Tuesday, November 26, 2024
spot_img
Home Blog Page 1801

दवाओ के नए कानून से बढ़ेगी मुसीबते

सरकार दवाओं के मामले , जिसके  कारण बार बार मेडिकल स्टोरों कि हड़ताल हो रही है , उसके कारण आम लोगों के साथ सीनियर सिटीजन्स कि भी मुसीबते बढ़ने वाली हैं | मैं बात को अपने ही उदहारण से शुरू करता हूँ | मैंने १५ साल पहले हिंदुजा अस्पताल से आप्रेशन करवाया था | उस समय डॉक्टरों ने एक दवा लिख कर दी थी जिसके बारे में कहा गया था कि इसे जिंदगी भर लेना पड़ेगा | मेरे मेडिकल स्टोर वाले को भी मेरी बीमारी और उसकी दावा के बारे में मालूम है , पर नए  FDA कानून के तहत वो मजबूर है | मैं हर १५ दिन की दवा एक साथ लेता हूँ | यानि हर १५ दिन में मुझे अस्पताल जाना पड़ेगा और डॉक्टर से लिखवाना पड़ेगा | अव्वल तो अस्पताल में डॉक्टर का अपॉइंटमेंट २ महीने के पहले मिलता नहीं | २-४ महीने कि दवा एक साथ खरीदने की मेरी ताक़त नहीं , दूसरे ६५ साल कि उम्र में बार – बार हिंदुजा महिम तक जाना भी आसन नहीं है |

 सीनियर सिटीजन होने के नाते 'यहाँ कल की ख़बर नहीं और सामान जिंदगी का 'खरीद कर नहीं रखा जा सकता | यही हाल डायबिटीज़ , कोलेस्ट्रोल ,ब्लड प्रेशर जैसी लम्बी चलने वाली दवाइयों का भी है |  पहले लम्बी चलने वाली बीमारियों डायबिटीज़ , कोलेस्ट्रोल ,ब्लड प्रेशर आदि कि दवाइयां तो सालों – साल एक ही पर्चे से खरीदते रहते हैं | अब तो  सरकार और दवाइयों वालो की लड़ाई में आम आदमी पिस रहा है |आलम यह है कि सर्दी , खांसी ,दस्त ,सिरदर्द जैसी सामान्य सी बीमारियों के लिए भी केमिस्ट बिना परचे के दवाइयां नहीं दे रहे हैं | अब तो बस डॉक्टरो का ही फायदा ही फायदा हैं | क्योकि कई बीमारियों में लोग डॉक्टर की फीस बचाने कि वजह से केमिस्ट से ही सीधे दवाइयां ले लेते थे अब तो ४ आने कि मुर्गी के लिए १२ आने का मसाले के लिये देने  होंगे |

अशोक भाटिया , सचिव – वसई ईस्ट सीनियर सिटीजन एसोसिएशन

ASHOK BHATIA
HON.SECRETARY
VASAI EAST SENIOR CITIZEN'S ASSOCIATION(Regd)
A / 001 , VENTURE APARTMENT ,NEAR REGAL, SEC 6, LINK ROAD , VASANT NAGARI ,VASAI EAST -401208 DIST -THANE MAHARASHTRA
DIST -THANE [MUMBAI] MOB. 09221232130

.

इंडियन आयडल संदीप आचार्य का दुःखद निधन

इंडियन आइडल सीजन-2 के विजेता संदीप आचार्य का 29 साल की उम्र में ही गुडग़ांव के एक अस्‍पताल में देहांत दुःखद निधन हो गया। आखिर 22 अप्रैल 2006 को� को 22 साल की उम्र में इंडियन आइडल बने संदीप ने सालभर पहले ही शादी की थी। एक महीने पहले 10 नवंबर को दुर्गाष्टमी के दिन उन्‍हें बेटी हुई। बेटी अभी ननिहाल से घर आई नहीं और संदीप खुद चल बसे।

पीलिया के साथ ही इन्फेक्शन से जूझ रहे संदीप पिछले पांच दिन से मेदांता अस्‍पताल में भर्ती थे। एक कार्यक्रम की प्रस्तुति के बाद संदीप को हेपेटाइटिस की शिकायत के बाद आठ दिसंबर को बीकानेर के पीबीएम हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था। लेकिन लगातार हालत बिगड़ने के बाद उन्हें चार्टर्ड प्लेन के जरिये मेदांता हॉस्पिटल गुडग़ांव ले गए, जहां पिछले पांच दिन से इलाज चल रहा था। लगातार बढ़ते इन्फेक्शन के कारण उनके गुर्दों ने काम करना बंद कर दिया और डायलिसिस के बाद भी विशेष फायदा नहीं मिल पाया।

संदीप का जन्म 4 फरवरी 1984 को हुआ था। विजय आचार्य और चंदादेवी के चार बच्चों में सबसे छोटे संदीप की शादी एक साल पहले ही बीकानेर में जयश्री से हुई।� संदीप आचार्य वर्ष 2006 में इंडियन आइडल टू कांटेस्ट जीतकर देशभर में चर्चित हो गए। हाल ही उन्हें राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के अवार्ड से भी नवाजा गया था। दिल्ली में हुए समारोह में उन्हें सुर अराधना अवार्ड से सम्मानित किया गया। न्यूजर्सी (अमेरिका) में हुए आयोजन में ‘बेस्ट न्यू बॉलीवुड टेलेंट’ अवार्ड से भी उन्हें नवाजा गया। टीवी शो ‘जलवा फोर टू का वन’ में वे मिक्का टीम मेंबर के रूप में प्रतिभागी रहे। युवा दिलों की धड़कन बने संदीप आचार्य लगभग 29 वर्ष की उम्र में ही दुनिया छोड़ गए।

संदीप आचार्य हमेशा ‘जाना है मुझको जाना है यारों आगे उन आसमानों से, वाकिफ नहीं है कोई मेरी अजनबी उड़ानों से…’ जैसे गीत गाकर लोगों को भावुक कर देते थे।�� राजस्‍थान में हाल में हुए विधानसभा चुनाव से पहले संदीप ने बीकानरे रेलवे ग्राउंड में लोगों से हाथ जोड़ कर मतदान की अपील की। बीकानेर में यह उनका आखिरी कार्यक्रम था।

.

तमिलनाडु से प्रकाशित होती है हिन्दी पत्रिका शबरी

अहिन्दी भाषा प्रदेश तमिलनाडु के सेलम जिले से गत पंद्रह सालों से शबरी शिक्षा समाचार पत्रिका निकाली जा रही है|  तमिलनाडु से निकलनेवाली एकमात्र निजी पत्रिका, साहित्यिक पत्रिका है – शबरी शिक्षा समाचार |  देश भरके अनेकानेक साहित्यकारों के साथ विदेशों के हिन्दी हृदयों की भी रचनाऍं इसमें स्थान पाती है |  अपनी शैली तथा उन्नत विषयवस्तु के लिए सुप्रसिद्ध शबरी पत्रिका की एक प्रति देखने व पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें  |  इस पर नजर डालने के साथ-साथ पत्रिका के बारे में अपना विचार भी हम तक पहुँचावें|  पत्रिका के इस प्रति को अपने मित्र बंधु तथा अन्य हिन्दी हृदयों तक भी पहुँचाने की भी कृपा करें|

 

.

माननीय न्यायमूर्ति ने उस दिन क्या किया था!

'मैंने उन्हें दूर हटाने की कोशिश की, उन्होंने मेरे हाथ को चूमा, फिर उन्होंने कहा कि वे मुझसे प्यार करते हैं। मुझसे रूम शेयर करने के लिए कहा।' ये बयान यौन उत्पीड़न मामले में सेवानिवृत्त न्यायाधीश एके गांगुली के खिलाफ पीड़ित प्रशिक्षु महिला वकील ने सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति के समक्ष दर्ज करवाएं हैं। एक अंग्रेजी समाचार पत्र में प्रकाशित पीड़िता के बयान में सेवानिवृत्त न्यायाधीश गांगुली पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

समिति के समक्ष दर्ज पीडि़ता के बयान के अनुसार 24 दिसंबर 2012 को पूर्व जस्टिस गांगुली के साथ वह होटल ली मेरिडियन के कमरे में थी। पूर्व जस्टिस गांगुली ने उसे शराब पीने के लिए कहा, उसके मना करने पर भी उन्होंने इस बात को दोहराया। पूर्व जस्टिस ने उस दौरान न केवल शराब पी, बल्कि एक गिलास में भरकर जबरन मुझे भी देने की कोशिश की। उन्होंने मुझसे रात को वहीं रुकने के लिए कहा, मेरे मना करने पर उन्होंने अलग कमरा बुक करने के लिए भी कहा। उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा, मेरे वहां हटने की कोशिश पर उन्होंने मेरे हाथ को पकड़ा और उसे चूमा। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हें नहीं लगता मैं तुम्हारी तरफ आकर्षित हूं।

पीड़िता ने बयान में आगे कहा कि घर वापस जाने के लिए कहने पर उन्होंने कहा कि अभी कार्य खत्म नहीं हुआ है। मैं रात करीब 10 बजे कमरे से बाहर निकली और रिसेप्शन पर पहुंची मेरी कार अभी तक पहुंची नहीं थी। पूर्व जस्टिस गांगुली भी वहां पहुंचे और उन्होंने फोन कर कार मंगवाई। इस दौरान मुझे अकेली पाकर उन्होंने फिर कहा कि काम खत्म कर जाना। करीब 10.30 बजे कार आई और मैं अपने पीजी पहुंची। पीजी पहुंचने पर गांगुली का मुझे फोन आया और उन्होंने मुझसे घर ठीकठाक पहुंचने के बारे में पूछा। मैंने उन्हें ठीकठाक पहुंचने का जवाब देने के बाद फोन काट दिया। इसके बाद सुबह मेरे पास गांगुली का एसएमएस आया, जिसमें उन्होंने मुझसे माफी मांगी थी। मैंने एसएमएस कर उन्हें वापस काम पर न लौटने का जवाब दिया।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश एके गांगुली पर प्रशिक्षु महिला वकील की ओर से लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों को प्रथम दृष्टया सही पाया था। समिति ने रिपोर्ट में कहा है, 'जस्टिस गांगुली का व्यवहार आपत्तिजनक था।' हालांकि, शीर्ष न्यायालय ने यह कहते हुए आगे कार्रवाई करने से किनारा कर लिया था कि आरोपी जज घटना के समय सेवानिवृत्त हो चुके थे और महिला वकील सुप्रीम कोर्ट में प्रशिक्षु नहीं थी।

सुप्रीम कोर्ट के एक जज को कठघरे में खड़ा करने वाली महिला वकील कोलकाता की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूडिशियल साइंस से ग्रेजुएट करने के बाद एक समाजसेवी संगठन के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने जर्नल ऑफ इंडियन लॉ एंड सोसाइटी के ब्लॉग में अपने साथ हुए यौन दु‌र्व्यवहारके बारे में लिखते हुए यह भी बयान किया है कि न्यायपालिका में यह समस्या आम है। इसके अलावा उन्होंने एक साक्षात्कार में यह भी कहा है कि इसी जज ने तीन अन्य लड़कियों के साथ यौन दु‌र्व्यवहार किया। इनमें दो लड़कियों से संपर्क कर उन्होंने अपनी बात कहने के लिए प्रेरित किया, लेकिन अपने करियर पर असर पड़ने के भय से वे आगे आने को तैयार नहीं हुई।

पीड़ित महिला वकील के अनुसार वह चार और ऐसी लड़कियों के बारे में जानती हैं जो दूसरे जजों के उत्पीड़न का शिकार बनीं। इनमें से ज्यादातर तब उत्पीड़ित हुई, जब वे जजों के चैंबर में थीं, इसलिए उनके साथ उतना बुरा नहीं हुआ, जितना उनके साथ। पीड़ित महिला वकील ने अपने मामले में जज के नाम का खुलासा न करने और रिपोर्ट दर्ज न कराने के कारणों को स्पष्ट करते हुए कहा है कि वह उनकी प्रतिष्ठा नहीं गिराना चाहतीं। उन्हें यह भी भरोसा नहीं कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई हो सकेगी।

उन्होंने यह भी कहा है कि वह स्वेच्छा से होटल में जज के कमरे में गई थीं। जब बाहर निकलीं तो किसी से कुछ कहा भी नहीं। इसके अलावा कोई गवाह भी नहीं है। इसके बावजूद उन्होंने अपनी पीड़ा इसलिए बयान की, क्योंकि वह नहीं चाहतीं कि अन्य महिला वकील ऐसी स्थिति से दो-चार हों।

.

शिया धर्मगुरू ने पूछे तीखे सवाल, सोनिया गाँधी और फिल्मी दुनिया से

समलैंगिकता को अपराध ठहराने वाली जिस धारा 377 को हाईकोर्ट ने निष्प्रभावी कर दिया था, उसे सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर को फिर बहाल कर दिया। यह फैसला एलजीबीटी [लेस्बियन, गे] आइक्यू समुदायों के लिए झटका था। वे इसे मानवाधिकार व निजता का हनन ठहराकर कानूनी मैदान में हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, अभिनेता आमिर खान, शाहरुख खान जैसे तमाम लोग इसके पक्षधर हैं। धार्मिक आस्था और सामाजिक ढांचे में कसी भारतीय संरचना में पुरुष-पुरुष और महिला-महिला के संबंधों की आजादी पर धर्म गुरुओं का नजरिया जानने के लिए परवेज अहमदने शिया धर्मगुरु मौलाना हमीदुल हसन से बातचीत की। पेश है मौलाना से बातचीत के मुख्य अंश-

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एलजीबीटी अधिकारों को मानवाधिकारों से जोड़ा जा रहा है, आपका नजरिया क्या है? – आजादी के नाम पर इंसान बहुत सी दलीलें देता है। उसे साबित करने के लिए देश के बाहर दुनिया की दलीलें भी ले आता है। यह मानवाधिकारों का मसला हो सकता है फिर भी भारत में जितने धर्माचार्य हैं, वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताएंगे, क्योंकि मानवाधिकार मानवता की रक्षा के लिए हैं, उसे खत्म करने के लिए नहीं।

इससे मानवता खत्म कैसे हो जाएगी? – जब कानून है, तब मुख्तलिफ हलकों में कैसे-कैसे शारीरिक जुल्म के रोंगटे खड़े करने वाले किस्से सामने आ रहे हैं। जब कानून का भी डर नहीं होगा, तब स्कूलों में बच्चे-बच्चियों के बीच से ही ऐसा तूफान खड़ा होगा, जिससे सारा सामाजिक और नैतिक ढांचा ही चरमरा जाएगा।

शाहरुख, आमिर और यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष भी पैरोकारी कर रहीं हैं? – ये फिल्म वाले और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समाज की प्रेरणा के सिम्बल नहीं हैं। उनकी अपनी मजबूरियां भी हो सकती हैं। सोनिया गांधी सियासी और सामाजिक तौर पर मोहरतम हैं, मगर मुल्क की तहजीब को अपने अंदर उतार नहीं पाई हैं। हां, यह देखना जरूरी है कि चारों धमरें के धर्माचार्य क्या राय रखते हैं। मैं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ हूं।

और फिल्म स्टारों के बयान पर? – अल्लाह मुझे माफ करें, बेशुमार तौबा। निजता के अधिकार के नाम पर फिल्म वाले कल को यह मांग उठा दें कि भाई-बहन साथ रहेंगे तो क्या होगा। अरे रिश्तों का ऐहतराम और देश की सामाजिक मर्यादा का ख्याल रखना जरूरी है।

मजहब क्या कहता है? – मजहब में ऐसे रिश्तों पर अजाब नाजिल होने की बात है। पाक कुरान शरीफ में कौम लूत का पूरा किस्सा मौजूद है। ऐसे रिश्ते रखने वालों पर इस कदर अजाब नाजिल हुआ था कि पूरी कौम खत्म हो गई।

निजता को मजहबी नजरिये से देखना चाहिए? – देखिए, यह मजहबी मसला नहीं है। मजहब जिंदगी का वह फलसफा सिखाता है, जिसमें एक दूसरे के जज्बात का आदर किया जाए और मानवता को बरकरार रखा जा सके। निजता के बहाने समाज को टार्चर नहीं होने दिया जा सकता। वरना इंसान और जानवर के बीच फर्क ही मिट जाएगा।

लेकिन दुनिया में एलजीबीटी राइट्स मिल रहे हैं? – हां, यह सच है। अपना तजुर्बा बताता हूं। कई साल पहले सिडनी में था, जहां एक जुलूस निकल रहा था। मैने सोचा हिंदुस्तान की तरह सियासी या फिर धार्मिक जुलूस होगा। जुलूस में जाने की ख्वाहिश जताई तो खादिमों ने मना कर दिया। बाद में एक खादिम मुझे कार से उस पार्क की ओर ले गया, जो 10-10 फीट ऊंची दीवारों से घिरा था। उसमें कुछ झिर्रियां थी। देखा तो पार्क में सब निर्वस्त्र थे, मर्द-मर्द और औरत-औरत गुंथे थे। निजी अधिकारों के नाम पर क्या भारत को ऐसा समाज चाहिए, हरगिज नहीं।

केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुधारने की तैयारी में है, अध्यादेश लाया जा सकता है? – यह सरकार का काम है, वह जो चाहे करे। मेरी तो सांसदों व सियासी दलों से अपील है कि वह इस मुद्दे पर फैसला लेने से पहले इसे चुनावी मुद्दा बना लें। लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, सबको मालूम हो जाएगा कि देश की जनता क्या चाहती है। जो फैसला आए उस पर अमल करें।

 साभार- दैनिक जागरण से

.

एक लाचार और गरीब पिता के बच्चे की जान बचाने आगे आये युवक

राजस्थान पत्रिका ने खबर दी है कि उज्जैन के युवाओं की संस्था  युवा उज्जैन ने सोशल मीडिया वाट्सअप पर एक परिवार के चिराग को बचाने की मुहिम चलाई और संदेश पढ़कर  लोगों ने ऑपरेशन के लिए मदद देना शुरू कर दी। तीन दिन में 30 हजार रूपए जुट गए, अब इलाज के लिए 20 हजार की और दरकार है।

उज्जैन के एक गरीब परिवार के जितेंद्र मालवीय के 4 वर्षीय बेटे देव का जन्म से ही मल द्वार बंद है। डॉक्टरों ने ऑपरेशन का खर्च 50 हजार रूपए बताया। परिवार के लोक इस ऑप्रेशन का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं हैं।  सामाजिक संस्था युवा उज्जैन ने देव की जान बचाने की अपील का मैसेज वाट्सअप पर डाला। देव के पिता लकवाग्रस्त हैं और बिस्तर पर हैं। घर में कमाने वाली सिर्फ दादी है, जो मजदूरी कर पूरे परिवार का खर्च चलाती है। मल द्वार बंद होने से बच्चे का मल पेट में बनाए गए अस्थाई छेद से निकलता है, जो दर्द भरी प्रक्रिया है और बच्चा हर दिन इस परेशानी से संघर्ष कर रहा है।

जांच उपरांत डॉक्टरों ने सलाह दी कि बच्चे के मल द्वार का ऑपरेशन करना होगा, जिसके बाद ही यह सामान्य हो सकेगा। ऑपरेशन व दवाई का पूरा खर्च 50 हजार रूपए बताया गया। परिवार की आर्थिक दशा ऎसी नहीं कि इलाज करवा सके। क्षेत्र के महेश लश्करी ने पत्रिका कार्यालय आकर देव के बारे मे बताया, जहां से उन्हें युवा उज्जैन के संपर्क मे भेजा गया। संस्था कार्यकर्ताओं ने वाट्सअप पर संदेश चलाकर बालक के लिए मदद की गुहार लगाई। तीन दिन में ही लोगों ने 30 हजार रूपए का डोनेशन दे दिया। इलाज की संपूर्ण राशि एकत्रित होते ही बच्चे का ऑपरेशन कराया जाएगा।

आओ बचाएं एक और जिंदगी

यदि आप भी गरीब परिवार के चिराग देव के ऑपरेशन में मदद करना चाहते हैं तो संस्था युवा उज्जैन के मोबाइल नंबर 94250-92112 व 94248-44441 पर संपर्क करें। आपकी थोड़ी सी मदद किसी की जान बचा सकती है।

डॉक्टर बोले ऑपरेशन के सिवाय कोई हल नहीं

देव का इलाज कर रहे डॉ. नितिन अग्रवाल का कहना है कि हजारों में किसी बच्चे को ऎसी बीमारी रहती है कि जन्म से ही मल द्वार बंद रहे। फिलहाल बच्चें का मल पेट में बनाए रास्ते से निकल रहा है, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा हो रहा है यह कठिन हो रहा है। मल द्वार की सर्जरी कर ही इस बीमारी को दूर किया जा सकता है। अब उसकी उम्र 4 वर्ष हो गई है। लिहाजा ऑपरेशन में कोई दिक्कत नहीं।

.

नया मीडिया तूफान की आहट: विजय सहगल

भोपाल। सूचना क्रांति ने नए प्रतिमान खड़े किए हैं तो कई चुनौतियां और सवाल भी खड़े हो गए हैं। नए मीडिया की भूमिका को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। उत्तरप्रदेश और असम में भड़के दंगों के दौरान नए मीडिया की जो भूमिका रही, उससे नए मीडिया की जिम्मेदारी के भाव और विश्‍वसनीयता पर सवाल खड़े हुए। इस दौरान नए मीडिया की ओर से प्रसारित संदेशों, चित्रों की जांच तक की गई। इसीलिए नए मीडिया को तूफान की आहट तक माना जा रहा है। यह विचार दैनिक ट्रिब्यून के पूर्व सम्पादक विजय सहगल ने व्यक्त किए। वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (एमसीयू) और एशियन मीडिया इन्फार्मेशन एवं कम्युनिकेशन सेन्टर (एमिक) सिंगापुर के संयुक्त तत्वावधान में ‘नवीन मीडिया एवं जनसंवाद’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थे। सेमिनार का आयोजन एमसीयू के सभागार में किया जा रहा है।

श्री सहगल ने कहा कि पत्रकारिता की साख, मूल्य, मर्यादाएं और आचार संहिता से भटकने वाला कोई भी माध्यम मीडिया नहीं रह जाता। इसी कारण नए मीडिया के सामने चुनौती अधिक है। दरअसल, परंपरागत मीडिया के मानदण्ड तय हैं। जबकि नए मीडिया की लाइन अभी तय नहीं। भारत में आज भी मूल्यआधारित पत्रकारिता के लिए ही स्थान है। श्री सहगल कहते हैं कि बाजारवाद और पेड न्यूज के आरोपों के बीच आज भी परंपरागत मीडिया भ्रष्टाचार, आतंकवाद और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ कड़ा रूख अपनाकर अपनी साख को बरकरार रखा है।

भारत में बढ़ रहे हैं समाचार-पत्र:

सेमिनार के उद्घाटन सत्र में एमिक के मण्डल सदस्य डा. विनोद सी. अग्रवाल ने कहा कि भारत दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है, जहां समाचार-पत्र लगातार वृद्धि कर रहे हैं। उनकी वृद्धि दर करीब 12 प्रतिशत है। जबकि अन्य देशों में वर्षों पुराने और स्थापित समाचार पत्र बंद हो रहे हैं। इसी बीच में सोशल मीडिया एक नई ताकत बनकर उभर रहा है। सोशल मीडिया के उपयोग के कारण ही लोगों में राजनीतिक जागरूकता और समझ बढ़ी है। हाल ही में हमने एक शोध किया कि सोशल मीडिया के माध्यम से पश्चिम से जो विचार आ रहे हैं उनसे भारतीय मूल्यों और परंपराओं में क्या बदलाव आ रहे हैं? शोध के नतीजे बताते हैं कि न हिन्दू बदल रहा है और न मुसलमान बदल रहा है। पारिवारिक और धार्मिक मान्यताओं की वजह से दोनों मजबूती के साथ अपनी परंपराओं से जुड़े हुए हैं। कहा जा रहा है कि संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। लेकिन शोध के नतीजे चैंकाने वाले हैं। आंकड़े बताते हैं कि संयुक्त परिवार टूट नहीं रहे हैं, हालांकि उनकी उम्र कम हो गई है। परिवार और पारिवारिक मूल्यों में कोई कमी नहीं आई है।

विश्‍व की आबादी से दोगुनी होगी वर्चुअल पापुलेशन :

सेमिनार के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे एमसीयू के कुलपति प्रो. बीके कुठियाला ने कहा कि दुनिया में दो तरह की सिविलाइजेशन का दौर शुरू हो चुका है, वर्चुअल और फिजीकल सिविलाइजेशन। आने वाले समय में जल्द ही दुनिया की आबादी से दो-तीन गुना अधिक आबादी इंटरनेट पर होगी। दरअसल, कई लोग अलग-अलग पहचान से इंटरनेट यूजर्स बन रहे हैं। इंटरनेट एक ऐसी टेक्नोलाजी के रूप में हमारे सामने आया है, जो उपयोग के लिए सबको उपलब्ध है और सर्वहिताय है। इस दौरान एमसीयू के रजिस्ट्रार चंदर सोनाने, रैक्टर प्रो. रामदेव भारद्वाज, प्रो. सीपी अग्रवाल, डा. श्रीकांत सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव, डा. आरती सारंग, आषीष जोषी, पीपी सिंह और डा. अविनाष वाजपेयी सहित अन्य उपस्थित थे।

एमसीयू समाचार का विमोचन:

सेमिनार के दौरान विश्वविद्यालय से संबद्ध केन्द्रों से संवाद स्थापित करने के लिए प्रारंभ की गई त्रैमासिक गृहपत्रिका एमसीयू समाचार का विमोचन किया गया। विमोचन के अवसर पर डा. पवित्र श्रीवास्तव ने पत्रिका की आवश्‍यकता के बारे में बताया।

इन्होंने प्रस्तुत किया शोधपत्र:

पहले दिन नवीन मीडिया एवं सामाजिक संवाद, राजनीतिक संचार और व्यक्ति का सशक्तिकरण विषय पर तीन तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। इनमें विभिन्न शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। तकनीकी सत्र की अध्यक्षता कर रहे एडीजी महान भारत ने कहा कि आज सोशल मीडिया हमारे जीवन को काफी हद तक प्रभावित कर रहा है। सत्र के मुख्य वक्ता डा. चन्द्रभानु पटनायक ने कहा कि जनसंचार के विशेषज्ञों के सामने सोशल मीडिया को सैद्धांतिक रूप से स्थापित करना चुनौती है। दरअसल, सोशल मीडिया भी कहीं न कहीं नियंत्रित हो रहा है, ऐसे में इसे जनमाध्यम कहा जाए या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है। शोधपत्र प्रस्तुत करने वालों में डा. पी. शशिकला, डा. मोनिका वर्मा, सुरेन्द्र पाल, मयंक शेखर मिश्रा, सायमा इम्तियाज, बबीता अग्रवाल, रामअवतार यादव, बृजेन्द्र शुक्ला, प्रदीप डहेरिया, आकांक्षा शुक्ला, मुक्ता मरतोलिया, जगमोहन राठौर शामिल रहे।

सेपर्क

(डा. पवित्र श्रीवास्तव)

विभागाध्यक्ष, जनसंपर्क विभाग

.

क्यों ज़रुरी है नरेंद्र मोदी इस देश के लिए?

पिछली ८ दिसंबर को आये दिल्ली विधानसभा के नतीजो ने एक नई बहस को जन्म दे दिया। ऐसी बहस जिसमे आम आदमी पार्टी के सयोजक अरविन्द केजरीवाल एक नायक के रूप में उभरे, एक ऐसे नायक जो भ्रष्टाचार के खिलाफ दो – दो हाथ करने को तैयार हो। निश्चय ही अरविन्द केजरीवाल से अब देश की उम्मीदे जुड़ने है, ऐसी उम्मीदे जिसमे देश अपने को भ्रष्टाचार से मुक़्त करने कि सोच सके। देश को भ्रस्टाचार से मुक्त करने की रौशनी की किरण जो अरविन्द केजरीवाल ने जगाई है उसके हम दिल से आभारी हैं। भ्रष्टाचार आज की तारीख में देश के लिए सबसे बड़ा प्रश्न है पर एक यही प्रश्न तो नहीं है जो देश के सामने मुह बाये खड़ा हो। भ्रष्टाचार के अलावा और भी कई प्रश्न है जिनके उत्तर देश मागता है, इन प्रश्नों में जो सबसे बड़ा प्रश्न है वो है की किस तरह से पडोसी दुश्मनो से देश की सरहदों, देश की ज़मीन की रक्षा की जाये। आज हालत ये है की चीन का जब दिल चाहता है वो हमारी देश की सीमाओ में आके केम्प लगा देता है। उसकी जब मर्ज़ी है वो अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे भारतीयो राज्यो को अपना बताने है, अरुणाचल प्रदेश के लिए तो वो नत्थी वीजा जारी करता है। सन उन्नीस सौ सैतालिस से ही हमारे कश्मीर का एक हिस्सा 'आज़ाद कश्मीर' के नाम पर पाकिस्तान के पास है।

 पाकिस्तान जब तब सीज फायर का उल्लघन करके एल ओ सी पर गोलाबारी करता रहता है। उसकी ढिठाई तो इतनी बढ़ गई है की वो हमारी सीमाओ के अंदर आकर हमारे सैनिको के सर काट ले जाता है। आज पूरी दुनिया जानती है भारत, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से पीड़ित है। हमारे देश में आतंक की घटनाओ को अंज़ाम देने वाले पाकिस्तान में हीरो कि तरह खुलेआम घूम रहें हैं। आज सिंध में रह रहे अल्पसंख्यक हिन्दुओ की हालत जानवरो से भी बदतर है। वहाँ की हिन्दू लड़कियों की अस्मत बड़ी आसानी से उनके ही परिवार वालो के सामने लूट ली जाती है। बांग्लादेश भी भारत के लिए एक बड़ी समस्या बनके उभरा है। भारत में आतंकवाद के धंधे को चलने के लिए आतंकवादी संगठनो ने अब बांग्लादेश की ज़मीन को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करना चालु कर दिया है। आज भारत में बांग्लादेशी घुसपैठिये टिड्डी दल कि तरह घुसते चले आ रहे है। बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन वहाँ रह रहे हिन्दुओ का ज़बरन धर्म परिवर्तन कर रहें है।वहाँ हिन्दू लड़कियों का निर्ममता से बलात्कार किया जाता है। और अब यही शर्मनाक घटनाये बांग्लादेश से आये घुसपैठिये बांग्लादेश की सीमाओ से लगे भारत के राज्यो में अंज़ाम दे रहें हैं।

चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत को सिर्फ इसलिए परेशां कर पा रहें है क्योंकि भारत की केंद्रीय सत्ता कमज़ोर है। इतिहास गवाह है जब – जब देश में केंद्रीय सत्ता कमज़ोर हुई है तब – तब हमारे ऊपर हमला करने वाले कामयाब हुए हैं। इतिहास में झांके तो तैमूर ने भारत में तब लूटपाट की जब निकम्मा तुग़लक़ सुलतान नसरिउदीन दिल्ली की सत्ता संभाल रहा था। बाबर ने भी पानीपत की पहली लड़ाई में कमज़ोर लोदी सुल्तान इब्राहीम को हराकर भारत में लूटपाट की थी। नादिरशाह भारत को सिर्फ इसलिए लूट सका क्योंकि मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह एक निर्बल बादशाह था। ठीक इसी तरह अब्दाली भी इसलिए कामयाब हुआ क्योंकि कायर अहमदशाह उस वक़्त भारत का बादशाह था। इसके उलट सिकंदर, सेलूकस को भारत में इसलिए सफलता नहीं मिली क्योंकि चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध में सशक्त सत्ता का निर्माण किया था। चीन के शक्तशाली राज्य को धूल में मिला देने वाले भारत में इसलिए धूल में मिला दिया गए क्योंकि स्कंदगुप्त के रूप में सशक्त शासक भारत के केंद्र में मौजूद था। मंगोलो को भारत में लूटपाट करने से रोक सकने में अलउद्दीन खिलज़ी सफलता पाई थी।सशक्त मुग़ल बादशाह अकबर से लेकर औरंगज़ेब तक कोई भी विदेशी ताकत हमें लूट पाने में कामयाब नहीं हो पाई।

आधुनिक भारत में भी जब – जब इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपई सशक्त सरकारे केंद्र में रही, हर बार दुश्मनो धूल चाटनी पड़ी। आज हमारे देश एक ऐसी सशक्त सरकार की जरुरत है जो विश्व में भारत को एक शक्तशाली देश के रूप स्थापित कर सके। जो भारत में हो रही आतंकवादी घटनाओ को रोक सके, जो देश के वीर सैनिको की शहादत को सम्मान दिल सके, उनकी हत्या का प्रतिशोध ले सके। जो अंतराष्ट्रीय स्तर पर देश के रुतबे को कायम कर सके। जो हमारी ज़मीन चीन से वापस ला सके। जो पाकिस्तान में घूम रहे देश के गुनहगारो को सजा दिल सके। कौन दिला सकता है भारत को सम्मान एक सशक्त सरकार के रूप में ?

एक प्रश्न ये भी है। यकीनन आज की राजनीत में सिर्फ नरेंद्र मोदी ही एक ऐसा नाम है जो भारत को आतंकवाद से सुरक्षित रख पाने में सक्षम है। नरेंद्र मोदी ही है जो बेलगाम होते चीन की लगाम कस सकते हैं। नरेंद्र मोदी ही हैं जो पाकिस्तान के नापाक इरादो को धूल में मिला सकते है। यकीनन आज देश में महगाई और भ्रष्टाचार भी बहुत बड़े मुद्दे हैं पर हमें नरेंद्र मोदी की योगयता पर पूरा विश्वास है की वो सीमाओ के बाहर और सीमाओ के अंदर के सारे मुद्दे सफलता पूर्वक हल कर सकते है और एक सशक्त और विकसित भारत का निर्माण कर सकते है। अरविन्द केजरीवाल यकीनन एक ईमानदार व्यक्ति हैं और उनमे दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने की योगयता है, पर इस वक़्त देश के प्रधानमंत्री बनने के योग्य इस वक़्त अगर कोई है तो वो नरेंद्र मोदी है। आज हमारे पास नरेंद्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल जैसे योग्य व्यक्ति हैं निश्चय ही अब हमारे देश का भविष्य उज्जवल है। मै उम्मीद करता हूँ कि २०१४ में देश की जनता नरेंद्र मोदी के रूप में भारत को एक सशक्त प्रधानमंत्री देगी और नरेंद्र मोदी एक खुशहाल भारत का निर्माण करेंगे।

संपर्क
 सुधीर मौर्य, गंज जलालाबाद,
जनपद – उन्नाव, २०९८६९

.

काँग्रेस ने अपने दुश्मन को देर से पहचाना

विधानसभा चुनाव की जंग और बयानों की उलटबांसियों के बीच एक अचरजभरा बयान केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश की ओर से आया. जीत या हार के कयासों के बीच एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हमारी लड़ाई भाजपा से नहीं बल्कि आरएसएस यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से है! इस पर बात आगे बढ़े, उसके पहले एक कथा सुन लीजिये. महाभारत का आधा युद्ध खत्म हो चुका था और रणभूमि पर जिस तरह खून की नदियां बह रही थी, उससे चिंतित महाराज कृष्ण–कौरव और पाण्डव के मध्यस्थ–कौरवों को समझाने पहुंचे लेकिन कौरव नहीं माने तब कृष्ण अफसोस जताते हुए वहां से विदा होने लगे तो कौरवों ने उन्हें यह कहते हुए गिरफ्तार करने की कोशिश की कि सारा खेल इन्हीं का है. ये अर्जुन के सारथी हैं और पाण्डव इन्हीं की रणनीति पर  चलते हुए जीतते जा रहे हैं!

    कांग्रेस को भी ऐन चुनाव के वक्त यह अहसास हुआ कि उसका मुकाबला भाजपा से नहीं बल्कि आरएसएस से है! रमेश ने जो सवाल उठाया है, पूर्व में भी कांग्रेस में इस पर चिंता हो चुकी है लेकिन हम यहां इस सवाल के बहाने कमजोर होती कांग्रेस और आरएसएस रूपी खाद से मजबूत होती भाजपा की चर्चा करेंगे क्योंकि आजादी के 65 साल बाद यदि कांग्रेस को अपने सही दुश्मन की पहचान हुई है तो सवाल यह खड़ा हुआ है कि वह आरएसएस से लडऩे की स्थिति में है भी या नहीं! जनसंघी दौर से लेकर 1990 की मात्र दो लोकसभा सीट से भाजपा यदि 137 तक पहुंची है और कांग्रेस का विकल्प बन चुकी है तो इसके पीछे आरएसएस की वर्षों की तपस्या है.

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पहले सरसंघचालक हेडगेवार ने 1925 में नागपुर के मोहितेबाड़ा में आरएसएस का बीज बोया और पांच चुनिंदा प्रचारकों को देश के बड़े शहरों में भेजकर संघ-कार्य की शुरूआत की. नींव के पत्थर की भांति इन पांचों ने संगठित हिन्दु के लक्ष्य के साथ आरएसएस की जमीन को सींचना शुरू किया. यह वह दौर था जब लोग देखते-सुनते ही हंसने लगते थे कि क्या आप हिन्दु समाज को एकत्रित करेंगे! क्योंकि ऐसा करना मेंढक़ तौलने जैसा माना जाता है. लेकिन प्रचारकों ने धैर्य नहीं खोया. आज संघ के चार हजार से ज्यादा प्रचारक-जिनमें से कई इंजीनियर-डॉक्टर हैं-घरबार छोडक़र देश और समाज की चिंता कर रहे हैं. 50 हजार से अधिक शाखाएं और विविध क्षेत्रों में कार्यरत 30 से ज्यादा बड़े संगठनों की कार्यक्षमता के दम पर संघ ने करोड़ों भारतीयों को अपने साथ जोड़ रखा है.

    बसपा के कांशीराम भी कभी संघ के कार्यों से प्रभावित हुए थे लेकिन जब विचार नहीं जमे तो उन्होंने संघ से किनारा करते हुए बहुजन समाज पार्टी का विकल्प दिया. हालांकि वहां भी उन्होंने संघ के समतामूलक समाज या दलितों को हिन्दु समाज की मुख्य धारा से जोडऩे का ही काम किया. यह स्वागतेय है कि मायावती भी उसी विजन के साथ आगे बढ़ रही हैं. नानाजी देशमुख ने चित्रकूट में जो प्रकल्प खड़ा किया या दत्तोपंत ठेंगड़ी ने जिस तरह मजदूरों के लिये काम किया, वह भी आरएसएस से ही प्रेरित रहे. देश से लेकर विदेश तक में ना सिर्फ आरएसएस खड़ा हुआ बल्कि विद्या भारती (सरस्वती शिशु मंदिर), विश्व हिन्दु परिषद, मजदूर संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती, ग्राम भारती इत्यादि विशालकाय संगठन खड़े किये जिन्होंने जमीन से जुडक़र काम खड़ा और करोड़ों दिलों में देशभक्त संगठन के तौर पर अपनी अमिट पहचान कायम की. चाहे गांधीजी की हत्या हो या फिर भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय आपातकाल, नेहरू युग से लेकर हाल के सोनिया युग तक आरएसएस को बदनाम करने, रोकने की कई साजिशें रची गई, रची जा रही हैं लेकिन संघ ने इसकी परवाह कभी नहीं की.

    कभी समय मिले तो छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा में होकर आइयेगा. आरएसएस के एक प्रचारक ने सालों पूर्व वहां जिस कुष्ठ आश्रम की शुरूआत की, आज वह विशालकाय वटवृक्ष बन चुका है. दस हजार से ज्यादा कुष्ठ रोगी अपना इलाज करा चुके हैं. जशपुर, रायपुर और बस्तर में आदिवासियों के लिये जो वनवासी कल्याण आश्रम चलाये जा रहे हैं, उनमें आदिवासियों का भरोसा जबरदस्त ढंग से जमा है. यह तो एक उदाहरण है. पूरे देश में संघ ऐसे हजारों प्रकल्प चला रहा है. क्या कांग्रेस या उसके मातहत काम कर रहे संगठनों ने कभी इस तरह के प्रकल्प चलाने की कोशिश की? महात्मा गांधी से लेकर अम्बेडकर तक संघ के शिविरों में पहुुंचे. वहां का दृश्य देखकर उन्होंने स्वीकारा कि जिस समतामूलक समाज की कल्पना वे करते हैं, संघ उसकी बेहतर नर्सरी साबित हो सकता है.

    संघ रूपी बैसाखियों का सहारा लेकर जहां एक तरफ भाजपा मजबूत होती चली गई तो दूसरी ओर जंग लगी और मुरझाई सोच का प्रयोग करते हुए कांग्रेस अपना परम्परागत वोटबैंक खोती गई बल्कि अपनी जड़ों से कटती चली गई. उदाहरण के तौर पर कांग्रेस आरएसएस को मुस्लिमों का विरोधी बताते रही है मगर दो साल पहले संघ के समर्थन से मुस्लिम राष्ट्रीय मंच प्रारंभ हुआ तो उसे जबरदस्त सफलता मिली. शुरू में मुसलमान हिचके जरूर लेकिन बाद में उन्हें समझ में आ गया कि मन और दिमाग में छाई धुंध को साफ करना ही होगा. आज हजारों मुसलमान मंच से जुड़े चुके हैं. उन्हें समझ में आने लगा है कि धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढक़र कांग्रेस सहित दूसरे राजनीतिक दल महज वोटबैंक की खातिर संघ का हौव्वा दिखाते रहे.

    ताजा चुनाव इसके सबसे बड़े प्रतीक बनकर उभरे हैं. अभी राजस्थान में कांग्रेस ने 14 मुस्लिमों को विधानसभा के टिकट दिये लेकिन जीते एक भी नहीं. जबकि मध्य प्रदेश चुनाव में भाजपा ने चार मुस्लिमों को टिकट दिये जिनमें से दो जीतकर आ गये. संदेश स्पष्ट है कि मुसलमानों को भी कांग्र्रेस पर भरोसा नहीं रहा क्योंकि सालों तक उन्हें सिर्फ वोटबैंक समझा गया. शिशु मंदिरों से हजारों मुस्लिम बच्चे पढक़र निकलते हैं लेकिन उन्हें शिशु मंदिर कभी साम्प्रदायिक नहीं लगा. बात को लम्बा खींचने के बजाय शार्टकट में यह समझने की कोशिश करते हैं कि मात्र अल्पसंख्यकों की बात कहके कांग्रेस जिस तरह बहुसंख्यकों को नजरअंदाज कर रही है, उसका खामियाजा उसे कदर भुगतना पड़ रहा है?

संघ तो कबका ऐलान कर चुका है कि यदि कांग्रेस राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व की चिंता करने लग जाये तो वह भी हमारा समर्थन ले सकती है. यकीन मानिए कि कांग्रेस का बुनियादी ढांचा अभी भी जमींदोज नहीं हुआ है लेकिन उसे खाद, पानी देने की जरूरत है. आज भी कांग्रेस अराजकता, अलगाववाद, आर्थिक आजादी और भारत को महाशक्ति बनाने के सपने के साथ समाज के सबसे निचले तबके तक जा सकती है लेकिन इसके लिये खुद आलाकमान को पहल करनी होगी. उसे पहला संदेश यह देना होगा कि वह सिर्फ अल्पसंख्यकों के लिये नहीं बल्कि पूरे देश की चिंता करती है. जैसे नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि करोड़ों गुजरातियों की चिंता करता हूं.

सिर्फ भाजपा या आरएसएस ही क्यों? वामपन्थी या दक्षिणपंथी पार्टियों को देख लीजिये. द्रमुक से लेकर अन्नाद्रमुक और तृणमूल से लेकर कांशीराम-मायावती तक, सभी ने मेहनत से, नीतियों से अपनी पार्टियों को खड़ा किया जो आपकी छाती पर मूंग दल रही हैं. बसपा सहित इन सभी का वोट बैंक जिस तरह पूरे देश में बढ़ रहा है, कांग्रेस को उससे सीख लेने की जरूरत है. कांग्रेस को एक बार फिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर लौटना होगा. उसे अपनी जड़ों को सींचना होगा. उसका सपना यदि आरएसएस को पछाडऩा है तो मैं इसमें आरएसएस की हार नहीं देख रहा हूं बल्कि मन में एक उम्मीद जगी है कि कांग्रेस वाकई भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस होने जा रही है!

    (लेखक राजनीतिक टिप्पणीकार हैं)
    Mobile : 09826550374

.

लौहपुरुष की स्मृति में मुंबई में दौड़े 30 हजार लोग

मुंबई। लौहपुरुष सरदार पटेल की स्मृति में मुंबई में आयोजित ‘रन फॉर यूनिटी’ में करीब 30 हजार से भी ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। ‘रन फॉर यूनिटी’ के आयोजक विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा एवं सुनील राणे ने इस दौड़ में इतनी बड़ी संख्या में हिस्सा लेने पर मुंबईकरों का आभार जताया है। अगस्त क्रांति मैदान पर पिछले कई सालों में इतनी बड़ी भीड़ कभी नहीं देखी गई। गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी की अगुवाई में देश भर में आयोजित इस दौड़ की मुंबई में अगुवाई बीजेपी के वरिष्ठ नेता वेंकैया नायड़ू ने की। लोकसभा में उपनेता गोपीनाथ मुंडे, बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव किरीट सोमैया एवं पूनम महाजन, विधान परिषद में विपक्ष के नेता विनोद तावड़े, पूर्व मंत्री दत्ता राणे, सिद्धार्थ गमरे एवं मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष आशीष शेलार सहित कई प्रमुख लोगों ने भी ‘रन फॉर यूनिटी’ में हिस्सा लिया।

अगस्त क्रांति मैदान पर वेंकैया नायड़ू ने इस दौड़ को झंड़ी दिखाकर विदाई दी। वरली में सरदार पटेल स्मारक पर उनकी आदमकद प्रतिमा को नायड़ू, मुंडे, तावड़े एवं लोढ़ा ने माल्यार्पण किया एवं नमन करके श्रद्धांजलि अर्पित की। ‘रन फॉर यूनिटी’ के समापन स्थल पर यह दौड़ एक विशाल आमसभा में परिवर्तित हो गई, जिसे नायड़ू, मुंडे, तावड़े, लोढ़ा एवं राणे ने संबोधित किया। जगह जगह विभिन्न बिल्डिंगों से लोगों ने ‘रन फॉर यूनिटी’ में दौड़नेवालों पर फूल बरसाए और उनका स्वागत किया। दौड़नेवाले भी हाथों में झंडे लहराते हुए सरदार पचंल अमर रहे के नारे लगाते हुए दौड़ रहे थे। मुंबईकरों में सरदार पटेल को श्रद्धांजलि के लिए अभूतपूर्व उत्साह दिखा। किसी महान व्यक्तित्व की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने का मुंबई में यह अपने आप में एक अनूठा कार्यक्रम था।    

 ‘रन फॉर यूनिटी’ के मुंबई में आयोजक विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा एवं सुनील राणे के मुताबिक सरदार पटेल के सपनों के भारत निर्माण की संकल्पना के  साथ श्री मोदी द्वारा आयोजित ‘रन फॉर यूनिटी’ में मुंबई ने सचमुच जबरदस्त एकता एवं उत्साह का का परिचय दिया। इस दौड़ में कुल 30 हजार से बी ज्यादा लोग आए और 2500 से भी ज्यादा पटेल समाज के लोग अपनी परंपरागत वेशभूषा में सजधज कर खास तौर से आए थे। छह साल के बच्चों से लेकर 88 साल के बुजुर्ग भी इस दौड़ में विशेष रूप से भाग लेने पहुंचे थे। गिरगांव के ‘गजर’ ग्रुप ने महाराष्ट्र की लेजिम संगीत परंपरा का शानदार प्रदर्शन किया।

‘रन फॉर यूनिटी’ में हिस्सा लेने के लिए 25 हजार के आसपास रजिस्ट्रेशन हुए थे, लेकिन उससे भी ज्यादा लोगों ने इस दौड़ में भाग लेकर आयोजन के प्रति अपने अभूतपूर्व उत्साह का परिचय दिया। कई लोग मोदीमय खास पोषाक पहनकर आए थे। सैकड़ों लोग राष्ट्रीय ध्वज, अनेक लोग सरदार पटेल और नरेंद्र मोदी के हैंड बोर्ड, के साथ नारे लगाते दौड़ रहे थे। इस मौके पर बड़ौदा में आयोजित नरेंद्र मोदी के भाषण का लाइव प्रसारण भी किया गया। विधायक लोढ़ा और राणे ने मुंबईकरों का आभार जताते हुए कहा है कि सरदार पटेल को श्रद्धांजलि देने के लिए समाज के सभी वर्गों ने  ‘रन फॉर यूनिटी’  में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल ने राष्ट्र को एक करने के लिए देश की 565 रियासतों को जोड़ा। उनकी कोशिशों की ही परिणाम है कि भारत विविधता की संस्कृति वाला देश होने के बावजूद शक्ति का मजबूत स्रोत है।

 

संपर्क

Prime Time Infomedia Pvt. Ltd, Mumbai. Ph: 9821226894

.