Tuesday, November 26, 2024
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मुर्गे-मुर्गी के प्यार पर मुर्गी मालिक ने मुर्गे पर तीर चलाया!

मध्य प्रदेश में प्यार का एक अनोखा मामला सामने आया है। आदिवासी बहुल अलीराजपुर जिले के गांव ढेकाकुंड में छोटे भाई के मुर्गे को अपनी मुर्गी से इश्क लड़ाता देख एक व्यक्ति आपा खो बैठा। उसने मुर्गे को तीर मारकर घायल कर दिया। गत 23 दिसंबर को हुई इस घटना के बाद से आरोपी फरार है। पुलिस मुर्गा मालिक की शिकायत पर मुकदमा दर्ज कर उसकी तलाश कर रही है।

पुलिस के अनुसार, जगलिया भील का मुर्गा घर से निकलकर दालान में दाना चुग रहा था। इसी दौरान उसके छोटे भाई ज्ञानसिंह भील की मुर्गी भी बाहर आ गई। मुर्गी को देख मुर्गा इश्क फरमाने उसके पास जा पहुंचा। मुर्गे को अपनी मुर्गी के साथ चोंच लड़ाना ज्ञानसिंह को बेहद नागवार गुजरा। वह घर के अंदर से धनुष-तीर लेकर आया और मुर्गे पर तीर से वार कर दिया। तीर मुर्गे के शरीर के आर-पार हो गया।

मुर्गा मालिक जगलिया भील को जब यह पता चला तो वह हैरान रह गया। वह तुरंत अपने घायल मुर्गे को लेकर पुलिस थाने जा पहुंचा। पुलिस ने मुर्गे को पशु चिकित्सालय भेजा। डॉक्टरों ने तीर निकालने से पहले मुर्गे की हालत में सुधार होने का इंतजार किया। उनका कहना था कि अगर तीर तुरंत शरीर से निकाल दिया जाता तो अधिक मात्रा में खून बहने से मुर्गे की मौत हो जाती। फिलहाल प्राथमिक उपचार के बाद मुर्गा स्वास्थ्य लाभ ले रहा है।

थाना प्रभारी आशाराम वर्मा ने बताया कि आरोपी ज्ञानसिंह भील के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसकी तलाश की जा रही है।

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अटलजी, जिन्होंने कभी हार नहीं मानी

अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस पर विशेष

टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं…

यह कविता है देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की, जिन्हें सम्मान एवं स्नेह से लोग अटलजी कहकर संबोधित करते हैं. कवि हृदय राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी ओजस्वी रचनाकार हैं. अटलजी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर के शिंके का बाड़ा मुहल्ले में हुआ था. उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी अध्यापन का कार्य करते थे और माता कृष्णा देवी घरेलू महिला थीं. अटलजी अपने माता-पिता की सातवीं संतान थे. उनसे बड़े तीन भाई और तीन बहनें थीं. अटलजी के बड़े भाइयों को अवध बिहारी वाजपेयी, सदा बिहारी वाजपेयी तथा प्रेम बिहारी वाजपेयी के नाम से जाना जाता है. अटलजी बचपन से ही अंतर्मुखी और प्रतिभा संपन्न थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा बड़नगर के गोरखी विद्यालय में हुई. यहां से उन्होंने आठवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की. जब वह पांचवीं कक्षा में थे, तब उन्होंने प्रथम बार भाषण दिया था. लेकिन बड़नगर में उच्च शिक्षा की व्यवस्था न होने के कारण उन्हें ग्वालियर जाना पड़ा. उन्हें विक्टोरिया कॉलेजियट स्कूल में दाख़िल कराया गया, जहां से उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की. इस विद्यालय में रहते हुए उन्होंने वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया तथा प्रथम पुरस्कार भी जीता. उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण की. कॉलेज जीवन में ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना आरंभ कर दिया था. आरंभ में वह छात्र संगठन से जुड़े. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख कार्यकर्ता नारायण राव तरटे ने उन्हें बहुत प्रभावित किया. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा प्रभारी के रूप में कार्य किया. कॉलेज जीवन में उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं. वह 1943 में कॉलेज यूनियन के सचिव रहे और 1944 में उपाध्यक्ष भी बने. ग्वालियर की स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद वह कानपुर चले गए. यहां उन्होंने डीएवी महाविद्यालय में प्रवेश लिया. उन्होंने कला में स्नातकोत्तर उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त की. इसके बाद वह पीएचडी करने के लिए लखनऊ चले गए. पढ़ाई के साथ-साथ वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य भी करने लगे. परंतु वह पीएचडी करने में सफलता प्राप्त नहीं कर सके, क्योंकि पत्रकारिता से जुड़ने के कारण उन्हें अध्ययन के लिए समय नहीं मिल रहा था. उस समय राष्ट्रधर्म नामक समाचार-पत्र पंडित दीनदयाल उपाध्याय के संपादन में लखनऊ से मुद्रित हो रहा था. तब अटलजी इसके सह सम्पादक के रूप में कार्य करने लगे. पंडित दीनदयाल उपाध्याय इस समाचार-पत्र का संपादकीय स्वयं लिखते थे और शेष कार्य अटलजी एवं उनके सहायक करते थे. राष्ट्रधर्म समाचार-पत्र का प्रसार बहुत बढ़ गया. ऐसे में इसके लिए स्वयं की प्रेस का प्रबंध किया गया, जिसका नाम भारत प्रेस रखा गया था.

कुछ समय के पश्चात भारत प्रेस से मुद्रित होने वाला दूसरा समाचार पत्र पांचजन्य भी प्रकाशित होने लगा. इस समाचार-पत्र का संपादन पूर्ण रूप से अटलजी ही करते थे. 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतंत्र हो गया था. कुछ समय के पश्चात 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हुई. इसके बाद भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित कर दिया. इसके साथ ही भारत प्रेस को बंद कर दिया गया, क्योंकि भारत प्रेस भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभाव क्षेत्र में थी. भारत प्रेस के बंद होने के पश्चात अटलजी इलाहाबाद चले गए. यहां उन्होंने क्राइसिस टाइम्स नामक अंग्रेज़ी साप्ताहिक के लिए कार्य करना आरंभ कर दिया.  परंतु जैसे ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगा प्रतिबंध हटा, वह पुन: लखनऊ आ गए और उनके संपादन में स्वदेश नामक दैनिक समाचार-पत्र प्रकाशित होने लगा.  परंतु हानि के कारण स्वदेश को बंद कर दिया गया.  इसलिए वह दिल्ली से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र वीर अर्जुन में कार्य करने लगे. यह दैनिक एवं साप्ताहिक दोनों आधार पर प्रकाशित हो रहा था. वीर अर्जुन का संपादन करते हुए उन्होंने कविताएं लिखना भी जारी रखा.  

अटलजी को जनसंघ के सबसे पुराने व्यक्तियों में एक माना जाता है. जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लग गया था, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीय जनसंघ का गठन किया था. यह राजनीतिक विचारधारा वाला दल था. वास्तव में इसका जन्म संघ परिवार की राजनीतिक संस्था के रूप में हुआ. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके अध्यक्ष थे. अटलजी भी उस समय से ही इस दल से जुड़ गए. वह अध्यक्ष के निजी सचिव के रूप में दल का कार्य देख रहे थे. भारतीय जनसंघ ने सर्वप्रथम 1952 के लोकसभा चुनाव में भाग लिया. तब उसका चुनाव चिह्न दीपक था. इस चुनाव में भारतीय जनसंघ को कोई विशेष सफ़लता प्राप्त नहीं हुई, परंतु इसका कार्य जारी रहा. उस समय भी कश्मीर का मामला अत्यंत संवेदनशील था. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अटलजी के साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों को जागरूक करने का कार्य किया. परंतु सरकार ने इसे सांप्रदायिक गतिविधि मानते हुए डॉ. मुखर्जी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया, जहां 23 जून, 1953 को जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई.  अब भारतीय जनसंघ का काम अटलजी प्रमुख रूप से देखने लगे. 1957 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ को चार स्थानों पर विजय प्राप्त हुई. अटलजी प्रथम बार बलरामपुर सीट से विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे. वह इस चुनाव में 10 हज़ार मतों से विजयी हुए थे. उन्होंने तीन स्थानों से नामांकन पत्र भरा था. बलरामपुर के अलावा उन्होंने लखनऊ और मथुरा से भी नामांकन पत्र भरे थे. परंतु वह शेष दो स्थानों पर हार गए. मथुरा में वह अपनी ज़मानत भी नहीं बचा पाए और लखनऊ में साढ़े बारह हज़ार मतों से पराजय स्वीकार करनी पड़ी. उस समय किसी भी पार्टी के लिए यह आवश्यक था कि वह कम से कम तीन प्रतिशत मत प्राप्त करे, अन्यथा उस पार्टी की मान्यता समाप्त की जा सकती थी. भारतीय जनसंघ को छह प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे. इस चुनाव में हिन्दू महासभा और रामराज्य परिषद जैसे दलों की मान्यता समाप्त हो गई, क्योंकि उन्हें तीन प्रतिशत मत नहीं मिले थे. उन्होंने संसद में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी. 1962 के लोकसभा चुनाव में वह पुन: बलरामपुर क्षेत्र से भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी बने, परंतु उनकी इस बार पराजय हुई. यह सुखद रहा कि 1962 के चुनाव में जनसंघ ने प्रगति की और उसके 14 प्रतिनिधि संसद पहुंचे. इस संख्या के आधार पर राज्यसभा के लिए जनसंघ को दो सदस्य मनोनीत करने का अधिकार प्राप्त हुआ. ऐसे में अटलजी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय राज्यसभा में भेजे गए. फिर 1967 के लोकसभा चुनाव में अटलजी पुन: बलरामपुर की सीट से प्रत्याशी बने और उन्होंने विजय प्राप्त की. उन्होंने 1972 का लोकसभा चुनाव अपने गृहनगर अर्थात ग्वालियर से लड़ा था. उन्होंने बलरामपुर संसदीय चुनाव का परित्याग कर दिया था. उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं, जिन्होंने जून, 1975 में आपातकाल लगाकर विपक्ष के कई नेताओं को जेल में डाल दिया था. इनमें अटलजी भी शामिल थे. उन्होंने जेल में रहते हुए समयानुकूल काव्य की रचना की और आपातकाल के यथार्थ को व्यंग्य के माध्यम से प्रकट किया. जेल में रहते हुए ही उनका स्वास्थ्य ख़राब हो गया और उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया. लगभग 18 माह के बाद आपातकाल समाप्त हुआ. फिर 1977 में लोकसभा चुनाव हुए, परंतु आपातकाल के कारण श्रीमती इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं. विपक्ष द्वारा मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व में जनता पार्टी की सरकार बनी और अटलजी विदेश मंत्री बनाए गए. उन्होंने कई देशों की यात्राएं कीं और भारत का पक्ष रखा.  4 अक्टूबर, 1977 को उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में हिंदी में संबोधन दिया. इससे पूर्व किसी भी भारतीय नागरिक ने राष्ट्रभाषा का प्रयोग इस मंच पर नहीं किया था. जनता पार्टी सरकार का पतन होने के पश्चात् 1980 में नए चुनाव हुए और इंदिरा गांधी पुन: सत्ता में आ गईं. इसके बाद 1996 तक अटलजी विपक्ष में रहे. 1980 में भारतीय जनसंघ के नए स्वरूप में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ और इसका चुनाव चिह्न कमल का फूल रखा गया. उस समय अटलजी ही भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता थे. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के पश्चात् 1984 में आठवीं लोकसभा के चुनाव हुए, परंतु अटलजी ग्वालियर की अपनी सीट से पराजित हो गए. मगर 1986 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुन लिया गया.

13 मार्च, 1991 को लोकसभा भंग हो गई और 1991 में फिर लोकसभा चुनाव हुए. फिर 1996 में पुन: लोकसभा के चुनाव हुए.  इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी. संसदीय दल के नेता के रूप में अटलजी प्रधानमंत्री बने. उन्होंने 21 मई, 1996 को प्रधानमंत्री के पद एवं गोपनीयता की शपथ ग्रहण की. 31 मई, 1996 को उन्हें अंतिम रूप से बहुमत सिद्ध करना था, परंतु विपक्ष संगठित नहीं था. इस कारण अटलजी मात्र 13 दिनों तक ही प्रधानमंत्री रहे. इसके बाद वह अप्रैल, 1999 से अक्टूबर, 1999 तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे. 1999 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ और 13 अक्टूबर, 1999 को अटलजी ने प्रधानमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली. इस प्रकार वह तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और अपना कार्यकाल पूरा किया.

पत्रकार के रूप में अपना जीवन आरंभ करने वाले अटलजी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. राष्ट्र के प्रति उनकी समर्पित सेवाओं के लिए वर्ष 1992 में राष्ट्रपति ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया. वर्ष 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की उपाधि प्रदान की. उन्हें 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार दिया गया. वर्ष 1994 में श्रेष्ठ सासंद चुना गया तथा पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अटलजी ने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें कैदी कविराय की कुंडलियां, न्यू डाइमेंशन ऒफ़ एशियन फ़ॊरेन पॊलिसी, मृत्यु या हत्या, जनसंघ और मुसलमान, मेरी इक्यावन कविताएं, मेरी संसदीय यात्रा (चार खंड), संकल्प-काल एवं गठबंधन की राजनीति सम्मिलित हैं.
 
अटलजी को इस बात का बहुत हर्ष है कि उनका जन्म 25 दिसंबर को हुआ. वह कहते हैं- 25 दिसंबर! पता नहीं कि उस दिन मेरा जन्म क्यों हुआ?  बाद में, बड़ा होने पर मुझे यह बताया गया कि 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिन है, इसलिए बड़े दिन के रूप में मनाया जाता है. मुझे यह भी बताया गया कि जब मैं पैदा हुआ, तब पड़ोस के गिरजाघर में ईसा मसीह के जन्मदिन का त्योहार मनाया जा रहा था. कैरोल गाए जा रहे थे. उल्लास का वातावरण था. बच्चों में मिठाई बांटी जा रही थी. बाद में मुझे यह भी पता चला कि बड़ा धर्म पंडित मदन मोहन मालवीय का भी जन्मदिन है. मुझे जीवन भर इस बात का अभिमान रहा कि मेरा जन्म ऐसे महापुरुषों के जन्म के दिन ही हुआ. 

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‘स्टार न्यूज़ एजेंसी’

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(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में प्राध्यापक हैं)

 

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लोक सभा चुनाव में भी अपना रंग जमाएगी आप

दिल्ली में सरकार बनाने जा रही आम आदमी पार्टी (आप) अब लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों के लिए आवेदन खिड़की खोलने जा रही है। शुक्रवार से तयशुदा शर्तों के तहत देशभर की 543 सीटों के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जा सकेगा।

पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट पर आवेदकों को फॉर्म अपलोड करना होगा। जनवरी के आखिरी हफ्ते से उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया जाने लगेगा।

पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि लोकसभा चुनाव में मुख्य रूप से देश के उन 309 जिलों पर नजर रहेगी, जहां दिल्ली चुनाव से पहले पार्टी की शाखाएं काम कर रही हैं। इनमें भी पार्टी का पूरा जोर देश की करीब 200 शहरी सीटों पर होगा।

आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह का कहना है कि देशभर के कई नामचीन चेहरे हमारे संपर्क में हैं। लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक व्यक्ति शुक्रवार से वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे। जितना जल्दी संभव हो उम्मीदवारों का नाम तय करने की हमारी कोशिश है। दिल्ली चुनाव में अपनाई गई प्रक्रिया में मामूली संशोधन के साथ उम्मीदवारों का चयन किया जाएगा।

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कोल्हू के बैल बिजली भी पैदा करेंगे

रायपुर । भले ही बैलों की मदद से चलने वाले कोल्हू अब कम नजर आते हों, लेकिन यह तकनीक अभी भी कारनामा करने का माद्दा रखती है। भिलाई में कोल्हू से बिजली पैदा करने की तकनीक ईजाद कर ली गई है। भिलाई के शंकराचार्य इंजीनियरिंग कॉलेज के मैकेनिकल विभाग की टीम ने कोल्हू तकनीक से विद्युत उत्पादन इकाई तैयार कर ग्रामीण भारत के लिए एक उपयोगी यंत्र उपलब्ध कराया है। पशुओं की मदद से चलने वाली यह मशीन न केवल सस्ती है, बल्कि इसके प्रयोग से बिजली की कमी से जूझ रहे ग्रामीण इलाकों में भी बिजली लाई जा सकती है। शंकराचार्य इंजीनियरिंग कॉलेज के मेकेनिकल विभाग के प्रवक्ता शरद कुमार चंद्राकर, एमई के छात्र धनंजय कुमार यादव, ललित कुमार साहू और धीरज लाल सोनी ने तीन महीने की मेहनत के बाद इस सस्ते यंत्र को विकसित किया। गौरतलब है कि दल के सभी सदस्य किसान वाली पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं। उन्होंने ग्रामीण इलाकों में बिजली की समस्या को ध्यान में रखकर ही इसे विकसित किया है।

3 हजार रुपए आती है लागत

इसे बनाने में उतना ही खर्च आ रहा है, जितना कि एक किसान का सालभर का बिजली खर्च आता है। चंद्राकर के अनुसार, इस संयंत्र को बनाने में 23 हजार रुपये की लागत आती है। इसके अलावा यह प्रदूषण मुक्त भी है।

बैल की एक घंटे की मेहनत से पैदा होती है 5 घंटे 40 मिनट की बिजली

चंद्राकर ने बताया कि कोल्हू की तर्ज पर बनाए गए इस प्रोजेक्ट में चार जोड़े विभिन्न आकार के गियर, एक जोड़ी पुल्ली और बेयरिंग का इस्तेमाल किया गया है। एक हैंडल को कोल्हू की शक्ल दी गई है, जिसे बैल घुमाते हैं। उन्होंने बताया कि बैलों के घुमाने पर आठों गियर घूमने लगते हैं और उससे पुल्ली के माध्यम से जुड़ा कार का अल्टरनेटर घूमने लगता है। अल्टरनेटर से डीसी वोल्ट पैदा होने लगता है, जो एक बैटरी को चार्ज करता है। बैटरी पूरी तरह चार्ज होने के बाद इनवर्टर के माध्यम से एसी करंट पैदा कर उसे इस्तेमाल में लाया जाता है। इस यंत्र के माध्यम से बैल की एक घंटे की मेहनत से 5 घंटे 40 मिनट की बिजली पैदा की जा सकती है। बैलों के एक चक्कर में अल्टेरनेटर 1500 बार घूमता है। इस तरह बैटरी जल्दी चार्ज हो जाती है। एक घंटे में तैयार हुई बिजली से 0.5 एचपी पंप को 5 घंटे 40 मिनट तक चलाया जा सकता है और 14 हजार लीटर पानी निकाला जा सकता है। इसके अलावा इससे पैदा हुई बिजली से अन्य घरेलू काम भी किए जा सकते हैं।

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क्रिसमस पर 500 ईसाई हिन्दू बनेंगे

हाथरस में क्रिसमस के मौके ईसाई समुदाय के लोगों की हिंदू धर्म में वापसी कराई जाएगी। उत्तर प्रदेश के हाथरस में हो रहे इस आयोजन से जुड़े लोगों का कहना है कि 500 ईसाई हिंदू धर्म अपनाएंगे।

शहर के लेबर कॉलोनी स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में यह कार्यक्रम होगा। इस मौके पर 500 ईसाई समाज के लोगों को फिर से हिंदू धर्म ग्रहण कराने की तैयारी की गई है। इन्हें वैदिक रीति रिवाज के साथ हिंदू धर्म ग्रहण कराया जाएगा। संघ, विहिप, बजरंग दल आदि हिंदू संगठन इस आयोजन में लगे हैं। यह कार्यक्रम धर्म जागरण समिति के तहत होगा

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लघु पत्रिकाओं का खज़ाना है यहाँ

लघु पत्रिका केन्द्र- जोकहरा लघु पत्रिका (लिटिल मैगजीन) आन्दोलन मुख्य रूप से पश्चिम में प्रतिरोध (प्रोटेस्ट) के औजार के रूप में शुरू हुआ था. यह प्रतिरोध राज्य सत्ता, उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद या धार्मिक वर्चस्ववाद– किसी के भी विरुद्ध हो सकता था. लिटिल मैगजीन आन्दोलन की विशेषता उससे जुडे लोगों की प्रतिबद्धता तथा सीमित आर्थिक संसाधनों में तलाशी जा सकती थी. अक्सर बिना किसी बडे औद्योगिक घराने की मदद लिये बिना, किसी व्यक्तिगत अथवा छोटे सामूहिक प्रयासों के परिणाम स्वरूप निकलने वाली ये पत्रिकायें अपने समय के महत्वपूर्ण लेखकों को छापतीं रहीं हैं. 

भारत में भी सामाजिक चेतना के बढने के साथ-साथ बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लघु पत्रिकायें प्रारम्भ हुयीं. 1950 से लेकर 1980 तक का दौर हिन्दी की लघु पत्रिकाओं के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण रहा. यह वह दौर था जब नई- नई मिली आजादी से मोह भंग शुरू हुआ था और बहुत बडी संख्या में लोग विश्वास करने लगे थे कि बेहतर समाज बनाने में साहित्य की निर्णायक भूमिका हो सकती है. बेनेट कोलमैन & कम्पनी तथा हिन्दुस्तान टाइम्स लिमिटेड की पत्रिकाओं-धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सारिका, कादम्बनी, दिनमान, और माधुरी जैसी बडी पूंजी से निकलने वाली पत्रिकाओं के मुकाबले कल्पना, लहर, वाम, उत्तरार्ध, आलोचना, कृति, क ख ग, माध्यम, आवेश, आवेग, संबोधन, संप्रेषण, आरम्भ, ध्वज भंग , सिर्फ , हाथ, कथा, नई कहानियां, कहानी, वयं, अणिमा जैसी पत्रिकायें निकलीं जो सीमित संसाधनों , व्यक्तिगत प्रयासों या लेखक संगठनों की देन थीं. 

इन पत्रिकाओं का मुख्य स्वर साम्राज्यवाद विरोध था और ये शोषण, धार्मिक कठमुल्लापन, लैंगिक असमानता, जैसी प्रवृत्तियों के विरुद्ध खडी दिखायीं देतीं थीं. एक समय तो ऐसा भी आया जब मुख्य धारा के बहुत से लेखकों ने पारिश्रमिक का मोह छोडकर बडी पत्रिकाओं के लिये लिखना बन्द कर दिया और वे केवल इन लघु पत्रिकाओं के लिये ही लिखते रहे. एक दौर ऐसा भी आया जब बडे घरानों की पत्रिकाओं में छपना शर्म की बात समझा जाता था और लघु पत्रिकाओं में छपने का मतलब साहित्यिक समाज की स्वीकृति की गारंटी होता था. 

आज राष्ट्रीय एवं ग्लोबल कारणों से न तो लघु पत्रिकाएं निकालने वालों के मन में पुराना जोश बाकी है और न ही उनमें छपना पहले जैसी विशिष्टता का अहसास कराता है फिर भी लघु पत्रिकाओं में छपी सामग्री का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है . हिन्दी साहित्य के बहुत सारे विवाद, आन्दोलन, प्रवृत्तियों को निर्धारित करने वाली सामग्री और महान रचनायें इन लघु पत्रिकाओं के पुराने अंकों में समाई हुयीं हैं. इनमें से बहुत सारी सामग्री कभी पुनर्मुद्रित नहीं हुयीं. साहित्य के गंभीर पाठकों एवं शोधार्थियों के लिये इनका ऐतिहासिक महत्व है.  

श्री रामानन्द सरस्वती पुस्तकालय ने इस महत्वपूर्ण खजाने को एक साथ उपलब्ध कराने के लिये अपने प्रांगण में वर्ष 2004-2005 में लघु पत्रिका केन्द्र की स्थापना की है. इस केन्द्र में 250 से अधिक लघु पत्रिकाओं के पूरे अथवा कुछ अंक उपलब्ध हैं. कोई भी शोधार्थी यहाँ पर आकर इस संग्रह की पत्रिकाओं का अध्ययन कर सकता है और आवश्यकता पडने पर फोटोकॉपी ले जा सकता है.

पुस्तकालय शोधार्थियों के रुकने की निशुल्क व्यवस्था भी करता है. इस सम्बन्ध में कोई भी सूचना सुधीर शर्मा से टेलीफोन नम्बर- 05466-239615 अथवा 9452332073 से प्राप्त की जा सकती है.

साभार- http://sriramanandsaraswatipustkalaya.blogspot.in/ से 

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ईसाई बनाने के लिए फिल्मी चेहरों और कुप्रचार का सहारा

पिछले कुछ दिनों से ईसाई मिशनरियों की कुदृष्टि राजधानी दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों पर है।  ईसाई मिशनरियों द्वारा इन शहरों में एक बहुत बड़े षड्यंत्र के तहत मतान्तरण का प्रयास किया जा रहा है। पिछले कुछ समय से देश के महानगरों में ईसाई मिशनरियों की हरकतें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जहां ईसाई मिशनरियों ने मुंबई में स्थान-स्थान पर पोस्टर और होर्डिंग लगाए हैं साथ ही महानगर में चलने वाली बसों, रेलवे स्टेशनों, कारों और पार्कों को इसका निशाना बनाया है। मिशनरियों द्वारा उन पोस्टरों में लाइफ टू चेंज और पावर टू चंेज के नाम के नाम से हिन्दुओं को बरगलाया जा रहा है। इन पोस्टरांे पर इसाई मिशनरियों ने फिल्म अभिनेता जॉनी लीवर , फिल्म अभिनेत्री नगमा आदि को दिखाया है। साथ ही उन पोस्टरों में एक पुस्तक का भी जिक्र किया गया है।

उस पुस्तक में कथानक के माध्यम से बताने का प्रयास किया जा रहा कि कैसेसलीब की शरण में जाकर उसका भला हो गया।  ऐसे अनेक लोगों के दिग्भ्रमित करने वाले कथानक प्रस्तुत कर ईसाई मिशनरियां मत परिवर्तन के काम में लगी है। पुस्तक में इस प्रकार की 14 कथाएं हैं। वहीं इस पुस्तक में प्रकाशक का नाम नहीं दिया गया है केवल तायंडेल हाउस पब्लिशर प्रकाशन संस्थान की अनुमति है ऐसा उसमें अंकित है। सूत्रों की माने तो मुबंई में ईसाई मिशनरियों के लोग इस पुस्तक को घर- घर पहुंचाने का कार्य कर रहे हंै। इस कार्य के लिए बड़ी तादाद में युवाओं को लगाया गया है। मिशनरियों का लक्ष्य है कि वह इस वर्ष के अन्त तक 1 करोड़ लोगों तक इस पुस्तक को पहुंचाएंगे, जिसमें उन्होंने 90 प्रतिशत लोगों तक इसको पहुंचा भी दिया है ऐसा उनका दावा है।

वहीं राजधानी दिल्ली में  भी ईसाई प्रचारक लोगों को अनेक प्रकार से प्रलोभवन देने व झूठा साहित्य देने के काम में लगे हुए हैं। दिल्ली के अनेक स्थानों पर बड़ा दिन (25 दिसम्बर) को लेकर ईसाई प्रचारक ईसाइयत से जुड़ा साहित्य बांटने का कार्य खुलेआम कर रहे हैं। राजधानी में अनेक स्थानों पर इस प्रकार का कृत्य देखा जा सकता है। ईसाई मिशनरियों ने 25 दिसम्बर को लेकर राजधानी में एक बड़ी संख्या मे अपने प्रचारक लगा रखे हैं, जो कि दिल्ली के मैट्रो, बस प्रतिक्षालय , पार्कों व बाजारों में घूम-घूम कर ईसाइयत का प्रचार कर रहे हैं।
 

जब राजधानी में ऐसे ही एक ईसाई प्रचारक से इस प्रतिनिधि की मुलाकात हुई तो उसने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि पूरी राजधानी में लगभग 1000 हजार प्रचारकों को लगाया गया है जो कि 25 दिसम्बर के लिए लोगों को प्रार्थना सभा में आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। साथ ही उनको ये प्रचारक दो पुस्तके दे रहे हैं, जिनके जरिए हिन्दुओं को बरगलाने का प्रयास किया जा रहा है। उसने यह भी बताया कि इस कार्य के लिए ईसाई मिशनरियों ने हम जैसे लोगों को नौ से दस हजार रुपये में इस कार्य के लिए लगा रखा है।  स्थिति स्पष्ट है कि ईसाई मिशनरियों को डर है कि अगर केन्द्र की कांग्रेस सरकार 2014 में सत्ता नहीं बना पाती है तो भविष्य में मतान्तरण के कार्य में बाधा आएगी, इसलिए ईसाई मिशनरियां बड़े पैमाने पर मतान्तरण के कार्य में लगी हुई हैं।

ईसाई मिशनरियों के मतान्तरण का कार्य दिल्ली,मुंबई ही नहीं बल्कि देश के सभी शहरों में फैल रहा है, जो केन्द्र की कांग्रेस सरकार की एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है।  देश को आज वेटिकन सिटी बनाने का कार्य किया जा रहा है।

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धारा 370 पर हर नेता झूठ बोलता है!

जम्मू कश्मीर राज्य के संवैधानिक प्रावधानों  में राज्य के स्थाई निवासी संबंधी परिभाषा का समावेश किया गया और इसके लिए महाराजा हरी सिंह के शासन द्वारा राज्यों  के विषयों को लेकर वर्ष 1927 और 1932 में जारी की गई सूचनाओं के कुछ प्रावधानों को आधार बनाया गया। लेकिन दुर्भाग्य से जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने संघीय संविधान के अनुच्छेद 370 को लेकर इस प्रकार का शोर मचाना शरू कर दिया कि मानो इस अनुच्छेद के माध्यम से राज्य को कोई विशेष दर्जा दे दिया गया हो। मामला यहां तक बढ़ा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस अनुच्छेद की ढाल में एक प्रकार से तानाशाही स्थापित करने का प्रयास किया और इसकी सबसे पहली शिकार राज्य की महिलाएं हुईं।

राज्य के स्थाई निवासियों में केवल महिला के आधार पर भेदभाव करने वाली कोई व्यवस्था न तो राज्य के संविधान में है और न ही भारत के संविधान में और न ही महाराजा हरि सिंह के शासन काल में राज्यों के विषयों को लेकर जारी किए गए प्रावधानों में। लेकिन दुर्भाग्य से नेशनल  कॉन्फ्रेंस की सोच महिलाआंे को लेकर उसी मध्यकालीन अंधकार  युग में घूम रही थी, जिसमें महिलाओं को हीन समझा जाता था और उनका अस्तित्व पति के अस्तित्व में समाहित किया जाता था।

राजस्व विभाग ने एक कार्यपालिका आदेश जारी कर दिया,जिसके अनुसार राज्य की कोई भी महिला यदि राज्य के किसी बाहर के व्यक्ति के साथ शादी कर लेती है तो उसका स्थाई निवास प्रमाण पत्र रद्द कर दिया जाएगा और वह राज्य में स्थाई निवासियों को मिलने वाले सभी अधिकारों और सहूलियतों से वंचित हो जाएगी। तब वह न तो राज्य में सम्पत्ति खरीद सकेगी और न ही पैतृक सम्पत्ति में अपनी हिस्सेदारी ले सकेगी। न वह राज्य में सरकारी नौकरी कर पाएगी और न ही राज्य के किसी सरकारी व्यावसायिक शिक्षा के महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में शिक्षा हासिल कर सकेगी। उस अभागी लड़की की बात तो छोडि़ए ,उसके बच्चे भी इन सभी सहूलियतों से वंचित कर दिए जाएंगे।

मान लो किसी पिता की एक ही बेटी हो और उसने राज्य के बाहर के किसी लड़के से शादी कर ली हो तो पिता के मरने पर उसकी जायदाद लड़की नहीं ले सकेगी। आखिर राज्य की लड़कियों के साथ यह सौतेला व्यवहार करने का कारण क्या है? जिसकी इजाजत कोई भी  कानून नहीं देता क्या नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास इसका उत्तर है? इनकी  इस हरकत से राज्य का तथाकथित विशेष दर्जा घायल होता है। इससे राज्य की जनसांख्यिकी परिवर्तित हो जायेगी । इन लड़कियों ने राज्य के बाहर के लड़कों के साथ शादी करने का जुर्म  किया है। सरकार उनके इस अपराध को किसी भी ढंग से माफ नहीं कर सकती। ऐसी बेहूदा कल्पनाएं तो वही कर सकता है जो या तो अभी भी 18 वीं शताब्दी में जी रहा हो या फिर खतरनाक किस्म का धूर्त हो । यदि किसी ने प्रदेश की लड़कियों के साथ हो रहे इस अमानवीय व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाई तो नेशनल कॉन्फ्रेंस ने उनके आगे अनुच्छेद 370 की ढाल कर दी। नेशनल कॉन्फ्रेंस के  लिए तो अनुच्छेद 370 उसके सभी गुनाहों और राज्य में की जा रही लूट खसोट पर परदा डालने का माध्यम बन गया है।

सरकार की इस नीति ने जम्मू -कश्मीर की लड़कियों पर कहर ढा दिया। शादी करने पर एम़बी़बी़एस. कर रही लड़की को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, सरकारी नौकरी कर रही लड़की की तनख्वााह रोक ली गई। उसे नौकरी से निकाल दिया गया। सरकारी नौकरी के लिए लड़की का आवेदन पत्र तो ले लिया गया लेकिन साक्षात्कार के समय उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। योग्यता और परीक्षा के आधार पर विश्वविद्यालय में प्रवेश पा गई लड़की को कक्षा में से निकाल दिया गया। इन सब लड़कियों का केवल एक ही अपराध था कि उन्होंने प्रदेश के बाहर के किसी लड़के से शादी  की  थी या फिर  निकाह करवाने आए मौलवी  के पूछने पर कह दिया था कि निकाह कबूल। लेह आकाशवाणी केन्द्र की निदेशक छैरिंग अंगमो अपने तीन बच्चों समेत दिल्ली से लेकर श्रीनगर तक हर दरवाजा खटखटा आईं, लेकिन सरकार ने उन्हें प्रदेश की स्थायी निवासी मानने से इनकार कर दिया,क्योंकि उन्होंने उ़.प्र. के एक युवक से शादी करने का जुर्म जो  किया था।

राज्य के न्यायालयों में इन दुखी महिलाओं के आवेदनों का अम्बार लग गया। ये लड़कियां जानती थीं कि न्याय प्रक्रिया जिस प्रकार लम्बी खिंचती जाती है, उसके चलते न्यायालय में गुहार लगाने वाली लड़की एम़बी़बी़एस़ तो नहीं कर पाएगी, क्योंकि जब तक न्याय मिलेगा, तब तक उसके बच्चे एम़बी़बी़एस. करने की उम्र तक पहुंच जाएंगे। लेकिन ये बहादुर लड़कियां इसलिए लड़ रही थीं ताकि राज्य में भविष्य में महिलाओं को नेशनल कॉन्फ्रेंस और उस जैसी मध्ययुगीन मानसिकता रखने वाली शक्तियों की दहशत का शिकार न होना पड़े।
राज्य की इन बहादुर लड़कियों की मेहनत आखिरकार रंग लाई।

जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के पास सभी लम्बित मामले निर्णय के लिए पहुंचे। लम्बे अर्से तक कानून की धाराओं में माथा पच्ची करने और अनुच्छेद 370 को अच्छी तरह जांचने, राज्य के संविधान और महाराजा हरि सिंह द्वारा निश्चित किए गए स्थाई निवासी के प्रावधानों की परख करने के उपरान्त उच्च न्यायालय ने बहुमत से अक्तूबर 2002 में ऐतिहासिक निर्णय दिया। इस निर्णय के अनुसार जम्मू-कश्मीर की लड़कियों द्वारा राज्य से बाहर के किसी युवक के साथ विवाह कर लेने के बाद भी उनका स्थायी निवासी होने का प्रमाण पत्र रद्द नहीं किया जा सकेगा।  न्यायिक इतिहास में यह फैसला सुशीला साहनी मामले के नाम से प्रसिद्घ हुआ । सारे राज्य की महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ गई।

विरोधी बेनकाब

जिस वक्त जम्मू -कश्मीर के इतिहास में यह जलजला आया उस वक्त राज्य में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार थी । अत: निर्णय किया गया कि इस बीमारी का इलाज यदि अभी न किया गया तो  एक दिन यह लाइलाज हो जायेगी। बीमारी का इलाज करने में नेशनल कॉन्फ्रेंस भी उग्र हो गई । उच्च न्यायालय के इस फैसले के निरस्त करने के लिये तुरन्त एक अपील उच्चतम न्यायालय में की गई। जम्मू -कश्मीर की बेटियों को उनकी हिम्मत पर सजा सुनाने के लिये माकपा से लेकर पी. डी. पी तक अपने तमाम भेदभाव भुला कर एकजुट हो गये। प्रदेश के सब राजनैतिक  दल एक बड़ी खाप पंचायत में तब्दील हो गये। बेटियों की आनर किलिंगह्ण शुरू हो गई।

लेकिन मामला अभी उच्चतम न्यायालय में ही लम्बित था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस  की सरकार  गिर गई। कुछ दिन बाद ही सोनिया कांग्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने मिल कर सांझा सरकार बनाई। यह नई सरकार नेशनल कान्फ्रेंस से भी आगे निकली। इस ने सोचा उच्चतम न्यायालय का क्या भरोसा राज्य की लड़कियों के बारे में क्या फैसला सुना दे। नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रदेश उच्च न्यायालय में इसका सबूत मिल ही चुका था। इसलिये लड़कियों को सबक सिखाने का यह ऑप्रेशन सरकार को स्वयं ही अत्यन्त सावधानी से करना चाहिये था। इसलिये सरकार ने उच्चतम न्यायालय से अपनी अपील वापस ले ली और विधानसभा में उच्च न्यायालय के निर्णय के प्रभाव को निरस्त करने वाला बिल विधानसभा में पेश किया और यह विधेयक बिना किसी विरोध और बहस के छह मिनट में पारित कर दिया गया।  विधि मंत्री मुज्जफर बेग ने कहा महिला की पति के अलावा क्या औकात है? विधानसभा में एक नया इतिहास रचा गया ।

उच्च न्यायालय में दो दशक से भी ज्यादा समय में लड़ कर प्राप्त किये गये जम्मू -कश्मीर की बेटियों के अधिकार केवल छह मिनट में पुन: छीन लिये गये। उसके बाद विधेयक विधान परिषद में पेश किया गया । लेकिन अब तक देश भर में हंगामा  हो गया था। सोनिया कांग्रेस के लिये कहीं भी मुंह दिखाना मुश्किल हो गया। विधान परिषद में इतना हंगामा हुआ कि कुछ भी सुनाई देना मुश्किल हो गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पी. डी. पी. चाहे बाहर एक दूसरे के विरोधी थे लेकिन अब विधान परिषद के अन्दर नारी अधिकारों को छीनने के लिये एकजुट हो गये थे। सभापति के लिये सदन चलाना मुश्किल हो गया। उसने सत्र का अवसान कर दिया ।

इस प्रकार यह विधेयक अपनी मौत को प्राप्त हो गया।  लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस  का गुस्सा सातवें आसमान पर था। खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे। राज्य की पहचान को खतरा घोषित कर दिया गया।  उधर प्रदेश में ही श्रीनगर,जम्मू और लेह तक में महिला संगठनों ने प्रदेश के राजनैतिक दलों की मध्ययुगीन अरबी कबीलों जैसी सोच को धिक्कारा। कश्मीर विश्वविद्यालय में छात्राओं में आक्रोश स्पष्ट देखा जा सकता था । यह प्रश्न हिन्दू, सिख या मुसलमान होने का नहीं था। यह राज्य में नारी अस्मिता का प्रश्न था। लेकिन इससे नेशनल कॉन्फ्रेंस, पी. डी. पी. की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। यहां तक कि माकपा भी महिलओं को इस अपराध के लिये सबक सिखाने के लिये इन दोनों दलों के साथ मिल गई। लेकिन इस बार इन तीनों दलों के सांझा मोर्चा के बावजूद विधेयक पास नहीं हो पाया । प्रदेश की  महिलाओं ने राहत की सांस ली। महिलाओं  को उनके कानूनी और      प्राकृ तिक अधिकारों से वंचित करने की कोशिश कितनी शिद्दत से की जा रही थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस को बीच मैदान में शक हो गया कि उनके सदस्य और विधान परिषद के सभापति अब्दुल रशीद डार इस मामले में नारी अधिकारों के पक्ष में हो रहे हैं। पार्टी ने तुरन्त उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।   इतना कुछ हो जाने के बावजूद राजस्व विभाग के अधिकारियों ने लड़कियों को स्थाई निवासी का प्रमाणपत्र जारी करते समय उसमें यह लिखना जारी रखा कि यह केवल उसकी शादी हो जाने से पूर्व तक मान्य होगा ।

इसके  खिलाफ सितम्बर  में भारतीय जनता पार्टी के प्रो. हरि ओम ने जम्मू -कश्मीर उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर दी । उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रमाण पत्र पर ये शब्द न लिखे जायें । सरकार ने ये शब्द हटा नये शब्द तैयार कर लिये । स्थाई प्रमाणपत्र लड़की की शादी हो जाने के बाद पुन: जारी किया जायेगा, जिस पर यह सूचित किया जायेगा कि लड़की ने विवाह प्रदेश के स्थाई निवासी से ही किया है या किसी गैर से प्रो.हरि ओम इसे न्यायालय की अवमानना बताते हुये फिर न्यायालय की शरण में गये । सरकार ने अपना यह बीमार मानसिकता वाला आदेश 2 अगस्त 2013 को वापिस लिया तब जाकर मामला निपटा ।

 सुशीला साहनी मामले में उच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद इतना भर हुआ कि सरकार ने स्वीकार कर लिया कि जो लड़की प्रदेश से बाहर के किसी लड़के से शादी करती है, वह भी पैतृक सम्पत्ति की उत्तराधिकारी हो सकती है। लेकिन वह इस सम्पत्ति का हस्तान्तरण केवल प्रदेश के स्थायी निवासी के पास ही कर सकती है। यह हस्तान्तरण वह अपनी सन्तान में भी नहीं कर सकती।  अब उस सम्पत्ति का क्या लाभ जिसका उपभोग उसका धारक अपनी इच्छानुसार नहीं कर सकता? इस हाथ से दिया और उस हाथ से वापस लिया। इधर प्रदेश का नारी समाज इस अन्तर्विरोध को हटाने के लिये आगामी लड़ाई की योजना बना रहा था, उधर प्रदेश की अन्धकारयुगीन ताकतें इन्हें सबक सिखाने को अपने तिकड़मों में लगी थीं। साम्प्रदायिक, महिला विरोधी और उग्रवादी सब मिल कर मोर्चा तैयार कर रहे थे।

इन साजिशों की पोल तब खुली जब अचानक 2010 में एक दिन पी. डी. पी के प्रदेश विधान परिषद में नेता मुर्तजा खान ने प्रदेश की विधान परिषद में स्थाई निवासी डिस्क्वालिफिकेशन विधेयक प्रस्तुत किया। विधेयक में प्रदेश की उन्हीं लड़कियों के अधिकार छीन लेने की बात नहीं कही गई थी जो किसी अन्य राज्य के लड़के से शादी कर लेतीं हैं बल्कि दूसरे राज्य की उन लड़कियों के अधिकारों पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया गया था जो प्रदेश के किसी स्थाई निवासी से शादी करती हैं। आश्चर्य तो तब हुआ जब विधान परिषद के सभापति ने इस बिल को विचार हेतु स्वीकार कर लिया, जबकि उन्हें इसे स्वीकार करने का अधिकार ही नहीं था,क्योंकि ऐसे विधेयक पहले विधान सभा के पास ही जाते हैं ।

इससे ज्यादा आश्चर्य यह कि सोनिया कांग्रेस ने भी इसका विरोध नहीं किया। इन पोंगापंथियों के लिहाज से आज जम्मू -कश्मीर में अनुच्छेद 370 के लिये सबसे बड़ा खतरा वहां की महिला शक्ति ही है। यह अलग बात है कि मुर्तजा खान का यह बिल विधान परिषद में अपनी ही मौत अपने आप मर गया। चोर दरवाजे से यह सेंध , प्रदेश की जागृत नारी शक्ति के कारण असफल हो गई। परन्तु एक बात साफ हो गई कि राज्य में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पी. डी. पी दोनों ही अनुच्छेद 370 को अरबी भाषा में लिखी ऐसी इबारत समझते हैं जिसको केवल वही पढ़ सकते हैं,वही समझ सकते हैं और उन्हें ही इसकी व्याख्या का अधिकार है। ये मानवता विरोधी शक्तियां अनुच्छेद 370 से उसी प्रकार प्रदेश के लोगों को आतंकित कर रही हैं जिस प्रकार कोई नजूमी अपने विरोधियों को जिन्नों से डराने की कोशिश करता है।

साभार- साप्ताहिक पाञ्चजन्य से

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ट्रैफिक जाम की समस्या से पैदा हुआ एक समाधान

काफी समय अमेरिका में बिताने के बाद जब ब्रजराज वाघानी और रवि खेमानी २००८ में भारत लौटे, तो जो बात उन्हें सबसे ज्यादा चुभी, वह थी मुंबई में सड़कों व ट्रैफिक की खस्ता हालत। साथ ही यह भी कि न तो वाहन चालकों और न ही ट्रैफिक पुलिस के जवानों को इस बात की जानकारी होती थी कि आगे रास्ता कैसा होगा। कोई तीन साल तक इन्हीं खस्ता हाल सड़कों और बेतरतीब ट्रैफिक को संघर्ष करते, बड़बड़ाते हुए झेलने के बाद २०११ में उन्होंने तय किया कि वे इस विषय में कुछ करेंगे। इस प्रकार तैयार हुआ "ट्रैफलाइन" http://www.traffline.com/ नामक ऐप।

ब्रिजराज बताते हैं,"रवि और मैं अपने इंजीनियरिंग कोर्स के सिलसिले में क्रमशः ९ और ६ साल तक अमेरिका में थे।" इन दोनों ने जब मुंबई छोड़ी थी, तब आज की तरह लगभग हर घर में बड़ी-बड़ी कारें नहीं थीं और सड़कों पर भी गड्‌ढे कम और डामर ज्यादानज़र आता था। उस समय एफएम रेडियो पर हर घंटे ट्रैफिक अपडेट नहीं दिए जाते थे और आगे डायवर्जन होने के बारे में जानकारी देने वाले इलेक्ट्रॉनिक साइन भी शुरू नहीं हुए थे। वापस आने पर दोनों दोस्तों को अचंभा हुआ कि किसी मार्ग पर ट्रैफिक की स्थिति के बारे में यहां जानकारी का पूर्णतः अभाव है।

बिकौल ब्रजराज,"अमेरिका में हमें ट्रैफिक की पल-पल सूचना की आदत पड़ गई थी। यहां आकर मैंने पाया कि मुंबई में ड्राइव करना एक विराट चुनौती है। वैसे भी, बचपन में मैं दक्षिण मुंबई में रहता था, जहां ट्रैफिक की स्थिति बहुत बुरी नहीं थी। वापसी पर अंधेरी (मुंबई का एक पश्चिमी उपनगर) शिफ्ट होने पर मैंने उपनगरों में रहने वाले लगभग एक करोड़ नागरिकों के दर्द को जाना। कभी मुझे मुंबई में ड्राइव करना पसंद था लेकिन अब इससे सख्त नफरत है।"

आखिर ट्रैफलाइन ऐप करता क्या है? सरल शब्दों में कहें, तो यह आपको बताता है कि आपके इलाके में ट्रैफिक की क्या स्थिति है, किन्हीं दो स्थानों के बीच सफर में अंदाजन कितना समय लग सकता है और साथ ही दुर्घटना, अवरोध आदि के बारे में भी लाइव जानकारी देता है। इस ऐप का पहला संस्करण अक्टूबर २०११ में जारी किया गया था। तब इसमें बहुत मूलभूत फीचर ही थे। इससे पहले दोनों मित्रों ने करीब एक वर्ष तक शोध की और मुंबई पुलिस से लेकर निजी कंपनियों तथा राज्य सरकार के अधिकारियों को अपने विचार के बारे में बताया। आज स्थिति यह है कि मात्र दो वर्ष में इस ऐप को एक लाख यूजर्स ने डाउनलोड किया है। यहां तक कि इस वर्ष गणपति विसर्जन के मौके पर ट्रैफिक को सुचारू रखने के लिए मुंबई पुलिस ने भी ट्रैफलाइन की टीम से सहायता मांगी थी। मैट्रिक्स पार्टनर्स इंडिया का ध्यान भी इस पर गया है और उसने ट्रैफलाइन में निवेश कर इसे भारत भर में ले जाने का इरादा ज़ताया है।़तिो यह ऐप काम करता कैसे है?
 

ब्रजराज बताते हैं,"जैसे ही कहीं कोई दुर्घटना होती है या ट्रैफिक जाम की स्थिति बनती है, मुझे फोन पर तथा मोबाइल ऐप्स द्वारा हमारे कंट्रोल रूम्स से जानकारी मिल जाती है। आम लोग भी हमें सूचना देते हैं। इस जानकारी को हम प्रोसेस करते हैं और हमें घटनास्थल की पूरी जानकारी अक्षांश और देशांतर सहित मिल जाती है।" इस जानकारी की पुष्टि एक मिनट से भी कम समय में हो जाती है। फिर यह जानकारी टि्‌वटर, ट्रैफलाइन की वेबसाइट और मोबाइल वेबसाइट पर डाल दी जाती है। इस जानकारी को नक्शों अथवा शब्दों की शक्ल में दिया जाता है। ट्रैफिक की स्थिति की गंभीरता के हिसाब से कलर कोड भी रखे गए हैं। जैसे, भारी अवरोध के लिए लाल, धीमे ट्रैफिक को दर्शाने के लिए गुलाबी आदि। जानकारी जुटाने के लिए टीम के स्रोत हैं जीपीएस वाले वाहन और मदद करने को आतुर आम नागरिक, जिनकी मुंबई में कोई कमी नहीं है। भविष्य में ब्रजराज और रवि अपने ऐप को देश के अन्य शहरों में भी ले जाना चाहते हैं। आखिर ट्रैफिक जाम की समस्या तो हर शहर में है। संभव है कि २०१४ में १० और शहरों में यह उपलब्ध हो जाए।

साभार-दैनिक नईदुनिया से

 

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हर दीवाल को लाँघ गए केजरीवाल

 जनलोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे के साथ संघर्ष के समय ही अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक जगत से चुनौती मिलती रही है। पहले इनके सिविल सोसायटी आंदोलन को सवालों के घेरे में खड़ा किया गया। कपिल सिब्बल जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों ने इनको राजनीति में आने की चुनौती तक दी। उसके बाद जब केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी (आप) के गठन का फैसला किया तो कांग्रेस और भाजपा ने उनको कमतर आंकते हुए मखौल उड़ाया। इन सबके बीच महज डेढ़ साल के सियासी सफर में ही केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता तक पहुंचकर विरोधियों की बोलती बंद कर उनके मंसूबों को ध्वस्त कर दिया।

केजरीवाल के खिलाफ बयानबाजी:

मैं आपको आगाह करती हूं कि ये पार्टियां मानसूनी कीड़ों की तरह होती हैं। वे आती हैं, पैसे बनाती हैं और गायब हो जाती हैं। वे इसलिए नहीं टिक पाती हैं, क्योंकि उनके पास दृष्टि नहीं होती है।

-शीला दीक्षित

(22 सितंबर 2012)

जनता आप को वोट देकर अपना वोट खराब नहीं करना चाहती है।

-सुषमा स्वराज

(2 सितंबर 2013)

संविधान ने व्यवस्था दी है, जिसके तहत लोग चुनकर आते हैं..अगर कुछ व्यक्ति जिनको अपनी क्षमता पर भरोसा नहीं है और वे देश का कर्णधार बनने की कोशिश करते हैं, तो इससे बड़ी त्रासदी कोई और नहीं हो सकती है।

-मनीष तिवारी

(13 जून 2011)

आप कांग्रेस की बी टीम है..इसने हालिया स्टिंग ऑपरेशन के बाद अपनी विश्वसनीयता खो दी है।

-नितिन गडकरी

(9 सितंबर 2013)

केजरीवाल पहले एमपी, एमएलए या कम से कम म्यूनिसिपल कॉर्पोरेटर बनकर दिखाएं।

-दिग्विजय सिंह

(25 नवंबर 2012)

आप के प्रदर्शन के बाद

बेवकूफ हैं न (जब पूछा गया कि कांग्रेस दिल्ली में जनता का मूड नहीं भांप पाई) हम हार स्वीकार करते हैं और इसका विश्लेषण करेंगे कि क्या गलत हुआ।

-शीला दीक्षित

(8 दिसंबर 2013)

मैं आपको उल्लेखनीय प्रदर्शन के लिए बंधाई देता हूं। -हर्षवर्धन

आप ने जिस तरह से चुनाव में प्रदर्शन किया उसकी उम्मीद नहीं थी। – नितिन गडकरी

आप ने .. शासन का हिस्सा बनने और व्यवस्था में बदलाव के लिए आम आदमी के लिए मंच तैयार किया।

-प्रिया दत्त

आप ने जिस तरह से लोगों को जोड़ा वैसा परंपरागत पार्टियां नहीं कर पाई।

-राहुल गांधी

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