धाराएं बह रही हैं। उस समय जब इंसान के हृदय से बातें निकलती हैं, वो सच्चाई के तराजू पर शत-प्रतिशत सही निकलती हैं, उसमें कोई लाग-लेपट नहीं होता है। 

बम-बंदूक के बीच रक्त बह रहा था, लोग मर रहे थे। उस समय मेरा जो भाषण है और उसमें मैंने कहा था कि मैं कहना चाहता हूं, मैं पूछना चाहता हूं कि बताइए हिंदूओं को किसके साथ लड़ना है? क्या मुसलमान के साथ लड़ना है? कि गरीबी के साथ लड़ना है? मैं मुसलमानों को पूछता था कि क्या आपको हिंदुओं के साथ लड़ना है? कि गरीबी के खिलाफ लड़ना है?..और मैंने कहा था कि आइए बहुत लड़ लिए हिंदू-मुसलमान एक होकर के हम गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ें। पटना के गांधी मैदान में बम, बंदूक, पिस्तौल और गोलियों के बीच में उठाई हुई आवाज है। 

और इसलिए कृपा करके हम उन काल्‍पनिक बातों को लेकर के बयानबाजी कर करके और इसलिए भारत को प्रेम करने वाले हर व्‍यक्ति के लिए यह बात साफ है यह देश विविधताओं से भरा हुआ है। विविधता में एकता यही हमारे देश की पहचान है, यही हमारी ताकत है। हम एकरूपता के पक्षकार नहीं है। हम एकता के पक्षकार है और सभी सम्‍प्रदायों के, सभी संप्रदायों का फलना-फूलना, यह भारत की धरती पर ही संभव होता है। यह भारत की विशेषता है और मैं यह कहना चाहता हूं कि हमारा जो संविधान बना है, वो संविधान हजारों साल की हमारे चिंतन की अभिव्‍यक्ति है। हमारा जो संविधान बना है वो हमारे भारत के सामान्‍य मानव की आशाओं, आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने वाला संविधान है और इस संविधान की मर्यादा में रह करके देश चल सकता है। देश संविधान की मर्यादाओं के बाहर नहीं चल सकता है। किसी को भी कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं होता है। किसी को भी साम्‍प्रदाय के आधार पर किसी के भी साथ discrimination करने का अधिकार नहीं होता है। हरेक किसी को अपने साथ चलने का अधिकार है और मेरी जिम्‍मेदवारी है, सरकार में बैठा हूं, सरकार कैसे चलेगी उसकी जिम्‍मेदारी है और इसलिए मैं आपको कहना चाहता हूं और मैं बार-बार कहता हुआ आया हं साम्‍प्रदाय के नाम पर अनाप-शनाप बातें करने वालों को कहना चाहता हूं, मैं यह कहना नहीं चाहता आज आपका मुंह बंद करने के लिए मेरे पास हजारों चीजें हैं, मैं समय बर्बाद नहीं करता हूं, इसके लिए मैं समय बर्बाद नहीं करता हूं, लेकिन मैं आपको कहना चाहता हूं हमारा commitment क्‍या है, वो मैं आपको कहना चाहता हूं, मैंने बार-बार कहा है मेरी सरकार का, मेरी सरकार का एक ही धर्म है- India-First, मेरी सरकार का एक ही धर्म है- भारत का संविधान, मेरी सरकार का एक ही धर्मग्रंथ है- भारत का संविधान, मेरी सरकार की एक ही भक्ति है- भारत भक्ति, मेरी सरकार की एक ही पूजा है- सवा सौ करोड़ देशवासियों का कल्‍याण, मेरी सरकार की एक ही कार्यशैली है- ”सबका साथ, सबका विकास” और इसलिए हम संविधान को लेकर के संविधान की सीमा में रह करके देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं। 

हमारे यहां एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति हमारा तत्वज्ञान रहा है। Truth is one, sages call it in the different ways, सत्‍य एक है विद्वान लोग उसको अलग-अलग तरीके से कहते हैं। यह हम कहने वाले लोगों में से हैं। 

और इतना ही नहीं, यही देश है जहां गुरूनानक देव ने क्‍या कहा है। गुरूनानक देव ने कहा है – 

“सब मेही रब रेहिया प्रभ एकाई, पेख पेख नानक बिगसाई''

The one God pervades within all. Beholding Him in all Nanak is delighted. यह हमारा तत्‍व ज्ञान रहा है, यह हमारी परंपरा रही है और इसलिए, हम वो लोग हैं जहां पर 

''सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः। सत्येन वायवो वान्ति सर्व सत्ये प्रतिष्ठितम्॥'

इसी मंत्र को लेकर के काम करने वाले हम लोग हैं और इसलिए जब मैं कहता हूं कि “सबका साथ, सबका विकास”, यह “सबका साथ, सबका विकास” में मुझे आपको भी साथ चाहिए और आपका भी साथ चाहिए क्‍योंकि सबका विकास करना है। 

मैं फिर एक बार जिन-जिन महानुभावों ने विचार रखे हैं उनका भी धन्‍यवाद करता हूं और जो उत्‍तम बातें आपके माध्‍यम से आई हैं। उसको भी परीक्षण करके देश के हित में कहां लागू किया जाए उसके लिए हम प्रयास करेंगे। और मैं फिर एक बार आदरणीय राष्‍ट्रपति जी का हृदय से धन्‍यवाद करता हूं और आगे भी उनका मार्गदर्शन हमें मिलता रहे। 

इसी अपेक्षा के साथ बहुत बहुत धन्‍यवाद।

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लाईफ ओके पर नया कार्यक्रम ड्रीम गर्ल

हिंदी एंटरटेनमेंट चैनल लाइफ ओके पर जल्द ही एक नया शो शुरू होगा, जिसका शीर्षक है ‘ड्रीम गर्ल- एक लड़की दीवानी सी’। यह शो महिलाओं पर केंद्रित है, और इसका लक्ष्य छोटे परिवार की उस हर लड़की से जुड़ाव विकसित करना है, जिसके सपने बड़े हैं। यह कार्यक्रम 9 मार्च से सोमवार से शुक्रवार रात 9.30 बजे से प्रसारित होगा।
 
ड्रीम गर्ल एक दृढ़ निश्चयी लड़की लक्ष्मी की कहानी है, जिसका किरदार निकिता दत्त निभा रही हैं, जो जोधपुर के छोटे से शहर की लड़की है और बॉलिवुड की सबसे बड़ी स्टार बनना चाहती है। अपनी सकारात्मक सोच के साथ लक्ष्मी का लक्ष्य समर सरीन के अपोजिट लॉन्च होने का है, जो बॉलिवुड का सबसे अधिक आकर्षक न्यू फेस है। उसका किरदार मोहसिन खान निभा रहे हैं।
 
अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लक्ष्मी किसी भी हद तक जा सकती है, लेकिन जब वह अभिनेत्री बनने के अपने सपने और अपने प्यार के बीच उलझ जाती है, तो वहीं से कहानी प्रारंभ होती है।
 
इस धादारवाहिक में निकिता दत्ता, मोहसिन खान, श्रद्धा आर्य और खालिद सिद्दीकी प्रमुख किरदार निभा रहे हैं।

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रुईया ने रखैल बना लिया देश के नेताओं को

एक अंग्रेजी अखबार ने सनसनीखेज खुलासा किया है कि किस तरह उद्योगपति रुइया परिवार के एस्सार समूह ने कथिततौर पर अपने खर्च पर भाजपा के बड़े नेता नितिन गडकरी को सपरिवार क्रूज की सैर कराई। कंपनी के आंतरिक ईमेल और अन्य वार्तालापों में पूर्व कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के साथ ही कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और भाजपा सांसद वरूण गांधी के नाम भी हैं।

एक व्हिसलब्लोअर ने ये जानकारी जुटाई है, जिसे लेकर जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जाएगी। कंपनी के अधिकारियों के बीच हुई बातचीत से संदेह है कि कंपनी ने अपने हितों को साधने के लिए मंत्रियों, नौकरशाहों और पत्रकारों को लालच दिया।

इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने इन दस्तावेजों के आधार पर जब एस्सार के प्रवक्ता से सवाल किए, तो जवाबी ईमेल में बताया गया कि कंपनी से जुड़े ईमेल से कुछ डेटा चोरी किया गया है और उसके साथ छेड़खानी की गई है। वे इस बारे में पहले ही दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज कर चुके हैं।

हेलिकॉप्टर से याट पर गया था गडकरी परिवार!

दस्तावेजों में लिखा है कि भाजपा नेता नितिन गडकरी, उनकी पत्नी, दो बेटों और बेटी ने फ्रैंच रिविएरा में एस्सार कंपनी के याट 'सनरेज़' पर दो रातें बिताई थीं। यह सात से नौ जुलाई 2013 के बीच की बात है। नाइस एयरपोर्ट से गडकरी का परिवार हेलिकॉप्टर से याट पर गया था।

हालांकि तब गडकरी न तो मंत्री थे, ना ही भाजपा अध्यक्ष, लेकिन कंपनी के एक ईमेल में लिखा गया था कि ये बहुत महत्वपूर्ण लोग हैं। उनका ख्याल रखा जाए।

बहरहाल, अखबार ने इस बारे में जब गडकरी से बात की तो उन्होंने साफ किया कि मैं उस समय न तो भाजपा अध्यक्ष था, न मंत्री पद पर था, इसलिए हितों के टकराव का कोई मसला नहीं है। बकौल गडकरी, मैं रुइया परिवार को 25 साल से जानता हूं। वे मेरे पड़ोसी रहे हैं। जब उन्हें पता चला कि मैं यूरोप की यात्रा पर हूं तो उन्होंने मुझे आमंत्रित किया था। वो मेरी निजी यात्रा थी। अब मैं मंत्री हूं तो जाहिरतौर पर ऐसा कुछ नहीं करूंगा।

नौकरी दिलवाते थे ये बड़े नेता

कंपनी दस्तावेजों के आधार पर तत्कालीन कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, मोतीलाल वोरा, तत्कालीन सांसद यशवंत नारायण सिंह लागुरी और भाजपा के वरूण गांधी ने अपने-अपने उम्मीदवारों को कंपनी में नौकरी के लिए भेजा था।

कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एक ईमेल में जिक्र किया है कि किस तरह 200 पद वीआईपी के नाम पर रिक्त रखे गए।

अपने लोगों को नौकरी दिलवाने के सवाल पर श्रीप्रकाश जायसवाल ने स्वीकार किया कि मैं अपने क्षेत्र के बेरोजगार युवकों को नौकरी दिलाने का प्रयास करता रहता हूं।

वहीं दिग्विजय सिंह ने भी कहा, मुझे याद नहीं आ रहा, लेकिन हां मैं इस तरह बेरोजगारों की मदद करता रहता हूं। वरूण गांधी ने कहा, कई पढ़े-लिखे बेरोजगार युवक मुझसे मिलते हैं और नौकरी दिलवाने की बात करते हैं, तो उनकी मदद करता हूं।

सांसदों और नौकरशाहों को महंगे फोन

एक अन्य ईमेल में कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शीर्ष नौकरशाहों और सांसदों को गिफ्ट दिए जाने वाले 200 महंगे सेलफोन का जिक्र किया है। दिल्ली के पत्रकारों के लिए मुफ्त कैब का जिक्र भी है।

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दूरदर्शन के स्त्री शक्ति में आई दिव्या दत्ता

दूरदर्शन के महिलाओं पर आधारित कार्यक्रम ‘स्त्री शक्ति’ की लोकप्रियता को देखते हुए इसका विस्तार किया जा रहा है, साथ ही कार्यक्रम को और बेहतर बनाने की कवायद भी जारी है। अब अभिनेत्री दिव्या दत्ता इस कार्यक्रम की सूत्रधार के रूप में सामने आएँगी।  इस कार्यक्रम के 14 एपिसोड प्रसारित किए जाएंगे।
 
उम्मीद की जा रही है कि ‘वीर-जारा’, ‘स्पेशल 26’, ‘हेरोइन’, ‘भाग मिल्खा भाग’ जैसी हिट फिल्में देने वाली दिव्या अपनी गंभीर आवाज, विश्वास से भरे व्यक्तित्व और संवेदनशील दृष्टिकोण से कार्यक्रम को एक नई ऊंचाई पर ले जाएंगी और सफल महिलाओं से दिल को छू लेने वाली उनकी कहानी को बाहर निकलवा पाएंगी।
 
दिव्या के अनुसार ‘सफलता अर्जित करने वाली सभी महिलाओं की कहानी सुनकर मैं अपने आप को छोटा और हीन अनुभव करती हूं । उनसे मुझे प्रेरणा मिली है । कभी-कभी तो मैं मंत्र-मुग्ध और अवाक रह जाती थी। प्रत्येक कड़ी के अंत तक मैं यह महसूस करती थी कि ये महिलाएं कितनी समर्थ और स्वाधीन हैं जिन्होंने इतनी दुखद और कठिन परिस्थितियों में वो हासिल किया है जो कोई भी मनुष्य हासिल नहीं कर सकता। उर्वशी, स्नेहा और प्रियंका जैसी महिलाओं ने मुझे सम्मान में अपना सिर झुकाने को बाध्य किया है।’

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